सामाजिक स्थितिको विज्ञान तथा सामाजिक गत्यात्मकता
( Social Statics and Social Dynamics )
आगस्त कॉम्ट के जीवन काल में फ्रांसीसी विचारकों में ऐतिहासिक पद्धति के आधार पर मस्तिष्क और समाज के विकास का अध्ययन करने का प्रचलन आरम्भ हो चुका था । स्वयं आगस्त कॉम्ट ने भी अपने पूर्ववर्ती विचारकों की तरह यह स्वीकार कर लिया था कि प्रत्येक समाज का विकास कुछ समान नियमों के अन्तर्गत होता है । इसी आधार पर कॉम्ट ने समाजशास्त्र के अन्तर्गत सामाजिक विकास के सामान्य नियमों को खोजने का प्रयास किया । इसी सन्दर्भ में कॉम्ट ने सामाजिक स्थितिकी एवं सामाजिक गत्यात्मकता सम्बन्धी अपने विचार प्रस्तुत किये :
सामाजिक स्थितिकी
( Social Statics )
कॉम्ट द्वारा प्रस्तुत सामाजिक स्थितिकी सम्बन्धी विचारों को सामाजिक व्यवस्था के सिद्धान्त ( Theory of Social Order ) के अन्तर्गत रखा जा सकता है । सामाजिक स्थितिकी से कॉम्ट का तात्पर्य किसी समाज के उस अस्तित्व या स्थिति से है जिसमें उसका किसी एक काल के सन्दर्भ में विश्लेषण किया जा सकता है । कॉम्ट के शब्दों में , समाजशास्त्र का स्थितिकीय अध्ययन , सामाजिक व्यवस्था ( Social System ) के विभिन्न अंगों की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का अध्ययन है अथवा यह उन विशिष्ट कालों का अध्ययन है जो ( सामाजिक व्यवस्था से सम्बन्धित ) सामाजिक स्थिति के मूलभूत स्वरूप को बदलते रहते हैं । “
आगस्त कॉम्ट ने फ्रांस की तत्कालीन परिस्थितियों में सामाजिक व्यवस्था ( Social Order ) और सामाजिक प्रगति के अध्ययन की आवश्यकता को महसूस किया । उन्होंने बतलाया कि समाजशास्त्र को सामाजिक व्यवस्था और प्रगति की खोज करना चाहिए जिनके द्वारा सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है । उनके मतानुसार “सामाजिक व्यवस्था ( Social Order ) के अध्ययन के द्वारा ही समाजशास्त्र के अध्येता उन तत्त्वों को समझ सकते हैं जो समाज के अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं । ” सामाजिक स्थितिकी का उल्लेख करते हुए कॉम्ट ने कहा कि समाज – व्यवस्था ( Social Order ) कुछ प्राकृतिक नियमों के द्वारा ही स्थापित होती है । समाज व्यवस्था को स्थापित करने वाले प्राकृतिक नियम को उन्होंने सार्वभौमिक मतैक्या ( Consensus Universalis ) कहा है । उनके मतानुसार मानवीय जीवन के विभिन्न तत्त्वों , जैसे – – विज्ञान , कला , राजनीति , मूल्यों एवं विचारों के बीच केवल सार्वमौमिक मतैक्य ही वह तत्त्व है जो सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करता है । कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित यह विचार सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन – क्षेत्र को एक विस्तृत रूप प्रदान करते हैं । सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत सामाजिक स्थितिकी का कॉम्ट ने दो प्रकार से अध्ययन करने का सुझाव दिया है , जो इस प्रकार है :
1 ) मानवीय प्रकृति का अध्ययन ( Study of Human Nature ) – मनुष्य समाज के निर्माण के लिए सार्वभौमिक रूप से सहमत क्यों होता है ? अथवा वह ऐसी क्रियायें क्यों करता है जिनसे सार्वभौमिक मतैक्य का वातावरण बनता है ? इन प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कॉम्ट का सुझाव है कि सर्वप्रथम सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत एक विशिष्ट काल से सम्बन्धित मानवीय प्रकृति का अध्ययन किया जाना चाहिए । इसी की सहायता से यह समझा जा सकता है कि विभिन्न प्रकार की मानवीय क्रियाओं के कारण क्या हैं ?
2 ) सामाजिक , प्रकृति का अध्ययन ( Study of Social Nature ) – सामा जिक प्रकृति के अध्ययन का उल्लेख कॉम्ट ने अपनी पुस्तक ‘ पाजिटिव पालिटी ‘ ( Positive Polity ) के दूसरे खण्ड में किया है । इस अध्ययन में उन्होंने धर्म के सिद्धान्त ( Theory of Religion ) , सम्पत्ति के सिद्धान्त ( Theory of Property ) , परिवार के सिद्धान्त ( Theory of Family ) , भाषा के सिद्धान्त ( Theory of Language ) तथा कुछ अन्य सिद्धान्तों का उल्लेख किया है । इस पुस्तक के दो अध्यायों में उन्होंने इन सिद्धान्तों के माध्यम से सामाजिक प्रकृति को समझाने का प्रयास किया । कॉम्ट के अनुसार , धर्म , बौद्धिकता एवं भावना द्वारा मनुष्यों के बीच एकता को उत्पन्न करता है । सम्पत्ति और भाषा के बीच समरूपता स्थापित करते हुए कॉम्ट ने लिखा कि ” सम्पत्ति को समाज की क्रियाओं के परिणाम के रूप में जाना जा सकता है एवं भाषा समाज की बौद्धिकता का परिणाम है । ” इस प्रकार कॉम्ट ने बतलाया कि पदार्थ ( सम्पत्ति ) एवं बौद्धिकता के होता है जो सामाजिक प्रकृति का निर्धारण करती है । सामाजिक प्रकृति के में कॉम्ट ने परिवारों की संरचना का भी उल्लेख किया है । उनके मतानुसार स्थानों की पारिवारिक संरचना में भिन्नता होने के कारण ही विभिन्न सर प्रकृति में भी भिन्नता उत्पन्न हो जाती है । परोक्त दो प्रकार के अध्ययनों के आधार पर कॉम्ट ने समाजशाबर विद्यार्थियों को सामाजिक स्थितिकी का अध्ययन करने का सुझाव दिया । जब बतलाया कि समाजशास्त्र के अध्येता को व्यक्तियों के अध्ययन को अधिक मात्र देकर केवल सामाजिक व्यवस्था के उन तत्त्वों के अध्ययन पर विशेष बल देना चाहिये जिनमें एक प्रकार की समरूपता ( Homogeneity ) पाई जाती है । उनके मतानसार ” सामाजिक स्थितिकी एक ओर तो निश्चित काल में सामाजिक संरचना का अध्ययन करती है तथा दूसरी ओर उन तत्त्वों का अध्ययन करती है जो सामाजिक मतैक्य लिए उत्तरदायी होते हैं । ” इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कॉम्ट ने सामाजिक स्थितिकी को सामाजिक व्यवस्था ( Social Order ) के अध्ययन के विज्ञान के रूप में दर्शाया है ।
सामाजिक गत्यात्मकता
( Social Dynamics )
कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित सामाजिक गत्यात्मकता का सिद्धान्त सामाजिक स्थितिकी के सिद्धान्त का ही अधीन तथा पूरक ( Subordinate ) सिद्धान्त है । इसका सम्बन्ध मुख्यतः मस्तिष्क और समाज के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन करने से है । सामाजिक प्रगति अथवा विकास के सन्दर्भ में कॉम्ट ने बतलाया कि प्रत्येक समाज में विकास की दिशा एवं परिवर्तन सम्बन्धी कुछ नियम निश्चित होते हैं । प्रगति के इन नियमों के अध्ययन के आधार पर ही सामाजिक गत्यात्मकता को प्रकृति को समझा जा सकता है । सामाजिक गत्यात्मकता के अध्ययन के अन्तर्गत कॉम्ट ने इतिहास को आधार माना है किन्तु उनका कथन है कि ‘ ‘ सामाजिक गत्यात्मकता की प्रकृति को समझने के लिए विशिष्ट व्यक्तियों के नामों को इतिहास से अलग कर देना चाहिए । उन अनुसार इतिहास का वैज्ञानिक अध्ययन केवल उन सामाजिक नियमों का अन जो मस्तिष्क और समाज की ऐतिहासिक प्रगति में विद्यमान रहे हैं । “
सामाजिक गत्यात्मकता के अर्थ को स्पष्ट करते हए रेमण्ड ( Raymond Aron ) ने लिखा है कि गत्यात्मकता के अर्थ को बौद्धिकता , ( गतिविधि ) एवं भावना जैसे तीन सूत्रों के आधार पर स्पष्ट किया जा सका । उन्होंने बतलाया कि बौद्धिकता ( Intellegence ) के इतिहास से कॉम्ट का त हुए रेमण्ड ऐरों मौद्धिकता , क्रिया कया जा . सकता है । काम्ट का तात्पर्आध्यात्मवादी अवस्था से प्रत्यक्षवादी अवस्था अर्थात् वैज्ञानिक स्तर तक के विकास 16 इन अवस्थाओं के विवरण में कॉम्ट ने चिन्तन की उन तीन अवस्थाओं का विवरण दिया है जो सामाजिक प्रगति के लिए उत्तरदायी हैं । क्रिया अथवा गति विधि ( Activity ) के इतिहास से कॉम्ट ‘ का तात्पर्य सैनिककालीन शासन व्यवस्था से औद्योगिक समाजों की स्थापना तक के काल से है । कॉम्ट ने औद्योगिक समाज ( Industrial Society ) को एक प्रगतिशील समाज के रूप में स्वीकार किया है । भावना ( Sentiment ) के इतिहास को स्पष्ट करते हुए कॉम्ट ने कहा है कि समाज का भावनात्मक इतिहास अहमवादी सामाजिक सम्बन्धों के स्तर से परार्थवादी ( Altmistic ) सामाजिक सम्बन्धों की दिशा में बदलते हुए विकसित हुआ है । कॉम्ट ने इस प्रकार सामाजिक गत्यात्मकता के उक्त तीन पक्षों के आधार पर सामाजिक विकास का अध्ययन करने का सुझाव दिया है । उनके अनुसार किसी समाज में यदि बौद्धिकता , क्रिया तथा भावनाओं के इतिहास में होने वाले परिवर्तन के स्तरों को समझ लिया जाये तो सामाजिक गत्यात्मकता की प्रकृति को सरलता पूर्वक समझा जा सकता है । इस प्रकार कॉम्ट यह मानते हैं कि सामाजिक स्थितिकी तथा सामाजिक गत्यात्मकता दो ऐसे महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जो न केवल समाजशास्त्र के अध्ययन – क्षेत्र को स्पष्ट करते हैं बल्कि समाजशास्त्रीय अध्ययन को दो महत्त्वपूर्ण भागों में भी विभाजित करते हैं । इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र में सामाजिक स्थितिकी तथा सामाजिक गत्यात्मकता का अध्ययन आधारभूत एवं अनिवार्य है ।