सिंधु जल संधि: जयशंकर का कांग्रेस पर हमला और इतिहास का सबक
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राज्यसभा में सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) को लेकर कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को इतिहास से असहजता होती है और वे इसे समझना नहीं चाहते। यह बयान कांग्रेस के उस रुख पर आया था जब पार्टी ने केंद्र सरकार द्वारा संधि की समीक्षा और संभवतः उसमें बदलाव के सुझावों पर चिंता व्यक्त की थी। जयशंकर के इस बयान ने सिंधु जल संधि, भारत-पाकिस्तान संबंधों और ऐतिहासिक दृष्टिकोण के महत्व पर एक बार फिर व्यापक बहस छेड़ दी है। यह ब्लॉग पोस्ट UPSC उम्मीदवारों को इस महत्वपूर्ण मुद्दे की गहराई से समझ प्रदान करेगा।
सिंधु जल संधि (IWT) क्या है?
सिंधु जल संधि, भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता से हस्ताक्षरित एक द्विपक्षीय जल-साझाकरण समझौता है। इस संधि का उद्देश्य सिंधु नदी प्रणाली के पानी के उपयोग को लेकर दोनों देशों के बीच सहयोग और प्रबंधन को विनियमित करना है।
संधि के मुख्य प्रावधान:
- नदी प्रणाली का विभाजन: संधि ने सिंधु नदी प्रणाली को पूर्वी नदियों (सतलज, ब्यास, रावी) और पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) में विभाजित किया।
- पूर्वी नदियों का नियंत्रण: भारत को तीनों पूर्वी नदियों के अनियंत्रित उपयोग का अधिकार दिया गया। इसका मतलब है कि भारत इन नदियों के पानी का पूरी तरह से उपयोग कर सकता है, लेकिन संधि यह भी कहती है कि भारत इन नदियों के पानी को पाकिस्तान की ओर बहने से रोकेगा नहीं, सिवाय कुछ निश्चित मात्रा के।
- पश्चिमी नदियों का नियंत्रण: पाकिस्तान को तीनों पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – के पानी का अधिकांश हिस्सा (लगभग 80%) मिला। भारत को इन नदियों के पानी का केवल “निर्दिष्ट उपयोग” (specified uses) करने का अधिकार मिला, जैसे कि सिंचाई, बिजली उत्पादन (पनबिजली) और घरेलू उपयोग।
- कृषि उपयोग पर प्रतिबंध: संधि के अनुसार, पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग भारत द्वारा कृषि या भंडारण के लिए नहीं किया जा सकता। हालाँकि, भारतीय क्षेत्रों में बिजली उत्पादन के लिए बांधों का निर्माण किया जा सकता है, बशर्ते कि वे पानी के सामान्य प्रवाह को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित न करें।
- विवाद समाधान तंत्र: संधि में एक विस्तृत विवाद समाधान तंत्र भी शामिल है, जिसमें यदि कोई असहमति उत्पन्न होती है तो पहले आयुक्तों की बैठक, फिर विशेष बैठक और अंततः मध्यस्थता के लिए एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission – PIC) का प्रावधान है। यदि मामले सुलझ नहीं पाते हैं, तो तटस्थ विशेषज्ञ या मध्यस्थता न्यायालय (Arbitral Tribunal) का सहारा लिया जा सकता है।
विदेश मंत्री का बयान और कांग्रेस का रुख
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संभवतः कांग्रेस के उन नेताओं के बयानों या रुख पर प्रतिक्रिया दी थी जो पाकिस्तान के साथ संधि को लेकर भारत सरकार की किसी भी कार्रवाई को विवादास्पद या अनुचित मान रहे थे। कांग्रेस ने अक्सर जोर दिया है कि यह एक “लौह-मजबूत” (iron-clad) संधि है जिसे बनाए रखा जाना चाहिए।
जयशंकर का “इतिहास से असहजता” वाला बयान इस ओर इशारा करता है कि वे मानते हैं कि कांग्रेस वर्तमान में संधि को उस तरह से नहीं देख रही है जिस तरह से इसे भविष्य की वास्तविकताओं और भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप संशोधित करने की आवश्यकता है। वे संभवतः यह कहना चाह रहे थे कि कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से इस संधि के निर्माण या इसके कुछ प्रावधानों के निहितार्थों को पूरी तरह से नहीं समझा है, या वे वर्तमान सरकार द्वारा किए जा रहे पुनर्विचार को स्वीकार करने में झिझक रहे हैं।
जयशंकर के बयान के संभावित निहितार्थ:
- ऐतिहासिक संदर्भ का महत्व: यह बयान इस बात पर प्रकाश डालता है कि किसी भी द्विपक्षीय संधि को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में समझना महत्वपूर्ण है, जिसमें संधि के समय की भू-राजनीतिक परिस्थितियाँ और दोनों देशों की तत्कालीन आवश्यकताएँ शामिल हैं।
- राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता: जयशंकर का रुख यह दर्शाता है कि भारत सरकार राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखती है और यदि कोई मौजूदा संधि या समझौता उन हितों के विरुद्ध जाता है, तो उसमें संशोधन या बदलाव की आवश्यकता हो सकती है।
- कांग्रेस की भूमिका पर प्रश्न: यह कांग्रेस के रुख पर एक आलोचना है, जो शायद संधि के “जैसे है” (as is) स्थिति बनाए रखने पर अधिक जोर दे रही है, जबकि वर्तमान सरकार का मानना है कि बदलते समय के साथ संधियों को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए उनमें सुधार आवश्यक हो सकता है।
सिंधु जल संधि की आलोचना और भारत के लिए चुनौतियाँ
समय के साथ, सिंधु जल संधि को लेकर भारत में कई चिंताएँ और आलोचनाएँ उभरी हैं। एक प्रमुख आलोचना यह है कि संधि भारत को पश्चिमी नदियों के पानी के उपयोग के बहुत सीमित अधिकार देती है, जबकि पाकिस्तान इन नदियों के पानी का एक बड़ा हिस्सा इस्तेमाल करता है।
मुख्य चिंताएँ और आलोचनाएँ:
- सीमित अधिकार: भारत को पश्चिमी नदियों पर बड़े जलाशय बनाने या कृषि उपयोग के लिए पानी मोड़ने की अनुमति नहीं है, जो भारत की जल-सुरक्षा और कृषि विकास के लिए एक बड़ी बाधा है।
- पनबिजली परियोजनाओं पर प्रतिबंध: यद्यपि भारत पश्चिमी नदियों पर पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण कर सकता है, लेकिन ऐसे निर्माणों पर सख्त प्रतिबंध हैं जो पानी के प्रवाह को “अकारण” (unreasonable) प्रभावित करें। इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर भी असर पड़ता है।
- पाकिस्तान द्वारा संधि का दुरुपयोग: कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि पाकिस्तान ने संधि का अक्षरशः पालन नहीं किया है और भारत द्वारा निर्मित परियोजनाओं पर अनावश्यक आपत्तियाँ उठाकर भारत के विकास कार्यों में बाधा डालने का प्रयास किया है।
- बदलती जलवायु और जल की कमी: जलवायु परिवर्तन के कारण सिंधु बेसिन में पानी की उपलब्धता अनिश्चित होती जा रही है। ऐसे में, संधि के प्रावधान, जो दशकों पहले बनाए गए थे, आज की वास्तविकताओं से मेल नहीं खा सकते।
- अवैज्ञानिक तर्क: पाकिस्तान द्वारा भारत की चिनाब नदी पर बनने वाली विशाल पनबिजली परियोजनाओं पर की गई आपत्तियों को कई बार भारत ने “अवैज्ञानिक” और “राजनीतिक” करार दिया है।
भारत सरकार की वर्तमान रणनीति: संधि की समीक्षा
हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने सिंधु जल संधि के संबंध में अपनी नीति को अधिक सक्रिय बनाया है। 2016 में उरी आतंकवादी हमले के बाद, भारत ने कहा था कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते,” और तब से संधि की समीक्षा की बात चल रही है।
भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- संधि की समीक्षा: भारत सरकार ने संधि के प्रावधानों की समीक्षा शुरू की है ताकि यह समझा जा सके कि वर्तमान में वे भारत के राष्ट्रीय हितों की किस हद तक सेवा कर रहे हैं और उनमें क्या बदलाव आवश्यक हैं।
- ‘प्रो-रैटिंग’ (Pro-Rating) का विचार: भारत ने पश्चिमी नदियों के पानी के बंटवारे के लिए ‘प्रो-रैटिंग’ के सिद्धांत को अपनाने की बात कही है। इसका मतलब है कि सिंधु बेसिन में प्रत्येक नदी के पानी के कुल प्रवाह का एक निश्चित प्रतिशत प्रत्येक देश को आवंटित किया जाना चाहिए, बजाय इसके कि नदियों को पूर्वी और पश्चिमी खंडों में बांटा जाए।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों का उपयोग: भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान द्वारा संधि के उल्लंघन और भारत के विकास संबंधी अधिकारों पर अंकुश लगाने के प्रयासों को उजागर कर रहा है।
- विश्व बैंक के साथ चर्चा: भारत विश्व बैंक के साथ भी इन मुद्दों पर चर्चा कर रहा है, जो संधि का मध्यस्थ रहा है।
इतिहास, विदेश नीति और UPSC का संबंध
विदेश मंत्री जयशंकर का बयान विदेश नीति निर्माण में इतिहास की भूमिका को रेखांकित करता है। UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से, इस मुद्दे को कई कोणों से समझना महत्वपूर्ण है:
1. भू-राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध (Geopolitics & IR)
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह दर्शाता है कि कैसे संसाधन-साझाकरण समझौते, विशेष रूप से पानी जैसे महत्वपूर्ण संसाधन के संबंध में, देशों के बीच सहयोग और संघर्ष दोनों को जन्म दे सकते हैं।
UPSC मुख्य परीक्षा से संबंध:
“जल संसाधन, चाहे वे राष्ट्रीय हों या अंतर्राष्ट्रीय, अक्सर भू-राजनीतिक तनाव का कारण बनते हैं। जल कूटनीति (Water Diplomacy) की अवधारणा को समझाएं और सिंधु जल संधि के संदर्भ में इसके महत्व पर चर्चा करें।”
2. इतिहास और विरासत (History & Heritage)
जयशंकर का “इतिहास से असहजता” वाला बयान हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या कांग्रेस भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय से चली आ रही कुछ ऐतिहासिक सच्चाइयों या संधियों के निर्माण के पीछे की परिस्थितियों को स्वीकार करने में हिचकिचा रही है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा से संबंध:
प्रश्न: सिंधु जल संधि किन दो देशों के बीच और किस वर्ष हस्ताक्षरित हुई थी?
विकल्प: (a) भारत-चीन, 1955 (b) भारत-पाकिस्तान, 1960 (c) भारत-बांग्लादेश, 1972 (d) पाकिस्तान-अफगानिस्तान, 1958
उत्तर: (b)
व्याख्या: सिंधु जल संधि 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हस्ताक्षरित हुई थी।
3. अर्थव्यवस्था और विकास (Economy & Development)
पानी की उपलब्धता सीधे तौर पर कृषि, पनबिजली उत्पादन और समग्र आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। सिंधु जल संधि के प्रावधान भारत के जल-आधारित उद्योगों के विकास को कैसे प्रभावित करते हैं, यह समझना महत्वपूर्ण है।
UPSC मुख्य परीक्षा से संबंध:
“सिंधु जल संधि के प्रावधान भारत के जल-विद्युत उत्पादन और कृषि विकास की क्षमता को कैसे बाधित करते हैं? सरकार द्वारा संधि की समीक्षा के पीछे क्या आर्थिक तर्क हैं?”
4. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन (Environment & Climate Change)
जलवायु परिवर्तन सिंधु नदी बेसिन की दीर्घकालिक जल सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। संधि के पुराने प्रावधानों को वर्तमान और भविष्य की पर्यावरणीय वास्तविकताओं के अनुरूप कैसे ढाला जाना चाहिए, यह एक महत्वपूर्ण विचार है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा से संबंध:
प्रश्न: सिंधु जल संधि के अनुसार, निम्नलिखित में से किन नदियों पर भारत को अनियंत्रित उपयोग का अधिकार है?
विकल्प: 1. सिंधु, 2. झेलम, 3. चिनाब, 4. ब्यास, 5. रावी, 6. सतलज
विकल्प: (a) 1, 2, 3 (b) 4, 5, 6 (c) 1, 4, 5 (d) 3, 5, 6
उत्तर: (b)
व्याख्या: संधि के अनुसार, भारत को पूर्वी नदियों – ब्यास, रावी और सतलज – के पानी का अनियंत्रित उपयोग करने का अधिकार है। पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – पर भारत के अधिकार सीमित हैं।
निष्कर्ष: एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता
विदेश मंत्री एस. जयशंकर का कांग्रेस पर हमला सिंधु जल संधि को लेकर चल रही बहस में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह दर्शाता है कि भारत अब इस संधि को केवल एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक गतिशील ढाँचे के रूप में देखता है।
UPSC उम्मीदवारों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे इस मुद्दे के सभी पहलुओं को समझें: संधि के मूल प्रावधान, इसके ऐतिहासिक संदर्भ, समय के साथ उभरी आलोचनाएँ, भारत सरकार की वर्तमान रणनीति और इसके भू-राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय निहितार्थ। इतिहास को समझने से हमें यह जानने में मदद मिलती है कि हम वर्तमान में कहाँ खड़े हैं और भविष्य में हमें कहाँ जाना है।
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल-साझाकरण का एक जटिल उदाहरण है, और भविष्य में इसके समाधान के लिए कूटनीति, तकनीकी विशेषज्ञता और एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी, जो दोनों देशों के लोगों के कल्याण के साथ-साथ क्षेत्रीय स्थिरता को भी सुनिश्चित करे।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. प्रश्न: सिंधु जल संधि पर निम्नलिखित में से किनके हस्ताक्षर हुए थे?
विकल्प: (a) भारत और पाकिस्तान (b) भारत, पाकिस्तान और विश्व बैंक (c) भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन (d) पाकिस्तान और अफगानिस्तान
उत्तर: (a) भारत और पाकिस्तान
व्याख्या: सिंधु जल संधि पर भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे, जिसकी मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी।
2. प्रश्न: सिंधु जल संधि के तहत, पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के संबंध में भारत को निम्नलिखित में से किस प्रकार के उपयोग की अनुमति है?
विकल्प: (a) अनियंत्रित कृषि उपयोग (b) भंडारण और कृषि उपयोग (c) केवल बिजली उत्पादन और घरेलू उपयोग (d) पश्चिमी नदियों का पूर्ण नियंत्रण
उत्तर: (c)
व्याख्या: संधि के अनुसार, भारत को पश्चिमी नदियों पर बड़े जलाशय बनाने या कृषि के लिए पानी मोड़ने की अनुमति नहीं है, केवल सीमित उपयोग जैसे बिजली उत्पादन और घरेलू उपयोग की अनुमति है।
3. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी नदियाँ सिंधु जल संधि के तहत ‘पूर्वी नदियों’ के रूप में वर्गीकृत हैं, जिनका अनियंत्रित उपयोग भारत को मिला है?
विकल्प: (a) सिंधु, झेलम, चिनाब (b) ब्यास, रावी, सतलज (c) झेलम, चिनाब, रावी (d) सिंधु, ब्यास, सतलज
उत्तर: (b)
व्याख्या: संधि के अनुसार, ब्यास, रावी और सतलज को पूर्वी नदियाँ माना गया है, जिनका पानी भारत को अनियंत्रित रूप से उपयोग करने का अधिकार है।
4. प्रश्न: सिंधु जल संधि के तहत विवादों के समाधान के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच निम्नलिखित में से कौन सी संस्था स्थापित की गई है?
विकल्प: (a) दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) (b) स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission – PIC) (c) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) (d) क्षेत्रीय जल प्रबंधन परिषद (RWMC)
उत्तर: (b)
व्याख्या: संधि में दोनों देशों के आयुक्तों वाली एक स्थायी सिंधु आयोग (PIC) की स्थापना का प्रावधान है, जो संधि के कार्यान्वयन की निगरानी करती है और विवादों को सुलझाने का प्रयास करती है।
5. प्रश्न: भारत सरकार द्वारा सिंधु जल संधि की समीक्षा करने के मुख्य कारणों में से एक क्या है?
विकल्प: (a) पाकिस्तान द्वारा सभी प्रावधानों का अक्षरशः पालन (b) भारत के जल-सुरक्षा हितों को बेहतर ढंग से सुनिश्चित करना (c) संधि को अधिक उदार बनाना (d) नदियों के प्रवाह को पूर्णतः अवरुद्ध करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: भारत संधि के उन प्रावधानों की समीक्षा कर रहा है जो उसके जल-सुरक्षा, कृषि विकास और पनबिजली उत्पादन की क्षमता को सीमित करते हैं, और यह सुनिश्चित करना चाहता है कि संधि उसके राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हो।
6. प्रश्न: निम्नलिखित में से किस घटना के बाद भारत ने सिंधु जल संधि के संबंध में अधिक सक्रिय रुख अपनाया और इसकी समीक्षा की बात कही?
विकल्प: (a) कारगिल युद्ध (b) उरी आतंकवादी हमला (c) मुंबई आतंकवादी हमले (d) भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच
उत्तर: (b)
व्याख्या: 2016 में उरी आतंकवादी हमले के बाद, भारत ने “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते” कहकर संधि की समीक्षा पर जोर दिया।
7. प्रश्न: सिंधु जल संधि को लेकर ‘प्रो-रैटिंग’ (Pro-Rating) का सिद्धांत क्या प्रस्तावित करता है?
विकल्प: (a) नदियों के पूर्वी और पश्चिमी खंडों में विभाजन (b) बेसिन के प्रत्येक नदी के कुल प्रवाह का निश्चित प्रतिशत प्रत्येक देश को आवंटित करना (c) केवल पूर्वी नदियों के जल का उपयोग (d) केवल पश्चिमी नदियों के जल का उपयोग
उत्तर: (b)
व्याख्या: प्रो-रैटिंग एक ऐसा सिद्धांत है जो बेसिन में सभी नदियों के कुल प्रवाह को ध्यान में रखकर जल का बंटवारा करता है, न कि नदियों को अलग-अलग खंडों में बांटकर।
8. प्रश्न: विदेश मंत्री एस. जयशंकर का कांग्रेस पर “इतिहास से असहजता” वाला बयान किस संदर्भ में आया?
विकल्प: (a) भारत-चीन सीमा विवाद (b) राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) (c) सिंधु जल संधि (d) आर्थिक सुधार
उत्तर: (c)
व्याख्या: यह बयान राज्यसभा में सिंधु जल संधि को लेकर कांग्रेस के रुख पर विदेश मंत्री की प्रतिक्रिया थी।
9. प्रश्न: सिंधु नदी प्रणाली का जल-विभाजन संधि के समय की किस प्रमुख भू-राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है?
विकल्प: (a) भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते व्यापारिक संबंध (b) भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन और उसके बाद की चिंताएँ (c) संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन (d) क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग
उत्तर: (b)
व्याख्या: विभाजन के बाद, सिंधु बेसिन के जल संसाधनों का नियंत्रण भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया था, और संधि इसी का परिणाम थी।
10. प्रश्न: सिंधु जल संधि के संबंध में, भारत की पनबिजली परियोजनाओं पर मुख्य आपत्ति पाकिस्तान द्वारा किस आधार पर उठाई जाती है?
विकल्प: (a) परियोजनाओं से पर्यावरण को नुकसान (b) परियोजनाओं से पानी के प्रवाह को “अकारण” प्रभावित करना (c) भारत की सौर ऊर्जा का उपयोग (d) नदियों का नाम बदलना
उत्तर: (b)
व्याख्या: पाकिस्तान अक्सर भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर बनाए जा रहे बांधों और परियोजनाओं से पानी के प्रवाह पर पड़ने वाले प्रभाव को “अकारण” (unreasonable) बताते हुए आपत्ति जताता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: सिंधु जल संधि, 1960 के मुख्य प्रावधानों का विश्लेषण करें। यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल-साझाकरण के संदर्भ में किस प्रकार ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक महत्व रखती है?
2. प्रश्न: विदेश मंत्री एस. जयशंकर के कांग्रेस पर “इतिहास से असहजता” वाले बयान के संदर्भ में, सिंधु जल संधि को लेकर भारत की वर्तमान रणनीति और उसमें संशोधन की आवश्यकता पर विस्तृत चर्चा करें। संधि के प्रावधान भारत के राष्ट्रीय हितों को कैसे प्रभावित करते हैं?
3. प्रश्न: सिंधु जल संधि के क्रियान्वयन में भारत और पाकिस्तान के बीच उत्पन्न होने वाले प्रमुख विवादों का वर्णन करें। जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जल मांग के मद्देनजर, इस संधि को भविष्य के लिए कैसे अनुकूलित किया जा सकता है?
4. प्रश्न: “जल कूटनीति (Water Diplomacy)” की अवधारणा को समझाएं। सिंधु जल संधि के संदर्भ में, भारत के लिए जल कूटनीति के क्या अवसर और चुनौतियाँ हैं, विशेष रूप से क्षेत्रीय स्थिरता और द्विपक्षीय संबंधों को ध्यान में रखते हुए?