हरबर्ट स्पेन्सर
[ HERBERT SPENCER : 1820 – 1902 ]
उन्नीसवीं शताब्दी के समाजशात्रीय विचारकों में हरबर्ट स्पेन्सर का नाम अग्रणीय है । आगस्त कॉम्ट ने यदि समाजशास्त्र का नामकरण करके इसे स्थापित किया तो समाजशास्त्र को प्रतिष्ठित करने वाले विद्वानों में हरबर्ट स्पेन्सर का नाम प्रमुख है । समाजशास्त्र के प्रारम्भिक विचारकों तथा समाजशास्त्र को एक सम्मान पूर्ण स्थान देने वाले विचारकों में स्पेन्सर का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा । स्पेन्सर के पूर्ववर्ती विचारकों ने सामाजिक अध्ययनों के लिए जिस ऐतिहासिक पद्धति की
0विवेचना की थी , स्पेन्सर ने उस पद्धति को एक नवीन आधार प्रदान करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया । जिस प्रकार प्राणीशास्त्रीय उद्विकास में चार्ल्स डार्विन का नाम महत्त्वपूर्ण है , उसी प्रकार सामाजिक उद्विकास के सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक के रूप में स्पेन्सर के नाम को आज भी मान्यता मिली हुयी है । स्पेन्सर ने अपनी पस्तक ‘ सिस्टम ऑफ सिन्थेटिक फिलासफी ( System of Synthetic Philosophy ) में उद्विकासवादी सिद्धान्त के साथ एकीकरण ( Integra tion ) , संतुलन ( Equilibrium ) तथा विभेदीकरण ( Differentiation ) आदि की चर्चा करके भी समाजशास्त्र को समृद्ध बनाने में अपना योगदान दिया है । कुछ समाजशास्त्री स्पेन्सर के योगदान को मौलिक नहीं मानते । उनका कथन है कि स्पेन्सर ने अपने ग्रन्थ ‘ समाजशास्त्र के सिद्धान्त ‘ ( Principles of Sociology ) में जिन विचारों को प्रस्तुत किया है , उनमें से अधिकांश विचार कॉम्ट द्वारा विभिन्न ग्रन्थों में पहले ही दिये जा चुके थे । दूसरी ओर कुछ समाजशास्त्री यह दावा करते हैं कि स्पेन्सर ने कान्ट से केवल प्रेरणा ही प्राप्त की थी । एक बार्स ( A . Barnes ) जैसे कुछ समाजशास्त्रियों ने तथ्यात्मक आधारों पर इस विवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से लिखा है कि स्पेन्सर . ने जब अपनी प्रथम कृति ‘ सामाजिक स्थितिकी ‘ . ‘ ( Social Statics ) की रचना की थी तब उन्हें कॉम्ट द्वारा प्रकाशित प्रारम्भिक निबन्ध सम्बन्धी पुस्तक ‘ ओप्सक्यूल ‘ ( Opuscules ) के विषय में कोई जानकारी नहीं ।इसका सम्भवतः एक कारण यह है कि कॉम्ट का जन्म सन् 1798 में फ्रांस में हुआ था जबकि स्पेन्सर इंग्लैंड में सन 1820 में जन्मे थे । इस प्रकार निश्चित ही कॉम्ट स्पेन्सर के पूर्ववर्ती रहे हैं । स्पेन्सर ने कॉम्ट के विचारों को ही अपने तरीके से वर्णित किया है अथवा दोनों के विचारों में समानता केवल संयोग का परिणाम है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके उत्तर में दोनों ही सम्भावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता । इस स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि समाजशास्त्र के बारे में स्पेन्सर के प्रमुख विचारों को समझकर वास्तविकता का मूल्यांकन किया जाये ।
जीवन एवं कृतियों
( Life and Works )
हरबर्ट स्पेन्सर का नाम ऐसे लोगों के साथ रखा जा सकता है जिनके जीवन का प्रारम्भ संघर्ष के साथ हुआ और संघर्ष करते हुए ही उन्होंने एक उच्च बौद्धिक स्तर को प्रदर्शित किया । स्पेन्सर का जन्म 27 अप्रेल , सन् 1820 को इंग्लैण्ड के डों नामक स्थान में एक साधारण अध्यापक के परिवार में हुआ था । अध्यापक के परिवार में जन्म लेने के कारण स्पेन्सर की रुचि प्रारम्भ से ही अध्ययन में रही किन्तु आर्थिक कठिनाइयों एवं अन्य परिस्थितियों के कारण स्पेन्सर विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके । लेमर ( Lamer ) ने अपनी पुस्तक ‘ हरबर्ट स्पेन्सर एण्ड हिज फादर ‘ ( Her bert Spencer and his Father ) में लिखा है कि स्पेन्सर के पिता का नाम जार्ज विलियम था । जार्ज विलियम किसी स्कूल में नियमित शिक्षक नहीं थे वरन् वह रूपक्तिगत रूप से विद्यार्थियों को पढ़ाने का कार्य करते थे । अपने प्रारम्भिक जीवन में स्पेन्सर पर अपने पिता का अत्यधिक प्रभाव पड़ा । इसके साथ ही वे अपने पिता के मित्रों की एक संस्था ‘ डर्बी फिलासिफिकल सोसायटी के भी नियमित सदस्य बन गए । इस प्रकार जीवन के प्रारम्भिक काल में स्पेन्सर जिन बौद्धिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे , उन्होंने स्पेन्सर की बौद्धिक विलक्षणता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया । स्पेन्सर की किशोरावस्था उनके चाचा थॉमस के साथ व्यतीत हुई । थॉमस क्रान्तिकारी विचारों के समर्थक थे । वे तत्कालीन समाज में चर्च की बढ़ती हई सत्ता के भी विरोधी थे । स्पेन्सर के व्यक्तित्व और लेखन पर उनके चाचा थॉमस के क्रान्तिकारो चिन्तन की एक स्पष्ट झलक दिखाई देती है । स्पेन्सर ने 17 वर्ष की आयु में ( सन् 1837 में ) लन्दन रेलवे में एक इन्जीनियर के रूप में कार्य करना आरम्भ कर दिया । फीलिक्स हाल्ट ने लिखा है कि ” स्पेन्सर ने रेलवे में कार्य करते हुए इंग्लैण्ड के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया । ” इसा काल में स्पेन्सर ने अनेक लेख लिखे जो इंजीनियरिंग विषय से सम्बन्धित विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए ।सन् 1842 में स्पेन्सर ने नौकरी छोड़कर पुनः स्वाध्याय को प्राथमिकता देना आरम्भ कर दी ।
इस चरण में उनके द्वारा लिखित लेख ” द प्रापर स्फीयर ऑफ गवर्नमेन्ट ” ( The Proper Sphere of Government ) ने ब्रिटेन में हलचल मेचा दी । अपने चाचा थॉमस से प्राप्त ज्ञान का उपयोग स्पेन्सर ने अपने द्वारा लिखित एक अन्य लेख ‘ द डिसिडेन्स ऑफ डिसेन्ट ‘ ( The Dissidence of Dissent ) में किया जिसमें उन्होंने चर्च की प्रभुता का स्पष्ट रूप से विरोध किया । विभिन्न – पत्र – पत्रिकाओं में अलग – अलग विषयों पर लिखे गये स्पेन्सर के लेख उनके बहुमुखी व्यक्तित्व को स्पष्ट करते हैं । अनेक महत्त्वपूर्ण लेखों के बाद स्पेन्सर ने जब महत्त्व पूर्ण ग्रन्थों की रचना करना आरम्भ की तो सम्पूर्ण विश्व के सामने उनका बौद्धिक व्यक्तित्व स्पष्ट होने लगा ।
स्पेन्सर द्वारा लिखित कुछ प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार है । ( 1 ) मनोविज्ञान के सिद्धान्त ( Principles of Psychology ) 1854 ( 2 ) विश्लेषित दर्शन की प्रणाली ( System of Synthetic Philosophy ) 1860 ( 3 ) शिक्षा ( Education ) 1861 ( 4 ) प्रथम सिद्धान्त ( First Principles ) 1862 ( 5 ) प्राणीशास्त्र के सिद्धान्त ( The Principles of Biology ) 1864 ( 6 ) वर्णनात्मक समाजशास्त्र ( Descriptive Sociology ) 1873 ( 7 ) समाजशास्त्र के सिद्धान्त ( The Principles of Sociology ) 1873 1884 ( 8 ) मनुष्य एवं राज्य ( The Man Vs . State ) उपरोक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त भी स्पेन्सर ने अनेक पुस्तकों की रचना की है । उनके लेखन पर जॉन स्टुअर्ट मिल , ( John Stuart Mill ) , व्हीवेल ( Whewell ) तथा टायनडाल ( Tyndall ) आदि का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है । उन्कन ( Duncan ) ने अपनी पुस्तक में स्पेन्सर द्वारा अपनी मां को लिखे एक पत्र का उल्लेख करते हुए लिखा कि स्पेन्सर कॉम्ट के विरोधी थे तथा कॉम्ट के चिन्तन के विषय में उनकी धारणा अधिक अनुकूल नहीं थी । स्पेन्सर अपने काल के एक क्रियात्मक व्यक्ति ( Activist ) थे । वह एक मानवतावादी संगठन ( Party of Humanity ) तथा ‘ X – Club ‘ नामक संस्था के भी सक्रिय सदस्य रहे । इन संस्थाओं के माध्यम से स्पेन्सर ने साम्राज्यवादी परम्पराओं का विरोध किया । धार्मिक अंधविश्वासों का विरोध उनकी क्रियाशीलता का एक महत्त्वपूर्ण अंग था । अपने सम्पूर्ण जीवन में स्पेन्सर ने जो भी साहित्य लिखा , उसमें समाजशास्त्र से सम्बन्धित उ विकास और सावयवी रचना के सिद्धान्त का महत्त्व सर्वाधिक है । इस दृष्टिकोण से आवश्यक है कि प्रस्तुत विवेचन में स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित प्रमुख समाजशास्त्रीय विचारों का संक्षेप में मूल्यांकन किया जाये ।