जनसंख्या नियन्त्रण

जनसंख्या नियन्त्रण

जनसंख्या नीति

 जनसंख्या नीति से तात्पर्य उस सरकारी नीति से है जिसके अनुसार किसी देश की सरकार जनसंख्या वृद्धि , कमी या यथावत बनाए रखने का प्रयास करती है । विभिन्न देशों की जनसंख्या सम्बन्धी समस्याओं में बड़ा अन्तर्विरोध है । किसी भी देश की जनसंख्या नीति एक समान नहीं हो सकती है । UNO के अनुसार , ” जनसंख्या नीति के अन्तर्गत वे समस्त कार्यक्रम एवं कार्यवाहियों सम्मिलित होती है जो जनसंख्या के आकार उसके वितरण एवं विशेषताओं में परिवर्तन लाकर आर्थिक , सामाजिक जनांकिकीय तथा अन्य सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रयुक्त की जाती है । ” इस तरह यह कहा जा सकता है कि जनसंख्या नीति किसी भी प्रकार सामाजिक नीति से कम नहीं है । जनसंख्या संकट के विवेकपूर्ण समाधान के लिए समस्त उद्देश्यों व कार्यक्रमों पर निर्भर रहना पड़ेगा तथा जनसंख्या नीति के अन्तर्गत जनसंख्या के गुणात्मक तथा परिमाणात्मक सामाजिक दोनों अर्थ है जनता के पहलओं पर विचार किया जाता है । गुणात्मक पहलू से स्वास्थ्य , जीवन प्रत्याशा , संरचना शिक्षा तथा प्रवासी प्रवृत्ति आदि में सुधार लाना जबकि परिमाणात्मक पहलू के अन्तर्गत जनसंख्या की मात्रा को इस प्रकार नियन्त्रित करना कि राष्ट्रीय संसाधनों के साथ जनसंख्या का सन्तुलन बना रहे । किसी भी देश की जनसंख्या नीति का निर्धारण मुख्य रूप से चार जनांकिकीय चरों – आकार , दरों , वितरण तथा गठन के अनुसार होता है तथा इन घरों को सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियाँ प्रभावित भी करती हैं । इस तरह यदि इन सभी चरों पर ध्यान दिया जाए तो इनसे सम्बन्धित ऐसी अनेक समस्याएँ हो सकती हैं जिन पर जनसंख्या नीति निर्माण के समय विचार करना पड़ता है ।

जनसंख्या नीति की समस्याएँ एवं परिप्रेक्ष्य

 जनसंख्या नीति से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण समस्याओं का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

आर्थिक समस्या

इसके अन्तर्गत कुल राष्ट्रीय उत्पादन प्रति व्यक्ति आय , रहन – सहन का स्तर तथा आर्थिक कल्याण , मजदूरी , परिवहन के साधनों को सम्मिलित किया जाता है । इन सभी कारकों का जनसंख्या नीति पर प्रभाव पड़ता है ।

राजनीतिक समस्या

इसके अन्तर्गत राज्य की कार्य प्रणाली , निर्णय , अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध जैसे- मूलभूत चीजों का ध्यान रखना पड़ता है ।

परिस्थितिक समस्या इस समस्या के अन्तर्गत संसाधनों का वस्तु के रूप में दोहरा प्रयोग ; प्राकृतिक संसाधनों का शक्ति की आवश्यकता , वातावरण को संसाधनों के रूप में मानकर प्रयोग करना आदि शामिल है ।

 सामाजिक समस्या इसके अन्तर्गत स्वास्थ्य , शिक्षा , काम के अवसर , स्त्री का महत्त्व , परिवार का आकार तथा परिवार को संस्था के रूप में जानना तथा उसके अनुसार नीति निर्धारण करना चाहिए । इस प्रकार आर्थिक समृद्धि के साथ – साथ देश में मन का समान एवं न्यायोचित वितरण हो सके , शान्ति , स्वतन्त्रता तथा न्याय एवं समतामूलक समाज की स्थापना हो सके । भारत एक विशाल देश है जिसके कारण यहाँ क्षेत्रीय और संरचनात्मक असमानताएँ जनसंख्या नीति को प्रभावित करती हैं । यद्यपि भारत प्रथम विकासशील राष्ट्र है जिसने वर्ष 1951-52 में एक सकारात्मक जनसंख्या नीति का प्रतिपादन किया । फिर भी जनसंख्या नियन्त्रण की दिशा में उपलब्धि सन्तोषजनक नहीं है ।

 भारत की जनसंख्या नीति

भारत प्रथम विकासशील राष्ट्र है जिसने वर्ष 1951-52 में ही एक सकारात्मक जनसंख्या नीति का प्रतिपादन किया । वर्ष 1951 से पहले भारत में जनसंख्या की समस्या को महसूस नहीं किया गया । सम्भवतः इसके पहले यह माना गया कि जनसंख्या की वृद्धि कोई अहित नहीं करती पर वर्ष 1951 में सरकार ने जनसंख्या वृद्धि को गम्भीरता से लिया तथा पहली बार वर्ष 1952 में राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया जिसका प्रमुख उद्देश्य जन्मदर को उस सीमा तक कम करना था जिससे जनसंख्या को अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुरूप स्तर पर स्थापित किया जा सके । परन्तु वर्ष 1961-62 में परिवार नियोजन को एक नया स्वरूप प्रदान किया गया तथा इसे परिवार के सम्पूर्ण कल्याण के साथ जोड़ दिया गया और यह परिवार नियोजन से हटकर परिवार कल्याण नियोजन कार्यक्रम बन गया ।

 परिवार कल्याण नियोजन कार्यक्रम

परिवार कल्याण नियोजन कार्यक्रम में परिवर्तन लाने के लिए 15 अक्टूबर 1997 को भारत सरकार ने प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया जो नवीं पंचवर्षीय योजनाका प्रमुख कार्यक्रम बना । इस प्रोग्राम में जनसंख्या की समस्या को हल करने के लिए अलग सोच शुरू की गई जिसमें परिवार नियोजन सेवाओं को प्रजनन स्वास्थ्य के सन्दर्भ में अलग से देखा गया । 1 अप्रैल , 2005 से 5 वर्ष के लिए सम्पूर्ण राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम को कवर करते हुए RCH – II शुरू किया गया । परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत विभिन्न संक्रामक रोगों से बचने के लिए व्यापक प्रतिरक्षण कार्यक्रम , प्रजनन तथा शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रजनन तथा लिंग सम्बन्धी रोगों से बचाव के कार्यक्रम चलाए जा रहे है । वर्तमान भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए निम्न बिन्दुओं पर जोर दिया जा रहा है ।

 अनुसन्धान

इसके अन्तर्गत देश के 16 राज्यों में जनांकिकी अनुसन्धान केन्द्र स्थापित किए गए है । भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् , राष्ट्रीय स्वास्थ्य केन्द्र तथा परिवार कल्याण केन्द्र संस्था द्वारा प्रजनन एवं अनुसन्धान कार्य किए जा रहे है ।

 प्रचार प्रसार

 भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा रेडियो , दूरदर्शन के द्वारा परिवार नियोजन को नियन्त्रित रखने सम्बन्धी उपायों का प्रचार करती है तथा इसके लिए गोष्ठियों तथा सेमिनारों का आयोजन करती है ।

 प्रोत्साहन द्वारा

 इसके अन्तर्गत परिवार नियोजन को स्वीकार करने वालों को प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है परन्तु यह राशि बहुत अल्प हो होती है इसमें सरकार को और बढ़ोतरी करने की जरूरत है ।

नई जनसंख्या नीति 2000

 15 फरवरी , 2000 को सरकार ने नई जनसंख्या नीति की घोषणा की जिसमें बल दिया गया कि वर्ष 2015 तक जनसंख्या की स्थिरिता प्राप्त कर ली जाएगी । जनसंख्या नीति का तात्कालिक उद्देश्य निरोधीकरण , स्वास्थ्य रक्षा अवस्थापना , समन्वित प्रसूति सेवा , स्वास्थ्य कर्मियों के सम्बन्ध में पिछली जनसंख्या नीति के अप्राप्त उद्देश्यों को प्राप्त करना होगा । इन उपायों में यह भी प्रस्तावित है कि गरीबी रेखा के ऐसे दम्पति जो 21 वर्ष की आयु के बाद विवाह करें छोटे परिवार की संकल्पना स्वीकार करें तथा दूसरी सन्तान के बाद परिवार नियोजन की बन्ध्याकरण विधि स्वीकार करें , उन्हें इनाम दिया जाएगा । जनसंख्या नीति में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक राज्य की लोकसभा की सीट वर्ष 1971 की जनसंख्या के ही आधार पर वर्ष 2026 तक 543 ही बनी रहेगी । इसके परिणामस्वरूप सभी राज्य बिना भय के जनसंख्या कार्यक्रम को क्रियान्वित कर सकेंगे ।  जनसंख्या सम्बन्धी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सरकार ने एक कार्य योजना तैयार की है । जिसमें प्रसूति सेवा का गाँव स्तर पर ध्रुवीकरण सम्मिलित है । नई जनसंख्या नीति में छोटे परिवार की संकल्पना को प्राप्त करने के लिए 16 प्रोत्साहक तथा उत्प्रेरक उपायों की चर्चा की गई है ।

जनसंख्या नीति , 2000 के उद्देश्य

अल्पकालिक इसके अन्तर्गत गर्भनिरोधकों की मांग को पूरा करना , स्वास्थ्य आधारभूत ढाँचे की व्यवस्था तथा स्वास्थ्य समन्वयकों की व्यवस्था करना ।

जहाँ हम महादान के लिए अपने आपको समर्पित करते हैं वहीं हम अत्यधिक गति जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा देते है संयम काल कभी पौन इच्छाओं को सन्तुष्टि मानवीय आवश्यकता है । इन क्रियाओं को मानव भी पूरा कर सकता है । मानवीय समाज में मैथुन काल या जनन जैसी कोई चीज नहीं होती अतः इन क्रियाओं को मानव हर समय पूरा कर सकने में सक्षम है । फलस्वरूप प्रजननता की पूर्ण मात्रा में उपलब्धता के कारण जनसंख्या वृद्धि होती है । अगर अपने आप पर संयम रखकर इस क्रिया को पूरा किया जाए तो एक निश्चित गति से बढ़ पाएगी । मनोरंजन भारतीय समाज के 121 सन्दर्भ में खायतौर से गरीबी रेखा के नीचे गुजर – बसर करने वालों में मनोरंजन को विशेष सुविधाओं का अभाव होता है । फलस्वरूप वह अपनी पत्नी को यौन क्रियाओं के रूप में ही मनोरंजन का साधन मानते हैं । स्वाभाविक है कि मनोरंजन के रूप म किए गए पौन क्रियाओं ने जनसंख्या में वृद्धि की है । अगर मनोरंजन की विशेष सुविधा इन लोगों को उपलब्ध कराई जाए तो सम्भव है कि इस तरह से मनोरंजन के रूप में की जाने वाली यौन क्रियाओं में कमी आएगी । फलस्वरूप समाज में जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रिण किया जा सकेगा । भूमि व्यवस्था में सुधार भारतीय सामाज में भूमि व्यवस्था ने अपने – अपने सामानों को ऊँचता एवं नीचता के क्रम में विभक्त कर दिया है । उच्च वर्ग वाले यह सोचकर प्रजनन दरों को नियन्त्रित नहीं करते हैं कि उनके पास आवश्यकता से ज्यादा सम्पत्ति के रूप में भूमि है । भूमि व्यवस्था में सुधार इस रूप में लाया जाए कि समाज का भूमि के आधार पर उच्चतम् एवं निम्नतम् वर्गों में विभाजन समाप्त किया जाए तो सम्भव है जनसंख्या वृद्धि में नियन्त्रण हो सकेगा । देशान्तरण इसका अर्थ होता है मानव का एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाकर बस जाना । आमतौर पर यह देखा जाता है कि अपनी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाता है अगर हम व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति उसी स्थान पर पूरा करने की कोशिश करे जहाँ से वह देशान्तरित होता है तो देशान्तरण के द्वारा जनसंख्या में वृद्धि को रोका जा सकता है । परिवार नियोजन परिवार नियोजन का अर्थ है सन्तानोत्पत्ति पर नियन्त्रण किन्तु विस्तृत अर्थ में परिवार नियोजन से आशय अविवेक पूर्ण मातृत्व पर रोक लगाना तथा सन्तानहीन को मातृत्व का लाभ दिलाना है । स्पष्ट है कि परिवार नियोजन का मूल उद्देश्य जनसंख्या को एक निश्चित सीमा में बाँधने से है । परिवार नियोजन के द्वारा लोगों को ज्ञान देकर या कृत्रिम रूप से उपाय दिखाकर जनसंख्या को नियन्त्रित किया जा सकता है । सरकार के द्वारा समय – समय पर इसके लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं । आगे भी सरकार द्वारा इसको प्रोत्साहन दिया जा रहा है । अत : उपरोक्त विभिन्न उपायों के द्वारा भारत में जनसंख्या को अनियन्त्रित दर को नियन्त्रित किया जा सकता है , आवश्यकता है साकार रूप में इन उपायों को अपनाने की , जिससे समाज और देश के कल्याणार्थ विभिन्न योजनाओं को समर्पित किया जा सके ।

 शिक्षा एक शैक्षणिक प्रक्रिया है जो विद्यर्थयों को वृद्धि के कारणी एवं उसके द्वारा उत्पन्न समस्याओं के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करती है । इस तरह शिक्षा का उद्देश्य देश को पड़ी थ की इस बात के लिए पहले से ही तैयार करना है कि वे अपने परिवार के आकार व सन्तान के विषय में पूर्ण ढंग से निर्णय से ऐसी की प्रजनन दर में कमी लाने हेतु प्रेरित करती है कि व्यक्ति , समाज देशका जीवन स्तर ऊंचा उठ सके तथा देश का विकास हो सके ।

जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य

 जनसंख्या शिक्षा के निम्न उद्देश्य है 1. जनसंख्या शिक्षा का उद्देश्य तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के ‘ सामाजिक – आर्थिक , राजनैतिक तथा सांस्कृतिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना है ।  2. बढ़ती हुई जनसंख्या के कारणों को स्पष्ट करना तथा उसे रोकने के लिए किए जाने वाले उपायों की व्याख्या करना । बढ़ती हुई जनसंख्या के पर्यावरण , खाद्यान्न , प्राकृतिक संसाधनों व जीवन स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों कीचना करना ।  4. छोटे परिवार के महत्त्व को स्पष्ट करना तथा उसके गुणात्मक पहलू का ज्ञान कराना । 5. जनसंख्या एवं अन्य संसाधनों के मध्य उत्पन्न असन्तुलन को स्थिति से उत्पन्न समस्याओं तथा उनके निराकरण के उपायों का अध्ययन करना । 6. माता व बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा , शिशु कल्याण , परिवार की आर्थिक स्थिति एवं युवा पीढ़ी में उसकी जिम्मेदारी के प्रति चेतना जाग्रत करना इत्यादि । इसी प्रकार भाटिया ने भी जनसंख्या शिक्षा के निम्न उद्देश्य बताए है 11. जनसंख्या की संरचना तथा वृद्धि के लिए समझ विकसित करना । छोटे परिवार में व्यक्तिगत जीवन की गुणवत्ता का ज्ञान कराना । 3. देश एवं समाज की आवश्यकता के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम को समझाना । 4. जीवन की अन्य सुविधाओं की प्राप्ति के लिए प्रयास करना । 2 . 6. माँ एवं बालक के स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरतों के बारे में जानकारी प्रदान करना । इस तरह जनसंख्या शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को तेजी से बढ़ती जा रही जनसंख्या के कारण उत्पन्न समस्याओं से अवगत कराना तथा जनसंख्या वृद्धि को रोकने से सम्बन्धित उपायों की जानकारी प्रदान करना है ताकि वे आगे आने वाली पीढ़ी तथा अपने परिवार के आकार को विवेकशील ढंग से नियोजित कर सकें तथा प्रजनन दर को कम करने में सहयोग कर देश को आर्थिक विकास के पथ पर अग्रसर होने में मदद कर सकें ।

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