34 सेकंड की तबाही: उत्तराखंड में बादल फटा, सेना कैंप बहा, 4 की मौत, 50 से ज्यादा लापता
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, उत्तराखंड राज्य के धराली क्षेत्र में दो अलग-अलग स्थानों पर अचानक बादल फटने की एक विनाशकारी घटना ने तबाही मचाई। इस अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदा में कम से कम चार लोगों की जान चली गई, जबकि एक सेना के कैंप सहित कई ढाँचे बह गए। विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि इस घटना में 10 जवानों सहित 50 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। यह घटना, जो केवल 34 सेकंड की अवधि में घटित हुई, उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और मानवीय जीवन की नाजुकता पर एक गंभीर सवाल उठाती है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, यह घटना भारत के भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक कल्याण जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
उत्तराखंड की धराली त्रासदी: एक संपूर्ण विश्लेषण
उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऊंचे पर्वतों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यह राज्य भूगर्भीय रूप से भी अत्यंत संवेदनशील है। हिमालय की गोद में बसा होने के कारण, यह बार-बार प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ का सामना करता है। धराली त्रासदी, एक बादल फटने की घटना, इसी संवेदनशीलता का एक और मार्मिक उदाहरण है।
बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?)
सबसे पहले, यह समझना महत्वपूर्ण है कि ‘बादल फटना’ (Cloudburst) एक ऐसी घटना है जिसमें बहुत ही कम समय में, एक विशेष क्षेत्र में, अत्यंत भारी वर्षा होती है। मौसम विज्ञान की भाषा में, इसे आमतौर पर 100 मिमी (लगभग 4 इंच) प्रति घंटे से अधिक वर्षा के रूप में परिभाषित किया जाता है। लेकिन, जब यह पहाड़ी इलाकों में होता है, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण पानी की विनाशकारी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
* **कैसे होता है?** बादल फटना तब होता है जब हवा की धाराएं किसी पहाड़ी बाधा से टकराकर ऊपर उठने के लिए मजबूर होती हैं। यह हवा अचानक ठंडी होती है, जिससे उसमें मौजूद जलवाष्प तेजी से संघनित होकर भारी मात्रा में पानी की बूंदें या बर्फ के कण बनाती है। जब यह बादल वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण अपनी जल धारण क्षमता से अधिक हो जाता है, तो भारी मात्रा में पानी एक साथ नीचे गिरता है।
* **पहाड़ी इलाकों में प्रभाव:** मैदानी इलाकों की तुलना में, पहाड़ी इलाकों में बादल फटने का प्रभाव कहीं अधिक विनाशकारी होता है। तीव्र ढलान वाले क्षेत्र पानी के बहाव को और तेज कर देते हैं, जिससे न केवल बाढ़ आती है, बल्कि भूस्खलन (Landslides) और मलबा (Debris) भी नीचे की ओर तेजी से खिसकता है। यह मलबा अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को नष्ट कर देता है, जिसमें सड़कें, पुल, घर और यहां तक कि सेना के कैंप भी शामिल हो सकते हैं, जैसा कि धराली की घटना में देखा गया।
धराली त्रासदी का विवरण: 34 सेकंड की तबाही
समाचारों के अनुसार, धराली क्षेत्र में 34 सेकंड की एक छोटी सी अवधि में दो स्थानों पर बादल फटने की घटना हुई। इस अत्यंत तीव्र और विनाशकारी घटना के परिणाम भयावह थे:
* **जनहानि:** कम से कम 4 लोगों की तत्काल मृत्यु हो गई।
* **लापता:** सबसे चिंताजनक पहलू 10 जवानों सहित 50 से अधिक लोगों का लापता होना है। यह लापता लोगों की संख्या इस घटना की गंभीरता को दर्शाती है। लापता लोगों में नागरिक और सेना दोनों शामिल हो सकते हैं, जो बचाव कार्यों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं।
* **सैन्य कैंप का बहाव:** एक सेना के कैंप का पूरी तरह से बह जाना इस बात का प्रमाण है कि पानी का बहाव कितना प्रचंड था। यह घटना न केवल सैनिकों के जीवन के लिए खतरा थी, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में अवसंरचना और सुरक्षा तैयारियों पर भी सवाल उठाती है।
* **बड़े पैमाने पर विनाश:** सड़कों, पुलों, घरों और अन्य बुनियादी ढाँचे को भारी नुकसान हुआ है, जिससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा आ रही है।
कारण और पृष्ठभूमि (Causes and Background)
इस प्रकार की घटनाओं के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारक शामिल हैं:
1. **जलवायु परिवर्तन (Climate Change):**
* **बढ़ी हुई तीव्रता:** अध्ययनों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। इसमें भारी वर्षा और बादल फटने की घटनाएं शामिल हैं।
* **तापमान वृद्धि:** वैश्विक तापमान में वृद्धि से वायुमंडल में अधिक नमी धारण करने की क्षमता बढ़ती है, जिससे भारी वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
* **अनियमित वर्षा पैटर्न:** जलवायु परिवर्तन वर्षा के पैटर्न को भी अनियमित बना रहा है, जिससे कुछ क्षेत्रों में अचानक भारी वर्षा और कुछ में सूखा पड़ रहा है।
2. **भूगर्भीय संवेदनशीलता (Geological Vulnerability):**
* **हिमालयी क्षेत्र:** उत्तराखंड हिमालय क्षेत्र का हिस्सा है, जो भूगर्भीय रूप से सक्रिय और युवा पर्वत श्रृंखला है। इसकी संरचना कमजोर है, जिससे भूस्खलन और मिट्टी के खिसकने की प्रवृत्ति अधिक होती है।
* **वनस्पति का क्षरण:** वनों की कटाई और निर्माण गतिविधियों के कारण पहाड़ी ढलानों पर वनस्पति आवरण कम हो जाता है। वनस्पति मिट्टी को बांधे रखने में मदद करती है; इसके अभाव में, ढलान अस्थिर हो जाते हैं और पानी के बहाव से आसानी से कट जाते हैं।
3. **मानवीय गतिविधियाँ (Human Activities):**
* **अनियोजित शहरीकरण/निर्माण:** पहाड़ी इलाकों में अनियोजित निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण, और बांधों का निर्माण अक्सर प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बाधित करता है और ढलानों को अस्थिर करता है।
* **संवेदनशील क्षेत्रों में बसावट:** ऐसे क्षेत्रों में बसावट करना जो प्राकृतिक रूप से जोखिम वाले हैं (जैसे नदी घाटियों के करीब या खड़ी ढलानों पर) आपदाओं के जोखिम को और बढ़ा देता है।
* **पर्यटन का प्रभाव:** अनियंत्रित पर्यटन भी नाजुक पहाड़ी पारिस्थितिक तंत्र पर दबाव डालता है।
### भूस्खलन और मलबे का बहाव (Landslides and Debris Flow)
बादल फटने की घटना अक्सर भारी मात्रा में भूस्खलन और मलबे के बहाव को ट्रिगर करती है। यह मलबे का बहाव, जिसे ‘डेब्रिस फ्लो’ (Debris Flow) कहा जाता है, पानी, मिट्टी, चट्टानों, पेड़ों और अन्य मलबे का एक तेजी से बहने वाला मिश्रण होता है।
* **अत्यधिक विनाशकारी:** ये प्रवाह अपनी उच्च गति और घनत्व के कारण अत्यंत विनाशकारी होते हैं। वे अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चीज़ को कुचल सकते हैं और दफन कर सकते हैं।
* **स्थानीयकरण:** यह समझना महत्वपूर्ण है कि बादल फटना आमतौर पर एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र को प्रभावित करता है, लेकिन उस क्षेत्र में इसका प्रभाव अत्यंत तीव्र और विनाशकारी होता है।
### बचाव और राहत कार्य (Rescue and Relief Operations)
इस प्रकार की आपदा के बाद, बचाव और राहत कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होते हैं।
* **चुनौतियाँ:**
* **पहुँच:** टूटी हुई सड़कें, पुल और भूस्खलन बचाव टीमों के लिए प्रभावित क्षेत्रों तक पहुँचना कठिन बना देते हैं।
* **मौसम:** खराब मौसम बचाव कार्यों में और बाधा डाल सकता है।
* **लापता लोगों की खोज:** लापता लोगों की तलाश, खासकर जब मलबा जमा हो गया हो, एक अत्यंत कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया है।
* **अतिरिक्त जोखिम:** बचाव दल भी अस्थिर ढलानों और अप्रत्याशित जल प्रवाह के कारण अतिरिक्त जोखिम में होते हैं।
* **संचार:** संचार लाइनों के टूटने से समन्वय मुश्किल हो जाता है।
* **प्रयुक्त तकनीकें:**
* **हेलीकॉप्टर:** जहाँ सड़कें बंद हों, वहाँ पहुँचने के लिए हेलीकॉप्टरों का उपयोग किया जाता है।
* **ड्रोन:** ड्रोन का उपयोग प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करने, लापता लोगों का पता लगाने और जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिए किया जा रहा है।
* **विशेषज्ञ टीमें:** राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) जैसी विशेषज्ञ टीमें बचाव कार्यों का नेतृत्व करती हैं।
* **स्थानीय सहायता:** स्थानीय लोगों की जानकारी और सहायता भी बचाव प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
### UPSC के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)
यह त्रासदी UPSC परीक्षा के विभिन्न वर्गों के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है:
* **प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):**
* **भूगोल:** भारत का भूगोल, हिमालयी भूविज्ञान, नदियाँ, पर्वत श्रृंखलाएँ, जलवायु।
* **पर्यावरण:** जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी, पर्यावरण प्रदूषण, वनस्पति आवरण का महत्व।
* **विज्ञान और प्रौद्योगिकी:** मौसम विज्ञान, रिमोट सेंसिंग, ड्रोन तकनीक, आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली।
* **आंतरिक सुरक्षा:** सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा, अवसंरचना की भेद्यता।
* **मुख्य परीक्षा (Mains):**
* **GS-I (भूगोल):** बादल फटना, भूस्खलन, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं और उनके कारण, प्रभाव और प्रबंधन।
* **GS-I (समाज):** पहाड़ी समुदायों पर आपदाओं का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, पुनर्वास और पुनर्निर्माण।
* **GS-III (पर्यावरण):** जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती चरम मौसमी घटनाएं, भारत में आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ और उपाय।
* **GS-III (आंतरिक सुरक्षा):** पहाड़ी क्षेत्रों में अवसंरचनात्मक सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा पर आपदाओं का प्रभाव।
* **GS-III (विज्ञान और प्रौद्योगिकी):** आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली, आधुनिक तकनीक का उपयोग (जैसे सैटेलाइट इमेजिंग, GIS, ड्रोन) आपदा प्रबंधन में।
* **GS-IV (नीतिशास्त्र):** आपदा प्रबंधन में नेतृत्व, निर्णय लेना, मानवीय संवेदनशीलता, शासन की भूमिका।
### चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Way Forward)
इस प्रकार की त्रासदियों से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
1. **आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):**
* **मजबूतीकरण:** पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अधिक सटीक और स्थानीयकृत मौसम पूर्वानुमान, विशेष रूप से बादल फटने की भविष्यवाणी के लिए।
* **प्रौद्योगिकी का उपयोग:** डॉप्लर रडार, उपग्रह इमेजरी, और जमीनी सेंसर का बेहतर उपयोग।
* **प्रसार:** चेतावनियों को स्थानीय समुदायों तक प्रभावी ढंग से पहुँचाने के लिए एक मजबूत संचार नेटवर्क (जैसे मोबाइल अलर्ट, लाउडस्पीकर)।
2. **भूमि उपयोग योजना और विनियमन (Land Use Planning and Regulation):**
* **जोखिम-आधारित विकास:** संवेदनशील और जोखिम वाले क्षेत्रों में निर्माण और विकास गतिविधियों पर सख्त प्रतिबंध।
* **पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESZs):** ऐसे क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के निर्माण या अनियोजित विकास को रोकना।
* **वन संरक्षण:** वनों की कटाई को रोकना और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना ताकि ढलान स्थिर रहें।
3. **अवसंरचना का निर्माण (Infrastructure Development):**
* **आपदा-प्रतिरोधी डिजाइन:** सड़कों, पुलों और इमारतों का निर्माण ऐसे मानकों पर किया जाना चाहिए जो भूस्खलन और बाढ़ का सामना कर सकें।
* **जल निकासी प्रबंधन:** प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बनाए रखना और आवश्यकतानुसार आधुनिक जल निकासी संरचनाओं का निर्माण करना।
4. **सामुदायिक सहभागिता और क्षमता निर्माण (Community Participation and Capacity Building):**
* **जागरूकता:** स्थानीय समुदायों को आपदाओं के जोखिमों और उनसे बचाव के तरीकों के बारे में शिक्षित करना।
* **प्रशिक्षण:** समुदायों को प्राथमिक उपचार, प्रारंभिक बचाव कार्य और सुरक्षित स्थानों पर जाने के बारे में प्रशिक्षित करना।
* **स्थानीय ज्ञान:** पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तरीकों के साथ एकीकृत करना।
5. **आपदा प्रबंधन के लिए संस्थागत तंत्र (Institutional Mechanisms for Disaster Management):**
* **समन्वय:** विभिन्न सरकारी एजेंसियों, सेना, एन.डी.आर.एफ., एस.डी.आर.एफ. और गैर-सरकारी संगठनों के बीच बेहतर समन्वय।
* **बजटीय आवंटन:** आपदा प्रबंधन, तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त धन का आवंटन।
* **नीति और कानून:** आपदा प्रबंधन से संबंधित मौजूदा नीतियों और कानूनों की नियमित समीक्षा और अद्यतन।
6. **जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन (Climate Change Mitigation and Adaptation):**
* **लघु और दीर्घकालिक उपाय:** ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में भारत की भूमिका और साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाना।
**निष्कर्ष (Conclusion):**
उत्तराखंड के धराली में हुई बादल फटने की त्रासदी एक दुखद घटना है जो हमें प्रकृति की शक्ति और मानव जीवन की नाजुकता का अहसास कराती है। यह घटना एक गंभीर अनुस्मारक है कि जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस घटना का अध्ययन न केवल भूविज्ञान, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन जैसे विषयों की गहरी समझ प्रदान करता है, बल्कि शासन, नीति निर्माण और राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक आयामों को भी उजागर करता है। भविष्य में ऐसी त्रासदियों के प्रभाव को कम करने के लिए, हमें एक एकीकृत, प्रौद्योगिकी-संचालित और समुदाय-केंद्रित आपदा प्रबंधन रणनीति अपनाने की आवश्यकता है, जो शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के सभी चरणों को प्रभावी ढंग से संबोधित करे।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. **प्रश्न:** ‘बादल फटना’ (Cloudburst) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह एक ऐसी घटना है जिसमें बहुत ही कम समय में, एक विशेष क्षेत्र में, अत्यंत भारी वर्षा होती है।
2. आमतौर पर, प्रति घंटे 100 मिमी से अधिक वर्षा को बादल फटना माना जाता है।
3. पहाड़ी इलाकों में, गुरुत्वाकर्षण के कारण पानी की गति और विनाशकारी शक्ति बढ़ जाती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही कथन चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (d) 1, 2 और 3
**व्याख्या:** तीनों कथन बादल फटने की घटना के संदर्भ में सही हैं। यह अत्यंत तीव्र वर्षा की घटना है, जिसके लिए 100 मिमी/घंटा की वर्षा को एक मानक माना जाता है, और पहाड़ी क्षेत्रों में इसका प्रभाव गुरुत्वाकर्षण के कारण बढ़ जाता है।
2. **प्रश्न:** निम्नलिखित में से कौन सा कारक किसी क्षेत्र में बादल फटने की घटना की संभावना को बढ़ा सकता है?
1. उच्च तापमान और वायुमंडल में अधिक नमी।
2. पहाड़ी बाधाओं से टकराने वाली हवा की धाराएँ।
3. वनस्पति आवरण में वृद्धि।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (a) केवल 1 और 2
**व्याख्या:** उच्च तापमान और नमी, तथा पहाड़ी बाधाओं से टकराने वाली हवाएँ बादल फटने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाती हैं। वनस्पति आवरण में वृद्धि भूस्खलन को रोक सकती है, न कि बादल फटने की संभावना को बढ़ा सकती है।
3. **प्रश्न:** ‘डेब्रिस फ्लो’ (Debris Flow) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह पानी, मिट्टी, चट्टानों और अन्य मलबे का एक तेजी से बहने वाला मिश्रण होता है।
2. यह आमतौर पर बादल फटने की घटनाओं के बाद ट्रिगर होता है।
3. यह धीमी गति से बहता है और कम विनाशकारी होता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही कथन चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (a) केवल 1 और 2
**व्याख्या:** डेब्रिस फ्लो पानी, मिट्टी, चट्टानों आदि का तेजी से बहने वाला मिश्रण होता है और अक्सर बादल फटने से ट्रिगर होता है। यह अत्यधिक विनाशकारी होता है, न कि धीमी गति से बहने वाला।
4. **प्रश्न:** हाल की धराली त्रासदी में निम्नलिखित में से किस अवसंरचना का नुकसान हुआ?
(a) केवल पुल
(b) केवल सड़कें
(c) सेना का कैंप
(d) उपरोक्त सभी
**उत्तर:** (c) सेना का कैंप
**व्याख्या:** समाचारों के अनुसार, धराली त्रासदी में सेना के कैंप सहित अन्य अवसंरचनाओं का भी नुकसान हुआ है, लेकिन सबसे प्रमुख रूप से सेना के कैंप के बहाव का उल्लेख है। विकल्प (d) केवल तभी सही होगा जब सभी सूचीबद्ध अवसंरचनाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख हो। हालाँकि, इस प्रश्न का उत्तर सीधे समाचार के मुख्य बिंदु से जुड़ा है।
5. **प्रश्न:** उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में वनस्पति आवरण की कमी से संबंधित निम्नलिखित में से कौन सा जोखिम बढ़ जाता है?
1. भूस्खलन
2. बाढ़
3. भूस्खलन के कारण मलबे का बहाव
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (d) 1, 2 और 3
**व्याख्या:** वनस्पति आवरण मिट्टी को बांधे रखने में मदद करता है। इसकी कमी से ढलान अस्थिर हो जाते हैं, जिससे भूस्खलन, बाढ़ (तेज बहाव के कारण) और भूस्खलन से मलबे का बहाव, तीनों का खतरा बढ़ जाता है।
6. **प्रश्न:** राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) केवल पूर्व चेतावनी जारी करना
(b) केवल राहत सामग्री पहुँचाना
(c) आपदाओं के दौरान विशिष्ट प्रतिक्रिया कार्यों को करना
(d) आपदा के बाद पुनर्वास योजनाएँ बनाना
**उत्तर:** (c) आपदाओं के दौरान विशिष्ट प्रतिक्रिया कार्यों को करना
**व्याख्या:** NDRF विशेष रूप से प्रशिक्षित है और आपदाओं के दौरान बचाव, राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए प्रतिक्रिया करता है।
7. **प्रश्न:** जलवायु परिवर्तन के कारण निम्नलिखित में से किस प्रकार की चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है?
1. भयानक तूफान
2. अत्यधिक वर्षा
3. लंबी अवधि का सूखा
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (d) 1, 2 और 3
**व्याख्या:** जलवायु परिवर्तन के कारण तूफानों, अत्यधिक वर्षा और सूखे जैसी सभी प्रकार की चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है।
8. **प्रश्न:** उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र की भूगर्भीय संवेदनशीलता के निम्नलिखित में से कौन से कारण हैं?
1. यह एक युवा और सक्रिय पर्वत श्रृंखला है।
2. यहां की चट्टानें और संरचनाएं अस्थिर हैं।
3. यहां टेक्टोनिक प्लेटों का सक्रिय मूवमेंट होता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (d) 1, 2 और 3
**व्याख्या:** हिमालयी क्षेत्र अपनी युवावस्था, सक्रिय टेक्टोनिक मूवमेंट और परिणामी भूगर्भीय अस्थिरता के कारण संवेदनशील है।
9. **प्रश्न:** आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कदम महत्वपूर्ण है?
1. केवल उच्च-तकनीकी उपकरणों का उपयोग।
2. स्थानीय समुदायों तक चेतावनियों का तीव्र और स्पष्ट प्रसार।
3. केवल सरकारी एजेंसियों के माध्यम से संचार।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (a) केवल 1 और 2
**व्याख्या:** प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणाली के लिए उच्च-तकनीक के साथ-साथ चेतावनियों को समुदायों तक पहुँचाने के प्रभावी माध्यम (जैसे मोबाइल अलर्ट, लाउडस्पीकर) भी आवश्यक हैं। संचार केवल सरकारी एजेंसियों तक सीमित नहीं होना चाहिए।
10. **प्रश्न:** ‘स्थिर ढलानों’ को बनाए रखने में वनस्पति आवरण की भूमिका क्या है?
(a) यह मिट्टी को बांधे रखने में मदद करता है।
(b) यह जल निकासी को बाधित करता है।
(c) यह भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाता है।
(d) यह गुरुत्वाकर्षण बल को कम करता है।
**उत्तर:** (a) यह मिट्टी को बांधे रखने में मदद करता है।
**व्याख्या:** वनस्पति की जड़ें मिट्टी को मजबूती से जकड़े रखती हैं, जिससे ढलानों की स्थिरता बनी रहती है और भूस्खलन का खतरा कम होता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. **प्रश्न:** “जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता, भारत जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को बढ़ा रही है।” इस कथन का विश्लेषण करें और भारत में आपदा प्रबंधन को मजबूत करने के लिए बहु-आयामी रणनीतियों का सुझाव दें। (250 शब्द, 15 अंक)
* **उत्तर की रूपरेखा:**
* परिचय: जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं के बीच संबंध।
* पहाड़ी क्षेत्रों पर प्रभाव: बादल फटना, भूस्खलन, बाढ़ – कारण और प्रभाव।
* भारत में विशिष्ट चुनौतियाँ: भूगर्भीय संवेदनशीलता, वनस्पति आवरण, अनियोजित विकास।
* आपदा प्रबंधन को मजबूत करने हेतु रणनीतियाँ:
* अर्ली वार्निंग सिस्टम।
* भूमि उपयोग योजना और नियमन।
* आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना।
* समुदाय-आधारित तैयारी और क्षमता निर्माण।
* अंतर-एजेंसी समन्वय।
* जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपाय।
* निष्कर्ष: एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण का महत्व।
2. **प्रश्न:** धराली त्रासदी, जिसमें एक सेना के कैंप सहित महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे का नुकसान हुआ, सीमावर्ती क्षेत्रों में अवसंरचनात्मक सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति उनकी भेद्यता पर प्रकाश डालती है। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव और ऐसे जोखिमों को कम करने के लिए उपायों की विवेचना करें। (250 शब्द, 15 अंक)
* **उत्तर की रूपरेखा:**
* परिचय: धराली त्रासदी का संक्षिप्त विवरण और अवसंरचनात्मक नुकसान।
* राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव:
* सैन्य अवसंरचना की भेद्यता।
* रसद और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान।
* सुरक्षा चौकियों की पहुँच का प्रभावित होना।
* स्थानीय आबादी की सुरक्षा पर प्रभाव।
* आर्थिक और सामाजिक स्थिरता पर दीर्घकालिक प्रभाव।
* जोखिम कम करने के उपाय:
* आपदा-रोधी निर्माण मानक।
* संवेदनशील क्षेत्रों का पूर्व-मूल्यांकन।
* आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएँ।
* बैकअप अवसंरचना।
* प्रौद्योगिकी का उपयोग (जैसे ड्रोन, सैटेलाइट मॉनिटरिंग)।
* जनजागरूकता और प्रशिक्षण।
* निष्कर्ष: सुरक्षा और विकास के बीच संतुलन।
3. **प्रश्न:** ‘आपदा प्रबंधन’ में ‘तैयारी’ (Preparedness) के चरण के महत्व पर चर्चा करें। धराली जैसी हालिया घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, भारत में आपदा पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक तकनीकी और संस्थागत सुधारों का सुझाव दें। (150 शब्द, 10 अंक)
* **उत्तर की रूपरेखा:**
* परिचय: आपदा प्रबंधन में तैयारी का महत्व (क्यों यह प्रतिक्रिया से अधिक महत्वपूर्ण है)।
* हाल की घटनाओं (धराली) का संदर्भ।
* पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाने हेतु सुझाव:
* तकनीकी सुधार: अधिक सटीक पूर्वानुमान मॉडल, डॉप्लर रडार का विस्तार, जमीनी सेंसर नेटवर्क, AI/ML का उपयोग।
* संस्थागत सुधार: विभिन्न एजेंसियों (मौसम विभाग, इसरो, NDRF, स्थानीय प्रशासन) के बीच बेहतर समन्वय, डेटा साझाकरण, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना, प्रारंभिक चेतावनी के प्रसार के लिए बहु-माध्यम संचार (मोबाइल अलर्ट, स्थानीय रेडियो, लाउडस्पीकर)।
* निष्कर्ष: एक मजबूत तैयारी प्रणाली जीवन बचाने और नुकसान को कम करने की कुंजी है।