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25% टैरिफ के बाद मोदी का ‘स्वदेशी’ आह्वान: भारत के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता

25% टैरिफ के बाद मोदी का ‘स्वदेशी’ आह्वान: भारत के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता

चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा कुछ भारतीय सामानों पर 25% टैरिफ लगाने के बाद, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय नागरिकों से ‘स्वदेशी’ (घरेलू) उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने और सतर्क रहने का आग्रह किया। यह बयान वैश्विक व्यापार की बदलती गतिशीलता और भारत की आर्थिक संप्रभुता को बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। यह घटनाक्रम भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में चल रहे तनाव का हिस्सा है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके संभावित प्रभावों के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।

परिचय (Introduction):
वैश्वीकरण के इस युग में, जहाँ देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर अत्यधिक निर्भर हैं, वहीं संरक्षणवाद (Protectionism) की भावना का उभरना एक महत्वपूर्ण विरोधाभास प्रस्तुत करता है। जब एक प्रमुख वैश्विक शक्ति, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका, अपने व्यापारिक भागीदारों पर टैरिफ लगाती है, तो इसका प्रभाव वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, बाजार की गतिशीलता और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर दूरगामी होता है। प्रधान मंत्री मोदी का ‘स्वदेशी’ पर जोर, विशेष रूप से अमेरिकी टैरिफ के संदर्भ में, केवल एक आर्थिक नीति का बयान नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय गौरव और भू-राजनीतिक दांव-पेंच का एक जटिल मिश्रण है। यह लेख इस घटना के विभिन्न आयामों का गहराई से विश्लेषण करेगा, UPSC उम्मीदवारों के लिए इसकी प्रासंगिकता को उजागर करेगा।

पृष्ठभूमि: भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंध और टैरिफ का इतिहास (Background: India-US Trade Relations and the History of Tariffs)

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध बहुआयामी और गतिशील रहे हैं। दोनों देश एक-दूसरे के महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं, खासकर सेवा क्षेत्र में। हालांकि, वस्तु व्यापार में अक्सर कुछ असंतुलन और विवाद रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के तहत, अमेरिका ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति को अपनाते हुए कई देशों पर टैरिफ लगाए, जिसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की रक्षा करना और व्यापार घाटे को कम करना था।

25% का टैरिफ, जिसका उल्लेख समाचार में किया गया है, संभवतः कुछ विशिष्ट भारतीय निर्यातों पर लगाया गया था। यह कदम अमेरिका द्वारा भारत के कुछ निर्यातकों के लिए बाजार पहुंच को सीमित करने के प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस तरह के टैरिफ अक्सर जवाबी कार्रवाई को प्रेरित करते हैं, जिससे एक व्यापार युद्ध (Trade War) की स्थिति पैदा हो सकती है, जो दोनों देशों के लिए हानिकारक हो सकती है।

क्या है टैरिफ? (What is a Tariff?)
सरल शब्दों में, टैरिफ एक प्रकार का कर है जो आयातित या कभी-कभी निर्यातित माल पर लगाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना, राष्ट्रीय राजस्व उत्पन्न करना और विदेशी उत्पादों के आयात को हतोत्साहित करना होता है। टैरिफ के विभिन्न रूप हो सकते हैं, जैसे कि विशिष्ट (Specific Tariff) – प्रति इकाई उत्पाद पर एक निश्चित राशि – या एड वालोरम (Ad Valorem Tariff) – उत्पाद के मूल्य के प्रतिशत के रूप में।

टैरिफ के उद्देश्य (Objectives of Tariffs):
* घरेलू उद्योगों की सुरक्षा: विदेशी सस्ते उत्पादों से घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए।
* राजस्व सृजन: सरकार के लिए आय का एक स्रोत।
* व्यापार असंतुलन को कम करना: आयात को कम करके और निर्यात को प्रोत्साहित करके।
* रणनीतिक उद्योगों की सुरक्षा: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण उद्योगों को बढ़ावा देना।
* जवाबी कार्रवाई: अन्य देशों द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में।

प्रधान मंत्री मोदी का ‘स्वदेशी’ आह्वान: एक बहुआयामी रणनीति (PM Modi’s ‘Swadeshi’ Appeal: A Multidimensional Strategy)

प्रधान मंत्री मोदी का ‘स्वदेशी’ का आह्वान कोई नई बात नहीं है। यह भारत की स्वतंत्रता संग्राम की विरासत से जुड़ा हुआ है, जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार और भारतीय निर्मित वस्तुओं के उपयोग का आह्वान किया था। हालांकि, वर्तमान संदर्भ में, यह आह्वान कई रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करता है:

  1. आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना: अमेरिकी टैरिफ के कारण भारतीय निर्यातकों को होने वाली संभावित कठिनाइयों के जवाब में, ‘स्वदेशी’ पर जोर घरेलू मांग को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और आयात पर निर्भरता कम होगी। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के साथ भी संरेखित होता है।
  2. राष्ट्रीय गौरव और पहचान: ‘स्वदेशी’ का विचार अक्सर राष्ट्रीय गौरव और अपनी संस्कृति व परंपराओं से जुड़ा होता है। यह लोगों को भारतीय उत्पादों का उपयोग करने के लिए भावनात्मक रूप से प्रेरित करता है, जो आर्थिक व्यवहार को सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम प्रदान करता है।
  3. आर्थिक लचीलापन (Economic Resilience): वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की नाजुकता को हाल की घटनाओं (जैसे COVID-19 महामारी) ने उजागर किया है। ‘स्वदेशी’ को बढ़ावा देना भारत की आर्थिक प्रणाली को बाहरी झटकों के प्रति अधिक लचीला बनाने की दिशा में एक कदम है।
  4. कच्चे माल और विनिर्माण का स्थानीयकरण: ‘स्वदेशी’ आंदोलन केवल अंतिम उत्पादों के उपभोग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कच्चे माल की सोर्सिंग, विनिर्माण प्रक्रियाओं और डिजाइन को भी स्थानीय बनाना शामिल है। इसका उद्देश्य पूरी मूल्य श्रृंखला (Value Chain) में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
  5. रोजगार सृजन: घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, जो भारत जैसे विशाल देश के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य है।

‘स्वदेशी’ की अवधारणा का विकास (Evolution of the ‘Swadeshi’ Concept):

“स्वदेशी का अर्थ केवल विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार नहीं है, बल्कि यह भारत के अपने संसाधनों, अपनी प्रतिभा, अपने श्रम का उपयोग करने की एक व्यापक अवधारणा है।” – संभवतः एक ऐतिहासिक उद्धरण का भाव।

पहले, ‘स्वदेशी’ मुख्य रूप से पश्चिमी उत्पादों के बहिष्कार और खादी जैसे भारतीय वस्त्रों के उपयोग पर केंद्रित था। आज, आधुनिक ‘स्वदेशी’ का अर्थ अधिक व्यापक है। इसमें प्रौद्योगिकी, नवाचार, सेवा क्षेत्र और यहाँ तक कि वैश्विक मानकों के अनुरूप उच्च-गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्माण शामिल है। यह संरक्षणवाद (Protectionism) से अलग है क्योंकि इसका लक्ष्य केवल आयात को रोकना नहीं है, बल्कि घरेलू क्षमताओं को विकसित करना और उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है।

25% टैरिफ के प्रभाव और निहितार्थ (Impact and Implications of the 25% Tariff)

अमेरिकी टैरिफ के विभिन्न प्रभाव हो सकते हैं:

भारत पर संभावित प्रभाव:

  1. निर्यात में कमी: लक्षित उत्पादों के निर्यात में कमी आ सकती है, जिससे निर्यातकों की आय पर असर पड़ेगा।
  2. व्यापार घाटे में वृद्धि: यदि भारत अपने निर्यात को प्रभावी ढंग से विविधता नहीं ला पाता है, तो अमेरिका के साथ व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
  3. विनिर्माण क्षेत्र पर दबाव: जिन उद्योगों को टैरिफ का सामना करना पड़ता है, उन्हें अपने उत्पादन और लाभप्रदता को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
  4. निवेश का हतोत्साहन: व्यापार तनाव और अनिश्चितता विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकती है।
  5. घरेलू मांग पर प्रभाव: यदि निर्यात में कमी से रोजगार और आय प्रभावित होती है, तो इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव घरेलू मांग पर भी पड़ सकता है।

अमेरिका पर संभावित प्रभाव:

  1. उपभोक्ता मूल्य में वृद्धि: टैरिफ के कारण आयातित वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है, जिसका भार अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ता है।
  2. आपूर्ति श्रृंखला में बाधा: अमेरिकी उद्योगों को कच्चे माल या घटकों की आपूर्ति में समस्या आ सकती है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ सकती है।
  3. जवाबी कार्रवाई का जोखिम: भारत या अन्य देश भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे अमेरिका को भी नुकसान होगा।
  4. कम प्रतिस्पर्धा: विदेशी उत्पादों पर टैरिफ लगाने से घरेलू कंपनियों को कम प्रतिस्पर्धी माहौल मिल सकता है, जिससे नवाचार और दक्षता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

इस तरह के व्यापारिक तनाव वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अनिश्चितता पैदा करते हैं। यह अन्य देशों को भी संरक्षणवादी नीतियां अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे मुक्त व्यापार (Free Trade) को नुकसान पहुँचता है और वैश्विक विकास धीमा हो सकता है।

‘सतर्क रहने की आवश्यकता’: क्या यह सिर्फ आर्थिक है? (The ‘Need to Remain Alert’: Is it Just Economic?)

प्रधान मंत्री मोदी का ‘सतर्क रहने’ का आह्वान केवल आर्थिक मोर्चे तक सीमित नहीं है। इसके गहरे भू-राजनीतिक और रणनीतिक अर्थ हैं:

  • भू-राजनीतिक स्थिति: भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाना होगा, विशेषकर जब वह अमेरिका और चीन जैसे प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों का प्रबंधन कर रहा हो। टैरिफ जैसे मुद्दे इन जटिल समीकरणों में एक और परत जोड़ते हैं।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: ‘सतर्क रहना’ का अर्थ है कि भारत को अपनी आर्थिक और रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसका मतलब है कि अपनी राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखना, चाहे वह वैश्विक शक्तियों के साथ व्यापार संबंधों को कैसे भी प्रभावित करे।
  • आंतरिक सुधारों पर ध्यान: यह समय भारत के लिए अपनी आंतरिक आर्थिक संरचनाओं को मजबूत करने, निर्यात विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करने और व्यापार बाधाओं को दूर करने का है।
  • कूटनीतिक प्रयास: टैरिफ जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिए निरंतर कूटनीतिक बातचीत और द्विपक्षीय संवाद आवश्यक हैं। ‘सतर्क रहना’ का अर्थ इन वार्ताओं में सक्रिय रूप से भाग लेना भी है।

‘स्वदेशी’ बनाम ‘आत्मनिर्भर भारत’: क्या अंतर है? (‘Swadeshi’ vs. ‘Atmanirbhar Bharat’: What’s the Difference?)

यद्यपि दोनों शब्द घरेलू उत्पादन और आत्मनिर्भरता पर जोर देते हैं, उनमें सूक्ष्म अंतर हैं:

  • ‘स्वदेशी’: यह एक व्यापक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से निहित अवधारणा है, जो अक्सर राष्ट्रीय गौरव और स्थानीय उत्पादन के उपभोग पर केंद्रित होती है। यह गांधीवादी विचारधारा से गहराई से जुड़ी है।
  • ‘आत्मनिर्भर भारत’: यह एक अधिक आधुनिक, नीति-संचालित दृष्टिकोण है जिसका उद्देश्य आयात पर निर्भरता को कम करना, घरेलू क्षमताओं को बढ़ाना, आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना और विनिर्माण, सेवाओं और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। यह वैश्विक एकीकरण के संदर्भ में आत्मनिर्भरता पर जोर देता है, न कि अलगाव पर।

प्रधान मंत्री मोदी के हालिया बयानों में, ‘स्वदेशी’ का आह्वान ‘आत्मनिर्भर भारत’ के बड़े उद्देश्य को प्राप्त करने के एक साधन के रूप में देखा जा सकता है। यह लोगों को सक्रिय रूप से घरेलू उत्पादों का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो बड़े पैमाने पर आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।

चुनौतियाँ और अवसर (Challenges and Opportunities)

चुनौतियाँ:

  • गुणवत्ता और मूल्य प्रतिस्पर्धा: भारतीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करना होगा और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी मूल्य पर उपलब्ध होना होगा।
  • उपभोक्ता वरीयताएँ: अक्सर उपभोक्ता ब्रांड, गुणवत्ता, सुविधा और कीमत के आधार पर उत्पाद चुनते हैं, न कि केवल ‘स्वदेशी’ होने के कारण।
  • नीतिगत कार्यान्वयन: ‘स्वदेशी’ को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट, सुसंगत और अच्छी तरह से कार्यान्वित सरकारी नीतियों की आवश्यकता है।
  • व्यापारिक प्रतिशोध: संरक्षणवादी नीतियों से व्यापारिक प्रतिशोध की संभावना बनी रहती है।
  • ग्लोबल वैल्यू चेन से अलगाव: अत्यधिक ‘स्वदेशी’ पर जोर भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं से अलग-थलग कर सकता है, जिससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और निर्यात वृद्धि में बाधा आ सकती है।

अवसर:

  • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: यह भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी: ‘स्वदेशी’ के नारे के तहत नवाचार और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।
  • रोजगार सृजन: छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के विकास को प्रोत्साहित करके रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं।
  • आयात प्रतिस्थापन: गैर-आवश्यक आयात को कम करके विदेशी मुद्रा भंडार को बचाया जा सकता है।
  • डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया का तालमेल: डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके ‘स्वदेशी’ उत्पादों को बढ़ावा दिया जा सकता है और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को मजबूती मिल सकती है।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)

यह विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  • प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, टैरिफ, संरक्षणवाद।
    • भारत-अमेरिका व्यापार संबंध।
    • ‘स्वदेशी’ आंदोलन का इतिहास और आधुनिक व्याख्या।
    • ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना।
    • भू-राजनीतिक मुद्दे।
  • मुख्य परीक्षा (Mains):
    • GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध (भारत-अमेरिका संबंध), कूटनीति, व्यापार समझौते।
    • GS-III: भारतीय अर्थव्यवस्था (निर्यात-आयात, व्यापार असंतुलन, विनिर्माण क्षेत्र, आत्मनिर्भरता), संरक्षणवाद के प्रभाव, वैश्वीकरण।
    • निबंध (Essay): वैश्वीकरण के युग में राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता, संरक्षणवाद बनाम मुक्त व्यापार, आर्थिक राष्ट्रवाद।

निष्कर्ष: एक संतुलित दृष्टिकोण (Conclusion: A Balanced Approach)

प्रधान मंत्री मोदी का ‘स्वदेशी’ का आह्वान, विशेष रूप से अमेरिकी टैरिफ के जवाब में, भारत की आर्थिक रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। यह आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय गौरव और वैश्विक व्यापार की बदलती वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। ‘स्वदेशी’ को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए, भारत को न केवल घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना होगा, बल्कि गुणवत्ता, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

यह आवश्यक है कि ‘स्वदेशी’ को एक अलगाववादी या संरक्षणवादी नीति के रूप में न देखा जाए, बल्कि एक ऐसी रणनीति के रूप में देखा जाए जो भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत, अधिक लचीला और वैश्विक मंच पर अधिक आत्मनिर्भर बनाए। ‘सतर्क रहने’ का अर्थ है सक्रिय, सूचित और अनुकूलनीय रहना – राष्ट्रीय हितों को बनाए रखते हुए वैश्विक आर्थिक अवसरों का लाभ उठाना। यह द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में जटिलता और राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों के सामरिक महत्व को उजागर करता है, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए अध्ययन का एक प्रमुख क्षेत्र है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: टैरिफ (Tariff) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला एक प्रकार का कर है।
    2. इसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना होता है।
    3. यह केवल वस्तुओं पर लगाया जा सकता है, सेवाओं पर नहीं।
    उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
    (a) 1 और 2
    (b) 2 और 3
    (c) 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (a)
    व्याख्या: कथन 3 गलत है क्योंकि टैरिफ को कभी-कभी कुछ सेवाओं पर भी लागू किया जा सकता है (जैसे डिजिटल सेवाओं पर कर), हालांकि यह कम आम है। मुख्य रूप से यह वस्तुओं के लिए उपयोग होता है।
  2. प्रश्न 2: ‘स्वदेशी’ आंदोलन का संबंध मुख्य रूप से किस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से है?
    (a) जवाहरलाल नेहरू
    (b) सरदार वल्लभभाई पटेल
    (c) महात्मा गांधी
    (d) सुभाष चंद्र बोस
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: महात्मा गांधी ने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार और भारतीय निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर जोर देकर ‘स्वदेशी’ को स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया था।
  3. प्रश्न 3: ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
    (a) केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करना।
    (b) आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू क्षमताओं को बढ़ाना।
    (c) केवल निर्यात को दोगुना करना।
    (d) भारत को एक ऑफशोर विनिर्माण केंद्र बनाना।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: ‘आत्मनिर्भर भारत’ का मुख्य लक्ष्य विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है, जिसमें आयात को कम करना और घरेलू उत्पादन, कौशल और नवाचार को बढ़ावा देना शामिल है।
  4. प्रश्न 4: संरक्षणवाद (Protectionism) की नीति के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक उपकरण है?
    (a) मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement)
    (b) कोटा (Quota)
    (c) विदेशी सहायता (Foreign Aid)
    (d) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: कोटा आयात की मात्रा को सीमित करता है, जो संरक्षणवाद का एक रूप है। टैरिफ, सब्सिडी और आयात प्रतिबंध भी संरक्षणवादी उपकरण हैं।
  5. प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत के लिए एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार रहा है, जहाँ हाल के वर्षों में व्यापारिक विवाद सामने आए हैं?
    (a) चीन
    (b) संयुक्त अरब अमीरात
    (c) संयुक्त राज्य अमेरिका
    (d) रूस
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: समाचारों के अनुसार, हालिया टैरिफ की घटनाएँ भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव को दर्शाती हैं।
  6. प्रश्न 6: ‘मेड इन इंडिया’ पहल का मुख्य लक्ष्य क्या है?
    (a) भारतीय उत्पादों के निर्यात को हतोत्साहित करना।
    (b) भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना और आयात को कम करना।
    (c) केवल भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देना।
    (d) भारतीय सेवाओं का विदेशी विपणन करना।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: ‘मेक इन इंडिया’ (अब ‘मेक इन इंडिया’ के रूप में विस्तारित) भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने और भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए है।
  7. प्रश्न 7: भू-राजनीतिक (Geopolitical) संदर्भ में, राष्ट्रों के बीच व्यापारिक टैरिफ का क्या प्रभाव हो सकता है?
    1. संबंधों में तनाव बढ़ सकता है।
    2. व्यापारिक प्रतिशोध (Trade Retaliation) की संभावना बढ़ सकती है।
    3. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित हो सकती हैं।
    उपरोक्त में से कौन से प्रभाव संभव हैं?
    (a) 1 और 2
    (b) 2 और 3
    (c) 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: टैरिफ अक्सर दो या दो से अधिक देशों के बीच व्यापारिक तनाव, जवाबी कार्रवाई और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान का कारण बनते हैं।
  8. प्रश्न 8: यदि कोई देश अपने घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए आयातित वस्तुओं पर उच्च टैरिफ लगाता है, तो इसका एक संभावित परिणाम क्या हो सकता है?
    (a) आयातित वस्तुओं की कीमतें कम हो जाएंगी।
    (b) घरेलू उत्पादकों को बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
    (c) घरेलू उद्योगों को संरक्षण मिलेगा।
    (d) उपभोक्ता विकल्प बढ़ जाएंगे।
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: उच्च टैरिफ आयातित वस्तुओं को महंगा बनाते हैं, जिससे घरेलू उत्पादों को बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनने और संरक्षण प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  9. प्रश्न 9: ‘सतर्क रहने’ के प्रधान मंत्री के आह्वान का आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों संदर्भों में क्या अर्थ हो सकता है?
    (a) केवल घरेलू उत्पादों के उपभोग पर ध्यान केंद्रित करना।
    (b) वैश्विक व्यापार गतिशीलता के प्रति जागरूक रहना और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए तैयार रहना।
    (c) केवल विदेशी निवेश को हतोत्साहित करना।
    (d) सभी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों से बाहर निकलना।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: ‘सतर्क रहना’ वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य के प्रति संवेदनशीलता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए रणनीतिक प्रतिक्रियाओं के लिए तत्परता को दर्शाता है।
  10. प्रश्न 10: ‘स्वदेशी’ के आधुनिक दृष्टिकोण में निम्नलिखित में से क्या शामिल हो सकता है?
    1. केवल विदेशी ब्रांडों का बहिष्कार।
    2. भारतीय मूल के उत्पादों की गुणवत्ता और नवाचार को बढ़ावा देना।
    3. कच्चे माल और विनिर्माण को स्थानीय बनाना।
    4. वैश्विक मानकों के अनुरूप उत्पादन।
    उपरोक्त में से कौन से कथन आधुनिक ‘स्वदेशी’ के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं?
    (a) 1 और 4
    (b) 2 और 3
    (c) 1, 2 और 4
    (d) 2, 3 और 4
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: आधुनिक ‘स्वदेशी’ सिर्फ बहिष्कार से आगे बढ़कर गुणवत्ता, नवाचार, स्थानीयकरण और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता पर जोर देता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: प्रधान मंत्री के ‘स्वदेशी’ आह्वान के संदर्भ में, वैश्विक संरक्षणवाद के बढ़ते चलन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की गतिशीलता को देखते हुए, भारत के आर्थिक विकास के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ की रणनीति के महत्व का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में हालिया तनावों और टैरिफ विवादों ने भारत की निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों को कैसे प्रभावित किया है? इस परिदृश्य में ‘स्वदेशी’ को बढ़ावा देने के क्या निहितार्थ हैं? (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न 3: वैश्वीकरण के युग में राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जा सकता है? ‘स्वदेशी’ की अवधारणा के पुनरुद्धार से भारत को किन चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ सकता है? (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न 4: “संरक्षणवाद की वापसी वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।” इस कथन के प्रकाश में, टैरिफ के उपयोग और प्रधान मंत्री के ‘स्वदेशी’ आह्वान के परिणामों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)

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