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ट्रम्प का इशारा: अमेरिका-पाकिस्तान के तेल सौदे पर भारत की क्या उम्मीदें?

ट्रम्प का इशारा: अमेरिका-पाकिस्तान के तेल सौदे पर भारत की क्या उम्मीदें?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान के बीच एक ‘विशाल तेल भंडार’ को लेकर एक महत्वपूर्ण सौदे की खबर आई है। इस सौदे के सार्वजनिक होने के साथ ही, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक बयान ने अटकलों का बाज़ार गर्म कर दिया है, जिसमें उन्होंने संकेत दिया कि “शायद वे भारत को बेचेंगे”। यह बयान न केवल भू-राजनीतिक समीकरणों में नई परतें जोड़ता है, बल्कि भारत के ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ब्लॉग पोस्ट इस सौदे की बारीकियों, इसके वैश्विक प्रभाव, और विशेष रूप से भारत के लिए इसके निहितार्थों का गहन विश्लेषण करेगा, ताकि UPSC परीक्षार्थियों को इस जटिल मुद्दे की समग्र समझ मिल सके।

पृष्ठभूमि: अमेरिका-पाकिस्तान ऊर्जा संबंध और ट्रम्प का प्रभाव

अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंध हमेशा से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। हालाँकि, विभिन्न अवधियों में, दोनों देशों ने रणनीतिक और आर्थिक सहयोग के क्षेत्रों में एक साथ काम किया है। तेल और ऊर्जा क्षेत्र, विशेष रूप से, वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अभिन्न अंग है, जो उसकी आर्थिक स्थिरता और विकास को सीधे प्रभावित करती है।

डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, अमेरिका की विदेश नीति में ‘अमेरिका फर्स्ट’ की भावना प्रमुख थी। इसका मतलब था कि अमेरिका के अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखना, चाहे वह व्यापार हो, सुरक्षा हो या भू-राजनीति। इस संदर्भ में, ट्रम्प का पाकिस्तान के साथ ऊर्जा सौदे पर दिया गया बयान, जिसमें भारत के संभावित हित की ओर इशारा किया गया था, कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • रणनीतिक गठबंधन का पुनर्मूल्यांकन: यह बयान अमेरिका की विदेश नीति में संभावित बदलावों का संकेत दे सकता है, जहाँ वह पारंपरिक सहयोगियों के अलावा अन्य देशों के साथ भी रणनीतिक साझेदारी तलाश सकता है।
  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव: भारत, दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ताओं में से एक है, और वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न स्रोतों पर निर्भर है। इस तरह के सौदे भारत की ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय गतिशीलता: दक्षिण एशिया में, भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं। अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के साथ ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में सहयोग, क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है।

‘विशाल तेल भंडार’ सौदे की बारीकियां (संभावित परिदृश्य)

हालाँकि समाचार शीर्षक में ‘विशाल तेल भंडार’ सौदे का उल्लेख है, लेकिन सार्वजनिक रूप से इसके विशिष्ट विवरण अभी भी अस्पष्ट हैं। UPSC के दृष्टिकोण से, हमें संभावित परिदृश्यों और उनके निहितार्थों पर विचार करना चाहिए:

1. अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को तेल की आपूर्ति:

यह सबसे सीधा अर्थ है। अमेरिका, जो दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से एक है, पाकिस्तान को तेल की आपूर्ति कर सकता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:

  • भू-राजनीतिक लाभ: पाकिस्तान को ऊर्जा सहायता प्रदान करके, अमेरिका क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा सकता है।
  • आर्थिक हित: यह अमेरिकी तेल कंपनियों के लिए एक नया बाज़ार खोल सकता है।
  • आपूर्ति की स्थिरता: पाकिस्तान को एक विश्वसनीय तेल आपूर्तिकर्ता मिलने से उसकी ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हो सकती है।

2. संयुक्त तेल भंडार का विकास या प्रबंधन:

यह एक अधिक जटिल परिदृश्य है, जहाँ अमेरिका और पाकिस्तान मिलकर किसी तेल भंडार का विकास या प्रबंधन कर सकते हैं। इसके तहत:

  • तकनीकी सहयोग: अमेरिका अपनी उन्नत तकनीक और विशेषज्ञता का उपयोग करके पाकिस्तान के तेल अन्वेषण और उत्पादन में सहायता कर सकता है।
  • निवेश: अमेरिकी कंपनियाँ पाकिस्तान में तेल क्षेत्र में निवेश कर सकती हैं।
  • साझा लाभ: दोनों देश मिलकर निकाले गए तेल के लाभ को साझा कर सकते हैं।

3. सामरिक तेल भंडार (Strategic Petroleum Reserve – SPR) का निर्माण:

दुनिया के कई देश अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सामरिक तेल भंडार (SPR) बनाए रखते हैं। यह सौदे का एक संभावित पहलू हो सकता है:

  • ऊर्जा की कमी से निपटना: आपातकालीन स्थितियों, जैसे आपूर्ति में व्यवधान या मूल्य वृद्धि, के दौरान ये भंडार काम आते हैं।
  • पाकिस्तान की ऊर्जा निर्भरता कम करना: यदि पाकिस्तान अपना SPR बनाता है, तो यह वैश्विक आपूर्ति में उतार-चढ़ाव के प्रति उसकी भेद्यता को कम कर सकता है।

ट्रम्प का इशारा: “शायद वे भारत को बेचेंगे” – इसके मायने क्या हैं?

डोनाल्ड ट्रम्प का यह बयान, भले ही एक संकेत मात्र हो, कई संभावित व्याख्याओं को जन्म देता है:

  • रणनीतिक साझेदारी का विस्तार: क्या ट्रम्प का आशय यह था कि यदि भारत भी इस सौदे में रुचि रखता है, तो अमेरिका भारत को भी तेल बेचने के लिए तैयार हो सकता है? यह भारत के लिए एक अवसर हो सकता है।
  • प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य निर्धारण: क्या यह भारत को अपनी ऊर्जा खरीद रणनीतियों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनने के लिए प्रोत्साहित करने का एक तरीका था?
  • भू-राजनीतिक दांव-पेंच: यह बयान क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच संबंधों को संतुलित करने के अमेरिकी प्रयास का हिस्सा हो सकता है। अमेरिका भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना चाहता है, और ऐसे बयान इन संबंधों को सक्रिय रूप से प्रबंधित करने का एक तरीका हो सकते हैं।

भारत के लिए निहितार्थ: अवसर और चुनौतियाँ

यह पूरा घटनाक्रम भारत के लिए कई तरह के निहितार्थ रखता है:

1. अवसर:

  • विविधीकरण: यदि अमेरिका वास्तव में भारत को तेल बेचने की पेशकश करता है, तो यह भारत के लिए अपनी ऊर्जा आपूर्ति को और विविध बनाने का एक अवसर हो सकता है। यह भारत की तेल पर निर्भरता को कम कर सकता है, विशेष रूप से उन आपूर्तिकर्ताओं पर जो भू-राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों में स्थित हैं।
  • प्रतिस्पर्धी मूल्य: अमेरिकी तेल की उपलब्धता से भारतीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जिससे भारत को अनुकूल कीमतों पर तेल मिल सकता है।
  • रणनीतिक साझेदारी: अमेरिका के साथ ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग, भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत कर सकता है, खासकर जब दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा रणनीतिक हितों को साझा करते हैं।

2. चुनौतियाँ:

  • भू-राजनीतिक जटिलताएँ: भारत के पाकिस्तान के साथ ऐतिहासिक रूप से जटिल संबंध रहे हैं। अमेरिका का पाकिस्तान के साथ इस तरह का ऊर्जा सौदा, भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती पेश कर सकता है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके हित प्रभावित न हों।
  • भारत की वर्तमान ऊर्जा नीतियाँ: भारत पहले से ही दुनिया के कई देशों से तेल खरीदता है। नए आपूर्तिकर्ताओं को शामिल करने के लिए मौजूदा अनुबंधों और लॉजिस्टिक्स में समायोजन की आवश्यकता होगी।
  • वित्तीय लागत: अमेरिकी तेल की लागत, अन्य स्रोतों की तुलना में, भारत के लिए वहनीय होनी चाहिए।
  • पारदर्शिता का अभाव: वर्तमान में सौदे की विशिष्टताओं के बारे में जानकारी की कमी, भारत के लिए एक प्रभावी प्रतिक्रिया तैयार करना मुश्किल बना सकती है।

वैश्विक ऊर्जा बाज़ार पर प्रभाव

यह सौदा वैश्विक ऊर्जा बाज़ार को भी प्रभावित कर सकता है:

  • आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव: यदि यह एक बड़ा सौदा है, तो यह वैश्विक तेल आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में।
  • ओपेक+ की भूमिका: तेल की कीमतों पर ओपेक+ (OPEC+) जैसे प्रमुख उत्पादक देशों के समूह का भी प्रभाव पड़ता है। अमेरिकी तेल की नई उपलब्धता इन गतिशीलता को बदल सकती है।
  • ऊर्जा कूटनीति: यह तेल को एक भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के बढ़ते चलन को भी रेखांकित करता है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता: एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण

UPSC की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाक्रम कई विषयों से जुड़ा है:

  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations): भारत-अमेरिका संबंध, भारत-पाकिस्तान संबंध, अमेरिकी विदेश नीति।
  • अर्थव्यवस्था (Economy): ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा बाज़ार, आयात-निर्यात, सामरिक तेल भंडार।
  • भू-राजनीति (Geopolitics): दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक गतिशीलता, क्षेत्रीय शक्ति संतुलन।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security): ऊर्जा सुरक्षा का राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव।

विश्लेषण के बिंदु:

  • भारत की ‘ऊर्जा कूटनीति’: भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कैसे विभिन्न देशों के साथ संबंध बनाता है?
  • ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा का संबंध: ऊर्जा की उपलब्धता किसी देश की सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है?
  • अमेरिका का ‘इंडो-पैसिफिक’ स्ट्रैटेजी: क्या यह सौदा उस बड़ी रणनीति का हिस्सा है?
  • पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति: क्या पाकिस्तान इस तरह के सौदों पर निर्भर रहने की स्थिति में है?

भविष्य की राह: भारत को क्या करना चाहिए?

भारत को इस स्थिति का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए और एक संतुलित प्रतिक्रिया विकसित करनी चाहिए:

  1. खुफिया जानकारी और विश्लेषण: सौदे की वास्तविक प्रकृति और उसके दीर्घकालिक प्रभावों को समझने के लिए गहन खुफिया जानकारी जुटाना और विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है।
  2. कूटनीतिक संवाद: भारत को अमेरिका के साथ इस सौदे पर खुलकर संवाद करना चाहिए ताकि यह समझा जा सके कि इसका भारत के हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और क्या भारत के लिए कोई अवसर उपलब्ध हैं।
  3. ऊर्जा आयात रणनीति का पुनर्मूल्यांकन: भारत को अपनी ऊर्जा आयात रणनीति की समीक्षा करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को अधिकतम कर सके और आपूर्ति को सुरक्षित रख सके।
  4. आंतरिक ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा: दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए, भारत को अपने घरेलू तेल और गैस उत्पादन को बढ़ाने के प्रयासों को भी तेज करना चाहिए।
  5. अन्य आपूर्तिकर्ताओं के साथ संबंध मजबूत करना: भारत को रूस, मध्य पूर्व के देशों और अन्य प्रमुख तेल उत्पादकों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना जारी रखना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion):

ट्रम्प का यह इशारा, अमेरिका-पाकिस्तान ऊर्जा सौदे के साथ मिलकर, वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व कर सकता है। भारत के लिए, यह अवसर और चुनौती दोनों प्रस्तुत करता है। भारत को अपनी कूटनीतिक सूझबूझ, आर्थिक विवेक और सामरिक दूरदर्शिता का उपयोग करके इस जटिल स्थिति का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना होगा। ऊर्जा सुरक्षा किसी भी राष्ट्र की संप्रभुता और विकास के लिए मौलिक है, और ऐसे घटनाक्रमों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण भारतीय नीति निर्माताओं और UPSC उम्मीदवारों दोनों के लिए आवश्यक है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: हालिया ‘विशाल तेल भंडार’ सौदे के संबंध में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का यह बयान कि “शायद वे भारत को बेचेंगे”, निम्नलिखित में से किस भू-राजनीतिक अवधारणा से सबसे अधिक जुड़ा है?

    a) तेल युद्ध (Oil Wars)

    b) ऊर्जा कूटनीति (Energy Diplomacy)

    c) तेल शॉक (Oil Shock)

    d) ऊर्जा स्वतंत्रता (Energy Independence)

    उत्तर: b) ऊर्जा कूटनीति (Energy Diplomacy)

    व्याख्या: यह बयान सीधे तौर पर ऊर्जा संसाधनों के माध्यम से राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने की रणनीति से संबंधित है, जो ऊर्जा कूटनीति का मूल तत्व है।
  2. प्रश्न 2: किसी देश के लिए सामरिक तेल भंडार (Strategic Petroleum Reserve – SPR) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    a) घरेलू तेल की खपत को बढ़ावा देना।

    b) तेल की कीमतों को नियंत्रित करना।

    c) ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना।

    d) तेल निर्यात से राजस्व बढ़ाना।

    उत्तर: c) ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना।

    व्याख्या: SPR का मुख्य कार्य आपातकालीन स्थितियों के दौरान ऊर्जा आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करना है।
  3. प्रश्न 3: भारत की ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कारक सबसे महत्वपूर्ण है?

    a) ओपेक+ देशों पर निर्भरता।

    b) आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता का विविधीकरण।

    c) घरेलू तेल और गैस का उत्पादन।

    d) अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों में अस्थिरता।

    उत्तर: b) आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता का विविधीकरण।

    व्याख्या: किसी एक स्रोत या क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता जोखिम बढ़ाती है, इसलिए विविधीकरण महत्वपूर्ण है।
  4. प्रश्न 4: अमेरिका-पाकिस्तान ऊर्जा सौदे में ट्रम्प के बयान को देखते हुए, दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा संभावित परिणाम हो सकता है?

    a) भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव में कमी।

    b) क्षेत्र में अमेरिका के प्रभाव में वृद्धि।

    c) पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार।

    d) उपरोक्त में से कोई नहीं।

    उत्तर: b) क्षेत्र में अमेरिका के प्रभाव में वृद्धि।

    व्याख्या: ऊर्जा सहायता अक्सर भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने का एक तरीका होता है।
  5. प्रश्न 5: अंतर्राष्ट्रीय संबंध में, ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का मुख्य जोर किस पर था?

    a) बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना।

    b) अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना।

    c) वैश्विक व्यापार घाटे को कम करना।

    d) जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्रवाई।

    उत्तर: b) अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना।

    व्याख्या: ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का मूल सिद्धांत अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखना था।
  6. प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ताओं में से नहीं है (हालिया वर्षों के आंकड़ों के अनुसार)?

    a) इराक

    b) सऊदी अरब

    c) संयुक्त राज्य अमेरिका

    d) वेनेजुएला

    उत्तर: d) वेनेजुएला

    व्याख्या: वेनेजुएला के आंतरिक राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के कारण भारत का वेनेजुएला से तेल आयात काफी कम हो गया है, जबकि इराक, सऊदी अरब और अमेरिका प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं।
  7. प्रश्न 7: किसी देश की ऊर्जा सुरक्षा निम्नलिखित में से किस पर निर्भर करती है?

    1. ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता।

    2. ऊर्जा की सुलभता और वहनीयता।

    3. ऊर्जा वितरण प्रणालियों की विश्वसनीयता।

    4. ऊर्जा के कुशल उपयोग को बढ़ावा देना।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    a) केवल 1 और 2

    b) केवल 1, 2 और 3

    c) केवल 1, 2 और 4

    d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4

    व्याख्या: ऊर्जा सुरक्षा इन सभी कारकों का एक समग्र परिणाम है।
  8. प्रश्न 8: ट्रम्प के बयान को भारत की ऊर्जा रणनीति के संदर्भ में कैसे देखा जा सकता है?

    a) भारत की ऊर्जा आपूर्ति को और अधिक विविधतापूर्ण बनाने का अवसर।

    b) केवल एक प्रतीकात्मक टिप्पणी।

    c) ओपेक+ के प्रभाव को कम करने का प्रयास।

    d) उपरोक्त में से कोई नहीं।

    उत्तर: a) भारत की ऊर्जा आपूर्ति को और अधिक विविधतापूर्ण बनाने का अवसर।

    व्याख्या: यदि अमेरिका तेल बेचने की पेशकश करता है, तो यह भारत के लिए एक नया स्रोत खोल सकता है।
  9. प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सा एक राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है?

    a) कच्चे माल पर निर्भरता।

    b) ऊर्जा सुरक्षा।

    c) केवल घरेलू उत्पादन।

    d) विदेशी सहायता पर निर्भरता।

    उत्तर: b) ऊर्जा सुरक्षा।

    व्याख्या: स्थिर और किफायती ऊर्जा आपूर्ति आर्थिक गतिविधियों और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
  10. प्रश्न 10: हाल के वर्षों में, भारत का तेल आयात निर्भरता का प्रतिशत:

    a) घटा है।

    b) बढ़ा है।

    c) स्थिर रहा है।

    d) इसमें कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है।

    उत्तर: b) बढ़ा है।

    व्याख्या: भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग के कारण तेल आयात पर निर्भरता बढ़ी है, जो लगभग 85% तक पहुँच गई है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: अमेरिका-पाकिस्तान के बीच ‘विशाल तेल भंडार’ सौदे और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के भारत की ओर संकेत करने वाले बयान के आलोक में, भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए इसके संभावित अवसरों और चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: भू-राजनीतिक संदर्भ में, ऊर्जा को एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है? हालिया अमेरिका-पाकिस्तान ऊर्जा सौदे के उदाहरण का प्रयोग करते हुए, इस कथन की विवेचना करें और वैश्विक शक्ति संतुलन पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करें। (250 शब्द)
  3. प्रश्न 3: भारत की ‘ऊर्जा कूटनीति’ की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? वैश्विक तेल बाज़ार में बदलते समीकरणों और विशेष रूप से अमेरिका-पाकिस्तान जैसे द्विपक्षीय ऊर्जा समझौतों को देखते हुए, भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कौन से रणनीतिक कदम उठाने चाहिए? (150 शब्द)
  4. प्रश्न 4: ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और उसके अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करें। विशेष रूप से, इस नीति ने ऊर्जा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अमेरिकी विदेशी नीति को कैसे आकार दिया है, खासकर उन देशों के संबंध में जिनकी अमेरिका के साथ जटिल द्विपक्षीय संबंध हैं। (150 शब्द)

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