सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान
समाज में चूंकि सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया अनवरत स्वाभाविक प्रश्न हो जाता है कि आखिर इस परिवर्तन की तरीका है जिससे सामाजिक परिवर्तन होता है ? प्रस्तत पानी दिशा या प्रतिमानों के बारे में विवेचना करेंगे । स सामाजिक परिवर्तन की घटनाओं को तीन प्रकार के प्रतिमा सकता है
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रेखीय या उद्विकासीय सिद्धांत :
साधारण शब्दों में उविकास का अर्थ है , एक सादी और सरल वस्तु का धीरे – धार एक जटिल अवस्था में बदल जाना और भी स्पष्ट रूप में सब कछ निश्चित स्तरों में से गुजरती हुई । सादी या सरल वस्तु एक जटिल वस्तु में परिवर्तित हो जाती है तो उसे उविकास कहते है । श्री मेकाइवर और पेज के शब्दों में , ” उविकास परिवर्तन की एक दिशा है जिसमें कि बदलत हए पदार्थ की विविध दशायें प्रकट होती हैं और जिससे कि उस पदार्थ की असलियत का पता । चलता है । ” समाज में जो परिवर्तन होता है तो प्रदर्शित कर सकते है , यह रेखा या तो दीतिज हो सकती है या हो सकती है . प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप हो रहे परिवर्तनों को इस अन्तर्गत रख सकते हैं , इस प्रकार के परिवर्तनों की यह विशेषता की तरफ होता है और साधारणतया उसका दृष्टिकोण उपयोगितावादी जीव – विज्ञान के क्रमिक विकास को , जिसमें डार्विन और मेण्डेल के मित के सामाजिक परिवर्तन की श्रेणी में रखा जा सकता है , इस प्रकार हम के परिवर्तनों में क्रमिक विकास या उन्नति होती है ,
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2 . उतार – चढ़ावदार परिवर्तन :
परिवर्तन का दूसरा प्रतिमान उतार – चढ़ावदार होता है , आर्थिक जगत तथा जनसंख्या के क्षेत्र में निरन्तर हो रहे परिवर्तन को हम इसके अन्तर्गत राख । सकते हैं , कोई समाज किसी समय में आर्थिक दृष्टिकोण से खुशहाल होता है जबकि किसी समय । में उसकी स्थिति खराब हो जाती है , जनसंख्या के क्षेत्र में भी इसी प्रकार के परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं , कभी कभी जन्म – दर के बढ़ जाने के कारण जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाता है जबकि सामाजिक परिवर्तन अवधारणा एवं विश्लेषण कभी कभी जन्म – दर के कम हो जाने के कारण तया मत्य दर के बढ़ जाने के कारण जनसंख्या का घनत्व कम हो जाता है । राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी इसी प्रकार के प्रतिमान दष्टिगत होते है .
3.चक्रीय परिवर्तन :
प्राकृतिक जगत , मानवीय सभ्यता तथा फैशन के क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन को हम वृत्ताकार प्रतिमानों से प्रदर्शित कर सकते हैं , मौसमों में बरसात , जाड़ा , गर्मी , फिर बरसात और इस प्रकार एक वृत्ताकार क्रम चला करता है , मानव जीवन में भी शिश । तरुण प्रौढ तथा वृद्धावस्था का एक वृत्ताकार क्रम चलता रहता है , मनुष्य मरने के बाद जन्म लेता है और फिर शिशु रूप में अवतरित होकर वृद्धावस्था की तरफ अग्रसर होता है । सभ्यता के उत्थान और पतन में भी हमें ऐसे ही लक्षण मिलते हैं । फैशन के क्षेत्र में भी परिवर्तन चक्रीय होता है । आज जो फैशन का रूप है वह एक काल के बाद फिर आयेगा जैसे – पहले लोग चौड़ी मोहरी की पैन्ट पहनते थे , फिर पतली मोहरी की पहनने लगे , और अब फिर धीरे – धीरे चौड़ी मोहरी की तरफ बढ़ रहे हैं । लड़कियों का पहनावा भी पहले ढीला होता था , बीच में चुस्त और अब फिर ढीला हो गया है । कुछ समाजशास्त्री संस्कृति तथा आर्थिक पहलू में परिवर्तन को इसी श्रेणी में रखते हैं । इस प्रकार के परिवर्तन को निम्नांकित चित्र से दिखाया जा सकता है ।
परिवर्तन घड़ी की सई की दिशा में निरन्तर होता रहता है और कुछ समय के बाद अपनी । ध्वावस्था को प्राप्त करता है । स्पेंगलर ने अपनी प्रमुख कृति ‘ पश्चिम के पतन ‘ में सभ्यता के । परिवर्तन को इसी प्रतिमान के अन्तर्गत रखा है । उपयुक्त चित्रों द्वारा अभी हमने सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमानों का उल्लेख किया है । वास्तविकता तो यह है कि परिवर्तन वा प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इस प्रकार के सरल का प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता । बहुत से परिवर्तन ऐसे हैं जो वाध्य करत कि इस प्रकार के सरल । का प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता । बहुत से परिवर्तन ऐसे हैं जो वाध्य करत है कि हम उन्हें सभी प्रकार के प्रतिमानों के अन्तर्गत स्थान दें । जैसे – आर्थिक क्षेत्र तथा सांगत क्षेत्र में परिवर्तन चक्रीय प्रतिमान के अन्तर्गत भी रखे जा सकते है और उतार – चढ़ावदार प्रतिमा के अन्तर्गत भी । समाज में जो गणात्मक परिवर्तन होते रहते ह उनका माप और प्रदर्शन आसान काम नहीं है , मैकाइवर ने परिवर्तन की जटिलताओं को व्यक्त करते हुए लिखा ‘ जहाँ कहीं सांस्कृतिक मूल्य प्रवेश करते हैं , परिवर्तन का प्रकार जटिल हो जाता है तथा वैषणि दृष्टि से भिन्न होते हैं , जैसे – विद्युत इंजीनियरिंग के विज्ञान का राजनीति की अपेक्षा एक प्रता पक्ष होता है ।
सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख विशेषताएँ :
( i ) भविस्यवाणी का अभाव ( Lack of Prediction )
( ii ) सर्वव्यापकता ( Universality )
( iii ) सापेक्ष गति ( Relative Motion
( iv ) एक जटिल प्रक्रिया ( A Complex Process )
( v ) अनिवार्यता ( Compulsory )
सामाजिक परिवर्तन के कारक :
( i ) सांस्कृतिक कारक ( Cultural Factor )
( ii ) प्राकृतिक कारक ( Natural Factor )
(iii) कारक ( Population Factor )
(iv) प्राणिशास्त्रीय कारक ( Biological Factor )
( v) मनोवैज्ञानिक कारक ( Psychological Factor )
( vi ) भौगोलिक कारक ( Geographical Factor )
(vii ) प्रौद्यो गिकीय कारक ( Technological Factor )
( viii ) राजनीतिक तथा सैनिक कारक ( Political and Military Factor )
( ix ) महान लोगों की भूमिका ( Role of Great People )
( x ) आर्थिक कारक ( Economic Factor )