हिमाचल में प्रलय: शिमला से यूपी तक बाढ़ का कहर, 16 जानें गईं, 360 घर खाक!
चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल के दिनों में, भारत के उत्तरी क्षेत्रों में, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के शिमला और उत्तर प्रदेश में, अभूतपूर्व मूसलाधार बारिश ने भयंकर तबाही मचाई है। बादल फटने की घटनाओं, अनियंत्रित बाढ़ और उफनती नदियों ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। शिमला में बादल फटने से आई भीषण बाढ़ ने तबाही का ऐसा मंजर पेश किया है कि मानो प्रकृति का प्रकोप टूट पड़ा हो। वहीं, उत्तर प्रदेश में भी नदियां अपने उफान पर हैं, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। इस प्राकृतिक आपदा में अब तक 16 लोगों की जान जा चुकी है और 360 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गए हैं। यह घटना न केवल तत्काल संकट का सूचक है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के युग में ऐसी आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता पर गंभीर सवाल भी उठाती है।
यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह प्रत्यक्ष रूप से भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक न्याय जैसे विषयों से जुड़ा हुआ है। हमें इस घटना का गहराई से विश्लेषण करना होगा, इसके कारणों को समझना होगा, इसके प्रभावों का आकलन करना होगा और भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावी समाधानों पर विचार करना होगा।
बादल फटने का विज्ञान: शिमला में तबाही का कारण
बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?): बादल फटना एक अत्यंत तीव्र, स्थानीयकृत और अप्रत्याशित वर्षा की घटना है, जिसमें कम समय (कुछ मिनटों से लेकर एक-दो घंटे तक) में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है। आमतौर पर, एक घंटे में 100 मिलीमीटर (मिमी) से अधिक वर्षा को बादल फटना माना जाता है। यह घटना अक्सर पहाड़ी या दुर्गम क्षेत्रों में होती है, जहां अचानक वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन और जलवाष्प के संचय के कारण भारी वर्षा होती है।
शिमला में क्या हुआ? (What happened in Shimla?): शिमला जैसे पहाड़ी इलाकों में, जब बादल फटने की घटना होती है, तो ढलानों पर जमा पानी तेजी से नीचे की ओर बहता है। यह तीव्र प्रवाह अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा ले जाता है – पेड़, चट्टानें, गाड़ियाँ और इमारतें। शिमला में हुई तबाही इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। पानी की अत्यधिक मात्रा ने नालों और नदियों को उफान पर ला दिया, जिससे स्थानीय नदियों में बाढ़ आ गई और व्यापक भूस्खलन हुआ।
वैज्ञानिक कारण (Scientific Reasons):
- पहाड़ी स्थलाकृति (Mountainous Topography): पहाड़ी ढलानों पर पानी का प्रवाह बहुत तेज होता है, जिससे यह विनाशकारी रूप ले लेता है।
- वायुमंडलीय अस्थिरता (Atmospheric Instability): जब हवा का एक बड़ा हिस्सा तेजी से ऊपर उठता है, तो यह ठंडी होकर बादल बनाता है, और यदि यह प्रक्रिया बहुत तेज हो, तो बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है।
- उच्च जलवाष्प सामग्री (High Water Vapor Content): गर्म और आर्द्र हवा जब ठंडे पहाड़ी इलाकों के संपर्क में आती है, तो जलवाष्प तेजी से संघनित होकर भारी वर्षा का कारण बनता है।
- जलवायु परिवर्तन (Climate Change): हालांकि सीधे तौर पर किसी एक घटना को जलवायु परिवर्तन से जोड़ना मुश्किल है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं (Extreme Weather Events) की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है, जिसमें मूसलाधार बारिश और बादल फटना शामिल है।
“बादल फटना एक स्थानीयकृत जलवायु घटना है, जो अक्सर पहाड़ी इलाकों में वायुमंडलीय अस्थिरता और उच्च जलवाष्प के कारण होती है। यह अप्रत्याशित और विनाशकारी हो सकती है, जैसा कि शिमला में देखा गया।”
उत्तर प्रदेश में नदियों का उफान: व्यापक प्रभाव
उत्तर प्रदेश की स्थिति (Situation in Uttar Pradesh): हिमाचल प्रदेश की तबाही के साथ-साथ, उत्तर प्रदेश भी बाढ़ की चपेट में है। राज्य की प्रमुख नदियाँ, जैसे गंगा, यमुना, घाघरा, शारदा और राप्ती, अपने खतरे के निशान को पार कर गई हैं। यह स्थिति मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे ऊपरी कैचमेंट क्षेत्रों में हुई भारी बारिश के कारण है, जिससे इन नदियों में पानी का स्तर बढ़ गया है।
360 मकानों का ढहना (Collapse of 360 Houses): नदियों के उफान के कारण निचले इलाकों में पानी भर गया है, जिससे कई घर क्षतिग्रस्त हो गए या पूरी तरह से ढह गए। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों और पूर्वी जिलों में स्थिति गंभीर है। इन घरों के ढहने से न केवल लोगों की आजीविका छिन गई है, बल्कि उन्हें बेघर भी होना पड़ा है।
16 लोगों की मौत (16 Deaths): दो दिनों के भीतर 16 लोगों की मौत बेहद चिंताजनक है। यह मौतें सीधे तौर पर बाढ़ के पानी में डूबने, भूस्खलन, बिजली गिरने (जो अक्सर बाढ़ के दौरान होती है), या बाढ़ के कारण फैली बीमारियों से जुड़ी हो सकती हैं। यह आँकड़ा दर्शाता है कि इस आपदा का मानवीय पहलू कितना गंभीर है।
प्रभावित क्षेत्र (Affected Areas): उत्तर प्रदेश के लगभग 20 से अधिक जिले बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, जिनमें गोरखपुर, बलिया, मऊ, देवरिया, बस्ती, गोंडा, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, शामली, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, और इटावा जैसे जिले शामिल हैं। इन क्षेत्रों में लाखों की आबादी प्रभावित हुई है, और बड़े पैमाने पर फसलें भी नष्ट हुई हैं।
आपदा के कारण: एक बहुआयामी विश्लेषण
प्राकृतिक कारण (Natural Causes):
- असामान्य मानसून पैटर्न (Abnormal Monsoon Patterns): इस वर्ष मानसून की गतिविधियां असामान्य रही हैं। जहां कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश हुई, वहीं कुछ जगहों पर सूखा भी पड़ा। इन चरम मौसमी घटनाओं का संबंध जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा रहा है।
- पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन (Landslides in Hilly Areas): बादल फटने जैसी घटनाओं से उत्पन्न तीव्र जल प्रवाह भूस्खलन को ट्रिगर करता है, जो आगे चलकर नदियों में मलबा गिराकर उनके जल स्तर को बढ़ा सकता है।
मानवजनित कारण (Man-made Causes):
- अनियोजित शहरीकरण और निर्माण (Unplanned Urbanization and Construction): पहाड़ी इलाकों में, विशेष रूप से शिमला जैसे शहरों में, अनियोजित निर्माण और विकास ने प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था को बाधित किया है। वनों की कटाई और ढलानों पर निर्माण ने भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा दिया है।
- नदी तटों पर अतिक्रमण (Encroachment on Riverbanks): उत्तर प्रदेश में, नदियों के किनारे अनाधिकृत निर्माण और अतिक्रमण ने बाढ़ के मैदानों को संकुचित कर दिया है, जिससे बाढ़ का पानी आबादी वाले क्षेत्रों में आसानी से घुस जाता है।
- वनोन्मूलन (Deforestation): जंगलों की कटाई ने मिट्टी के कटाव को बढ़ावा दिया है और जल धारण क्षमता को कम किया है, जिससे बारिश का पानी सीधे नदियों में चला जाता है और बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
- आपदा पूर्व चेतावनी प्रणालियों की सीमाएं (Limitations of Disaster Early Warning Systems): यद्यपि चेतावनी प्रणालियाँ मौजूद हैं, फिर भी बादल फटने जैसी अत्यंत स्थानीयकृत और अचानक होने वाली घटनाओं का सटीक अनुमान लगाना अभी भी एक चुनौती है।
“जलवायु परिवर्तन केवल एक दूर का खतरा नहीं है, बल्कि यह प्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है, जैसा कि इस भयावह बाढ़ ने दिखाया है।”
बाढ़ का प्रभाव: तात्कालिक और दीर्घकालिक
तात्कालिक प्रभाव (Immediate Impacts):
- जान-माल की क्षति (Loss of Life and Property): जैसा कि समाचारों में बताया गया है, लोगों की जान गई है और हजारों घर क्षतिग्रस्त हुए हैं।
- बुनियादी ढांचे का विनाश (Destruction of Infrastructure): सड़कें, पुल, बिजली लाइनें, संचार व्यवस्था और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे बाढ़ के पानी से तबाह हो गए हैं, जिससे राहत और बचाव कार्य बाधित हो रहे हैं।
- पेयजल और स्वच्छता की समस्या (Water and Sanitation Issues): बाढ़ के कारण पीने योग्य पानी के स्रोत दूषित हो गए हैं, और जलभराव से स्वच्छता की गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं, जिससे डायरिया, हैजा जैसी जल-जनित बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
- विस्थापन (Displacement): हजारों लोगों को अपने घरों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है, जिससे उनके लिए अस्थायी आश्रयों की आवश्यकता पड़ रही है।
- आर्थिक नुकसान (Economic Losses): कृषि, पशुधन, छोटे व्यवसाय और दैनिक मजदूरी पर निर्भर लोगों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है।
दीर्घकालिक प्रभाव (Long-term Impacts):
- कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture): बाढ़ से नष्ट हुई फसलें किसानों के लिए गंभीर आर्थिक संकट पैदा करेंगी। मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित हो सकती है।
- अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य (Depression and Mental Health): संपत्ति के नुकसान, आजीविका छिन जाने और प्रियजनों को खोने का गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, जिससे लोग लंबे समय तक अवसाद और चिंता से ग्रसित रह सकते हैं।
- पुनर्निर्माण की लागत (Cost of Reconstruction): क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे और घरों के पुनर्निर्माण में भारी धन और समय लगेगा।
- पर्यावरणीय क्षरण (Environmental Degradation): बाढ़ से भूस्खलन, मिट्टी का कटाव और जल स्रोतों का प्रदूषण हो सकता है, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षरण हो सकता है।
- सामाजिक और आर्थिक विषमता (Social and Economic Disparity): गरीब और कमजोर वर्ग के लोग अक्सर ऐसे आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति और भी बदतर हो जाती है।
आपदा प्रबंधन: चुनौतियाँ और समाधान
वर्तमान चुनौतियाँ (Current Challenges):
- प्रारंभिक चेतावनी की सटीकता (Accuracy of Early Warning): बादल फटने जैसी अचानक और स्थानीयकृत घटनाओं के लिए विश्वसनीय प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करना एक बड़ी चुनौती है।
- पहुँच और रसद (Accessibility and Logistics): बाढ़ प्रभावित, विशेष रूप से दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में, राहत सामग्री पहुँचाना और बचाव अभियान चलाना अत्यंत कठिन होता है।
- समन्वय की कमी (Lack of Coordination): विभिन्न सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के बीच प्रभावी समन्वय की कमी राहत कार्यों को बाधित कर सकती है।
- स्थानीय ज्ञान का एकीकरण (Integration of Local Knowledge): अक्सर, आपदा प्रबंधन की योजना बनाते समय स्थानीय समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और अनुभवों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
- पुनर्वास और पुनर्निर्माण (Rehabilitation and Reconstruction): विस्थापित लोगों को स्थायी आश्रय प्रदान करना और क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण एक लंबी और संसाधन-गहन प्रक्रिया है।
समाधान और भविष्य की राह (Solutions and Way Forward):
- मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Strengthening Early Warning Systems):
- उच्च-रिज़ॉल्यूशन वेदर रडार और उपग्रहों का उपयोग बढ़ाना।
- पहाड़ी इलाकों में स्वचालित मौसम स्टेशनों (AWS) का नेटवर्क स्थापित करना।
- स्थानीय समुदायों को प्रारंभिक चेतावनी के बारे में शिक्षित करना और उन्हें प्रतिक्रिया देने के लिए प्रशिक्षित करना।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) का उपयोग करके पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार करना।
- आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचा (Disaster-Resilient Infrastructure):
- बाढ़-प्रतिरोधी घरों और सार्वजनिक भवनों का निर्माण।
- नदी तटबंधों को मजबूत करना और बाढ़ के मैदानों पर निर्माण को विनियमित करना।
- पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन-रोधी उपायों को अपनाना।
- सतत भूमि उपयोग योजना (Sustainable Land Use Planning):
- वनों की कटाई पर रोक लगाना और वनीकरण को बढ़ावा देना।
- नदी घाटियों के किनारे अनधिकृत निर्माण पर सख्त नियंत्रण।
- ढलानों पर निर्माण के लिए सख्त नियम और दिशा-निर्देश लागू करना।
- सामुदायिक भागीदारी और क्षमता निर्माण (Community Participation and Capacity Building):
- स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षित करना।
- आपदा प्रतिक्रिया टीमों (Disaster Response Teams) का गठन।
- आपदा के दौरान और बाद में मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करना।
- जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन (Climate Change Mitigation and Adaptation):
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास तेज करना।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए रणनीतियों का विकास करना।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना।
- प्रभावी समन्वय और नीतिगत ढाँचा (Effective Coordination and Policy Framework):
- आपदा प्रबंधन के लिए सभी हितधारकों के बीच एक मजबूत समन्वय तंत्र स्थापित करना।
- आपदा प्रबंधन कानूनों और नीतियों की नियमित समीक्षा और अद्यतन।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बलों (SDRF) की क्षमताओं को बढ़ाना।
“आपदा प्रबंधन केवल प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह रोकथाम, तत्परता, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति का एक एकीकृत चक्र है।”
UPSC के दृष्टिकोण से प्रासंगिकता
यह घटना UPSC परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए महत्वपूर्ण है:
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
- भूगोल (Geography): बादल फटना, बाढ़, भूस्खलन, नदी प्रणालियाँ, मानसून, स्थलाकृति।
- पर्यावरण (Environment): जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, पर्यावरणीय क्षरण, जैव विविधता पर प्रभाव।
- सामान्य ज्ञान (General Knowledge): राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीतियां, प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य (जो बाढ़ से प्रभावित हो सकते हैं)।
मुख्य परीक्षा (Mains):
- GS-I (भूगोल): भारत के प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र और उनकी विशेषताएँ, प्राकृतिक संसाधन, बाढ़ और इसके प्रबंधन।
- GS-I (समाज): सामाजिक प्रभाव, विस्थापन, कमजोर वर्गों पर आपदा का प्रभाव।
- GS-III (पर्यावरण): पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन, आपदा प्रबंधन।
- GS-III (आंतरिक सुरक्षा): राष्ट्रीय सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन और आपदाओं का प्रभाव, सीमा प्रबंधन (यदि बाढ़ सीमावर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करती है)।
- GS-IV (नैतिकता): आपदा के समय सरकारी अधिकारियों और समाज की नैतिक जिम्मेदारियाँ, करुणा, सेवा भाव।
निबंध (Essay):
- “जलवायु परिवर्तन: भारत के लिए एक गंभीर चुनौती”
- “आपदा प्रबंधन: भारत की तैयारी और क्षमता”
- “विकास और पर्यावरण संरक्षण: एक नाजुक संतुलन”
निष्कर्ष
शिमला में बादल फटने और उत्तर प्रदेश में नदियों के उफान जैसी घटनाएँ हमें प्रकृति की शक्ति और जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों की याद दिलाती हैं। यह केवल मौसम की मार नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि हमें अपनी विकास रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा और आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील और प्रतिक्रियाशील बनना होगा। सरकार, समुदायों और व्यक्तियों को मिलकर एक मजबूत और लचीला ढाँचा तैयार करना होगा जो ऐसी विनाशकारी घटनाओं के प्रभाव को कम कर सके। इस आपदा से सीखना और भविष्य के लिए तैयार होना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. कथन-आधारित प्रश्न:**
कथन (A): बादल फटना एक ऐसी घटना है जिसमें एक घंटे के भीतर 100 मिमी से अधिक वर्षा होती है।
कथन (B): यह घटना अक्सर निम्न दबाव वाले क्षेत्रों में होती है और इसका पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है।
सही विकल्प चुनें:
(a) केवल (A)
(b) केवल (B)
(c) (A) और (B) दोनों
(d) न तो (A) और न ही (B)
उत्तर: (c) (A) और (B) दोनों
व्याख्या: बादल फटना एक अत्यंत तीव्र, स्थानीयकृत और अप्रत्याशित वर्षा की घटना है, जिसमें कम समय (आमतौर पर कुछ मिनटों से लेकर एक-दो घंटे तक) में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है। आमतौर पर, एक घंटे में 100 मिलीमीटर (मिमी) से अधिक वर्षा को बादल फटना माना जाता है। यह घटना अक्सर पहाड़ी या दुर्गम क्षेत्रों में होती है, जहाँ वायुमंडलीय अस्थिरता और उच्च जलवाष्प सामग्री के कारण बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है। इसका पूर्वानुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है।
2. निम्नलिखित में से कौन सी नदी उत्तर प्रदेश में बाढ़ का कारण बन सकती है?
(a) यमुना
(b) गंगा
(c) घाघरा
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: गंगा, यमुना, घाघरा, शारदा और राप्ती जैसी नदियाँ उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण नदियाँ हैं और भारी वर्षा या ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में अचानक बाढ़ आने के कारण ये उफान पर आ सकती हैं, जिससे राज्य के बड़े हिस्से प्रभावित होते हैं।
3. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) से संबंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. उपग्रह-आधारित वर्षा अनुमान (Satellite-based rainfall estimation) बादल फटने की घटनाओं का पता लगाने में सहायक हो सकते हैं।
2. स्थानीय मौसम स्टेशनों (Local Weather Stations) को अपग्रेड करने से क्षेत्रीय वर्षा पैटर्न की निगरानी में सुधार हो सकता है।
3. क्लाउड कंप्यूटिंग और AI का उपयोग करके पूर्वानुमान की सटीकता बढ़ाई जा सकती है।
इनमें से कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या: आधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे उपग्रह, उन्नत मौसम स्टेशन और AI-आधारित विश्लेषण, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेष रूप से बादल फटने जैसी घटनाओं के पूर्वानुमान में।
4. आपदा प्रबंधन के ‘4 R’ मॉडल में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल नहीं है?
(a) जोखिम कम करना (Risk Reduction)
(b) तैयारी (Readiness)
(c) प्रतिक्रिया (Response)
(d) पुनर्निर्माण (Reconstruction)
उत्तर: (d) पुनर्निर्माण (Reconstruction)
व्याख्या: आपदा प्रबंधन के पारंपरिक ‘4 R’ मॉडल में सामान्यतः जोखिम कम करना (Mitigation/Reduction), तैयारी (Preparedness), प्रतिक्रिया (Response), और पुनर्प्राप्ति (Recovery) शामिल हैं। हालांकि पुनर्निर्माण एक महत्वपूर्ण पहलू है, यह अक्सर पुनर्प्राप्ति के व्यापक दायरे में आ जाता है। कुछ मॉडल ‘R’ का उपयोग करते हैं जैसे Response, Recovery, Reconstruction, Rehabilitation। लेकिन यहाँ दिए गए विकल्पों में ‘पुनर्निर्माण’ आमतौर पर ‘पुनर्प्राप्ति’ (Recovery) के साथ शामिल होता है। सबसे सटीक उत्तर ‘पुनर्निर्माण’ है क्योंकि यह ‘Recovery’ का एक भाग है, न कि एक अलग ‘R’।
5. भूस्खलन (Landslide) से संबंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. ढलानों पर वनों की कटाई भूस्खलन के खतरे को बढ़ाती है।
2. तीव्र वर्षा मिट्टी की स्थिरता को कम कर सकती है।
3. भूस्खलन के लिए केवल प्राकृतिक कारक जिम्मेदार होते हैं।
कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a) केवल 1 और 2
व्याख्या: वनों की कटाई और भारी वर्षा दोनों ही भूस्खलन के प्रमुख कारण हैं, जो मिट्टी की स्थिरता को कम करते हैं। हालांकि, मानवजनित गतिविधियाँ (जैसे निर्माण) भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं, इसलिए कथन 3 गलत है।
6. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. NDRF मुख्य रूप से आपदाओं के दौरान जीवन बचाने और राहत तथा पुनर्वास के लिए समर्पित है।
2. NDRF को भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन रखा गया है।
3. NDRF की भूमिका केवल प्राकृतिक आपदाओं तक सीमित है।
कौन से कथन सत्य हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a) केवल 1 और 2
व्याख्या: NDRF का मुख्य उद्देश्य आपदाओं में जीवन बचाना और राहत व पुनर्वास प्रदान करना है। यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन है। हालांकि, NDRF को मानव-निर्मित आपदाओं (जैसे औद्योगिक दुर्घटनाएं) से निपटने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है, इसलिए कथन 3 गलत है।
7. जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं (Extreme Weather Events) में वृद्धि के संबंध में कौन सा कथन सत्य है?
(a) केवल भारी वर्षा की आवृत्ति बढ़ रही है।
(b) केवल लू (Heatwaves) की तीव्रता बढ़ रही है।
(c) भारी वर्षा, लू, चक्रवात और सूखा जैसी सभी चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।
(d) जलवायु परिवर्तन का चरम मौसम की घटनाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर: (c) भारी वर्षा, लू, चक्रवात और सूखा जैसी सभी चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर विभिन्न प्रकार की चरम मौसम की घटनाओं, जैसे भारी वर्षा, लू, सूखे, और चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है।
8. हिमाचल प्रदेश के शिमला जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़ के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक अधिक प्रासंगिक है?
(a) समुद्र तट पर निर्माण
(b) नदियों में गाद का जमाव (Siltation of rivers)
(c) बादल फटना और तीव्र ढलान प्रवाह (Cloudburst and rapid slope flow)
(d) अत्यधिक औद्योगिक प्रदूषण
उत्तर: (c) बादल फटना और तीव्र ढलान प्रवाह (Cloudburst and rapid slope flow)
व्याख्या: पहाड़ी क्षेत्रों में, बादल फटने से होने वाली अचानक और अत्यधिक वर्षा, और फिर इन तीव्र जल धाराओं का तेज ढलानों पर बहना, बाढ़ और विनाश का मुख्य कारण बनता है।
9. बाढ़ के संबंध में ‘बाढ़ मैदान’ (Floodplain) का क्या अर्थ है?
(a) वह क्षेत्र जो हमेशा पानी में डूबा रहता है।
(b) नदी के किनारे का वह क्षेत्र जो सामान्यतः सूखी रहती है, लेकिन बाढ़ आने पर जलमग्न हो जाती है।
(c) वह क्षेत्र जहाँ केवल वर्षा जल जमा होता है।
(d) वह क्षेत्र जहाँ नदियों का संगम होता है।
उत्तर: (b) नदी के किनारे का वह क्षेत्र जो सामान्यतः सूखी रहती है, लेकिन बाढ़ आने पर जलमग्न हो जाती है।
व्याख्या: बाढ़ मैदान वह निम्न-भूमि क्षेत्र है जो नदी के किनारे स्थित होता है और नदी के सामान्य प्रवाह क्षेत्र से बाहर होता है, लेकिन बाढ़ के दौरान यह जल से भर जाता है।
10. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है?
(a) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
(b) नीति आयोग (NITI Aayog)
(c) गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs)
(d) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
उत्तर: (c) गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs)
व्याख्या: यद्यपि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) आपदा प्रबंधन के लिए एक प्रमुख नीति-निर्धारक निकाय है, लेकिन भारत सरकार में गृह मंत्रालय (MHA) को आपदा प्रबंधन के लिए नोडल मंत्रालय के रूप में नामित किया गया है, जो समन्वय और कार्यान्वयन की जिम्मेदारी संभालता है। NDRF भी MHA के अधीन है। (यह प्रश्न सरकारी ढांचे पर आधारित है।)
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “जलवायु परिवर्तन भारत में चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा रहा है, जिससे बादल फटने और व्यापक बाढ़ जैसी विपदाएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस संदर्भ में, भारत की आपदा प्रबंधन रणनीतियों की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें और भविष्य की तैयारी के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव दें।” (250 शब्द, 15 अंक)
2. हिमाचल प्रदेश में हाल की बादल फटने की घटना और उत्तर प्रदेश में नदियों के उफान ने भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में बाढ़ के प्रबंधन की चुनौतियों को उजागर किया है। बाढ़ के कारणों, प्रभावों और प्रभावी शमन रणनीतियों पर विस्तृत चर्चा करें, जिसमें प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और सामुदायिक भागीदारी पर विशेष ध्यान दिया जाए। (250 शब्द, 15 अंक)
3. “विकास के नाम पर अनियोजित शहरीकरण और पर्यावरणीय अवक्रमण, प्राकृतिक आपदाओं के विनाशकारी प्रभाव को बढ़ाते हैं।” दिए गए कथन के आलोक में, शिमला में बादल फटने से हुई तबाही और उसके मानवीय व पर्यावरणीय परिणामों का विश्लेषण करें। (150 शब्द, 10 अंक)
4. भारत में आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर संस्थागत ढाँचे (institutional framework) की विवेचना करें। NDRF और SDRF की भूमिका, क्षमताएँ और उनमें सुधार की गुंजाइश पर प्रकाश डालें। (150 शब्द, 10 अंक)