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20 सेकंड का विध्वंस: उत्तरकाशी की आपदा से हिमालयी निर्माण की सच्चाई

20 सेकंड का विध्वंस: उत्तरकाशी की आपदा से हिमालयी निर्माण की सच्चाई

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में उत्तरकाशी जिले में हुई विनाशकारी आपदा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। धरौली जैसे इलाके में 20 सेकंड के भीतर जिस तरह इमारतों को ताश के पत्तों की तरह ढहते देखा गया, उसने न केवल मानवीय त्रासदी को उजागर किया, बल्कि हमारे हिमालयी क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण और विकास की नीतियों पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस घटना का वीडियो फुटेज, जिसमें इमारतों को अचानक ढहते हुए दिखाया गया है, ने आपदा की भयावहता और गति को स्पष्ट रूप से दर्शाया है। यह सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि यह उन बड़े जोखिमों का प्रतिबिंब है जिनका सामना भारत का हिमालयी क्षेत्र तेजी से हो रहा है।

यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना का गहन विश्लेषण करेगा, इसके पीछे के कारणों की पड़ताल करेगा, और सबसे महत्वपूर्ण, UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट करेगा। हम आपदा के भूवैज्ञानिक, पर्यावरणीय, सामाजिक-आर्थिक और प्रशासनिक आयामों पर प्रकाश डालेंगे, और भविष्य के लिए आवश्यक सबक सीखेंगे।

उत्तराखंड: एक संवेदनशील ‘लैंड ऑफ़ पैराडॉक्स’ (Uttarakhand: A Sensitive ‘Land of Paradox’)

उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, पवित्र नदियों और ऊँचे हिमालयी शिखरों के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, यही हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र इसे अत्यंत नाजुक और भूवैज्ञानिक रूप से सक्रिय क्षेत्र भी बनाता है। तीव्र भूकंपीय गतिविधि, भारी वर्षा, हिमस्खलन और भूस्खलन यहाँ की सामान्य घटनाएं हैं। इसी नाजुकता के बावजूद, पर्यटन और आर्थिक विकास की होड़ में, कई संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण और अविकसित अवसंरचना ने इस नाजुक संतुलन को और बिगाड़ दिया है।

उत्तरकाशी आपदा, विशेष रूप से धरौली में इमारतों का अचानक ढहना, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मानव निर्मित गतिविधियाँ कैसे प्राकृतिक प्रणालियों के साथ खतरनाक रूप से टकरा सकती हैं।

घटना का विस्तृत विश्लेषण (Detailed Analysis of the Event)

प्रारंभिक रिपोर्टें और वीडियो साक्ष्य:
घटनास्थल से प्राप्त वीडियो फुटेज में दिखाया गया है कि कैसे अचानक आई आफत ने पल भर में सब कुछ मलबे में तब्दील कर दिया। इमारतें, जो कभी लोगों के रहने और व्यवसाय करने के ठिकाने थीं, कुछ ही सेकंड में ढह गईं, जिससे धूल का गुबार फैल गया। यह दृश्य उन लोगों के लिए अत्यंत विचलित करने वाला था जिन्होंने इसे देखा, और इसने विशेषज्ञों को तुरंत यह समझने के लिए प्रेरित किया कि आखिर ऐसा कैसे हुआ।

“यह अविश्वसनीय था। जैसे कोई भारी हाथ उन इमारतों को दबा रहा हो। 20 सेकंड से भी कम समय में, सब कुछ खत्म हो गया।” – एक प्रत्यक्षदर्शी की आपबीती

संभावित कारण:
इस विनाश के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • भूस्खलन: सबसे संभावित कारण एक बड़े भूस्खलन का अचानक ट्रिगर होना था, जिसने इमारतों को आधार से उखाड़ फेंका। ढलानों पर निर्माण, खासकर प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बाधित करने वाले निर्माण, भूस्खलन की संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं।
  • भूकंपीय गतिविधि: हालांकि प्रत्यक्ष रूप से भूकंप की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन भूकंपीय झटके, खासकर किसी दूर के भूकंप के कारण, ढीली मिट्टी और मलबे को अस्थिर कर सकते हैं, जिससे ढलान पर मौजूद संरचनाएं ढह सकती हैं।
  • अवैध और अनियोजित निर्माण: पहाड़ी ढलानों पर, खासकर नदियों के किनारे, निर्माण के लिए कड़े नियम और दिशानिर्देश होते हैं। यदि इन नियमों का उल्लंघन किया गया है, जैसे कि निर्माण की गहराई, सामग्री का उपयोग, या ढलान की स्थिरता का पर्याप्त मूल्यांकन किए बिना, तो संरचनाएं कमजोर हो जाती हैं।
  • जल निकासी प्रणाली का अव्यवस्था: भारी वर्षा या बर्फबारी के कारण जमा हुआ पानी, यदि ठीक से निकास न हो, तो मिट्टी को संतृप्त कर सकता है, जिससे उसकी वहन क्षमता कम हो जाती है और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाओं (जैसे भारी वर्षा, अचानक बर्फ पिघलना) की आवृत्ति बढ़ रही है, जो हिमालयी क्षेत्रों में भूवैज्ञानिक खतरों को बढ़ा सकती हैं।

UPSC के लिए प्रासंगिक आयाम (Relevant Dimensions for UPSC)

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।

1. भूगोल (Geography)

  • भौतिक भूगोल: हिमालयी भूविज्ञान, प्लेट टेक्टोनिक्स, भूकंपीय क्षेत्र (भारतीय उपमहाद्वीप जोन V में स्थित), भूस्खलन के प्रकार और कारण, नदी अपरदन और निक्षेपण।
  • मानव भूगोल: पहाड़ी क्षेत्रों में जनसांख्यिकी, प्रवास, विकास पैटर्न, शहरीकरण और इसकी सीमाएं।
  • आपदा भूगोल: आपदाओं का वितरण, भेद्यता (vulnerability), जोखिम (risk) और क्षमता (capacity) का अध्ययन।

2. पर्यावरण (Environment)

  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): पहाड़ी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं का EIA कितना महत्वपूर्ण है।
  • जलवायु परिवर्तन: हिमालयी क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जैसे ग्लेशियरों का पिघलना, वर्षा पैटर्न में बदलाव, और चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति।
  • पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता: हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी और अनियोजित विकास का इस पर प्रभाव।

3. शासन और लोक प्रशासन (Governance and Public Administration)

  • आपदा प्रबंधन: भारत की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति, NDMA (National Disaster Management Authority) की भूमिका, NDRF (National Disaster Response Force), SDRF (State Disaster Response Force) की भूमिका, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems), राहत और पुनर्वास।
  • शहरी नियोजन और विकास: हिमालयी क्षेत्रों में टिकाऊ शहरी नियोजन, बिल्डिंग कोड, ज़ोनिंग नियम, और उनका प्रवर्तन (enforcement)।
  • नीति निर्माण: पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन, पर्वतीय विकास परिषद (Mountain Development Councils) की भूमिका।
  • भ्रष्टाचार और कुशासन: निर्माण नियमों के उल्लंघन और अवैध निर्माण में प्रशासनिक अक्षमता या मिलीभगत के आरोप।

4. अर्थव्यवस्था (Economy)

  • पर्यटन और अवसंरचना: पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन के विकास और संबंधित अवसंरचना (सड़क, भवन) के निर्माण के आर्थिक प्रभाव।
  • पुनर्निर्माण की लागत: आपदा के बाद पुनर्निर्माण और पुनर्वास की आर्थिक लागत।
  • स्थानीय आजीविका: आपदाओं का स्थानीय आजीविका पर प्रभाव और पुनर्निर्माण के माध्यम से आजीविका की बहाली।

5. सुरक्षा (Security)

  • राष्ट्रीय सुरक्षा: हिमालयी क्षेत्रों में अवसंरचना की भेद्यता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय हो सकती है, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में।
  • आंतरिक सुरक्षा: आपदाओं से उत्पन्न सामाजिक अशांति या असंतोष।

कारणों का विस्तृत अध्ययन (In-depth Study of Causes)

भूवैज्ञानिक कारण (Geological Causes):
हिमालय एक युवा पर्वत श्रृंखला है जो अभी भी टेक्टोनिक रूप से सक्रिय है। भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकरा रही है, जिससे निरंतर तनाव पैदा होता है।

  • ढलान की अस्थिरता: ढलानों पर भारी निर्माण, वनों की कटाई, और प्राकृतिक जल स्रोतों का मार्ग बदलना मिट्टी को ढीला कर सकता है। भारी वर्षा या भूकंपीय झटके इस ढीली सामग्री को ढलान के नीचे खिसकने के लिए ट्रिगर कर सकते हैं, जिसे भूस्खलन कहते हैं।
  • मिश्रित मिट्टी और चट्टानें: पहाड़ी इलाकों में अक्सर ढीली बजरी, मिट्टी और खंडित चट्टानों की परतें होती हैं, जो भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

मानव जनित कारण (Man-made Causes):
यह पहलू सबसे विवादास्पद और चिंताजनक है, क्योंकि यह सीधे तौर पर हमारी विकास नीतियों और उनके कार्यान्वयन से जुड़ा है।

  • अनियोजित शहरीकरण: पर्यटन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, कई पहाड़ी शहरों और कस्बों में निर्माण की अनुमति बिना पर्याप्त भू-तकनीकी (geo-technical) अध्ययन के दी गई है।
  • भवन कोड का उल्लंघन: कई इमारतों में भूकंप प्रतिरोधी डिजाइन (earthquake-resistant design) और निर्माण सामग्री का उपयोग नहीं किया गया है। स्थानीय बिल्डरों या ठेकेदारों द्वारा लागत कम करने के लिए नियमों को दरकिनार किया जाता है।
  • पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी: ढलानों की कटाई, नदी तल में निर्माण, और भूजल निकासी को बाधित करने वाले निर्माण आम बात हो गई है।
  • जागरूकता की कमी: निवासियों और स्थानीय अधिकारियों में भी इन खतरों और आवश्यक सावधानियों के प्रति जागरूकता का अभाव हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन का सह-संबंध (Climate Change Correlation):
हाल के वर्षों में, हिमालयी क्षेत्र ने अनिश्चित मौसम पैटर्न का अनुभव किया है:

  • अचानक भारी वर्षा: कम समय में अत्यधिक वर्षा, जो भूस्खलन और बाढ़ का कारण बनती है।
  • हिमस्खलन और भूस्खलन का मिश्रण: बर्फ पिघलने और भारी वर्षा का संयोजन ढलानों को और अस्थिर कर सकता है।
  • स्थानीय तापमान में वृद्धि: इससे स्थायी हिम (permafrost) पिघल सकता है, जिससे भूवैज्ञानिक संरचनाएं अस्थिर हो जाती हैं।

आपदा के प्रभाव (Impacts of the Disaster)

मानवीय प्रभाव:
यह सबसे दुखद पहलू है। लोगों की जानें गईं, घर नष्ट हो गए, और अनगिनत लोग बेघर हो गए। इस त्रासदी ने परिवारों को तबाह कर दिया है और समुदायों को सदमे में डाल दिया है।

आर्थिक प्रभाव:

  • संपत्ति का नुकसान: इमारतों, दुकानों और बुनियादी ढांचों के भारी नुकसान के कारण प्रत्यक्ष आर्थिक हानि।
  • व्यवसायों का बंद होना: स्थानीय व्यवसाय, जो पर्यटन पर निर्भर थे, तबाह हो गए हैं।
  • पर्यटन पर असर: इस तरह की घटनाओं से पर्यटकों का विश्वास कम होता है, जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • पुनर्निर्माण की लागत: सरकारी और निजी संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा पुनर्निर्माण और पुनर्वास में लगेगा।

पर्यावरणीय प्रभाव:

  • पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान: भूस्खलन से वनस्पति नष्ट हो जाती है, मिट्टी का क्षरण बढ़ता है, और स्थानीय जैव विविधता प्रभावित होती है।
  • जल स्रोतों का अवरोध: मलबे से नदियाँ और जलधाराएँ अवरुद्ध हो सकती हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है या जल स्रोतों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।

UPSC के लिए समाधान और आगे की राह (Solutions and Way Forward for UPSC)

यह घटना भारत के लिए, विशेषकर हिमालयी राज्यों के लिए, एक वेक-अप कॉल है। हमें अपनी विकास रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।

1. बेहतर आपदा प्रबंधन (Improved Disaster Management):

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ के लिए अधिक परिष्कृत और व्यापक प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों का विकास और तैनाती।
  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों, विशेषकर जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, को आपदाओं के दौरान स्वयं को बचाने और प्राथमिक उपचार के लिए प्रशिक्षित करना।
  • त्वरित प्रतिक्रिया बल: NDRF और SDRF की क्षमता और पहुंच को बढ़ाना, उन्हें आधुनिक उपकरणों से लैस करना।

2. टिकाऊ शहरी नियोजन और निर्माण (Sustainable Urban Planning and Construction):

  • कठोर बिल्डिंग कोड: हिमालयी क्षेत्रों के लिए विशिष्ट, भूकंपीय रूप से प्रतिरोधी बिल्डिंग कोड को सख्ती से लागू करना।
  • भू-तकनीकी अध्ययन: किसी भी निर्माण परियोजना से पहले भूस्खलन और भूकंपीय जोखिमों का विस्तृत भू-तकनीकी अध्ययन अनिवार्य करना।
  • ज़ोनिंग: अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्रों (जैसे खड़ी ढलान, नदी के किनारे) को निर्माण के लिए प्रतिबंधित करना।
  • पारंपरिक वास्तुकला का पुनरुद्धार: स्थानीय रूप से उपलब्ध टिकाऊ सामग्री और पारंपरिक निर्माण तकनीकों को बढ़ावा देना जो भूकंप और भूस्खलन के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं।

3. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation):

  • वन संरक्षण और वृक्षारोपण: ढलानों की स्थिरता के लिए वनों का संरक्षण और नए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
  • जल निकासी प्रबंधन: पहाड़ी क्षेत्रों में जल निकासी प्रणालियों का उचित रखरखाव और सुधार।
  • भूमि उपयोग योजना: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए भूमि उपयोग की योजना बनाना।

4. संस्थागत सुधार (Institutional Reforms):

  • प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करना: निर्माण नियमों और पर्यावरणीय कानूनों के प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करना।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: निर्माण अनुमतियों और निरीक्षण प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • जागरूकता अभियान: जनता और स्थानीय अधिकारियों के बीच आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना।

5. नीतिगत हस्तक्षेप (Policy Interventions):

  • पर्वतीय विकास के लिए विशेष नीति: हिमालयी राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक व्यापक और एकीकृत पर्वतीय विकास नीति।
  • आर्थिक प्रोत्साहन: टिकाऊ निर्माण प्रथाओं को अपनाने वाले बिल्डरों और डेवलपर्स को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन।
  • शोध और विकास: हिमालयी भूविज्ञान, आपदाओं और टिकाऊ निर्माण पर शोध को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तरकाशी की यह हालिया आपदा एक भयानक अनुस्मारक है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ महंगी पड़ सकती है। 20 सेकंड में ताश के पत्तों की तरह ढहती इमारतों ने न केवल भौतिक क्षति पहुंचाई, बल्कि एक गहरी सीख भी दी। UPSC उम्मीदवारों को इस घटना का विश्लेषण करते समय, केवल एक घटना के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रणालीगत विफलता के रूप में देखना चाहिए, जिसमें भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता, अनियंत्रित विकास, जलवायु परिवर्तन और कमजोर शासन शामिल हैं।

हमें एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ना होगा जहां विकास प्रकृति की गोद में हो, न कि उसके खिलाफ। हिमालय की सुरक्षा और वहां रहने वाले लोगों का कल्याण हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके, और हमारे निर्माण ‘ताश के पत्ते’ न हों, बल्कि ‘मजबूत किले’ हों जो आने वाली पीढ़ियों की रक्षा कर सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: हाल ही में उत्तरकाशी में देखी गई आपदा के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सबसे सटीक रूप से भूस्खलन के कारण को दर्शाता है?
    a) केवल भारी बारिश
    b) केवल भूकंपीय गतिविधि
    c) अनियोजित निर्माण, ढलान की अस्थिरता, और अत्यधिक वर्षा का संयोजन
    d) नदियों का अचानक मार्ग बदलना
    उत्तर: c) अनियोजित निर्माण, ढलान की अस्थिरता, और अत्यधिक वर्षा का संयोजन
    व्याख्या: भूस्खलन आमतौर पर एक जटिल घटना होती है जो विभिन्न कारकों के संयोजन से उत्पन्न होती है, जिसमें ढलान की अंतर्निहित अस्थिरता, मानव निर्मित हस्तक्षेप (जैसे निर्माण) और ट्रिगरिंग इवेंट (जैसे भारी वर्षा या भूकंप) शामिल हैं।
  2. प्रश्न 2: भारत में हिमालयी क्षेत्र किस भूकंपीय क्षेत्र (Seismic Zone) में आता है, जो इसे भूकंपों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाता है?
    a) जोन I
    b) जोन III
    c) जोन IV
    d) जोन V
    उत्तर: d) जोन V
    व्याख्या: भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिमालयी क्षेत्र, विशेष रूप से उत्तर और पूर्वोत्तर भारत, जोन V में आते हैं, जो सबसे अधिक भूकंपीय गतिविधि वाला क्षेत्र है।
  3. प्रश्न 3: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की प्राथमिक भूमिका क्या है?
    a) केवल राहत और पुनर्वास प्रदान करना
    b) आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों का निर्माण और समन्वय करना
    c) व्यक्तिगत रूप से आपदा स्थलों पर बचाव कार्य का नेतृत्व करना
    d) भविष्यवाणियों के आधार पर आपदाओं की भविष्यवाणी करना
    उत्तर: b) आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों का निर्माण और समन्वय करना
    व्याख्या: NDMA एक शीर्ष निकाय है जो भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों, योजनाओं और दिशा-निर्देशों का निर्माण और समन्वय करता है।
  4. प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा कारक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की नाजुकता को नहीं बढ़ाता है?
    a) युवा और अस्थिर भूविज्ञान
    b) तीव्र वर्षा और बाढ़ की आवृत्ति
    c) बड़े पैमाने पर वन आवरण
    d) ग्लेशियरों का पिघलना
    उत्तर: c) बड़े पैमाने पर वन आवरण
    व्याख्या: बड़े पैमाने पर वन आवरण मिट्टी को स्थिर करने, जल निकासी को नियंत्रित करने और भूस्खलन को रोकने में मदद करता है, इस प्रकार यह नाजुकता को कम करता है, बढ़ाता नहीं।
  5. प्रश्न 5: पर्वतीय क्षेत्रों में टिकाऊ विकास के लिए निम्नलिखित में से कौन सी रणनीति सबसे महत्वपूर्ण है?
    a) अनियंत्रित पर्यटन को बढ़ावा देना
    b) बिना किसी नियमन के बड़े पैमाने पर अवसंरचना का निर्माण
    c) पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सामग्री और तकनीकों का उपयोग
    d) स्थानीय वन संसाधनों का दोहन
    उत्तर: c) पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सामग्री और तकनीकों का उपयोग
    व्याख्या: टिकाऊ विकास के लिए पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुंचाने वाली निर्माण प्रथाओं को अपनाना महत्वपूर्ण है।
  6. प्रश्न 6: उत्तरकाशी जैसी आपदाओं के संदर्भ में, ‘भेद्यता’ (Vulnerability) शब्द का क्या अर्थ है?
    a) आपदा की तीव्रता
    b) किसी व्यक्ति या समुदाय की नुकसान झेलने की क्षमता
    c) आपदा से प्रभावित क्षेत्र का आकार
    d) प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की प्रभावशीलता
    उत्तर: b) किसी व्यक्ति या समुदाय की नुकसान झेलने की क्षमता
    व्याख्या: भेद्यता किसी इकाई की प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों से नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की प्रवृत्ति को दर्शाती है।
  7. प्रश्न 7: जलवायु परिवर्तन से संबंधित कौन सा प्रभाव हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकता है?
    a) ग्लेशियरों का विस्तार
    b) वर्षा पैटर्न में कमी
    c) भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि
    d) तापमान में कमी
    उत्तर: c) भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि
    व्याख्या: जलवायु परिवर्तन से चरम मौसमी घटनाओं, जैसे कि तीव्र और भारी वर्षा की आवृत्ति बढ़ जाती है, जो भूस्खलन के लिए एक प्रमुख ट्रिगर है।
  8. प्रश्न 8: बिल्डिंग कोड का उल्लंघन करने वाले निर्माण के क्या परिणाम हो सकते हैं?
    a) इमारतों की दीर्घायु में वृद्धि
    b) भूकंप या भूस्खलन के दौरान संरचनात्मक विफलता
    c) बेहतर अग्नि सुरक्षा
    d) निर्माण लागत में कमी
    उत्तर: b) भूकंप या भूस्खलन के दौरान संरचनात्मक विफलता
    व्याख्या: बिल्डिंग कोड सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करते हैं; उनका उल्लंघन संरचनात्मक कमजोरी का कारण बनता है।
  9. प्रश्न 9: हिमालयी क्षेत्रों में वन आवरण का क्या महत्व है?
    a) यह भूस्खलन को बढ़ावा देता है।
    b) यह मिट्टी को बांधता है और ढलानों को स्थिर करता है।
    c) यह केवल कागज के लिए एक ‘हरा’ तत्व है।
    d) यह स्थानीय जल स्रोतों को कम करता है।
    उत्तर: b) यह मिट्टी को बांधता है और ढलानों को स्थिर करता है।
    व्याख्या: पेड़ों की जड़ें मिट्टी को पकड़ कर रखती हैं, जिससे मिट्टी का कटाव और भूस्खलन का खतरा कम होता है।
  10. प्रश्न 10: उत्तरकाशी आपदा से प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण सबक क्या है, जिसे UPSC उम्मीदवारों को समझना चाहिए?
    a) केवल सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसी घटनाओं को रोके।
    b) विकास की गति को बनाए रखने के लिए पर्यावरण नियमों को नजरअंदाज किया जा सकता है।
    c) हिमालयी क्षेत्रों में टिकाऊ, सुरक्षित और योजनाबद्ध विकास महत्वपूर्ण है।
    d) प्राकृतिक आपदाएं अपरिहार्य हैं और उन्हें रोकने का कोई तरीका नहीं है।
    उत्तर: c) हिमालयी क्षेत्रों में टिकाऊ, सुरक्षित और योजनाबद्ध विकास महत्वपूर्ण है।
    व्याख्या: यह घटना दर्शाती है कि विकास की योजना बनाते समय सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता को प्राथमिकता देना कितना आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: उत्तरकाशी आपदा के संदर्भ में, हिमालयी क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण और विकास के भूवैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण कीजिए। आप ऐसे विनाश को रोकने के लिए किन नीतिगत और प्रशासनिक सुधारों का सुझाव देंगे? (250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: भारत में आपदा प्रबंधन में प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) की भूमिका पर चर्चा कीजिए। उत्तरकाशी जैसी हालिया घटनाओं के प्रकाश में, ऐसी प्रणालियों को और मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (150 शब्द)
  3. प्रश्न 3: जलवायु परिवर्तन को हिमालयी क्षेत्र में बढ़ी हुई प्राकृतिक आपदाओं के एक प्रमुख कारक के रूप में देखा जा रहा है। इस दावे का मूल्यांकन कीजिए और इन आपदाओं के प्रति भारत की अनुकूलन (adaptation) रणनीतियों पर टिप्पणी कीजिए। (200 शब्द)
  4. प्रश्न 4: “विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन हिमालयी राज्यों के लिए एक स्थायी चुनौती है।” इस कथन के आलोक में, उत्तरकाशी आपदा से मिले सबक का उपयोग करके, उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में टिकाऊ अवसंरचना विकास के लिए एक रोडमैप का प्रस्ताव करें। (250 शब्द)

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