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3 दिन भारी बारिश का अलर्ट: पहाड़ से मैदान तक बाढ़ का खतरा, नदियों का उग्र रूप! जानें UPSC के लिए सब कुछ

3 दिन भारी बारिश का अलर्ट: पहाड़ से मैदान तक बाढ़ का खतरा, नदियों का उग्र रूप! जानें UPSC के लिए सब कुछ

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में मौसम विभाग ने देश के कई हिस्सों, विशेषकर पहाड़ी इलाकों और मैदानी क्षेत्रों में अगले तीन दिनों के लिए भारी से अति भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। इस चेतावनी के साथ ही नदियों में जलस्तर बढ़ने और संभावित बाढ़ जैसी भयावह स्थितियों की आशंका भी जताई गई है। यह मौसमी घटनाक्रम न केवल आम जनजीवन को प्रभावित करता है, बल्कि इसके दूरगामी पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक परिणाम भी होते हैं। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के दृष्टिकोण से, यह विषय प्राकृतिक आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन प्रबंधन, और भारत की भौगोलिक संवेदनशीलता जैसे महत्वपूर्ण जीएस पेपर के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।

यह ब्लॉग पोस्ट आपको इस चेतावनी के पीछे के वैज्ञानिक कारणों, इसके संभावित प्रभावों, सरकारी प्रतिक्रियाओं और सबसे महत्वपूर्ण, UPSC परीक्षा के लिए इस विषय की तैयारी कैसे करें, इस पर एक विस्तृत और विश्लेषणात्मक अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।

बारिश का अलर्ट: विज्ञान और कारण (The Rain Alert: Science and Causes)

भारत में मानसून एक मौसमी पवन प्रणाली है जो हिंद महासागर से उपमहाद्वीप की ओर बहती है, अपने साथ भारी मात्रा में नमी लाती है और व्यापक वर्षा कराती है। हालांकि, विशेष रूप से भारी वर्षा की चेतावनी अक्सर मौसमी उतार-चढ़ाव या विशिष्ट मौसमी प्रणालियों के संयोजन का परिणाम होती है। इस विशेष अलर्ट के पीछे निम्नलिखित वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं:

  • पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances): हालांकि मुख्य रूप से सर्दियों में सक्रिय, कभी-कभी ये विक्षोभ मानसून के मौसम में भी कुछ क्षेत्रों, विशेषकर उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में अतिरिक्त वर्षा करा सकते हैं।
  • मानसून की सक्रियता (Monsoon Activity): मानसून ट्रफ (निम्न दबाव की रेखा) का हिमालय की तलहटी के पास स्थित होना, या उसका उत्तर की ओर खिसकना, पहाड़ी क्षेत्रों में भारी वर्षा का कारण बन सकता है।
  • निम्न दबाव क्षेत्र (Low-Pressure Areas) और अवदाब (Depressions): बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में बनने वाले निम्न दबाव क्षेत्र, जो अक्सर चक्रवातों में विकसित होते हैं, अपने साथ भारी मात्रा में नमी लाते हैं और तटीय और भीतरी इलाकों में मूसलाधार बारिश करा सकते हैं।
  • ऊपरी हवा का चक्रवाती परिसंचरण (Upper Air Cyclonic Circulation): वायुमंडल की ऊपरी परतों में बनने वाले ये तंत्र भी वर्षा के पैटर्न को प्रभावित कर सकते हैं।
  • स्थानीय कारक (Local Factors): पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक संरचना, जैसे घाटियाँ और ऊँची चोटियाँ, हवा को ऊपर की ओर धकेल सकती हैं, जिससे संघनन और वर्षा की तीव्रता बढ़ जाती है (ऑरोग्राफिक वर्षा – Orographic Rainfall)।

उदाहरण: 2013 में उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़, जिसे ‘केदारनाथ आपदा’ के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसे ही अत्यंत दुर्लभ मौसमी संयोग का परिणाम थी, जिसमें एक निम्न दबाव क्षेत्र, ऊपरी हवा का चक्रवाती परिसंचरण और अचानक भारी वर्षा का संयोजन हुआ था, जिसने स्थानीय भूगोल के साथ मिलकर विनाशकारी प्रभाव डाला।

पहाड़ से मैदान तक: प्रभाव का विस्तार (From Mountains to Plains: The Extent of Impact)

यह चेतावनी “पहाड़ से लेकर मैदान तक” का प्रभाव दर्शाती है, जिसका अर्थ है कि इस मौसमी घटना का असर दोनों ही भौगोलिक क्षेत्रों में गंभीर हो सकता है।

पहाड़ी क्षेत्रों पर प्रभाव (Impact on Hilly Regions):

  • भूस्खलन (Landslides): भारी बारिश मिट्टी को संतृप्त कर देती है, जिससे वह अस्थिर हो जाती है और चट्टानें या मिट्टी के बड़े हिस्से खिसकने लगते हैं। यह पहाड़ी सड़कों को अवरुद्ध कर सकता है, बस्तियों को खतरे में डाल सकता है और जान-माल का भारी नुकसान कर सकता है।
  • चानक बाढ़ (Flash Floods): तेज ढलान और संकरी घाटियों के कारण, पहाड़ी नदियों में जलस्तर बहुत तेजी से बढ़ सकता है, जिससे अचानक बाढ़ आ सकती है। ये बाढ़ अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा ले जाती हैं।
  • सड़कें और बुनियादी ढांचे का नुकसान: भूस्खलन और बाढ़ के कारण सड़कें, पुल और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जिससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा आती है और स्थानीय लोगों का बाहरी दुनिया से संपर्क टूट जाता है।
  • पर्यटन पर प्रभाव: भारी बारिश और प्राकृतिक आपदाओं की आशंका के कारण पर्यटन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचता है।

मैदानी क्षेत्रों पर प्रभाव (Impact on Plains):

  • नदियों का रौद्र रूप (Rivers Showing Fury): पहाड़ी इलाकों में हुई भारी वर्षा का पानी नदियों के माध्यम से मैदानी क्षेत्रों में बहता है। इससे नदियों के जलस्तर में खतरनाक वृद्धि होती है। यदि ये नदियाँ अपनी सामान्य क्षमता से अधिक बहने लगती हैं, तो वे किनारों को तोड़कर आसपास के इलाकों में बाढ़ ला सकती हैं।
  • जलोढ़ मैदानों में बाढ़ (Flooding in Floodplains): मैदानी इलाकों में नदियाँ चौड़ी और धीमी गति से बहती हैं। भारी मात्रा में आने वाला पानी उनके किनारों को लांघकर समतल, उपजाऊ जलोढ़ मैदानों में फैल जाता है, जिससे फसलें डूब जाती हैं और गांवों व शहरों में पानी घुस जाता है।
  • शहरी बाढ़ (Urban Flooding): शहरों में, खराब जल निकासी व्यवस्था (drainage systems) और अनियोजित शहरीकरण के कारण, भारी बारिश से जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सड़कें नदियों में बदल जाती हैं और निचले इलाकों में घरों में पानी भर जाता है।
  • कृषि पर प्रभाव: खड़ी फसलें पानी में डूब जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। मिट्टी का कटाव भी बढ़ जाता है।
  • पेयजल और स्वच्छता का संकट: बाढ़ का पानी पेयजल स्रोतों को दूषित कर सकता है, जिससे जलजनित बीमारियों (जैसे हैजा, टाइफाइड) का खतरा बढ़ जाता है। स्वच्छता व्यवस्था भी चरमरा जाती है।
  • परिवहन और संचार में बाधा: सड़कों, रेलवे लाइनों और संचार नेटवर्क के क्षतिग्रस्त होने से राहत कार्यों में देरी होती है और लोगों का संपर्क कट जाता है।

केस स्टडी: कोसी नदी (Kosi River) – “बिहार का अभिशाप” कही जाने वाली कोसी नदी, जब 2008 में अपने तटबंधों को तोड़कर बही, तो इसने बिहार के बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया। यह घटना भारी बारिश और नदी के पानी के अप्रत्याशित प्रवाह का एक भयानक उदाहरण है, जिसने लाखों लोगों को विस्थापित किया और भारी तबाही मचाई। यह मैदानी इलाकों में नदियों के रौद्र रूप का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

नदियों का उग्र रूप: एक गंभीर चिंता (The Fury of Rivers: A Serious Concern)

नदियों का उग्र रूप दिखने का अर्थ है कि वे अपने सामान्य प्रवाह को नियंत्रित करने वाले किनारों (embankments) या तटबंधों को लांघ रही हैं। इसके पीछे के कारण अक्सर:

  • अत्यधिक जल प्रवाह: वर्षा का पानी, विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों से आने वाला, इतनी अधिक मात्रा में होता है कि वह नदी की वहन क्षमता (carrying capacity) से अधिक हो जाता है।
  • तटबंधों का कमजोर होना: कई बार तटबंधों का रखरखाव ठीक से नहीं होता या वे पुराने हो जाते हैं, जिससे वे बढ़ते जल प्रवाह का सामना नहीं कर पाते और टूट जाते हैं।
  • जलाशयों से पानी छोड़ना: जब बड़े बांधों में पानी का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है, तो सुरक्षा कारणों से नीचे की ओर पानी छोड़ा जाता है, जिससे नदियों का प्रवाह बढ़ जाता है।
  • मलबा और गाद: नदियों में जमा मलबा और गाद (silt) भी उनके जल प्रवाह को बाधित कर सकते हैं, जिससे पानी का स्तर बढ़ जाता है।

UPSC प्रासंगिकता: भारत की बड़ी नदियाँ, जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, प्रायः मानसून के दौरान उग्र रूप धारण कर सकती हैं। यह न केवल जनजीवन के लिए खतरा है, बल्कि यह बाढ़-नियंत्रण, बांध सुरक्षा, जल विद्युत उत्पादन, और नदी जोड़ो परियोजनाओं जैसी नीतियों और परियोजनाओं के लिए एक बड़ी चुनौती भी है।

सरकारी प्रतिक्रिया और प्रबंधन (Government Response and Management)

इस तरह की चेतावनियों के जवाब में, सरकारें और संबंधित एजेंसियां ​​विभिन्न स्तरों पर कार्रवाई करती हैं:

  • मौसम पूर्वानुमान और चेतावनी: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और अन्य एजेंसियां ​​लगातार मौसम की निगरानी करती हैं और समय पर लोगों को सूचित करती हैं।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF): इन बलों को तैयार रखा जाता है ताकि वे बचाव और राहत कार्यों में तुरंत सहायता कर सकें।
  • तटबंधों की निगरानी और मरम्मत: सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग नदियों के तटबंधों की निगरानी करते हैं और आवश्यकतानुसार उनकी मरम्मत करते हैं।
  • जन जागरूकता अभियान: लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने, आवश्यक सामग्री जमा करने और स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • निकासी योजनाएँ (Evacuation Plans): अति संवेदनशील क्षेत्रों से लोगों को निकालने की तैयारी की जाती है।
  • आपदा राहत कोष: प्रभावित लोगों को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए राहत कोषों का उपयोग किया जाता है।

UPSC प्रासंगिकता: आपदा प्रबंधन (Disaster Management) जीएस-III का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सरकार की भूमिका, विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की प्रभावशीलता, और राहत एवं पुनर्वास के उपाय, ये सभी पहलू परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।

चुनौतियाँ (Challenges)

प्राकृतिक आपदाओं से निपटना कई चुनौतियों से भरा होता है:

  • प्रारंभिक चेतावनी की सटीकता: हालाँकि तकनीक उन्नत हुई है, फिर भी स्थानीयकृत और अत्यधिक सटीक पूर्वानुमान हमेशा संभव नहीं होता।
  • मानवीय भूल और अनियोजित विकास: लोग अक्सर चेतावनियों को अनदेखा कर देते हैं या बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण करते हैं, जिससे खतरा बढ़ जाता है।
  • संसाधनों की कमी: विशेषकर स्थानीय स्तर पर, आपदा प्रबंधन के लिए पर्याप्त उपकरण, प्रशिक्षित कर्मी और धन की कमी एक चुनौती हो सकती है।
  • समन्वय की कमी: विभिन्न सरकारी विभागों, एजेंसियों और स्थानीय निकायों के बीच प्रभावी समन्वय की कमी राहत कार्यों को बाधित कर सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम घटनाएँ (extreme weather events) अधिक बार और अधिक तीव्र हो रही हैं, जिससे पुराने प्रबंधन मॉडल अप्रभावी हो सकते हैं।

UPSC के लिए आगे की राह (The Way Forward for UPSC)

इस तरह के घटनाक्रम UPSC उम्मीदवारों के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण हैं:

  1. भौगोलिक समझ (Geographical Understanding): भारत की भौतिक विशेषताएँ, जैसे हिमालयी क्षेत्र, नदियाँ, तटीय मैदान, और उनका मौसमी वर्षा से संबंध।
  2. पर्यावरण (Environment): जलवायु परिवर्तन, इसके कारण और प्रभाव, और आर्द्रभूमि (wetlands) तथा जल निकासी प्रणालियों का महत्व।
  3. आपदा प्रबंधन (Disaster Management): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ढाँचा, NDMA (National Disaster Management Authority), NDRF, SDRF की भूमिका, जोखिम मूल्यांकन, शमन (mitigation) और तैयारी।
  4. सामाजिक प्रभाव (Social Impact): विस्थापन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आजीविका का नुकसान, और कमजोर वर्गों पर प्रभाव।
  5. आर्थिक प्रभाव (Economic Impact): कृषि, बुनियादी ढाँचा, पर्यटन और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव।
  6. शासन (Governance): सरकारी नीतियाँ, अंतर-राज्यीय जल विवाद, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग (जैसे साझा नदी बेसिन)।

ज्ञान कैसे बढ़ाएँ:

  • समाचार पत्र: नियमित रूप से प्रमुख समाचार पत्रों (जैसे The Hindu, Indian Express) में पर्यावरण, विज्ञान और राष्ट्रीय समाचारों पर ध्यान दें।
  • सरकारी रिपोर्ट: NDMA, IMD, और संबंधित मंत्रालयों की रिपोर्ट और प्रकाशन पढ़ें।
  • NCERT: भूगोल और पर्यावरण के लिए NCERT की पुस्तकें एक मजबूत आधार प्रदान करती हैं।
  • ऑनलाइन संसाधन: विश्वसनीय वेबसाइटों (जैसे Down to Earth, climate tracker) से जानकारी प्राप्त करें।

निष्कर्ष:

पहाड़ से लेकर मैदान तक भारी बारिश और नदियों के उग्र रूप दिखाने की चेतावनी केवल एक मौसम संबंधी घटना नहीं है, बल्कि यह भारत की भेद्यता (vulnerability) और भविष्य की चुनौतियों का एक संकेत है। UPSC के उम्मीदवारों के लिए, इस घटनाक्रम का अध्ययन न केवल करेंट अफेयर्स का हिस्सा है, बल्कि यह भारत के सामने मौजूद गहरी पर्यावरणीय, सामाजिक और विकासात्मक समस्याओं को समझने का एक अवसर भी है। प्रभावी आपदा प्रबंधन, टिकाऊ विकास और जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी प्रतिक्रियाएँ ही तय करेंगी कि हम भविष्य में ऐसी घटनाओं के प्रभाव को कितनी अच्छी तरह कम कर पाते हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित में से कौन सी प्रणाली भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है?

  1. जेट स्ट्रीम
  2. आईटीसीजेड (ITCZ) का स्थानांतरण
  3. पश्चिमी विक्षोभ
  4. स्थानीय तापीय प्रवणता

उत्तर: B
व्याख्या: ITCZ (Intertropical Convergence Zone) का मौसमी स्थानांतरण, विशेष रूप से ग्रीष्मकालीन मानसून की शुरुआत में, भारतीय उपमहाद्वीप में भारी वर्षा का मुख्य कारण है।

2. “ऑरोग्राफिक वर्षा” (Orographic Rainfall) से आप क्या समझते हैं?

  1. बादलों के अभिसरण से होने वाली वर्षा
  2. गर्म हवाओं के ऊपर उठने से होने वाली वर्षा
  3. पहाड़ों की अवरोधक क्रिया के कारण होने वाली वर्षा
  4. अनुकूल तापमान और आर्द्रता से होने वाली वर्षा

उत्तर: C
व्याख्या: ऑरोग्राफिक वर्षा तब होती है जब नमी वाली हवा किसी पर्वत श्रृंखला से टकराती है, ऊपर उठती है, ठंडी होती है, संघनित होती है और वर्षा करती है।

3. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष वैधानिक और योजना-निर्माण, कार्यान्वयन और समन्वयकारी निकाय है।
2. इसका गठन भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में किया गया है।
3. यह राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के गठन के लिए जिम्मेदार है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. 1 और 2
  2. 2 और 3
  3. 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: A
व्याख्या: NDMA एक वैधानिक निकाय है, लेकिन NDRF का गठन गृह मंत्रालय के तहत किया जाता है, हालांकि NDMA इसका समन्वय करता है। NDMA की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।

4. “चानक बाढ़” (Flash Flood) के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक सबसे अधिक उत्तरदायी है?

  1. नदी के डेल्टा क्षेत्र में लंबे समय तक बारिश
  2. अचानक भारी वर्षा के साथ छोटी, तेज ढलान वाली नदियों में जल प्रवाह का तेज होना
  3. मैदानी इलाकों में चौड़ी नदियों का धीरे-धीरे उफान पर आना
  4. अचानक बर्फ पिघलना

उत्तर: B
व्याख्या: अचानक बाढ़ तेज ढलान वाली नदियों में बहुत कम समय में भारी मात्रा में पानी जमा होने के कारण होती है, जो अक्सर तेज वर्षा का परिणाम होती है।

5. भूस्खलन (Landslides) के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक सबसे कम जिम्मेदार है?

  1. भारी वर्षा
  2. पहाड़ी ढलानों पर वृक्षारोपण की कमी
  3. भूकंपीय गतिविधि
  4. पहाड़ी ढलानों पर भारी मशीनों का अत्यधिक उपयोग

उत्तर: B
व्याख्या: वृक्षारोपण की कमी भूस्खलन को बढ़ा सकती है, लेकिन यह सबसे कम प्रत्यक्ष या प्राथमिक कारण है। भारी वर्षा, भूकंप और मानव गतिविधि (जैसे निर्माण) अधिक प्रत्यक्ष कारण हैं।

6. “बाढ़-प्रवण क्षेत्र” (Flood-prone areas) के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कथन सबसे सटीक है?

  1. केवल वे क्षेत्र जो नदियों के पास स्थित हैं।
  2. वे क्षेत्र जहाँ भारी वर्षा होती है, चाहे वे किसी नदी के पास हों या न हों।
  3. वे क्षेत्र जो नदियों के किनारे या उनके जल ग्रहण क्षेत्रों (catchment areas) में स्थित हैं, जहाँ अत्यधिक वर्षा या अन्य कारणों से बाढ़ का खतरा बना रहता है।
  4. केवल तटीय क्षेत्र जो समुद्र से प्रभावित होते हैं।

उत्तर: C
व्याख्या: बाढ़-प्रवण क्षेत्र वे हैं जो नदियों के उफान, अतिवृष्टि, या अन्य कारणों से जलमग्न हो सकते हैं, जिसमें उनके जलग्रहण क्षेत्र भी शामिल हैं।

7. शहरी बाढ़ (Urban Flooding) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रमुख कारण नहीं है?

  1. खराब जल निकासी व्यवस्था
  2. अनियोजित शहरीकरण और कंक्रीट संरचनाओं का अत्यधिक विस्तार
  3. भूमि की बढ़ी हुई पारगम्यता (permeability)
  4. वर्षा जल को अवशोषित करने वाली हरियाली की कमी

उत्तर: C
व्याख्या: भूमि की बढ़ी हुई पारगम्यता (जैसे मिट्टी और घास) शहरी बाढ़ को कम करती है। कंक्रीट जैसी अभेद्य सतहें इसे बढ़ाती हैं।

8. निम्नलिखित में से कौन सा सरकारी निकाय भारत में मौसम संबंधी पूर्वानुमानों और चेतावनियों के लिए जिम्मेदार है?

  1. केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission)
  2. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India)
  3. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department)
  4. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)

उत्तर: C
व्याख्या: IMD भारत में मौसम संबंधी सभी पूर्वानुमानों और चेतावनियों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

9. बाढ़ के मैदानों (Floodplains) का क्या महत्व है?
1. ये उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से समृद्ध होते हैं, जो कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं।
2. ये अतिरिक्त वर्षा जल को अवशोषित करके बाढ़ के प्रभाव को कम करने में प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करते हैं।
3. ये नदी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. 1 और 2
  2. 2 और 3
  3. 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: D
व्याख्या: बाढ़ के मैदान कृषि, जल अवशोषण और जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

10. “आपदा शमन” (Disaster Mitigation) का सबसे अच्छा वर्णन कौन सा है?

  1. आपदा के बाद तत्काल राहत प्रदान करना।
  2. आपदा के कारण होने वाले नुकसान या प्रभाव को कम करने के लिए पहले से किए जाने वाले उपाय।
  3. आपदा से प्रभावित लोगों को पुनर्वासित करना।
  4. आपदा की घटना होने पर त्वरित प्रतिक्रिया देना।

उत्तर: B
व्याख्या: शमन का अर्थ है किसी घटना के नकारात्मक प्रभावों को पहले से कम करना, जैसे बिल्डिंग कोड मजबूत करना या चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भारत में मौसमी वर्षा की तीव्रता और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में वृद्धि के पीछे भू-जलवायु (geo-climatic) और मानवजनित (anthropogenic) कारणों का विश्लेषण करें। प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिए सरकार की भूमिका और चुनौतियों पर चर्चा करें।
2. “पहाड़ों से लेकर मैदानों तक” भारी बारिश के अलर्ट का भौगोलिक और पर्यावरणीय प्रभाव काफी भिन्न होता है। इन विभिन्न प्रभावों का विस्तार से वर्णन करें और नदियों के “रौद्र रूप” के संदर्भ में इसके परिणामों का मूल्यांकन करें।
3. भारत में बाढ़ के मैदानों (floodplains) का दोहरा महत्व है: वे कृषि के लिए उपजाऊ भूमि प्रदान करते हैं और बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में शहरीकरण और अवसंरचनात्मक विकास के बढ़ते दबाव को देखते हुए, इन बाढ़ के मैदानों के टिकाऊ प्रबंधन के लिए नीतियाँ और रणनीतियाँ सुझाएँ।
4. जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के आलोक में, भारत को अपनी आपदा प्रबंधन क्षमताओं को कैसे मजबूत करना चाहिए? विशेष रूप से, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, बुनियादी ढाँचे के लचीलेपन (resilience) और सामुदायिक भागीदारी के संबंध में सुधार के क्षेत्रों की पहचान करें।

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