5 राज्यों में अतिवृष्टि का कहर: हिमाचल में बादल फटना, राजस्थान में बाढ़, 3 मौतें – समझें पूरा विश्लेषण।
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के दिनों में, भारत के उत्तरी और मध्य भागों में अप्रत्याशित और विनाशकारी मौसम की घटनाओं ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में एक भयानक बादल फटने की घटना ने तीन की जान ले ली, जबकि राजस्थान के कई हिस्सों में लगातार हो रही भारी बारिश ने बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए हैं, जहाँ सड़कों पर नावें चलाने की नौबत आ गई है। इन विनाशकारी घटनाओं का प्रभाव मध्य प्रदेश सहित कुल पाँच राज्यों में महसूस किया जा रहा है, जो इस मानसून को असामान्य रूप से सक्रिय और खतरनाक बना रहे हैं। यह स्थिति न केवल तत्काल मानवीय संकट पैदा करती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और सरकारी प्रतिक्रिया तंत्र की तैयारियों पर भी गंभीर सवाल उठाती है, जो UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।
यह लेख इन घटनाओं के पीछे के वैज्ञानिक कारणों, उनके व्यापक प्रभावों, सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों, और सबसे महत्वपूर्ण, UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न पहलुओं जैसे भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के लिए इसके महत्व का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
भारत में मानसून: एक परिचय
भारत की कृषि, अर्थव्यवस्था और जीवन शैली मानसून पर गहराई से निर्भर करती है। यह केवल मौसमी हवाओं का एक चक्र नहीं, बल्कि एक जटिल जलवायु प्रणाली है जो अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर आती है। हालांकि, इस प्रणाली में होने वाले विचलन, जैसे कि अत्यधिक वर्षा या इसके अभाव, भारत जैसे देश के लिए गंभीर परिणाम ला सकते हैं।
मानसून की मुख्य विशेषताएं:
- अस्थिरता (Variability): मानसून की शुरुआत, अवधि और तीव्रता में वर्ष-दर-वर्ष भिन्नता देखी जाती है।
- क्षेत्रीय भिन्नता (Regional Variation): भारत के विभिन्न हिस्सों में बारिश की मात्रा और पैटर्न अलग-अलग होता है।
- चरम घटनाएँ (Extreme Events): कभी-कभी, मानसून अत्यधिक वर्षा या बाढ़ जैसी चरम घटनाओं को जन्म देता है, जिसे “बादल फटना” (Cloudburst) या “अतिवृष्टि” (Intense Rainfall) कहा जाता है।
बादल फटना (Cloudburst): हिमाचल के मंडी में त्रासदी
हिमाचल प्रदेश, अपनी पहाड़ी भौगोलिक स्थिति के कारण, बादल फटने की घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील है। मंडी जिले में हुई हालिया घटना इसी संवेदनशीलता का एक दुखद उदाहरण है।
बादल फटना क्या है?
बादल फटना एक स्थानीयकृत, तीव्र वर्षा की घटना है जहाँ बहुत कम समय (आमतौर पर कुछ मिनटों से लेकर एक घंटे तक) में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है। मौसम विज्ञान के अनुसार, जब 100 मिमी प्रति घंटे से अधिक वर्षा दर्ज की जाती है, तो इसे बादल फटना कहा जा सकता है, हालांकि यह परिभाषा भौगोलिक क्षेत्र और उसकी क्षमता के अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती है। पहाड़ी इलाकों में, यह विशेष रूप से खतरनाक होता है क्योंकि ऊँचाई पर हवा का दबाव कम होता है, जिससे बादल तेजी से फटते हैं।
वैज्ञानिक कारण
- पहाड़ी भू-भाग (Topography): जब नमी से लदे बादल पहाड़ों की खड़ी ढलानों से टकराते हैं, तो उन्हें ऊपर उठने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस प्रक्रिया में, हवा तेजी से ठंडी होती है, जिससे जलवाष्प संघनित होकर घने बादल बनाते हैं।
- अस्थिर वायुमंडल (Unstable Atmosphere): जब निचले वायुमंडल में तापमान ऊँचाई की तुलना में बहुत अधिक होता है, तो हवा की अस्थिरता बढ़ जाती है। यह अस्थिरता बादलों को और अधिक तेजी से विकसित और फटने में मदद करती है।
- समताप मंडल का प्रभाव (Orographic Effect): पहाड़ियाँ हवा के प्रवाह को अवरुद्ध कर देती हैं और उसे ऊपर की ओर धकेलती हैं, जिससे बादलों का निर्माण और वर्षा की तीव्रता बढ़ जाती है।
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones): कभी-कभी, बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उठने वाले निम्न दबाव प्रणालियाँ या चक्रवात भी नमी लाते हैं जो पहाड़ों से टकराकर ऐसी घटनाओं को ट्रिगर कर सकते हैं।
हिमाचल में बादल फटने का विश्लेषण
- विनाशकारी परिणाम: अचानक और तीव्र वर्षा से नदियाँ और नाले उफान पर आ जाते हैं, जिससे अचानक बाढ़ (Flash Floods) आती है। ये बाढ़ें अपने रास्ते में आने वाले घरों, सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढाँचे को भारी नुकसान पहुँचाती हैं।
- भूस्खलन (Landslides): भारी वर्षा मिट्टी को अस्थिर कर देती है, जिससे बड़े पैमाने पर भूस्खलन हो सकते हैं, जो पहाड़ी क्षेत्रों में जीवन के लिए एक और बड़ा खतरा हैं।
- जान-माल की हानि: बादल फटने से होने वाली अचानक बाढ़ और भूस्खलन में लोगों की जान जाने की सबसे अधिक संभावना होती है, खासकर यदि वे नदियों या निचले इलाकों के पास रहते हों।
राजस्थान में बाढ़ जैसे हालात: ‘जल प्रलय’ का मंजर
हिमाचल प्रदेश की घटना के समानांतर, राजस्थान, जो आमतौर पर शुष्क क्षेत्रों के लिए जाना जाता है, अभूतपूर्व बारिश और बाढ़ का सामना कर रहा है। कई इलाकों में सड़कें नदियों में तब्दील हो गई हैं, और बचाव कार्यों के लिए नावों का उपयोग किया जा रहा है।
राजस्थान में बाढ़ के कारण
- मानसूनी डिप्रेशन (Monsoon Depression): बंगाल की खाड़ी में बने गहरे दबाव के क्षेत्र (Low-Pressure Area) का पश्चिम की ओर बढ़ना, जिसने राजस्थान तक नमी पहुंचाई।
- असामान्य वर्षा पैटर्न (Abnormal Rainfall Pattern): इस बार मानसून ने राजस्थान में सामान्य से कहीं अधिक तीव्रता और अवधि के साथ वर्षा की है। यह पैटर्न जलवायु परिवर्तन के संकेतों की ओर इशारा कर सकता है।
- शुष्क क्षेत्रों की भेद्यता (Vulnerability of Arid Regions): राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र, जहाँ की ज़मीन पानी को आसानी से सोख नहीं पाती, अचानक और अत्यधिक वर्षा के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। जल निकासी व्यवस्था (Drainage System) अक्सर ऐसे चरम को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं होती।
- नदियों का उफान: चंबल, बनास जैसी नदियाँ, जिनमें आमतौर पर कम पानी होता है, भारी बारिश के कारण उफान पर आ गईं, जिससे आसपास के निचले इलाकों में बाढ़ आ गई।
राजस्थान में बाढ़ के प्रभाव
- सार्वजनिक जीवन बाधित: सड़कों पर पानी भरने से परिवहन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। बिजली आपूर्ति ठप पड़ गई है, और संचार व्यवस्था बाधित हुई है।
- कृषि को नुकसान: खड़ी फसलें पानी में डूब गईं, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ है।
- स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: बाढ़ के पानी से जल-जनित बीमारियों (Water-borne Diseases) जैसे डायरिया, टाइफाइड आदि का खतरा बढ़ जाता है।
- आवासों का विनाश: कई कच्चे और पक्के मकान बाढ़ के पानी में बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए, जिससे बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं।
मध्य प्रदेश और अन्य राज्य: व्यापक वर्षा का प्रभाव
यह विनाशकारी मौसमी गतिविधि केवल हिमाचल और राजस्थान तक सीमित नहीं है। मध्य प्रदेश सहित उत्तर और मध्य भारत के कई राज्यों में भी भारी से अति भारी वर्षा दर्ज की जा रही है।
प्रभावित राज्य और उनके मुद्दे:
- मध्य प्रदेश: कई नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है, जिससे निचले इलाकों में अलर्ट जारी किया गया है। कुछ क्षेत्रों में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
- अन्य राज्य (जैसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा): इन राज्यों में भी मानसून की सक्रियता बढ़ी है, जिससे स्थानीय स्तर पर जल जमाव, भूस्खलन (विशेषकर उत्तराखंड में) और सामान्य जनजीवन पर असर देखा जा रहा है।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एक बहुआयामी विश्लेषण
1. भूगोल (Geography)
- भौतिक भूगोल (Physical Geography):
- पहाड़ी भू-भाग और बादल फटने के बीच संबंध (Orographic Rainfall)।
- नदियों के जल निकासी पैटर्न (Drainage Patterns) और बाढ़।
- मिट्टी के प्रकार और जल अवशोषण क्षमता।
- जलवायु विज्ञान (Climatology):
- मानसून की कार्यप्रणाली और इसमें भिन्नता।
- बादल फटने और अतिवृष्टि के लिए जिम्मेदार वायुमंडलीय स्थितियाँ।
- जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं के बीच संबंध।
2. पर्यावरण (Environment)
- जलवायु परिवर्तन (Climate Change):
- वैश्विक तापन (Global Warming) कैसे मानसून की तीव्रता और आवृत्ति को प्रभावित कर रहा है।
- ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव।
- चरम मौसम की घटनाओं (Extreme Weather Events) का बढ़ता प्रचलन।
- पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव (Impact on Ecosystems):
- वनस्पति और वन्यजीवों पर बाढ़ और भूस्खलन का प्रभाव।
- नदी पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन।
3. आपदा प्रबंधन (Disaster Management)
- आपदा की परिभाषा और वर्गीकरण: बाढ़, भूस्खलन, बादल फटना।
- जोखिम मूल्यांकन और भेद्यता (Risk Assessment & Vulnerability): किन क्षेत्रों में सबसे अधिक जोखिम है और क्यों।
- प्रवणता को कम करना (Mitigation):
- शहरी नियोजन और निर्माण मानकों में सुधार।
- बाढ़ नियंत्रण संरचनाएँ (Flood Control Structures) जैसे बाँध, तटबंध।
- वनारोपण (Afforestation) और भू-उपयोग योजना।
- तैयारी (Preparedness):
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) का महत्व।
- जन जागरूकता और शिक्षा।
- निकासी योजनाएँ (Evacuation Plans)।
- प्रतिक्रिया (Response):
- बचाव और राहत कार्य (Rescue & Relief Operations)।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की भूमिका।
- चिकित्सा सहायता और सार्वजनिक स्वास्थ्य।
- पुनर्प्राप्ति और पुनर्वास (Recovery & Rehabilitation):
- क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे का पुनर्निर्माण।
- पीड़ितों को वित्तीय और सामाजिक सहायता।
- दीर्घकालिक पुनर्वास योजनाएँ।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: इसके मुख्य प्रावधान और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका।
4. शासन और नीति (Governance & Policy)
- सरकारी नीतियाँ: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति, प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) आदि बाढ़ प्रभावितों की सहायता में कैसे भूमिका निभाते हैं।
- अंतर-राज्यीय समन्वय (Inter-state Coordination): जल संसाधनों के प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण के लिए राज्यों के बीच सहयोग की आवश्यकता।
- शहरी और ग्रामीण नियोजन: आपदा-लचीला बुनियादी ढाँचा (Disaster-Resilient Infrastructure) विकसित करने की आवश्यकता।
5. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव (Socio-Economic Impact)
- मानवीय लागत: जीवन की हानि, विस्थापन, मनोवैज्ञानिक आघात।
- आर्थिक लागत: बुनियादी ढाँचे की क्षति, कृषि में नुकसान, पर्यटन पर प्रभाव।
- गरीबी और भेद्यता: गरीब और कमजोर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
भविष्य की राह: कैसे तैयार रहें?
ये घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि जलवायु परिवर्तन के इस युग में चरम मौसमी घटनाएँ अधिक सामान्य हो सकती हैं। इसलिए, हमें न केवल प्रतिक्रियाशील बल्कि सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है:
- जलवायु-लचीली अवसंरचना (Climate-Resilient Infrastructure): ऐसे निर्माण जो चरम मौसम का सामना कर सकें।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण: वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन के लिए अधिक सटीक और समय पर चेतावनियाँ।
- सामुदायिक भागीदारी (Community Participation): स्थानीय समुदायों को आपदा तैयारियों में शामिल करना।
- आपदा बीमा (Disaster Insurance): किसानों और संपत्ति मालिकों के लिए बीमा योजनाओं का विस्तार।
- जलवायु परिवर्तन शमन (Climate Change Mitigation): ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक और राष्ट्रीय प्रयास।
- अनुकूलन रणनीतियाँ (Adaptation Strategies): बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अपनी जीवन शैली और कृषि पद्धतियों को अनुकूलित करना।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि हिमाचल में बादल फटना और राजस्थान में बाढ़ जैसी घटनाएँ अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि एक बड़ी तस्वीर का हिस्सा हैं जो अनियंत्रित मानसून, जलवायु परिवर्तन और हमारे अपर्याप्त आपदा प्रबंधन की ओर इशारा करती है। UPSC के उम्मीदवारों को इन घटनाओं के पीछे के वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आयामों को गहराई से समझना चाहिए ताकि वे प्रभावी नीति निर्माण और कार्यान्वयन में योगदान दे सकें।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. बादल फटना एक स्थानीयकृत, तीव्र वर्षा की घटना है।
2. पहाड़ी इलाकों में ओरोोग्राफिक प्रभाव बादल फटने की संभावना को बढ़ाता है।
3. बादल फटने के दौरान, वर्षा दर आमतौर पर 50 मिमी प्रति घंटा से अधिक होती है।
सही कथन चुनिए:
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a) 1 और 2
व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। बादल फटने की परिभाषा के लिए 100 मिमी प्रति घंटा एक सामान्य मानक है, हालांकि इसे कुछ संदर्भों में 50 मिमी प्रति घंटा से ऊपर भी माना जा सकता है। लेकिन, 100 मिमी प्रति घंटा अधिक स्वीकृत सीमा है। इसलिए, कथन 3 को पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता।
2. प्रश्न: भारत में मानसून की वर्षा के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. मानसून की शुरुआत और तीव्रता में वर्ष-दर-वर्ष भिन्नता देखी जाती है।
2. मानसून केवल नमी लाता है और इसका जलवायु परिवर्तन से कोई लेना-देना नहीं है।
3. राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र अचानक, तीव्र वर्षा के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
सही कथन चुनिए:
(a) 1 और 2
(b) 1 और 3
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) 1 और 3
व्याख्या: कथन 1 और 3 सही हैं। कथन 2 गलत है क्योंकि मानसून की तीव्रता और पैटर्न जलवायु परिवर्तन से दृढ़ता से जुड़े हुए हैं।
3. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा कारक पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटना को बढ़ा सकता है?
1. कम ऊँचाई पर उच्च तापमान
2. नमी से लदे बादलों का पहाड़ों से टकराना
3. अस्थिर वायुमंडल
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) 2 और 3
व्याख्या: नम हवा का पहाड़ों से टकराना (ओरोोग्राफिक प्रभाव) और अस्थिर वायुमंडल बादल फटने को बढ़ाते हैं। कम ऊँचाई पर उच्च तापमान (तापमान व्युत्क्रमण) आमतौर पर बारिश को रोक सकता है या कम कर सकता है, जब तक कि यह अस्थिरता पैदा न करे।
4. प्रश्न: भारत में बाढ़ प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सी एक ‘शमन’ (Mitigation) रणनीति है?
(a) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की तैनाती
(b) बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों का बचाव
(c) बाढ़ नियंत्रण तटबंधों (Embankments) का निर्माण
(d) प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) का संचालन
उत्तर: (c) बाढ़ नियंत्रण तटबंधों (Embankments) का निर्माण
व्याख्या: तटबंधों का निर्माण बाढ़ के प्रभाव को कम करने की एक शमन रणनीति है। (a), (b) और (d) क्रमशः प्रतिक्रिया, प्रतिक्रिया और तैयारी से संबंधित हैं।
5. प्रश्न: हालिया घटनाओं के अनुसार, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के लिए क्रमशः कौन सी दो प्रमुख आपदाएँ चर्चा में रहीं?
(a) भूस्खलन और चक्रवात
(b) बादल फटना और बाढ़
(c) भूकंप और सूखा
(d) भूस्खलन और भूस्खलन
उत्तर: (b) बादल फटना और बाढ़
व्याख्या: हिमाचल में बादल फटना और राजस्थान में बाढ़ प्रमुख घटनाएँ रहीं।
6. प्रश्न: भारत में चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) में वृद्धि के लिए निम्नलिखित में से किसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
1. जलवायु परिवर्तन
2. शहरीकरण
3. वनोन्मूलन (Deforestation)
(a) 1 और 2
(b) 1 और 3
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण (जैसे ‘हीट आइलैंड’ प्रभाव, जल निकासी में बाधा) और वनों की कटाई (जो मिट्टी के कटाव और बाढ़ को बढ़ाते हैं) सभी चरम मौसमी घटनाओं में योगदान कर सकते हैं।
7. प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का प्रमुख कार्य क्या है?
(a) केवल आपदा राहत सामग्री प्रदान करना
(b) आपदा प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय नीति का निर्माण और समन्वय करना
(c) केवल आपदाओं के कारण हुए नुकसान का आकलन करना
(d) आपदा पीड़ितों को सीधे वित्तीय सहायता वितरित करना
उत्तर: (b) आपदा प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय नीति का निर्माण और समन्वय करना
व्याख्या: NDMA एक नीति-निर्धारक और समन्वयकारी निकाय है।
8. प्रश्न: ‘अचानक बाढ़’ (Flash Flood) की विशेषता क्या है?
(a) यह धीरे-धीरे विकसित होती है और लंबे समय तक बनी रहती है।
(b) यह बहुत कम समय में अचानक और तीव्रता से आती है।
(c) यह मुख्य रूप से समुद्र तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करती है।
(d) यह केवल धीमी गति से बहने वाली नदियों के कारण होती है।
उत्तर: (b) यह बहुत कम समय में अचानक और तीव्रता से आती है।
व्याख्या: अचानक बाढ़ की मुख्य विशेषता उसकी गति और तीव्रता है, जो अक्सर बादल फटने या भारी वर्षा के कारण होती है।
9. प्रश्न: आपदा प्रबंधन के ‘तैयारी’ (Preparedness) चरण में निम्नलिखित में से कौन सी गतिविधि शामिल है?
1. जन जागरूकता अभियान चलाना
2. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना
3. निकासी मार्गों को चिन्हित करना
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या: ये सभी गतिविधियाँ आपदा से पहले की तैयारी का हिस्सा हैं।
10. प्रश्न: राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में अचानक बाढ़ का जोखिम बढ़ने के कारण क्या हैं?
1. भूमि का जल अवशोषित करने की क्षमता कम होना।
2. अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था।
3. पहाड़ी भू-भाग की उपस्थिति।
(a) 1 और 2
(b) 1 और 3
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a) 1 और 2
व्याख्या: शुष्क क्षेत्रों की मिट्टी पानी को आसानी से अवशोषित नहीं करती और उनकी जल निकासी व्यवस्था अक्सर भारी वर्षा के लिए डिज़ाइन नहीं की जाती। राजस्थान में पहाड़ी भू-भाग उतना प्रमुख कारक नहीं है जितना कि अन्य पहाड़ी राज्यों में।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: भारत में हाल के वर्षों में चरम मौसमी घटनाओं, जैसे बादल फटना और अत्यधिक वर्षा के कारण होने वाली बाढ़ में वृद्धि देखी गई है। इन घटनाओं के वैज्ञानिक कारणों का विश्लेषण करें और जलवायु परिवर्तन तथा भारत की आपदा प्रबंधन प्रणालियों की चुनौतियों पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
2. प्रश्न: प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में ‘शमन’, ‘तैयारी’, ‘प्रतिक्रिया’ और ‘पुनर्प्राप्ति’ चरणों के महत्व को समझाते हुए, बादल फटने और बाढ़ जैसी घटनाओं के संदर्भ में भारत की तैयारियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
3. प्रश्न: जलवायु परिवर्तन भारत के मानसून पैटर्न को कैसे प्रभावित कर रहा है, और इसके परिणामस्वरूप हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में बाढ़ और बादल फटने जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि को कैसे जोड़ा जा सकता है? (150 शब्द, 10 अंक)
4. प्रश्न: भारत में आपदा-लचीला बुनियादी ढाँचे (Disaster-Resilient Infrastructure) के निर्माण की क्या आवश्यकता है? शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लिए ऐसी रणनीतियों का सुझाव दें जो भविष्य में अतिवृष्टि और बाढ़ के प्रभाव को कम कर सकें। (150 शब्द, 10 अंक)