दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश: आपके शहर का मौसम और UPSC के लिए इसके मायने
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र, जो भारत की राजधानी और एक प्रमुख आर्थिक केंद्र है, पिछले कुछ समय से लगातार और कभी-कभी मूसलाधार बारिश का सामना कर रहा है। यह मौसमी घटना न केवल नागरिकों के दैनिक जीवन को प्रभावित करती है, बल्कि पर्यावरण, बुनियादी ढांचे और सरकार की आपदा प्रबंधन क्षमताओं के लिए भी महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करती है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, इस तरह की समसामयिक घटनाएँ अक्सर सामान्य अध्ययन (GS) के विभिन्न पेपरों, विशेष रूप से GS-I (भूगोल, समाज), GS-II (शासन, नीति) और GS-III (पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, अर्थव्यवस्था) के लिए प्रासंगिक हो जाती हैं। यह लेख दिल्ली-एनसीआर में हो रही इस बारिश की विस्तृत पड़ताल करेगा, इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को समझाएगा, और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालेगा।
मानसून का खेल: दिल्ली-एनसीआर में बारिश का वैज्ञानिक विश्लेषण (The Monsoon Play: Scientific Analysis of Rain in Delhi-NCR)**
दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में होने वाली बारिश मुख्य रूप से भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (Indian Summer Monsoon) का हिस्सा है। लेकिन, इस क्षेत्र में बारिश की तीव्रता और पैटर्न कई स्थानीय और वैश्विक कारकों से प्रभावित होता है:
- मानसून की वापसी और ब्रेक (Monsoon Withdrawal and Breaks): मानसून का मौसम आमतौर पर सितंबर के मध्य तक समाप्त हो जाता है। हालांकि, कभी-कभी मानसून की वापसी में देरी हो सकती है, या मानसून की ट्रफ (Monsoon Trough) की स्थिति बदल सकती है, जिससे अक्टूबर या नवंबर की शुरुआत में भी अच्छी खासी बारिश हो सकती है। इसे ‘उत्तर-पूर्वी मानसून’ (Northeastern Monsoon) के प्रभाव से भी जोड़ा जा सकता है, हालांकि इसका सीधा प्रभाव दक्षिण भारत पर अधिक होता है, लेकिन इसके अवशेष दिल्ली-एनसीआर को भी प्रभावित कर सकते हैं।
- पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances): हालांकि पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर सर्दियों में बारिश लाते हैं, लेकिन कभी-कभी ये मानसून के अंत में या उसके बाद के मौसम में भी सक्रिय हो सकते हैं, खासकर यदि वे हिमालय के साथ-साथ अपनी दिशा बदलते हैं। ये विक्षोभ नमी ला सकते हैं और स्थानीय मौसमी प्रणालियों के साथ मिलकर भारी बारिश का कारण बन सकते हैं।
- निम्न दबाव प्रणाली (Low-Pressure Systems): बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में बनने वाले निम्न दबाव के क्षेत्र, भले ही सीधे एनसीआर को प्रभावित न करें, लेकिन वे मानसून की ट्रफ को उत्तर की ओर खींच सकते हैं। इससे दिल्ली-एनसीआर में अधिक नमी पहुँचती है और आर्द्रता बढ़ जाती है, जो बारिश के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है।
- शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect): बड़े शहर, जैसे दिल्ली, अपने कंक्रीट के ढाँचों, कम हरियाली और मानव गतिविधियों के कारण अपने आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक गर्म होते हैं। यह ‘शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव’ हवा के ऊपर उठने (convection) को बढ़ा सकता है, जिससे स्थानीय रूप से गरज के साथ बौछारें (thundershowers) और भारी बारिश हो सकती है।
- आर्द्रता का स्तर (Humidity Levels): जब हवा में उच्च आर्द्रता होती है, तो यह बादलों के निर्माण और वर्षा की संभावना को बढ़ाती है। दिल्ली-एनसीआर में, पास की नदियों (यमुना) और जल निकायों के साथ-साथ मानसून की आर्द्र हवा के कारण आर्द्रता का स्तर अक्सर अधिक रहता है।
बारिश का प्रभाव: नागरिक जीवन से लेकर अर्थव्यवस्था तक (Impact of Rain: From Civic Life to Economy)**
दिल्ली-एनसीआर में लगातार और भारी बारिश का प्रभाव बहुआयामी होता है:
- बुनियादी ढांचे पर प्रभाव (Impact on Infrastructure):
- जलभराव और यातायात जाम (Waterlogging and Traffic Congestion): यह सबसे आम और तुरंत दिखने वाला प्रभाव है। खराब जल निकासी व्यवस्था (drainage system) के कारण सड़कें और निचली बस्तियाँ पानी से भर जाती हैं, जिससे भीषण यातायात जाम की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे लोगों का समय बर्बाद होता है, ईंधन की खपत बढ़ती है और आर्थिक गतिविधियों में बाधा आती है।
- सार्वजनिक परिवहन पर असर (Effect on Public Transport): मेट्रो सेवाएं, बसें और अन्य सार्वजनिक परिवहन भी प्रभावित हो सकते हैं। स्टेशनों के आसपास जलभराव, या रेलवे ट्रैक पर पानी जमा होने से सेवाओं में देरी या व्यवधान हो सकता है।
- भवन और संरचनात्मक क्षति (Building and Structural Damage): अत्यधिक बारिश से इमारतों की नींव कमजोर हो सकती है, दीवारों में सीलन आ सकती है, और पुरानी संरचनाओं को नुकसान पहुँच सकता है।
- पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव (Impact on Environment and Health):
- वायु गुणवत्ता में सुधार (Improvement in Air Quality): एक सकारात्मक पक्ष यह है कि बारिश धूल और प्रदूषण के कणों को धो देती है, जिससे वायु गुणवत्ता में अस्थायी सुधार होता है। मानसून के बाद दिल्ली की अक्सर खराब होने वाली हवा की गुणवत्ता के लिए यह एक राहत का काम कर सकता है।
- जल जनित रोग (Waterborne Diseases): जल जमाव और सीवरेज लाइनों के ओवरफ्लो से पीने के पानी के स्रोतों का दूषित होना, हैजा, टाइफाइड और डायरिया जैसे जल जनित रोगों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
- मच्छरों का पनपना (Breeding of Mosquitoes): रुके हुए पानी में मच्छर पनपते हैं, जिससे डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ सकता है।
- आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):
- कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture): हालाँकि दिल्ली-एनसीआर मुख्य रूप से एक शहरी क्षेत्र है, इसके आसपास के ग्रामीण इलाकों में कृषि पर भी बारिश का प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक बारिश से फसलें सड़ सकती हैं या कटाई में बाधा आ सकती है।
- व्यापार और वाणिज्य में बाधा (Disruption to Trade and Commerce): सड़कों पर जलभराव और यातायात जाम से माल की आवाजाही प्रभावित होती है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) बाधित हो सकती है और छोटे व्यवसायों को नुकसान हो सकता है।
- आपदा प्रबंधन लागत (Disaster Management Costs): सरकार को जलभराव, जल-जनित रोगों के प्रबंधन और सार्वजनिक सेवाओं को बहाल करने के लिए अतिरिक्त संसाधन खर्च करने पड़ते हैं।
- सामाजिक प्रभाव (Social Impact):
- गरीबों पर अधिक मार (Hardship on the Poor): झुग्गी-बस्तियों और निचली आय वाले इलाकों में रहने वाले लोग जलभराव और सीवेज के कारण सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। उनकी आवाजाही बाधित होती है, स्वास्थ्य जोखिम बढ़ता है और दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
- मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health): लगातार असुविधा, यात्रा में कठिनाई और संपत्ति के नुकसान का डर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकता है।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: GS के विभिन्न आयाम (Relevance for UPSC: Various Dimensions of GS)**
दिल्ली-एनसीआर में होने वाली यह बारिश UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण विषयों से जुड़ती है:
GS-I: भूगोल और समाज (Geography and Society)**
- जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण (Climate Change and Urbanization): यह अध्ययन करने का एक उत्कृष्ट अवसर है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएं (extreme weather events) बढ़ रही हैं और शहरीकरण इन घटनाओं के प्रभाव को कैसे बढ़ा रहा है।
- जनसंख्या वितरण और शहरी नियोजन (Population Distribution and Urban Planning): दिल्ली-एनसीआर जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्र में बाढ़ और जलभराव का प्रबंधन शहरी नियोजन की विफलता और जनसंख्या घनत्व की चुनौतियों को उजागर करता है।
- सामाजिक असमानता (Social Inequality): बारिश का प्रभाव समाज के विभिन्न वर्गों पर अलग-अलग होता है, जो सामाजिक असमानताओं को दर्शाता है।
GS-II: शासन, नीति और न्यायपालिका (Governance, Policy, and Judiciary)**
- आपदा प्रबंधन (Disaster Management): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और स्थानीय निकायों की भूमिका, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति (preparation, response, and recovery) के पहलू महत्वपूर्ण हैं।
- शहरी शासन (Urban Governance): नगर निगमों, दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और अन्य सरकारी एजेंसियों की जल निकासी, सीवेज प्रबंधन और शहरी बुनियादी ढांचे के रखरखाव में भूमिका।
- नीति निर्माण (Policy Making): टिकाऊ शहरी नियोजन, जल प्रबंधन नीतियों और जलवायु-अनुकूल अवसंरचना के विकास के लिए नीतियों की आवश्यकता।
- न्यायपालिका की भूमिका (Role of Judiciary): कई बार, खराब शहरी नियोजन या सरकारी निष्क्रियता के खिलाफ जनहित याचिकाएँ (PILs) दायर की जाती हैं, जो न्यायपालिका को सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती हैं।
GS-III: पर्यावरण, पारिस्थितिकी, आपदा प्रबंधन और अर्थव्यवस्था (Environment, Ecology, Disaster Management, and Economy)**
- पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution): बारिश से वायु प्रदूषण में होने वाला अस्थायी सुधार और जल प्रदूषण के खतरे।
- पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystems): शहरी पारिस्थितिकी तंत्र पर अत्यधिक वर्षा का प्रभाव।
- आपदा प्रबंधन (Disaster Management): विभिन्न प्रकार की आपदाएँ (जैसे बाढ़, जलभराव), उनके कारण, प्रभाव और प्रबंधन की रणनीतियाँ।
- भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy): कृषि, परिवहन, और सेवा क्षेत्रों पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव।
चुनौतियाँ और सरकार की प्रतिक्रिया (Challenges and Government Response)**
दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश से निपटने में मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
- अव्यवस्थित शहरीकरण (Unplanned Urbanization): बिना उचित योजना के तेजी से बढ़ा शहरीकरण, जिसमें नालों और जल निकासी प्रणालियों पर निर्माण, हरित क्षेत्रों का विनाश और जल निकायों का अतिक्रमण शामिल है।
- पुरानी अवसंरचना (Aging Infrastructure): शहर की जल निकासी प्रणाली अक्सर पुरानी है और वर्तमान जनसंख्या घनत्व और वर्षा की मात्रा का सामना करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
- अतिक्रमण (Encroachments): कई नाले और प्राकृतिक जल निकासी मार्ग अतिक्रमण के कारण अवरुद्ध हो गए हैं।
- अपर्याप्त सीवेज और जल निकासी प्रबंधन (Inadequate Sewage and Drainage Management): सीवेज ओवरफ्लो और जल निकासी व्यवस्था की विफलता प्रमुख समस्याएँ हैं।
- जागरूकता की कमी (Lack of Awareness): नागरिक भी कई बार कूड़ा नालों में फेंककर समस्या को बढ़ाते हैं।
सरकारें (केंद्र, दिल्ली सरकार, और एनसीआर के राज्य) इन चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न उपाय करती हैं:
- आपदा तैयारी बैठकें (Disaster Preparedness Meetings): मानसून की शुरुआत से पहले, सभी संबंधित एजेंसियां बैठकें करती हैं ताकि तैयारियों की समीक्षा की जा सके।
- जल निकासी प्रणालियों की सफाई (Cleaning of Drainage Systems): मानसून से पहले नालों और सीवेज लाइनों की सफाई का कार्य किया जाता है।
- बाढ़ नियंत्रण उपाय (Flood Control Measures): यमुना नदी के किनारों पर तटबंधों को मजबूत करना और जल निकायों की क्षमता बढ़ाना।
- जन जागरूकता अभियान (Public Awareness Campaigns): नागरिकों को जल संचयन, जल संरक्षण और कूड़ा न फैलाने के बारे में जागरूक करना।
- तकनीकी समाधान (Technological Solutions): मौसम पूर्वानुमान में सुधार, जलभराव की निगरानी के लिए सेंसर का उपयोग।
“बारिश एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन इसका प्रभाव अक्सर मानवीय कार्यों और नियोजन की विफलता से बढ़ जाता है। एक स्मार्ट और लचीला शहरी ढांचा ही भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सकता है।”
आगे की राह: समाधान और सुझाव (The Way Forward: Solutions and Suggestions)**
दिल्ली-एनसीआर को भविष्य में भारी बारिश से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- एकीकृत शहरी जल प्रबंधन (Integrated Urban Water Management): जल निकासी, सीवेज, और भूजल पुनर्भरण (groundwater recharge) को एक साथ एकीकृत करने वाली योजनाएँ बनाना।
- हरित अवसंरचना का विकास (Development of Green Infrastructure): शहरी क्षेत्रों में अधिक पेड़ लगाना, पार्कों का विकास, और ‘स्पांज सिटी’ (Sponge City) अवधारणाओं को अपनाना, जहाँ शहर बारिश के पानी को अवशोषित करने और प्रबंधित करने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं। इसमें पारगम्य फ़र्श (permeable paving) और हरित छतों (green roofs) का उपयोग शामिल हो सकता है।
- जल निकायों का पुनरुद्धार (Rejuvenation of Water Bodies): झीलों, तालाबों और प्राकृतिक नालों को अतिक्रमण मुक्त करके और उनका पुनरुद्धार करके उनकी जल-धारण क्षमता को बढ़ाना।
- बुनियादी ढांचे का उन्नयन (Upgradation of Infrastructure): मौजूदा जल निकासी प्रणालियों को आधुनिक बनाना और नई, बड़ी क्षमता वाली प्रणालियाँ विकसित करना।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत करना (Strengthening Emergency Response Mechanism): त्वरित प्रतिक्रिया टीमों का गठन, उन्नत संचार प्रणालियाँ, और आपदा राहत सामग्री का पर्याप्त भंडारण।
- नीति निर्माण में भागीदारी (Participatory Policy Making): योजना प्रक्रियाओं में नागरिकों और विशेषज्ञों को शामिल करना।
- जलवायु-अनुकूल निर्माण (Climate-Resilient Construction): नई इमारतों को बाढ़ और अन्य जलवायु-संबंधी जोखिमों का सामना करने के लिए डिज़ाइन करना।
निष्कर्ष (Conclusion)**
दिल्ली-एनसीआर में हो रही लगातार बारिश एक मौसमी घटना से कहीं अधिक है; यह हमारे शहरी नियोजन, बुनियादी ढांचे, शासन और जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी संवेदनशीलता की परीक्षा है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह विषय न केवल भूगोल और पर्यावरण के बारे में ज्ञान का परीक्षण करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे समसामयिक मुद्दे शासन, समाज और अर्थव्यवस्था से जुड़े होते हैं। इन मुद्दों की गहन समझ, समस्याओं के विश्लेषण और संभावित समाधानों की पहचान, सिविल सेवक बनने की दिशा में महत्वपूर्ण है। भारी बारिश एक चुनौती प्रस्तुत करती है, लेकिन यह हमें अपने शहरों को अधिक टिकाऊ, लचीला और रहने योग्य बनाने के अवसरों की ओर भी इंगित करती है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
-
प्रश्न: दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में भारी बारिश के लिए निम्नलिखित में से कौन से कारक जिम्मेदार हो सकते हैं?
- मानसून की देर से वापसी
- पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव
- शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव
- उपरोक्त सभी
उत्तर: D
व्याख्या: दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश विभिन्न कारकों के संयोजन से हो सकती है, जिसमें मानसून की देर से वापसी, कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव और शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव जो स्थानीय संवहन को बढ़ाता है, शामिल हैं। -
प्रश्न: भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन से हैं?
- आईटीसीज़ेड (ITCZ) का उत्तर की ओर खिसकना
- हिमालयी पर्वत श्रृंखला
- तिब्बती पठार का गर्म होना
- उपरोक्त सभी
उत्तर: D
व्याख्या: भारतीय मानसून की प्रगति आईटीसीज़ेड (इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन) के उत्तर की ओर खिसकने, हिमालयी पर्वत श्रृंखला द्वारा हवाओं के मार्ग को बदलने और तिब्बती पठार के गर्म होने से प्रभावित होती है, जो कम दबाव का क्षेत्र बनाता है। -
प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी जल जनित बीमारी है जो शहरी क्षेत्रों में भारी बारिश के बाद बढ़ सकती है?
- डेंगू
- मलेरिया
- हैजा
- तपेदिक (Tuberculosis)
उत्तर: C
व्याख्या: हैजा एक जल जनित बीमारी है जो दूषित पानी के सेवन से फैलती है। भारी बारिश के बाद सीवेज ओवरफ्लो और जल स्रोतों के दूषित होने से इसके फैलने का खतरा बढ़ जाता है। डेंगू और मलेरिया मच्छरों से फैलते हैं, जो रुके हुए पानी में पनपते हैं, लेकिन हैजा सीधे तौर पर दूषित पानी से जुड़ा है। -
प्रश्न: ‘शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव’ (Urban Heat Island Effect) का क्या अर्थ है?
- शहरी क्षेत्रों में उच्च तापमान जो आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होता है।
- शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के कारण बढ़ी हुई गर्मी।
- शहरी क्षेत्रों में औद्योगीकरण से निकलने वाली अतिरिक्त गर्मी।
- शहरों में जंगल की आग से उत्पन्न गर्मी।
उत्तर: A
व्याख्या: शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव एक शहरी क्षेत्र का अपने आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक तापमान होने की घटना है, जो कंक्रीट, डामर और इमारतों द्वारा सूर्य की गर्मी को अवशोषित करने और बनाए रखने के कारण होता है। -
प्रश्न: शहरी जल निकासी प्रणालियों (Urban Drainage Systems) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- ये मुख्य रूप से वर्षा जल और सीवेज को हटाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
- भारत में अधिकांश शहरी जल निकासी प्रणालियाँ ब्रिटिश काल की हैं और वर्तमान जनसंख्या घनत्व के लिए अपर्याप्त हैं।
- अतिक्रमण और कचरा जल निकासी चैनलों को अवरुद्ध कर देते हैं, जिससे जलभराव होता है।
- उपरोक्त सभी
उत्तर: D
व्याख्या: शहरी जल निकासी प्रणालियाँ वर्षा जल और सीवेज प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत में कई शहरों की प्रणालियाँ पुरानी हैं और जनसंख्या वृद्धि के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही हैं। अतिक्रमण और कचरा भी इन प्रणालियों के प्रभावी ढंग से काम करने में एक बड़ी बाधा हैं। -
प्रश्न: ‘स्पांज सिटी’ (Sponge City) अवधारणा का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- शहरों में अधिक जल संचयन को बढ़ावा देना।
- बारिश के पानी को अवशोषित करने और प्रबंधित करने के लिए शहरी परिदृश्यों को डिजाइन करना।
- शहरी क्षेत्रों में भूजल स्तर को बढ़ाना।
- बारिश के पानी को पीने योग्य बनाना।
उत्तर: B
व्याख्या: स्पांज सिटी एक शहरी नियोजन दृष्टिकोण है जो शहरों को वर्षा जल को स्वाभाविक रूप से अवशोषित करने, संग्रहीत करने, फ़िल्टर करने और उपयोग करने में सक्षम बनाने पर केंद्रित है, जिससे बाढ़ का खतरा कम होता है और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन होता है। -
प्रश्न: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत सरकार को नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए कदम उठाने की शक्ति मिलती है?
- अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार)
- अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार)
- अनुच्छेद 47 (पोषक स्तर और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार)
- उपरोक्त सभी
उत्तर: B
व्याख्या: अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें स्वच्छ पर्यावरण और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है। सरकार का यह दायित्व है कि वह नागरिकों को प्रदूषण और जल जनित बीमारियों से बचाए, जो बारिश के समय बढ़ सकती हैं। अनुच्छेद 47 भी सार्वजनिक स्वास्थ्य के महत्व पर जोर देता है। -
प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष वैधानिक और नीति-निर्माण निकाय है।
- यह गृह मंत्रालय के तहत काम करता है।
- यह केवल प्राकृतिक आपदाओं के लिए प्रतिक्रिया योजनाएँ बनाता है।
- A और B दोनों
उत्तर: D
व्याख्या: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष निकाय है, जो नीति-निर्माण, योजना और समन्वय के लिए जिम्मेदार है। यह गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है। NDMA प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों तरह की आपदाओं के लिए योजनाएँ बनाता है। -
प्रश्न: दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में जलभराव (Waterlogging) की समस्या को बढ़ाने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारक कौन से हैं?
- खराब जल निकासी प्रणाली और नालों पर अतिक्रमण
- कम वर्षा
- पर्याप्त भूजल पुनर्भरण
- शहरी क्षेत्रों में अधिक हरियाली
उत्तर: A
व्याख्या: खराब या अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ और शहरी विकास के कारण नालों, नहरों और जल निकायों पर बढ़ता अतिक्रमण, बारिश के पानी के निकास को बाधित करता है, जिससे जलभराव की समस्या गंभीर हो जाती है। -
प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी एक ‘गैर-वर्षा’ (non-rain) संबंधी गतिविधि है जो शहर की जल निकासी क्षमता को प्रभावित कर सकती है?
- अचानक भारी बारिश
- सीवेज सिस्टम का ओवरफ्लो
- भूमिगत जल का अचानक रिसाव
- वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन
उत्तर: B
व्याख्या: सीवेज सिस्टम का ओवरफ्लो, जो अक्सर अपर्याप्त क्षमता या अवरोधों के कारण होता है, जल निकासी प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव डालता है और वर्षा जल के साथ मिलकर जलभराव को बढ़ा सकता है, भले ही वर्षा की तीव्रता बहुत अधिक न हो।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: दिल्ली-एनसीआर जैसे विशाल महानगरीय क्षेत्र में लगातार हो रही भारी बारिश से उत्पन्न होने वाली सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का विश्लेषण करें। इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक प्रभावी शहरी जल प्रबंधन रणनीति के लिए आवश्यक प्रमुख घटकों की चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: ‘शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव’ और ‘स्पांज सिटी’ अवधारणाओं की व्याख्या करें। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते शहरीकरण के संदर्भ में, ये अवधारणाएँ मौसमी बारिश के प्रभाव को कैसे प्रभावित करती हैं? (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न: आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से, दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और स्थानीय शहरी निकायों के बीच समन्वय और विभिन्न एजेंसियों की भूमिका की विवेचना करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के युग में, भारत के महानगरीय क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं (extreme rainfall events) के बढ़ते प्रसार के कारण क्या हैं? इन घटनाओं के प्रति शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे की लचीलेपन (resilience) को बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (250 शब्द, 15 अंक)