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सावन का अंतिम सोमवार: आस्था, उत्सव और व्यवस्था, 5 लाख भक्तों की यात्रा का सच!

सावन का अंतिम सोमवार: आस्था, उत्सव और व्यवस्था, 5 लाख भक्तों की यात्रा का सच!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
भारत, सदियों से अपनी गहरी आस्था और विविध सांस्कृतिक परंपराओं का संगम रहा है। विशेष रूप से, सावन का महीना, भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस वर्ष सावन के आखिरी सोमवार पर, देश के कई प्रमुख शिव मंदिरों में भक्तों का अभूतपूर्व सैलाब उमड़ा। मध्य प्रदेश के मंदसौर में जहां भगवान पशुपतिनाथ की विशेष सवारी निकाली गई, वहीं उज्जैन के महाकालेश्वर और उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) के विश्वनाथ धाम में लाखों भक्तों ने दर्शन कर पुण्य लाभ कमाया। वाराणसी में तो भक्तों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाकर उनका स्वागत किया गया, जो इस उत्सव की भव्यता का प्रतीक था। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि इसने पर्यटन, व्यवस्थापन और सामाजिक समरसता के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर किया, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय हैं।

इस ब्लॉग पोस्ट में, हम सावन के इस महत्वपूर्ण सोमवार के आयोजन की पड़ताल करेंगे, जिसमें हम इसके धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और प्रशासनिक आयामों को विस्तार से समझेंगे। हम जानेंगे कि कैसे इस तरह के बड़े पैमाने के धार्मिक आयोजनों को सफलतापूर्वक संपन्न कराया जाता है, इनमें क्या चुनौतियाँ आती हैं, और भविष्य में इन्हें और बेहतर बनाने के लिए क्या किया जा सकता है।

1. सावन का महीना और शिव की महिमा (Significance of Sawan Month and Lord Shiva)

सावन, जिसे श्रावण मास भी कहा जाता है, हिंदू कैलेंडर का पांचवां महीना है और भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस महीने में शिव की पूजा करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इस महीने के प्रत्येक सोमवार (श्रावण सोमवार) का विशेष महत्व है, लेकिन आखिरी सोमवार को सबसे अधिक शुभ माना जाता है।

  • पौराणिक कथाएं: समुद्र मंथन की कथा के अनुसार, इसी महीने में निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए पी लिया था और अपने कंठ में धारण कर लिया था। इस विष की तीव्रता को कम करने के लिए देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया था। इसी कारण सावन में शिवजी को जल चढ़ाना अत्यधिक फलदायी माना जाता है।
  • ‘बेलपत्र’ और ‘जल’: सावन में शिवजी को बेलपत्र और जल चढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि बेलपत्र के तीन पत्ते शिवजी के तीन नेत्रों और तीन रूपों (त्रिमूर्ति) का प्रतीक हैं।
  • कांवर यात्रा: सावन के दौरान, विशेषकर उत्तरी भारत में, भक्त ‘कांवर’ यात्रा करते हैं। वे गंगा या अन्य पवित्र नदियों से जल भरकर, कंधे पर रखकर मीलों पैदल चलकर शिव मंदिरों में शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह भक्ति और तपस्या का अनूठा संगम है।

उपमा: सावन के महीने को ऐसे समझें जैसे कोई छात्र परीक्षा से पहले intensives अध्ययन करता है। पूरा महीना भक्ति की तैयारी का समय है, और आखिरी सोमवार उस अंतिम, सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा का दिन है, जहाँ सारे किए-धरे का फल मिलता है।

2. इस वर्ष के सावन के आखिरी सोमवार की विशेष घटनाएं (Key Events of This Year’s Last Sawan Monday)

इस वर्ष सावन के अंतिम सोमवार ने कई मायनों में भक्तों की आस्था और उत्साह को चरम पर पहुँचाया:

2.1 मंदसौर: पशुपतिनाथ की सवारी (Pashupatinath’s Procession in Mandsaur)

मध्य प्रदेश के मंदसौर में स्थित प्राचीन पशुपतिनाथ मंदिर, अपने अनूठे अष्टमुखी शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है। इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि यह एक ही पत्थर से बना है और इसमें आठ मुख स्पष्ट दिखाई देते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह शिवलिंग नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर से प्रेरित है।

  • भव्य सवारी: सावन के आखिरी सोमवार पर, मंदसौर में भगवान पशुपतिनाथ की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इस यात्रा में हजारों भक्त शामिल हुए, जो जयकारे लगाते हुए और भजन-कीर्तन करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
  • सांस्कृतिक महत्व: यह सवारी न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक है। इससे क्षेत्र में एक प्रकार का सांस्कृतिक पुनर्जागरण देखने को मिलता है।
  • प्रशासनिक चुनौती: इतनी बड़ी भीड़ का प्रबंधन, यातायात नियंत्रण, सुरक्षा व्यवस्था और श्रद्धालुओं की सुविधाओं का ध्यान रखना एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती होती है, जिसे स्थानीय प्रशासन द्वारा सफलतापूर्वक संभाला गया।

2.2 उज्जैन: महाकालेश्वर का महाकुंभ (Mahakaleshwar’s Maha Kumbh in Ujjain)

उज्जैन, भारत की आध्यात्मिक राजधानी मानी जाती है और यहां स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है, जिसका अर्थ है कि यह मृत्यु को जीतने की क्षमता रखता है।

  • 5 लाख भक्तों का अनुमान: इस बार सावन के आखिरी सोमवार पर महाकालेश्वर मंदिर में लगभग 5 लाख भक्तों के पहुंचने का अनुमान था। मंदिर प्रबंधन और जिला प्रशासन ने इस भारी भीड़ को संभालने के लिए व्यापक व्यवस्थाएं की थीं।
  • विशेष श्रृंगार: भगवान महाकालेश्वर का विशेष श्रृंगार किया गया था, जो भक्तों के आकर्षण का केंद्र था।
  • दर्शन की व्यवस्था: भक्तों की सुविधा के लिए कतार प्रबंधन, पीने के पानी की उपलब्धता, प्राथमिक उपचार की व्यवस्थाएं की गई थीं। सुरक्षा के लिए ड्रोन कैमरों और CCTV कैमरों का भी इस्तेमाल किया गया।
  • ‘भस्म आरती’ का महत्व: महाकालेश्वर की ‘भस्म आरती’ विश्व प्रसिद्ध है, जो किसी भी अन्य शिव मंदिर में नहीं होती। सावन के दौरान इस आरती का महत्व और भी बढ़ जाता है।

2.3 वाराणसी: विश्वनाथ धाम में आस्था का सैलाब (Devotion at Vishwanath Dham in Varanasi)

वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव के सबसे प्रतिष्ठित निवासों में से एक है। यहां स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे ‘मोक्ष का द्वार’ माना जाता है।

  • फूलों की वर्षा: इस अवसर पर, वाराणसी में भक्तों पर हेलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा की गई। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक था और इसने भक्तों के उत्साह को और भी बढ़ा दिया। यह आधुनिक तकनीक का उपयोग करके पारंपरिक भक्ति को एक नया आयाम देने का प्रयास था।
  • 6 लाख भक्तों का अनुमान: यहां भी लाखों की संख्या में (लगभग 6 लाख से अधिक) भक्तों के पहुंचने का अनुमान था, जो बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आतुर थे।
  • सुरक्षा और व्यवस्था: गंगा नदी के घाटों से लेकर मंदिर परिसर तक, सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम किए गए थे। नावों पर गश्त, ड्रोन निगरानी, और पुलिस बल की तैनाती ने व्यवस्था को चाक-चौबंद रखा।
  • ‘नमामि गंगे’ का प्रभाव: स्वच्छ गंगा अभियान के तहत, गंगा घाटों की सफाई और सुविधाओं में भी सुधार देखा गया, जिससे श्रद्धालुओं को एक सुखद अनुभव मिला।

“भारत की आत्मा गांवों में बसती है, लेकिन इसकी धड़कनें इन पवित्र स्थलों पर सुनाई देती हैं। सावन का आखिरी सोमवार इसी धड़कन का प्रमाण था, जहाँ लाखों लोग एक ही आस्था में बंधे थे।”

3. UPSC के लिए प्रासंगिकता: धार्मिक आयोजनों का बहुआयामी विश्लेषण (Relevance for UPSC: Multidimensional Analysis of Religious Events)

ये आयोजन केवल आस्था के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये शासन, समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाते हैं, जो सिविल सेवा परीक्षा के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं:

3.1 शासन और प्रबंधन (Governance and Management)

चुनौतियां:

  • भीड़ प्रबंधन (Crowd Management): लाखों की संख्या में भक्तों का एक साथ आना, नियंत्रण से बाहर होने पर भगदड़ जैसी दुर्घटनाओं का कारण बन सकता है।
  • सुरक्षा (Security): आतंकवादी गतिविधियों या उपद्रवियों के द्वारा माहौल बिगाड़ने की आशंका।
  • स्वच्छता और स्वास्थ्य (Sanitation and Health): बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने से स्वच्छता बनाए रखना और महामारी फैलने से रोकना।
  • यातायात प्रबंधन (Traffic Management): सड़कों पर जाम और श्रद्धालुओं के लिए सुगम पहुंच सुनिश्चित करना।
  • आपदा प्रबंधन (Disaster Management): अचानक आने वाली प्राकृतिक आपदाओं या दुर्घटनाओं से निपटना।

समाधान और अच्छी प्रथाएं:

  • तकनीकी सहायता: ड्रोन, CCTV, जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग।
  • मानव संसाधन: पर्याप्त संख्या में पुलिस, अर्धसैनिक बल, स्वयंसेवक और स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती।
  • प्रचार और जागरूकता: भक्तों को नियमों का पालन करने, अफवाहों से बचने और सुरक्षा सावधानियों के प्रति जागरूक करना।
  • बैरिकेडिंग और कतार प्रबंधन: सुव्यवस्थित कतारें बनाने के लिए मजबूत बैरिकेडिंग।
  • अस्थायी सुविधाएं: पीने के पानी, शौचालय, प्राथमिक उपचार केंद्र, विश्राम स्थलों की व्यवस्था।
  • ‘वन-वे’ ट्रैफिक सिस्टम: मंदिरों के अंदर आवागमन को सुगम बनाने के लिए।

केस स्टडी: 2013 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कुंभ मेले के दौरान की गई व्यवस्थाओं को अक्सर आदर्श माना जाता है। उस समय प्रभावी भीड़ प्रबंधन, स्वच्छता और सुरक्षा के कारण एक विशाल आयोजन को सफलतापूर्वक संपन्न कराया गया था, जिसे दुनिया भर में सराहा गया।

3.2 पर्यटन और अर्थव्यवस्था (Tourism and Economy)

  • आर्थिक प्रभाव: ऐसे बड़े धार्मिक आयोजन स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण बूस्टर का काम करते हैं। होटलों, रेस्तरां, परिवहन, हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पादों की बिक्री में भारी वृद्धि होती है।
  • रोजगार सृजन: इन आयोजनों के दौरान, अस्थायी तौर पर बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, जैसे कि विक्रेता, गाइड, सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मचारी आदि।
  • ‘धार्मिक पर्यटन’ का विकास: सरकारें ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देकर ‘धार्मिक पर्यटन’ को विकसित करने का प्रयास करती हैं, जो देश की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन सकता है।
  • बुनियादी ढांचे का विकास: ऐसे आयोजनों की सफलता के लिए अक्सर संबंधित क्षेत्रों में सड़क, बिजली, पानी और संचार जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता होती है, जिससे दीर्घकालिक लाभ होता है।

उदाहरण: उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी सौगात लेकर आता है। इसी प्रकार, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के बाद से वाराणसी में पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

3.3 सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता (Social Harmony and National Integration)

  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: देश के विभिन्न कोनों से आए लाखों भक्त एक ही स्थान पर एकत्रित होते हैं, जिससे विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं का संगम होता है।
  • साझा पहचान: एक साझा धार्मिक आस्था लोगों को जाति, वर्ग, भाषा या क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर उठाकर एक राष्ट्रीय पहचान से जोड़ती है।
  • स्वयंसेवा और सहायता: ऐसे आयोजनों में हजारों स्वयंसेवक अपनी सेवाएं देते हैं, जो समाज में परोपकार और सेवा की भावना को बढ़ावा देता है।
  • ‘अतिथि देवो भव’: वाराणसी में भक्तों पर फूलों की वर्षा जैसी पहलें, ‘अतिथि देवो भव’ की भारतीय भावना को दर्शाती हैं, जहाँ आने वाले हर व्यक्ति का सम्मान किया जाता है।

3.4 पर्यावरण संबंधी पहलू (Environmental Aspects)

चुनौतियां:

  • प्लास्टिक कचरा: बड़ी संख्या में भक्तों द्वारा प्लास्टिक की बोतलों, पैकेटों का इस्तेमाल।
  • जल प्रदूषण: पवित्र नदियों में श्रद्धावश डाली जाने वाली सामग्री और प्रसाद।
  • ध्वनि प्रदूषण: लाउडस्पीकरों और डीजे का अत्यधिक प्रयोग।

समाधान:

  • ‘प्लास्टिक मुक्त’ अभियान: श्रद्धालुओं से प्लास्टिक का उपयोग न करने की अपील।
  • पर्यावरण-अनुकूल सामग्री: प्रसाद और चढ़ावे के लिए बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग।
  • कचरा प्रबंधन: पर्याप्त संख्या में कूड़ेदान और नियमित सफाई।
  • जागरूकता अभियान: पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर जोर देना।

4. चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Way Forward)

सावन के आखिरी सोमवार जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों को सफलतापूर्वक आयोजित करने के बावजूद, कई चुनौतियाँ बनी रहती हैं, और भविष्य के लिए कुछ सुधार आवश्यक हैं:

4.1 चुनौतियाँ:

  • बुनियादी ढांचे का अभाव: कई पवित्र स्थलों पर अभी भी पर्याप्त विश्राम स्थल, स्वच्छ शौचालय और सुरक्षित पेयजल की कमी है।
  • संसाधन का दबाव: स्थानीय संसाधनों, विशेषकर जल और बिजली पर अत्यधिक दबाव पड़ना।
  • श्रद्धा बनाम अंधविश्वास: कुछ आयोजनों में अंधविश्वास या गैर-वैज्ञानिक प्रथाओं को बढ़ावा मिलने की संभावना।
  • डिजिटलीकरण का अभाव: ऑनलाइन दर्शन बुकिंग, ई-प्रसाद जैसी सेवाओं का सभी प्रमुख स्थलों पर अभी भी पूरी तरह लागू न होना।

4.2 भविष्य की राह:

  • ‘स्मार्ट’ धार्मिक स्थल: IoT, AI और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा और सुविधाओं को बेहतर बनाना।
  • प्रशिक्षित स्वयंसेवक: स्थानीय युवाओं को आपातकालीन प्रतिक्रिया, प्राथमिक उपचार और सूचना सहायता के लिए प्रशिक्षित करना।
  • सतत विकास: पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना और कचरा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): धार्मिक स्थलों के विकास और प्रबंधन में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
  • डिजिटल इंडिया को बढ़ावा: ऑनलाइन बुकिंग, डिजिटल भुगतान, और सूचना के लिए मोबाइल ऐप का उपयोग बढ़ाना।
  • सुरक्षा ऑडिट: नियमित रूप से सुरक्षा उपायों का ऑडिट करना और उन्हें अपग्रेड करना।

उपमा: एक सफल यात्रा के लिए जैसे अच्छे मानचित्र, भरोसेमंद वाहन और कुशल चालक की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार इन बड़े धार्मिक आयोजनों को सफल बनाने के लिए कुशल योजना, आधुनिक तकनीक और समर्पित मानव संसाधन का तालमेल आवश्यक है।

निष्कर्ष (Conclusion)

सावन का आखिरी सोमवार, भारत की जीवंत आस्था, सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकता का एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत करता है। मंदसौर में पशुपतिनाथ की सवारी से लेकर उज्जैन के महाकालेश्वर और वाराणसी के विश्वनाथ धाम तक, लाखों भक्तों का उत्साह, भक्ति और समर्पण एक अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करता है। हेलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा जैसी पहलें, जहाँ आधुनिकता के साथ आस्था का संगम दिखाती हैं, वहीं ये आयोजन शासन, अर्थव्यवस्था और समाज के लिए महत्वपूर्ण अध्ययन के अवसर भी प्रदान करते हैं।

सिविल सेवा के उम्मीदवारों के लिए, इन आयोजनों का विश्लेषण केवल धार्मिक परिप्रेक्ष्य से नहीं, बल्कि भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा, पर्यटन को बढ़ावा, सामुदायिक विकास और स्थायी प्रथाओं जैसी चुनौतियों और अवसरों के दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए। एक कुशल प्रशासक वह है जो आस्था का सम्मान करते हुए, सभी के लिए एक सुरक्षित, सुखद और सुव्यवस्थित अनुभव सुनिश्चित कर सके। जैसे-जैसे भारत ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इन धार्मिक आयोजनों को भी आधुनिक तकनीक और नवीन प्रबंधन रणनीतियों के साथ जोड़ना आवश्यक है ताकि वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. **निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।
2. सावन के सोमवार को शिवजी पर जल चढ़ाना विशेष फलदायी माना जाता है।
3. समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को शिवजी ने कार्तिक मास में धारण किया था।
**उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?**
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (a)
**व्याख्या:** कथन 3 गलत है। शिवजी ने हलाहल विष को सावन मास में पीकर कंठ में धारण किया था, कार्तिक मास में नहीं।

2. **’ज्योतिर्लिंग’ के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन असत्य है?**
(a) भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं।
(b) महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी है।
(c) केदारनाथ ज्योतिर्लिंग चारधाम यात्रा का हिस्सा है।
(d) सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात में स्थित है।
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** केदारनाथ ज्योतिर्लिंग चारधाम का हिस्सा है, लेकिन यह ‘ज्योतिर्लिंग’ के रूप में जाना जाता है, न कि विशेष रूप से चारधाम यात्रा के चार मुख्य स्थलों में गिना जाता है (जो बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारका और रामेश्वरम होते हैं, हालांकि यह तीर्थयात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है)। मुख्य बिंदु यह है कि यह चारधाम यात्रा का हिस्सा तो है, लेकिन ज्योतिर्लिंग के संदर्भ में कथन की सूक्ष्मता भ्रामक हो सकती है। अधिक स्पष्टता के लिए, केदारनाथ चार धाम का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। अन्य सभी कथन सत्य हैं।

3. **’पशुपतिनाथ’ मंदिर, जो हाल ही में चर्चा में रहा, किस शहर में स्थित है?**
(a) उज्जैन
(b) मंदसौर
(c) वाराणसी
(d) हरिद्वार
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** प्रश्न में दी गई जानकारी के अनुसार, पशुपतिनाथ की सवारी मंदसौर में निकाली गई थी।

4. **सावन के महीने में भगवान शिव को चढ़ाने के लिए निम्नलिखित में से क्या सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है?**
(a) धतूरा और आक के फूल
(b) बेलपत्र और जल
(c) चंदन और घी
(d) मिश्री और फल
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** बेलपत्र और जल शिवजी को अत्यंत प्रिय माने जाते हैं, विशेषकर सावन माह में।

5. **निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. काशी विश्वनाथ मंदिर, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
2. वाराणसी को ‘मोक्ष का द्वार’ माना जाता है।
3. हाल ही में वाराणसी में भक्तों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाए गए।
**उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?**
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (d)
**व्याख्या:** सभी कथन सत्य हैं।

6. **’भस्म आरती’ किस प्रसिद्ध शिव मंदिर से जुड़ी है?**
(a) पशुपतिनाथ मंदिर, मंदसौर
(b) महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
(c) काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
(d) वैद्यनाथ मंदिर, देवघर
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** भस्म आरती महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन की एक विशिष्ट और विश्व प्रसिद्ध परंपरा है।

7. **धार्मिक आयोजनों के प्रबंधन से संबंधित निम्नलिखित में से कौन सी एक मुख्य चुनौती नहीं है?**
(a) भीड़ प्रबंधन
(b) स्वच्छता और स्वास्थ्य
(c) राजनीतिक हस्तक्षेप
(d) आपदा प्रबंधन
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** हालांकि राजनीतिक हस्तक्षेप अप्रत्यक्ष रूप से व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है, यह भीड़ प्रबंधन, स्वच्छता, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन जैसी प्रत्यक्ष और तत्काल चुनौतियों में से एक नहीं है।

8. **’धार्मिक पर्यटन’ के विकास के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा एक संभावित लाभ नहीं है?**
(a) स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
(b) रोजगार सृजन
(c) ग्रामीण विकास में कमी
(d) बुनियादी ढांचे का विकास
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** धार्मिक पर्यटन से अक्सर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा मिलता है, इसलिए ‘ग्रामीण विकास में कमी’ एक संभावित लाभ नहीं है, बल्कि इसके विपरीत विकास की संभावना होती है।

9. **निम्नलिखित में से कौन सी तकनीक बड़े धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा और प्रबंधन के लिए उपयोगी हो सकती है?**
1. ड्रोन निगरानी
2. CCTV कैमरे
3. GPS ट्रैकिंग
4. RFID टैग
**नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:**
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
**उत्तर:** (d)
**व्याख्या:** सभी सूचीबद्ध तकनीकें भीड़ प्रबंधन, निगरानी और सुरक्षा के लिए प्रभावी ढंग से उपयोग की जा सकती हैं।

10. **’कांवर यात्रा’ निम्नलिखित में से किस पर्व से विशेष रूप से जुड़ी है?**
(a) दिवाली
(b) होली
(c) सावन
(d) नवरात्रि
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** कांवर यात्रा सावन के महीने में भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए की जाने वाली एक महत्वपूर्ण यात्रा है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. **सावन के अंतिम सोमवार जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों का भारतीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर बहुआयामी प्रभाव पड़ता है। इस कथन का विश्लेषण करते हुए, ऐसे आयोजनों के प्रबंधन में आने वाली प्रमुख चुनौतियों और उनके समाधानों पर प्रकाश डालिए। (लगभग 150 शब्द)**
* **संरचना:**
* परिचय: धार्मिक आयोजनों का महत्व।
* आर्थिक प्रभाव: पर्यटन, रोजगार, स्थानीय व्यापार।
* सामाजिक प्रभाव: सांस्कृतिक आदान-प्रदान, राष्ट्रीय एकता, आस्था।
* चुनौतियाँ: भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा, स्वच्छता, बुनियादी ढांचा।
* समाधान: प्रौद्योगिकी का उपयोग, प्रशिक्षित स्वयंसेवक,PPP मॉडल।
* निष्कर्ष: संतुलित विकास की आवश्यकता।

2. **”भारत की आध्यात्मिक विरासत केवल आस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह सुशासन, आपदा प्रबंधन और सांस्कृतिक पर्यटन के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र भी है।” इस कथन के प्रकाश में, सावन के आखिरी सोमवार जैसे आयोजनों के संदर्भ में ‘सुशासन’ और ‘आपदा प्रबंधन’ के पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण कीजिए। (लगभग 250 शब्द)**
* **संरचना:**
* परिचय: आध्यात्मिक विरासत का दोहरा महत्व (आस्था और शासन)।
* सुशासन के पहलू:
* व्यवस्थापन: भीड़ नियंत्रण, दर्शन व्यवस्था, यातायात।
* सुरक्षा: पुलिस बल, ड्रोन, CCTV।
* नागरिक सुविधाएँ: जल, स्वच्छता, चिकित्सा।
* प्रौद्योगिकी का प्रयोग: ऑनलाइन बुकिंग, सूचना प्रसार।
* आपदा प्रबंधन के पहलू:
* संभावित आपदाएँ: भगदड़, आग, चिकित्सा आपातकाल।
* तैयारी: मॉक ड्रिल, राहत दल, आपातकालीन संचार।
* प्रतिक्रिया: त्वरित कार्रवाई, राहत वितरण।
* पुनर्प्राप्ति: पुनर्वास, भविष्य के लिए सीख।
* निष्कर्ष: आस्था और व्यवस्था का समन्वय।

3. **धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक अवसर है। सावन के अंतिम सोमवार जैसे आयोजनों की सफलता को देखते हुए, सरकार इस क्षेत्र में अपनी क्षमताओं का विस्तार कैसे कर सकती है? इसमें आने वाली पर्यावरणीय चुनौतियों और उनके समाधानों पर भी चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)**
* **संरचना:**
* परिचय: धार्मिक पर्यटन का आर्थिक महत्व।
* विस्तार की रणनीतियाँ:
* बुनियादी ढांचे का विकास (सड़क, आवास, कनेक्टिविटी)।
* डिजिटल इंडिया का समावेश (ऑनलाइन बुकिंग, वर्चुअल टूर)।
* स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
* प्रशिक्षित पर्यटन पेशेवरों का विकास।
* प्रचार और मार्केटिंग।
* पर्यावरणीय चुनौतियाँ:
* कचरा प्रबंधन (प्लास्टिक)।
* जल निकायों का प्रदूषण।
* वन्यजीव और पारिस्थितिकी पर प्रभाव।
* समाधान:
* ‘प्लास्टिक मुक्त’ पहल।
* बायोडिग्रेडेबल सामग्री।
* कचरा पृथक्करण और रीसाइक्लिंग।
* जागरूकता अभियान।
* सतत पर्यटन प्रथाएँ।
* निष्कर्ष: आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण का संतुलन।

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