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5 कारण जिन्होंने स्वामी प्रसाद पर हमले को चर्चा में ला दिया | कानून, धर्म और राजनीति का द्वंद्व

5 कारण जिन्होंने स्वामी प्रसाद पर हमले को चर्चा में ला दिया | कानून, धर्म और राजनीति का द्वंद्व

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री, स्वामी प्रसाद मौर्य, पर एक हमला हुआ है। इस घटना ने देश भर में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। हमलावर द्वारा दिए गए बयान, जिसमें उसने मौर्य को “सनातन का अपमान” करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इसी कारण से हमला किया गया, ने इस घटना को और भी संवेदनशील बना दिया है। यह घटना न केवल एक राजनीतिक हस्ती पर व्यक्तिगत हमले का मामला है, बल्कि यह कानून-व्यवस्था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं, धार्मिक भावनाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन और राजनीतिक संवाद की प्रकृति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाती है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह घटना समसामयिक मामलों के विश्लेषण, राजव्यवस्था, समाजशास्त्र, आंतरिक सुरक्षा और नैतिकता जैसे विभिन्न जीएस पेपरों से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है।

घटना का संदर्भ: राजनीतिक हस्ती पर हमला

स्वामी प्रसाद मौर्य, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक जाना-पहचाना नाम हैं। वे कई बार विधायक रहे हैं और समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी सहित विभिन्न प्रमुख राजनीतिक दलों का हिस्सा रहे हैं। हाल ही में, वे समाजवादी पार्टी में हैं। उनका राजनीतिक करियर उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें अक्सर दल-बदल और बयानों के कारण चर्चा में रहना शामिल है।

जिस घटना ने उन्हें फिर से सुर्खियों में ला दिया, वह तब हुई जब वे एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। इस कार्यक्रम के दौरान, एक व्यक्ति ने उन पर हमला किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावर ने मौर्या पर धारदार हथियार से वार करने का प्रयास किया, हालांकि शुरुआती रिपोर्टों से यह स्पष्ट नहीं हो सका कि हमला कितना गंभीर था या क्या वे घायल हुए। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमलावर ने अपने कृत्य के पीछे की मंशा का भी खुलासा किया। उसने मौर्य पर “सनातन धर्म का अपमान” करने का आरोप लगाया और इसी को अपने हमले का कारण बताया। यह बयान घटना को व्यक्तिगत प्रतिशोध से परे एक विचारधारात्मक टकराव की ओर धकेलता है।

UPSC के दृष्टिकोण से घटना का महत्व: 5 प्रमुख आयाम

यह घटना केवल एक राजनीतिक व्यक्ति पर हुए हमले तक सीमित नहीं है। इसके भीतर कई परतें हैं जो UPSC परीक्षा के विभिन्न पहलुओं से सीधे तौर पर जुड़ती हैं। आइए, इन 5 प्रमुख आयामों पर विस्तार से चर्चा करें:

1. कानून-व्यवस्था और सार्वजनिक सुरक्षा (GS-Paper II & III)

किसी भी सभ्य समाज की नींव सुदृढ़ कानून-व्यवस्था पर टिकी होती है। एक सार्वजनिक हस्ती पर इस तरह का हमला, विशेष रूप से एक भीड़ भरे सार्वजनिक स्थान पर, कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

  • कानून का शासन (Rule of Law): क्या राज्य अपने नागरिकों को, चाहे वह कितना भी विवादास्पद क्यों न हो, सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है? किसी भी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। यदि कोई व्यक्ति किसी के विचारों या बयानों से असहमत है, तो उसे कानूनी और संवैधानिक दायरे में रहकर अपनी बात रखनी चाहिए।
  • सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा: ऐसे हमले सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा की खामियों को उजागर करते हैं। विशेष रूप से जब सार्वजनिक हस्तियां कार्यक्रमों में भाग ले रही हों, तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मजबूत प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है।
  • आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव: राजनीतिक हिंसा और व्यक्तिगत हमलों की यह प्रवृत्ति देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती है। यह समाज में असहिष्णुता और अराजकता को बढ़ावा दे सकती है।
  • जांच और जवाबदेही: इस मामले की निष्पक्ष और त्वरित जांच महत्वपूर्ण है। हमलावर की पहचान, उसके पीछे के संभावित गिरोह (यदि कोई हो), और उसके कृत्य के पीछे की गहरी मंशा का पता लगाना आवश्यक है। राज्य की यह जिम्मेदारी है कि वह न केवल दोषी को पकड़े, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि ऐसे कृत्यों की पुनरावृत्ति न हो।

उदाहरण: वर्ष 2017 में, गौरी लंकेश की हत्या, जो एक पत्रकार थीं, ने भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा पर व्यापक बहस छेड़ दी थी। ऐसे हमले राज्य की सुरक्षा तंत्र की क्षमता पर सवाल उठाते हैं।

2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम धार्मिक भावनाएँ (GS-Paper I & IV)

हमलावर का बयान सीधे तौर पर ‘सनातन धर्म का अपमान’ करने से जुड़ा है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता के बीच एक नाजुक संतुलन को दर्शाता है।

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression): भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। हालांकि, यह अधिकार असीमित नहीं है। अनुच्छेद 19(2) इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए ‘उचित प्रतिबंध’ (reasonable restrictions) लगाता है, जिसमें देश की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, शिष्टाचार, या अवमानना, मानहानि, या किसी अपराध के लिए उकसाना शामिल है।
  • धार्मिक भावनाओं का सम्मान: किसी भी धर्म, उसके प्रतीकों या मान्यताओं का सार्वजनिक रूप से अपमान करना, यदि वह ‘शांति व्यवस्था’ या ‘सार्वजनिक नैतिकता’ को बाधित करता है, तो उसे अनुच्छेद 19(2) के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है। हालांकि, ‘अपमान’ की परिभाषा अत्यंत व्यक्तिपरक हो सकती है।
  • सांस्कृतिक अतिवाद: जब धार्मिक भावनाएं इतनी प्रबल हो जाती हैं कि वे हिंसा को न्यायोचित ठहराने लगें, तो यह सांस्कृतिक अतिवाद का संकेत हो सकता है। ऐसे व्यक्ति या समूह मानते हैं कि उनके धर्म या संस्कृति का कोई भी आलोचना या विरोध असहनीय है और उसे हिंसक तरीके से दबाया जाना चाहिए।
  • धार्मिक नेताओं और सार्वजनिक हस्तियों की भूमिका: सार्वजनिक रूप से बोलने वाले व्यक्ति, विशेषकर राजनीतिक या धार्मिक प्रभाव वाले, अपने शब्दों के प्रति उत्तरदायी होते हैं। उनके बयानों से समाज में ध्रुवीकरण या हिंसा भड़क सकती है। इसी तरह, धार्मिक नेताओं को भी अपने अनुयायियों को संयम और शांति का संदेश देना चाहिए।

केस स्टडी: राम रथ यात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी द्वारा दिए गए भाषण, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को संगठित किया, लेकिन कुछ लोगों द्वारा इसे धार्मिक भावना भड़काने वाला भी माना गया। इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक व्यवस्था के बीच की रेखा पर बहस को जन्म दिया।

3. राजनीतिक संवाद और सांप्रदायिकता (GS-Paper II)

स्वामी प्रसाद मौर्य के सार्वजनिक बयानों का इतिहास भी विवादों से भरा रहा है, जिसमें उन्होंने हिंदू धर्म, देवी-देवताओं और अनुष्ठानों के बारे में विवादास्पद टिप्पणियां की हैं। यह घटना राजनीतिक संवाद में बढ़ते सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण का प्रतिबिंब हो सकती है।

  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: आज के राजनीतिक माहौल में, शब्दों को अक्सर राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। धार्मिक या सांप्रदायिक मुद्दे अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए उठाए जाते हैं, जिससे समाज में विभाजन पैदा होता है।
  • सांप्रदायिक सद्भाव: भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब राजनीतिक नेता अपने बयानों से किसी समुदाय की भावनाओं को आहत करते हैं, तो यह सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकता है।
  • “धर्म के नाम पर राजनीति”: यह घटना इस बात का उदाहरण है कि कैसे धर्म को राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनाया जा सकता है। मौर्य जैसे नेताओं के बयान, चाहे वे आलोचनात्मक हों या विवादास्पद, दूसरों को ‘धार्मिक रक्षक’ के रूप में कार्य करने के लिए उकसा सकते हैं।
  • लोकतांत्रिक संवाद का क्षरण: जब राजनीतिक संवाद विचारों के आदान-प्रदान के बजाय व्यक्तिगत हमलों, आरोपों औरCounter-आरोपों में बदल जाता है, तो यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

UPSC परिप्रेक्ष्य: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (NCR) में 1984 के सिख विरोधी दंगे या गुजरात दंगे (2002) जैसे ऐतिहासिक उदाहरण बताते हैं कि कैसे राजनीतिक रूप से भड़काऊ बयान सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दे सकते हैं।

4. न्यायपालिका की भूमिका और न्यायिक सक्रियता (GS-Paper II)

ऐसे मामलों में न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। अदालतें यह सुनिश्चित करती हैं कि कानून का शासन बना रहे और किसी भी प्रकार की हिंसा को बर्दाश्त न किया जाए।

  • कानून के तहत उपचार: यदि किसी व्यक्ति के विचारों से किसी को आपत्ति है, तो उसे कानूनी रास्तों पर चलना चाहिए, जैसे कि अदालत में मानहानि का मुकदमा दायर करना या यदि वह “सार्वजनिक व्यवस्था” को बाधित करता है तो संबंधित अधिकारियों से शिकायत करना।
  • न्यायिक हस्तक्षेप: सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने बार-बार कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कोई भी व्यक्ति कुछ भी कह सकता है जिससे किसी अन्य समुदाय या धर्म की भावनाएं आहत हों। अदालतें अक्सर ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करती हैं जहां सार्वजनिक व्यवस्था या सद्भाव बिगड़ने का खतरा होता है।
  • ‘सबक सिखाने’ की प्रवृत्ति: हमलावर की मंशा ‘सबक सिखाने’ की थी। यह प्रवृत्ति खतरनाक है क्योंकि यह कानून को अपने हाथ में लेने को प्रोत्साहित करती है। न्यायपालिका यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि ऐसे ‘आत्म-नियुक्त न्यायधीशों’ को रोका जाए।

प्रासंगिक मिसाल: ‘श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ’ (2015) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A को रद्द कर दिया था, जो ऑनलाइन अपमानजनक पोस्ट के लिए कठोर दंड का प्रावधान करती थी। अदालत ने कहा था कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यापक रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए।

5. नैतिकता और सार्वजनिक जीवन (GS-Paper IV)

सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का प्रश्न सर्वोपरि है। नेताओं को न केवल कानून का पालन करना चाहिए, बल्कि उन्हें नैतिक उदाहरण भी स्थापित करना चाहिए।

  • नैतिक आचरण: सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्तियों से अपेक्षा की जाती है कि वे संयमित भाषा का प्रयोग करें और समाज में सद्भाव को बढ़ावा दें। उनके बयानों में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता होनी चाहिए।
  • चरित्र की कसौटी: ऐसे हमले सार्वजनिक जीवन में चरित्र की कसौटी साबित होते हैं। क्या नेता अपनी बात कहने के लिए सभ्य और तार्किक तरीके अपनाते हैं, या वे उत्तेजना और नफरत का सहारा लेते हैं?
  • अहिंसा का सिद्धांत: महात्मा गांधी ने अहिंसा को जीवन का सिद्धांत बनाया था। भले ही हम उस आदर्श को पूरी तरह से न अपना सकें, लेकिन किसी भी स्थिति में हिंसा का मार्ग अपनाना हमारे नैतिक मूल्यों के खिलाफ है।
  • धैर्य और सहिष्णुता: आधुनिक समाज में, विभिन्न विचारों और विश्वासों के लोग एक साथ रहते हैं। ऐसे में, धैर्य और सहिष्णुता अत्यंत आवश्यक गुण हैं। किसी भी व्यक्ति को केवल अपनी असहमति के कारण हिंसा का शिकार नहीं बनाया जा सकता।

उदाहरणात्मक सिद्धांत: ‘महानता की परीक्षा’ (The Greatness Test) नामक अवधारणा, जो सार्वजनिक अधिकारियों के व्यवहार से जुड़ी है, हमें सिखाती है कि नेता अपनी शक्ति का उपयोग लोगों की भलाई और समाज के उत्थान के लिए करें, न कि विभाजन और नफरत फैलाने के लिए।

आगे की राह: संतुलन और समाधान

इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

  • मजबूत कानून-व्यवस्था: सार्वजनिक हस्तियों और आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और सुरक्षा तंत्र को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • संवाद का मंच: विभिन्न समुदायों और राजनीतिक दलों के बीच खुले और स्वस्थ संवाद को बढ़ावा देना चाहिए ताकि गलतफहमियों और शिकायतों को दूर किया जा सके।
  • मीडिया की भूमिका: मीडिया को सनसनी फैलाने के बजाय तथ्यों को निष्पक्षता से प्रस्तुत करना चाहिए और ऐसे संवादों को बढ़ावा देना चाहिए जो समाज में शांति और समझ लाएं।
  • शिक्षा और जागरूकता: नागरिकों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों, साथ ही कानून के शासन और सहिष्णुता के महत्व के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
  • राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी: राजनीतिक नेताओं को अपने बयानों में संयम बरतना चाहिए और समुदाय के बीच एकता को बढ़ावा देने वाली भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

स्वामी प्रसाद मौर्य पर हमला और उसके पीछे के कारणों का दावा, भारतीय समाज में जटिल अंतर्निहित तनावों को उजागर करता है। यह एक ऐसा अवसर है जब हमें न केवल कानून-व्यवस्था के बारे में सोचना चाहिए, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक सहिष्णुता, राजनीतिक जिम्मेदारी और अंततः, एक ऐसे समाज के निर्माण के बारे में भी सोचना चाहिए जहां मतभेद हिंसा की ओर न ले जाएं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 19(1)(a)
    (c) अनुच्छेद 21
    (d) अनुच्छेद 25

    उत्तर: (b) अनुच्छेद 19(1)(a)
    व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। हालाँकि, इस अधिकार पर अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
  2. प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा एक कारण नहीं है जो अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘उचित प्रतिबंध’ लगा सकता है?
    (a) भारत की संप्रभुता और अखंडता
    (b) सभ्य व्यवहार (decency)
    (c) विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
    (d) किसी विशेष धार्मिक समुदाय का राजनीतिक सशक्तिकरण

    उत्तर: (d) किसी विशेष धार्मिक समुदाय का राजनीतिक सशक्तिकरण
    व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों में संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, शिष्टाचार, या अवमानना, मानहानि, या किसी अपराध के लिए उकसाना शामिल है। किसी समुदाय का राजनीतिक सशक्तिकरण इनमें से कोई भी नहीं है।
  3. प्रश्न 3: किसी सार्वजनिक हस्ती पर हमले की घटना निम्नलिखित में से किस जीएस पेपर के लिए प्रासंगिक है?
    1. भारतीय समाज (GS-I)
    2. सरकार, राजव्यवस्था, शासन, सामाजिक न्याय (GS-II)
    3. आंतरिक सुरक्षा (GS-III)
    4. नीतिशास्त्र और सत्यनिष्ठा (GS-IV)
    सही कूट का प्रयोग करें:
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2, 3 और 4
    (c) केवल 1, 2 और 3
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (d) 1, 2, 3 और 4
    व्याख्या: यह घटना समाज में राजनीतिक हिंसा (GS-I), कानून-व्यवस्था और शासन (GS-II), आंतरिक सुरक्षा (GS-III), और सार्वजनिक जीवन में नैतिकता (GS-IV) से संबंधित है।
  4. प्रश्न 4: ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularism) के भारतीय संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सबसे उपयुक्त है?
    (a) राज्य सभी धर्मों को समान दूरी बनाए रखता है और व्यक्तिगत धर्म का अभ्यास नहीं करता है।
    (b) राज्य सभी धर्मों को संरक्षण और समर्थन देता है, और आवश्यकतानुसार सभी में हस्तक्षेप कर सकता है।
    (c) राज्य पूरी तरह से अधार्मिक (atheist) है और सभी धर्मों का विरोधी है।
    (d) राज्य किसी एक प्रमुख धर्म को बढ़ावा देता है।

    उत्तर: (b) राज्य सभी धर्मों को संरक्षण और समर्थन देता है, और आवश्यकतानुसार सभी में हस्तक्षेप कर सकता है।
    व्याख्या: भारतीय धर्मनिरपेक्षता ‘सभी के प्रति समान सम्मान’ (Sarva Dharma Sama Bhava) के सिद्धांत पर आधारित है, जहां राज्य सभी धर्मों को समान मानता है और आवश्यकता पड़ने पर उनके आंतरिक मामलों में सुधार के लिए हस्तक्षेप कर सकता है (जैसे सती प्रथा का उन्मूलन)।
  5. प्रश्न 5: ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ (Public Order) के संबंध में, भारतीय संविधान के अनुसार निम्नलिखित में से कौन सा सत्य है?
    (a) यह एक असीमित अधिकार है जिसे किसी भी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।
    (b) यह राज्य सूची का विषय है और केवल राज्य सरकार ही इसे बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है।
    (c) इस पर अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
    (d) इसका अर्थ केवल दंगे और अशांति को रोकना है।

    उत्तर: (c) इस पर अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
    व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों में से एक के रूप में ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ का उल्लेख करता है।
  6. प्रश्न 6: स्वामी प्रसाद मौर्य किस राजनीतिक दल से जुड़े रहे हैं?
    (a) भारतीय जनता पार्टी (BJP)
    (b) बहुजन समाज पार्टी (BSP)
    (c) समाजवादी पार्टी (SP)
    (d) ये सभी

    उत्तर: (d) ये सभी
    व्याख्या: स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने राजनीतिक करियर में भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और हाल ही में समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया है।
  7. प्रश्न 7: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद ‘कानून के समक्ष समानता’ (Equality before law) और ‘कानूनों का समान संरक्षण’ (Equal protection of laws) प्रदान करता है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 15
    (c) अनुच्छेद 16
    (d) अनुच्छेद 17

    उत्तर: (a) अनुच्छेद 14
    व्याख्या: अनुच्छेद 14 भारतीय नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण का अधिकार देता है।
  8. प्रश्न 8: ‘कानून अपने हाथ में लेना’ (Taking law into one’s own hands) निम्नलिखित में से किस नैतिक सिद्धांत के विपरीत है?
    (a) सहिष्णुता
    (b) अहिंसा
    (c) न्याय का शासन
    (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
    व्याख्या: कानून अपने हाथ में लेना सहिष्णुता (दूसरों के विचारों को स्वीकार करना), अहिंसा (शांतिपूर्ण तरीकों का पालन करना) और न्याय के शासन (कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना) के सिद्धांतों के विपरीत है।
  9. प्रश्न 9: किसी व्यक्ति के विचारों से असहमत होने पर, भारतीय कानून के अनुसार क्या एक उचित प्रतिक्रिया होगी?
    (a) उस व्यक्ति पर हमला करना।
    (b) उस व्यक्ति के खिलाफ सोशल मीडिया पर झूठी अफवाहें फैलाना।
    (c) कानूनी माध्यमों से (जैसे मानहानि का मुकदमा) अपनी बात रखना।
    (d) सार्वजनिक रूप से उस व्यक्ति का बहिष्कार करना।

    उत्तर: (c) कानूनी माध्यमों से (जैसे मानहानि का मुकदमा) अपनी बात रखना।
    व्याख्या: असहमति व्यक्त करने या आहत भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कानूनी और संवैधानिक तरीके उपलब्ध हैं, न कि हिंसा या मनमानी कार्रवाई।
  10. प्रश्न 10: ‘धार्मिक भावनाएं भड़काना’ (Incitement to religious hatred) किस हद तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षित है?
    (a) पूरी तरह से संरक्षित है।
    (b) पूरी तरह से संरक्षित नहीं है, और इसे अनुच्छेद 19(2) के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है।
    (c) केवल तब प्रतिबंधित है जब यह हिंसा का रूप ले ले।
    (d) हमेशा संरक्षित है यदि यह किसी सार्वजनिक व्यक्ति के बारे में हो।

    उत्तर: (b) पूरी तरह से संरक्षित नहीं है, और इसे अनुच्छेद 19(2) के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है।
    व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) के तहत ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ और ‘किसी अपराध के लिए उकसाना’ जैसे आधारों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिसमें धार्मिक भावनाएं भड़काना भी शामिल हो सकता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: “भारत में, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों का औचित्य अक्सर सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के संरक्षण से जुड़ा होता है। स्वामी प्रसाद मौर्य पर हुए हालिया हमले और उसके पीछे के दावों के संदर्भ में, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ और ‘धार्मिक भावनाओं की संवेदनशीलता’ के बीच संतुलन साधने की चुनौतियों का विश्लेषण करें।” (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: “कानून का शासन बनाए रखने और राजनीतिक हिंसा को रोकने के लिए राज्य की जिम्मेदारी सर्वोपरि है। उत्तर प्रदेश में पूर्व मंत्री पर हुए हमले की घटना को ध्यान में रखते हुए, सार्वजनिक हस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और नागरिकों को कानून हाथ में लेने से रोकने के लिए आवश्यक कदमों पर प्रकाश डालिए।” (150 शब्द, 10 अंक)
  3. प्रश्न 3: “भारतीय राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक बहसों के युग में, सार्वजनिक नेताओं के शब्दों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे नेताओं के नैतिक आचरण और जिम्मेदारी के महत्व पर चर्चा करें, विशेषकर जब उनके बयानों से तनाव बढ़ सकता है।” (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न 4: “न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के तहत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सार्वजनिक व्यवस्था और धार्मिक सद्भाव के संरक्षण में प्रत्येक की क्या भूमिका है? हाल की घटनाओं के आलोक में स्पष्ट करें।” (250 शब्द, 15 अंक)

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