₹67,000 करोड़ के रक्षा सौदे: भारत की सैन्य शक्ति का नया अध्याय – ब्रह्मोस, ड्रोन और भविष्य की राह
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, रक्षा मंत्रालय (MoD) ने ₹67,000 करोड़ के बड़े रक्षा सौदों को मंजूरी दी है, जिसमें ब्रह्मोस मिसाइलों, सशस्त्र ड्रोनों और अन्य महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की खरीद शामिल है। यह कदम न केवल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह देश के रक्षा स्वदेशीकरण (indigenization) और “मेक इन इंडिया” पहल को भी बढ़ावा देता है। इन सौदों का भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमताओं पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और यह भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की स्थिति को भी मजबूत करेगा।
यह विस्तृत लेख UPSC उम्मीदवारों के लिए इन रक्षा सौदों के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करेगा। हम इसके पीछे के कारणों, शामिल प्रमुख प्रणालियों, उनके सामरिक महत्व, स्वदेशीकरण के प्रभाव, चुनौतियों और भविष्य की राह पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारत की रक्षा खरीद का व्यापक परिदृश्य (A Comprehensive View of India’s Defence Procurement):
रक्षा खरीद एक देश की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह केवल हथियार खरीदने से कहीं अधिक है; यह देश की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने, तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त करने, अपने हितों की रक्षा करने और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करने की एक जटिल प्रक्रिया है। भारत, अपनी विशिष्ट भू-राजनीतिक स्थिति और विशाल सीमाओं के कारण, लगातार अपनी रक्षा क्षमताओं को आधुनिक बनाने और मजबूत करने की आवश्यकता महसूस करता रहा है।
हालिया ₹67,000 करोड़ के रक्षा सौदों को इसी व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। ये सौदे भारत की रक्षा आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।
₹67,000 करोड़ के रक्षा सौदों में क्या-क्या शामिल है? (What is included in the ₹67,000 crore Defence Deals?):
यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह ₹67,000 करोड़ का आंकड़ा केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि यह विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों के अधिग्रहण को दर्शाता है। इनमें से कुछ प्रमुख घटक इस प्रकार हैं:
- ब्रह्मोस मिसाइलें (BrahMos Missiles): ब्रह्मोस भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम द्वारा विकसित एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। इसे अपनी गति, सटीकता और बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाना जाता है। विभिन्न प्लेटफार्मों (जमीन, हवा, समुद्र) से लॉन्च करने की इसकी क्षमता इसे एक अत्यंत प्रभावी हथियार बनाती है। वायु सेना, नौसेना और थल सेना द्वारा इसके विभिन्न संस्करणों का उपयोग किया जाता है, और इसके निर्यात की भी काफी संभावनाएं हैं।
- सशस्त्र ड्रोन (Armed Drones): आज के युद्धक्षेत्र में ड्रोन का महत्व सर्वविदित है। सशस्त्र ड्रोन निगरानी, टोही और सटीक हमलों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये न केवल मानव जीवन के जोखिम को कम करते हैं, बल्कि दुश्मन के ठिकानों पर अत्यंत सटीकता से वार करने में भी सक्षम होते हैं। भारत इन ड्रोनों के स्वदेशी विकास और खरीद पर जोर दे रहा है।
- अन्य महत्वपूर्ण खरीद (Other Critical Acquisitions): इस ₹67,000 करोड़ के सौदे में ब्रह्मोस और ड्रोन के अलावा अन्य महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों की खरीद भी शामिल हो सकती है, जैसे कि नई पीढ़ी के युद्धक विमानों के लिए पुर्जे, पनडुब्बी रोधी युद्धक क्षमताएं (anti-submarine warfare capabilities), आधुनिक रडार सिस्टम, संचार उपकरण, और लॉजिस्टिक सपोर्ट सिस्टम।
इस कदम के पीछे के सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थ (Strategic and National Security Implications of this Move):
रक्षा सौदों का महत्व केवल हथियारों की संख्या से नहीं मापा जाता, बल्कि वे देश की समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को कैसे मजबूत करते हैं, इससे मापा जाता है। ₹67,000 करोड़ के ये सौदे कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करते हैं:
- सैन्य क्षमताओं में वृद्धि (Enhancement of Military Capabilities): ब्रह्मोस जैसी उन्नत मिसाइलें और सशस्त्र ड्रोन भारतीय सशस्त्र बलों को अपनी मारक क्षमता, प्रतिक्रिया समय और दुश्मन के खिलाफ प्रभावी ढंग से लड़ने की क्षमता में वृद्धि प्रदान करते हैं। यह विशेष रूप से दो-मोर्चे वाले युद्ध (two-front war) की स्थिति में महत्वपूर्ण है।
- तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा (Promotion of Technological Self-Reliance): रक्षा सौदों में स्वदेशी प्रणालियों के विकास और खरीद पर जोर भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में मदद करता है। यह न केवल आयात पर निर्भरता कम करता है, बल्कि देश में रक्षा अनुसंधान और विकास (R&D) को भी बढ़ावा देता है, जिससे नई नौकरियां सृजित होती हैं और निर्यात के अवसर बढ़ते हैं।
- “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” पहल का समर्थन (Support for “Make in India” and “Atmanirbhar Bharat” Initiatives): ये सौदे सीधे तौर पर “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसी पहलों को बढ़ावा देते हैं। जब रक्षा उपकरण देश में विकसित और निर्मित होते हैं, तो यह न केवल भारतीय उद्योगों को मजबूत करता है, बल्कि रक्षा निर्यात के लिए भी नए रास्ते खोलता है।
- क्षेत्रीय शक्ति संतुलन (Regional Power Balance): आधुनिक और सक्षम रक्षा बल भारत को अपने पड़ोसियों के साथ शक्ति संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं। यह किसी भी संभावित आक्रामकता को रोकने (deterrence) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- साइबर युद्ध और गैर-पारंपरिक खतरों का मुकाबला (Countering Cyber Warfare and Non-Traditional Threats): आधुनिक युद्ध में साइबर युद्ध, ड्रोन हमले और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (electronic warfare) जैसे गैर-पारंपरिक खतरे बढ़ रहे हैं। उन्नत रक्षा प्रणालियों की खरीद इन खतरों से निपटने की भारत की क्षमता को बढ़ाती है।
“रक्षा आधुनिकीकरण केवल हथियारों की खरीद नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय संप्रभुता, आर्थिक विकास और भू-राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने की एक सतत प्रक्रिया है।”
ब्रह्मोस: एक गेम-चेंजर (BrahMos: A Game-Changer):
ब्रह्मोस मिसाइल, अपने आप में, भारत की रक्षा खरीद के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसके कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
- गति और मारक क्षमता (Speed and Lethality): ब्रह्मोस की सुपरसोनिक गति (Mach 2.8 या ध्वनि की गति से लगभग 3 गुना) इसे दुश्मन के रडार द्वारा पता लगाने और बाधित करने में अत्यंत कठिन बनाती है। यह अपनी सटीक मारक क्षमता के लिए भी जानी जाती है, जो इसे युद्धपोतों, हवाई अड्डों और जमीनी ठिकानों के खिलाफ एक आदर्श हथियार बनाती है।
- बहु-प्लेटफ़ॉर्म क्षमता (Multi-Platform Capability): ब्रह्मोस को पनडुब्बियों, जहाजों, विमानों और भूमि-आधारित मोबाइल लॉन्चर्स से दागा जा सकता है। यह बहुमुखी प्रतिभा भारतीय सशस्त्र बलों को विभिन्न युद्ध परिदृश्यों में इसका प्रभावी ढंग से उपयोग करने की सुविधा देती है।
- रूस के साथ सहयोगात्मक विकास (Collaborative Development with Russia): भारत-रूस रक्षा सहयोग का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस संयुक्त उद्यम ने न केवल भारत को अत्याधुनिक तकनीक तक पहुंच प्रदान की है, बल्कि यह रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूत करता है।
- निर्यात क्षमता (Export Potential): ब्रह्मोस की अपनी उन्नत क्षमताओं के कारण, यह कई देशों के लिए एक आकर्षक रक्षा निर्यात उत्पाद है। भारत द्वारा इसका निर्यात भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उदाहरण: कल्पना कीजिए कि एक दुश्मन जहाज भारतीय तटों की ओर बढ़ रहा है। यदि नौसेना के पास ब्रह्मोस-सुसज्जित जहाज हैं, तो वे खतरे को बहुत पहले ही, प्रभावी ढंग से और सटीकता से निष्क्रिय कर सकते हैं, जबकि दुश्मन के पास प्रतिक्रिया करने का अवसर बहुत कम होगा।
सशस्त्र ड्रोन: भविष्य का युद्धक्षेत्र (Armed Drones: The Battlefield of the Future):
सशस्त्र ड्रोन या यूएवी (Unmanned Aerial Vehicles) आज के युद्धक्षेत्र को परिभाषित कर रहे हैं। उनकी भूमिका केवल निगरानी तक सीमित नहीं है; वे सीधे युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
- सतर्कता और निगरानी (ISR – Intelligence, Surveillance, and Reconnaissance): ड्रोन दुश्मन की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने, खुफिया जानकारी जुटाने और युद्ध के मैदान की विस्तृत तस्वीरें प्रदान करने में मदद करते हैं।
- सटीक हमला (Precision Strikes): लेजर-गाइडेड या जीपीएस-गाइडेड बम और मिसाइलों से लैस ड्रोन, दुश्मन के ठिकानों पर अत्यंत सटीकता से हमला कर सकते हैं, जिससे नागरिक हताहतों की संख्या कम होती है और परिचालन दक्षता बढ़ती है।
- खतरनाक मिशनों में उपयोग (Use in Dangerous Missions): ऐसे मिशन जिनमें मानव जीवन का जोखिम अधिक होता है, जैसे कि दुश्मन के इलाके में घुसपैठ या खतरनाक उपकरणों को निष्क्रिय करना, उनमें ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है।
- स्वदेशी विकास की आवश्यकता (Need for Indigenous Development): भारत के लिए ये ड्रोन स्वदेशी रूप से विकसित करना महत्वपूर्ण है, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो और देश की रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता बढ़े। DRDO और निजी कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं।
केस स्टडी: तुर्की के बायरक्तार टीबी2 (Bayraktar TB2) ड्रोन, जिन्हें हाल के संघर्षों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है, यह दिखाते हैं कि कैसे मध्यम लागत वाले, लेकिन प्रभावी सशस्त्र ड्रोन युद्ध की दिशा बदल सकते हैं। भारत भी इसी तरह की क्षमताएं विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
स्वदेशीकरण और “मेक इन इंडिया” पर प्रभाव (Impact on Indigenization and “Make in India”):
₹67,000 करोड़ के ये सौदे “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” के नारे को एक ठोस आकार देते हैं। रक्षा मंत्रालय ने इन सौदों में स्वदेशी सामग्री (indigenous content) और भारतीय निर्माताओं की भागीदारी को प्राथमिकता दी है।
- घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा (Boost to Domestic Defence Industry): इन सौदों से भारतीय रक्षा निर्माण कंपनियों, जैसे HAL, BEL, DRDO, और कई निजी क्षेत्र की कंपनियों को उत्पादन के अवसर मिलेंगे। यह उनके अनुसंधान और विकास, विनिर्माण क्षमताओं और गुणवत्ता मानकों को बढ़ाने में मदद करेगा।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfer): विदेशी भागीदारों के साथ सहयोग में, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (transfer of technology) एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह भारतीय कंपनियों को भविष्य में स्वयं उन्नत रक्षा प्रणालियाँ विकसित करने के लिए सशक्त बनाता है।
- रोजगार सृजन (Employment Generation): रक्षा क्षेत्र में उत्पादन बढ़ने से न केवल इंजीनियरों और तकनीशियनों के लिए, बल्कि सहायक उद्योगों में भी बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
- निर्यात क्षमता में वृद्धि (Increased Export Potential): जब भारत अपनी आवश्यकताओं के लिए उच्च-गुणवत्ता वाले उपकरण स्वदेशी रूप से बना सकता है, तो यह उन्हें निर्यात करने की क्षमता भी विकसित करता है। यह भारत को एक रक्षा निर्यातक के रूप में स्थापित कर सकता है।
उदाहरण: ब्रह्मोस मिसाइल के निर्माण में भारत और रूस की कई कंपनियों का योगदान है। इसी तरह, भविष्य में सशस्त्र ड्रोन के विकास और निर्माण में भारतीय कंपनियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, जिससे देश को तकनीकी नेतृत्व मिलेगा।
चुनौतियाँ और विचारणीय बिंदु (Challenges and Points to Consider):
हालांकि ये सौदे अत्यंत सकारात्मक हैं, फिर भी कुछ चुनौतियाँ और विचारणीय बिंदु हैं:
- लागत और समय-सीमा (Cost and Timelines): ₹67,000 करोड़ एक बड़ी राशि है, और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि खरीद प्रक्रिया पारदर्शी और कुशल हो, और उपकरण समय पर और बजट के भीतर वितरित किए जाएं।
- रखरखाव और जीवन-चक्र लागत (Maintenance and Life-Cycle Costs): केवल खरीद ही पर्याप्त नहीं है; इन प्रणालियों के रखरखाव, उन्नयन और जीवन-चक्र की लागतों का भी प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जाना चाहिए।
- तकनीकी अवशोषण (Technological Absorption): प्रौद्योगिकी हस्तांतरण केवल कागजों पर नहीं, बल्कि भारतीय कंपनियों द्वारा वास्तव में अवशोषित और एकीकृत होनी चाहिए ताकि भविष्य में आत्मनिर्भरता संभव हो सके।
- साइबर सुरक्षा (Cybersecurity): आधुनिक रक्षा प्रणालियाँ अक्सर नेटवर्क-केंद्रित होती हैं। साइबर हमलों से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- विदेशी निर्भरता (Foreign Dependence): कुछ महत्वपूर्ण घटकों या प्रौद्योगिकियों के लिए अभी भी विदेशी स्रोतों पर निर्भरता बनी रह सकती है, जिसे धीरे-धीरे कम करने की आवश्यकता है।
भविष्य की राह (The Way Forward):
₹67,000 करोड़ के इन रक्षा सौदों ने भारत की रक्षा आधुनिकीकरण की यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ा है। भविष्य में, भारत को इन पहलों को और मजबूत करने के लिए निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:
- अनुसंधान और विकास में निरंतर निवेश (Continuous Investment in R&D): DRDO और अन्य अनुसंधान संगठनों को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए पर्याप्त धन और स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए।
- रक्षा क्षेत्र में स्टार्टअप को बढ़ावा (Promoting Startups in Defence Sector): रक्षा क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए स्टार्टअप को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उन्हें समर्थन दिया जाना चाहिए।
- रक्षा निर्यात को बढ़ाना (Boosting Defence Exports): स्वदेशी रूप से विकसित रक्षा प्रणालियों को वैश्विक बाजारों में बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- प्रौद्योगिकी समेकन (Technology Integration): विभिन्न रक्षा प्रणालियों के बीच सहज समेकन सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि एक एकीकृत युद्धक प्रणाली (integrated warfighting system) विकसित हो सके।
- मानव संसाधन विकास (Human Resource Development): रक्षा क्षेत्र में कुशल मानवबल तैयार करने के लिए प्रशिक्षण और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
ये ₹67,000 करोड़ के रक्षा सौदे भारत को न केवल एक मजबूत सैन्य शक्ति बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, बल्कि यह देश को रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने और वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण योगदान है। यह भारत के बढ़ते सामरिक महत्व और “मेक इन इंडिया” की सफलता का प्रमाण है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: ब्रह्मोस मिसाइल के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
I. यह भारत और रूस के संयुक्त उद्यम द्वारा विकसित एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।
II. इसे पनडुब्बियों, जहाजों, विमानों और भूमि-आधारित मोबाइल लॉन्चर्स से दागा जा सकता है।
III. यह ध्वनि की गति से मैक 1.8 पर यात्रा करती है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल I और II
(b) केवल II और III
(c) केवल I और III
(d) I, II और III
उत्तर: (a)
व्याख्या: ब्रह्मोस मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग 3 गुना) पर यात्रा करती है, मैक 1.8 पर नहीं। इसलिए, कथन III गलत है। अन्य कथन सत्य हैं। - प्रश्न 2: “मेक इन इंडिया” पहल का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देना
(b) भारतीय अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को बढ़ाना
(c) आयातित उत्पादों पर सब्सिडी प्रदान करना
(d) निर्यात को पूरी तरह से हटा देना
उत्तर: (b)
व्याख्या: “मेक इन इंडिया” का मुख्य उद्देश्य भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना और भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक विकास हो। - प्रश्न 3: रक्षा सौदों के संबंध में “स्वदेशीकरण” (Indigenization) शब्द का क्या अर्थ है?
(a) विदेशी हथियारों का अधिकतम आयात
(b) रक्षा उपकरणों के डिजाइन, विकास और निर्माण में भारत की क्षमता को बढ़ाना
(c) हथियारों की खरीद के लिए विदेशी सहायता लेना
(d) सैन्य बजट को कम करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: स्वदेशीकरण का तात्पर्य रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के लिए आयात पर निर्भरता को कम करके देश की घरेलू क्षमताओं को विकसित करना है। - प्रश्न 4: सशस्त्र ड्रोन (Armed Drones) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन असत्य है?
(a) ये निगरानी और टोही (ISR) मिशन के लिए उपयोग किए जा सकते हैं।
(b) ये दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले करने में सक्षम हैं।
(c) मानव रहित होने के कारण, इनमें मानव जीवन का कोई जोखिम नहीं होता।
(d) इनमें से कुछ को ड्रोन हमलों से बचाने के लिए उन्नत काउंटर-यूएवी (Counter-UAV) सिस्टम की आवश्यकता होती है।
उत्तर: (c)
व्याख्या: हालांकि ड्रोन मानव रहित होते हैं, फिर भी उनके संचालन, नियंत्रण और एंटी-ड्रोन सिस्टम से बचाव में मानव हस्तक्षेप और जोखिम शामिल हो सकता है। साथ ही, ड्रोन द्वारा किए गए हमलों में नागरिक हताहतों का जोखिम हो सकता है। - प्रश्न 5: रक्षा मंत्रालय (MoD) द्वारा हाल ही में स्वीकृत ₹67,000 करोड़ के रक्षा सौदों का प्राथमिक लक्ष्य क्या है?
(a) केवल नौसेना की क्षमताओं को बढ़ाना
(b) वायु सेना के लिए नए लड़ाकू विमान खरीदना
(c) भारतीय सशस्त्र बलों की समग्र परिचालन क्षमताओं को मजबूत करना और स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना
(d) केवल साइबर सुरक्षा उपकरणों का अधिग्रहण करना
उत्तर: (c)
व्याख्या: ये सौदे सिर्फ एक सेवा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। - प्रश्न 6: भारत-रूस रक्षा सहयोग का एक प्रमुख उदाहरण कौन सी मिसाइल प्रणाली है?
(a) पृथ्वी
(b) अग्नि
(c) धनुष
(d) ब्रह्मोस
उत्तर: (d)
व्याख्या: ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस के बीच एक सफल संयुक्त रक्षा परियोजना है। - प्रश्न 7: DRDO (Defence Research and Development Organisation) का मुख्य कार्य क्या है?
(a) रक्षा उपकरणों का निर्माण करना
(b) रक्षा उपकरणों के लिए विदेशी प्रौद्योगिकी प्राप्त करना
(c) रक्षा प्रौद्योगिकी का अनुसंधान, डिजाइन और विकास करना
(d) रक्षा कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान करना
उत्तर: (c)
व्याख्या: DRDO भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास के लिए प्रमुख संगठन है। - प्रश्न 8: “आत्मनिर्भर भारत” पहल का संबंध निम्नलिखित में से किससे है?
(a) केवल कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाना
(b) सभी क्षेत्रों में देश की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, जिसमें रक्षा भी शामिल है
(c) केवल सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाना
(d) विदेशी व्यापार को पूरी तरह से बंद करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: “आत्मनिर्भर भारत” एक व्यापक पहल है जिसका उद्देश्य भारत को विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाना है। - प्रश्न 9: आधुनिक युद्ध में ड्रोन का एक महत्वपूर्ण लाभ क्या है?
(a) दुश्मन के संचार को पूरी तरह से जाम करना
(b) मानव जोखिम को कम करते हुए सटीक निगरानी और हमला करना
(c) केवल सीमा सुरक्षा को मजबूत करना
(d) पारंपरिक हथियार प्रणालियों को अप्रचलित बनाना
उत्तर: (b)
व्याख्या: ड्रोन मानव जोखिम को कम करते हैं और मानवयुक्त विमानों की तुलना में अक्सर अधिक सटीक होते हैं। - प्रश्न 10: ₹67,000 करोड़ के रक्षा सौदों का भारत के रक्षा निर्यात पर संभावित प्रभाव क्या है?
(a) कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
(b) यह रक्षा निर्यात को बढ़ावा दे सकता है, यदि स्वदेशी क्षमताएं विकसित होती हैं
(c) केवल आयातित हथियारों का निर्यात बढ़ेगा
(d) यह केवल घरेलू खपत के लिए होगा
उत्तर: (b)
व्याख्या: स्वदेशी क्षमताओं का विकास भारत को उन प्रणालियों को निर्यात करने की अनुमति दे सकता है जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: ₹67,000 करोड़ के हालिया रक्षा सौदों के आलोक में, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में रक्षा आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण की भूमिका का विश्लेषण करें। प्रमुख मिसाइल प्रणालियों (जैसे ब्रह्मोस) और यूएवी (ड्रोन) जैसे प्लेटफार्मों के महत्व पर विशेष ध्यान दें। (लगभग 250 शब्द)
विश्लेषण के मुख्य बिंदु: सुरक्षा, स्वदेशीकरण, ब्रह्मोस की भूमिका, ड्रोन की भूमिका, “मेक इन इंडिया” का प्रभाव। - प्रश्न 2: भारत-रूस रक्षा सहयोग का एक महत्वपूर्ण उदाहरण ब्रह्मोस मिसाइल है। भारत-विशिष्ट, भारत-केंद्रित रक्षा उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के सहयोग से भारत कैसे लाभ उठा सकता है? इस क्षेत्र में भविष्य की चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)
विश्लेषण के मुख्य बिंदु: सहयोगात्मक विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, आत्मनिर्भरता, भविष्य की चुनौतियाँ (जैसे, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, IP अधिकार), अवसर (निर्यात)। - प्रश्न 3: आधुनिक युद्ध के बदलते परिदृश्य में सशस्त्र ड्रोनों (Armed Drones) का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय सशस्त्र बलों की क्षमताओं को बढ़ाने और दुश्मन के खतरों का मुकाबला करने में इन प्रौद्योगिकियों की भूमिका का मूल्यांकन करें। भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए? (लगभग 250 शब्द)
विश्लेषण के मुख्य बिंदु: ड्रोन के अनुप्रयोग (ISR, स्ट्राइक), मानव जोखिम में कमी, सामरिक लाभ, भारत की वर्तमान स्थिति, आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक कदम (R&D, स्टार्टअप, नीतिगत समर्थन)। - प्रश्न 4: ₹67,000 करोड़ के रक्षा सौदों का भारतीय रक्षा उद्योग पर “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” पहलों के संदर्भ में पड़ने वाले संभावित प्रभावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या ये सौदे देश को रक्षा क्षेत्र में वास्तव में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेंगे? (लगभग 150 शब्द)
विश्लेषण के मुख्य बिंदु: “मेक इन इंडिया” का समर्थन, घरेलू उद्योगों को बढ़ावा, रोजगार सृजन, प्रौद्योगिकी अवशोषण, विदेशी निर्भरता का मुद्दा, वास्तविक आत्मनिर्भरता की दिशा में चुनौतियाँ।