Site icon NOTES POINTS

सामाजिक नृविज्ञान के पद्धति

 

सामाजिक नृविज्ञान के पद्धति

SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सामाजिक नृविज्ञान में अध्ययन की एक विधि के रूप में सामने आया

ऐतिहासिक पद्धति के खिलाफ विद्रोह। दिलचस्प बात यह है कि विकासवादी इतिहासवाद अनुभववाद के उद्भव के कारण बदनाम हुआ। अनुभववाद अनुभव है। जब सामाजिक मानवविज्ञानियों ने अनुभववाद के माध्यम से समग्र अध्ययन किया, तो कार्यात्मकता को कार्यप्रणाली के एक नए मुहावरे के रूप में जाना जाने लगा। प्रकार्यवाद ने फील्डवर्क के माध्यम से समाज के समग्र अध्ययन की वकालत की।

नई चुनौतियों के जवाब में नई मांगों के साथ सामाजिक मानव विज्ञान में नई पद्धतियां उभर रही हैं। इन विधियों से संबंधित तकनीकें भी बदल रही हैं। पद्धति संबंधी मांगों के अनुरूप नई तकनीकों को भी डिजाइन किया गया है। पारंपरिक तकनीकें हैं – अवलोकन, अनुसूचियां, प्रश्नावली, साक्षात्कार, केस स्टडी, सर्वेक्षण, वंशावली आदि। नृवंशविज्ञान जैसी नई विधियों के साथ, नई तकनीकें सामने आ रही हैं। विकासात्मक नृविज्ञान, दृश्य नृविज्ञान आदि जैसी नई शाखाओं का उद्भव भी नए पद्धतिगत ढांचे की मांग कर रहा है। किसी भी अन्य विषय की तरह मानव विज्ञान भी समय बीतने के साथ नए आयामों का अनुभव कर रहा है। पद्धति संबंधी आयाम भी ऐसे परिवर्तनों से अलग नहीं है।

वैज्ञानिक पद्धति

( SCIENTIFIC METHOD )

वैज्ञानिक पद्धति का तात्पर्य अनुसन्धान की किसी भी ऐसी पद्धति से है , जिसके द्वारा निष्पक्ष एवं व्यवस्थित ज्ञान को प्राप्त किया जाता है . वल्फ कहते हैं किविस्तृत अर्थों में कोई भी अनुसन्धान विधि जिसके द्वरा विज्ञान का निर्माण एवं विस्तार होता है , वैज्ञानिक पद्धति कही जाती है  वैज्ञानिक विधि ( Scientific Method ) आधुनिक युग विज्ञान का युग है कोई भी घटना कितनी ही सरल और जटिल क्यों हो , उनका अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है साधारणतया लोग विज्ञान शब्द से विशिष्ट प्रकार की विषयसामग्री समझ लेते हैं उदाहरणस्वरूपजीव विज्ञान , रसायनशास्त्र , इन्जीनियरिंग , भौतिकशास्त्र इत्यादि किन्तु ऐसा समझना गलत है विज्ञान का विषयसामग्री से कोई सम्बन्ध नहीं है कोई भी विषयसामग्री विज्ञान हो सकती है यदि उसे वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा अध्ययन किया जा सके इसलिए स्टुअर्ट चेज ने लिखा है – ” विज्ञान का सम्बन्ध वैज्ञानिक पद्धति से है कि विषयसामग्री से

इसी प्रकार की बात बेनबर्ग और शेबत ने कही है – ” विज्ञान संसार की ओर देखने की एक निश्चित पद्धति है ” ? वास्तव में विज्ञान का तात्पर्य उस क्रमबद्ध ज्ञान से है जिसे वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा प्राप्त किया जाता है अर्थात् व्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान है वैज्ञानिक पद्धति सभी शाखाओं में केवल एक और वही है सभी विज्ञानों की एकता इसकी पद्धति में है , अकेले इसकी सामग्री में नहीं वह व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार के तथ्यों को वर्गीकृत करता है , जो इनके पारस्परिक सम्बन्धी को देखता है तथा उनके क्रम का दर्शन करता है , वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करता है और एक विज्ञान का व्यक्ति है ये तथ्य मानब मात्र के प्रतीत के इतिहास , हमारे महान शहरों की सामाजिक सांख्यिकी , सुदूर तारों के वातावरण से सम्बन्धित हो सकते हैं . ये स्वयं तथ्य नहीं है जो विज्ञान का निर्माण करते हैं बल्कि वह पद्धति है जिसके द्वारा इन पर कार्य किया जाता है

 

” ‘ एनसाइक्लोपीडिया विटेनिकाके अनुसार , ” वैज्ञानिक पद्धति एक सामूहिक शब्द है जो उन अनेक प्रक्रियाओं को स्पष्ट करता है जिनकी सहायता से विज्ञान का निर्माण होता है

 

 

गुडे एवं हर्ट ने लिखा है – ” विज्ञान को प्रचलित रूप से व्यवस्थित ज्ञान से संचय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है भौतिक शास्त्र भौतिक अंगों का अध्ययन करता है , प्राणिशास्त्र जीवों का अध्ययन करता है और वनस्पति शास्त्र पेड़पौधों का अध्ययन करता है इस प्रकार अन्य विज्ञानों में भी अलगअलग विषयसामग्री होते हैं और ये सभी विषय सामग्री एकदूसरे से भिन्न होते हैं किन्तु ये सभी विज्ञान कहलाते हैं अब सवाल उठता है कि वह कौनसी बात है जो इन सभी को विज्ञान की इकाई के रूप में लाती है ? इसका एक मात्र उत्तर है अध्ययन पद्धति अर्थात् वैज्ञानिक पद्धति

 

कार्ल पियरसन के अनुसार – ” समस्त विज्ञान की एकता उसकी पद्धति में है कि उसकी विषयवस्तु में

 

 लुण्डबर्ग ने भी इसी प्रकार की बात कही हैसमस्त शाखाओं में वैज्ञानिक पद्धति एक ही है उपर्युक्त विवेचनाओं से स्पष्ट होता है कि वैज्ञानिक पद्धति द्वारा जो अध्ययन किया जाता है उससे प्राप्त ज्ञान को विज्ञान कहते हैं

 

विजान का अर्थ वैज्ञानिक पद्धति से है , जानने के बाद यह जानना जरूरी है कि किस विधि को बैज्ञानिक पति कहेंगे साधारणतः उस पद्धति को वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है जिसमें अध्ययनकर्ता तटस्थ या निष्पक्ष रहकर किसी विषय , समस्या या घटना का अध्ययन करता है इसके अन्तर्गत अवलोकन , तथ्य संकलन . वर्गीकरण सारणीकरण , विश्लेषण तथा सामान्यीकरण आता है

 

अगस्ट कौम्ट का कहना था कि सम्पूर्ण विश्व का संचालनस्थिर प्राकृतिक नियमों द्वारा होता है और इन नियमों की व्याख्या वैज्ञानिक पद्धति द्वारा ही संभव है चूँकि सामाजिक घटनाएँ इसी प्रकृति की अंग है इसलिए प्राकृतिक घटनाओं की तरह सामाजिक घटनाओं का भी अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति द्वारा ही सम्भव है वैज्ञानिक पद्धति भावनात्मक तात्विक चिन्तन पर आश्रित होकर अवलोकन , परीक्षण , प्रयोग एवं वर्गीकरण की व्यवस्थित कार्य प्रणाली पर आश्रित होती है विभिन्न विद्वानों ने वैज्ञानिक पद्धति को अपनेअपने शब्दों में परिभाषित किया है

 

 लुण्डबर्ग ने वैज्ञानिक पद्धति के सम्बन्ध में लिखा है – ” मोटे तौर पर वैज्ञानिक पद्धति तथ्यों का व्यवस्थित अवलोकन , वर्गीकरण एवं विश्लेषण है

 

कार्ल पियर्सन ने वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति को बताते हुए लिखा हैवैज्ञानिक पद्धति निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा स्पष्ट होती है – ( ) तथ्यों का सतर्क एवं यथार्थ वर्गीकरण तथा उनके सह सम्बन्ध एवं अनुक्रम का अवलोकन ( ) रचनात्मक कल्पना के द्वारा वैज्ञानिक नियमों की खोज ( ) आत्म आलोचना तथा सामान्य बुद्धि के सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से उपयोगी

 

 बर्नाड ने वैज्ञानिक पद्धति की परिभाषा देते हुए कहा है , ” विज्ञान की परिभाषा उसमें होनेवाली प्रमुख : प्रक्रियाओं के रूप में किया जा सकता हैपरीक्षण , सत्यापन , परिभाषा , वर्गीकरण , संगठन तथा परिमार्जन जिसमें पूर्वानुमान एवं व्यवहार में लाना सम्मिलित है उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि वैज्ञानिक पद्धति एक व्यवस्थित प्रणाली है इसके अन्तर्गत तथ्यों का संकलन , सत्यापन , वर्गीकरण एवं विश्लेषण किया जाता है इससे सामान्य नियमों की खोज की जाती है तथा उसके सम्बन्ध में पूर्वानुमान भी किया जाता है

 

 

वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताएँ

( Characteristics of Scientific Method )

 

वैज्ञानिक पद्धति की परिभाषाओं के आधार पर इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं इन विशेषताओं का निम्नलिखित ढंग से समझा जा सकता है

 

तार्किकता ( Logicality ) – वैज्ञानिक पद्धति भावना , संवेग अथवा अन्धविश्वास पर आधारित नहीं होती इसमें तार्किक विचारों पर बल दिया जाता है वैज्ञानिक पद्धति घटनाओं के कायकारण सम्बन्धों पर जोर देती हैं दसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि प्रत्येक घटना का कोई कोई कारण जरूर होता है और बिना कारण के कोई भी घटना नहीं घटती वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत कार्यकारण ढूँढने का प्रयास किया जाता है उदाहरण स्वरूप अन्धविश्वास के तहत किसी बीमारी के पीछे किसी दैवी शक्ति का हाथ मानकर उसके असली रोगाणओं का खोज करना ही वैज्ञानिक पद्धति की विशेषता है वास्तव में बीमारी के पीछे रोगाणु विशेष का हाथ होता है कहने का तात्पर्य यह है कि यहाँ रोगाणु विशेष ही बीमारी का कारण है

 

  सामान्यता ( Generality ) – वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा ऐसे नियमों या तथ्यों को ढूंढने का प्रयास किया जाता है जो कि सदैव समान अवस्थाओं में प्रमाणिक हो सकें यह पद्धति किसी विशेष घटना अथवा इकाई के अध्ययन पर बल नहीं देता बल्कि सामान्य घटनाओं के अध्ययन पर जोर देता है अर्थात् वैज्ञानिक पद्धति बिल्कुल विशिष्ट का विज्ञान नहीं हो सकता , यह सामान्य खोज पर बल देता है ताकि विभिन्न तथ्यों के आधार पर सामान्य सिद्धान्त एवं नियमों का प्रतिपादन किया जा सके यदि किसी विशेष घटना या तथ्य को लेकर किसी सामान्य नियम का प्रतिपादन होता है तो उसका क्षेत्र बहुत ही संकुचित होता है वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत एकत्रित की जाने वाली इकाइयाँ व्यक्ति विशेष का होकर सम्पूर्ण वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं इसका मतलब यह नहीं होता कि ये सभी परिस्थितियों एवं अवस्थाओं में बिना शर्त के प्रामाणिक होंगे ये सामान्य परिस्थिति में ही प्रामाणिक होते हैं इस अर्थ में एक सामान्य वैज्ञानिक नियम बन सकता है वैज्ञानिक पद्धति की विशेषता इस अर्थ में भी सामान्य है कि इसका प्रयोग विभिन्न विज्ञानों में एक समान होता है इस सन्दर्भ में कार्ल पियर्सन ने लिखा भी हैसमस्त विज्ञानों की एकता उसकी पद्धति में है कि विषयवस्त में साधारण तौर पर वैज्ञानिक पद्धति विज्ञान की समस्त शाखाओं में एक समान होती है

 

 . कार्यकारण सम्बन्धों पर आधारित ( Cause and Effect Relationship ) – वैज्ञानिक पद्धति कार्यकारण सम्बन्धों पर आधारित होता है प्रत्येक घटना का कोई कारण होता है कोई भी धाटना पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं होती . उसके घटित होने के पीछे कोई कोई कारण होता है वैज्ञानिक पद्धति उन सभी कारणों को ढूँढने का प्रयास करती है जिनके कारण घटनाएँ घटिस होती हैं अर्थात् विभिन्न घटनाओं के बीच कार्यकारण सम्बन्धों की व्याख्या करती है उदाहरण स्वरूप यदि काई व्यकित बीमार है तो वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा उसके बीमार होने के कारण को ढूँढने का प्रयास किया जाता किसी देवीदेवता का प्रकोप समझा आता है

 

. अवलोकन ( Observation ) – अवलोकन वैज्ञानिक पद्धति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत तथ्यों के संकलन हेतु अनुसंधानकर्ता प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण करता है अवलोकन को वैज्ञानिक खोज की शास्त्रीय पद्धति कहा जाता है वैज्ञानिक पद्धति में अवलोकन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए गुडे एवं हैट ने कहा हैविज्ञान अवलोकन से प्रारम्भ होता है एवं इसकी पुष्टि के लिए अन्त में अवलोकन पर ही लादना पडता है इसलिए समाजशास्त्री को सावधानीपूर्वक अवलोकन करने में अपने आप को प्रशिक्षित करना चाहए अवलोकन में उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण से घटना का निरीक्षणपरीक्षण करके तथ्य संकलन किया जाता है जो लज्ञा पद्धति का आधार बनता है m

 

 

 . सत्यापनशीलता ( Verification ) – वैज्ञानिक पद्धति द्वारा प्राप्त निष्कर्ष किसी समय भी सत्यापित किये जा सकते हैं पूर्व में प्राप्त किया गया सत्य अब कहाँ तक सत्य है . इस बात की जानकारी सत्यापन कबाद होती है कहने का तात्पर्य यह है कि एक बार जब वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा निष्कर्ष निकाला जाता है , दूसरी बार भी समान निष्कर्ष प्राप्त होता है तो उसे सत्यापित समझा जाता है अर्थात वैज्ञानिक पद्धति में प्राप्त निष्कर्षों की पुन : परीक्षा की जा सकती है इस सन्दर्भ में लथर का कहना है कि जिस विधि के द्वारा तथ्यों की पुन : परीक्षा नहीं की जा सकती है वह वैज्ञानिक पद्धति होकर दार्शनिक अथवा काल्पनिक हो सकती है अत : वैज्ञानिक पद्धति के लिए सत्यापन अत्यन्त आवश्यक है वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताएँ

 

. वस्तुनिष्ठता ( Objectivity ) – वैज्ञानिक पद्धति में वस्तुनिष्ठता का महत्वपूर्ण स्थान है वस्तुनिष्ठता का अर्थ जो ( Characterstics of Scientific Method ) वस्तु या घटना जैसा है उसे उसी रूप में देखना या जानना | अवलोकन होता है वैज्ञानिक पद्धति में पक्षपात एवं पूर्वाग्रह का कोईस्थान नहीं होता अर्थात् व्यक्ति अध्ययन के समय अपनी सत्यापन शीलता व्यक्तिगत इच्छा , पसन्द एवं धारणाओं को महत्व नहीं देता है ग्रीन के अनुसारवस्तुनिष्ठता का तात्पर्य किसी तथ्य 3 . वस्तुनिष्ठता अथवा प्रमाण की निष्पक्षतापूर्वक जाँच करने की इच्छा तथा योग्यता है सामाजिक विज्ञानों में वस्तुनिष्ठता एक कठिन कार्य है इसलिए अनुसंधानकर्ता को आत्मनियंत्रण केसाथसाथ ऐसी प्रविधियों का प्रयोग करना चाहिए जिससे कि पक्षपात एवं पूर्वाग्रह की गुंजाइश कम से कम हो अध्ययनकर्ता को बिल्कुल तटस्थ रहकर अध्ययन करना पड़ता है उसे किसी प्रकार का नैतिक पक्षपात या मानसिक बेईमानी का सहारा नहीं लेना चाहिए

 

–  निश्चितता वैज्ञानिक पद्धति में निश्चितता होती है इसके अन्तर्गत निश्चित आधारों पर निश्चित तथ्य ढूंढने का प्रयास किया जाता है वैज्ञानिक पद्धति में संदेह उत्पन्न करने वाले तत्वों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है वैज्ञानिक अध्ययन में निश्चित पदों का प्रयोग होता है अनिश्चित पदों के प्रयोग से निश्चित निष्कर्ष प्राप्त होना कठिन है यदि अध्ययन वस्तुनिष्ठ है और पुन : परीक्षण द्वारा उसका सत्यापन हो सकता है तब उससे प्राप्त निष्कर्ष में निश्चितता अवश्य होगी

 

 

 

 भविष्यवाणी करने की क्षमता ( Predictability ) – वैज्ञानिक पद्धति की एक महत्वपूर्ण विशेषता भविष्यवाणी अथवा पूर्वानुमान करने की क्षमता है कार्यकारण सम्बन्धों एवं विभिन्न कारकों के अध्ययन के आधार पर किसी वस्तु या घटना की जानकारी होती है इस जानकारी के आधार पर भविष्य में उस वस्तु अथवा घटना का क्या स्वरूप होगा इस सम्बन्ध में पूर्वानुमान किया जा सकता है वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत किया जानेवाला भविष्यवाणी ज्योतिषी या अन्य भविष्यवाणी से भिन्न होता है अध्ययनकर्ता जब किसी घटना के कारणों को खोजकर उसके सम्बन्ध में सामान्य नियम एवं सिद्धान्त प्रतिपादित करता है तब जाकर उसके आधार पर वैसी दशाओं में उस प्रकार की घटनाओं के घटित होने के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करता है कहने का तात्पर्य है कि वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर अध्ययन करने से अध्ययनकर्ता में ऐसी क्षमता विकसित होती है जिससे वह समान घटनाओं के बारे में पूर्वानुमान कर सके

 

 

 

 

वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण

( Main Steps in Scientific Method )

 

 वैज्ञानिक पद्धति एक व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध पद्धति है इसके अन्तर्गत अनेक प्रक्रियाएँ संलग्न हैं इन प्रक्रियाओं के क्रमबद्धता के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपनेअपने विचार प्रकट किये हैं इन विद्वानों ने वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों की चर्चा की है कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दिये गये विचार निम्नलिखित हैं

 लुण्डबर्ग के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति के चार प्रमुख चरण हैं ( i ) काम चलाऊ उपकल्पना ( the working hypothesis ) , मा तथ्यों का अवलोकन , संकलन एवं अंकन ( the observation and recording of data ) , in संकलित तथ्यों का वर्गीकरण एवं संगठन ( the classification and organisation of data ) ( iv ) सामान्यीकरण ( Generalization )

 

पी . बी . यंग ने वैज्ञानिक पद्धति के : चरणों की चर्चा की है ( i ) अध्ययन समस्या का चुनाव ( ii ) कार्यकारी उपकल्पना का निर्माण ( iii ) अवलोकन तथा तथ्य संकलन ( iv ) तथ्यों का आलेखन ( v ) तथ्यों का वर्गीकरण ( vi ) वैज्ञानिक सामान्यीकरण

एवालबर्नन ने वैज्ञानिक पद्धति के पाँच स्तरों की चर्चा की है ( 1 ) समस्या का चुनाव तथा उपकल्पना का निर्माता ( ii ) यथार्थ तथ्यों का संग्रहण ( iii ) वर्गीकरण तथा सारणीकरण ( iv ) निष्कर्ष निकालना ( v ) निष्कर्षों की परीक्षा एवं सत्यापन

विभिन्न विद्वानों द्वारा दिये गये वैज्ञानिक पद्धति के विभिन्न चरणों के आधार पर कुछ प्रमुख स्तरों का उल्लेख किया जा सकता है अर्थात् भिन्नभिन्न विद्वानों ने अपनेअपने दष्टिकोण से वैज्ञानिक पद्धति के चरणों की व्याख्या की है सभी विद्वानों के विचारों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं

 

 ( i ) समस्या का चुनाव

 ( ii ) उपकल्पना का निर्माण

( iii ) अध्ययन क्षेत्र का निर्धारण

( iv ) अध्ययन यन्त्रों का चुनाव Restau मांग

 ( v ) अवलोकन एवं तथ्य संकलन शाह

 ( vi ) वर्गीकरण एव विश्लेषण गह

 ( vii ) सामान्यीकरण एवं नियमों का प्रतिपादन

 

समस्या का चुनाव ( Selection of Problem ) – वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत सबसे पहला चरण समस्या का चुनाव होता है अध्ययनकर्ता सबसे पहले सामयिक महत्त्व , व्यावहारिक उपयोगिता तथा जिज्ञासा के आधार पर विषय का चुनाव करता है यही विषय वैज्ञानिक खोज का पहला आधार बनता है समस्या का चुनाव सम्बन्धि साहित्य एवं सूचनाओं के आधार पर होता है इसके लिए समस्या से सम्बन्धित जितने लेख , विवरण या विचार , पुस्तकों , संदर्भ ग्रन्थों या पत्रपत्रिकाओं से मिल सकें उसे एकत्रित किया जाता है इससे सम्बन्धित व्यक्तियों से भी पूछताछ की जाती है गुडे एवं हैट ने लिखा हैकिसी भी अध्ययन से सम्बन्धित समग्र में बहुत सी घटनाओं का समावेश होता है किन्तु विज्ञान इसमें से कुछ घटनाओं तक ही अपने को सीमित रखता है अध्ययनकर्ता . समस्या का चुनाव जागरूकता एवं रुचि के आधार पर करता है

 

  उपकल्पना का निर्माण ( Formulation of Hypothesis ) – समस्या के चुनाव के बाद अध्ययनकर्ता समस्या से सम्बन्धित उपकल्पना का निर्माण करता है उपकल्पना अध्ययन के पहले कहा गया ऐसा प्राक्कथन है जिसके प्रामाणिकता की जाँच एकत्र की जाने वाली तथ्यों के आधार पर होती है लुण्डबर्ग ने कहा हैउपकल्पना एक काम चलाऊ सामान्यीकरण है , जिसकी सत्यता की जाँच करना बाकी होता है उपकल्पना वैज्ञानिक अध्ययन को दिशा प्रदान करता है उपकल्पना के निर्माण से समय , शक्ति एवं धन की बचत होती है इसके आधार पर ही तथ्य संकलित किये जाते हैं और इन्हीं तथ्यों के द्वारा उपकल्पना के प्रामाणिकता की जाँच होती है उपकल्पना का निर्माण अनुसंधानकर्ता अपने अनुमानों , सूझ , कल्पना तथा अनुभवों के आधार पर करता है सामान्य संस्कृति , साहित्य , सहृदयता एवं दर्शन भी उपकल्पना के स्रोत बनते हैं

 

  अध्ययनक्षेत्र का निर्धारण ( Determination of Universe ) – अध्ययनक्षेत्र से तात्पर्य वैसे क्षेत्र से है जिसे अध्ययन से सम्बन्धित तथ्य संकलित करने के लिए चिन्हित किये जाते हैं अर्थात् अध्ययनकर्ता स्वयं यह निश्चित करता है कि उसे किस क्षेत्र का अध्ययन करना है अध्ययनक्षेत्र निश्चित रहने पर अध्ययनकर्ता का प्रयास एक सीमा के अन्दर होता है , वह अनावश्यक प्रयासों से बच जाता है अध्ययनक्षेत्र यदि बड़ा होता है तब प्रतिनिधि इकाइयों से तथ्य संकलित किये जाते हैं प्रतिनिधि इकाइयों को चनने के लिए निदर्शन पद्धति का प्रयोग किया जाता है

 

. अध्ययन यंत्रों एवं विधि का चुनाव ( Selection of Tools & Techniques ) – उपकल्पना एवं अध्ययन क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए यंत्रों एवं प्रविधियों का चुनाव किया जाता है वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा अध्ययन करने के लिए उपर्यक्त यंत्रों एवं प्रविधियों का चुनाव बहत ही महत्वपूर्ण होता है विश्वसनाय कर के सकलन के लिए अध्ययनकर्ता विभिन्न पद्धतियों एवं यंत्रों का चनाव करता है अर्थात् यह निश्चित करता अवलोकन , प्रश्नावली , अनुसूची , वैयक्तिक अध्ययन विधि , साक्षात्कार अथवा अन्य विधियों में से किसके सहारे तथ्य संकलित करेगा इन यंत्रों एवं प्रविधियों के सम्बन्ध में रूप रेखा तैयार करता है उदाहरणस्वरूप साक्षात्कार निर्देशिका , प्रश्नावली तथा अनुसूची इत्यादि को तैयार करना

 

 . अवलोकन एवं तथ्य संकलन ( Observation and Data Collection ) — वैज्ञानिक अध्ययन अवलोकन से भी प्रारम्भ होता है साधारणत : अवलोकन का तात्पर्य देखना होता है किन्तु वैज्ञानिक पद्धति में अवलोकन का अर्थ होता है किसी भी वस्तु घटना को उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण से निरीक्षण परीक्षण करना अवलोकन में समस्त मानव इन्द्रियों को यथासम्भव प्रयोग में लाया जाता है तत्पश्चात् तथ्य संकलित किये जाते है तथ्य सकलन में अवलोकन के अतिरिक्त अन्य विधियों जैसे साक्षात्कार , प्रश्नावली , अनुसूची वैयक्तिक अध्ययन विधि के द्वारा भी तथ्य संकलित किये जाते हैं उपकल्पना के प्रामाणिकता की जाँच से सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित किये जाते हैं इनके आधार पर कार्यकारण सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं तथा उपकल्पना के सत्यता की जाँच की जाती है

 

 वर्गीकरण तथा विशेषता ( Classification and Interpretation ) – वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत तथ्य संकलन के बाद उन तथ्यों का वर्गीकरण किया जाता है अर्थात् तथ्यों को उनकी समानता , असमानता एवं अन्य विशेषताओं के आधार पर विभिन्न वर्गों अथवा श्रेणियों में बाँटा जाता है इस प्रक्रिया से एकत्रित तथ्य सरल , स्पष्ट एवं अर्थपूर्ण बन जाते हैं जब तथ्यों को विभिन्न वर्गों में बाँट दिया जाता है तत्पश्चात् उनका विश्लेषण किया जाता है संकलित तथ्यों का पूर्वाग्रह रहित एवं निष्पक्ष भाव से विश्लेषण किया जाता है ताकि कार्यकारण सम्बन्धों की जानकारी हो

 

  सामान्यीकरण तथा नियमों का प्रतिपादन ( Generalization and formation of Law ) – प्राप्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर सामान्यीकरण किया जाता है अर्थात् सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर उपकल्पनाएँ सत्यापित अथवा असिद्ध होती हैं यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि इन दोनों ही स्थितियों ( सत्यापित अथवा असिद्ध ) में निष्कर्ष वैज्ञानिक होता है उपकल्पनाएँ सत्यापित नहीं होने पर अध्ययन का वैज्ञानिक महत्त्व कम नहीं होता तथ्यों के वर्गीकरण , विश्लेषण एवं सामान्यीकरण के द्वारा जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं वे ही सामान्य नियमों एवं सिद्धान्तों के आधार बनते हैं अर्थात् निष्कर्षों के आधार पर ही नियमों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता है वैज्ञानिक पद्धति के विभिन्न चरणों में अन्त : सम्बन्ध होता है अत : विभिन्न चरणों से गुजरने के बाद ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है इस सन्दर्भ में कार्ल पियर्सन ने कहा हैसत्य के लिए कोई संक्षिप्त मार्ग नहीं है विश्व का ज्ञान प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति से गुजरने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है

वैज्ञानिक पद्धति एक सीमित दायरे में किसी विषय वस्तु का व्यवस्थित अध्ययन है। इस पद्धति के लिए बड़े धैर्य, साहस, कठिन श्रम, रचनात्मक कल्पना और वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिक प्रणाली पर काम शुरू करने से पहले कोई भी व्यक्ति वैज्ञानिक धारणा के बिना वैज्ञानिक प्रणाली का उपयोग नहीं कर सकता; एक शोधार्थी को उस समस्या को बारीकी से परिभाषित करना चाहिए जो उसके शोध का विषय है। परिभाषा जितनी स्पष्ट होगी शोध कार्य उतना ही सरल होगा। वैज्ञानिक विधि के मुख्य चरण नीचे दिए गए हैं:

  1. अवलोकन: वैज्ञानिक प्रणाली में पहला कदम अनुसंधान की विषय वस्तु का बारीकी से और सावधानीपूर्वक निरीक्षण करना है। इस अवलोकन को अक्सर उपकरणों की सहायता की आवश्यकता होती है। ये उपकरण सटीक होने चाहिए।
  2. रिकॉर्डिंग: वैज्ञानिक प्रणाली में आवश्यक दूसरा चरण इस अवलोकन को सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड करना है। इसे करने में एक निष्पक्ष निष्पक्षता बहुत आवश्यक है।
  3. वर्गीकरणः तत्पश्चात् एकत्रित सामग्री का वर्गीकरण एवं संगठन करना होगा। यह बहुत ही गंभीर कदम है। कार्ल पियर्सन के शब्दों में, “तथ्यों का वर्गीकरण, उनके अनुक्रम और सापेक्ष महत्व की पहचान विज्ञान का कार्य है।” वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है कि बिखरे हुए तत्वों में एक संबंध और समानता देखी जा सके। इस प्रकार विषय वस्तु को तार्किक आधार पर व्यवस्थित किया जाता है।

 

 

  1. सामान्यीकरण: एक वैज्ञानिक प्रणाली में चौथा चरण एक सामान्य नियम खोजना या वर्गीकृत मामले में समानता के आधार पर सामान्यीकरण करना है। इस सामान्य नियम को वैज्ञानिक सिद्धांत कहा जाता है। मैकाइवर के शब्दों में, “इस तरह का कानून सावधानीपूर्वक वर्णित और समान रूप से आवर्ती स्थितियों के अनुक्रम का दूसरा नाम है”।
  2. सत्यापन: सामान्यीकरण करने के बाद एक वैज्ञानिक प्रणाली बंद नहीं होती है। इन सामान्यीकरणों का सत्यापन भी आवश्यक है। वैज्ञानिक सिद्धांतों को सत्यापित किया जा सकता है और ऐसा सत्यापन उनकी आवश्यक शर्त है जिसके बिना उन्हें वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता।

विज्ञान की अनिवार्यता

वैज्ञानिक कहलाने के लिए किसी भी अध्ययन की क्या आवश्यकताएँ हैं, यह अब वैज्ञानिक पद्धति की उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट हो गया है। विज्ञान के आवश्यक तत्व या विशेषताएँ नीचे दी गई हैं:

  1. वैज्ञानिक पद्धति: जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि किसी भी विषय को उसकी विषय वस्तु के कारण नहीं बल्कि वैज्ञानिक पद्धति के कारण विज्ञान कहा जाता है।
  2. तथ्यात्मक: विज्ञान तथ्यों का अध्ययन है। यह वास्तविक सत्य की खोज करता है। इसकी विषयवस्तु आदर्श नहीं बल्कि तथ्यपरक है।
  3. सार्वभौम वैज्ञानिक सिद्धांत सार्वभौम होते हैं। वे सभी देशों में और हर समय रुए पाए जाते हैं।
  4. तार्किक : एक वैज्ञानिक नियम सत्यात्मक होता है। इसकी सत्यता की कभी भी जांच की जा सकती है। जितनी बार इसकी जांच की जाएगी, उतनी बार यह सच साबित होगा।
  5. कार्य-कारण संबंध की खोजः विज्ञान अपनी विषय वस्तु में कारण और प्रभाव के संबंधों की खोज करता है और उसी संबंध में एक सार्वभौमिक और सत्यापित नियम प्रस्तुत करता है।
  6. भविष्यवाणी: विज्ञान सार्वभौमिक और सत्यापित नियमों के आधार पर कारण-प्रभाव संबंध के विषय पर भविष्यवाणी कर सकता है। कार्य-कारण में इसी विश्वास पर ही विज्ञान की नींव टिकी है। वैज्ञानिक जानता है कि ‘क्या होगा’ के आधार पर ‘क्या होगा’ का निर्णय किया जा सकता है क्योंकि कार्य-कारण का नियम सार्वभौम और अपरिवर्तनीय है।

एक विज्ञान के रूप में सामाजिक नृविज्ञान

उपरोक्त छह मूल सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक मानव विज्ञान की एक परीक्षा से पता चलता है कि सामाजिक मानव विज्ञान में विज्ञान के सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं।

  1. सामाजिक मानव विज्ञान वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करता है: सामाजिक मानव विज्ञान के सभी तरीके वैज्ञानिक हैं। वे वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं

सामाजिक संबंध मनोवैज्ञानिक संबंधों से भिन्न होते हैं और दोनों तरह से सामाजिक मानवविज्ञान समाज के संदर्भ में मानव विज्ञान का अध्ययन करता है। समकालीन अमेरिकी मानवविज्ञानी के अनुसार, सामाजिक मानव विज्ञान केवल सांस्कृतिक मानव विज्ञान की एक शाखा है क्योंकि संस्कृति समाज की तुलना में एक व्यापक अवधारणा है और सामाजिक जीवन के अध्ययन में शामिल की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है।

सामाजिक नृविज्ञान की प्रकृति

सामाजिक मानव विज्ञान एक विज्ञान है और इस तथ्य को जानने के लिए यह समझना आवश्यक है कि विज्ञान क्या है। कुछ लोग किसी विशेष विषय वस्तु को रसायन विज्ञान या इंजीनियरिंग आदि मानने लगते हैं। आम लोग इसी अर्थ में विज्ञान और कला के बीच अंतर करते हैं। लेकिन बेहतर होगा कि वैज्ञानिकों को यह समझाने दिया जाए कि विज्ञान क्या है। विज्ञान की कुछ परिभाषाएँ नीचे दी गई हैं:

  1. बीसांज़, जे और बेसांज़, एम। यह सामग्री के बजाय दृष्टिकोण है जो विज्ञान की परीक्षा है।
  2. हरा, विज्ञान जांच का एक तरीका है।
  3. सफेद। विज्ञान वैज्ञानिक है।
  4. वेनबर्ग और शबात। विज्ञान दुनिया को देखने का एक खास तरीका है।
  5. कार्ल पियर्सन। विज्ञान की एकता इसकी पद्धति में ही निहित है, इसकी प्रकृति में नहीं।

इन वैज्ञानिकों के अलावा कार्ल, चर्चमैन, एकॉफ, गिलिन और गिलिन और कई सामाजिक मानवशास्त्रियों ने भी विज्ञान को पद्धति माना है। यह विधि के कारण है कि यह कला से भिन्न है। यह पद्धति के कारण ही है कि सभी विज्ञान, भले ही उनके अलग-अलग क्षेत्र हों, विज्ञान कहलाते हैं।

वैज्ञानिक पद्धति के चरण

वैज्ञानिक पद्धति एक सीमित दायरे में किसी विषय वस्तु का व्यवस्थित अध्ययन है। इस पद्धति के लिए बड़े धैर्य, साहस, कठिन श्रम, रचनात्मक कल्पना और वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिक प्रणाली पर काम शुरू करने से पहले कोई भी व्यक्ति वैज्ञानिक धारणा के बिना वैज्ञानिक प्रणाली का उपयोग नहीं कर सकता; एक शोधार्थी को उस समस्या को बारीकी से परिभाषित करना चाहिए जो उसके शोध का विषय है। परिभाषा जितनी स्पष्ट होगी शोध कार्य उतना ही सरल होगा। वैज्ञानिक विधि के मुख्य चरण नीचे दिए गए हैं:

  1. अवलोकन: वैज्ञानिक प्रणाली में पहला कदम अनुसंधान की विषय वस्तु का बारीकी से और सावधानीपूर्वक निरीक्षण करना है। इस अवलोकन को अक्सर उपकरणों की सहायता की आवश्यकता होती है। ये उपकरण सटीक होने चाहिए।
  2. रिकॉर्डिंग: वैज्ञानिक प्रणाली में आवश्यक दूसरा चरण इस अवलोकन को सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड करना है। इसे करने में एक निष्पक्ष निष्पक्षता बहुत आवश्यक है।
  3. वर्गीकरणः तत्पश्चात् एकत्रित सामग्री का वर्गीकरण एवं संगठन करना होगा। यह बहुत ही गंभीर कदम है। कार्ल पियर्सन के शब्दों में, “तथ्यों का वर्गीकरण, उनके अनुक्रम और सापेक्ष महत्व की पहचान विज्ञान का कार्य है।” वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है कि बिखरे हुए तत्वों में एक संबंध और समानता देखी जा सके। इस प्रकार विषय वस्तु को तार्किक आधार पर व्यवस्थित किया जाता है।

 

 

  1. सामान्यीकरण: एक वैज्ञानिक प्रणाली में चौथा चरण एक सामान्य नियम खोजना या वर्गीकृत मामले में समानता के आधार पर सामान्यीकरण करना है। इस सामान्य नियम को वैज्ञानिक सिद्धांत कहा जाता है। मैकाइवर के शब्दों में, “इस तरह का कानून सावधानीपूर्वक वर्णित और समान रूप से आवर्ती स्थितियों के अनुक्रम का दूसरा नाम है”।
  2. सत्यापन: सामान्यीकरण करने के बाद एक वैज्ञानिक प्रणाली बंद नहीं होती है। इन सामान्यीकरणों का सत्यापन भी आवश्यक है। वैज्ञानिक सिद्धांतों को सत्यापित किया जा सकता है और ऐसा सत्यापन उनकी आवश्यक शर्त है जिसके बिना उन्हें वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता।

विज्ञान की अनिवार्यता

वैज्ञानिक कहलाने के लिए किसी भी अध्ययन की क्या आवश्यकताएँ हैं, यह अब वैज्ञानिक पद्धति की उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट हो गया है। विज्ञान के आवश्यक तत्व या विशेषताएँ नीचे दी गई हैं:

  1. वैज्ञानिक पद्धति: जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि किसी भी विषय को उसकी विषय वस्तु के कारण नहीं बल्कि वैज्ञानिक पद्धति के कारण विज्ञान कहा जाता है।
  2. तथ्यात्मक: विज्ञान तथ्यों का अध्ययन है। यह वास्तविक सत्य की खोज करता है। इसकी विषयवस्तु आदर्श नहीं बल्कि तथ्यपरक है।
  3. सार्वभौम वैज्ञानिक सिद्धांत सार्वभौम होते हैं। वे सभी देशों में और हर समय रुए पाए जाते हैं।
  4. तार्किक : एक वैज्ञानिक नियम सत्यात्मक होता है। इसकी सत्यता की कभी भी जांच की जा सकती है। जितनी बार इसकी जांच की जाएगी, उतनी बार यह सच साबित होगा।
  5. कार्य-कारण संबंध की खोजः विज्ञान अपनी विषय वस्तु में कारण और प्रभाव के संबंधों की खोज करता है और उसी संबंध में एक सार्वभौमिक और सत्यापित नियम प्रस्तुत करता है।
  6. भविष्यवाणी: विज्ञान सार्वभौमिक और सत्यापित नियमों के आधार पर कारण-प्रभाव संबंध के विषय पर भविष्यवाणी कर सकता है। कार्य-कारण में इसी विश्वास पर ही विज्ञान की नींव टिकी है। वैज्ञानिक जानता है कि ‘क्या होगा’ के आधार पर ‘क्या होगा’ का निर्णय किया जा सकता है क्योंकि कार्य-कारण का नियम सार्वभौम और अपरिवर्तनीय है।

 

 

 

एक विज्ञान के रूप में सामाजिक नृविज्ञान

उपरोक्त छह मूल सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक मानव विज्ञान की एक परीक्षा से पता चलता है कि सामाजिक मानव विज्ञान में विज्ञान के सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं।

  1. सामाजिक मानव विज्ञान वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करता है: सामाजिक मानव विज्ञान के सभी तरीके वैज्ञानिक हैं। वे वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं

तकनीक जैसे अनुसूची, प्रतिभागी अवलोकन, ऐतिहासिक प्रक्रिया और केस इतिहास आदि। सबसे पहले, वे अवलोकन के माध्यम से तथ्यों को इकट्ठा करते हैं। फिर उन्हें एक व्यवस्थित रूप में दर्ज किया जाता है। बाद में इस मामले को वर्गीकृत किया जाता है और अंत में स्वीकृत तथ्यों के आधार पर सामान्य सिद्धांत बनाए जाते हैं। इन सिद्धांतों की वैधता की जांच की जाती है।

  1. सामाजिक नृविज्ञान तथ्यात्मक है: सामाजिक नृविज्ञान सामाजिक घटनाओं, संबंधों और प्रतिक्रियाओं के बारे में तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन है। सहभागी अवलोकन इसकी मुख्य विधि है। इस पद्धति में एक मानवविज्ञानी उन लोगों के बीच रहने जाता है जिनका उसे अध्ययन करना होता है। इस प्रकार उनका अध्ययन तथ्यों के अनुरूप है।

 

 

  1. सामाजिक मानव विज्ञान के सिद्धांत सार्वभौमिक हैं: सामाजिक मानव विज्ञान के नियम सभी देशों में तब तक सिद्ध होते हैं जब तक परिस्थितियाँ समान हैं; उनमें अपवाद की गुंजाइश ही नहीं है।
  2. सामाजिक मानव विज्ञान के सिद्धांत सत्य हैं: इस प्रकार सामाजिक मानव विज्ञान के सिद्धांत हमेशा सत्यापन पर और यहां तक ​​कि पुन: सत्यापन पर भी सही साबित होते हैं। उनकी वैधता को किसी को भी और किसी भी समय सत्यापित किया जा सकता है।
  3. सामाजिक नृविज्ञान कारण प्रभाव संबंधों को परिभाषित करता है: सामाजिक नृविज्ञान सामाजिक तथ्यों, घटनाओं और संबंधों आदि में कारण-प्रभाव संबंधों की खोज करता है, उदाहरण के लिए, एक मानवविज्ञानी, विभिन्न संस्कृतियों के अपने तुलनात्मक अध्ययन के बाद हमें एक विशेष में पाई जाने वाली जीवन शैली के बारे में बताता है। संस्कृति और किस हद तक जीवन शैली में संस्कृति परिवर्तन के साथ परिवर्तन होता है। इस प्रकार, सामाजिक मानव विज्ञान ‘क्या’ के साथ ‘कैसे’ का उत्तर देता है।
  4. सामाजिक मानवविज्ञान भविष्यवाणी कर सकता है: कारण-प्रभाव संबंध के आधार पर, सामाजिक मानवविज्ञानी भविष्य का अनुमान लगा सकता है और सामाजिक प्रतिक्रियाओं और घटनाओं आदि के बारे में भविष्यवाणी कर सकता है। वह बाद में ‘क्या होगा’ के आधार पर ‘क्या होगा’ तय कर सकता है। कारण-प्रभाव संबंधों को जानना।

उदाहरण के लिए, सांस्कृतिक परिवर्तन को देखकर, वह जीवन पद्धति में बदलाव के बारे में भविष्यवाणी कर सकता है।

सामाजिक मानव विज्ञान की प्रकृति की पूर्वोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि सामाजिक मानव विज्ञान एक विज्ञान है। इसमें विचारों का अमूर्त रूप होता है। अमूर्त रूपों से ही वैज्ञानिक अध्ययन संभव है। इन अमूर्त रूपों के नियम ठोस चीजों की प्रतिक्रिया तय करते हैं। इस प्रकार सामाजिक मानवविज्ञान के नियम व्यावहारिक रूप में सार्वभौमिक और सत्य हैं। सामाजिक मानवविज्ञान ने मनोवैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों और समाज सुधारकों की धारणाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है, भविष्य में मानव समाज के संगठन के लिए एक आशा दी है और इसके संगठन के पैटर्न को तय करने के लिए उपयोगी सुझाव प्रस्तुत किए हैं।

सामाजिक नृविज्ञान के उद्देश्य

सामाजिक नृविज्ञान का प्राथमिक उद्देश्य मानव प्रकृति के बारे में जानकारी एकत्र करना है। मानव प्रकृति एक विवादास्पद विषय है। विभिन्न विद्वानों ने मानव प्रकृति के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया है। आदिम मनुष्य और समाज मानव प्रकृति को उसके सबसे अल्पविकसित और कच्चे रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसलिए उनका अध्ययन उन पर संस्कृति के अधिक प्रभाव के बिना मानव प्रकृति के बुनियादी अनिवार्यताओं की समझ के लिए उपयोगी है।

सामाजिक नृविज्ञान का एक अन्य उद्देश्य सांस्कृतिक संपर्कों की प्रक्रियाओं और परिणामों का अध्ययन है। अधिकांश आदिम समाज धीरे-धीरे अधिक विकसित संस्कृतियों के संपर्क में आ रहे हैं। यह संपर्क धीरे-धीरे सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याएं और अव्यवस्था पैदा कर रहा है। सांस्कृतिक संपर्कों की प्रक्रियाओं और परिणामों को समझने में प्रशासकों और सामाजिक योजनाकारों को सामाजिक मानवविज्ञानी की मदद की आवश्यकता होती है। ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की रॉयल एंथ्रोपोलॉजिकल सोसाइटी के अनुसार सामाजिक मानव विज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. आदिम संस्कृति का वर्तमान स्वरूप में अध्ययन।
  2. सांस्कृतिक संपर्क और विशिष्ट प्रक्रियाओं का अध्ययन।

 

 

इसमें सांस्कृतिक परिवर्तन पैदा करने वाले बाहरी समूहों के प्रभावों की खोज शामिल है।

  1. सामाजिक इतिहास का पुनर्निर्माण।
  2. सार्वभौमिक रूप से मान्य सामाजिक कानूनों की खोज करें।

इस प्रकार सामाजिक नृविज्ञान का मुख्य उद्देश्य मानव समाज, सामाजिक संस्थाओं, संस्कृति और रिश्तेदारी के बंधनों का उनके सबसे प्रारंभिक रूप में अध्ययन करना है। वर्तमान समय के मानव समाजों की समझ के लिए उपयोगी होने के अलावा, यह मानव इतिहास के साथ-साथ सामाजिक संस्थाओं की प्रकृति के बारे में हमारे ज्ञान में सहायता करता है। इसलिए सामाजिक मानव विज्ञान का इतिहास और पुरातत्व से गहरा संबंध है।

 

 

आदिम समाजों के अध्ययन की उपयोगिता

सामाजिक मानवविज्ञान का प्राथमिक उद्देश्य आदिम लोगों, उनके द्वारा बनाई गई संस्कृतियों और उन सामाजिक व्यवस्थाओं को समझना है जिनमें वे रहते हैं और कार्य करते हैं।” इस प्रकार सामाजिक मानवविज्ञान मुख्य रूप से आदिम समाजों के अध्ययन पर केंद्रित है।

राल्फ पिडिंगटन आदिम समाजों की निम्नलिखित विशेषताओं की ओर इशारा करते हैं:

  1. आदिम समाजों की प्राथमिक विशेषता निरक्षरता और लेखन या साहित्य का अभाव है।
  2. आदिम समाजों का सामाजिक संगठन छोटे समूहों जैसे गोत्रों, जनजातियों के कुलदेवता आदि पर आधारित होता है।
  3. विकास का तकनीकी स्तर बहुत कम है।
  4. स्थानीयता और रक्त संबंधों पर आधारित सामाजिक रिश्ते मो

सेंट महत्वपूर्ण।

  1. आम तौर पर आर्थिक विशेषज्ञता का अभाव और श्रम का बहुत अधिक विभाजन होता है।

इस प्रकार आदिम समाज छोटे समुदाय हैं। रॉबर्ट रेडफील्ड ने इसे “लोक समाज” कहा है। उनके अनुसार व्यवस्थित कला, विज्ञान और धर्मशास्त्र का अभाव भी आदिम समाजों की विशेषताएं हैं।

 

नृविज्ञान की उत्पत्ति और विकास

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में

INTRODUCTION TO SOCIOLOGY: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R2kHe1iFMwct0QNJUR_bRCw

SOCIAL CHANGE: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R32rSjP_FRX8WfdjINfujwJ

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

रचनात्मक चरण (1920-1949)

 

 

 

 

 

विश्लेषणात्मक अवधि (1950-1990)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

फोकस समूहों की भूमिका

फ़ोकस समूहों का उपयोग अध्ययन के प्रारंभिक या खोजपूर्ण चरणों में किया जा सकता है (क्रेउगर 1988); एक अध्ययन के दौरान, शायद गतिविधियों के एक विशेष कार्यक्रम का मूल्यांकन या विकास करने के लिए (रेस एट अल 1994); या किसी कार्यक्रम के पूरा होने के बाद, उसके प्रभाव का आकलन करने के लिए या अनुसंधान के आगे के रास्ते उत्पन्न करने के लिए।

फोकस समूह परिकल्पनाओं (पॉवेल एंड सिंगल 1996) का पता लगाने या उत्पन्न करने में मदद कर सकते हैं और प्रश्नावली और साक्षात्कार गाइड (हॉप एट अल 1995; लंकशियर 1993) के लिए प्रश्न या अवधारणा विकसित कर सकते हैं। हालांकि वे पूरी आबादी के लिए निष्कर्षों को सामान्यीकृत करने की उनकी क्षमता के संदर्भ में सीमित हैं, मुख्य रूप से भाग लेने वाले लोगों की कम संख्या और प्रतिभागियों के प्रतिनिधि नमूना नहीं होने की संभावना के कारण

 

 

 

अवलोकन

( Observation )

प्राकृतिक विज्ञानों की भांति , सामाजिक विज्ञानों में भी अवलोकन के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता निरीक्षण पद्धति का प्रयोग समाजवैज्ञानिक द्वारा वर्ग , समुदाय , स्त्रीपुरुष , संस्थाओं के अध्ययन के लिए किया जा रहा है जैसेजैसे प्राधुनिक यन्त्रों का सामाजिक अनुसंधान में प्रयोग होता जा रहा है , अवलोकन पद्धति को उतना ही महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जा रहा है ऐसी अनेक पद्धतियों की खोज हुई है जिनके द्वारा निरीक्षण अधिक विश्वसनीय होता जा रहा है अवलोकन ग्रेजी शब्द ‘ Observation ‘ का पर्यायवाची है , जिसका अर्थ निरीक्षण करना है अग्रेजी शब्दकोष के अनुसार , ” कार्यकारण अथवा पारस्परिक सम्बन्ध को जानने के लिए घटनामों को ठीक अपने उसी रूप में देखना और उनका पालम मारना , अवलोकन कहलाता है अवलोकन सामाजिक यथार्थ ( Social Reality ) से सम्बन्धित तथ्यों के संकलन की एक ऐसी विधि है जिसमें कानों और ध्वनि की अपेक्षा नेत्रों का प्रयोग निहित होता है इसके अन्तर्गत घटनाएँ जिस रूप में होती हैं , उसे उसी रूप में देखना , निरीक्षण , परीक्षण आलेखन करना होता है जैसेबाल श्रमिकों के जीवन का अवलोकन , विधवाओं के साथ किया जानेवाला व्यवहारों का अवलोकन एवं मजदूरमालिक के सम्बन्ध का अवलोकन आदिआदि कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न हैं

 

 

सी . . मोजर के शब्दों में , ” ठोस अर्थ में अवलोकन का अर्थ कानों तथा वाणी की अपेक्षा आँखों का अधिक प्रयोग है

 पी . वी . यंग के अनुसार , ” अवलोकन आँखों द्वारा विचारपूर्वक अध्ययन की प्रणाली के रूप में काम में लाया जाता है जिससे कि सामूहिक व्यवहार और जटिल सामाजिक संस्थानों के साथहीसाथ सम्पूर्णता की रचना करने वाली पृथक इकाइयों का अध्ययन किया जा सके

 

विलियम जे . गडे एवं पॉल के हद्र william J . Goode and Paul K . Hatt ) ने लिखा है , ” विज्ञान का शुभारंभ अवलोकन से होता है और इसे अपनी लिम प्रामाणिकता को जाच हेतु अन्ततः अवलोकन पर ही लौटना पड़ता है सभी विज्ञानों में अवलोकन एक मूलभूत विधि मानी जाती है कोई भी वैज्ञानिक किसी घटना या अवस्था को उस समय तक स्वीकार नहीं करता , जब तक कि वह स्वयं उसका अपनी दृष्टि से अनुभव कर ले

 

 पी०वी० यंग ( P . V . Young ) के शब्दों में , ” अवलोकन आँखों के द्वारा स्वाभाविक घटनाओं का उनके घटित होते समय एक व्यवस्थित एवं सुविचारित अध्ययन है इस परिभाषा से स्पष्ट होता है – ( 1 ) अवलोकन एक व्यवस्थित एवं सुविचारित विधि है ( 2 ) इसमें आखों का प्रयोग मुख्य है ( 3 ) इसमें सामाजिक घटनाओं का उनके स्वाभाविक रूप में अवलोकन किया जाता है इसी रूप में यह एक वैज्ञानिक विधि माना जाता है

 सी०ए० मोजर ( C . A . Moser ) के अनुसार , ” ठोस अर्थ में , अवलोकन में कानों वाणी की अपेक्षा आँखों का उपयोग होता है इस कथन से पता चलता है कि इस विधि में शोधकर्ता कहीसुनी बातों पर विश्वास कर घटनाओं को स्वयं देखकर समझने का प्रयत्न करता है

ऑक्सफोर्ड कन्साइज शब्दकोश ( Oxford Concise Dictionary ) में लिखा है , ‘ ‘ घटनाएं , कार्यकारण अथवा पारस्परिक सम्बन्धों के विषय में जिस रूप में उपस्थित होती हैं , का यथार्थ निरीक्षण एवं वर्णन ही अवलोकन है

इससे स्पष्ट होता है ( 1 ) अवलोकन में यथार्थ निरीक्षण एवं वर्णन रथ जाता है ( 2 ) इसमें व्यवहार का अध्ययन स्वाभाविक स्थितियों में होता है ( 3 ) इसमें कार्य कारण सम्बन्धों को जाने का प्रयास किया जाता है

 

 जे० गाल्लुंग ( J . Galtung ) के अनुसार , ” अवलोकन सभी प्रकार की इंद्रियग्राह्य विषयवस्तु का आलेखन है इससे स्पष्ट होता है कि अवलोकन की प्रक्रिया में शोधकर्ता की सारी ज्ञानेद्रियों सक्रिय होती है इसके अन्तर्गत शोधकर्ता घटना को स्वयं प्रत्यक्ष रूप में से अवलोकित कर आलेखन करता है

वुल्फ ( A . Wolf ) का कहना है , ” वस्तुओं तथा घटनाओं . उनकी विशेषताओं एवं उनके मूर्त सम्बन्धों को समझने और उनके सम्बन्ध में हमारे मानसिक अनुभवों की प्रत्यक्ष चेतना को जानने की क्रिया को अवलोकन कहते हैं इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि अवलोकन के द्वारा मात्र घटनाओं को देखा ही नहीं जाता है , बल्कि उसकी विशेषताओं और अन्तर्सम्बम्धों को जानने का प्रयास भी किया जाता है उपरोक्त वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अवलोकन एक ऐसी विधि है जिसमें नेत्रों के द्वारा प्राथमिक तथ्यों का विचारपूर्वक संकलन किया जाता है

 

सैलिज , जहोदा , डेयुटस्च तथा कुक के अनुसार सामान्य देखना एक वैज्ञानिक पद्धति के रूप में अवलोकन का रूप धारण कर लेता है जब उसमें निम्न विशेषताएँ जुड़ जाती हैं

 

 ( 1 ) जब अवलोकन का एक विशिष्ट उद्देश्य हो

( 2 ) जब अवलोकन नियोजित तथा सुव्यवस्थित रूप में किया गया हो

 ( 3 ) जब अवलोकन की प्रामाणिकता तथा विश्वसनीयता पर अावश्यक नियन्त्रण एवं प्रतिबन्ध लगाया गया हो

 ( 4 ) जब अवलोकन के निष्कर्षों को क्रमबद्ध रूप में लिखा गया हो तथा सामान्य उपकल्पना के साथ उसका सहसम्बन्ध स्थापित किया गया हो

 

 पी . वी . यंग ने वैज्ञानिक अवलोकन की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है

 

( 1 ) निश्चित उद्देश्य ,

 ( 2 ) योजना तथा प्रलेखन की व्यवस्था ,

 ( 3 ) वैज्ञानिक परीक्षण तथा नियन्त्रण हेतु उपयोगी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                                         अवलोकन की विशेषताएँ

 ( Characteristics of observation )

 

 अवलोकन में किसी घटना का घटित होते हुए अपनी आँखों से सुव्यवस्थित एवं सुविचारित रूप में देखना ही विशेष रूप से आवश्यक है इसमें निम्नांकित प्रमुख विशेषताएं पाई जाती हैं

  1. निष्पक्षता ( Impartiality ) : अवलोकनकर्ता स्वयं अपनी आँखों से घटना का निरीक्षण करता है उसकी भलीभांति जाँच करता है उसका निर्णय दूसरों के निर्णय या कहनेसुनने पर आधारित नहीं होता स्वयं का सूक्ष्म गहन अध्ययन उसे अभिमति से बचाता है

2.स्वाभाविकता ( Spontaneity ) : अवलोकन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें घटनाओं का अध्ययन उस समय किया जाता है , जिस समय वह घटित होती रहती है इस प्रकार स्वाभाविक घटनाओं का अवलोकन हाना सम्भव हो पाता है

3,इन्द्रियों का उपयोग ( Use of Senses ) : अवलोकन विधि में मानव इन्द्रियों का उपयोग होता है इसमें आँखों , कानों वाणी सभी का उपयोग किया जा सकता है लेकिन विशेषकर आंखों के उपयोग पर अधिक बल दिया जाता है 4. व्यवस्थित एवं सुविचारित अध्ययन ( Systematic and Deliberate Study ) : अवलोकन एक व्यवस्थित एवं सुविचारित अध्ययन की विधि है इसमें अवलोकनकर्ता स्वयं घटनाओं का व्यवस्थित विचारपूर्वक अवलोकन कर तथ्यों का संकलन करता है वह दूसरों की कही हुई या सुनी हुई बातों पर आश्रित नहीं रहता

  1. प्राथमिक सामग्री का संकलन ( Collection of Primary Data ) : अवलोकन विधि के माध्यम से प्राथमिक तथ्य सामग्री को प्राप्त करना होता है अध्ययनकर्ता स्वयं क्षेत्र में जाकर प्रत्यक्ष अध्ययन करता है

6..सूक्ष्मता ( Minuteness ) : अवलोकन विधि में मात्र देखना ही नहीं आता है , बल्कि घटना का गहरा एवं सूक्ष्म अध्ययन भी करना है सूक्ष्म अध्ययन से वह उद्देश्य की प्राप्ति में सफल होता है , अन्यथा इधरउधर भटकता रहता है

7.कारणपरिणाम सम्बन्ध का पता लगाना ( To find out the Cause – Effect Relationship ) : अवलोकन की एक प्रमुख विशेषता कारणपरिणाम का पता लगाना है अवलोकनकर्ता स्वयं घटना को देखकर आवश्यक कारणों परिणामों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है

7.अनुभवाश्रित अध्ययन ( Empirical Study ) : अवलोकन अनुभव पर आधारित विधि है . कल्पना पर आधारित नहीं अनुभवाश्रित अध्ययन चाहे किसी संस्था का हो या समुदाय का , सामाजिक अनुसंधान में बड़ा उपयोगी है

 

 

 

 

 

अवलोकन विधि का महत्त्व या गुण

 ( Importance or Merits of Observation Method )

 

अवलोकन विधि सभी वैज्ञानिक अन्वेषणों का आधार है विज्ञान की शुरुआत अवलोकनों के द्वारा ही हुई है सामाजिक अनुसंधान में अवलोकन विधि का विशेष महत्त्व है यह विधि मानवीय व्यवहार सामाजिक घटना को जितनी सरल पर निर्भर नहीं रहना पर से प्राप्त कर सकता है इस वैतानिकता से प्रकट कर पाता है , उतनी अन्य कोई भी विधि नहीं कर पाती है इस विधि के महत्त्वों या गुणा के दिनांकित रूप में समझा जा सकता है

  1. विस्तृत प्रचलन ( Wider Use ) : अवलोकन विधि का उपयोग लगभग सभी प्रकार के विज्ञानों में किया जाता है जॉन मेज ( John Madge ) ने लिखा है , ” समस्त आधुनिक विज्ञान अवलोकन पर ही आधारित है ” ( ” All modern science is rooted in observation ” ) आजकल केवल सामाजिक सर्वेक्षणों में ही , बल्कि प्रयोगात्मक अध्ययनों में अवलोकन और भी अधिक प्रचलित होता जा रहा है
  2. सरलता ( Simplicity ) : अवलोकन विधि सबसे अधिक सरल मानी जाती है साधारण प्रशिक्षण के द्वारा व्यक्ति अवलोकन करने में समर्थ हो सकता है अन्य विधियों की भांति इसके प्रयोग में उतनी कठिनाइयाँ नहीं आती हैं एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी इन्द्रियों के प्रयोग के द्वारा घटना का अवलोकन कर सकता है मानव इन्द्रियों के प्रयोग के द्वारा घटना का अवलोकन सर्वाधिक सरल है ( 8 ) वैज्ञानिक ज्ञान का आधार ( Basis of Scientific Knowledge ) : प्रायः सभी वैज्ञानिक मानते हैं कि अवलोकन सभा वैज्ञानिक अन्वेषणों का आधार है विज्ञान की शरुआत अवलोकन के द्वारा ही हुई है साथ ही सिद्धांतों की सत्यता का परीक्षा के लिए भी अवलोकन की जरूरत पड़ती है जिस किसी विषय ( Discipline ) को विज्ञान का दर्जा पाना होता वह अधिकसेअधिक अवलोकन के प्रयोग पर जोर देता है उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि अवलोकन विधि सामाजिक अनुसंधान की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विधि माना सा हा सी . . मोजर ( CAMoser ने लिखा है , ” अवलोकन वैज्ञानिक खोज की एक अत्यन्त उच्च कोटि की विधि सकता है

 

3.अध्ययन की प्रत्यक्ष विधि ( Direct Method of Studi : अवलोकन विधि में अनसंधानकर्ता स्वयं घटनाआ वलोकन कर स्थिति का जायजा ले सकता है इसके अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता को सुचनादाता के अनुभवों तथा उत्तरा  नहीं रहना पड़ता हा माजर का कहना है कि व्यक्तियों की दैनिक क्रियाओं का अवलोकन समाजशास्त्रियों का पकार के तथ्य प्रदान करन सक्षम होता है , जो कि वह किसी अन्य साधन द्वारा कठिनाई से ही विश्वसनीय रूप कर सकता है इस रूप में अवलोकन सर्वाधिक उपयोगी है

  1. स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन ( Studyof Natural Behaviour ) : अवलोकन विधि के द्वारा मानवीय व्यवहारउनकी स्वाभाविक स्थिति अध्ययन किया जाना सम्भव है , जो कि किसी अन्य विधि द्वारा नहीं किया जा सकता जिन जीवन इतिहास तथा गहन साक्षात्कारों के द्वारा भी वह वास्तविकता नहीं पाती . जो कि अवलोकन के द्वारा आती है
  2. गहन अध्ययन ( Intensive Study ) : अवलोकन विधि गहराई के साथ घटना की व्याख्या में सहायक होता है का मल कारण यह है कि अनुसंधानकर्ता स्वयं घटना स्थल पर उपस्थित रहता है साथ ही वह केवल घटने वाला लाओं को ही नहीं देखता है , बल्कि उन घटनाओं के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों को भी समझने का प्रयास करता ऐसी स्थिति में अवलोकन द्वारा गहन अध्ययन स्वाभाविक रूप में हो जाता है
  3. यथार्थता और विश्वसनीयता ( Accuracy and Reliability ) : अवलोकन विधि द्वारा एकत्रित सूचनाएँ अन्य विधियों की तुलना में अधिक यथार्थ एवं विश्वसनीय होती हैं अन्य विधियों में अनसंधानकर्ता को सूचनादाता पर निर्भर रहना पड़ता है सुनी हुई घटना का वृत्तान्त गलत हो सकता है लेकिन जिस घटना को अवलोकनकर्ता ने स्वयं देखा परखा है , उसे गलत होने की सम्भावना नहीं के बराबर है यही कारण है कि इस विधि द्वारा प्राप्त सूचनाएं अधिक यथार्थ एवं विश्वसनीय होती हैं
  4. प्राक्कल्पना के निर्माण में सहायक ( Helpful in the Formation of Hypothesis ) : विज्ञान की बहुत सी प्राक्कल्पनाओं का जन्म घटनाओं के अवलोकनों के द्वारा ही हुआ है प्राक्कल्पनाओं का निर्माण वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रथम चरण है इस निर्माण कार्य में अवलोकन विधि का विशेष महत्त्व है इसका कारण यह है कि अवलोकन बारबार करने से अनुसंधानकर्ता के अनुभव में वृद्धि होती है इस अनुभव के आधार पर प्राक्कल्पनाओं का निर्माण करना सम्भव होता है

SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में

INTRODUCTION TO SOCIOLOGY: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R2kHe1iFMwct0QNJUR_bRCw

SOCIAL CHANGE: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R32rSjP_FRX8WfdjINfujwJ

 

अवलोकन विधि की सीमाएँ या दोष

( Limitations or Demerits of Observation Method )

 वलोकन विधि का सामाजिक अनसंधान में एक विशेष महत्त्व है , फिर भी इस विधि की अपनी कुछ सीमा हैं इस विधि का दोष बन जाता है इसकी सीमाओं का उल्लेख करते हुए पी०वी० यंग ( P . V . Young ) ने लिखा है सभी घटनाए अवलोकन के लिए स्वतंत्र अवसर प्रदान नहीं करतीं . सभी घटनाएँ जिनका अवलोकन किया जा सकता , उस समय नहीं घटती जब अवलोकनकर्ता उपस्थित होता है , सभी घटनाओं का अध्ययन अवलोकन विधियों के दाम किया जाना सम्भव नहीं है इस प्रकार अवलोकन विधि का प्रयोग प्रत्यक स्थिति में नहीं किया जा सकता है इसके प्रमुख दोषों या सीमाओं को निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है

  1. अमूर्त घटनाओं के लिए अनुपयुक्त : कुछ घटनाएँ अमूर्त होती हैं जिनका कि अवलोकन हो ही नहीं सकता जैसेव्यक्तियों के विचारों , विश्वासों , मनोवृत्तियों मूल्यों आदि ऐसे विषय हैं जिन्हें देखा जाना सम्भव नहीं है अत : ऐसे समस्याओं के अध्ययन में अवलोकन विधि अनुपयुक्त सिद्ध होती है

 2.अभिमति की सम्भावना : अवलोकन विधि द्वारा अध्ययन में अनुसंधानकर्ता स्वतंत्रसा होता है तथ्यों घटनाओं को देखने में प्रत्येक व्यक्ति का नजरिया अलगअलग हो सकता है एक व्यक्ति जिस संस्कृति में पलता है , उसका प्रभाव उसके दृष्टिकोण पर पड़ता है अत : अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत अभिमति का प्रभाव अवलोकित तथ्य पर पड़ सकता है जो कि वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए हानिकारक है

  1. व्यवहारों में कृत्रिमता : साधारणतया ऐसा पाया जाता है कि जिन व्यक्तियों का अवलोकन किया जा रहा है , जब कभी उन्हें इस बात का आभास हो जाता है , तब वे जानबूझकर बनावटी व्यवहार प्रदर्शन करने का प्रयत्न करते हैं ऐसी स्थिति में अवलोकन द्वारा उनके वास्तविक एवं स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन कठिन हो जाता है
  2. भ्रामक निरीक्षण : अवलोकन आँखों के प्रयोग पर निर्भर है लेकिन आँखों द्वारा देखी हुई घटना का विवरण भ्रामक हो सकता है अधिकांश अवलोकन चयनात्मक ढंग से किया जाता है अतः एक घटना जो एक व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण होती है , सम्भव है वह दूसरे के लिए कोई महत्त्व नहीं रखती हो इस प्रकार भ्रामक निरीक्षण अवलोकन विधि का दोष है
  3. अधिक समय लेनेवाली एवं खर्चीली विधि : अवलोकन विधि में अध्ययन की गति धीमी होती है विश्वसनीय निरीक्षण जल्दबाजी में सम्भव नहीं है इसके द्वारा अध्ययन में काफी समय लगता है समय अधिक लगने के वजह से इसमें खर्च भी अधिक होते हैं इस प्रकार अवलोकन विधि की अपनी कुछ सीमाएँ या दोष हैं इसके बाबजूद यह सभी प्रकार के अनुसंधानअध्ययनों की प्रारंभिक एवं आधारभूत विधि है अधिकांश वैज्ञानिक ज्ञान का संचय इसी विधि के द्वारा किया गया है यदि अनुसंधानकर्ता सूझबूझ ईमानदारी के साथ इस विधि का उपयोग करे तो इसके दोषों से बचा जा सकता है
  4. अवलोकन की अनुमति नहीं : कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिनका अवलोकन हेतु अनुसंधानकर्ता को अनमति प्राप्त नहीं होती है जैसेपारिवारिक जीवन में पतिपत्नी के सम्बन्ध का अवलोकन करने की अनुमति , अनुसंधानकर्ता को नहीं भी दी जा सकती है इस प्रकार ऐसी घटनाओं का अध्ययन अवलोकन विधि द्वारा करना कठिन है
  5. घटनाओं की अनिश्चितता : कछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो अनिश्चित होती हैं ऐसी घटनाओं का अध्ययन अवलोकन विधि द्वारा सम्भव नहीं है जैसेकॉलेज में लड़ाईझगड़े का अध्ययन अनुसंधानकर्ता करना चाहता है हो सकता है कि जब अनुसंधानकर्ता कॉलेज में मौजूद हों तो घटना घटे और जब अनुसंधानकर्त्ता रहे , तो घटना घट जाए
  6. भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन सम्भव नहीं : अवलोकन विधि द्वारा अनुसंधानकर्ता प्रत्यक्ष रूप में जो कुछ देखता है , उसी का अध्ययन करता है इसलिए भूतकाल में जो घटनाएं घटी हों या जो स्थितियाँ उत्पन्न हुई हों , उसका अध्ययन अवलोकन विधि द्वारा नहीं किया जा सकता है

 

अवलोकन विधि के प्रकार

( Types of Observation Method )

 अवलोकन योग्य सामाजिक घटनाओं की प्रकृति विविध एवं जटिल है फलस्वरूप सामाजिक अनुसंधान में अवलोकन के कई रूपों का विभिन्न स्थितियों में प्रयोग किया गया है अत : अवलोकन के अनेक प्रकार बतलाए जाते हैं अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इसे निम्न रूप में समझा जा सकता है

 

( 1 ) अनियन्त्रित अवलोकन ( Uncontrolled Observation ) ,

 ( 2 ) नियन्त्रित अवलोकन ( Controlled Observation ) ,

 ( 3 ) सहभागी अवलोकन ( Participant Observation ) ,

( 4 ) असहभागी अवलोकन ( Non – Participant Observation ) ,

( 5 ) अर्द्धसहभागी अवलोकन ( Quasi – Participant Observation )

( 6 ) सामूहिक अवलोकन ( Collective Observation )

 

 

 ( 1 ) नियंत्रित अवलोकन ( Controlled Observation ) : नियंत्रित अवलोकन में अवलोकनकर्ता एवं अवलोकन करना वाली सामाजिक घटना पर नियंत्रण किया जाता है अवलोकनकर्ता पर नियंत्रण के लिए कई प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता है , जैसेअवलोकन की विस्तृत योजना बना लेना , अनुसूची प्रश्नावली का प्रयोग मानचित्र का प्रयोग क्षेत्रीय नोटस , डायरी , फोटोग्राफ , कैमरा टेपरिकार्डर आदि का प्रयोग सामाजिक घटना पर नियंत्रण के लिए उन परिस्थितियों या घटकों पर नियंत्रण किया जाता है जिनका अवलोकन किया जाना है इस प्रकार एक ऐसे कृत्रिम वातावरण की सष्टि की जाती है जिसमें परिस्थितियाँ या घटक यथावत बनी रहे

 ( 2 ) अनियंत्रित अवलोकन ( Uncontrolled Observation ) : अनियंत्रित अवलोकन में स्वाभाविक वास्तविक जीवन की घटनाओं का सतर्कतापूर्वक अध्ययन किया जाता है इसके अन्तर्गत घटनाएँ जिस रूप में घटित हो रही हैं , उन्हें उसी रूप में देखने का प्रयत्न किया जाता है इसमें तो अवलोकनकर्ता पर और ना ही घटना या परिस्थिति पर नियंत्रण होता है इसके तीन रूप हैं

( 1 ) सहभागी अवलोकन ,

( II ) असहभागी अवलोकन एवं

( III ) अर्द्धसहभागी अवलोकन

 ( 1 ) सहभागी अवलोकन ( Participant Observation ) : इसका प्रयोग सर्वप्रथम लिंडमैन ( Lindeman ) ने 1924 में किया था सहभागी अवलोकन के माध्यम से अध्ययन के लिए अवलोकनकर्ता उस समूह का सदस्य बनता है जिसका अध्ययन करना है समूह की क्रियाओं में भाग लेते हुए अवलोकन करता रहता है सहभागिता के सन्दर्भ में दो विचारधाराएँ हैं प्रथम , अमेरिकन समाज वैज्ञानिकों के अनुसार अपना परिचय को अवलोकनकर्ता गुप्त रखें द्वितीय , भारतीय समाज वैज्ञानिकों के अनुसार अपना परिचय अध्ययनउद्देश्य को गुप्त नहीं रखना चाहिए

 ( II ) असहभागी अवलोकन ( Non – Participant Observation ) : असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता समुदाय या समूह का तो अस्थाई सदस्य बनता है और ही उसकी क्रियाओं में भागीदार बनता है , एक तटस्थ व्यक्ति की तरह घटनाओं को देखता है उसकी गहराई तक पहुंचने का प्रयास करता है

 ( III ) अर्द्धसहभागी अवलोकन ( Quasi Participant Observation ) : अर्द्धसहभागी अवलोकन सहभागी असहभागी अवलोकन का सम्मिलित रूप है इस प्रकार के अवलोकन में अवलोकनकर्ता अध्ययन किए जाने वाले समुदाय या समूह के कुछ कार्यों में भाग लेता है और अधिकांशत : तटस्थ भाव से बिना भाग लिए उसका अवलोकन करता है

 ( 3 ) सामूहिक अवलोकन ( Mass Observation ) : जब अवलोकन कार्य अनेक व्यक्तियों के द्वारा सामूहिक रूप से किए जाते हैं , तब इसे सामूहिक अवलोकन कहा जाता है सामूहिक अवलोकन के अन्तर्गत एक घटना के विभिन्न विषयों से सम्बन्धित अनेक विशेषज्ञ होते हैं ये विशेषज्ञ अपनाअपना अवलोकित तथ्य एक केन्द्रीय व्यक्ति के पास जमा कर देते हैं उस केन्द्रीय व्यक्ति के द्वारा उन एकत्रित तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाता है

 

 

 

 

 

 

अवलोकन के तरीकों की संगठनात्मक अनुसंधान में एक लंबी परंपरा है, और लोग जो कहते हैं कि वे जो कहते हैं [कार्रवाई विज्ञान] के विपरीत ‘वास्तव में’ क्या करते हैं, उसके ‘मोटे विवरण’ (गीर्ट्ज़, 1973) के वादे की पेशकश करते हैं। हालांकि बहुत कम शोधकर्ता एक सैद्धांतिक धारणा का समर्थन करते हैं कि अवलोकन उन्हें ‘इसे देखने (और बताने) की अनुमति देता है कि यह कैसा है’, फिर भी यह विश्वास करने का एक प्रलोभन है कि अवलोकन संबंधी शोध वास्तविक दुनिया के व्यवहारों, घटनाओं पर एक अप्रमाणिक खिड़की प्रदान करता है। और सेटिंग्स यह कहते हुए कि, अवलोकन विधियों का विचारशील और विवेकपूर्ण उपयोग प्राकृतिक सेटिंग्स में क्या हो रहा है यह समझने के लिए सबसे प्रभावी तरीकों में से एक प्रदान करता है। पर्यवेक्षक द्वारा भागीदारी की डिग्री के आधार पर, अवलोकन को सहभागी और गैर-प्रतिभागी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

अवलोकन के तरीके कई रूपों में आते हैं, जिनमें से सहभागी अवलोकन (q.v.) [क्षेत्र अनुसंधान] शायद सबसे व्यापक रूप से जाना जाता है। प्रतिभागी अवलोकन पारंपरिक रूप से नृविज्ञान और विशेष रूप से शिकागो स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी से जुड़ा हुआ है।

 

 

प्रतिभागी अवलोकन एक प्रकार की डेटा संग्रह विधि है जिसे आमतौर पर गुणात्मक अनुसंधान प्रतिमान में किया जाता है। यह कई विषयों, विशेष रूप से सांस्कृतिक मानव विज्ञान में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली पद्धति है। इसका उद्देश्य व्यक्तियों के एक दिए गए समूह (जैसे धार्मिक, व्यावसायिक, उप सांस्कृतिक समूह, या एक विशेष समुदाय) के साथ घनिष्ठ और अंतरंग परिचितता प्राप्त करना है। अभ्यास थ्रू

आम तौर पर समय की एक विस्तारित अवधि में, उनके सांस्कृतिक वातावरण में लोगों के साथ एक गहन भागीदारी। यह विधि सामाजिक मानवविज्ञानी, विशेष रूप से ब्रिटेन में ब्रोनिस्लाव मालिनोवस्की, संयुक्त राज्य अमेरिका में फ्रांज बोस के छात्रों और बाद में शिकागो स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी के शहरी शोध में उत्पन्न हुई।

उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ज़ूनी इंडियंस के अपने अध्ययन में फ्रैंक हैमिल्टन कुशिंग द्वारा सहभागी अवलोकन का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था, इसके बाद गैर-पश्चिमी समाजों के अध्ययन में ब्रॉनिस्लाव मालिनोवस्की, ईई इवांस-प्रिचर्ड और मार्गरेट मीड जैसे लोगों द्वारा किया गया था। बीसवीं सदी की पहली छमाही। यह मानवविज्ञानियों द्वारा नृवंशविज्ञान अनुसंधान के प्रमुख दृष्टिकोण के रूप में उभरा और एक संस्कृति के बारे में सीखने के तरीके के रूप में स्थानीय मुखबिरों के साथ व्यक्तिगत संबंधों की खेती पर निर्भर था, जिसमें एक समूह के सामाजिक जीवन में अवलोकन और भाग लेना शामिल था।

 

जिन संस्कृतियों का उन्होंने अध्ययन किया, उनके साथ रहकर, शोधकर्ता अपने जीवन के पहले खातों को तैयार करने और उपन्यास अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में सक्षम थे। अध्ययन की इसी पद्धति को पश्चिमी समाज के भीतर समूहों पर भी लागू किया गया है, और विशेष रूप से उप-संस्कृतियों या पहचान की एक मजबूत भावना साझा करने वाले समूहों के अध्ययन में सफल है, जहां केवल भाग लेने से पर्यवेक्षक वास्तव में जीवन तक पहुंच प्राप्त कर सकता है जिनका अध्ययन किया जा रहा है।

इस तरह के शोध में अच्छी तरह से परिभाषित, हालांकि परिवर्तनीय विधियां शामिल हैं: अनौपचारिक साक्षात्कार, प्रत्यक्ष अवलोकन, समूह के जीवन में भागीदारी, सामूहिक चर्चा, समूह के भीतर उत्पादित व्यक्तिगत दस्तावेजों का विश्लेषण, आत्म-विश्लेषण, की गई गतिविधियों से परिणाम या ऑनलाइन, और जीवन-इतिहास। यद्यपि इस पद्धति को आम तौर पर गुणात्मक शोध के रूप में वर्णित किया जाता है, इसमें मात्रात्मक आयाम शामिल हो सकते हैं (और अक्सर होते हैं) प्रतिभागी अवलोकन में, एक शोधकर्ता के अनुशासन आधारित रुचियां और प्रतिबद्धताएं आकार देती हैं कि वे किन घटनाओं को महत्वपूर्ण और शोध जांच के लिए प्रासंगिक मानते हैं। हॉवेल (1972) के अनुसार, जिन चार चरणों में अधिकांश प्रतिभागी अवलोकन अनुसंधान अध्ययन करते हैं

प्रतिभागी अवलोकन के प्रकार

सहभागी अवलोकन केवल एक साइट पर दिखाई देना और चीजों को लिखना नहीं है। इसके विपरीत, सहभागी अवलोकन एक जटिल विधि है जिसमें कई घटक होते हैं। डेटा एकत्र करने के लिए प्रतिभागी अवलोकन करने का निर्णय लेने के बाद एक शोधकर्ता या व्यक्ति को सबसे पहले यह तय करना चाहिए कि वह किस प्रकार का प्रतिभागी पर्यवेक्षक होगा। स्प्रेडली पाँच विभिन्न प्रकार के सहभागी प्रेक्षण प्रदान करता है

 

 

 

प्रतिभागी अवलोकन प्रकार

प्रतिभागी अवलोकन का प्रकार भागीदारी का स्तर

गैर-भागीदारी आबादी या अध्ययन के क्षेत्र के साथ कोई संपर्क नहीं

निष्क्रिय भागीदारी शोधकर्ता केवल दर्शक की भूमिका में है

मध्यम भागीदारी शोधकर्ता “अंदरूनी” और “बाहरी” भूमिकाओं के बीच संतुलन बनाए रखता है

सक्रिय भागीदारी शोधकर्ता पूरी समझ के लिए कौशल और रीति-रिवाजों को पूरी तरह से अपनाकर समूह का सदस्य बन जाता है

पूर्ण भागीदारी शोधकर्ता पहले से अध्ययन की आबादी में पूरी तरह से एकीकृत है (यानी वह पहले से ही अध्ययन की गई विशेष आबादी का सदस्य है)।

 

 

गैर-प्रतिभागी अवलोकन

गैर-प्रतिभागी, या प्रत्यक्ष, अवलोकन वह है जहां प्रतिभागियों के साथ बातचीत किए बिना व्यवहार को देखकर डेटा एकत्र किया जाता है। इस प्रकार के अवलोकन में, शोधकर्ता वास्तव में अध्ययन किए जाने वाले समूह की गतिविधियों में भाग नहीं लेता है। वह उत्तरदाताओं के व्यवहार को नोट करने के लिए बस समूह में मौजूद रहेगा। शोधकर्ता अपने और समूह के बीच संबंध को प्रभावित करने या बनाने का कोई प्रयास नहीं करता है।

हालांकि इस पद्धति का तात्पर्य गैर-भागीदारी से है, इसे भागीदारी की पूर्ण या कुल कमी के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। वास्तव में, किसी समूह का कोई गैर-भागीदार अवलोकन नहीं हो सकता है।

इस पद्धति की खूबी यह है कि शोधकर्ता विशुद्ध रूप से निष्पक्ष स्थिति बनाए रख सकता है और गुटबाजी से मुक्त हो सकता है। वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपना सकता है और घटनाओं को उसी दृष्टि से देख सकता है। लेकिन इस पद्धति के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि समूह के सदस्य (अर्थात् वे जो निगरानी में हैं) शोधकर्ता की उपस्थिति के प्रति शंकालु हो सकते हैं और इसलिए अपने स्वाभाविक व्यवहार का प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, गैर-भागीदारी अवलोकन के तहत, पर्यवेक्षक केवल उन्हीं गतिविधियों का अवलोकन कर सकता है जो उसके सामने होती हैं। जब तक उसने समूह के साथ सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया, तब तक वह उन्हें उचित क्रम में समझने में विफल रहता है।

किसी भी प्रतिभागी अवलोकन की सीमाएं

एकत्रित डेटा का विश्लेषण; शोधकर्ता का विश्वदृष्टि निश्चित रूप से प्रभावित करता है कि वह डेटा की व्याख्या और मूल्यांकन कैसे करता है।

 

SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में

INTRODUCTION TO SOCIOLOGY: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R2kHe1iFMwct0QNJUR_bRCw

SOCIAL CHANGE: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R32rSjP_FRX8WfdjINfujwJ

SOCIAL PROBLEMS: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R0LaTcYAYtPZO4F8ZEh79Fl

INDIAN SOCIETY: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R1cT4sEGOdNGRLB7u4Ly05x

SOCIAL THOUGHT: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R2OD8O3BixFBOF13rVr75zW

RURAL SOCIOLOGY: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R0XA5flVouraVF5f_rEMKm_

INDIAN SOCIOLOGICAL THOUGHT: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R1UnrT9Z6yi6D16tt6ZCF9H

SOCIOLOGICAL THEORIES: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R39-po-I8ohtrHsXuKE_3Xr

SOCIAL DEMOGRAPHY: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R3GyP1kUrxlcXTjIQoOWi8C

TECHNIQUES OF SOCIAL RESEARCH: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R1CmYVtxuXRKzHkNWV7QIZZ

*Sociology MCQ 1*

https://youtu.be/6tPX-e1UbnA

*SOCIOLOGY MCQ 3*

**SOCIAL THOUGHT MCQ*

https://youtu.be/yp0lC-1L1qs

*SOCIAL RESEARCH MCQ 1*

https://youtu.be/aRF0bEhGUBI

*SOCIAL RESEARCH MCQ 2*

https://youtu.be/Ckkf90zsQhE

*SOCIAL CHANGE MCQ 1*

https://youtu.be/bEdrw6HsmgY

https://youtu.be/bZ0Ye0-xxuY

https://youtu.be/a9JBI0K7JD0

https://youtu.be/FYRngquimLU

https://youtu.be/-Mvt6_aFosk

https://youtu.be/ghWZ6cexOKQ

https://youtu.be/YrrE1M0zRP4

https://youtu.be/YPq3pMz2psw

https://youtu.be/ZC1W3hBg2YY

https://youtu.be/fyKX7Si9728

*RURAL SOCIOLOGY MCQ*

https://youtu.be/VsCxKN8icS4

*SOCIAL CHANGE MCQ 2*

https://youtu.be/Ibq-W1gtZks

*Social problems*

https://youtu.be/oQO-FT8ZUuw

*SOCIAL DEMOGRAPHY MCQ 1*

https://youtu.be/uXTQsQoLyGQ

*SOCIAL DEMOGRAPHY MCQ 2*

https://youtu.be/CKVXWC5kTH0

*SOCIOLOGICAL THEORIES MCQ*

https://youtu.be/rOCtYsIRCFw

*SOCOLOGICAL PRACTICE 1*

https://youtu.be/4fKB1AaOUgQ

*SOCOLOGICAL PRACTICE 2*

https://youtu.be/U4webXb2q00

*SOCOLOGICAL PRACTICE 3*

https://youtu.be/EpTZmWphD0k

*SOCOLOGICAL PRACTICE 4*

https://youtu.be/B55tT9y36Q4

*SOCOLOGICAL PRACTICE 5*

https://youtu.be/1cODVAv4mmI

*SOCOLOGICAL PRACTICE 6*

https://youtu.be/2Vc_BlmPBsw

*NET SOCIOLOGY QUESTIONS 1*

https://youtu.be/ZMtxLsbR12Q

**NET SOCIOLOGY QUESTIONS 2*

https://youtu.be/7d6eNp9T9Wc

*SOCIAL CHANGE MCQ*

https://youtu.be/7Vk3yBNuO34

*SOCIAL RESEARCH MCQ*

https://youtu.be/w83nDk8-k_0

*SOCIAL THOUGHT MCQ*

https://youtu.be/xg4_9a00Rn8

Attachments area

Preview YouTube video SOCIOLOGY MCQ PRACTICE SET -1

Preview YouTube video SOCIOLOGY MCQ PRACTICE SET -1

OUR TOP COURSES 

 

1.

This course is very important for Basics GS for IAS /PCS and competitive exams 

 

 **Army* 

 *Police** 

 *Group c* 

 *Forest guard* 

 

https://www.udemy.com/course/gk-gs-course-for-all-competetive-exams-in-two-months/?couponCode=BC88E2C64C8ABDBB959E

 

2.

 

*Complete General Studies Practice in Two weeks* 

 

https://www.udemy.com/course/gk-and-gs-important-practice-set/?couponCode=CA7C4945E755CA1194E5

 

3.

 

**General science* *and* *Computer* 

 

 *Must enrol in this free* *online course* 

 

https://www.udemy.com/course/computer-and-science-practice-set/?referralCode=048E245C40 xxx76D77B987A

 

4.

 

**English Beginners* *Course for 10 days* 

 

https://www.udemy.com/course/english-beginners-course-for-10-days/?couponCode=D671C1939F6325A61D67

 

 

5.

 

INTRODUCTION TO SOCIOLOGY

समाजशास्त्र का परिचय 

 

https://www.udemy.com/course/social-thought-in-english/?couponCode=1B6B3E02486AB72E35CF

 

 

 6

 

.SOCIAL THOUGHT IN ENGLISH* 

 

https://www.udemy.com/course/social-thought-in-english/?couponCode=1B6B3E02486AB72E35CF

 

7.

ARABIC BASIC LEARNING COURSE IN 2 WEEKS 

 

https://www.udemy.com/course/urdu-to-arabic-basic-learnings-in-2-weeks/?couponCode=8E9A6484C86EAD0337C4

 

8.

Beginners Urdu Learning Course in 2Weeks

 

https://www.udemy.com/course/learn-hindi-to-urdu-in-2-weeks/?couponCode=6F9F80805702BD5B548F

 

9.

Hindi Beginners Learning in One week

 

https://www.udemy.com/course/english-to-hindi-learning-in-2-weeks/?couponCode=3E4531F5A755961E373A

 

10.

Free Sanskrit Language Tutorial

 

 

 

https://www.udemy.com/course/beginners-sanskrit-learning-course-in-one-week/?referralCode=ED0999261E938E52F663

 

 

Follow this link to join my WhatsApp group: https://chat.whatsapp.com/Dbju35ttCgAGMxCyHC1P5Q

 

Join Teligram group

https://t.me/+ujm7q1eMbMMwMmZl

 

Join What app group for IAS PCS

https://chat.whatsapp.com/GHlOVaf9czx4QSn8NfK3Bz

 

Join Facebook 

https://www.facebook.com/masoom.eqbal.7

 

Instagram link

https://www.instagram.com/p/Cdga9ixvAp-/?igshid=YmMyMTA2M2Y=

 

 

SOCIOLOGY MCQ PRACTICE SET -1

Exit mobile version