अमेरिका-भारत व्यापार जंग: भारत का अगला कदम क्या होगा? अमेरिकी वित्त मंत्री के बयान और ट्रंप की चिंता का गहरा विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, अमेरिकी वित्त मंत्री ने भारत पर व्यापार वार्ता के प्रति अपने रवैये को लेकर गहरी नाराजगी व्यक्त की है। उनके अनुसार, “आगे क्या होगा, ये भारत पर निर्भर करता है।” यह बयान, खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत की व्यापार नीतियों को लेकर बढ़ी हुई चिंता के बीच आया है। यह स्थिति दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापारिक संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देती है, जिसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।
यह लेख UPSC उम्मीदवारों को इस जटिल मुद्दे की तह तक ले जाएगा। हम समझेंगे कि यह विवाद क्यों उत्पन्न हुआ, इसके पीछे के आर्थिक और राजनीतिक कारण क्या हैं, इसके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं, और भारत को अपनी आगे की रणनीति कैसे बनानी चाहिए।
समझें मूल मुद्दा: अमेरिका की टैरिफ और भारत की प्रतिक्रिया
यह पूरा विवाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए कुछ खास इस्पाती (Steel) और एल्युमिनियम (Aluminium) उत्पादों पर बढ़ाए गए टैरिफ (शुल्क) से शुरू हुआ। ट्रंप प्रशासन का तर्क था कि भारत इन क्षेत्रों में अनुचित व्यापार प्रथाओं का पालन करता है और अमेरिकी उद्योगों को नुकसान पहुंचाता है। इसके जवाब में, भारत ने भी कुछ अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क (Retaliatory Tariffs) लगाने की घोषणा की, जिसमें कुछ खास प्रकार के फल, नट्स और रसायन शामिल थे।
ट्रंप प्रशासन का तर्क:
- राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला: अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर इस्पात और एल्युमिनियम पर टैरिफ लगाया। उनका कहना था कि घरेलू इस्पात और एल्युमिनियम उद्योग की सुरक्षा देश की रक्षा क्षमताओं के लिए महत्वपूर्ण है।
- व्यापार घाटा: ट्रंप प्रशासन लगातार अमेरिका के व्यापार घाटे (Trade Deficit) को लेकर चिंतित रहा है और उनका मानना है कि कई देश, जिनमें भारत भी शामिल है, अमेरिका के साथ व्यापार में अनुचित लाभ उठा रहे हैं।
- अनुचित व्यापार प्रथाएं: अमेरिका का आरोप रहा है कि भारत आयात पर उच्च शुल्क लगाता है और अमेरिकी कंपनियों के लिए घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल बना देता है।
भारत की प्रतिक्रिया:
- प्रतिशोध की भावना: भारत ने अमेरिका के टैरिफ को अनुचित और विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के विरुद्ध बताया। जवाबी शुल्क लगाने का कदम इस तर्क पर आधारित था कि यदि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर शुल्क लगाता है, तो भारत भी अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाएगा।
- घरेलू उद्योगों की रक्षा: भारत का कहना था कि ये जवाबी शुल्क भारतीय उद्योगों और किसानों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं, जिन्हें अमेरिकी नीतियों से नुकसान हो सकता है।
- बातचीत का प्रयास: भारत ने हमेशा से ही बातचीत के माध्यम से मतभेदों को सुलझाने पर जोर दिया है।
अमेरिकी वित्त मंत्री के बयान का महत्व: “आगे क्या होगा, ये भारत पर निर्भर”
जब अमेरिकी वित्त मंत्री कहते हैं कि “आगे क्या होगा, ये भारत पर निर्भर करता है,” तो इसके कई गहरे निहितार्थ होते हैं। यह एक तरह का कूटनीतिक संकेत है, जो भारत को अपनी आगे की कार्रवाई पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।
इसका मतलब क्या है?
- भारत पर दबाव: यह बयान स्पष्ट रूप से भारत पर अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों को सुधारने के लिए कुछ कदम उठाने का दबाव बनाता है।
- वार्ता का रास्ता खुला: यह संकेत देता है कि अमेरिका अभी भी बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन वह चाहता है कि भारत बातचीत में अधिक सहयोगी रवैया अपनाए।
- अमेरिकी सद्भावना की कमी: “वार्ता के रवैये से नाराज हैं ट्रंप” का अर्थ है कि अमेरिका को लगता है कि भारत बातचीत के दौरान अपनी मांगों पर अड़ा रहा है और अमेरिकी चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं कर रहा है।
- परिणामों की जिम्मेदारी: यह कथन अप्रत्यक्ष रूप से यह भी कह रहा है कि यदि संबंध बिगड़ते हैं, तो इसकी जिम्मेदारी भारत पर आएगी क्योंकि उसने अमेरिका की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया।
“यह कूटनीति का एक सूक्ष्म खेल है। अमेरिकी वित्त मंत्री का बयान एक चेतावनी भी है और बातचीत का एक निमंत्रण भी। भारत को अपनी राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए, एक संतुलित और रणनीतिक प्रतिक्रिया देनी होगी।”
अमेरिका-भारत व्यापारिक संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ
अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंध हमेशा से गतिशील रहे हैं। हाल के वर्षों में, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। अमेरिका भारत का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, और भारत भी अमेरिका के लिए एक तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है।
प्रमुख व्यापारिक वस्तुएं:
- भारत से अमेरिका को निर्यात: परिधान, रत्न और आभूषण, दवाएं, कृषि उत्पाद, रसायन, मशीनरी।
- अमेरिका से भारत को निर्यात: पेट्रोलियम उत्पाद, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, हवाई जहाज, रसायन, धातु।
निवेश: दोनों देशों के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) भी महत्वपूर्ण रहा है। अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं, और भारतीय कंपनियां अमेरिका में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं।
मतभेदों के ऐतिहासिक कारण:
- भारत के टैरिफ: अमेरिका हमेशा से भारत के उच्च आयात शुल्कों को लेकर आलोचनात्मक रहा है।
- बाजार पहुंच: अमेरिकी कंपनियों को भारतीय बाजारों में समान पहुंच नहीं मिलने की शिकायतें भी रही हैं।
- बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण को लेकर भी अमेरिका ने चिंताएं व्यक्त की हैं।
- डिजिटल व्यापार: डेटा स्थानीयकरण (Data Localization) जैसे मुद्दे भी हाल के दिनों में तनाव का कारण बने हैं।
व्यापार युद्ध के संभावित प्रभाव
इस तरह के टैरिफ युद्धों के दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर दूरगामी और बहुआयामी प्रभाव पड़ सकते हैं:
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- निर्यात में गिरावट: अमेरिका को निर्यात होने वाले भारतीय उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगने से उनकी मांग घट सकती है, जिससे निर्यात आय प्रभावित होगी।
- रोजगार पर असर: जिन क्षेत्रों का निर्यात अमेरिका पर निर्भर करता है, वहां रोजगार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- उपभोक्ता मूल्य: यदि भारत अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाता है, तो इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ेगा।
- निवेश पर असर: अनिश्चितता के माहौल से विदेशी निवेशक हिचकिचा सकते हैं, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर असर पड़ सकता है।
- विनिमय दर: व्यापार घाटे में वृद्धि या पूंजी के बहिर्वाह से रुपये के विनिमय दर पर दबाव आ सकता है।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- उपभोक्ता मूल्य: भारतीय उत्पादों पर शुल्क लगने से कुछ वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।
- आयात लागत: अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय वस्तुओं का आयात महंगा हो जाएगा, जिससे उत्पादन लागत बढ़ सकती है।
- निर्यात पर असर: भारत द्वारा जवाबी शुल्क लगाने से अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान हो सकता है, खासकर कृषि और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला: यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर सकता है, जिससे अनिश्चितता बढ़ सकती है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- व्यापार संरक्षणवाद में वृद्धि: अमेरिका और भारत जैसे बड़े खिलाड़ियों के बीच व्यापार युद्ध अन्य देशों को भी संरक्षणवादी कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे वैश्विक व्यापार में मंदी आ सकती है।
- अनिश्चितता: भू-राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितता का माहौल बढ़ सकता है, जो वैश्विक निवेश को प्रभावित कर सकता है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका: यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों और उसकी प्रासंगिकता पर भी प्रश्नचिह्न लगा सकता है।
भारत के लिए आगे की राह: रणनीतिक विकल्प और चुनौतियाँ
अमेरिकी वित्त मंत्री के बयान को देखते हुए, भारत को एक सोची-समझी और रणनीतिक प्रतिक्रिया देनी होगी। यहाँ कुछ प्रमुख विकल्प और संबंधित चुनौतियाँ दी गई हैं:
1. बातचीत को जारी रखना:
विकल्प: भारत को अमेरिका के साथ बातचीत का रास्ता खुला रखना चाहिए। इसमें अमेरिकी चिंताओं को सुनना और जहाँ संभव हो, समाधान खोजना शामिल है।
रणनीति:
- स्पष्ट संवाद: भारत को अमेरिका के साथ अपनी व्यापार नीतियों के पीछे के तर्क और अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से संवाद करना चाहिए।
- लक्ष्य-आधारित बातचीत: भारत को बातचीत में विशिष्ट लक्ष्यों को निर्धारित करना चाहिए, जैसे कि टैरिफ को कम करना या विशिष्ट क्षेत्रों में बाजार पहुंच में सुधार।
- समूह वार्ता: अन्य देशों के साथ मिलकर अमेरिका पर बहुपक्षीय दबाव बनाना भी एक विकल्प हो सकता है।
चुनौतियाँ:
- अमेरिकी रुख: ट्रंप प्रशासन का “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडा और बातचीत के प्रति उनका आक्रामक रवैया बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- समय: बातचीत लंबी और थकाऊ हो सकती है, जबकि तत्काल आर्थिक प्रभाव पड़ रहा है।
- सहमति का अभाव: दोनों देशों के बीच बुनियादी हितों में अंतर हो सकता है, जिससे सर्वसम्मति बनाना मुश्किल हो सकता है।
2. जवाबी शुल्कों का मूल्यांकन और संशोधन:
विकल्प: भारत अपने द्वारा लगाए गए जवाबी शुल्कों की समीक्षा कर सकता है और यदि आवश्यक हो तो उन्हें संशोधित कर सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ अमेरिकी प्रभाव अधिक है।
रणनीति:
- लक्ष्यित प्रतिक्रिया: केवल उन अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाने पर विचार किया जा सकता है जिनसे भारत को कम से कम नुकसान हो।
- WTO नियमों का पालन: सुनिश्चित करें कि कोई भी संशोधन WTO नियमों के अनुरूप हो।
चुनौतियाँ:
- कमजोरी का संकेत: अमेरिकी दबाव के आगे झुकने के रूप में देखा जा सकता है, जिससे घरेलू राजनीतिक प्रतिक्रिया हो सकती है।
- प्रभावशीलता: क्या यह अमेरिका की नीतियों को बदलने के लिए पर्याप्त होगा, यह एक प्रश्न है।
3. वैकल्पिक बाजारों की तलाश:
विकल्प: भारत को अमेरिकी बाजार पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अन्य देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत करना चाहिए।
रणनीति:
- मुक्त व्यापार समझौते (FTAs): यूरोपीय संघ, आसियान, अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों के साथ FTAs पर बातचीत तेज करना।
- निर्यात विविधीकरण: उन उत्पादों और सेवाओं के लिए नए बाजार खोजना जिनमें भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता है।
- “मेक इन इंडिया” को बढ़ावा: घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर आयातों पर निर्भरता कम करना।
चुनौतियाँ:
- प्रतिस्पर्धा: वैकल्पिक बाजारों में भी अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
- समय: नए बाजारों को विकसित करने और निर्यात को बढ़ाने में समय लगता है।
- गुणवत्ता और मानक: नए बाजारों की गुणवत्ता और मानकों की आवश्यकताओं को पूरा करना एक चुनौती हो सकती है।
4. घरेलू सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना:
विकल्प: भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए आंतरिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे वह बाहरी झटकों का सामना करने में अधिक सक्षम हो।
रणनीति:
- Ease of Doing Business: व्यापार करने में आसानी को और बेहतर बनाना।
- बुनियादी ढांचा विकास: लॉजिस्टिक्स और कनेक्टिविटी में सुधार।
- विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था: डिजिटल व्यापार और नवाचार को बढ़ावा देना।
चुनौतियाँ:
- राजनीतिक इच्छाशक्ति: कुछ सुधारों को लागू करने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।
- क्रियान्वयन: नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
- राजकोषीय बाधाएं: कुछ सुधारों के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता हो सकती है।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह मुद्दा UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:
- प्रारंभिक परीक्षा (Prelims): अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थव्यवस्था, टैरिफ, व्यापार घाटा, WTO, द्विपक्षीय संबंध, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की नीतियां।
- मुख्य परीक्षा (Mains):
- GS-II (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): भारत के द्विपक्षीय संबंध, वैश्विक संस्थाएं और उनके जनादेश, व्यापारिक गुट, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाएं।
- GS-III (अर्थव्यवस्था): भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, व्यापार, अवसंरचना, अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ।
- GS-IV (नैतिकता): निर्णय लेने में निष्पक्षता, कूटनीति, राष्ट्रीय हित बनाम अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
यह मुद्दा आपको वैश्विक व्यापार की जटिलताओं, संरक्षणवाद के उदय और भू-राजनीतिक तनावों को समझने में मदद करता है, जो आज की दुनिया के प्रमुख विषय हैं।
निष्कर्ष: एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता
अमेरिकी वित्त मंत्री के बयान ने अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित किया है। “आगे क्या होगा, ये भारत पर निर्भर करता है” का अर्थ है कि भारत के पास अपने कूटनीतिक और आर्थिक खेल को नियंत्रित करने का अवसर है।
भारत को एक मजबूत, संतुलित और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। उसे न केवल अमेरिकी चिंताओं को संबोधित करना चाहिए, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों, घरेलू उद्योगों और उपभोक्ताओं की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करना चाहिए। यह एक नाजुक संतुलन होगा, लेकिन एक ऐसा संतुलन जिसे भारत को सफलतापूर्वक हासिल करना होगा ताकि वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत कर सके और एक स्थायी व्यापारिक संबंध का निर्माण कर सके।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. **निम्नलिखित में से कौन सा कथन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत पर टैरिफ लगाने के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है?**
a) भारत के बढ़ते रक्षा व्यय
b) भारत का बड़ा व्यापार घाटा और अनुचित व्यापार प्रथाएं
c) भारत का चीन के साथ बढ़ता गठबंधन
d) भारत की डिजिटल मुद्रा नीतियां
उत्तर: b
व्याख्या: ट्रंप प्रशासन ने अक्सर अमेरिका के व्यापार घाटे और अन्य देशों द्वारा अपनाई जाने वाली कथित अनुचित व्यापार प्रथाओं (जैसे उच्च टैरिफ) को अपने संरक्षणवादी नीतियों का कारण बताया है।
2. **अमेरिकी वित्त मंत्री द्वारा “आगे क्या होगा, ये भारत पर निर्भर करता है” कहने का क्या निहितार्थ हो सकता है?**
i) भारत पर अपनी नीतियों में बदलाव करने का दबाव डालना
ii) बातचीत के लिए भारत को आमंत्रित करना
iii) भारत की प्रतिक्रिया की जिम्मेदारी भारत पर डालना
a) केवल i और ii
b) केवल i और iii
c) केवल ii और iii
d) i, ii और iii
उत्तर: d
व्याख्या: यह बयान कूटनीतिक रूप से भारत पर दबाव बनाता है, बातचीत का दरवाजा खुला रखता है, और अप्रत्यक्ष रूप से भविष्य के नकारात्मक परिणामों के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास करता है।
3. **भारत ने अमेरिका के इस्पात और एल्युमिनियम पर लगाए गए टैरिफ के जवाब में किन उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाए?**
a) पेट्रोलियम उत्पाद और इलेक्ट्रॉनिक्स
b) कुछ फल, नट्स और रसायन
c) वाहन और मशीनरी
d) फार्मास्यूटिकल्स और कपड़ा
उत्तर: b
व्याख्या: ऐतिहासिक रूप से, भारत ने जवाबी शुल्क के रूप में अमेरिकी कृषि उत्पादों (जैसे बादाम, छोले) और कुछ रसायनों को लक्षित किया है।
4. **निम्नलिखित में से कौन सा संगठन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के प्रवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है?**
a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
b) विश्व बैंक (World Bank)
c) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
d) संयुक्त राष्ट्र (UN)
उत्तर: c
व्याख्या: विश्व व्यापार संगठन (WTO) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के निर्माण और प्रवर्तन के लिए जिम्मेदार है।
5. **”व्यापार घाटा” (Trade Deficit) शब्द का क्या अर्थ है?**
a) जब किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो।
b) जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक हो।
c) जब किसी देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो।
d) जब किसी देश की मुद्रा का मूल्य अन्य मुद्राओं की तुलना में बढ़ता है।
उत्तर: b
व्याख्या: व्यापार घाटा तब होता है जब एक देश अपने द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य, उसके द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य से अधिक होता है।
6. **”संरक्षणवाद” (Protectionism) से तात्पर्य है:**
a) घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए आयात पर टैरिफ और अन्य प्रतिबंध लगाना।
b) सभी देशों के लिए मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना।
c) अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करना।
d) विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना।
उत्तर: a
व्याख्या: संरक्षणवाद एक आर्थिक नीति है जिसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना है।
7. **भारत का कौन सा क्षेत्र अमेरिकी टैरिफ से सीधे प्रभावित होने वाले मुख्य क्षेत्रों में से एक रहा है?**
a) सूचना प्रौद्योगिकी (IT)
b) कपड़ा और परिधान
c) इस्पात और एल्युमिनियम (ऐतिहासिक रूप से अमेरिका द्वारा लक्षित, भारत के निर्यात के रूप में नहीं)
d) फार्मास्यूटिकल्स
उत्तर: c
व्याख्या: अमेरिका ने सीधे तौर पर भारत के इस्पात और एल्युमिनियम पर टैरिफ लगाए थे, जबकि भारत ने जवाबी शुल्क कुछ अन्य क्षेत्रों पर लगाए। यह प्रश्न अमेरिकी कार्रवाई पर केंद्रित है।
8. **निम्नलिखित में से कौन सा उपाय भारत द्वारा अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों में तनाव को कम करने के लिए उठाया जा सकता है?**
i) अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाना
ii) द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करना
iii) वैकल्पिक बाजारों की तलाश करना
a) केवल i
b) केवल ii
c) केवल ii और iii
d) i, ii और iii
उत्तर: c
व्याख्या: अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाना तनाव को और बढ़ाएगा, जबकि वार्ता और वैकल्पिक बाजारों की तलाश समाधान के रास्ते खोलेंगे।
9. **”प्रत्यक्ष विदेशी निवेश” (Foreign Direct Investment – FDI) का संबंध किससे है?**
a) अल्पकालिक वित्तीय निवेश
b) एक देश में उत्पादक संपत्ति का स्वामित्व जो एक विदेशी व्यक्ति या कंपनी द्वारा किया जाता है
c) अंतर्राष्ट्रीय ऋण
d) विदेशी मुद्रा का व्यापार
उत्तर: b
व्याख्या: FDI किसी विदेशी इकाई द्वारा किसी देश की कंपनी या व्यावसायिक संपत्ति में किया गया निवेश है।
10. **अमेरिका-भारत व्यापार विवाद का संभावित परिणाम क्या हो सकता है?**
a) दोनों देशों के बीच व्यापार में अचानक वृद्धि
b) विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका का मजबूत होना
c) वैश्विक व्यापार संरक्षणवाद में वृद्धि
d) दोनों देशों के बीच सहयोग में अप्रत्याशित वृद्धि
उत्तर: c
व्याख्या: बड़े देशों के बीच व्यापार विवाद अक्सर अन्य देशों को भी संरक्षणवादी कदम उठाने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर संरक्षणवाद बढ़ सकता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. **अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस्पात और एल्युमिनियम पर लगाए गए टैरिफ और भारत द्वारा जवाबी शुल्क लगाने की घटना का विश्लेषण करें। इस व्यापारिक विवाद के भारत की अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों का मूल्यांकन करें।**
2. **अमेरिकी वित्त मंत्री के “आगे क्या होगा, ये भारत पर निर्भर करता है” वाले बयान को ध्यान में रखते हुए, भारत के लिए अमेरिका के साथ व्यापारिक गतिरोध को दूर करने के लिए रणनीतिक विकल्पों पर चर्चा करें। भारत को अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के बीच संतुलन कैसे बनाना चाहिए?**
3. **वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद के बढ़ते चलन के संदर्भ में, अमेरिका-भारत व्यापार विवाद का क्या महत्व है? इस तरह के विवाद वैश्विक आर्थिक व्यवस्था और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली (जैसे WTO) को कैसे प्रभावित कर सकते हैं?**
4. **भारत की “मेक इन इंडिया” पहल और आत्मनिर्भरता (Atmanirbhar Bharat) के लक्ष्यों के आलोक में, अमेरिका जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ व्यापारिक विवादों से निपटने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को कैसे बनाए रख सकता है?**