28 जुलाई को बड़ा फैसला: पूरे देश में वोटर लिस्ट की जांच क्यों और कैसे?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
भारत के चुनावी परिदृश्य में एक बड़े बदलाव की सुगबुगाहट है। चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) ने पूरे देश में वोटर लिस्ट (मतदाता सूची) के सत्यापन के लिए अपनी तैयारी पूरी कर ली है। यह कदम बिहार में सफलतापूर्वक लागू किए गए मॉडल की तर्ज पर उठाया जाएगा, जिसका उद्देश्य मतदाता सूचियों को त्रुटिहीन और अपडेटेड बनाना है। इस महत्वपूर्ण पहल पर सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई को सुनवाई होनी है, जिसके बाद ही अंतिम फैसला लिया जाएगा। यह खबर सिर्फ एक प्रशासनिक सूचना नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। कल्पना कीजिए, एक ऐसा देश जहाँ हर वोट सही व्यक्ति द्वारा, सही जगह पर डाला जाए – यह उसी दिशा में एक ठोस कदम है।
वोटर लिस्ट की शुद्धता: क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण?
एक मजबूत लोकतंत्र की पहचान उसकी निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया से होती है। इस प्रक्रिया की रीढ़ है एक त्रुटिहीन मतदाता सूची। अगर मतदाता सूची ही दोषपूर्ण हो, तो चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है।
- लोकतंत्र की नींव: मतदाता सूची एक पुल की तरह है जो नागरिकों को सरकार चुनने का अधिकार देती है। अगर इस पुल में ही दरारें हों, जैसे कि मृत मतदाताओं के नाम, डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ, या गैर-मौजूद मतदाताओं के नाम, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। यह ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ (One Person, One Vote) के पवित्र सिद्धांत को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
- चुनावी धांधली पर लगाम: अशुद्ध मतदाता सूची चुनावी धांधली, जैसे कि फर्जी मतदान (Bogus Voting), को बढ़ावा देती है। डुप्लीकेट नाम या मृत व्यक्तियों के नाम का इस्तेमाल अनैतिक तत्वों द्वारा गलत तरीके से वोट डालने के लिए किया जा सकता है, जिससे चुनावी परिणाम विकृत हो सकते हैं।
- सरकार की जवाबदेही: जब मतदाता सूची सटीक होती है, तो चुने हुए प्रतिनिधि अपने वास्तविक मतदाताओं के प्रति अधिक जवाबदेह महसूस करते हैं। यह उन्हें सही नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने के लिए प्रेरित करता है, जो जनता की वास्तविक जरूरतों को पूरा करते हैं।
- नागरिक अधिकारों की सुरक्षा: एक नागरिक के रूप में मतदान का अधिकार सबसे मौलिक राजनीतिक अधिकारों में से एक है। यदि किसी पात्र नागरिक का नाम सूची में नहीं है या उसे हटा दिया गया है, तो यह उसके अधिकार का हनन है। वहीं, यदि अपात्र व्यक्ति का नाम है, तो वह पात्र व्यक्ति के वोट के मूल्य को कम करता है।
वर्तमान वोटर लिस्ट प्रणाली: एक संक्षिप्त अवलोकन
भारत में मतदाता सूची के निर्माण, अद्यतन और शुद्धिकरण की एक सुस्थापित प्रक्रिया है, जिसे चुनाव आयोग द्वारा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (Representation of the People Act, 1950) के तहत निष्पादित किया जाता है।
- कौन तैयार करता है?: चुनाव आयोग की देखरेख में, राज्य स्तर पर मुख्य निर्वाचन अधिकारी (Chief Electoral Officer – CEO) और जिला स्तर पर जिला निर्वाचन अधिकारी (District Election Officer – DEO) मतदाता सूचियों का प्रबंधन करते हैं। बूथ स्तर पर, बूथ स्तरीय अधिकारी (Booth Level Officer – BLO) जमीनी स्तर पर कार्य करते हैं।
- नामांकन प्रक्रिया:
- 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले भारतीय नागरिक मतदाता बनने के लिए फॉर्म 6 भरकर आवेदन कर सकते हैं।
- यह प्रक्रिया ऑनलाइन (राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल – NVSP) या ऑफलाइन (मतदान केंद्रों पर) की जा सकती है।
- संशोधन/हटाने की प्रक्रिया:
- नाम या विवरण में संशोधन के लिए फॉर्म 8 भरा जाता है।
- मृत व्यक्ति या स्थानांतरित हुए व्यक्ति का नाम हटाने के लिए फॉर्म 7 भरा जाता है।
- प्रवासी भारतीय (NRI) मतदाता के रूप में पंजीकरण के लिए फॉर्म 6A भरते हैं।
- नियमित अद्यतन: आयोग साल में कई बार मतदाता सूचियों का विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (Special Summary Revision – SSR) करता है, जहाँ दावों और आपत्तियों को आमंत्रित किया जाता है।
- चुनौतियाँ: इसके बावजूद, बड़ी आबादी, ग्रामीण-शहरी प्रवास, मृत्यु पंजीकरण में कमी और लोगों की कम जागरूकता के कारण मतदाता सूचियों में डुप्लीकेसी, मृत मतदाताओं के नाम और स्थानांतरित हुए मतदाताओं की गलत प्रविष्टियाँ जैसी समस्याएँ बनी रहती हैं।
बिहार मॉडल क्या है और यह क्यों अनुकरणीय है?
हाल के वर्षों में बिहार ने मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए एक अभूतपूर्व अभियान चलाया, जिसे अब “बिहार मॉडल” के रूप में जाना जाता है। इस मॉडल की सफलता ही अब इसे राष्ट्रव्यापी स्तर पर लागू करने का आधार बनी है।
बिहार मॉडल एक तरह से ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की तरह था, जहाँ हर एक प्रविष्टि की सूक्ष्मता से जांच की गई, न केवल कागजों पर, बल्कि जमीनी स्तर पर भी।
बिहार मॉडल की प्रमुख विशेषताएँ:
- डोर-टू-डोर सत्यापन (Door-to-Door Verification): यह इस मॉडल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था। बूथ स्तरीय अधिकारियों (BLOs) को हर घर में जाकर मतदाताओं के विवरण का भौतिक सत्यापन करने का काम सौंपा गया। उन्होंने मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित की, मृत व्यक्तियों को चिह्नित किया और उन लोगों की जानकारी एकत्रित की जो अब उस पते पर नहीं रहते थे।
- डेटा मिलान (Data Matching):
- मृत्यु पंजीकरण डेटा: स्थानीय नागरिक निकायों (ग्राम पंचायत, नगर पालिका) से मृत्यु पंजीकरण का डेटा प्राप्त कर, उसे मतदाता सूची से मिलाया गया। जिन नामों का मिलान हुआ, उन्हें सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई।
- आधार लिंकिंग: मतदाताओं को स्वेच्छा से अपने आधार नंबर को मतदाता पहचान पत्र से लिंक करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। हालांकि यह अभी तक अनिवार्य नहीं है, इससे डुप्लीकेट प्रविष्टियों की पहचान करने में काफी मदद मिली।
- बिजली कनेक्शन डेटा: कुछ मामलों में, बिजली कनेक्शन के डेटा का उपयोग भी पते के सत्यापन और गैर-मौजूद घरों की पहचान के लिए किया गया।
- तकनीकी का उपयोग:
- BLOs को स्मार्टफोन ऐप प्रदान किए गए, जिनके माध्यम से वे सीधे फील्ड से डेटा अपलोड कर सकते थे। इससे डेटा एंट्री में लगने वाला समय और मानवीय त्रुटियाँ कम हुईं।
- जियोटैगिंग का उपयोग किया गया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि BLOs ने वास्तव में घरों का दौरा किया है।
- फोटो मिलान सॉफ्टवेयर का उपयोग डुप्लीकेट तस्वीरों वाले मतदाताओं की पहचान करने के लिए किया गया।
- ग्राम सभाओं की भूमिका: गाँव स्तर पर ग्राम सभाओं की बैठकें आयोजित की गईं, जहाँ मसौदा मतदाता सूची को सार्वजनिक रूप से पढ़ा गया। इससे स्थानीय लोगों को गलतियों की पहचान करने और आपत्तियाँ दर्ज कराने का अवसर मिला।
- सामूहिक भागीदारी: इस अभियान में न केवल सरकारी मशीनरी, बल्कि नागरिक समाज संगठनों और राजनीतिक दलों को भी शामिल किया गया ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वास सुनिश्चित हो सके।
क्यों अनुकरणीय है?
बिहार मॉडल ने लाखों डुप्लीकेट, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नामों को सफलतापूर्वक हटाया और बड़ी संख्या में नए पात्र मतदाताओं को जोड़ा। इसने मतदाता सूची की शुद्धता में उल्लेखनीय सुधार किया, जिससे चुनावी प्रक्रिया अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी बनी। इसकी सफलता ने दिखाया कि कठोर परिश्रम, तकनीकी का सही उपयोग और जनभागीदारी से मतदाता सूची की त्रुटियों को प्रभावी ढंग से दूर किया जा सकता है। यह एक ‘बेस्ट प्रैक्टिस’ बन गया है जिसे अब राष्ट्रीय स्तर पर दोहराने की तैयारी है।
प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी अभियान: “क्यों”, “क्या” और “कैसे”
बिहार की सफलता से प्रेरित होकर, चुनाव आयोग अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का इरादा रखता है। यह अभियान भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
क्यों? (Why this Nationwide Campaign?)
- शुद्धता और सटीकता: देश भर की मतदाता सूचियों से सभी डुप्लीकेट, मृत और गैर-मौजूद मतदाताओं के नामों को हटाना।
- समावेशन: सभी पात्र नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना, विशेषकर नए युवा मतदाताओं और छूटे हुए वर्गों को।
- विश्वास बहाली: चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास बढ़ाना, यह सुनिश्चित करना कि हर वैध वोट का महत्व हो।
- चुनावी अखंडता: चुनावी धोखाधड़ी और कदाचार की संभावनाओं को न्यूनतम करना।
- कुशलता: चुनाव के दौरान संसाधनों (मानवशक्ति, सामग्री) के उपयोग को अनुकूलित करना।
क्या? (What is Planned?)
यह एक व्यापक अभियान होगा जिसमें मौजूदा मतदाता सूचियों का गहन सत्यापन और अद्यतनीकरण शामिल होगा। इसमें न केवल नामों को हटाना, बल्कि नए योग्य मतदाताओं को जोड़ना भी शामिल होगा। आयोग का लक्ष्य 100% त्रुटिहीन मतदाता सूची तैयार करना है।
कैसे? (How will it be Implemented?)
- आधार-आधारित सत्यापन (Aadhaar-based Verification):
- चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम, 2021 के तहत मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने की अनुमति दी गई है। यह स्वैच्छिक है, लेकिन इसके माध्यम से डुप्लीकेट प्रविष्टियों की पहचान करना बहुत आसान हो जाएगा।
- यह एक शक्तिशाली उपकरण है जो एक व्यक्ति की एकाधिक पंजीकरण को पहचान सकता है, भले ही वे विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों या राज्यों में हों।
- डोर-टू-डोर भौतिक सत्यापन (Physical Door-to-Door Verification):
- BLOs (बूथ स्तरीय अधिकारी) प्रत्येक घर का दौरा करेंगे। वे परिवार के सदस्यों की संख्या, पंजीकृत मतदाताओं के नाम और पते की पुष्टि करेंगे।
- मृत व्यक्तियों, स्थायी रूप से स्थानांतरित हुए व्यक्तियों और डुप्लीकेट प्रविष्टियों की पहचान की जाएगी।
- नए योग्य मतदाताओं (जैसे 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले) की पहचान कर उन्हें पंजीकरण के लिए प्रेरित किया जाएगा।
- डेटाबेस का एकीकरण (Database Integration):
- मृत्यु पंजीकरण डेटाबेस (जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम के तहत) का उपयोग कर मृत मतदाताओं के नामों को चिह्नित किया जाएगा।
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और जनगणना डेटा जैसे अन्य सरकारी डेटाबेस के साथ मिलान किया जा सकता है, बशर्ते गोपनीयता संबंधी चिंताओं का समाधान हो।
- तकनीकी उपकरण और ऐप का उपयोग (Use of Technological Tools and Apps):
- BLOs को विशेष मोबाइल ऐप और टैबलेट प्रदान किए जाएंगे ताकि वे सीधे फील्ड से डेटा इनपुट कर सकें।
- GPS और जियोटैगिंग का उपयोग सत्यापन प्रक्रिया की निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए किया जाएगा।
- फोटो सिमिलैरिटी सॉफ्टवेयर (Photo Similarity Software) का उपयोग डुप्लीकेट या समान फोटो वाले नामों की पहचान करने के लिए किया जाएगा।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) तकनीकों का उपयोग बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करने और विसंगतियों को पहचानने के लिए किया जा सकता है।
- जन जागरूकता अभियान (Public Awareness Campaigns):
- मीडिया, सोशल मीडिया और स्थानीय कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को इस अभियान के महत्व के बारे में जागरूक किया जाएगा।
- नागरिकों को अपनी जानकारी सत्यापित करने और गलतियों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
- “नो योर पोलिंग स्टेशन” और “नो योर BLO” जैसे अभियान चलाए जाएंगे।
- शिकायत निवारण तंत्र (Grievance Redressal Mechanism):
- एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की जाएगी ताकि नागरिक किसी भी त्रुटि या अनुचित निष्कासन के बारे में शिकायत दर्ज करा सकें।
- फास्ट-ट्रैक सुनवाई और त्वरित समाधान सुनिश्चित किया जाएगा।
संविधान और कानूनी प्रावधान
भारत में चुनाव प्रक्रिया और मतदाता सूचियों के प्रबंधन को संवैधानिक और वैधानिक प्रावधानों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- अनुच्छेद 324 (Constitution of India): यह अनुच्छेद भारत के चुनाव आयोग को संसद और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के चुनावों के लिए मतदाता सूचियों को तैयार करने, चुनावों का संचालन करने और उन पर नियंत्रण करने की शक्तियाँ प्रदान करता है। यह आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की व्यापक शक्तियाँ देता है, जिसमें मतदाता सूची तैयार करना भी शामिल है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (Representation of the People Act, 1950): यह अधिनियम संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए मतदाता सूचियों की तैयारी और अद्यतन से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है।
- धारा 13D: मतदाता सूची तैयार करने और संशोधित करने के लिए आयोग को नियम बनाने की शक्ति देती है।
- धारा 14: मतदाता होने के लिए पात्रता मानदंड (नागरिक, आयु 18+) निर्धारित करती है।
- धारा 17: किसी व्यक्ति को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत होने से रोकती है।
- धारा 18: किसी भी व्यक्ति को एक ही निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक बार पंजीकृत होने से रोकती है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951): यह अधिनियम चुनावों के संचालन और चुनाव संबंधी अपराधों से संबंधित है।
- चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम, 2021: यह अधिनियम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 में कई संशोधन लाया। इसमें सबसे महत्वपूर्ण था मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने का प्रावधान (स्वैच्छिक आधार पर) और मतदाता पंजीकरण के लिए वर्ष में चार कट-ऑफ तिथियाँ निर्धारित करना। यह वर्तमान अभियान के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
संभावित लाभ
इस राष्ट्रव्यापी अभियान के दूरगामी और सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं:
- चुनावों की विश्वसनीयता में वृद्धि: सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता में भारी वृद्धि होगी। जब मतदाता सूची त्रुटिहीन होगी, तो चुनाव परिणाम अधिक वास्तविक और स्वीकार्य होंगे।
- लोकतंत्र में जनता का विश्वास: पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव जनता के लोकतंत्र में विश्वास को मजबूत करते हैं। जब नागरिक आश्वस्त होंगे कि उनका वोट मायने रखता है और चुनावी प्रक्रिया सुरक्षित है, तो वे मतदान में अधिक उत्साह से भाग लेंगे।
- चुनावी धांधली में कमी: डुप्लीकेट और मृत मतदाताओं के नामों को हटाने से फर्जी मतदान की संभावना कम हो जाएगी, जिससे चुनावी कदाचार पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगेगा।
- संसाधनों का कुशल उपयोग: शुद्ध मतदाता सूची का मतलब है कि चुनाव आयोग को अनावश्यक सामग्री (जैसे अतिरिक्त मतपत्र) छापने और सुरक्षाकर्मियों को अपात्र मतदाताओं के लिए तैनात करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे सरकारी धन और मानवशक्ति का कुशल उपयोग होगा।
- नई प्रविष्टियों का बेहतर समावेश: अभियान के तहत नए पात्र मतदाताओं की पहचान और पंजीकरण भी होगा, जिससे युवा पीढ़ी और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया जा सकेगा।
- नागरिक डेटाबेस का अद्यतनीकरण: यह अभियान नागरिक डेटाबेस को अद्यतन करने में भी मदद करेगा, जिससे सरकार को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और सेवाओं को लक्षित आबादी तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।
चुनौतियाँ और चिंताएँ
हालांकि यह अभियान अत्यधिक महत्वपूर्ण है, इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ और चिंताएँ भी निहित हैं:
- गोपनीयता का मुद्दा (Privacy Concerns):
- आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने का प्रावधान, भले ही स्वैच्छिक हो, गोपनीयता के संबंध में चिंताएँ बढ़ाता है। आलोचकों का तर्क है कि यह डेटा को केंद्र सरकार के हाथों में केंद्रीकृत कर सकता है, जिससे निगरानी और प्रोफाइलिंग का जोखिम बढ़ सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया है, ऐसे में डेटा सुरक्षा और निजता सुनिश्चित करना सर्वोपरि होगा।
- मानवीय त्रुटि और भ्रष्टाचार:
- इतने बड़े पैमाने पर डोर-टू-डोर सत्यापन में मानवीय त्रुटियाँ (जैसे गलत नाम हटाना या जोड़ना) होने की संभावना हमेशा बनी रहती है।
- BLOs पर राजनीतिक दबाव या भ्रष्टाचार का खतरा भी हो सकता है, जिससे प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
- संसाधन और जनशक्ति:
- यह एक विशाल अभियान होगा जिसके लिए भारी मात्रा में वित्तीय, तकनीकी और मानवीय संसाधनों की आवश्यकता होगी।
- लाखों BLOs को प्रशिक्षित करना और उन्हें पर्याप्त उपकरण प्रदान करना एक चुनौती होगी।
- शिक्षक और अन्य सरकारी कर्मचारी जो अक्सर BLOs के रूप में कार्य करते हैं, पर काम का अत्यधिक बोझ पड़ सकता है।
- समयबद्धता:
- चुनावों से पहले मतदाता सूची को पूरी तरह से अद्यतन करना एक समय-संवेदनशील कार्य है। यदि प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचती है, तो यह आगामी चुनावों को प्रभावित कर सकती है।
- प्रवासी मजदूरों का मुद्दा:
- देश भर में लाखों प्रवासी मजदूर हैं जो अपने मूल निवास स्थान से दूर काम करते हैं। इन लोगों का नाम मतदाता सूची में बनाए रखना और उन्हें मतदान के लिए सक्षम बनाना एक बड़ी चुनौती है।
- कई बार उनका नाम मूल स्थान से हटा दिया जाता है, लेकिन नए स्थान पर पंजीकृत नहीं हो पाता, जिससे वे मताधिकार से वंचित हो जाते हैं।
- राज्यों के बीच समन्वय:
- भारत एक संघीय ढाँचा है और चुनाव आयोग को राज्यों के साथ प्रभावी ढंग से समन्वय करना होगा, खासकर जब विभिन्न राज्यों में अलग-अलग डेटा प्रबंधन प्रणालियाँ हों।
आगे की राह (Way Forward)
इन चुनौतियों का सामना करते हुए, एक सफल और समावेशी राष्ट्रव्यापी मतदाता सूची सत्यापन अभियान सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- मजबूत कानूनी ढाँचा और स्पष्ट दिशानिर्देश:
- आधार लिंकिंग और डेटा साझाकरण के संबंध में एक मजबूत डेटा सुरक्षा कानून और स्पष्ट दिशानिर्देशों का निर्माण अत्यंत आवश्यक है ताकि निजता के अधिकार का उल्लंघन न हो।
- BLOs के लिए विस्तृत और स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOPs) जारी की जानी चाहिए।
- तकनीकी का अधिकतम उपयोग और सुरक्षा:
- अत्याधुनिक तकनीक (AI, ML, GIS) का उपयोग किया जाना चाहिए, लेकिन साथ ही साइबर सुरक्षा उपायों को मजबूत करना होगा ताकि डेटा उल्लंघनों और दुर्भावनापूर्ण हमलों को रोका जा सके।
- एक केंद्रीकृत, सुरक्षित और इंटरऑपरेबल डेटाबेस प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।
- सशक्त BLOs और उनका प्रशिक्षण:
- BLOs को पर्याप्त प्रशिक्षण, उपकरण और प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए। उन्हें न केवल तकनीकी रूप से दक्ष बनाया जाए, बल्कि उन्हें उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के प्रति भी संवेदनशील बनाया जाए।
- उनके काम की गुणवत्ता का नियमित ऑडिट किया जाना चाहिए।
- सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी:
- एक व्यापक मल्टीमीडिया अभियान चलाया जाना चाहिए ताकि नागरिक इस प्रक्रिया के महत्व को समझें और स्वेच्छा से इसमें भाग लें।
- सोशल मीडिया, सामुदायिक रेडियो और स्थानीय भाषाओं का उपयोग कर संदेश को जन-जन तक पहुँचाया जाए।
- नागरिक समाज संगठनों, आरडब्ल्यूए (Resident Welfare Associations) और शैक्षणिक संस्थानों को इस अभियान में भागीदार बनाया जाए।
- प्रवासी मतदाताओं के लिए विशेष प्रावधान:
- प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष पंजीकरण सुविधाएँ (जैसे ‘वन नेशन, वन वोटर’ कार्ड की अवधारणा, या दूरस्थ मतदान) विकसित की जानी चाहिए ताकि वे अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें, भले ही वे अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र से दूर हों।
- स्वतंत्र ऑडिट और पारदर्शिता:
- अभियान की प्रगति और परिणामों का स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा नियमित ऑडिट किया जाना चाहिए।
- आयोग को प्रक्रिया को यथासंभव पारदर्शी रखना चाहिए, जिससे जनता और राजनीतिक दलों को विश्वास हो।
- न्यायपालिका और आयोग के बीच समन्वय:
- सुप्रीम कोर्ट के साथ प्रभावी समन्वय महत्वपूर्ण होगा ताकि कानूनी बाधाओं को दूर किया जा सके और अभियान को बिना किसी देरी के आगे बढ़ाया जा सके।
निष्कर्ष
पूरे देश में मतदाता सूची का सत्यापन एक जटिल लेकिन अत्यंत आवश्यक कार्य है। यह भारतीय लोकतंत्र को अधिक मजबूत, पारदर्शी और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बिहार मॉडल की सफलता ने दिखाया है कि यह संभव है। यद्यपि गोपनीयता, संसाधन और मानवीय त्रुटि जैसी चुनौतियाँ हैं, एक सुविचारित रणनीति, तकनीकी का विवेकपूर्ण उपयोग, मजबूत कानूनी ढाँचा और जनभागीदारी से इन चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है। 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस राष्ट्रव्यापी अभियान की दिशा निर्धारित करेगा। यदि यह अभियान सफलतापूर्वक लागू होता है, तो भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में अपनी चुनावी शुचिता का एक नया मानक स्थापित करेगा, जहां हर एक वोट का सही मूल्य और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा। यह एक स्वच्छ, निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनावी प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करेगा, जो हमारे लोकतंत्र की सच्ची भावना को दर्शाता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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भारत में मतदाता सूची के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत मतदाता सूची तैयार करने और अपडेट करने की शक्ति रखता है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, मतदाता सूचियों के निर्माण और संशोधन से संबंधित विस्तृत प्रावधान करता है।
- आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना अनिवार्य कर दिया गया है ताकि डुप्लीकेसी को रोका जा सके।
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल I और II
(b) केवल II और III
(c) केवल I और III
(d) I, II और III
उत्तर: (a)
व्याख्या: कथन I और II सही हैं। अनुच्छेद 324 ECI को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति देता है, जिसमें मतदाता सूची तैयार करना शामिल है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 मतदाता सूचियों के विस्तृत प्रावधानों को निर्धारित करता है। कथन III गलत है। चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम, 2021 के तहत आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं।
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बूथ स्तरीय अधिकारी (BLOs) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- वे भारत निर्वाचन आयोग द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और सीधे आयोग को रिपोर्ट करते हैं।
- उनका प्राथमिक कार्य अपने संबंधित मतदान क्षेत्र के भीतर घर-घर जाकर मतदाता सूची का सत्यापन करना है।
- वे चुनाव के दिन मतदान केंद्र के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल I
(b) केवल II
(c) केवल I और II
(d) केवल II और III
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन II सही है। BLOs का प्राथमिक कार्य मतदाता सूची का घर-घर जाकर सत्यापन करना है। कथन I गलत है क्योंकि BLOs सामान्यतः स्थानीय सरकारी/अर्ध-सरकारी कर्मचारी होते हैं और उन्हें जिला निर्वाचन अधिकारी/मुख्य निर्वाचन अधिकारी के अधीन काम करते हैं, सीधे आयोग को रिपोर्ट नहीं करते। कथन III गलत है क्योंकि BLOs चुनाव के दिन मतदान केंद्र पर सहायक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मतदाताओं की पहचान सत्यापित करने में मदद करते हैं।
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भारत में मतदाता सूची के पुनरीक्षण (Revision) के संदर्भ में, “विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (Special Summary Revision – SSR)” का उद्देश्य है:
- मतदाताओं को अपने नाम दर्ज कराने या मौजूदा विवरणों में सुधार करने का अवसर प्रदान करना।
- मृत या स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाना।
- मतदाता सूची को आगामी चुनावों के लिए अद्यतन और शुद्ध करना।
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल I और II
(b) केवल III
(c) केवल II और III
(d) I, II और III
उत्तर: (d)
व्याख्या: विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण एक वार्षिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को व्यापक रूप से अद्यतन करना है। इसमें नए मतदाताओं को जोड़ना, विवरणों को सही करना, और मृत या स्थानांतरित हुए मतदाताओं के नामों को हटाना शामिल है, ताकि सूची को आगामी चुनावों के लिए सटीक बनाया जा सके। अतः सभी कथन सही हैं।
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निम्नलिखित में से कौन-सा/से प्रावधान लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में निहित है/हैं?
- संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए मतदाता सूची का तैयार होना।
- चुनावों में भ्रष्टाचार और चुनावी अपराधों का निवारण।
- किसी व्यक्ति को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत होने से रोकना।
सही विकल्प चुनें:
(a) केवल I और II
(b) केवल I और III
(c) केवल II और III
(d) I, II और III
उत्तर: (b)
व्याख्या: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 मुख्य रूप से मतदाता सूचियों की तैयारी और अद्यतन से संबंधित है (कथन I सही)। यह अधिनियम किसी व्यक्ति को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत होने से भी रोकता है (कथन III सही)। चुनावी भ्रष्टाचार और अपराधों का निवारण लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में वर्णित है (कथन II गलत)।
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हाल ही में प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी वोटर लिस्ट सत्यापन अभियान के संदर्भ में, बिहार मॉडल की निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषताएँ अनुकरणीय मानी गई हैं?
- डोर-टू-डोर भौतिक सत्यापन।
- मृत्यु पंजीकरण डेटा का मतदाता सूची से मिलान।
- मतदाताओं को आधार से लिंक करने की अनिवार्यता।
- तकनीकी उपकरणों (जैसे मोबाइल ऐप) का उपयोग।
सही कूट चुनें:
(a) केवल I, II और III
(b) केवल I, II और IV
(c) केवल III और IV
(d) I, II, III और IV
उत्तर: (b)
व्याख्या: बिहार मॉडल में डोर-टू-डोर सत्यापन, मृत्यु पंजीकरण डेटा मिलान और तकनीकी उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया, जो इसकी सफलता के प्रमुख कारण थे (कथन I, II और IV सही)। हालांकि, आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना अभी भी स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं (कथन III गलत)।
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भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद भारत निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार देता है?
(a) अनुच्छेद 320
(b) अनुच्छेद 324
(c) अनुच्छेद 326
(d) अनुच्छेद 329
उत्तर: (b)
व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारत निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है, जिसमें मतदाता सूची तैयार करना भी शामिल है।
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वोटर लिस्ट में डुप्लीकेसी को कम करने में आधार लिंकिंग की संभावित भूमिका के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सबसे सटीक है?
(a) आधार लिंकिंग अनिवार्य होने पर ही डुप्लीकेसी को पूरी तरह से समाप्त कर सकता है।
(b) यह एक ही व्यक्ति के कई नामांकन की पहचान करने में मदद करता है, भले ही वे विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में हों।
(c) यह केवल मृत मतदाताओं की पहचान करने के लिए उपयोग किया जाता है।
(d) आधार लिंकिंग से गोपनीयता का कोई मुद्दा नहीं जुड़ा है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: आधार एक अद्वितीय पहचान संख्या है, और इसे मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने से एक ही व्यक्ति के कई नामांकन की पहचान करने में मदद मिल सकती है, जिससे डुप्लीकेसी कम होगी (कथन b सबसे सटीक है)। यह अभी अनिवार्य नहीं है (कथन a गलत)। यह मुख्य रूप से डुप्लीकेसी के लिए है, मृत मतदाताओं के लिए मृत्यु पंजीकरण डेटा अधिक प्रभावी है (कथन c गलत)। गोपनीयता संबंधी चिंताएँ इससे जुड़ी हुई हैं (कथन d गलत)।
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यदि किसी पात्र नागरिक का नाम गलती से मतदाता सूची से हटा दिया जाता है, तो वह निम्नलिखित में से किस फॉर्म का उपयोग करके पुनः पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकता है?
(a) फॉर्म 6
(b) फॉर्म 7
(c) फॉर्म 8
(d) फॉर्म 6A
उत्तर: (a)
व्याख्या: फॉर्म 6 नए पंजीकरण या नाम पुनः शामिल करने के लिए उपयोग किया जाता है। फॉर्म 7 नाम हटाने के लिए और फॉर्म 8 विवरणों में सुधार या निर्वाचन क्षेत्र के अंदर स्थानांतरण के लिए होता है। फॉर्म 6A प्रवासी भारतीयों के पंजीकरण के लिए है।
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भारत में मतदाता सूची के सत्यापन अभियान से संबंधित संभावित चुनौतियों पर विचार कीजिए:
- डेटा गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ।
- अभियान को लागू करने के लिए आवश्यक विशाल संसाधन और जनशक्ति।
- BLOs पर राजनीतिक हस्तक्षेप का जोखिम।
- प्रवासी मजदूरों के पंजीकरण का मुद्दा।
उपरोक्त में से कौन-सी चुनौतियाँ संभावित रूप से उत्पन्न हो सकती हैं?
(a) केवल I, II और III
(b) केवल II, III और IV
(c) केवल I, III और IV
(d) I, II, III और IV
उत्तर: (d)
व्याख्या: उल्लिखित सभी बिंदु राष्ट्रव्यापी मतदाता सूची सत्यापन अभियान को लागू करने में संभावित चुनौतियाँ और चिंताएँ हैं। डेटा गोपनीयता, संसाधन की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप और प्रवासी मजदूरों का मुद्दा प्रमुख चिंताएँ हैं।
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लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 17 और 18 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) मतदाताओं को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में मतदान करने की अनुमति देना।
(b) मतदाता सूची में डुप्लीकेट प्रविष्टियों को रोकना।
(c) चुनाव अभियानों के लिए नियमों को विनियमित करना।
(d) चुनाव आयोग के कर्मचारियों की नियुक्ति का प्रावधान करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 17 किसी व्यक्ति को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत होने से रोकती है, और धारा 18 किसी भी व्यक्ति को एक ही निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक बार पंजीकृत होने से रोकती है। दोनों का उद्देश्य मतदाता सूची में डुप्लीकेट प्रविष्टियों को रोकना है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- भारत में चुनावी लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक त्रुटिहीन मतदाता सूची का क्या महत्व है? राष्ट्रव्यापी मतदाता सूची सत्यापन अभियान से जुड़े संभावित लाभों और चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
- “बिहार मॉडल ने मतदाता सूची की शुद्धता में सुधार के लिए एक सफल खाका प्रदान किया है।” इस कथन के आलोक में, प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी अभियान के प्रमुख घटकों और इसके सफल क्रियान्वयन के लिए आवश्यक आगे की राह पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
- भारतीय चुनाव आयोग की स्वायत्तता और शक्तियों के संदर्भ में, मतदाता सूची के सत्यापन में न्यायपालिका की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। क्या आधार-आधारित सत्यापन जैसे कदम निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं? अपने तर्क प्रस्तुत कीजिए।