मानसून का रौद्र रूप: राजस्थान में 285mm बारिश, MP के 10 जिले डूबे, चंडीगढ़-मनाली NH पर भारी भूस्खलन – जलवायु परिवर्तन का संकेत?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारतीय उपमहाद्वीप, विशेषकर पश्चिमी और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में मानसून ने अपना रौद्र रूप दिखाया है। राजस्थान के कुछ इलाकों में पिछले 69 वर्षों में सबसे अधिक 285 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो 1956 के 308 मिमी के रिकॉर्ड के करीब है। वहीं, मध्य प्रदेश के 10 जिलों में अत्यधिक बारिश के कारण जलभराव की स्थिति पैदा हो गई है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इन घटनाओं के साथ-साथ, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर बड़े पैमाने पर भूस्खलन ने यातायात को बाधित कर दिया है। ये घटनाएँ न केवल तात्कालिक समस्याएँ पैदा करती हैं, बल्कि भारतीय मानसून के पैटर्न में हो रहे संभावित बदलावों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर भी गंभीर सवाल खड़े करती हैं, जो UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
यह ब्लॉग पोस्ट इन घटनाओं के पीछे के वैज्ञानिक, भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को गहराई से समझने का प्रयास करेगा, साथ ही UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालेगा।
मानसून की बारीकियां: भारतीय अर्थव्यवस्था और जीवन रेखा
भारत के लिए मानसून केवल एक मौसमी हवा का पैटर्न नहीं है, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था, कृषि और सांस्कृतिक जीवन का आधार है। लगभग 70% वार्षिक वर्षा मानसून के दौरान ही होती है, जो कृषि क्षेत्र को सीधे प्रभावित करती है। यह वर्षा न केवल फसलों के लिए आवश्यक है, बल्कि नदियों को पुनर्जीवित करने, जलाशयों को भरने और भूजल स्तर को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
एक विशेषज्ञ शिक्षक की तरह समझें: मानसून को आप एक विशाल इंजन के रूप में सोच सकते हैं, जो हिंद महासागर से नमी खींचता है और उसे भारतीय प्रायद्वीप पर बरसाता है। यह इंजन विभिन्न घटकों से मिलकर बना है, जिनमें तापमान का अंतर, वायुमंडलीय दबाव, समुद्री धाराएँ और पृथ्वी का घूर्णन (कोरिओलिस बल) शामिल हैं। इन घटकों में कोई भी छोटा सा बदलाव, जैसे हिंद महासागर के तापमान में वृद्धि (जिसे ‘नीनो’ या ‘ल नीना’ प्रभाव के रूप में जाना जाता है) या वायुमंडलीय परिसंचरण में परिवर्तन, पूरे मानसून के खेल को बदल सकता है।
राजस्थान में रिकॉर्ड तोड़ बारिश: एक भौगोलिक और जलवायु संबंधी विश्लेषण
राजस्थान, जो आमतौर पर अपने शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु के लिए जाना जाता है, हाल ही में हुई अत्यधिक बारिश से सराबोर हो गया है। 285 मिमी की यह मात्रा, जो पिछले 69 वर्षों में सबसे अधिक है, एक महत्वपूर्ण घटना है।
क्यों हुई इतनी बारिश? (Factors behind the heavy rainfall)
- असामान्य मानसून ट्रफ: मानसून ट्रफ, जो भारत के ऊपर एक निम्न दबाव वाली पट्टी है, संभवतः सामान्य से अधिक दक्षिण की ओर और तीव्रता से स्थित थी। इसके कारण अरब सागर शाखा से आने वाली नमी युक्त हवाएँ राजस्थान तक पहुँचने में सफल रहीं।
- पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) का प्रभाव: कभी-कभी, पश्चिमी विक्षोभ, जो आमतौर पर सर्दियों में उत्तर-पश्चिम भारत में पश्चिमी विक्षोभ लाता है, मानसून के मौसम में भी अप्रत्याशित भूमिका निभा सकता है। यह अरब सागर से आने वाली नमी के साथ मिलकर भारी वर्षा करा सकता है।
- ‘डीप डिप्रेशन’ या ‘लो प्रेशर सिस्टम’: बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में बनने वाले गहरे निम्न दबाव (Deep Depression) या कम दबाव वाले क्षेत्र (Low Pressure System) अक्सर भारत के आंतरिक हिस्सों तक नमी ले जाते हैं, जिससे भारी वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
- तापमान विसंगतियाँ: भूमध्य सागर और उत्तरी अटलांटिक महासागर जैसे अन्य क्षेत्रों में असामान्य तापमान की स्थितियाँ भी भारतीय मानसून को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती हैं।
1956 के रिकॉर्ड से तुलना: क्या बदला है?
1956 में 308 मिमी बारिश का रिकॉर्ड बताता है कि राजस्थान में अतीत में भी इस तरह की भारी बारिश हो चुकी है। हालांकि, 69 साल बाद 285 मिमी बारिश का होना, विशेषकर बदलते जलवायु परिदृश्य में, चिंता का विषय है।
“यह सिर्फ एक आकस्मिक घटना नहीं हो सकती। हमें यह देखना होगा कि क्या यह बदलती जलवायु की एक झलक है, जहाँ चरम मौसमी घटनाएँ (Extreme Weather Events) अधिक बार हो रही हैं।”
इसका अर्थ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, सामान्य मौसमी पैटर्न में बदलाव आ रहा है, जिससे कहीं सूखा तो कहीं अत्यधिक वर्षा जैसी चरम घटनाएँ अधिक तीव्र और लगातार हो रही हैं।
राजस्थान के लिए निहितार्थ (Implications for Rajasthan)
- कृषि पर प्रभाव: जहाँ एक ओर बारिश किसानों के लिए वरदान होती है, वहीं इतनी अधिक और अचानक बारिश फसलों को नुकसान पहुँचा सकती है। जलभराव से जड़ें सड़ सकती हैं और फसलें नष्ट हो सकती हैं।
- शहरी अव्यवस्था: राजस्थान के शहरों में जल निकासी प्रणालियाँ अक्सर इतनी भारी बारिश के लिए तैयार नहीं होतीं, जिससे सड़कों पर जलभराव, यातायात जाम और सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
- नदियों और झीलों का उफान: राज्य की नदियाँ और झीलें, जैसे सांभर झील या पंचभद्रा झील, उफान पर आ सकती हैं, जिससे आसपास के निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
- भूजल पुनर्भरण: अत्यधिक बारिश से भूजल स्तर में सुधार हो सकता है, जो राज्य के लिए एक सकारात्मक पहलू है।
मध्य प्रदेश के 10 जिलों में जलभराव: ‘कोटा पूरा’ का मतलब
मध्य प्रदेश के 10 जिलों में ‘कोटा पूरा’ का मतलब है कि इन जिलों में हुई बारिश ने उस क्षेत्र के लिए निर्धारित औसत या अपेक्षित वर्षा को पार कर लिया है, जिसके परिणामस्वरूप जलभराव और संभावित बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
जलभराव के कारण (Causes of Waterlogging)
- अत्यधिक मौसमी वर्षा: मानसून की सक्रियता के कारण इन जिलों में सामान्य से बहुत अधिक वर्षा दर्ज की गई।
- खराब जल निकासी व्यवस्था: शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अप्रभावी या अवरुद्ध जल निकासी प्रणालियाँ पानी को बाहर निकालने में विफल रहती हैं, जिससे जल जमा हो जाता है।
- अनियोजित शहरीकरण: शहरों में बढ़ती अनियोजित बस्तियाँ और कंक्रीट का बढ़ता जाल, जो पानी को जमीन में रिसने से रोकता है, जलभराव की समस्या को बढ़ाता है।
- नदी के किनारों पर अतिक्रमण: नदियों और नालों के किनारों पर हुए अवैध निर्माण पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ता है।
MP के लिए चुनौतियाँ (Challenges for MP)
- जीवन और संपत्ति की हानि: बाढ़ और जलभराव से लोगों की जान माल का नुकसान हो सकता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य: जमा हुआ पानी मच्छरों और अन्य रोगवाहकों के लिए प्रजनन स्थल बन सकता है, जिससे जल-जनित बीमारियों (जैसे डायरिया, टाइफाइड) और वेक्टर-जनित बीमारियों (जैसे मलेरिया, डेंगू) का प्रकोप बढ़ सकता है।
- बुनियादी ढाँचा: सड़कें, पुल और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जिससे संचार और परिवहन बाधित हो सकता है।
- किसानों की दुर्दशा: खेतों में पानी भरने से फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है।
चंडीगढ़-मनाली NH पर भूस्खलन: पहाड़ी इलाकों में खतरा
चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग, जो हिमाचल प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा है, पर हुआ भूस्खलन कई समस्याओं को उजागर करता है, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण और मानसून के प्रभाव के संबंध में।
भूस्खलन क्यों होता है? (Why do Landslides Occur?)
- भारी वर्षा: बारिश मिट्टी को संतृप्त कर देती है, जिससे उसका वजन बढ़ जाता है और गुरुत्वाकर्षण के कारण वह अस्थिर हो जाती है।
- ढलान की अस्थिरता: पहाड़ी ढलानों को अक्सर मानव निर्मित निर्माण, जैसे सड़क कटाई (cutting), से अस्थिर कर दिया जाता है।
- भूवैज्ञानिक संरचना: जिस प्रकार की चट्टानें और मिट्टी मौजूद हैं, वे भूस्खलन के प्रति उनकी संवेदनशीलता को प्रभावित करती हैं।
- मानव गतिविधियाँ: वनों की कटाई, अनियोजित निर्माण और भारी मशीनरी का उपयोग भी भूस्खलन के प्रमुख कारण हो सकते हैं।
NH के बंद होने के निहितार्थ (Implications of NH Closure)
- आर्थिक प्रभाव: पर्यटन और व्यापार पर सीधा असर पड़ता है क्योंकि माल और यात्रियों का आवागमन बाधित होता है।
- आपूर्ति श्रृंखला: आवश्यक वस्तुओं (जैसे भोजन, ईंधन, दवाएं) की आपूर्ति में देरी हो सकती है।
- आपातकालीन सेवाएँ: बचाव और राहत कार्यों में बाधा आ सकती है।
- वैकल्पिक मार्गों पर दबाव: वैकल्पिक सड़कों पर यातायात का दबाव बढ़ जाता है, जिससे वहाँ भी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन और मानसून का बदलता मिजाज: एक व्यापक दृष्टिकोण
ये घटनाएँ सामूहिक रूप से एक बड़े पैटर्न का हिस्सा लगती हैं: जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि।
जलवायु परिवर्तन के कारक (Factors of Climate Change)
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: मानव गतिविधियों (जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई) से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रहा है।
- समुद्री तापमान में वृद्धि: गर्म महासागर हवाओं और वर्षा के पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
- वायुमंडलीय परिसंचरण में परिवर्तन: तापमान वृद्धि से वायुमंडलीय परिसंचरण के तरीकों में भी बदलाव आ रहा है।
UPSC के लिए प्रासंगिक अवधारणाएँ (Relevant Concepts for UPSC)
- मानसून का परिवर्तन (Monsoon Variability): यह सिर्फ मानसून के आने या न आने की बात नहीं है, बल्कि उसकी तीव्रता, अवधि और वितरण में बदलाव है।
- चरम मौसमी घटनाएँ (Extreme Weather Events): जैसे अत्यधिक वर्षा, सूखा, चक्रवात, लू, और अत्यधिक ठंड।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC): IPCC की रिपोर्टें इन बदलावों के वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करती हैं।
- आपदा प्रबंधन (Disaster Management): ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए भारत की तैयारी और क्षमता।
- अनुकूलन और शमन (Adaptation and Mitigation): जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और उनके अनुकूल ढलने की रणनीतियाँ।
“जलवायु परिवर्तन एक ‘स्केलर’ (scalar) समस्या है, जो स्थानीय घटनाओं को वैश्विक प्रभाव से जोड़ती है। राजस्थान की बारिश, MP का जलभराव और NH का भूस्खलन, ये सभी एक ही बड़ी वैश्विक चुनौती के क्षेत्रीय प्रकटीकरण हैं।”
आपदा प्रबंधन और भविष्य की राह
इन घटनाओं से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
लघु अवधि के उपाय (Short-term Measures)
- आपातकालीन प्रतिक्रिया: बचाव और राहत कार्यों को त्वरित और प्रभावी बनाना।
- सार्वजनिक जागरूकता: लोगों को सुरक्षित रहने और सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करने के बारे में सूचित करना।
- बुनियादी ढांचे का रखरखाव: अस्थायी रूप से अवरुद्ध सड़कों को खोलना और प्रभावित क्षेत्रों में आवश्यक सेवाओं की बहाली।
दीर्घकालिक रणनीतियाँ (Long-term Strategies)
- जलवायु-स्मार्ट शहरी नियोजन: जल निकासी प्रणालियों को मजबूत करना, हरित क्षेत्रों को बढ़ाना और जल-पारगम्य सतहों (permeable surfaces) का उपयोग करना।
- पहाड़ी क्षेत्रों में टिकाऊ निर्माण: भूस्खलन को रोकने के लिए वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग मानकों का पालन सुनिश्चित करना।
- वनरोपण और भू-संरक्षण: मिट्टी के कटाव को रोकने और ढलानों को स्थिर करने के लिए।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: बाढ़, भूस्खलन और भारी वर्षा के लिए बेहतर पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
- नीतिगत बदलाव: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीतियाँ बनाना और लागू करना।
- कृषि पद्धतियों में बदलाव: ऐसी फसलें उगाना जो अधिक लचीली हों और कृषि पद्धतियों को अपनाना जो जलभराव और सूखे का सामना कर सकें।
निष्कर्ष (Conclusion)
राजस्थान में 69 साल बाद की सबसे अधिक बारिश, मध्य प्रदेश में जलभराव और चंडीगढ़-मनाली NH पर भूस्खलन जैसी घटनाएँ, भारतीय उपमहाद्वीप पर मानसून के बदलते मिजाज और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं। ये केवल मौसम संबंधी विसंगतियाँ नहीं हैं, बल्कि गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ हैं जिनका सामना भारत को करना पड़ रहा है। UPSC उम्मीदवारों के लिए इन घटनाओं के वैज्ञानिक, भौगोलिक, आर्थिक और नीतिगत आयामों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि वे भारत के लिए प्रभावी और टिकाऊ समाधानों में योगदान कर सकें। यह समय है कि हम अपने विकास मॉडल पर पुनर्विचार करें और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाना सीखें।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. हाल ही में राजस्थान में देखी गई अत्यधिक वर्षा के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक संभावित रूप से जिम्मेदार हो सकता है?
a) मानसून ट्रफ का सामान्य से अधिक दक्षिण में स्थित होना
b) अरब सागर शाखा से नमी युक्त हवाओं का प्रभावी प्रवाह
c) पश्चिमी विक्षोभ का मानसून पर अप्रत्याशित प्रभाव
d) उपरोक्त सभी
उत्तर: d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: राजस्थान में असामान्य रूप से हुई भारी वर्षा के पीछे कई कारक हो सकते हैं, जिनमें मानसून ट्रफ का असामान्य स्थान, अरब सागर से आने वाली नमी और पश्चिमी विक्षोभ का संभावित प्रभाव शामिल हैं।
2. ‘कोटा पूरा’ शब्द का प्रयोग आमतौर पर किस संदर्भ में किया जाता है?
a) किसी क्षेत्र में औसत से कम वर्षा
b) किसी क्षेत्र में निर्धारित वर्षा लक्ष्य की पूर्ति
c) किसी क्षेत्र में औसत से अधिक या निर्धारित सीमा से अधिक वर्षा
d) किसी क्षेत्र में सूखे की स्थिति
उत्तर: c) किसी क्षेत्र में औसत से अधिक या निर्धारित सीमा से अधिक वर्षा
व्याख्या: ‘कोटा पूरा’ का अर्थ है कि उस क्षेत्र में उस विशेष अवधि या सीजन के लिए निर्धारित वर्षा कोटा या औसत को पार कर लिया गया है, जिससे जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
3. निम्नलिखित में से कौन सी घटना भूस्खलन के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हो सकती है?
a) मिट्टी का संतृप्त होना
b) ढलान की अस्थिरता
c) अनियोजित निर्माण
d) उपरोक्त सभी
उत्तर: d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: भूस्खलन कई कारकों का परिणाम होता है, जिसमें भारी बारिश से मिट्टी का संतृप्त होना, पहाड़ी ढलानों की प्राकृतिक या मानव निर्मित अस्थिरता और अनियोजित निर्माण शामिल हैं।
4. भारत में मानसून के संदर्भ में, ‘मानसून ट्रफ’ क्या है?
a) एक उच्च दबाव वाली पट्टी
b) एक निम्न दबाव वाली पट्टी
c) ठंडी हवा का प्रवाह
d) गरम हवा का प्रवाह
उत्तर: b) एक निम्न दबाव वाली पट्टी
व्याख्या: मानसून ट्रफ, मानसून के मौसम में भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर बनने वाली एक निम्न दबाव वाली पट्टी है, जिसके आसपास बादल और वर्षा केंद्रित होती है।
5. जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली ‘चरम मौसमी घटनाएँ’ (Extreme Weather Events) के उदाहरण कौन से हैं?
a) अत्यधिक वर्षा और सूखा
b) चक्रवात और लू
c) अत्यधिक गर्मी और ठंड
d) उपरोक्त सभी
उत्तर: d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन से न केवल सामान्य मौसम पैटर्न में बदलाव आता है, बल्कि अत्यधिक वर्षा, सूखा, तूफान, लू और असामान्य रूप से गर्म या ठंडे तापमान जैसी चरम घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में भी वृद्धि होती है।
6. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर वैज्ञानिक रिपोर्ट तैयार करती है?
a) विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO)
b) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC)
c) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
d) अंतर्राष्ट्रीय जलवायु संधि संगठन (ICSO)
उत्तर: b) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC)
व्याख्या: IPCC जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक साहित्य का मूल्यांकन करता है और सरकारों को नीति निर्माण के लिए रिपोर्ट प्रदान करता है।
7. भारत में कृषि के लिए मानसून का क्या महत्व है?
a) भारत की 70% वार्षिक वर्षा मानसून के दौरान होती है
b) यह रबी फसलों के लिए महत्वपूर्ण है
c) यह केवल खरीफ फसलों के लिए महत्वपूर्ण है
d) इसका कृषि पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ता
उत्तर: a) भारत की 70% वार्षिक वर्षा मानसून के दौरान होती है
व्याख्या: भारतीय कृषि बड़े पैमाने पर मानसून पर निर्भर करती है, क्योंकि देश की लगभग 70% वार्षिक वर्षा मानसून के महीनों में होती है, जो फसलों के लिए महत्वपूर्ण है।
8. भूस्खलन को रोकने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा उपाय सबसे प्रभावी हो सकता है?
a) अधिक से अधिक वनों की कटाई
b) पहाड़ी ढलानों पर अनियोजित निर्माण
c) वनरोपण और भू-संरक्षण तकनीकें
d) भारी मशीनरी का अनियंत्रित उपयोग
उत्तर: c) वनरोपण और भू-संरक्षण तकनीकें
व्याख्या: वनरोपण मिट्टी को बांधे रखता है और भू-संरक्षण तकनीकें ढलानों को स्थिर करती हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा कम होता है।
9. मध्य प्रदेश में जलभराव की समस्या को बढ़ाने में निम्नलिखित में से कौन सा कारक योगदान कर सकता है?
a) प्रभावी जल निकासी प्रणालियाँ
b) अनियोजित शहरीकरण
c) नदियों के किनारों पर प्राकृतिक प्रवाह
d) पर्याप्त हरित क्षेत्र
उत्तर: b) अनियोजित शहरीकरण
व्याख्या: अनियोजित शहरीकरण, विशेष रूप से कंक्रीट के बढ़ते उपयोग से, पानी के प्राकृतिक प्रवाह और अवशोषण में बाधा आती है, जिससे जलभराव की समस्या बढ़ जाती है।
10. राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों के लिए अत्यधिक वर्षा का एक संभावित सकारात्मक प्रभाव क्या है?
a) कृषि फसलों का पूरी तरह से विनाश
b) भूजल स्तर में सुधार
c) शहरी अव्यवस्था में वृद्धि
d) पर्यटन का पूर्ण ठहराव
उत्तर: b) भूजल स्तर में सुधार
व्याख्या: राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेशों में, अतिरिक्त वर्षा से भूजल पुनर्भरण में मदद मिलती है, जो लंबे समय में पानी की उपलब्धता के लिए महत्वपूर्ण है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. हाल ही में राजस्थान में हुई अत्यधिक वर्षा और मध्य प्रदेश में जलभराव की घटनाओं का विश्लेषण करें। इन घटनाओं के पीछे के भौगोलिक और जलवायु संबंधी कारकों की चर्चा करें और बताएं कि ये भारतीय मानसून के बदलते मिजाज और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के संकेतक कैसे हैं। (250 शब्द, 15 अंक)
2. पहाड़ी क्षेत्रों में, विशेष रूप से चंडीगढ़-मनाली जैसे महत्वपूर्ण राजमार्गों पर, भूस्खलन एक गंभीर समस्या है। भूस्खलन के मुख्य कारणों की व्याख्या करें और ऐसे कौन से दीर्घकालिक और अल्पकालिक उपाय हैं जो इन घटनाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं? (250 शब्द, 15 अंक)
3. भारतीय अर्थव्यवस्था और जीवनशैली के लिए मानसून का महत्व सर्वोपरि है। हाल की चरम मौसमी घटनाओं (जैसे अत्यधिक वर्षा, जलभराव) को देखते हुए, भारत को आपदा प्रबंधन में अपनी तैयारियों को कैसे मजबूत करना चाहिए? अनुकूलन (Adaptation) और शमन (Mitigation) रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करें। (250 शब्द, 15 अंक)
4. भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों, जैसे राजस्थान, में अत्यधिक वर्षा के दोहरे प्रभाव (सकारात्मक और नकारात्मक) हो सकते हैं। इन प्रभावों का विश्लेषण करें और बताएं कि इन क्षेत्रों को इन मौसमी चरम सीमाओं से निपटने के लिए किन विशिष्ट रणनीतियों को अपनाना चाहिए। (150 शब्द, 10 अंक)