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राज्यसभा में PM की अनुपस्थिति: ‘अपमान’ के आरोप से वॉकआउट तक – एक गहन विश्लेषण

राज्यसभा में PM की अनुपस्थिति: ‘अपमान’ के आरोप से वॉकआउट तक – एक गहन विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारतीय संसद के उच्च सदन, राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम देखने को मिला। प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति ने विपक्ष को उग्र कर दिया, जिससे सदन में जोरदार बहस हुई। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री की गैर-मौजूदगी को “सदन का अपमान” करार दिया। इसके जवाब में, गृह मंत्री अमित शाह ने बचाव करते हुए कहा कि जब वह (शाह) स्वयं सदन में जवाब देने के लिए उपस्थित हैं, तो प्रधानमंत्री को बुलाने की आवश्यकता क्यों है। इस तीखी नोकझोंक के बाद, विपक्षी दलों ने सदन से वॉकआउट कर लिया। यह घटना न केवल संसदीय प्रक्रियाओं के महत्व को रेखांकित करती है, बल्कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संवाद, जवाबदेही और आपसी सम्मान जैसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर भी प्रकाश डालती है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह घटना भारतीय राजव्यवस्था, संसद की कार्यप्रणाली, विपक्ष की भूमिका और संवैधानिक नैतिकता जैसे विषयों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।

संसद और उसकी गरिमा: एक लोकतांत्रिक आधार

संसद, किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ होती है। यह वह मंच है जहाँ कानून बनाए जाते हैं, सरकारी नीतियों पर बहस होती है, और सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह ठहराया जाता है। संसद की कार्यवाही की गरिमा और उसका सुचारू संचालन, लोकतंत्र की परिपक्वता का प्रतीक है। राज्यसभा, जिसका अपना विशिष्ट महत्व है, भारत के संघीय ढांचे में राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है और विधायी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

संसदीय गरिमा का तात्पर्य सिर्फ प्रक्रियाओं का पालन करना नहीं है, बल्कि इसमें सभी सदस्यों, विशेष रूप से सदन के नेता (प्रधानमंत्री) और मंत्रियों की उपस्थिति, बहस में रचनात्मक भागीदारी, और एक-दूसरे के प्रति सम्मान शामिल है। जब प्रधानमंत्री, जो सरकार के प्रमुख हैं, सदन में उपस्थित नहीं होते, तो यह स्वाभाविक रूप से बहस के महत्व और उस पर पड़ने वाले प्रभाव पर सवाल उठाता है।

घटना का विवरण: क्या हुआ और क्यों?

विपक्ष का आरोप: ‘सदन का अपमान’

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति पर गहरा असंतोष व्यक्त किया। उनके अनुसार:

  • जवाबदेही में कमी: प्रधानमंत्री को देश के सबसे महत्वपूर्ण विधायी निकायों में से एक में मौजूद रहना चाहिए, खासकर जब देश के सामने महत्वपूर्ण मुद्दे हों। उनकी अनुपस्थिति को जवाबदेही से बचने के प्रयास के रूप में देखा गया।
  • विशेषाधिकार का हनन: यह माना गया कि सदन के सदस्यों को अपने प्रश्न पूछने और सरकार की नीतियों पर सीधा स्पष्टीकरण प्राप्त करने का अधिकार है, जो सरकार के प्रमुख की उपस्थिति में सबसे प्रभावी ढंग से होता है।
  • संसदीय प्रोटोकॉल: यह तर्क दिया गया कि प्रधानमंत्री की उपस्थिति संसदीय शिष्टाचार और प्रोटोकॉल का एक अभिन्न अंग है, जिसकी अवहेलना करना सदन की अवमानना है।

मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेताओं द्वारा “सदन का अपमान” जैसे शब्दों का प्रयोग, इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाता है। यह केवल एक व्यक्तिगत अनुपस्थिति का मामला नहीं था, बल्कि इसे संसद की संस्था के प्रति सम्मान के प्रश्न के रूप में देखा गया।

सत्ता पक्ष का बचाव: ‘मैं जवाब दे रहा हूं’

गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों का खंडन करते हुए एक मजबूत प्रतिक्रिया दी। उनके तर्क मुख्य रूप से निम्नलिखित थे:

  • प्रतिनिधित्व: उन्होंने कहा कि जब सरकार का एक वरिष्ठ मंत्री (स्वयं शाह) सदन में उपस्थित होकर सभी सवालों का जवाब दे रहा है, तो प्रधानमंत्री को विशेष रूप से बुलाने का कोई औचित्य नहीं है। सरकार सामूहिक रूप से जिम्मेदार है, और एक मंत्री की उपस्थिति सरकार के रुख का प्रतिनिधित्व करती है।
  • कार्यकुशलता: उनका तात्पर्य यह था कि संसदीय कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए, उपस्थित मंत्री पर्याप्त हैं। प्रधानमंत्री को हर छोटे-बड़े मुद्दे पर उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि कोई विशेष कारण न हो।
  • विपक्ष का उद्देश्य: उन्होंने यह भी संकेत दिया कि विपक्ष शायद प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति को एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर हंगामा खड़ा करना चाहता है, न कि वास्तव में संसदीय प्रक्रिया में सुधार लाना चाहता है।

गृह मंत्री का जवाब, सरकार की ओर से एक रक्षात्मक रुख को दर्शाता है, जिसमें उन्होंने अपनी कार्यकुशलता और सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर जोर दिया।

विपक्ष का वॉकआउट: एक विरोध प्रदर्शन

सत्ता पक्ष की प्रतिक्रिया से असंतुष्ट होकर, विपक्षी दलों ने सदन से वॉकआउट करने का निर्णय लिया। यह कदम संसदीय विरोध का एक तरीका है, जिसका उपयोग तब किया जाता है जब सदस्यों को लगता है कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है या उनके साथ अन्याय हो रहा है। वॉकआउट के माध्यम से, विपक्ष ने:

  • अपना विरोध दर्ज कराया: यह दर्शाया कि वे प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति और सरकार की प्रतिक्रिया से असहमत हैं।
  • सार्वजनिक ध्यान आकर्षित किया: वॉकआउट अक्सर मीडिया का ध्यान खींचता है और जनता के बीच मुद्दों पर बहस छेड़ता है।
  • सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की: उम्मीद थी कि इससे सरकार भविष्य में अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनेगी।

हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि वॉकआउट संसद के कामकाज में बाधा डालता है और विधायी एजेंडे को प्रभावित कर सकता है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता: संवैधानिक और राजनीतिक पहलू

यह घटना UPSC परीक्षा के विभिन्न घटकों के लिए महत्वपूर्ण है:

1. भारतीय राजव्यवस्था और शासन (GS-II)

  • संसदीय संप्रभुता और विशेषाधिकार: संसद की सर्वोच्चता, सदस्यों के विशेषाधिकार और उनकी सुरक्षा। प्रधानमंत्री और मंत्रियों की सदन में उपस्थिति का अधिकार और कर्तव्य।
  • विधायी प्रक्रिया: बिलों पर बहस, चर्चा की गुणवत्ता, और विधायी निर्णयों पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति का प्रभाव।
  • जवाबदेही की अवधारणा: सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी (Article 75(3)) बनाम व्यक्तिगत जिम्मेदारी। प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत जवाबदेही।
  • विपक्ष की भूमिका: लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का महत्व, उसकी कार्यप्रणाली, और विरोध के तरीके (जैसे वॉकआउट)।
  • संवैधानिक नैतिकता: सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सम्मानजनक व्यवहार, संवाद की संस्कृति, और संवैधानिक मूल्यों का संरक्षण।

2. समसामयिक घटनाएँ (Prelims & Mains)

यह घटना सीधे तौर पर वर्तमान राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से जुड़ी है। परीक्षा में इसके विभिन्न पहलुओं पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जैसे:

  • संसद में प्रधानमंत्री की भूमिका और अपेक्षाएँ।
  • गृह मंत्री के तर्क का विश्लेषण।
  • विपक्ष के वॉकआउट का औचित्य और उसके परिणाम।
  • संसदीय प्रणाली में स्वस्थ बहस के लिए क्या आवश्यक है?

3. निबंध (Essay – GS-I, GS-IV)

इस घटना को ‘लोकतंत्र में संवाद की कला’, ‘संसदीय संस्थाओं का क्षरण’, ‘सहनशीलता और असहिष्णुता की सीमाएँ’, या ‘राजनीतिक शिष्टाचार का महत्व’ जैसे निबंध विषयों के लिए एक केस स्टडी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

विश्लेषण: क्यों महत्वपूर्ण है प्रधानमंत्री की उपस्थिति?

प्रधानमंत्री की राज्यसभा (या लोकसभा) में उपस्थिति केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके कई गहरे निहितार्थ हैं:

  1. राष्ट्र के नेतृत्व का प्रतिनिधित्व: प्रधानमंत्री देश के कार्यकारी प्रमुख हैं। सदन में उनकी उपस्थिति सरकार की ओर से नेतृत्व और दिशा का प्रदर्शन करती है।
  2. महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्पष्टता: जब राष्ट्रीय हित के बड़े मुद्दे उठाए जाते हैं, तो प्रधानमंत्री से सीधे स्पष्टीकरण की उम्मीद करना स्वाभाविक है। वे सबसे अच्छी स्थिति में होते हैं कि वे सरकार का अंतिम दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकें।
  3. सांसदों का मनोबल: प्रधानमंत्री की उपस्थिति सदन के सदस्यों को प्रेरित करती है और उन्हें यह महसूस कराती है कि उनकी चिंताओं को गंभीरता से लिया जा रहा है।
  4. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: कुछ ऐसे मुद्दे हो सकते हैं जिनका राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर प्रभाव पड़ता है, जहाँ प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत उपस्थिति महत्वपूर्ण हो सकती है।

एक उपमा: कल्पना कीजिए कि एक स्कूल में, प्रिंसिपल के बजाय केवल एक शिक्षक ही सभी माता-पिता की बैठकों में जाते हैं। शिक्षक निश्चित रूप से जवाब दे सकते हैं, लेकिन जब माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पूछते हैं, तो वे स्वाभाविक रूप से प्रिंसिपल से सुनना चाहेंगे। प्रधानमंत्री वह ‘प्रिंसिपल’ हैं, और उनकी अनुपस्थिति एक ऐसी ही भावना पैदा कर सकती है।

आगे की राह: संसदीय स्वास्थ्य के लिए क्या आवश्यक है?

यह घटना संसदीय प्रणाली के स्वास्थ्य के लिए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है:

  • संवाद और सहयोग: सत्ता पक्ष और विपक्ष को एक-दूसरे के साथ संवाद बनाए रखना चाहिए, भले ही वे असहमत हों।
  • पारदर्शिता: सरकार को अपनी निर्णय प्रक्रियाओं और नीतियों में अधिक पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए।
  • संसदीय शिष्टाचार: सभी सदस्यों को संसदीय शिष्टाचार का पालन करना चाहिए और एक-दूसरे के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए।
  • विपक्ष का रचनात्मक उपयोग: सरकार को विपक्ष की आलोचना को स्वीकार करना चाहिए और यदि वे वैध हैं, तो उन पर विचार करना चाहिए। विपक्ष को भी सरकार के अच्छे कार्यों का समर्थन करने से नहीं हिचकिचाना चाहिए।
  • प्रधानमंत्री की उपस्थिति का विवेक: हालांकि प्रधानमंत्री हर समय उपस्थित नहीं रह सकते, लेकिन महत्वपूर्ण मौकों पर उनकी उपस्थिति से सदन की गरिमा बढ़ती है और विश्वास मजबूत होता है।

“लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत लोगों की भागीदारी है, और संसद उस भागीदारी का सबसे बड़ा मंच। यदि मंच ही कमजोर हो जाए, तो भागीदारी का क्या? प्रधानमंत्रियों का आगमन-प्रस्थान होता रहता है, लेकिन संसद की गरिमा सदैव बनी रहनी चाहिए।”

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. **प्रश्न:** भारतीय संविधान के अनुसार, संसद में मंत्रियों की उपस्थिति से संबंधित क्या प्रावधान है?
(a) केवल प्रधानमंत्री को किसी भी सदन में बोलने का अधिकार है।
(b) केवल संबंधित मंत्री अपने सदन में भाग ले सकते हैं।
(c) भारत का महान्यायवादी (Attorney General) किसी भी सदन में बोल सकता है, लेकिन वोट नहीं दे सकता।
(d) प्रधानमंत्री दोनों सदनों में भाग ले सकते हैं और बोल सकते हैं।

**उत्तर:** (d)
**व्याख्या:** अनुच्छेद 74 के तहत, प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए जिम्मेदार हैं। अनुच्छेद 75(5) के अनुसार, कोई भी मंत्री जो किसी भी सदन का सदस्य नहीं है, वह उस सदन में बोल सकता है और कार्यवाही में भाग ले सकता है, लेकिन वह उस सदन का सदस्य नहीं है, तो वह मतदान नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख के रूप में किसी भी सदन में भाग ले सकते हैं।

2. **प्रश्न:** विपक्ष द्वारा ‘सदन का अपमान’ का आरोप आमतौर पर कब लगाया जाता है?
(a) जब सरकार कोई बिल पेश करती है।
(b) जब प्रधानमंत्री या महत्वपूर्ण मंत्री सदन की कार्यवाही में अनुपस्थित रहते हैं, खासकर महत्वपूर्ण चर्चाओं के दौरान।
(c) जब विपक्षी दल को बोलने का पर्याप्त अवसर नहीं मिलता।
(d) उपरोक्त सभी।

**उत्तर:** (d)
**व्याख्या:** ‘सदन का अपमान’ का आरोप कई कारणों से लगाया जा सकता है, जिसमें महत्वपूर्ण व्यक्तियों की अनुपस्थिति, पर्याप्त अवसर न मिलना, या संसदीय प्रक्रियाओं की अवहेलना शामिल है।

3. **प्रश्न:** किसी विधेयक को पारित करने के लिए राज्यसभा में न्यूनतम कितनी कोरम (Coram) की आवश्यकता होती है?
(a) सदन के कुल सदस्यों का दसवाँ भाग।
(b) सदन के कुल सदस्यों का एक-चौथाई।
(c) सदन के कुल सदस्यों का एक-पाँचवाँ भाग।
(d) सदन के कुल सदस्यों का एक-छठा भाग।

**उत्तर:** (a)
**व्याख्या:** संविधान के अनुच्छेद 100 (3) के अनुसार, किसी भी सदन की बैठक की गणपूर्ति (quorum) के लिए उस सदन के कुल सदस्यों की संख्या का दसवाँ भाग उपस्थित होना आवश्यक है।

4. **प्रश्न:** निम्नलिखित में से कौन राज्यसभा में विपक्ष के नेता (Leader of the Opposition) के पद से संबंधित है?
(a) यह पद संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित है।
(b) यह पद केवल एक विधायी परंपरा पर आधारित है।
(c) उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है।
(d) दोनों (b) और (c)

**उत्तर:** (d)
**व्याख्या:** विपक्ष के नेता का पद संविधान में सीधे तौर पर परिभाषित नहीं है, बल्कि यह संसदीय परंपरा और ‘विपक्ष के नेता (सुविधाएं)’ अधिनियम, 1977 द्वारा शासित होता है, जो उन्हें कैबिनेट मंत्री के बराबर दर्जा प्रदान करता है।

5. **प्रश्न:** ‘वॉकआउट’ (Walkout) क्या है?
(a) संसद की कार्यवाही को बाधित करने का एक तरीका।
(b) संसद की कार्यवाही से बाहर निकल जाना, विरोध या असहमति व्यक्त करने के लिए।
(c) किसी विधेयक पर अंतिम मतदान से बचना।
(d) एक औपचारिक प्रस्ताव जिस पर तुरंत मतदान होता है।

**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** वॉकआउट संसदीय विरोध का एक तरीका है जिसमें सदस्य विरोध दर्ज कराने के लिए सदन से बाहर चले जाते हैं।

6. **प्रश्न:** सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी (Collective Responsibility) का सिद्धांत किस पर लागू होता है?
(a) केवल प्रधानमंत्री पर
(b) केवल कैबिनेट मंत्रियों पर
(c) पूरे मंत्रिपरिषद पर, जिसमें प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री शामिल हैं।
(d) केवल राज्य मंत्रियों पर

**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। यह सिद्धांत संसद के दोनों सदनों में सरकार के कार्यों के लिए समग्र जवाबदेही सुनिश्चित करता है।

7. **प्रश्न:** ‘सदन का अपमान’ (Contempt of Parliament) का मुद्दा कब उठता है?
(a) जब कोई सदस्य सदन के नियमों का उल्लंघन करता है।
(b) जब कोई व्यक्ति या अधिकारी संसद की गरिमा, प्राधिकार या विशेषाधिकारों को कमतर आंकने या बाधित करने का प्रयास करता है।
(c) जब सदन का कोई सदस्य अन्य सदस्यों से असहमति व्यक्त करता है।
(d) (a) और (b) दोनों।

**उत्तर:** (d)
**व्याख्या:** सदन का अपमान एक गंभीर मामला है जो नियमों के उल्लंघन से लेकर संसद के प्राधिकार को चुनौती देने तक किसी भी कार्य को कवर कर सकता है।

8. **प्रश्न:** गृह मंत्री के तर्क के अनुसार, यदि वे स्वयं सदन में जवाब दे रहे हैं, तो प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति क्यों चिंता का विषय है?
(a) क्योंकि प्रधानमंत्री ही सरकार के प्रमुख हैं।
(b) क्योंकि यह संसदीय प्रोटोकॉल का उल्लंघन है।
(c) क्योंकि यह विपक्ष का राजनीतिक एजेंडा है।
(d) उपरोक्त सभी।

**उत्तर:** (a)
**व्याख्या:** गृह मंत्री का तर्क यह था कि सरकार के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री का प्रतिनिधित्व अन्य मंत्रियों द्वारा किया जा सकता है, लेकिन चिंता का विषय प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत उपस्थिति की उम्मीदों से जुड़ा है।

9. **प्रश्न:** अनुच्छेद 74 (1) के अनुसार, प्रधानमंत्री की क्या भूमिका है?
(a) वे राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री परिषद का नेतृत्व करते हैं।
(b) वे संसद के प्रति सीधे जवाबदेह होते हैं।
(c) वे देश के मुख्य कार्यकारी होते हैं।
(d) वे राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते हैं।

**उत्तर:** (a)
**व्याख्या:** अनुच्छेद 74 (1) कहता है कि राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होगा।

10. **प्रश्न:** निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. प्रधानमंत्री किसी भी सदन में भाग ले सकते हैं और बोल सकते हैं।
2. विपक्ष का नेता वह व्यक्ति होता है जिसे अध्यक्ष (स्पीकर/चेयरमैन) द्वारा विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी जाती है।
3. संसदीय कार्यवाही में वॉकआउट एक संवैधानिक अधिकार है।

उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

**उत्तर:** (a)
**व्याख्या:** कथन 1 सही है। कथन 2 सही है क्योंकि विपक्ष के नेता को मान्यता देने के लिए अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, भले ही पद सीधे संविधान में परिभाषित न हो। कथन 3 गलत है; वॉकआउट एक विरोध का साधन है, न कि एक संवैधानिक अधिकार।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. **प्रश्न:** प्रधानमंत्री की संसदीय उपस्थिति का मुद्दा केवल औपचारिकता का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही, पारदर्शिता और विधायी प्रक्रिया की गुणवत्ता से जुड़ा है। इस कथन के आलोक में, राज्यसभा में प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति और उस पर विपक्ष की प्रतिक्रिया का विश्लेषण करें। सरकार की ओर से मंत्री की उपस्थिति को पर्याप्त मानने के तर्कों का मूल्यांकन करें और ऐसे मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष के बीच स्वस्थ संवाद के महत्व पर प्रकाश डालें। (250 शब्द)
2. **प्रश्न:** भारत में विपक्ष की भूमिका एक जीवंत लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। विपक्ष का कार्य केवल विरोध करना नहीं, बल्कि सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना और वैकल्पिक नीतियों पर चर्चा को बढ़ावा देना भी है। हालिया राज्यसभा घटनाक्रम के संदर्भ में, विपक्ष के वॉकआउट के औचित्य और उसके परिणामों का मूल्यांकन करें। संसदीय कार्यवाही में सम्मानजनक आचरण और सहिष्णुता के महत्व पर टिप्पणी करें। (250 शब्द)
3. **प्रश्न:** ‘सदन का अपमान’ (Contempt of Parliament) की अवधारणा को परिभाषित करें और उन विभिन्न तरीकों की चर्चा करें जिनसे यह उत्पन्न हो सकता है। हालिया राज्यसभा घटना को उदाहरण के तौर पर लेते हुए, क्या प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति को ‘सदन का अपमान’ माना जा सकता है? अपने उत्तर को तर्कसंगत बनाएं। (150 शब्द)
4. **प्रश्न:** संसदीय लोकतंत्र में, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक नाजुक संतुलन और आपसी सम्मान की आवश्यकता होती है। इस संतुलन के बिगड़ने पर क्या परिणाम हो सकते हैं? प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति पर हुए हंगामे और वॉकआउट के उदाहरण से समझाएं कि कैसे यह संतुलन प्रभावित हो सकता है और संसदीय गरिमा को बनाए रखने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। (150 शब्द)

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