Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

1971 का अमेरिका-पाकिस्तान राज: जब व्यापारिक तनावों ने इतिहास को याद दिलाया

1971 का अमेरिका-पाकिस्तान राज: जब व्यापारिक तनावों ने इतिहास को याद दिलाया

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, जब दुनिया तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन के व्यापारिक शुल्कों (tariffs) को लेकर गरमा रही थी, तब एक पुरानी खबर या क्लिप सामने आई जिसने इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ को याद दिलाया – 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध। यह क्लिप विशेष रूप से इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे उस युद्ध के दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान का पक्ष लिया था। यह ‘इस दिन, उस वर्ष’ (This day, that year) का एक दिलचस्प संयोग है, जो हमें भू-राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और ऐतिहासिक कूटनीति के जटिल ताने-बाने को समझने के लिए प्रेरित करता है। यह सिर्फ इतिहास का एक टुकड़ा नहीं है, बल्कि समकालीन वैश्विक राजनीति और व्यापारिक संबंधों के लिए मूल्यवान सबक भी समेटे हुए है।

परिचय: इतिहास और वर्तमान का संगम

अंतर्राष्ट्रीय संबंध रेत के टीलों की तरह होते हैं – लगातार बदलते, अप्रत्याशित, लेकिन अक्सर अपने मूल आकार से प्रेरित। कभी-कभी, वर्तमान की गरमाहट अतीत की उन यादों को सतह पर ले आती है जो भविष्य के लिए मार्गदर्शन का काम कर सकती हैं। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और अमेरिका की भूमिका का स्मरण, उस समय की बात है जब दुनिया एक अलग तरह के ‘ट्रेड वॉर’ (व्यापार युद्ध) की कगार पर खड़ी थी, लेकिन यह ऐतिहासिक घटनाक्रम हमें वर्तमान व्यापारिक तनावों को समझने के लिए एक गहरा संदर्भ प्रदान करता है।

यह लेख 1971 के युद्ध की पृष्ठभूमि, उस समय अमेरिका की भूमिका, भारत की स्थिति, और इस पूरी घटनाक्रम से जुड़े उन जटिलताओं का एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा जो आज भी प्रासंगिक हैं। हम देखेंगे कि कैसे आर्थिक और भू-राजनीतिक हित देशों के गठबंधनों को आकार देते हैं और कैसे इतिहास की पुनरावृत्ति, या उससे सीख, वर्तमान नीतियों को प्रभावित कर सकती है।

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध: पृष्ठभूमि और कारण

1971 का युद्ध केवल भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य टकराव नहीं था; यह तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चल रहे मुक्ति संग्राम का परिणाम था, जिसमें मानवतावादी संकट और राजनीतिक अशांति चरम पर थी।

पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ते तनाव:

  • राजनीतिक दमन: 1970 में पाकिस्तान में हुए आम चुनावों में अवामी लीग, जिसका नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान कर रहे थे, ने पूर्वी पाकिस्तान से भारी बहुमत हासिल किया। हालांकि, पश्चिम पाकिस्तानी नेतृत्व ने चुनावी नतीजों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया।
  • ऑपरेशन सर्चलाइट: 25 मार्च 1971 की रात, पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ चलाया। इसका उद्देश्य अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को कुचलना था। इस ऑपरेशन में भयानक नरसंहार हुआ, जिससे लाखों लोग मारे गए और करोड़ों लोग शरणार्थी बनकर भारत की ओर पलायन करने लगे।
  • मानवतावादी संकट: शरणार्थियों के इस भारी प्रवाह ने भारत पर भारी दबाव डाला। भारत की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर इसका सीधा असर पड़ रहा था। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की अपील की, लेकिन शुरुआती दौर में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली।

युद्ध का तात्कालिक कारण:

पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ते सैन्य अत्याचारों और पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ की घटनाओं के जवाब में, भारत ने 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के खिलाफ पूर्ण युद्ध की घोषणा कर दी। यह युद्ध 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना की निर्णायक जीत और ढाका में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ, जिससे बांग्लादेश का जन्म हुआ।

उस समय अमेरिका की भूमिका: ‘कैसे अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की’

शीत युद्ध (Cold War) के उस दौर में, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति अक्सर महाशक्तियों के हितों से संचालित होती थी। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका की भूमिका इसी भू-राजनीतिक समीकरण का परिणाम थी।

अमेरिका-पाकिस्तान संबंध:

  • रणनीतिक गठबंधन: 1950 के दशक से ही अमेरिका और पाकिस्तान के बीच मजबूत सैन्य और रणनीतिक संबंध थे। पाकिस्तान, CENTO (Central Treaty Organization) और SEATO (Southeast Asia Treaty Organization) जैसे अमेरिकी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों का हिस्सा था।
  • चीन के साथ संबंध: अमेरिका के लिए, पाकिस्तान चीन के साथ बातचीत करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम था। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की 1972 की चीन यात्रा की गुप्त व्यवस्था पाकिस्तान के माध्यम से ही हुई थी। इस पृष्ठभूमि में, अमेरिका पाकिस्तान को अस्थिर करने या किसी ऐसे युद्ध में फंसाने से बचना चाहता था जिसमें उसकी भूमिका संदिग्ध हो, खासकर जब चीन सोवियत संघ के साथ भारत के बढ़ते संबंधों से चिंतित था।

युद्ध के दौरान अमेरिकी हस्तक्षेप:

“जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ अपना अभियान तेज किया, तो अमेरिका ने अपनी सातवीं नौसेना के बेड़े (Seventh Fleet), जिसमें एक विमानवाहक पोत USS एंटरप्राइज शामिल था, को बंगाल की खाड़ी की ओर भेजा। इसका उद्देश्य भारतीय नौसेना पर दबाव बनाना और शायद पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान करना था।”

  • सैन्य सहायता: भले ही अमेरिका ने खुले तौर पर पाकिस्तान की तरफ से लड़ने का फैसला नहीं किया, लेकिन उसने पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता जारी रखी। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में भी पाकिस्तान के पक्ष में लॉबिंग की, हालांकि सोवियत संघ के वीटो के कारण उसे कामयाबी नहीं मिली।
  • कूटनीतिक दबाव: अमेरिका ने भारत पर युद्धविराम के लिए दबाव बनाया, जिसका मुख्य कारण पूर्वी पाकिस्तान में सोवियत समर्थित भारत की जीत को रोकना और पाकिस्तान की सामरिक अखंडता को बनाए रखना था।
  • गुप्त सहायता: कुछ रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका ने पाकिस्तान को गुप्त रूप से हथियार और लॉजिस्टिक्स सहायता भी प्रदान की।

भारत की प्रतिक्रिया और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति

भारत ने इस पूरे घटनाक्रम को कूटनीतिक रूप से चतुराई से संभाला।

  • सोवियत संघ के साथ संधि: युद्ध से ठीक पहले, अगस्त 1971 में, भारत ने सोवियत संघ के साथ ‘शांति, मित्रता और सहयोग की संधि’ पर हस्ताक्षर किए। इस संधि ने भारत को एक मजबूत राजनयिक और सैन्य सुरक्षा कवच प्रदान किया, खासकर अमेरिकी हस्तक्षेप के खतरे के मद्देनजर। सोवियत संघ ने भारत के रुख का समर्थन किया और अमेरिकी नौसेना की ओर से किसी भी संभावित हस्तक्षेप को रोकने की चेतावनी दी।
  • संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष: भारत ने संयुक्त राष्ट्र में शरणार्थी संकट और पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों को उजागर किया। हालांकि, अमेरिका और चीन जैसे देशों ने पाकिस्तान का समर्थन किया, लेकिन सोवियत संघ के वीटो पावर ने कई प्रस्तावों को पारित होने से रोक दिया।
  • जनरल अरोड़ा का संदेश: युद्ध के अंत में, जब भारतीय सेनाएं ढाका के करीब थीं, भारतीय कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने पाकिस्तानी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी को आत्मसमर्पण का प्रस्ताव दिया। आत्मसमर्पण के इस क्षण ने इतिहास बदल दिया।

आज के समकालीन मुद्दों से जुड़ाव: व्यापारिक तनाव

जब हम 1971 की बात कर रहे हैं, तो यह देखना महत्वपूर्ण है कि वर्तमान की ‘व्यापारिक शुल्कों की गर्मी’ (Trump tariff heat) कैसे इस ऐतिहासिक घटनाक्रम से जुड़ती है।

व्यापारिक शुल्कों का संदर्भ:

  • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: 2018 के आसपास, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर आयात शुल्कों की एक श्रृंखला लगाई, जिससे दोनों देशों के बीच एक गंभीर व्यापार युद्ध छिड़ गया। इसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की सुरक्षा और व्यापार घाटे को कम करना था।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: इन शुल्कों का वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (global supply chains) और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर गहरा प्रभाव पड़ा। कई देशों ने अपनी आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया।

ऐतिहासिक कूटनीति और वर्तमान व्यापार नीतियां:

“1971 में, अमेरिका ने अपने भू-राजनीतिक हितों (चीन के साथ संबंध, सोवियत संघ का प्रभाव रोकना) के कारण पाकिस्तान का समर्थन किया, भले ही इससे भारत के रुख के खिलाफ जाना पड़े। आज, व्यापारिक शुल्कों के माध्यम से, अमेरिका अपने आर्थिक हितों (रोजगार, औद्योगिक नीतियां) को प्राथमिकता दे रहा है, भले ही इससे वैश्विक व्यापार संबंधों में तनाव आए।”

  • राष्ट्रीय हित सर्वोपरि: दोनों ही परिदृश्यों में, हम देखते हैं कि राष्ट्र अपने ‘राष्ट्रीय हितों’ (national interests) को सर्वोपरि रखते हैं। 1971 में, यह हित भू-राजनीतिक था; आज, यह आर्थिक है।
  • गठबंधन और निर्भरता: 1971 में भारत की सोवियत संघ पर निर्भरता और आज दुनिया भर के देशों की अमेरिकी बाजार पर निर्भरता, यह दर्शाती है कि कैसे आर्थिक और राजनीतिक हित देशों के गठबंधनों और निर्भरताओं को आकार देते हैं।
  • सामरिक साझेदारी का पुनर्मूल्यांकन: जैसे 1971 की घटनाओं ने भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता (strategic autonomy) पर जोर देने के लिए प्रेरित किया, वैसे ही वर्तमान व्यापारिक तनाव दुनिया भर के देशों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर निर्भरता कम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

1971 युद्ध से सीख: UPSC के लिए प्रासंगिकता

यह ऐतिहासिक घटनाक्रम UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए कई महत्वपूर्ण सबक प्रदान करता है, खासकर अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR), राष्ट्रीय सुरक्षा और समकालीन घटनाओं जैसे विषयों के लिए।

IA (International Affairs) के दृष्टिकोण से:

  • भू-राजनीति और राष्ट्रीय हित: देशों की विदेश नीतियां कैसे उनके राष्ट्रीय हितों से निर्देशित होती हैं, यह 1971 के युद्ध में अमेरिका की भूमिका से स्पष्ट होता है।
  • गठबंधन की गतिशीलता: शीत युद्ध के दौरान भारत-सोवियत संधि और अमेरिका-पाकिस्तान गठजोड़, गठबंधन की प्रकृति और उनकी स्थिरता को समझने में मदद करते हैं।
  • राष्ट्रों का उदय: 1971 ने बांग्लादेश जैसे एक नए राष्ट्र के जन्म का मार्ग प्रशस्त किया, जो राष्ट्र-निर्माण और आत्मनिर्णय के महत्व को दर्शाता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से:

  • सैन्य कूटनीति: युद्ध के दौरान सैन्य शक्ति का प्रदर्शन और कूटनीतिक चालें, जैसे कि अमेरिकी नौसेना का भेजा जाना और सोवियत संघ की प्रतिक्रिया, सैन्य कूटनीति की भूमिका को उजागर करते हैं।
  • सामरिक स्वायत्तता: भारत की अपनी विदेश नीति और रक्षा निर्णयों में स्वायत्तता बनाए रखने की क्षमता, विशेष रूप से महाशक्तियों के दबाव में, एक महत्वपूर्ण सीख है।
  • आंतरिक सुरक्षा: शरणार्थी संकट और सीमावर्ती मुद्दे, आंतरिक सुरक्षा के लिए बाहरी घटनाओं के महत्व को रेखांकित करते हैं।

समकालीन घटनाओं से जुड़ाव:

  • व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद: वर्तमान व्यापारिक तनावों को 1971 जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के संदर्भ में देखकर, हम राष्ट्रों के संरक्षणवादी झुकाव के कारणों और प्रभावों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।
  • बदलती वैश्विक व्यवस्था: जिस तरह 1971 ने शक्ति संतुलन को प्रभावित किया, उसी तरह आज के आर्थिक और भू-राजनीतिक बदलाव एक नई वैश्विक व्यवस्था को आकार दे रहे हैं।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह

1971 की घटनाएँ और उनके आज के समकालीन मुद्दों से संबंध, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलता और अप्रत्याशितता को दर्शाते हैं।

  • अतीत की छाया: भारत और पाकिस्तान के रिश्ते आज भी तनावपूर्ण हैं, और 1971 का युद्ध अभी भी उनके द्विपक्षीय संबंधों पर एक लंबी छाया डालता है।
  • आर्थिक राष्ट्रवाद: वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में आर्थिक राष्ट्रवाद (economic nationalism) का बढ़ता चलन, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और व्यापार के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर रहा है।
  • वैश्विक शासन की भूमिका: संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं, क्या वैश्विक तनावों को कम करने में प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं, यह एक सतत प्रश्न है।

भविष्य की राह के लिए, यह आवश्यक है कि राष्ट्र इतिहास से सीखें, लेकिन अतीत के बोझ तले दबे न रहें। भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों के बीच संतुलन बनाना, कूटनीति को प्राथमिकता देना और अंतर्राष्ट्रीय नियमों-आधारित व्यवस्था को मजबूत करना, भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा।

निष्कर्ष

‘इस दिन, उस वर्ष’ की याद दिलाते हुए, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और उस समय अमेरिका की भूमिका का विश्लेषण हमें यह सिखाता है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंध कभी भी स्थिर नहीं होते। आर्थिक हित, भू-राजनीतिक रणनीतियाँ और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताएँ मिलकर विदेश नीतियों को आकार देती हैं। जब समकालीन व्यापारिक तनाव हमें ‘ट्रम्प के टैरिफ हीट’ की याद दिलाते हैं, तो 1971 के युद्ध की पृष्ठभूमि में अमेरिकी सहायता की कहानी हमें याद दिलाती है कि राष्ट्रीय हित कैसे अक्सर अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति को निर्देशित करते हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, कूटनीति और वर्तमान वैश्विक चुनौतियों को समझने का एक बहुमूल्य अवसर भी है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. इस युद्ध का तात्कालिक कारण पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चल रहा मुक्ति संग्राम था।
    2. शेख मुजीबुर्रहमान अवामी लीग के नेता थे, जिन्होंने 1970 के चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान से बहुमत हासिल किया था।
    3. ऑपरेशन सर्चलाइट पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में शुरू किया गया एक शांति अभियान था।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

    उत्तर: (a) और (b)

    व्याख्या: कथन (c) गलत है क्योंकि ऑपरेशन सर्चलाइट एक क्रूर सैन्य अभियान था, न कि शांति अभियान। इसने पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर हिंसा और नरसंहार को जन्म दिया।

  2. प्रश्न 2: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, किस देश ने भारत के साथ ‘शांति, मित्रता और सहयोग की संधि’ पर हस्ताक्षर किए?

    उत्तर: सोवियत संघ

    व्याख्या: भारत ने 1971 में सोवियत संघ के साथ एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संधि की, जिसने उसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर, विशेष रूप से अमेरिकी हस्तक्षेप के खिलाफ, मजबूत कूटनीतिक और सैन्य सुरक्षा प्रदान की।
  3. प्रश्न 3: 1971 में, अमेरिका ने किस देश को बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां नौसेना बेड़ा (Seventh Fleet) भेजने की कार्रवाई की?

    उत्तर: भारत

    व्याख्या: अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने और पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष समर्थन देने के प्रयास में, अपना सातवां नौसेना बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर भेजा था।
  4. प्रश्न 4: उस समय के पूर्वी पाकिस्तान को वर्तमान में किस नाम से जाना जाता है?

    उत्तर: बांग्लादेश

    व्याख्या: 1971 के युद्ध के परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में उभरा।
  5. प्रश्न 5: शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों का उपयोग मुख्य रूप से किस देश के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने के लिए कर रहा था?

    उत्तर: चीन

    व्याख्या: पाकिस्तान, अमेरिका और चीन के बीच राजनयिक संवाद के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी था, विशेष रूप से राष्ट्रपति निक्सन की 1972 की चीन यात्रा की व्यवस्था में।
  6. प्रश्न 6: 1971 में भारत ने किस देश की शरणार्थी समस्या का सामना किया था?

    उत्तर: पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश)

    व्याख्या: पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के कारण करोड़ों लोग शरणार्थी बनकर भारत आ गए थे, जिससे भारत पर भारी बोझ पड़ा।
  7. प्रश्न 7: 1971 के युद्ध के अंत में, किस भारतीय कमांडर ने पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण को स्वीकार किया था?

    उत्तर: लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा

    व्याख्या: लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, पूर्वी कमान के कमांडर थे, जिन्होंने ढाका में पाकिस्तानी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी से आत्मसमर्पण स्वीकार किया था।
  8. प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा संगठन 1950 के दशक में अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों का हिस्सा था, जिसका पाकिस्तान भी सदस्य था?

    उत्तर: CENTO और SEATO

    व्याख्या: पाकिस्तान CENTO (Central Treaty Organization) और SEATO (Southeast Asia Treaty Organization) दोनों का सदस्य था, जो अमेरिका के नेतृत्व वाले शीत युद्ध के सैन्य गठबंधनों का हिस्सा थे।
  9. प्रश्न 9: हालिया वैश्विक व्यापारिक तनावों के संदर्भ में, किस देश के राष्ट्रपति द्वारा लगाए गए व्यापारिक शुल्कों (tariffs) का उल्लेख किया गया है?

    उत्तर: संयुक्त राज्य अमेरिका (तब डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में)

    व्याख्या: लेख में ‘ट्रम्प टैरिफ हीट’ का उल्लेख तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा विभिन्न देशों, विशेषकर चीन पर लगाए गए शुल्कों के संदर्भ में है।
  10. प्रश्न 10: 1971 के युद्ध से भारत ने किस प्रमुख कूटनीतिक सिद्धांत पर अधिक जोर देना सीखा?

    उत्तर: सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy)

    व्याख्या: महाशक्तियों के दबाव और हस्तक्षेप के अनुभव ने भारत को अपनी विदेश नीति और रक्षा निर्णयों में अधिक से अधिक सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका का विश्लेषण करें। यह बताएं कि कैसे अमेरिका के राष्ट्रीय हित (भू-राजनीतिक और सामरिक) ने उसकी नीतियों को प्रभावित किया और भारत ने किस प्रकार प्रत्युत्तर दिया। (लगभग 250 शब्द)
  2. ‘सामरिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) के सिद्धांत को समझाएं और 1971 के युद्ध के अनुभव ने भारतीय विदेश नीति में इसके महत्व को कैसे बढ़ाया। समकालीन वैश्विक परिदृश्य में, विशेष रूप से बढ़ते व्यापारिक तनावों के आलोक में, सामरिक स्वायत्तता की प्रासंगिकता पर चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)
  3. वैश्विक राजनीति में आर्थिक हित और भू-राजनीतिक हित अक्सर कैसे टकराते हैं या एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं? 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिकी नीतियों और वर्तमान व्यापार युद्धों (tariffs) के संदर्भ में इस प्रश्न का उत्तर दें। (लगभग 150 शब्द)
  4. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के प्रमुख कारण क्या थे? इस युद्ध के परिणामस्वरूप दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन में क्या परिवर्तन आया? (लगभग 150 शब्द)

Leave a Comment