सुप्रीम कोर्ट बनाम सोशल मीडिया: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अग्निपरीक्षा और आत्म-नियमन का महत्व
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया पर विभाजनकारी और नफरत भरी सामग्री के बढ़ते प्रसार पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए जोर दिया कि नागरिकों को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल्य को समझना चाहिए’ और साथ ही सोशल मीडिया कंपनियों से आत्म-नियमन (Self-regulation) का आग्रह किया। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गलत सूचना, भड़काऊ भाषण और ध्रुवीकरण की सामग्री एक गंभीर सामाजिक और कानूनी चुनौती बन चुकी है। यह मामला न केवल संवैधानिक अधिकारों के दायरे को छूता है, बल्कि डिजिटल युग में व्यक्तिगत जिम्मेदारी, कॉर्पोरेट नैतिकता और राज्य के हस्तक्षेप की सीमाओं पर भी बहस छेड़ता है। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, यह विषय भारतीय संविधान, सामाजिक न्याय, शासन और आंतरिक सुरक्षा के कई पहलुओं को एक साथ समेटे हुए है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) भारतीय लोकतंत्र का आधार स्तंभ है। यह प्रत्येक नागरिक को अपने विचारों और विश्वासों को व्यक्त करने का अधिकार प्रदान करती है, जो एक जीवंत और प्रगतिशील समाज के लिए अनिवार्य है।
संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a): नींव का पत्थर
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) सभी नागरिकों को ‘वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का अधिकार देता है। इस अधिकार का अर्थ है:
- अपने विचारों और विश्वासों को किसी भी माध्यम से, जैसे मौखिक, लिखित, मुद्रित, चित्र या किसी अन्य तरीके से व्यक्त करने की स्वतंत्रता।
- इसमें न केवल अपने विचारों को व्यक्त करना शामिल है, बल्कि दूसरों के विचारों को जानने और प्राप्त करने का अधिकार भी निहित है।
- यह प्रेस की स्वतंत्रता को भी समाहित करता है, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है।
उचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions): जिम्मेदारी की सीमा
हालांकि, यह स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है। अनुच्छेद 19(2) राज्य को इस अधिकार पर कुछ “उचित प्रतिबंध” लगाने की शक्ति देता है। ये प्रतिबंध निम्नलिखित आधारों पर लगाए जा सकते हैं:
- भारत की संप्रभुता और अखंडता
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था
- शिष्टता या नैतिकता
- न्यायालय की अवमानना
- मानहानि
- किसी अपराध के लिए उकसाना
ये प्रतिबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि स्वतंत्रता का प्रयोग इस तरह से न हो जो समाज के लिए हानिकारक हो या दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करे। सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में इन प्रतिबंधों की व्याख्या की है और स्पष्ट किया है कि कोई भी प्रतिबंध ‘उचित’ होना चाहिए, यानी मनमाना या अत्यधिक नहीं होना चाहिए।
“स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचारिता नहीं है। जहाँ स्वतंत्रता की शुरुआत होती है, वहाँ जिम्मेदारी भी शुरू हो जाती है।”
डिजिटल क्रांति और सोशल मीडिया का उदय
पिछले दो दशकों में, इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने हमारे संवाद करने, सूचना प्राप्त करने और दुनिया को देखने के तरीके में क्रांति ला दी है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स अब अरबों लोगों के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं।
सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू: एक सशक्त माध्यम
- सूचना का त्वरित प्रसार: घटनाओं की जानकारी बिजली की गति से फैलती है, जिससे नागरिक तुरंत जागरूक हो पाते हैं।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विस्तार: प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक मंच उपलब्ध है, जहाँ वे अपनी बात रख सकते हैं, जिससे हाशिए पर पड़े वर्गों को भी आवाज मिली है।
- नागरिक पत्रकारिता और जवाबदेही: नागरिक स्वयं घटनाओं को रिकॉर्ड और साझा कर सकते हैं, जिससे मुख्यधारा की मीडिया की जवाबदेही बढ़ती है।
- सामाजिक आंदोलनों को बल: ‘अरब स्प्रिंग’ से लेकर भारत में ‘निर्भया आंदोलन’ तक, सोशल मीडिया ने कई सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों को गति प्रदान की है।
- कनेक्टिविटी और सामुदायिक निर्माण: लोगों को भौगोलिक सीमाओं से परे जुड़ने और समान विचारधारा वाले समुदायों का निर्माण करने में मदद करता है।
बदलती चुनौतियाँ: डिजिटल युग की अंधेरी सच्चाई
जहां सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अभूतपूर्व आयाम दिए हैं, वहीं इसके कई नकारात्मक पहलू भी उभर कर आए हैं, जो समाज के ताने-बाने के लिए खतरा बन गए हैं:
- फेक न्यूज़ और गलत सूचना: असत्यापित या मनगढ़ंत जानकारी का तेजी से प्रसार, जिससे अफवाहें और भ्रम फैलता है।
- घृणास्पद भाषण (Hate Speech): किसी विशेष समुदाय, धर्म या समूह के खिलाफ नफरत, हिंसा या भेदभाव को बढ़ावा देने वाली सामग्री।
- ध्रुवीकरण और कट्टरता: एल्गोरिदम अक्सर उपयोगकर्ताओं को उनकी मौजूदा सोच को पुष्ट करने वाली सामग्री दिखाते हैं, जिससे ‘इको चैंबर’ (Eco Chamber) बनते हैं और समाज में ध्रुवीकरण बढ़ता है।
- मानहानि और निजता का उल्लंघन: किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने वाली या उसकी निजी जानकारी को सार्वजनिक करने वाली सामग्री।
- ऑनलाइन उत्पीड़न और ट्रोलिंग: व्यक्तियों को ऑनलाइन परेशान करना, धमकाना या उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणी करना।
- विदेशी हस्तक्षेप: शत्रुतापूर्ण राज्य या गैर-राज्य अभिकर्ताओं द्वारा गलत सूचना अभियानों का उपयोग कर आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप।
उदाहरण: दिल्ली दंगे (2020) के दौरान सोशल मीडिया पर फैलाई गई अफवाहों और भड़काऊ पोस्ट्स ने स्थिति को और खराब करने में भूमिका निभाई। कोविड-19 महामारी के दौरान, गलत सूचनाओं ने वैक्सीन संकोच और अंधविश्वासों को बढ़ावा दिया, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों को नुकसान पहुंचा।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी का महत्व: संतुलन की पुकार
सर्वोच्च न्यायालय की हालिया टिप्पणी कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
- नागरिक जिम्मेदारी पर जोर: यह पहली बार नहीं है जब न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी के महत्व पर जोर दिया है, लेकिन सोशल मीडिया के संदर्भ में यह विशेष रूप से प्रासंगिक है। न्यायालय का मानना है कि नागरिक केवल अधिकारों का उपभोग नहीं कर सकते, बल्कि उन्हें उनके प्रयोग से होने वाले संभावित नुकसान के प्रति भी सचेत रहना चाहिए।
- आत्म-नियमन की आवश्यकता: न्यायालय ने सरकार के कठोर विनियमन के बजाय सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा आत्म-नियमन को प्राथमिकता दी है। यह डिजिटल क्षेत्र की जटिलता और नवाचार को बढ़ावा देने की इच्छा को दर्शाता है।
- सामाजिक ध्रुवीकरण पर चिंता: टिप्पणी सीधे तौर पर समाज में बढ़ते विभाजन और ध्रुवीकरण से संबंधित है, जिसे अक्सर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नफरत भरे भाषण और गलत सूचना द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।
- राज्य के हस्तक्षेप की सीमाएं: न्यायालय ने एक तरह से संकेत दिया है कि सरकार को हर स्थिति में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि प्लेटफॉर्म और नागरिकों को स्वयं अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
“स्वतंत्रता अनियंत्रित लाइसेंस नहीं है; यह जिम्मेदारी के साथ आती है।”
आत्म-नियमन: एक समाधान?
आत्म-नियमन (Self-Regulation) का अर्थ है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्वयं अपनी सामग्री मॉडरेशन नीतियों को विकसित करें और उन्हें लागू करें, बजाय इसके कि सरकार बाहरी कानूनों या नियमों के माध्यम से उन्हें नियंत्रित करे।
आत्म-नियमन क्यों सुझाया गया?
- तकनीकी जटिलता: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अत्यधिक जटिल हैं, और सरकार के लिए उनके एल्गोरिदम और सामग्री प्रवाह को पूरी तरह से समझना और विनियमित करना मुश्किल है। कंपनियां अपनी तकनीक को सबसे अच्छी तरह जानती हैं।
- नवाचार को बढ़ावा: अत्यधिक सरकारी विनियमन नवाचार को बाधित कर सकता है और प्लेटफॉर्म्स को अपनी सेवाओं को विकसित करने से रोक सकता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण: आत्म-नियमन से सेंसरशिप की संभावना कम होती है और सरकार द्वारा मनमाने ढंग से सामग्री को हटाने का जोखिम कम होता है।
- त्वरित प्रतिक्रिया: कंपनियां तुरंत अपनी नीतियों को बदल सकती हैं और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रतिक्रिया दे सकती हैं, जबकि कानूनी प्रक्रियाएं धीमी होती हैं।
- वैश्विक प्रकृति: सोशल मीडिया की प्रकृति वैश्विक है, और एक देश के नियम सभी पर लागू नहीं हो सकते। आत्म-नियमन से अधिक लचीलापन मिल सकता है।
आत्म-नियमन के पक्ष में तर्क
- विशेषज्ञता और संसाधन: बड़ी टेक कंपनियां सामग्री मॉडरेशन के लिए भारी निवेश और विशेषज्ञ टीमों को लगा सकती हैं, जो सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है।
- नीतियों में लचीलापन: वे अपनी नीतियों को तेजी से बदलते ऑनलाइन परिदृश्य के अनुकूल बना सकते हैं।
- उपयोगकर्ता-केंद्रित दृष्टिकोण: प्लेटफॉर्म अपनी उपयोगकर्ता-आधारित आवश्यकताओं और शिकायतों को सीधे संबोधित कर सकते हैं।
- सरकारी ओवररीच से बचाव: यह सरकार को अत्यधिक शक्ति प्राप्त करने और सेंसरशिप का दुरुपयोग करने से रोक सकता है।
आत्म-नियमन के विपक्ष में तर्क/चुनौतियाँ
आत्म-नियमन के अपने गंभीर दोष भी हैं, जो इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हैं:
- नैतिक दुविधा और लाभ का दबाव: कंपनियों का प्राथमिक लक्ष्य लाभ कमाना होता है। विवादास्पद सामग्री अक्सर अधिक जुड़ाव (engagement) लाती है, जिससे विज्ञापन राजस्व बढ़ता है। यह उन्हें नफरत भरे भाषण या गलत सूचना को हटाने के लिए अनिच्छुक बना सकता है।
- प्रवर्तन की कमी: आत्म-नियमन नीतियों को अक्सर पूरी तरह से या सुसंगत रूप से लागू नहीं किया जाता है। पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी होती है।
- अल्गोरिथमिक पूर्वाग्रह: सोशल मीडिया एल्गोरिदम अक्सर उपयोगकर्ताओं को उनकी मौजूदा सोच को पुष्ट करने वाली सामग्री दिखाते हैं, जिससे ध्रुवीकरण बढ़ता है। इन एल्गोरिदम को केवल आत्म-नियमन से नियंत्रित करना मुश्किल है।
- “गेटकीपर” की भूमिका: कुछ बड़ी तकनीकी कंपनियों के पास भारी शक्ति है कि वे क्या सामग्री देखी जाती है और क्या नहीं। यह शक्ति बिना उचित निरीक्षण के खतरनाक हो सकती है।
- उपयोगकर्ता शिकायतों का निपटान: शिकायत निवारण तंत्र अक्सर धीमा, अपारदर्शी और अप्रभावी होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण का अभाव: अलग-अलग देशों में सामग्री नियम अलग-अलग होते हैं, जिससे एक सार्वभौमिक आत्म-नियमन मॉडल बनाना मुश्किल हो जाता है।
उदाहरण: 2020 में, फेसबुक (अब मेटा) पर आरोप लगे थे कि भारत में घृणास्पद भाषण की पहचान करने और उसे हटाने में वह विफल रहा, खासकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील सामग्री के संबंध में।
सरकारी विनियमन बनाम आत्म-नियमन: संतुलन की तलाश
भारत में सोशल मीडिया सामग्री को विनियमित करने के लिए पहले से ही कानून मौजूद हैं, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) और इसके तहत बनाए गए नियम, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (IT Rules, 2021)।
मौजूदा नियामक ढांचा:
- IT Act, 2000: यह साइबर अपराधों और इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन को नियंत्रित करता है। धारा 69A सरकार को कुछ सामग्री को अवरुद्ध करने की शक्ति देती है।
- IT Rules, 2021: ये नियम सोशल मीडिया मध्यस्थों (Intermediaries) पर अधिक जवाबदेही डालते हैं। इनमें शामिल हैं:
- शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति।
- आपत्तिजनक सामग्री को 24 घंटे के भीतर हटाना।
- पहला प्रवर्तक (first originator) की पहचान करने की आवश्यकता (कुछ मामलों में)।
- समाचार और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए आचार संहिता।
ये नियम हालांकि आत्म-नियमन के तत्वों को शामिल करते हैं, लेकिन इन्हें अक्सर सरकारी नियंत्रण और सेंसरशिप की ओर एक कदम के रूप में देखा जाता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
- जर्मनी का NetzDG (Network Enforcement Act): यह कानून सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को स्पष्ट रूप से अवैध सामग्री को 24 घंटे के भीतर हटाने के लिए बाध्य करता है, या भारी जुर्माना देना पड़ता है।
- यूरोपीय संघ का DSA (Digital Services Act): यह नियम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अवैध और हानिकारक सामग्री से निपटने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है, जिसमें सामग्री मॉडरेशन में अधिक पारदर्शिता, जोखिम मूल्यांकन और शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं।
- अमेरिका: अमेरिका में सामग्री विनियमन के लिए एक ‘मुक्त बाजार’ दृष्टिकोण है, जहाँ प्लेटफॉर्म्स को सामग्री मॉडरेशन पर व्यापक स्वायत्तता दी जाती है, हालांकि धारा 230 के तहत उनकी देयता को सीमित किया गया है।
स्पष्ट है कि दुनिया भर की सरकारें सोशल मीडिया सामग्री के प्रबंधन को लेकर संघर्ष कर रही हैं। यह एक जटिल मुद्दा है जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सार्वजनिक सुरक्षा, निजता और तकनीकी नवाचार के बीच संतुलन बनाना होता है।
आगे की राह: डिजिटल युग में स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का संगम
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी एक वेक-अप कॉल है, जो समाज के सभी हितधारकों को इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए एक साथ आने का आह्वान करती है। किसी एक समाधान से यह समस्या हल नहीं होगी; बल्कि एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
1. नागरिकों की भूमिका: जागरूक और जिम्मेदार बनें
- डिजिटल साक्षरता: नागरिकों को फेक न्यूज़, घृणास्पद भाषण और गलत सूचना की पहचान करना सिखाया जाना चाहिए। क्रिटिकल थिंकिंग कौशल विकसित करना महत्वपूर्ण है।
- सत्यापन: कोई भी जानकारी साझा करने से पहले उसकी सत्यता की जांच करें।
- रिपोर्ट करें: आपत्तिजनक या अवैध सामग्री की रिपोर्ट संबंधित प्लेटफॉर्म और अधिकारियों को करें।
- संयम: ऑनलाइन बातचीत में सम्मान और संयम बनाए रखें, खासकर जब विचारों में मतभेद हों।
2. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भूमिका: जिम्मेदारी के साथ शक्ति का प्रयोग
- पारदर्शी सामग्री मॉडरेशन: प्लेटफॉर्म को अपनी सामग्री मॉडरेशन नीतियों को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए और यह बताना चाहिए कि वे कैसे निर्णय लेते हैं कि कौन सी सामग्री हटाई जानी चाहिए।
- प्रभावी शिकायत निवारण: उपयोगकर्ता शिकायतों के लिए एक मजबूत, सुलभ और त्वरित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करें।
- एल्गोरिथम में सुधार: ऐसे एल्गोरिदम विकसित करें जो ध्रुवीकरण को कम करें और विविध दृष्टिकोणों को बढ़ावा दें, बजाय इसके कि वे ‘इको चैंबर’ बनाएं।
- मानव और एआई मॉडरेशन का संतुलन: बड़ी मात्रा में सामग्री को प्रबंधित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करें, लेकिन मानव समीक्षकों की भूमिका को भी मजबूत करें, खासकर जटिल और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील मामलों में।
- डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा: प्लेटफॉर्म स्वयं उपयोगकर्ताओं को गलत सूचना की पहचान करने के बारे में शिक्षित करने के लिए अभियान चलाएं।
3. सरकार की भूमिका: एक सहायक नियामक
- स्पष्ट और संतुलित कानून: ऐसे नियामक ढांचे तैयार करें जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए हानिकारक सामग्री को नियंत्रित करें। नियम लचीले होने चाहिए ताकि वे तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बिठा सकें।
- क्षमता निर्माण: कानून प्रवर्तन एजेंसियों को साइबर अपराधों और ऑनलाइन गलत सूचना से निपटने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित करें।
- जागरूकता अभियान: राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल नागरिकता और ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में जागरूकता अभियान चलाएं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: चूंकि सोशल मीडिया वैश्विक है, इसलिए सीमा पार गलत सूचना और साइबर खतरों से निपटने के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग करें।
4. शिक्षा और अनुसंधान:
- पाठ्यक्रमों में डिजिटल नागरिकता और मीडिया साक्षरता को शामिल किया जाना चाहिए।
- शैक्षणिक संस्थान और शोधकर्ता ऑनलाइन व्यवहार, गलत सूचना के प्रसार के पैटर्न और इसके सामाजिक प्रभावों पर अनुसंधान करें।
निष्कर्ष: स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का नाजुक संतुलन
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी हमें याद दिलाती है कि डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक दोधारी तलवार है। यह न केवल व्यक्तियों को सशक्त करती है, बल्कि यदि इसका दुरुपयोग किया जाए तो समाज को भी नुकसान पहुंचा सकती है। आत्म-नियमन की सर्वोच्च न्यायालय की वकालत एक आदर्श स्थिति को दर्शाती है, जहाँ डिजिटल प्लेटफॉर्म अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हैं और उसे प्रभावी ढंग से निभाते हैं। हालांकि, व्यवहार में इसे प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है।
हमें एक ऐसे संतुलन की आवश्यकता है जहां नागरिक अपनी स्वतंत्रता का जिम्मेदारी से प्रयोग करें, प्लेटफॉर्म अपनी जवाबदेही को पहचानें, और सरकार एक सक्षम नियामक के रूप में कार्य करे, जो स्वतंत्रता का गला घोंटे बिना हानिकारक सामग्री पर अंकुश लगाए। अंततः, यह सिर्फ कानूनों या नियमों का मामला नहीं है, बल्कि एक साझा सामाजिक जिम्मेदारी का है – एक डिजिटल समाज का निर्माण करना जो सूचित, सहिष्णु और रचनात्मक हो। यह तभी संभव होगा जब प्रत्येक हितधारक ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्य’ समझेगा और उसकी रक्षा के लिए अपनी भूमिका निभाएगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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भारत के संविधान के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत के नागरिकों और भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है।
- अनुच्छेद 19(2) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध केवल भारत की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित हो सकते हैं।
- प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख भारतीय संविधान के किसी भी अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से नहीं किया गया है, लेकिन इसे अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत निहित माना गया है।
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?
- केवल एक
- केवल दो
- सभी तीन
- कोई नहीं
उत्तर: a) केवल एक
व्याख्या:
- अनुच्छेद 19(1)(a) केवल भारत के नागरिकों के लिए उपलब्ध है, विदेशी नागरिकों के लिए नहीं।
- अनुच्छेद 19(2) के तहत प्रतिबंध कई आधारों पर लगाए जा सकते हैं, जैसे भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टता या नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि, आदि। यह केवल संप्रभुता और अखंडता तक सीमित नहीं है।
- प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित माना है।
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सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (IT Rules, 2021) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- ये नियम केवल सोशल मीडिया मध्यस्थों पर लागू होते हैं, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नहीं।
- इन नियमों के तहत, महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों को एक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना अनिवार्य है।
- यह नियम आपत्तिजनक सामग्री को 24 घंटे के भीतर हटाने का प्रावधान करता है, बशर्ते इसे शिकायत के माध्यम से सूचित किया गया हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: b) केवल 2 और 3
व्याख्या:
- IT Rules, 2021 न केवल सोशल मीडिया मध्यस्थों पर लागू होते हैं, बल्कि डिजिटल समाचार प्रकाशकों और ओटीटी (ओवर-द-टॉप) प्लेटफॉर्म पर भी लागू होते हैं।
- यह कथन सही है। इन नियमों के तहत, महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों (जिनके उपयोगकर्ता अधिक संख्या में हैं) को एक शिकायत निवारण अधिकारी, एक मुख्य अनुपालन अधिकारी और एक नोडल संपर्क व्यक्ति नियुक्त करना अनिवार्य है।
- यह कथन सही है। नियम मध्यस्थों को शिकायत प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर कुछ आपत्तिजनक सामग्री को हटाने का निर्देश देते हैं।
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निम्नलिखित में से कौन-सा/से ‘उचित प्रतिबंधों’ का हिस्सा है/हैं, जिस पर भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(2) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है?
- भारत की संप्रभुता और अखंडता
- सार्वजनिक व्यवस्था
- न्यायालय की अवमानना
- उपर्युक्त सभी
उत्तर: d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के कई आधार हैं, जिनमें भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टता या नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि, या किसी अपराध के लिए उकसाना शामिल हैं।
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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संदर्भ में ‘इको चैंबर’ (Eco Chamber) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन कौन-सा कथन करता है?
- एक ऐसा स्थान जहाँ लोग एक-दूसरे को सुनते हैं और उनकी राय भिन्न होती है।
- एक ऐसा वातावरण जहाँ व्यक्ति केवल उन विचारों या सूचनाओं से अवगत होते हैं जो उनके अपने विश्वासों को पुष्ट करते हैं।
- एक नई तकनीक जो सोशल मीडिया पर ध्वनि की गुणवत्ता में सुधार करती है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा उपयोगकर्ता डेटा को एन्क्रिप्ट करने का एक तरीका।
उत्तर: b) एक ऐसा वातावरण जहाँ व्यक्ति केवल उन विचारों या सूचनाओं से अवगत होते हैं जो उनके अपने विश्वासों को पुष्ट करते हैं।
व्याख्या: इको चैंबर एक रूपक है जिसका उपयोग उस स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जाता है जहाँ व्यक्ति केवल उन सूचनाओं, विचारों और विश्वासों से अवगत होते हैं जो उनके स्वयं के विचारों को प्रतिध्वनित या पुष्ट करते हैं, जिससे उनके पूर्वाग्रह मजबूत होते हैं और नए दृष्टिकोणों के संपर्क में कमी आती है। यह अक्सर सोशल मीडिया एल्गोरिदम द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।
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सर्वोच्च न्यायालय के हालिया बयानों के संदर्भ में ‘आत्म-नियमन’ (Self-regulation) का क्या अर्थ है?
- सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों के लिए कठोर कानून बनाना।
- सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा अपनी सामग्री और व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए अपने स्वयं के नियमों और दिशानिर्देशों को स्थापित करना।
- उपयोगकर्ताओं द्वारा अपने सोशल मीडिया उपयोग पर सीमाएं लगाना।
- एक अंतरराष्ट्रीय संधि जो सोशल मीडिया सामग्री को विनियमित करती है।
उत्तर: b) सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा अपनी सामग्री और व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए अपने स्वयं के नियमों और दिशानिर्देशों को स्थापित करना।
व्याख्या: आत्म-नियमन का अर्थ है कि उद्योग या संगठन स्वयं अपनी गतिविधियों के लिए मानक और नियम स्थापित करते हैं और उन्हें लागू करते हैं, बजाय इसके कि सरकार बाहरी विनियमन लागू करे। सोशल मीडिया के संदर्भ में, इसका मतलब है कि प्लेटफॉर्म स्वयं घृणास्पद भाषण, गलत सूचना आदि को कैसे प्रबंधित और नियंत्रित करेंगे, इसके लिए नीतियां बनाते हैं।
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घृणास्पद भाषण (Hate Speech) के संदर्भ में, भारत में इसके विनियमन के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
- भारतीय संविधान में ‘घृणास्पद भाषण’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की कुछ धाराएँ, जैसे 153A और 295A, घृणास्पद भाषण से संबंधित हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में घृणास्पद भाषण से निपटने के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
- भारत में घृणास्पद भाषण पर पूर्ण प्रतिबंध है, बिना किसी अपवाद के।
उत्तर: b) भारतीय दंड संहिता (IPC) की कुछ धाराएँ, जैसे 153A और 295A, घृणास्पद भाषण से संबंधित हैं।
व्याख्या:
- भारतीय संविधान में ‘घृणास्पद भाषण’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
- यह कथन सत्य है। IPC की धारा 153A (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) और धारा 295A (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है) घृणास्पद भाषण के कुछ रूपों से संबंधित हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (विशेष रूप से धारा 69A) सरकार को कुछ आपत्तिजनक ऑनलाइन सामग्री को अवरुद्ध करने की शक्ति देता है, जिसमें घृणास्पद भाषण भी शामिल हो सकता है।
- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, लेकिन ‘घृणास्पद भाषण’ की परिभाषा और उस पर प्रतिबंधों की सीमा पर बहस जारी है। भारत में इस पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, बल्कि कुछ कानूनी ढांचों के तहत इसे विनियमित किया जाता है।
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निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन ‘डिजिटल साक्षरता’ (Digital Literacy) के महत्व को सबसे अच्छा दर्शाता है/दर्शाते हैं, विशेष रूप से सोशल मीडिया के संदर्भ में?
- यह व्यक्तियों को ऑनलाइन गेम खेलने में अधिक कुशल बनाता है।
- यह व्यक्तियों को ऑनलाइन गलत सूचना और फेक न्यूज़ को पहचानने और उनका मूल्यांकन करने में सक्षम बनाता है।
- यह ऑनलाइन खरीदारी के लिए आवश्यक है।
- यह व्यक्तियों को अधिक सोशल मीडिया अनुयायी प्राप्त करने में मदद करता है।
उत्तर: b) यह व्यक्तियों को ऑनलाइन गलत सूचना और फेक न्यूज़ को पहचानने और उनका मूल्यांकन करने में सक्षम बनाता है।
व्याख्या: डिजिटल साक्षरता का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह व्यक्तियों को इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी की विश्वसनीयता का गंभीर रूप से मूल्यांकन करने, फेक न्यूज़ और गलत सूचना की पहचान करने और एक जिम्मेदार डिजिटल नागरिक बनने में मदद करता है।
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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सोशल मीडिया पर विभाजनकारी सामग्री के संबंध में व्यक्त की गई चिंताएँ मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किस/किन मुद्दे/मुद्दों से संबंधित हैं?
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया का क्षरण
- सामाजिक ताने-बाने का ध्रुवीकरण
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संभावित खतरा
- उपर्युक्त सभी
उत्तर: d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: विभाजनकारी सामग्री (जैसे घृणास्पद भाषण और गलत सूचना) से न केवल सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ता है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं (जैसे चुनाव) को प्रभावित कर सकती है और आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर सकती है, खासकर जब यह हिंसा को उकसाती है।
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भारत में निजता के अधिकार (Right to Privacy) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के एक अंतर्निहित भाग के रूप में मान्यता दी गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने ‘पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ मामले में निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार घोषित किया।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेटा सुरक्षा और निजता का अधिकार सामाजिक मीडिया विनियमन के एक महत्वपूर्ण पहलू हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?
- केवल एक
- केवल दो
- सभी तीन
- कोई नहीं
उत्तर: c) सभी तीन
व्याख्या:
- सही है। सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में निजता को अनुच्छेद 21 के तहत मान्यता दी है।
- सही है। के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में, नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया।
- सही है। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर व्यक्तिगत डेटा का संग्रह और उपयोग निजता के अधिकार से गहराई से जुड़ा हुआ है, और डेटा सुरक्षा कानून इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
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निम्नलिखित में से कौन-सा/से संवैधानिक प्रावधान है/हैं जो ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के साथ ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ बनाए रखने की आवश्यकता को संतुलित करने का प्रयास करता है?
- अनुच्छेद 19(1)(a)
- अनुच्छेद 19(2)
- अनुच्छेद 21
- अनुच्छेद 32
उत्तर: b) अनुच्छेद 19(2)
व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद 19(2) उन ‘उचित प्रतिबंधों’ को निर्दिष्ट करता है जो इस स्वतंत्रता पर लगाए जा सकते हैं, और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ उनमें से एक प्रमुख आधार है। इस प्रकार, अनुच्छेद 19(2) स्वतंत्रता और व्यवस्था के बीच संतुलन का कार्य करता है। अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है, जबकि अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- “डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक दोधारी तलवार है।” सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सोशल मीडिया पर विभाजनकारी सामग्री पर की गई हालिया टिप्पणियों के आलोक में इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और चर्चा कीजिए कि कैसे नागरिकों, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों और सरकार द्वारा ‘आत्म-नियमन’ इस चुनौती से निपटने में मदद कर सकता है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) इस पर ‘उचित प्रतिबंध’ लगाने की अनुमति देता है। सोशल मीडिया के संदर्भ में ‘उचित प्रतिबंधों’ की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उन चुनौतियों पर प्रकाश डालिए जो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गलत सूचना और घृणास्पद भाषण को नियंत्रित करने में उत्पन्न होती हैं।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर आत्म-नियमन की आवश्यकता क्यों महसूस की जा रही है? इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए। क्या आपको लगता है कि भारत में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 इस दिशा में एक प्रभावी कदम हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें।
- आज के डिजिटल समाज में डिजिटल साक्षरता और मीडिया साक्षरता के महत्व पर प्रकाश डालिए। आप एक जिम्मेदार और सूचित डिजिटल नागरिकता को बढ़ावा देने के लिए क्या उपाय सुझाएंगे, विशेष रूप से बढ़ते ऑनलाइन ध्रुवीकरण के संदर्भ में?