सामाजिक अनुसंधान की प्रक्रिया व चरण
( Process or Steps of Sorial Research )
सामाजिक अनुसन्धान की प्राजिम अचारणात्मक विवेचना इसको प्रकृति एवं प्रकार की विधिवत् व्याख्या के उपरान्त पब हम यह समझने का प्रयास करें कि एक सामाजिक अनुसन्धान को किय पर आयोजित किया जाता है । घनेक व्यक्ति जो अनुसन्धान की अवधारणा से परिनित होते हैं , लेकिन वे वस्तुतः सामाजिक अनुसन्धान की वैज्ञानिक प्रक्रिया से अनभिज्ञ ही होते हैं । अतः तथ्यों के संकलन , वर्गीकरण एवं विश्लेषण के रष्टिकोण से अनुसन्धानकर्ता को अनुसन्धान की प्रक्रिया की सम्पूर्ण जानकारी आवश्यक है । सामाजिक अनुसन्धान की प्रक्रिया अनेक चरास होकर गुजरती है एवं पग – पना विधानों ने इन विभिन्न चरणों का उल्लेख भी अलग – अलग ढंग से किया है ।
पी . वी . यंग ने सामाजिक अनुसन्धान का प्रक्रिया का प्रमुख चरणों का उस्लेख किया है जो कि निम्नांकित है
1 . अध्ययन – विषय का निश्चित रूप से सूचीकरण ,
2 , कार्यकारी उपकल्पना का निर्माण ,
3 . वैज्ञानिक प्रविधियों से समस्या का अन्वेषण एवं प्रबलोकन ,
4 . तथ्यों का एकरूपता में पालेखन ,
5 . पालेखित तथ्यों का श्रेणियों अथवा क्रमों में वर्गीकरण ,
6 . वैज्ञानिक सामान्यीकरणों का निर्माण ।
जॉर्ज नुवर्ग ने अपनी प्रमुख कृति ‘ सोशयल रिसर्च ‘ में अनुसन्धान की प्रक्रिया कचार चरणों की व्याख्या की जो कि निम्नलिखित
1 . कार्यकारी उपकल्पना का निर्माण ,
2 . तथ्यों का अवलोकन एवं संकलन ,
3 . संकलित तथ्यों का वर्गीकरण एवं संगठन ,
4 . सामान्यीकरण ।
गिल बानर ने अपनी कृति ‘ इनवेस्टीगेशन प्रॉफ बिजनेस प्रोब्लम ‘ में सामाजिक अनुसन्धान के पांच मूल चरणों का उल्लेख किया है जो कि निम्नांकित है
1 . समस्या की व्याख्या एवं अनुसन्धान को दिशा प्रदान करने हेतु कार्यकारी उपकल्पना का निर्माण
, 2 . यथार्थ तथ्यों का संकलन ,
3 . वर्गीकरण एवं सारणीकरण ,
4 . निष्कर्ष निकालना ,
5 . निष्कर्षों की परीक्षा ।
नाणाणा पार . जी . फ्राँसिस के अनुसार सामाजिक अनुसन्धान के बारह प्रमुख चरण हैं जो कि निम्नलिखित हैं
1 . समस्या क्षेत्र का चयन ,
2 . उस अध्ययन क्षेत्र के बारे में नवीनतम सिद्धान्त तथा ज्ञान की जानकारी ,
3 . समस्या की परिभाषा ,
4 . प्राक्कल्पनाओं का निर्माण ,
5 . औपचारिक तर्कों का निर्माण ,
6 . तथ्यों के स्रोतों का सीमांकन ,
7 . शोध के उपकरणों ( प्रश्नावली , मापन तथा आलेखन के तरीकों ) का निर्माण ,
8 . कल्पित तर्कों का लेखन ,
9 . शोध उपकरणों की पूर्व – जाँच तथा उनमें सम्भावित संशोधन ,
10 . तथ्यों का व्यवस्थित रूप से संकलन ,
11 . तथ्यों का विश्लेषण ,
12 . प्राप्त किए गए निष्कर्षों को लिखना ।
सामाजिक अनुसधान का विशषताए
(Characteristics of Social Research )
1-सामाजिक अनुसंधान एक निरन्तर चलनेवाली प्रक्रिया है । ज्ञान प्राप्त करने के लिए सदैव प्रयास चलता रहता है ।
-2सामाजिक अनुसंधान की सफलता या असफलता से कोई सम्बन्ध नहीं होता ।
3-सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक उपकरणों , प्रविधियों एवं पद्धतियों का सिर्फ उपयोग ही नहीं होता बल्कि नयी प्रविधियों के विकास पर भी जोर दिया जाता है ।
4-सामाजिक अनुसंधान एक तरफ विशुद्ध ज्ञान – प्राप्ति पर जोर देता है तो दूसरी तरफ व्यावहारिक हल भी ढूँढने का प्रयास करता है ।
5-सामाजिक अनुसंधान एक वैज्ञानकि विधि है ।
6- इसके द्वारा सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान की प्राप्ति ही नहीं बल्कि प्राप्त ज्ञान का सत्यापन होता है ।
7- यह विभिन्न सामाजिक घटनाओं या तथ्यों के बीच कार्य – कारण सम्बन्ध स्थापित करता है ।
8-सामाजिक अनुसंधान के द्वारा उपकल्पना को सत्यापित किया जाता है ।
9- इससे प्राप्त निष्कर्षों से नियमों अथवा सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है ।
सामाजिक अनुसंधान के उद्देश्य
( Aims and objectives of Social Research )
सार्वभौमिक नियमों की खोज – सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य उन नियमों की खोज करना होता है जिनसे सामाजिक जीवन एवं सामजिक घटनाएँ नियमित एवं निर्देशित होती है । सामाजिक घटनाएँ भी स्वाभाविक नियमों पर आश्रित होती है । शोध के द्वारा इन नियमों को जानने का प्रयास होता है ।
. सिद्धान्तों का विकास – सामाजिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त तथ्यों के आधार पर वैज्ञानिक अवधारणाओं एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है । व्यावहारिक उद्देश्य – इसका सम्बन्ध ज्ञान के उपयोग से होता है । पी . वी . यंग ने इस सन्दर्भ में लिखा है , “ अनुसंधान का तत्कालीन उद्देश्य सामाजिक व्यवहार को नियन्त्रित करना है । ” सामाजिक अनुसंधान में ज्ञान प्राप्त करके इनके द्वारा समस्याओं के कारणो का पता लगाया जाता है ताकि उसे समाप्त किया जा सके ।
व्यावहारिक एवं उपयोगितावादी दृष्टिकोण का तात्पर्य यह नहीं है कि सामाजिक अनुसंधान का सम्बन्ध विभिन्न सामाजिक समस्याओं से होता है । सामाजिक घटनाओं के बारे में ज्ञान – वृद्धि से इन पर नियंत्रण किया जा है या कल्याणकारी लक्ष्य भी प्राप्त किये जा सकते हैं ।
सामाजिक अनुसंधान के व्यावहारिक एवं उपयोगितावादी उद्देश्य को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है
समस्याओं का हल – सामाजिक अनुसंधान द्वारा समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है । ज्ञान – वृद्धि एवं कार्य – कारण सम्बन्धों के विश्लेषण से समस्या के हल का रास्ता निकलता है ।
. सामाजिक विकास – सामाजिक अनुसंधान सामाजिक योजनाओं की रूपरेखा तैयार करता है जिसे सफलतापूर्वक लागू किया जा सके । सामाजिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि लोगों का सक्रिय सहयोग कितना होता है । इन सारी बातों की जानकारी अनुसंधान से प्राप्त होती है ।
. प्रशासन कार्य में सहायता – मानव सम्बन्धों को बिना जाने प्रशासन कार्य चलाना कठिन होता है । सामाजिक अनुसंधान द्वारा प्रशासन सम्बन्धी विधियों का विकास किया जाता है । इससे प्रशासन के रास्ते में आनेवाली कठिनाइयों का पता चलता है । इस प्रकार सामाजिक अनसंधान प्रशासन कार्य में सहायता देता है ।
सामाजिक घटनाओं पर नियंत्रण – सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में हमारा ज्ञान बहुत सीमित है । सीमित ज्ञान के आधार पर सामाजिक घटनाओं को नियंत्रित करना मश्किल काम है । अनुसंधान के द्वारा हमारे ज्ञान में • वृद्धि होती है जिससे सामाजिक घटनाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है । इस प्रकार सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य सामाजिक घटनाओं पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है ।
. विकल्पों की खोज – सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य सही विकल्पों की खोज करना होता है । किसी भी कार्य को करने तथा समस्या को हल करने के तरीके होते हैं । इन तरीकों से अधिक कुशल और बेहतर तरीके को ढूँढने का काम सामाजिक अनुसंधान के द्वारा होता है । अतः , सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य सत्य विकल्पों की खोज करना है ।
भविष्यवाणी में सहायक – भविष्यवाणी के द्वारा भविष्य में आनेवाली कठिनाइयों से सामना करना आसान होता है । सामाजिक अनुसंधान के द्वारा भविष्य के बारे में अनुमान किया जा सकता है । परिणामस्वरूप भविष्य में उत्पन्न होनेवाली बाधाओं से समायोजन स्थापित करने में सुविधा होती है ।
नवीन ज्ञान की प्राप्ति – सामाजिक अनुसंधान का सबसे प्रमुख उद्देश्य सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करना है । इसके अन्तर्गत विशुद्ध रूप से सामाजिक जीवन के बारे में नवीन तथ्यों पर प्रकाश डालना तथा सत्य की खोज करना होता है ।
. सत्यापन एवं पुनः परीक्षण – सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य पुराने तथ्यों का सत्यापन तथा पुन : परीक्षण होता है । अर्थात् पहले से प्राप्त तथ्य वर्तमान स्थिति में ठीक उसी प्रकार हैं अथवा उनमें कोई परिवर्तन हुआ है इसकी जाँच सामाजिक अनुसंधान द्वारा होता है । इससे भ्रांति पैदा करनेवाले धारणाओं से छुटकारा मिलता है ।
कार्य – कारण सम्बन्ध – सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य विभिन्न घटनाओं के बीच कार्य – कारण सम्बन्ध तथा प्रकार्यात्मक सम्बन्धों की खोज करना है । जब तक इस प्रकार के सम्बन्धों की जानकारी नहीं होती तब तक सामाजिक घटनाओं को नहीं समझा जा सकता ।
सामाजिक अनुसंधान तथा सर्वेक्षण में अन्तर
( Difference between Social Survey and Social Research )
सामाजिक अनुसंधान और सामाजिक सर्वेक्षण दोनों वैज्ञानिक पद्धति है । दोनों में समानता के साथ – साथ विभिन्नताएँ भी पायी जाती है । पहले दोनों में पायी जानेवाली समानताओं की चर्चा करेंगे ।
सेमानताएँ ( Similarities ) :
1 . सामाजिक अनुसंधान तथा सामाजिक सर्वेक्षण दोनों के द्वारा सामाजिक घटनाओं का अध्ययन होता है । दोनों अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति है जिसकी मुख्य विशेषता , अवलोकन , सत्यापन , वस्तनिष्ठता , विश्वसनीयता मक एवं सामान्यीकरण है । 3 . दोनों में नवीन तथ्यों की खोज की जाती है । इससे ज्ञान में वृद्धि होती है । 4 दोनों के द्वारा कार्य – कारण सम्बन्धों को जानने का प्रयास होता है । 5 . दोनों में समान अध्ययन प्रविधि जैसे ; साक्षात्कार , प्रश्नावली , अनुसूची , निदर्शन तथा अवलोकन का उपयोग होता है । 6 . दोनों में पुराने तथ्यों का सत्यापन होता है ।
विभिन्नताएँ ( Differences )
सामाजिक अनुसंधान तथा सर्वेक्षण में समान होने के साथ – साथ इनके बीच कुछ अन्तर भी है । कुछ प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं
– सामाजिक अनुसंधान सैद्धान्तिक विषय पर जोर देता है । इसका सामाजिक सुधार एवं समस्याओं के समाधान एवं कल्याण से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता । इसके विपरीत सामाजिक सर्वेक्षण का सम्बन्ध सामाजिक समस्या , व्याधिशास्त्रीय परिस्थिति एवं उसके समाधान एवं कल्याण से होता है । इसके अन्तर्गत कारणों का विश्लेषण किया जाता है ताकि उनका समाधान हो सके ।
– सामाजिक अनुसंधान दीर्घकालीन होता है । इसका सम्बन्ध क्षणिक अथवा वर्तमान समस्याओं से नहीं होता । सामाजिक सर्वेक्षण तत्कालिक होता है । यह समाज के अविलम्ब समस्याओं से सम्बन्धित होता है ।
– सामाजिक अनुसंधान गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन होता है जबकि सामाजिक सर्वेक्षण विस्तृत अध्ययन होता है । सामाजिक सर्वेक्षण में घटना को गहराई से नहीं देखा जाता
– सामाजिक अनुसंधान से प्राप्त ज्ञान कल्याणकारी हो भी सकता है और नहीं भी इसका उपयोगिता से कोई सम्बन्ध नहीं होता । किन्तु सामाजिक सर्वेक्षण समाज कल्याण से सम्बन्धित होता है ।
– सामाजिक अनुसंधान व्यक्तिगत रूप से सम्पन्न किये जाते हैं । सामाजिक सर्वेक्षण व्यक्ति के अलावे विभिन्न संगठनों तथा सरकारी विभागों द्वारा भी किया जाता है । कुछ संगठन व्यावसायिक रूप से सर्वेक्षण कार्य करते हैं ।
– सामाजिक अनुसंधान दलीय कार्य ( Team work ) नहीं है । यह प्राय : व्यक्तिगत रूप से आयोजित किये जाते हैं । किन्तु सामाजिक सर्वेक्षण दलीय कार्य हैं । सामान्यतः यह अध्ययन दल द्वारा आयोजित किये जाते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि सामाजिक सर्वेक्षण सामूहिक एवं सहयोगी प्रयास है ।
– सामाजिक अनुसंधान का अध्ययन क्षेत्र सामान्य होता है जबकि सर्वेक्षण का सम्बन्ध विशेष क्षेत्र से होता है । अनुसंधान सामान्य अमूर्त एवं सार्वभौमिक अवस्थाओं से सम्बन्धित होता है । दूसरी ओर सर्वेक्षण का सम्बन्ध विशिष्ट व्यक्तियों . स्थानों एवं अवस्थाओं से होता है ।
– सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य शैक्षणिक एवं सैद्धान्तिक होता है जबकि सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य व्यावहारिक एवं उपयोगितावादी होता है । प्रायः सामाजिक अनुसंधान में नवीन ज्ञान हेतु तथ्य संकलित किये जाते हैं । इनका फायदा या नुकसान से कोई सम्बन्ध नहीं होता । किन्तु सामाजिक सर्वेक्षण का सम्बन्ध व्यावहारिक लक्ष्य से होता है ।
– सामाजिक अनुसंधान में घटना या समस्या से सम्बन्धित उपकल्पना का निर्माण अवश्य किया जाता है । किन्त सामाजिक सर्वेक्षण में उपकल्पना का निर्माण आवश्यक नहीं होता । इस सन्दर्भ में पार्क का कहना है कि सामाजिक सर्वेक्षण कभी भी उपकल्पना की परीक्षा नहीं करता बल्कि एक विशेष क्षेत्रों में विद्यमान समस्याओं का केवल विवेचना करता है । इस प्रकार दोनों के प्रकृति में अन्तर है ।