50% टैरिफ का झटका: अमेरिका के व्यापार कदम पर भारत का कड़ा रुख और विदेश मंत्रालय का बयान
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दुनिया में, जहाँ हर देश अपने आर्थिक हितों को साधने में लगा रहता है, हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% के भारी-भरकम टैरिफ (सीमा शुल्क) ने एक भूचाल ला दिया है। यह कदम न केवल भारत के निर्यातकों के लिए चिंता का सबब बना है, बल्कि इसने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में तनाव की नई परतें खोल दी हैं। इस अप्रत्याशित और कड़े कदम पर भारत की प्रतिक्रिया कैसी रही है? भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस मुद्दे पर क्या कहा है? और इसके क्या are? यह लेख इन्हीं सवालों के जवाब तलाशता है, जो UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति जैसे महत्वपूर्ण विषयों को समझने में सहायक होगा।
पृष्ठभूमि: अमेरिका-भारत व्यापारिक संबंध (Background: US-India Trade Relations)
अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंध पिछले कुछ दशकों में लगातार मजबूत हुए हैं। अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है, और भारत भी अमेरिकी उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है। सेवा क्षेत्र (Services Sector) में तो भारत की मजबूत पकड़ है, लेकिन माल (Goods) के व्यापार में अक्सर असंतुलन देखा गया है, जहाँ भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) अमेरिका के लिए चिंता का विषय रहा है।
“व्यापारिक रिश्ते दो-तरफा होते हैं, और उन्हें संतुलित रखना दोनों देशों के हित में होता है।”
पूर्व अमेरिकी प्रशासन, विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में, “अमेरिका फर्स्ट” (America First) की नीति के तहत कई देशों पर व्यापारिक दबाव बढ़ाया गया था। भारत भी इस नीति का अपवाद नहीं था। समय-समय पर अमेरिका ने भारत से कुछ विशेष उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की, और बदले में भारत ने भी अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाए। इन सबके बीच, “जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज” (GSP) जैसे विशेष व्यापारिक दर्जे को लेकर भी विवाद रहे, जिसके तहत भारत को कुछ उत्पादों पर तरजीही शुल्क दरें मिलती थीं।
ट्रम्प प्रशासन का 50% टैरिफ का फैसला: क्या है मामला? (The Trump Administration’s 50% Tariff Decision: What’s the Issue?)
हालिया मामले में, अमेरिका ने कुछ भारतीय वस्तुओं पर 50% तक के टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह टैरिफ दरें इतनी ऊंची हैं कि ये भारतीय निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना लगभग असंभव बना देंगी। इस कदम के पीछे के कारणों को समझने के लिए हमें अमेरिकी प्रशासन के तर्क को देखना होगा:
- व्यापार घाटे का तर्क: अमेरिका का कहना है कि भारत के साथ उसका व्यापार घाटा काफी अधिक है, और इस टैरिफ के माध्यम से वह इसे कम करना चाहता है।
- “अनुचित” व्यापारिक व्यवहार: अमेरिकी प्रशासन का आरोप है कि भारत कुछ अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाता है, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए अनुचित है।
- डिजिटल सेवाओं पर कर: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम भारत द्वारा डिजिटल सेवाओं पर लगाए जा रहे करों (जैसे इक्वलाइजेशन लेवी) के विरोध में भी हो सकता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये टैरिफ केवल एक विशिष्ट उत्पाद या क्षेत्र तक सीमित नहीं हो सकते, बल्कि इनका दायरा विस्तृत हो सकता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया: “कार्रवाई करेंगे” (India’s Response: “Will Take Action”)
अमेरिका के इस आक्रामक कदम के जवाब में, भारत ने भी कड़ा रुख अपनाया है। भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत इस मामले पर “कार्रवाई करेगा”। यह बयान केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारत अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।
विदेश मंत्रालय का क्या कहना था?
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता या संबंधित अधिकारियों ने आमतौर पर निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया है:
- निराशा व्यक्त करना: भारत ने अमेरिकी फैसले पर निराशा व्यक्त की है और इसे द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के लिए हानिकारक बताया है।
- “यथोचित प्रत्युत्तर” (Appropriate Response): भारत ने यह भी कहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए “यथोचित और आनुपातिक” (appropriate and proportionate) प्रत्युत्तर देने का अधिकार सुरक्षित रखता है। इसका मतलब है कि भारत भी जवाबी शुल्क लगा सकता है या अन्य व्यापारिक प्रतिबंधों पर विचार कर सकता है।
- बातचीत का आह्वान: भारत ने हमेशा बातचीत और कूटनीतिक समाधान पर जोर दिया है। मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वह इस मुद्दे को सुलझाने के लिए अमेरिका के साथ संपर्क में है और संवाद के माध्यम से समाधान खोजने का प्रयास करेगा।
- डब्ल्यूटीओ का मंच: यदि बातचीत विफल रहती है, तो भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी इस मामले को उठा सकता है।
“कार्रवाई करेंगे” का निहितार्थ (Implication of “Will Take Action”):
यह कथन केवल एक धमकी नहीं है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक और आर्थिक शक्ति का प्रतिबिंब है। भारत अब केवल प्रतिक्रिया देने वाले देश की भूमिका में नहीं है; वह अपने हितों के लिए मुखर हो रहा है। “कार्रवाई” का मतलब हो सकता है:
- जवाबी टैरिफ: अमेरिका से आयात होने वाली चुनिंदा वस्तुओं पर भारत भी उच्च शुल्क लगा सकता है।
- गैर-टैरिफ बाधाएं: आयातित अमेरिकी वस्तुओं के लिए गुणवत्ता मानक, प्रमाणन या अन्य नियामक आवश्यकताएं कड़ी की जा सकती हैं।
- सरकारी खरीद: अमेरिकी कंपनियों को सरकारी खरीद प्रक्रियाओं से बाहर रखा जा सकता है।
- निवेश: भारत अमेरिकी निवेशों को लेकर अपनी नीतियों की समीक्षा कर सकता है।
“कूटनीति में, ‘कार्रवाई’ शब्द का प्रयोग अक्सर एक मजबूत संदेश देने के लिए किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के आर्थिक और राजनीतिक कदम उठाने की क्षमता निहित होती है।”
50% टैरिफ का भारत पर प्रभाव: एक विस्तृत विश्लेषण (Impact of 50% Tariffs on India: A Detailed Analysis)
यह 50% का टैरिफ भारत के लिए एक गंभीर आर्थिक झटका हो सकता है, जिसके कई आयाम हैं:
1. निर्यात पर प्रभाव (Impact on Exports):
- प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी: भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में बहुत महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी मांग घटेगी।
- निर्यातकों को नुकसान: जो भारतीय कंपनियां अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर हैं, उन्हें भारी वित्तीय नुकसान होगा। इससे उत्पादन में कमी, छंटनी और लाभप्रदता में गिरावट आ सकती है।
- वैकल्पिक बाजारों की तलाश: भारतीय निर्यातकों को अमेरिका के अलावा अन्य बाजारों में अपने उत्पादों के लिए अवसर तलाशने होंगे, जिसके लिए समय और प्रयास दोनों की आवश्यकता होगी।
2. रोजगार पर प्रभाव (Impact on Employment):
- उत्पादन में कमी: निर्यात में गिरावट के कारण उद्योगों में उत्पादन कम होगा, जिससे नई नियुक्तियां रुक सकती हैं या मौजूदा कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है।
- अप्रत्यक्ष रोजगार: यह न केवल प्रत्यक्ष रूप से विनिर्माण क्षेत्र को प्रभावित करेगा, बल्कि परिवहन, लॉजिस्टिक्स और संबंधित सहायक उद्योगों में भी रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं।
3. विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रभाव (Impact on Foreign Exchange Reserves):
- निर्यात आय में कमी: निर्यात घटने से भारत को विदेशी मुद्रा की आय कम होगी, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ सकता है।
- भुगतान संतुलन (Balance of Payments): यह भारत के भुगतान संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है, खासकर यदि आयात लागत बढ़ी हुई टैरिफ के बावजूद बनी रहती है।
4. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर प्रभाव (Impact on International Trade Relations):
- विश्वास में कमी: इस तरह के एकतरफा और कठोर कदम से द्विपक्षीय विश्वास को ठेस पहुंच सकती है।
- अन्य देशों के लिए संकेत: यह अन्य देशों के लिए भी एक संकेत हो सकता है कि अमेरिका अपने व्यापारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए आक्रामक रुख अपना सकता है।
5. मैक्रोइकॉनॉमिक प्रभाव (Macroeconomic Impact):
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP): निर्यात में गिरावट से देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर प्रभावित हो सकती है।
- मुद्रास्फीति: यदि भारत जवाबी शुल्क लगाता है, तो अमेरिका से आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
पक्ष और विपक्ष: एक संतुलित दृष्टिकोण (Pros and Cons: A Balanced Perspective)
किसी भी व्यापारिक विवाद में, एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है।
अमेरिका के पक्ष में तर्क (Arguments in Favor of US Action):
- राष्ट्रीय संप्रभुता: प्रत्येक देश को अपनी व्यापार नीतियों को निर्धारित करने और अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने का अधिकार है।
- निष्पक्ष व्यापार: अमेरिका का तर्क है कि वह “निष्पक्ष” (fair) और “पारस्परिक” (reciprocal) व्यापार चाहता है, न कि “मुक्त” (free) व्यापार।
- बाजार पहुंच: अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में समान पहुंच सुनिश्चित करने की मांग।
भारत के पक्ष में तर्क (Arguments in Favor of India’s Position):
- विकासशील देश की आवश्यकताएं: भारत एक विकासशील देश है और उसे अपने उद्योगों को पोषित करने के लिए कुछ सुरक्षा उपायों की आवश्यकता हो सकती है।
- “यथोचित” शुल्क: भारत का मानना है कि उसके द्वारा लगाए गए शुल्क उचित हैं और डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुरूप हैं।
- एकतरफा कार्रवाई का विरोध: भारत इस तरह की एकतरफा और अत्यधिक प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का विरोध करता है।
- आर्थिक विकास: अत्यधिक टैरिफ भारत के आर्थिक विकास को बाधित कर सकते हैं, जो लाखों लोगों को गरीबी से बाहर लाने के लिए महत्वपूर्ण है।
आगे की राह: चुनौतियाँ और अवसर (The Way Forward: Challenges and Opportunities)
इस व्यापारिक टकराव के बीच, भारत के सामने कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन साथ ही अवसर भी छिपे हैं:
चुनौतियाँ (Challenges):
- कूटनीतिक दबाव: अमेरिका जैसे बड़े आर्थिक महाशक्ति के दबाव का सामना करना।
- व्यापारिक घाटा: अमेरिका के साथ अपने व्यापार घाटे को प्रभावी ढंग से कम करने के तरीके खोजना।
- जवाबी कार्रवाई की लागत: जवाबी शुल्क लगाने से अमेरिका के साथ-साथ भारत को भी कुछ नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान का प्रबंधन करना।
अवसर (Opportunities):
- आर्थिक सुधारों में तेजी: इस संकट को घरेलू आर्थिक सुधारों को तेज करने के अवसर के रूप में देखा जा सकता है, जैसे कि विनिर्माण को बढ़ावा देना, निर्यात प्रोत्साहन योजनाएं और व्यापार सुविधा।
- विविधीकरण: भारतीय निर्यातकों को अपने बाजारों का विविधीकरण (diversification) करने के लिए प्रोत्साहित करना, ताकि वे किसी एक बाजार पर अत्यधिक निर्भर न रहें।
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: “आत्मनिर्भर भारत” जैसी पहलों के तहत घरेलू उत्पादन और आत्मनिर्भरता पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
- बहुपक्षीय सहयोग: भारत अन्य देशों के साथ मिलकर बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को मजबूत करने के लिए काम कर सकता है।
- सेवा क्षेत्र पर जोर: भारत अपने मजबूत सेवा क्षेत्र का लाभ उठाकर माल व्यापार में किसी भी नुकसान की भरपाई करने का प्रयास कर सकता है।
“हर संकट अपने भीतर एक अवसर छुपाता है। भारत के लिए, यह अपनी आर्थिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करने और वैश्विक व्यापार परिदृश्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने का एक मौका है।”
निष्कर्ष (Conclusion):
अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% के टैरिफ का मुद्दा भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है, लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय की “कार्रवाई करेंगे” की प्रतिक्रिया दर्शाती है कि भारत अब अपने हितों की रक्षा के लिए पीछे हटने को तैयार नहीं है। यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों, द्विपक्षीय संबंधों और वैश्विक भू-राजनीति के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस मुद्दे का विश्लेषण केवल आर्थिक या कूटनीतिक स्तर पर नहीं, बल्कि इसके सामाजिक, राजनीतिक और रणनीतिक आयामों को भी समझना महत्वपूर्ण है। भारत को इस संकट का सामना चतुराई से करना होगा, अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा, और वैश्विक मंच पर अपनी आवाज बुलंद रखनी होगी।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक संभावित कारण हो सकता है?
- भारत का अमेरिका के साथ बढ़ता व्यापार अधिशेष (Trade Surplus)।
- भारत द्वारा कुछ अमेरिकी उत्पादों पर लगाए गए उच्च शुल्क।
- अमेरिका द्वारा भारत को GSP (Generalized System of Preferences) का दर्जा वापस लेना।
- दोनों देशों के बीच बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) पर विवाद।
- प्रश्न: “यथोचित प्रत्युत्तर” (Appropriate Response) वाक्यांश का भारतीय विदेश मंत्रालय के संदर्भ में क्या अर्थ हो सकता है?
- पूर्ण रूप से अमेरिकी मांगों को स्वीकार करना।
- केवल कूटनीतिक स्तर पर विरोध दर्ज कराना।
- राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए संतुलित और आनुपातिक कदम उठाना।
- सभी व्यापारिक संबंध तोड़ लेना।
- प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा एक भारतीय निर्यातकों के लिए 50% टैरिफ का सीधा परिणाम होगा?
- अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की मांग में वृद्धि।
- भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि।
- निर्यातकों के लाभ मार्जिन में कमी या नुकसान।
- अमेरिकी सरकार से अधिक सब्सिडी प्राप्त होना।
- प्रश्न: “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति का प्राथमिक उद्देश्य क्या रहा है?
- वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना।
- अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाधाओं को कम करना।
- मानवाधिकारों के वैश्विक प्रसार को सुनिश्चित करना।
- प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों को निर्धारित और विनियमित करता है?
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
- विश्व बैंक (World Bank)
- विश्व व्यापार संगठन (WTO)
- संयुक्त राष्ट्र (UN)
- प्रश्न: भारत की “आत्मनिर्भर भारत” पहल का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- सभी विदेशी निवेश को रोकना।
- घरेलू विनिर्माण, आपूर्ति श्रृंखला और अर्थव्यवस्था को मजबूत करना।
- केवल सेवा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को पूरी तरह से समाप्त करना।
- प्रश्न: यदि भारत अमेरिका से आयात होने वाली वस्तुओं पर जवाबी शुल्क लगाता है, तो इसका क्या प्रभाव हो सकता है?
- अमेरिकी निर्यातकों को फायदा होगा।
- भारतीय उपभोक्ताओं को आयातित वस्तुएं सस्ती मिलेंगी।
- अमेरिकी वस्तुओं की भारतीय बाजार में मांग घट सकती है।
- दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध और बेहतर होंगे।
- प्रश्न: विदेश मंत्रालय के बयान में “कार्रवाई करेंगे” (Will Take Action) का प्रयोग किस प्रकार की नीतिगत प्रतिक्रिया को इंगित करता है?
- केवल शांतिपूर्ण संवाद।
- एक मजबूत और संभावित रूप से जवाबी कूटनीतिक और आर्थिक कदम।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण में शिकायत दर्ज करना।
- घरेलू नीतियों में कोई बदलाव न करना।
- प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा एक “गैर-टैरिफ व्यापार बाधा” (Non-Tariff Barrier) का उदाहरण है?
- निर्यात पर सब्सिडी।
- आयात पर उच्च शुल्क।
- कठोर गुणवत्ता नियंत्रण मानक।
- व्यापारिक समझौता।
- प्रश्न: भारत के भुगतान संतुलन (Balance of Payments) पर 50% टैरिफ का क्या प्रभाव पड़ सकता है?
- भुगतान संतुलन में सुधार (Improvement in BoP)।
- भुगतान संतुलन में गिरावट (Deterioration in BoP)।
- भुगतान संतुलन पर कोई प्रभाव नहीं।
- निर्यात और आयात दोनों में समान वृद्धि।
उत्तर: B
व्याख्या: अमेरिकी प्रशासन अक्सर भारत द्वारा कुछ उत्पादों पर लगाए गए उच्च शुल्कों को अनुचित व्यापार व्यवहार का कारण बताता है। व्यापार घाटा एक चिंता का विषय रहा है, लेकिन अधिशेष (surplus) की स्थिति नहीं है। GSP का मुद्दा पहले भी रहा है, लेकिन 50% टैरिफ का सीधा संबंध वर्तमान व्यापारिक नीतियों से अधिक है। IPR एक अलग मुद्दा है।
उत्तर: C
व्याख्या: “यथोचित प्रत्युत्तर” का तात्पर्य है कि भारत अपनी रक्षा के लिए ऐसे कदम उठाएगा जो अमेरिका द्वारा की गई कार्रवाई के अनुपात में हों और उसके राष्ट्रीय हितों के लिए प्रभावी हों, न कि आत्मघाती।
उत्तर: C
व्याख्या: उच्च टैरिफ के कारण भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी बिक्री घटेगी और निर्यातकों को सीधे तौर पर वित्तीय नुकसान होगा।
उत्तर: B
व्याख्या: “अमेरिका फर्स्ट” नीति का मुख्य एजेंडा अमेरिकी अर्थव्यवस्था, रोजगार और राष्ट्रीय हितों को अन्य देशों के हितों पर वरीयता देना रहा है।
उत्तर: C
व्याख्या: विश्व व्यापार संगठन (WTO) वैश्विक स्तर पर व्यापार के नियमों और शुल्कों से संबंधित विवादों को सुलझाने का मुख्य मंच है।
उत्तर: B
व्याख्या: आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य भारत को उत्पादन, खपत और आपूर्ति श्रृंखलाओं में अधिक आत्मनिर्भर बनाना है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो।
उत्तर: C
व्याख्या: जवाबी शुल्क अमेरिकी उत्पादों को भारत में महंगा बना देंगे, जिससे उनकी मांग में कमी आएगी।
उत्तर: B
व्याख्या: यह वाक्यांश अक्सर सरकार की ओर से जवाबी कार्रवाई करने की तत्परता को दर्शाता है, जिसमें विभिन्न आर्थिक या कूटनीतिक उपाय शामिल हो सकते हैं।
उत्तर: C
व्याख्या: गैर-टैरिफ बाधाओं में कोटा, आयात लाइसेंस, गुणवत्ता मानक, स्वास्थ्य और सुरक्षा नियम शामिल होते हैं, जो टैरिफ के अलावा आयात को प्रतिबंधित करते हैं।
उत्तर: B
व्याख्या: निर्यात में संभावित गिरावट से विदेशी मुद्रा आय कम होगी, जिससे भुगतान संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर यदि आयात की लागत बढ़ी हुई टैरिफ के बावजूद बनी रहती है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ के आर्थिक और भू-राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण करें। भारत द्वारा “यथोचित प्रत्युत्तर” देने की क्षमता और संभावित रणनीतियों पर भी प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत अमेरिका द्वारा उठाए गए व्यापारिक कदमों ने भारत जैसे देशों के साथ उसके संबंधों को कैसे प्रभावित किया है? अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संरक्षणवाद (Protectionism) के बढ़ते चलन के प्रकाश में इस पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न: भारत की “आत्मनिर्भर भारत” पहल के संदर्भ में, हालिया अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक विवादों को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के अवसर के रूप में कैसे देखा जा सकता है? (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में राष्ट्रों के हितों की रक्षा के लिए टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं का उपयोग एक विवादास्पद विषय रहा है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के उद्देश्यों के आलोक में इस पर चर्चा करें और भारत-अमेरिका व्यापार गतिरोध के उदाहरण के साथ अपनी बात स्पष्ट करें। (250 शब्द, 15 अंक)