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10,000 का पलायन: दिल्ली, पंजाब, जयपुर में बाढ़ का तांडव – भारत की आपदा तैयारी का सच

10,000 का पलायन: दिल्ली, पंजाब, जयपुर में बाढ़ का तांडव – भारत की आपदा तैयारी का सच

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के दिनों में, भारत के कई प्रमुख शहरों और राज्यों ने अभूतपूर्व बारिश और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई विनाशकारी बाढ़ का सामना किया है। दिल्ली में, यमुना नदी का जलस्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ गया, जिससे राजधानी के निचले इलाकों में पानी घुस गया और लगभग 10,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना पड़ा। यह स्थिति केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रही; पूरे पंजाब राज्य में भारी वर्षा ने व्यापक बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी, जिससे जीवन और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ। इसी बीच, राजस्थान के जयपुर में एक सरकारी अस्पताल के भीतर तक पानी भर गया, जो इस संकट की भयावहता और हमारी अवसंरचना की भेद्यता को दर्शाता है। यह घटनाएँ न केवल तात्कालिक संकट को उजागर करती हैं, बल्कि भारत के आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और शहरी नियोजन पर गहन प्रश्नचिह्न भी लगाती हैं।

परिचय: जब प्रकृति का प्रकोप शहरों को निगल जाए

मौसम के मिजाज में आता एक अप्रत्याशित बदलाव, जब सामान्य से अधिक बारिश के रूप में प्रकट होता है, तो वह अपने साथ जीवनदायिनी जल की जगह विनाशकारी बाढ़ लेकर आता है। हाल की घटनाओं ने भारत के कई हिस्सों में इसी भयावहता को उजागर किया है। दिल्ली में यमुना का उग्र रूप, पंजाब में जलमग्न खेत और शहर, और जयपुर के सरकारी अस्पताल में कमर तक पानी भर जाना – यह सब एक ही कहानी के अलग-अलग अध्याय हैं। यह स्थिति केवल प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि यह मानवीय गतिविधियों, शहरीकरण, और हमारे जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया की एक जटिल परिणति है। UPSC परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाएँ भारतीय भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, सामाजिक न्याय और शासन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आइए, इस संकट की जड़ों, इसके प्रभावों और भविष्य की राहों को विस्तार से समझें।

घटनाओं का भौगोलिक और मौसमी विश्लेषण

यह बाढ़ कोई एक स्थान विशेष की घटना नहीं है, बल्कि यह देश के विभिन्न हिस्सों में फैली हुई है, जो इसके व्यापक प्रभाव को दर्शाती है।

  • दिल्ली: यमुना का छलका प्याला

    • यमुना का जलस्तर: दिल्ली में भारी वर्षा के कारण यमुना नदी का जलस्तर ऐतिहासिक स्तर को पार कर गया। 1978 के बाद यह सबसे अधिक जलस्तर था।
    • बाढ़ का प्रभाव: पूर्वी दिल्ली के निचले इलाके, रिहायशी कॉलोनियाँ, आईटीओ (ITO) जैसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक क्षेत्र और राजघाट जैसे ऐतिहासिक स्थल जलमग्न हो गए।
    • विस्थापन और बचाव कार्य: लगभग 10,000 से अधिक लोगों को उनके घरों से निकालकर राहत शिविरों में भेजा गया। सेना, एनडीआरएफ (NDRF) और अन्य बचाव एजेंसियां ​​राहत और बचाव कार्यों में जुटी रहीं।
    • बुनियादी ढाँचे पर मार: बिजली की आपूर्ति बाधित हुई, यातायात व्यवस्था ठप पड़ गई और जल आपूर्ति प्रणाली पर भी असर पड़ा।
  • पंजाब: हरियाली का पानी में डूबना

    • व्यापक वर्षा: पूरे पंजाब राज्य में मानसून की अत्यधिक वर्षा ने नदियों, नहरों और जल निकासी प्रणालियों को ओवरफ्लो कर दिया।
    • कृषि पर संकट: पंजाब, जो भारत का अन्न भंडार है, वहाँ की फसलें, विशेषकर धान और मक्का, पानी में डूब गईं, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ।
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्र प्रभावित: अमृतसर, जालंधर, लुधियाना सहित कई प्रमुख शहर और अनगिनत गाँव बाढ़ की चपेट में आ गए।
    • आर्थिक क्षति: संपत्ति के नुकसान, फसलों की बर्बादी और बुनियादी ढाँचे की मरम्मत में भारी आर्थिक व्यय का अनुमान लगाया गया।
  • जयपुर (राजस्थान): उम्मीदों पर पानी

    • अस्पताल में जलभराव: राजस्थान की राजधानी जयपुर में, सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल जैसे एक प्रमुख सरकारी अस्पताल के वार्डों में घुटनों तक पानी भर गया।
    • स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रभाव: यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं की भेद्यता को दर्शाती है। मरीजों को सुरक्षित निकालना, उपकरणों को बचाना और अस्पताल के सामान्य संचालन को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गया।
    • शहरी जल निकासी की समस्या: जयपुर जैसे शहरों में भी जल निकासी की पुरानी और अपर्याप्त व्यवस्था के कारण जलभराव की समस्या गंभीर हो जाती है।

बाढ़ के मूल कारण: एक बहुआयामी विश्लेषण

यह केवल एक “भारी बारिश” की घटना नहीं है। इसके पीछे कई जटिल कारण जुड़े हुए हैं:

  1. जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक मौसमी घटनाएँ:

    • वैश्विक तापन: पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण वायुमंडल अधिक जलवाष्प धारण करने में सक्षम हो जाता है, जिससे तीव्र और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ जाती है।
    • अनियमित मानसून: मानसून पैटर्न में बदलाव, कभी देरी से आना, कभी अचानक अत्यंत तीव्र हो जाना, बाढ़ के खतरे को बढ़ाता है।
    • एल नीनो/ला नीना का प्रभाव: इन प्रशांत महासागरीय धाराओं के पैटर्न में बदलाव भी भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा को प्रभावित कर सकते हैं।
  2. शहरीकरण और अनियोजित विकास:

    • कंक्रीट का जंगल: शहरों में हरित क्षेत्रों, तालाबों और जल निकायों को कंक्रीट संरचनाओं से बदलने के कारण वर्षा जल के अवशोषण की क्षमता कम हो गई है।

      “जैसे-जैसे शहर कंक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं, वैसे-वैसे प्रकृति के जलभंडार और प्राकृतिक जल निकासी मार्ग सिकुड़ते जा रहे हैं।”

    • अतिक्रमण: नदी तटीय क्षेत्रों, झीलों और अन्य जल निकायों के किनारों पर अनधिकृत निर्माण और अतिक्रमण ने बाढ़ के पानी के प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया है। दिल्ली में यमुना के तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण एक प्रमुख चिंता का विषय रहा है।
    • कमजोर जल निकासी प्रणाली: अधिकांश शहरों की जल निकासी प्रणालियाँ पुरानी हैं और बढ़ी हुई वर्षा के दबाव को संभालने में असमर्थ हैं। सीवर लाइनों का ओवरफ्लो और जलभराव आम हो जाता है।
  3. जल प्रबंधन और बुनियादी ढाँचा:

    • बांधों और जलाशयों का प्रबंधन: जब अत्यधिक वर्षा की उम्मीद होती है, तो बांधों से पानी छोड़ने की प्रक्रिया में देरी या समन्वय की कमी निचले इलाकों में अचानक बाढ़ का कारण बन सकती है।
    • नदी तल का अवसादन: नदियों में गाद (silt) जमा होने से उनकी जल धारण क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से ओवरफ्लो हो जाती हैं।
    • बाढ़ नियंत्रण उपायों की कमी: तटबंधों (embankments), जल निकासी चैनलों की नियमित सफाई और रखरखाव में कमी से बाढ़ का खतरा बढ़ता है।
  4. अन्य कारक:

    • वनों की कटाई: पहाड़ी और नदी घाटियों के आसपास वनों की कटाई मिट्टी के कटाव को बढ़ाती है, जो नदियों में गाद जमा होने का कारण बनती है और भूस्खलन को भी बढ़ा सकती है।
    • जागरूकता की कमी: जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में आपदा की पूर्व चेतावनी और सुरक्षित रहने के तरीकों के बारे में जागरूकता की कमी भी नुकसान को बढ़ाती है।

बाढ़ के प्रभाव: एक व्यापक दृष्टिकोण

इन बाढ़ों के प्रभाव केवल तात्कालिक जलभराव तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये बहुआयामी और दूरगामी हैं:

  1. मानवीय प्रभाव:

    • जीवन की हानि: दुर्भाग्य से, बाढ़ में लोगों की जान भी जाती है, जो सबसे गंभीर परिणाम है।
    • विस्थापन और बेघर होना: हजारों लोग अपने घरों से बेघर हो जाते हैं, उन्हें अस्थायी आश्रयों में रहना पड़ता है, जिससे सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा होती हैं।
    • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: दूषित पानी से फैलने वाली बीमारियाँ (जैसे हैजा, टाइफाइड, डायरिया) फैलने का खतरा बढ़ जाता है। मानसिक आघात और तनाव भी आम हैं।
  2. आर्थिक प्रभाव:

    • संपत्ति का नुकसान: घरों, इमारतों, वाहनों और अन्य निजी संपत्ति का भारी नुकसान होता है।
    • कृषि क्षति: फसलें नष्ट हो जाती हैं, जिससे किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर संकट आ जाता है। पशुधन की भी हानि होती है।
    • बुनियादी ढाँचे का विनाश: सड़कें, पुल, बिजली लाइनें, संचार नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिनके पुनर्निर्माण में भारी लागत आती है।
    • व्यापार और वाणिज्य पर असर: व्यावसायिक गतिविधियाँ ठप पड़ जाती हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों में मंदी आती है।
  3. पर्यावरणीय प्रभाव:

    • मिट्टी का कटाव: बाढ़ से मिट्टी का उपजाऊ ऊपरी परत बह जाती है।
    • जल प्रदूषण: सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और कचरा जल निकायों में मिल जाते हैं, जिससे पानी प्रदूषित हो जाता है।
    • पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान: बाढ़ से जलीय और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र को क्षति पहुँचती है।

आपदा प्रबंधन: वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ

भारत ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, विशेषकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) जैसी संस्थाओं के गठन के बाद। हालाँकि, ये घटनाएँ कुछ प्रमुख चुनौतियों को भी उजागर करती हैं:

  • पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली:

    • चुनौती: सटीक और समय पर पूर्वानुमान, विशेष रूप से अचानक आने वाली बाढ़ के लिए, अभी भी एक चुनौती है। चेतावनी को अंतिम छोर तक प्रभावी ढंग से पहुँचाना महत्वपूर्ण है।
    • सुधार की आवश्यकता: नई तकनीकों (जैसे AI, IoT) का उपयोग करके पूर्वानुमान को और बेहतर बनाने और सामुदायिक स्तर पर मजबूत चेतावनी तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • राहत और बचाव अभियान:

    • सफलताएँ: NDRF और अन्य एजेंसियाँ ​​आमतौर पर सराहनीय कार्य करती हैं।
    • चुनौतियाँ: अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों में पहुँचने में कठिनाई, संसाधनों की कमी (जैसे नाव, बचाव उपकरण), और समन्वय की समस्याएँ कभी-कभी बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
    • सुधार की आवश्यकता: स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करना, स्वयंसेवी समूहों को सक्रिय करना और स्थानीय स्तर पर संसाधनों को बढ़ाना आवश्यक है।
  • पुनर्निर्माण और पुनर्वास:

    • चुनौतियाँ: दीर्घकालिक पुनर्वास, प्रभावित लोगों को स्थायी आश्रय प्रदान करना, और क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे का पुनर्निर्माण एक लंबी और संसाधन-गहन प्रक्रिया है।
    • सुधार की आवश्यकता: “बिल्ड बैक बेटर” (Build Back Better) के सिद्धांत का पालन करते हुए, पुनर्निर्माण ऐसा होना चाहिए जो भविष्य की आपदाओं के प्रति लचीला हो।
  • नीतिगत और नियामक मुद्दे:

    • चुनौतियाँ: शहरी नियोजन नियमों का कड़ाई से पालन न होना, नदी तटीय क्षेत्रों के नियमन में शिथिलता, और पर्यावरण मंजूरी प्रक्रियाएँ कई बार समस्याएँ पैदा करती हैं।
    • सुधार की आवश्यकता: राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एकीकृत बाढ़ जोखिम प्रबंधन नीतियों को लागू करना, और शहरी विकास में जल-संवेदनशील डिजाइन (water-sensitive design) को बढ़ावा देना।
  • शहरी बाढ़ प्रबंधन:

    • चुनौतियाँ: शहरी बाढ़ को एक अलग चुनौती के रूप में देखना होगा, जहाँ कंक्रीट के परिदृश्य, सीवेज सिस्टम और शहरी जल निकासी बुनियादी ढाँचे पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • सुधार की आवश्यकता: जल-अवशोषक सतहों (permeable surfaces) का उपयोग, हरित बुनियादी ढाँचे (green infrastructure) का विकास, और पुराने सीवेज सिस्टम का आधुनिकीकरण।

भविष्य की राह: लचीलापन और तैयारी

इन घटनाओं से सीखते हुए, भारत को अपनी तैयारी और प्रतिक्रिया को मजबूत करने की आवश्यकता है:

  1. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन:

    • नदियों, जलाशयों और जल निकासी प्रणालियों का समग्र प्रबंधन, जिसमें पूर्वानुमान, संचालन और आपातकालीन रिहाई की योजना शामिल हो।
    • बांधों के प्रबंधन में पारदर्शिता और हितधारकों की भागीदारी।
  2. जलवायु-स्मार्ट शहरी नियोजन:

    • शहरी विकास को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति लचीला बनाना।
    • हरित क्षेत्रों, जल निकायों और आर्द्रभूमियों (wetlands) का संरक्षण और विस्तार।
    • बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण पर सख्त प्रतिबंध और मौजूदा निर्माणों का सुदृढ़ीकरण।
    • “स्पंज सिटी” (Sponge City) जैसी अवधारणाओं को अपनाना, जहाँ शहर पानी को अवशोषित करने और प्रबंधित करने के लिए डिजाइन किए जाते हैं।
  3. आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया का सुदृढ़ीकरण:

    • समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन समितियों को मजबूत करना।
    • नियमित मॉक ड्रिल और प्रशिक्षण का आयोजन।
    • आपातकालीन उपकरणों और प्रशिक्षित कर्मियों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • नवीनतम संचार और निगरानी तकनीकों को अपनाना।
  4. जागरूकता और क्षमता निर्माण:

    • जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को शिक्षित करना कि बाढ़ के दौरान क्या करना है और क्या नहीं करना है।
    • बाढ़ से संबंधित जोखिमों और तैयारियों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना।
  5. नीतिगत सुधार:

    • राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन योजनाओं की नियमित समीक्षा और अद्यतन।
    • पर्यावरण संरक्षण और जल निकायों के नियमों का कड़ाई से प्रवर्तन।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction – DRR) को विकास योजनाओं में एकीकृत करना।

निष्कर्ष: लचीला भारत, सुरक्षित भारत

दिल्ली, पंजाब और जयपुर में आई बाढ़ केवल मौसम की मार नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है और इसके प्रभाव हमारे जीवन के हर पहलू को छू रहे हैं। एक ‘तैयार’ भारत वह है जो न केवल इन आपदाओं का प्रभावी ढंग से जवाब दे सकता है, बल्कि उनसे बचने और उनके प्रभाव को कम करने के लिए सक्रिय कदम भी उठा सकता है। यह शहरी नियोजन, जल प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक भागीदारी में एक बड़े बदलाव की माँग करता है। जब तक हम अपने शहरों को प्रकृति के अनुरूप नहीं ढालते और आपदा प्रबंधन को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं बनाते, तब तक बाढ़ जैसी घटनाएँ बार-बार दस्तक देती रहेंगी।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: हाल ही में दिल्ली में यमुना नदी का जलस्तर ऐतिहासिक रूप से बढ़कर खबरों में रहा। निम्नलिखित में से कौन सा कथन दिल्ली में यमुना से संबंधित है?

    (a) यह भारत की एकमात्र नदी है जो पहाड़ों से निकलकर मैदानी इलाकों में बहती है।

    (b) इसका जलस्तर 1978 के बाद पहली बार इतना बढ़ा था।

    (c) यह शहर को दो भागों – पूर्वी और पश्चिमी दिल्ली – में विभाजित करती है।

    (d) यह दिल्ली के लिए पानी का एकमात्र स्रोत है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: हाल की रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में यमुना का जलस्तर 1978 के बाद अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गया था, जिससे बड़े पैमाने पर बाढ़ आई। विकल्प (a) गलत है क्योंकि कई नदियाँ पहाड़ों से निकलती हैं। विकल्प (c) भी गलत है क्योंकि यमुना शहर के एक बड़े हिस्से से होकर बहती है लेकिन यह विभाजन का मुख्य कारण नहीं है। विकल्प (d) गलत है क्योंकि दिल्ली पानी के लिए कई स्रोतों पर निर्भर करती है, जिसमें भूजल और अन्य नदियाँ भी शामिल हैं।

  2. प्रश्न 2: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. जलवायु परिवर्तन अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा सकता है।
    2. शहरी क्षेत्रों में हरित क्षेत्रों की कमी वर्षा जल के अवशोषण को कम करती है।
    3. बाढ़ से पहले, सरकार द्वारा जारी की जाने वाली चेतावनी प्रणालियाँ (early warning systems) बाढ़ के प्रभाव को काफी हद तक कम कर सकती हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन से सत्य हैं?

    (a) केवल i और ii

    (b) केवल ii और iii

    (c) केवल i और iii

    (d) i, ii और iii

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: तीनों कथन सत्य हैं। जलवायु परिवर्तन वर्षा के पैटर्न को बदल रहा है, शहरीकरण से जल अवशोषण कम होता है, और प्रभावी चेतावनी प्रणालियाँ जीवन और संपत्ति की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

  3. प्रश्न 3: बाढ़ के संदर्भ में, “स्पंज सिटी” (Sponge City) की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?

    (a) ऐसे शहर जो समुद्री बाढ़ से बचाव के लिए स्पंज जैसे अवरोधकों का उपयोग करते हैं।

    (b) शहर जो प्राकृतिक जल निकायों को संरक्षित करके और जल-अवशोषक सतहों का उपयोग करके वर्षा जल को अवशोषित और प्रबंधित करते हैं।

    (c) ऐसे शहर जहाँ सीवेज सिस्टम पूरी तरह से भूमिगत स्पंज-जैसी सामग्री से निर्मित होते हैं।

    (d) यह शहरी बाढ़ को संभालने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए विशाल स्पंजों का एक नेटवर्क है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: स्पंज सिटी का विचार शहरों को प्राकृतिक रूप से जल को अवशोषित करने, फ़िल्टर करने और प्रबंधित करने के लिए डिज़ाइन करना है, जिसमें हरित बुनियादी ढाँचा और जल-अवशोषक सतहें शामिल हैं।

  4. प्रश्न 4: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष निकाय है।
    2. यह गृह मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
    3. इसका मुख्य कार्य आपदाओं को रोकना, कम करना, तैयार करना और प्रतिक्रिया देना है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन से सत्य हैं?

    (a) केवल i और ii

    (b) केवल ii और iii

    (c) केवल i और iii

    (d) i, ii और iii

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष वैधानिक प्राधिकरण है (NDMA Act, 2005 के तहत) और प्रधान मंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं। यह गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है, लेकिन यह एक *कानूनी* निकाय है, वैधानिक नहीं। अतः कथन ii गलत है। कथन i और iii सत्य हैं।

  5. प्रश्न 5: हाल की बाढ़ घटनाओं में चिकित्सा सेवाओं पर पड़े प्रभाव के संदर्भ में, जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल में क्या विशेष समस्या देखी गई?

    (a) दवाओं की भारी कमी

    (b) अस्पताल के वार्डों में पानी भर जाना

    (c) डॉक्टरों और नर्सों की अनुपस्थिति

    (d) बिजली की आपूर्ति का पूरी तरह से बंद हो जाना

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: खबरों के अनुसार, जयपुर के SMS अस्पताल के कुछ हिस्सों में पानी भर गया था, जिससे चिकित्सा सेवाओं को प्रभावित किया।

  6. प्रश्न 6: भारत में बाढ़ के कारणों में निम्नलिखित में से कौन सा कारक “शहरीकरण और अनियोजित विकास” के अंतर्गत नहीं आता है?

    (a) नदी तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण

    (b) हरित क्षेत्रों का कंक्रीट संरचनाओं में रूपांतरण

    (c) जल निकासी प्रणालियों का आधुनिकीकरण

    (d) जल निकायों पर अनधिकृत निर्माण

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: जल निकासी प्रणालियों का आधुनिकीकरण बाढ़ को रोकने या कम करने का एक उपाय है, न कि इसका कारण। अन्य सभी विकल्प अनियोजित शहरीकरण के प्रभाव हैं जो बाढ़ को बढ़ाते हैं।

  7. प्रश्न 7: “बिल्ड बैक बेटर” (Build Back Better) के सिद्धांत का क्या अर्थ है?

    (a) आपदा के बाद केवल नष्ट हुई संरचनाओं का पुनर्निर्माण करना।

    (b) आपदा के बाद सामान्य स्थिति में वापस लौटना।

    (c) आपदा के बाद पुनर्निर्माण करते समय भविष्य की आपदाओं के प्रति अधिक लचीलापन सुनिश्चित करना।

    (d) आपदा राहत के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर रहना।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: “बिल्ड बैक बेटर” का सिद्धांत यह है कि आपदा के बाद पुनर्निर्माण केवल खोई हुई चीजों को वापस लाने के बारे में नहीं है, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिए बेहतर, सुरक्षित और अधिक टिकाऊ तरीके से पुनर्निर्माण करने के बारे में है।

  8. प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी नदी दिल्ली से होकर बहती है और हाल की बाढ़ का कारण बनी?

    (a) गंगा

    (b) यमुना

    (c) घाघरा

    (d) ब्रह्मपुत्र

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: यमुना नदी दिल्ली से होकर बहती है और हाल की बाढ़ का मुख्य कारण थी।

  9. प्रश्न 9: बाढ़ के मानवीय प्रभावों में निम्नलिखित में से कौन सा एक शामिल नहीं है?

    (a) जीवन की हानि

    (b) जल जनित बीमारियों का प्रसार

    (c) मानसिक आघात और तनाव

    (d) संपत्ति का मौद्रिक मूल्यांकन

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: संपत्ति का मौद्रिक मूल्यांकन बाढ़ का आर्थिक प्रभाव है, मानवीय प्रभाव नहीं। जीवन की हानि, बीमारियों का प्रसार और मानसिक आघात सीधे तौर पर मानवीय पीड़ा से जुड़े हैं।

  10. प्रश्न 10: भारत के किस राज्य को अक्सर “अन्न भंडार” कहा जाता है, जहाँ बाढ़ से फसलों को भारी नुकसान हुआ?

    (a) उत्तर प्रदेश

    (b) हरियाणा

    (c) पंजाब

    (d) मध्य प्रदेश

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: पंजाब को भारत का अन्न भंडार कहा जाता है, और हाल की बाढ़ ने वहाँ की फसलों को गंभीर रूप से प्रभावित किया।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: हाल ही में दिल्ली, पंजाब और जयपुर में आई बाढ़ भारत के आपदा प्रबंधन तंत्र और शहरी नियोजन की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालती है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के आलोक में, भारत को भविष्य की ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए अपने शहरी बाढ़ प्रबंधन और शहरी नियोजन रणनीतियों में क्या सुधार करने की आवश्यकता है? (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: “शहरीकरण और अनियोजित विकास” किस प्रकार भारत में बाढ़ की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाते हैं? दिल्ली और अन्य शहरों में हाल की बाढ़ के उदाहरणों का उपयोग करते हुए, इस मुद्दे के बहुआयामी कारणों और इसके समाधान के लिए आवश्यक नीतिगत उपायों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न 3: भारत में आपदा प्रबंधन में ‘तैयारी’ (Preparedness) और ‘प्रतिक्रिया’ (Response) चरणों के बीच संतुलन एक महत्वपूर्ण चुनौती रही है। हालिया बाढ़ की घटनाओं के आलोक में, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) को मजबूत करने, सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने और प्रभावी राहत एवं बचाव कार्यों को सुनिश्चित करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  4. प्रश्न 4: बाढ़ के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दिल्ली, पंजाब और जयपुर में हाल की घटनाओं के विशिष्ट संदर्भों का उपयोग करते हुए, इन प्रभावों को कम करने और पुनर्निर्माण को ‘बिल्ड बैक बेटर’ (Build Back Better) के सिद्धांत के अनुसार सुनिश्चित करने के लिए भारत द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीतियों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)

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