5.5% रेपो रेट: RBI MPC का बड़ा फैसला और आपकी जेब पर इसका असर
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) ने हाल ही में अपनी बैठक में प्रमुख नीतिगत दरों, विशेष रूप से रेपो रेट, में कोई बदलाव न करने का निर्णय लिया है। रेपो रेट को लगातार 5.5% पर बनाए रखा गया है। गवर्नर संजय मल्होत्रा के अनुसार, यह निर्णय घरेलू और वैश्विक आर्थिक परिदृश्यों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने के बाद लिया गया है। यह घोषणा उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जो भारतीय अर्थव्यवस्था, बैंकिंग प्रणाली और अपने व्यक्तिगत वित्त को प्रभावित करने वाले प्रमुख मौद्रिक निर्णयों को समझना चाहते हैं। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, मौद्रिक नीति, रेपो रेट, मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण और MPC की भूमिका को समझना अत्यंत आवश्यक है। यह लेख इन सभी पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डालेगा।
मौद्रिक नीति और MPC: भारतीय अर्थव्यवस्था के अदृश्य हाथ
सोचिए, एक ऐसा अदृश्य हाथ है जो लगातार अर्थव्यवस्था की नब्ज पर नज़र रखता है, यह सुनिश्चित करता है कि सब कुछ सुचारू रूप से चले, न बहुत तेज, न बहुत धीमा। यही काम भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) करता है, और इसे करने के लिए उसके पास एक शक्तिशाली उपकरण है: **मौद्रिक नीति**। मौद्रिक नीति का मूल उद्देश्य **मूल्य स्थिरता (Price Stability)** बनाए रखना है, जिसका अर्थ है कि महंगाई (Inflation) एक ऐसे स्तर पर रहे जो आर्थिक विकास के लिए अनुकूल हो।
इस मौद्रिक नीति को बनाने और लागू करने के लिए RBI के भीतर एक विशेष समिति है – **मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC)**। यह समिति यह तय करती है कि अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को कैसे नियंत्रित किया जाए, और इसके लिए वह मुख्य रूप से **ब्याज दरों** का उपयोग करती है।
“मौद्रिक नीति किसी जहाज के कप्तान की तरह होती है, जो तूफानों (महंगाई) से बचाते हुए और शांत पानी (स्थिरता) की ओर बढ़ते हुए अर्थव्यवस्था को सही दिशा में ले जाता है।”
MPC का गठन और कार्यप्रणाली: निर्णय लेने की प्रक्रिया
MPC एक **छह-सदस्यीय** निकाय है, जिसका गठन **भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934** में एक संशोधन के माध्यम से किया गया था। इसके सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष का होता है।
- RBI गवर्नर: पदेन अध्यक्ष (Ex-officio Chairperson)
- RBI डिप्टी गवर्नर: मौद्रिक नीति के प्रभारी (Ex-officio Member)
- RBI का एक अधिकारी: केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित (Ex-officio Member)
- केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन बाहरी सदस्य: ये अर्थशास्त्र, बैंकिंग, वित्त या मौद्रिक नीति के क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं।
MPC का मुख्य कार्य **रेपो रेट** (वह दर जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है) को निर्धारित करना है, ताकि मुद्रास्फीति को RBI द्वारा निर्धारित **4% (+/- 2%)** की लक्ष्य सीमा के भीतर रखा जा सके। जब भी मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर जाती है, MPC ब्याज दरें बढ़ा सकती है, और जब यह लक्ष्य से नीचे जाती है, तो ब्याज दरें घटा सकती है।
वर्तमान निर्णय: 5.5% पर स्थिर रेपो रेट का क्या मतलब है?
RBI MPC ने हाल ही में हुई बैठक में रेपो रेट को **5.5%** पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है। यह निर्णय कई महत्वपूर्ण संकेत देता है:
- मुद्रास्फीति पर नियंत्रण की रणनीति: भले ही मुद्रास्फीति थोड़ी अधिक रही हो, MPC का मानना है कि मौजूदा दरें अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक मंदी में डाले बिना महंगाई को काबू में रखने के लिए पर्याप्त हैं। यह एक नाजुक संतुलन बनाने का प्रयास है।
- आर्थिक विकास को समर्थन: लगातार ऊंची ब्याज दरें व्यावसायिक निवेश और उपभोक्ता खर्च को हतोत्साहित कर सकती हैं। रेपो रेट को स्थिर रखकर, RBI अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
- वैश्विक अनिश्चितता: वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं और कई देशों में बढ़ती महंगाई के कारण RBI सतर्कता बरत रहा है। ऐसे माहौल में, अचानक बड़े बदलाव करने से बचना विवेकपूर्ण हो सकता है।
“5.5% पर रेपो रेट को बनाए रखना एक ‘रुको और देखो’ (Wait and Watch) नीति का संकेत हो सकता है, जहां RBI नवीनतम आर्थिक आंकड़ों और वैश्विक रुझानों पर नजर रखे हुए है।”
रेपो रेट: अर्थव्यवस्था की धड़कन
रेपो रेट वह **मुख्य दर** है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक (Short-term) आवश्यकता के लिए धन उधार देता है। इसे **’मुख्य नीतिगत दर’** भी कहा जाता है। रेपो रेट में कोई भी बदलाव एक श्रृंखला प्रतिक्रिया (Chain Reaction) शुरू करता है, जो अंततः आपकी जेब तक पहुंचती है।
रेपो रेट कैसे काम करता है?
इसे एक सरल उदाहरण से समझते हैं:
- RBI बैंकों को पैसा देता है: जब RBI बैंकों को पैसा उधार देता है, तो वह एक निश्चित दर वसूलता है, जिसे **रेपो रेट** कहते हैं।
- बैंक ग्राहकों को पैसा देते हैं: बैंक इस उधार लिए गए पैसे का उपयोग अपने ग्राहकों, यानी व्यक्तियों और व्यवसायों को, अधिक दर पर उधार देने के लिए करते हैं। इस दर को **ऋण दर (Lending Rate)** कहा जाता है।
- रेपो रेट का प्रभाव:
- जब रेपो रेट बढ़ता है: RBI से मिलने वाला पैसा बैंकों के लिए महंगा हो जाता है। बैंक इस लागत को ग्राहकों पर डालते हैं, जिससे **होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन** सभी महंगे हो जाते हैं। इससे लोग कम खर्च करते हैं और महंगाई कम हो सकती है।
- जब रेपो रेट घटता है: RBI से मिलने वाला पैसा बैंकों के लिए सस्ता हो जाता है। बैंक इस बचत को ग्राहकों को हस्तांतरित करते हैं, जिससे **लोन सस्ते** हो जाते हैं। इससे लोग अधिक खर्च करते हैं, निवेश बढ़ाते हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
उदाहरण: मान लीजिए कि रेपो रेट 6% है। बैंक RBI से 6% पर पैसा लेते हैं और ग्राहकों को 9% पर उधार देते हैं। अगर RBI रेपो रेट को घटाकर 5.5% कर देता है, तो बैंक 5.5% पर पैसा लेंगे और शायद ग्राहकों को 8.5% पर उधार दें। इससे लोन की ईएमआई (EMI) कम हो जाती है।
5.5% रेपो रेट का आपकी जेब पर सीधा असर:
चूंकि रेपो रेट को 5.5% पर बरकरार रखा गया है, इसका मतलब है कि:
- लोन की EMI पर तत्काल बड़ा बदलाव नहीं: यदि आप पर होम लोन, कार लोन या पर्सनल लोन चल रहा है, तो आपकी EMI में तत्काल कोई वृद्धि या कमी की उम्मीद नहीं है।
- नए लोन सस्ते होने की उम्मीद फिलहाल नहीं: नए होम लोन या कार लोन लेने वालों को मौजूदा दरों पर ही लोन मिलेगा, और फिलहाल दरों में बड़ी कमी की उम्मीद कम है।
- फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) दरों पर प्रभाव: बैंकों को खुद ज्यादा ब्याज पर पैसा नहीं मिल रहा है, इसलिए वे FD पर मिलने वाले ब्याज दर में भी बहुत बड़ी बढ़ोतरी नहीं करेंगे।
- निवेश का निर्णय: ऊंची ब्याज दरें आमतौर पर फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स (जैसे FD, बॉन्ड) को आकर्षक बनाती हैं, जबकि कम दरें इक्विटी (शेयर बाजार) जैसे जोखिम भरे निवेशों को बढ़ावा दे सकती हैं। स्थिर दरें निवेश के निर्णय को वर्तमान आर्थिक स्थितियों के आधार पर अधिक सावधानी से लेने के लिए प्रेरित करेंगी।
मुद्रास्फीति (Inflation) और 5.5% रेपो रेट के बीच संबंध
RBI का मुख्य लक्ष्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है। वर्तमान में, भारत में खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) RBI के लक्ष्य बैंड (2-6%) के भीतर है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है, खासकर सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण।
मुद्रास्फीति के प्रकार और MPC का दृष्टिकोण:
- मांग-जनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation): जब अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की मांग, उनकी आपूर्ति से अधिक हो जाती है। ऐसे में MPC ब्याज दरें बढ़ाकर मांग को कम करने का प्रयास करती है।
- लागत-जनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation): जब उत्पादन लागत (जैसे कच्चा माल, परिवहन, ऊर्जा) बढ़ने से कीमतें बढ़ती हैं। ऐसे में MPC की भूमिका सीमित हो सकती है, लेकिन वे समग्र आर्थिक स्थिरता बनाए रखने का प्रयास करते हैं।
5.5% पर रेपो रेट को स्थिर रखने का मतलब है कि MPC को लगता है कि वर्तमान मौद्रिक स्थिति अर्थव्यवस्था को अत्यधिक गर्म (Overheating) या बहुत ठंडा (Recession) किए बिना मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के लिए पर्याप्त है। यह एक **’प्रत्याशित’ (Accommodative)** या **’तटस्थ’ (Neutral)** रुख का संकेत हो सकता है, जो विकास की संभावनाओं को बनाए रखने पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
गवर्नर संजय मल्होत्रा के बयान और आर्थिक संकेत
गवर्नर संजय मल्होत्रा द्वारा बैठक के बाद दिए गए बयान महत्वपूर्ण हैं। उनके बयान आमतौर पर MPC के भविष्य के इरादों और अर्थव्यवस्था की स्थिति पर RBI के आकलन को दर्शाते हैं।
- लचीलापन (Flexibility): उनके बयान दर्शा सकते हैं कि RBI स्थिति के आधार पर अपनी नीतियों को समायोजित करने के लिए तैयार है।
- वैश्विक जोखिमों पर ध्यान: ग्लोबल सप्लाई चेन, भू-राजनीतिक अनिश्चितता और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में ब्याज दरों में वृद्धि जैसे कारक RBI के निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
- आंतरिक आर्थिक मजबूती: सरकार के खर्च, निजी उपभोग और निवेश जैसे घरेलू कारक भी MPC के निर्णयों में भूमिका निभाते हैं।
उदाहरण: यदि गवर्नर यह संकेत देते हैं कि वे मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर बारीकी से नजर रख रहे हैं और यदि महंगाई बढ़ती है तो वे दरें बढ़ाने से नहीं हिचकिचाएंगे, तो यह एक ‘तंग’ (Hawkish) रुख का संकेत है। यदि वे विकास पर अधिक जोर देते हैं, तो यह ‘नरम’ (Dovish) रुख का संकेत है। 5.5% पर स्थिरता एक **संतुलित** या **’तटस्थ’** रुख का प्रतिनिधित्व करती है।
5.5% रेपो रेट: पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)
हर आर्थिक फैसले के अपने फायदे और नुकसान होते हैं। 5.5% रेपो रेट को बनाए रखने के भी कुछ प्रमुख पहलू हैं:
पक्ष (Pros):
- आर्थिक विकास को समर्थन: लगातार ऊंची ब्याज दरें विकास को बाधित कर सकती हैं। रेपो रेट को स्थिर रखने से व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए ऋण लेना अपेक्षाकृत सस्ता रहता है, जो निवेश और उपभोग को प्रोत्साहित कर सकता है।
- सरकारी उधारी का प्रबंधन: सरकार भी अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कर्ज लेती है। स्थिर ब्याज दरें सरकार के लिए उधारी की लागत को प्रबंधित करने में मदद करती हैं।
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का भरोसा: 5.5% की दर को बनाए रखना यह दर्शाता है कि RBI को मौजूदा दरें मुद्रास्फीति को लक्ष्य सीमा के भीतर रखने के लिए पर्याप्त लग रही हैं, जो एक तरह का भरोसा जगाता है।
- बैंकिंग क्षेत्र की लाभप्रदता: बहुत तेजी से ब्याज दरें घटाना बैंकों के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है, वहीं बहुत बढ़ाना भी। एक स्थिर दर बैंकों को अपनी वित्तीय योजना बनाने में मदद करती है।
विपक्ष (Cons):
- महंगाई से पूरी तरह राहत नहीं: यदि महंगाई अपेक्षा से अधिक बनी रहती है, तो 5.5% की दर पर्याप्त रूप से प्रतिबंधात्मक (Restrictive) नहीं हो सकती है, जिससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
- निवेशकों के लिए कम आकर्षण: यदि दुनिया के अन्य देशों में ब्याज दरें बहुत अधिक हैं, तो भारतीय फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स विदेशी निवेशकों के लिए उतने आकर्षक नहीं रह सकते हैं, जिससे पूंजी के बहिर्वाह (Outflow) का खतरा हो सकता है।
- अप्रयुक्त क्षमता: कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क हो सकता है कि यदि मुद्रास्फीति वास्तव में नियंत्रण में है, तो विकास को और बढ़ावा देने के लिए दरों में थोड़ी कटौती की जा सकती थी।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
RBI MPC के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं:
- वैश्विक अनिश्चितता: वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी, भू-राजनीतिक तनाव (जैसे युद्ध), और प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाना भारत को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है।
- खाद्य मुद्रास्फीति: अनियमित मानसून और जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में अचानक वृद्धि मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ा सकती है।
- विकास और मूल्य स्थिरता के बीच संतुलन: RBI को विकास को बढ़ावा देने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के बीच एक कठिन संतुलन बनाना होगा।
- वित्तीय समावेशन और क्रेडिट की उपलब्धता: यह सुनिश्चित करना कि ऋण सभी के लिए आसानी से उपलब्ध हो, लेकिन अति-उधार (Over-leveraging) को बढ़ावा दिए बिना।
भविष्य की राह:
- डेटा-संचालित निर्णय: RBI आगे भी मुद्रास्फीति, विकास दर, वैश्विक आर्थिक रुझानों और सरकारी नीतियों जैसे प्रमुख डेटा बिंदुओं के आधार पर अपने निर्णय लेगा।
- लचीला रुख: MPC संभवतः एक ‘लचीला’ (Flexible) रुख बनाए रखेगा, जो बाजार को यह संकेत देता है कि RBI बदलती परिस्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार है।
- संचार की भूमिका: RBI गवर्नर और MPC सदस्यों का भविष्य का संचार बाजार की अपेक्षाओं को प्रबंधित करने और अनिश्चितता को कम करने में महत्वपूर्ण होगा।
UPSC के दृष्टिकोण से: UPSC उम्मीदवार के रूप में, आपको यह समझना होगा कि RBI MPC केवल एक संख्या तय नहीं करती, बल्कि यह भारत की आर्थिक दिशा को आकार देने वाली एक जटिल प्रक्रिया का हिस्सा है। आपको मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के विभिन्न उपकरणों, मौद्रिक नीति के प्रसारण तंत्र (Monetary Policy Transmission Mechanism), और RBI की भूमिका को समझना होगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- MPC में छह सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन RBI से और तीन केंद्र सरकार द्वारा नामित होते हैं।
- MPC का प्राथमिक कार्य मुद्रास्फीति को 4% (+/- 2%) के लक्ष्य के भीतर रखना है।
- MPC द्वारा निर्धारित प्रमुख नीतिगत दर रेपो रेट है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3
उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: सभी कथन MPC के बारे में सही हैं। MPC में 6 सदस्य होते हैं, जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को लक्ष्य सीमा में रखना है, और रेपो रेट प्रमुख नीतिगत दर है।
2. रेपो रेट में वृद्धि का निम्नलिखित में से क्या परिणाम हो सकता है?
- बैंकों के लिए उधार लेना महंगा हो जाता है।
- होम लोन और कार लोन की EMI बढ़ सकती है।
- अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति कम हो जाती है।
उपरोक्त में से कौन से परिणाम सही हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3
उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: रेपो रेट में वृद्धि से बैंकों के लिए उधार महंगा होता है, जिसका असर सीधे ग्राहकों के लोन की EMI पर पड़ता है, और कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति कम हो जाती है।
3. निम्नलिखित में से कौन सी दर वह दर है जिस पर RBI अन्य वाणिज्यिक बैंकों से अल्पकालिक धन की कमी को पूरा करने के लिए, सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर, धन उधार लेता है?
a) रिवर्स रेपो रेट
b) बैंक रेट
c) रेपो रेट
d) MSF (Marginal Standing Facility) रेट
उत्तर: c) रेपो रेट
व्याख्या: रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों को प्रतिभूतियों के बदले अल्पकालिक ऋण देता है।
4. RBI की मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) आर्थिक विकास को अधिकतम करना
b) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना
c) बेरोजगारी को कम करना
d) विनिमय दर को स्थिर रखना
उत्तर: b) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना
व्याख्या: RBI की मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य मूल्य स्थिरता (मुद्रास्फीति नियंत्रण) बनाए रखना है, साथ ही विकास को भी ध्यान में रखना होता है।
5. यदि RBI रेपो रेट को 5.5% पर बनाए रखता है, तो यह संकेत दे सकता है कि:
- RBI वर्तमान में विकास को समर्थन देना चाहता है।
- RBI मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सक्षम महसूस कर रहा है।
- RBI वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को लेकर सतर्क है।
उपरोक्त में से कौन से संकेत सही हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3
उत्तर: d) 1, 2 और 3
व्याख्या: रेपो रेट को स्थिर रखने के ये तीनों ही संभावित संकेत हो सकते हैं, जो RBI की बहुआयामी सोच को दर्शाते हैं।
6. मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Inflation Targeting) के संदर्भ में, RBI का वर्तमान लक्ष्य क्या है?
a) 2% से 5%
b) 4% (+/- 2%)
c) 3% से 7%
d) 5% (+/- 1%)
उत्तर: b) 4% (+/- 2%)
व्याख्या: भारत सरकार ने RBI को 4% खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) को लक्ष्य के रूप में निर्धारित करने का अधिकार दिया है, जिसमें +/- 2% का बैंड है, यानी 2% से 6% तक।
7. गवर्नर संजय मल्होत्रा के हालिया बयान, जो उन्होंने रेपो रेट को 5.5% पर बनाए रखने के बाद दिए, किस पर अधिक जोर दे सकते हैं?
a) तत्काल ब्याज दर में कटौती
b) मुद्रास्फीति के खिलाफ आक्रामक रुख
c) आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थिरता
d) पूर्ण रूप से वित्तीय बाजारों का विनियमन
उत्तर: c) आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थिरता
व्याख्या: रेपो रेट को स्थिर रखना अक्सर विकास को समर्थन देने और मुद्रास्फीति को संतुलित करने की कोशिश का हिस्सा होता है।
8. निम्नलिखित में से कौन सा उपकरण RBI द्वारा सीधे उपयोग नहीं किया जाता है?
a) रेपो रेट
b) बैंक रेट
c) शेयर बाजार सूचकांक (Stock Market Indices)
d) CRR (Cash Reserve Ratio)
उत्तर: c) शेयर बाजार सूचकांक (Stock Market Indices)
व्याख्या: RBI मौद्रिक नीति के लिए रेपो रेट, बैंक रेट, CRR, SLR, ओपन मार्केट ऑपरेशंस जैसे उपकरणों का उपयोग करता है, न कि सीधे शेयर बाजार सूचकांकों का।
9. ‘रिवर्स रेपो रेट’ का क्या कार्य है?
a) वह दर जिस पर RBI बैंकों को लंबी अवधि के लिए ऋण देता है।
b) वह दर जिस पर RBI बैंकों से अधिशेष धन (Surplus Funds) को आकर्षित करता है।
c) वह दर जिस पर बैंक एक-दूसरे को ओवरनाइट उधार देते हैं।
d) वह दर जिस पर RBI बैंकों को अंतिम उपाय के रूप में उधार देता है।
उत्तर: b) वह दर जिस पर RBI बैंकों से अधिशेष धन (Surplus Funds) को आकर्षित करता है।
व्याख्या: रिवर्स रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों के पास पड़े अतिरिक्त धन को अपने पास जमा करवाता है, जिससे अर्थव्यवस्था में तरलता (Liquidity) कम होती है।
10. वर्तमान 5.5% रेपो रेट के परिदृश्य में, निम्नलिखित में से कौन सी स्थिति बनने की सबसे अधिक संभावना है?
a) सभी बैंकों द्वारा FD दरों में तेज वृद्धि
b) नए होम लोन पर ब्याज दरों में बड़ी कमी
c) कॉर्पोरेट बॉन्ड यील्ड (Corporate Bond Yields) में उल्लेखनीय गिरावट
d) मंदी के डर से ब्याज दरों में बड़ी वृद्धि
उत्तर: a) सभी बैंकों द्वारा FD दरों में तेज वृद्धि
व्याख्या: रेपो रेट स्थिर रहने का मतलब है कि बैंकों के लिए फंड की लागत बहुत ज्यादा नहीं बढ़ रही है, लेकिन वे बाजार से पैसा खींचने के लिए FD दरों में कुछ हद तक वृद्धि कर सकते हैं, हालांकि ‘तेज’ वृद्धि की संभावना कम है, लेकिन यह अन्य विकल्पों से अधिक संभावित है। नए लोन सस्ते होने की उम्मीद कम है, और कॉर्पोरेट बॉन्ड यील्ड ब्याज दरों के स्तर पर निर्भर करते हैं। मंदी के डर से दरें बढ़ने की संभावना कम है, बल्कि स्थिर रहने की है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. भारतीय अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति के प्रसारण (Monetary Policy Transmission) की प्रक्रिया को समझाइए। वर्तमान परिदृश्य में, 5.5% के रेपो रेट को बनाए रखने के इस प्रसारण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? (250 शब्द)**
2. RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की भूमिका और कार्यों की विवेचना करें। भारत के मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे (Inflation Targeting Framework) को प्राप्त करने में MPC की सफलता का मूल्यांकन करें। (250 शब्द)**
3. “भारतीय अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखना RBI के लिए एक सतत चुनौती है।” इस कथन के आलोक में, हाल ही में रेपो रेट को 5.5% पर बनाए रखने के RBI MPC के निर्णय का विश्लेषण करें। (150 शब्द)**
4. वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और घरेलू आर्थिक दबावों के बीच, RBI MPC के पास मौद्रिक नीति के संबंध में क्या विकल्प उपलब्ध होते हैं? 5.5% के रेपो रेट को बनाए रखने के निर्णय के पीछे संभावित रणनीतिक विचारों पर चर्चा करें। (150 शब्द)**