सामाजिक अनुसंधान
( SOCIAL RESEARCH )
‘ अनुसंधान शब्द का सामान्य प्रयोग वस्तुतः वैज्ञानिक अनुसंधान के सन्दर्भ में ही किया जाता है । जे . डब्ल्यू . बेस्ट ने ‘ रिसर्च इन एजकेशन ‘ में लिखा है कि ” विश्लेषण की वैज्ञानिक विधि को अधिक आकारिक , व्यवस्थित एवं गहन रूप में प्रयोग करने को ही अनुसंधान कहा जाता है । ” आगे बेस्ट लिखते हैं ” एक व्यक्ति बिना अनुसंधान किए वैज्ञानिक हो सकता है परन्तु कोई भी व्यक्ति बिना वैज्ञानिक बने अनुसंधान नहीं कर सकता । ” डॉ . सुरेन्द्र सिंह ने लिखा है ‘ अनुसंधान ‘ शब्द का व्युत्पत्तीय अर्थ ‘ बार – बार खोजने ‘ से सम्बन्धित है । ” प्राग्ल भाषा का शब्द Research ( रिसर्च ) भी दो शब्दों से मिलकर बना है जो क्रमश : Re ( री ) एवं Search ( सर्च ) है । अतः प्रनुसंधान का आशय ‘ बार – बार की खोज ‘ या ‘ पुनः की जाने वाली खोज ‘ है । सामाजिक अनुसंधान एक वैज्ञानिक पद्धति है । इसके द्वारा सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान की प्राप्ति तथा विद्यमान ज्ञान में संशोधन होता है । घटनाओं के मल तक पहुँचने के लिए कार्य – कारण सम्बन्धों का पता लगाने का प्रयास किया जाता है । अनसंधान के सम्बन्ध में रेड मैन एवं मौरी ने लिखा है , ” नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यवस्थित प्रयत्न को हम अनुसंधान कहते हैं । ” अनुसंधान में सफलता मिल भी सकती है और नहीं भी मिल सकती । अनुसंधान की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है । इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान से जरूरी नहीं है कि कुछ योगदान हो अथवा लाभ मिले । कहने का तात्पर्य यह है कि इससे प्राप्त ज्ञान से योगदान नहीं भी हो सकता है । किन्तु ज्ञान एवं समझ के निरन्तर प्रयास को ही अनुसंधान कहते हैं । मनुष्य आरम्भ से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है । अपने आसपास के चीजों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है । अनुसंधान का सम्बन्ध वैज्ञानिक खोज से है । शाब्दिक रूप से ‘ अनुसंधान ‘ या Research का अर्थ है बार – बार खोज करना । सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में जब व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ढंग से खोज होता है तो उसे सामाजिक अनुसंधान कहते हैं । इसके सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने – अपने विचार प्रकट किये हैं ।
दि न्यू सेंचुरी डिक्शनरी ‘ के अनुसार , अनुसंधान का अर्थ किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के विषय में विशेष रूप से सावधानी के साथ खोज करना , तथ्यों अथवा सिद्धान्तों का अन्वेषण करने के लिए विषय सामग्री की निरन्तर सावधानी पूर्ण पूछताछ अथवा पड़ताल करना है ।
मोजर के अनुसार , ” सामाजिक घटनाओं एवं समस्याओं के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए किये गये व्यवस्थित खोज को सामाजिक अनुसंधान कहते हैं ।
बोगार्डस ने परिभाषा देते हुए कहा है , ” एक साथ रहनेवाले लोगों के जीवन में क्रियाशील अन्तर्निहित प्रक्रियाओं की खोज करना ही सामाजिक अनुसाधन है । “
पी० वी० यंग ने सामाजिक अनुसंधान की परिभाषा देते हुए लिखा है , ” सामाजिक अनुसंधान एक व्यवस्थित पद्धति है , जिसमें नवीन तथ्यों की खोज एवं पुराने तथ्यों की परीक्षा , उनके क्रमों , पारस्परिक सम्बन्धों , कार्य – कारण व्याख्या तथा उन प्राकृतिक नियमों का विश्लेषण करना होता है जिनसे वे संचालित होती हैं । “
सामाजिक अनुसंधान के उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि यह एक व्यवस्थित पद्धति है जिसके द्वारा नवीन ज्ञान की प्राप्ति , प्राप्त ज्ञान में परिवर्तन एवं तथ्यों का सत्यापन होता है । इसके अन्तर्गत सामाजिक घटनाओं में कार्य – कारण सम्बन्ध , नियमबद्धता तथा पारस्परिक सम्बन्धों का पता लगाया जाता है ।
सामाजिक अनुसंधान के प्रेरक तत्त्व
( Motivating Factors of Social Research )
श्रीमती यंग ने सामाजिक अनुसंधान के चार प्रेरक तत्त्वों का वर्णन किया है
( 1 ) जिज्ञासा ( Curiosity ) — यंग के अनुसार , “ जिज्ञासा मानव मन का मौलिक गुण है तथा मनुष्य के पर्यावरण की खोज के लिए एक बहुत बड़ी चालक शक्ति है । ” जबसे मनुष्य जन्म लेता है उसमें जानने की जिज्ञासा स्वाभाविक होती है । जब वह अपने को नवीन वातावरण में पाता है , नई परिस्थितियों से टकराता है और समुचित वातावरण के धेरे में घिरा रहता है तब नई चीज को समझने का प्रयास करता है । यही बात सामाजिक क्रियाओं और अनुसंधान के पीछे भी है ।
( 2 ) कार्य – कारण के सम्बन्धों का पता लगाने की इच्छा ( Desire to find out the relationships between cause and effect ) – मनुष्य में कार्य – कारण के सम्बन्ध का पता लगाने की तीव्र इच्छा होती है । समाज में यदि कोई घटना घटित
होती है तो वह जन कारणों का पता लगाने की कोशिश करता है जिनके फलस्वरूप वह पहावा घटित हुई , उदाहरण के लिए जघन्य अपराध , चोरी , बलात्कार यादि । इन घटनाबों के पीछे कई कारण हो सकते हैं – जैसे चोरी का कारण गरीबी हो सकता है तो अपराधों के वीके सामाजिक वातावरण उत्तरदायी हो सकता है ।
( 3 ) नवीन परिस्थितियों का उत्पन्न होना ( The rise of new conditions ) – जीवन में नाना प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा होती है जिनके फलस्वरूप नवीन समस्याएँ खड़ी हो उठती है । एक समाज – शास्त्री इसके विवेचन एवं विश्लेषण में सक्रिय हो जाता है । वह समुदायों , संघों का अध्ययन करता है , उनकी आदतों और रिवाजों का गहराई से विश्लेषण करता है और अन्त में तथ्यों सहित प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है । इस प्रकार नवीन घटनाएँ और परिस्थितियाँ उसके अनुसंधान की पृष्ठभूमि बन जाती है ।
( 4 ) नवीन प्रणालियों की खोज तथा प्राचीन प्रणालियों को परीक्षा ( The discovery of new methods and the examination of old methods ) – – सामाजिक अनुसंधान के अन्तर्गत खोज के साधनों में बराबर अनुसंधान करने की पावश्यकता होती है । इससे अनुसंधान को अधिक शुद्ध एवं उपयोगी बनाया जा सकता है । ऐसा अनुसंधान मात्र सामाजिक घटनाओं का अनुसंधान न होकर सामाजिक अनुसंधान प्रणालियों का अनुसंधान होता है । इसकी अावश्यकता , समाज में उत्पन्न हुई नवीन समस्यायों और प्राधुनिक यंत्रों तथा साधनों की प्रगति के कारण है ।
सामाजिक अनुसंधान की आधारभूत मान्यताएँ
( Basic Assumptions of Social Research )
कार्य – कारण का सम्बन्ध ( Relationship of cause and effect ) सामाजिक अनुसंधान में यह मान कर चला जाता है कि सामाजिक घटनाओं के बीच कार्यकारण का सम्बन्ध है । यदि यह कार्य – कारण का सम्बन्ध स्थापित नहीं होता है तो सामाजिक घटनायों को नहीं समझा जा सकता । उदाहरण के लिए जहाँ । निर्धनता होगी वहाँ अपराध भी होंगे । अतः यदि अपराधों को दूर करना है तो सर्वप्रथम गरीबी को दूर करना होगा । यदि जनसंख्या वृद्धि के कारण अज्ञानता व अशिक्षा है तो लोगों को परिवार नियोजन का ज्ञान करवाना होगा , इसके , महत्त्व को समकाना होगा तभी जनसंख्या वृद्धि पर परिवार नियोजन के तरीकों द्वारा रोक लगाई जा सकेगी ।
निष्पक्षता की सम्भावना ( Passibility of Impartialits ) – सामाजिक अनुसंधान में अनुसंधान कर्ता और विषय दोनों ही सम्मिलित हैं । किसी विषय का अध्ययन तभी सम्भव है जब अनुसंवानकर्ता निष्पक्ष होकर उसकी जानकारी करे । उसकी स्वयं की भावनाएं , पूर्व धारणाएं तथा व्यक्तिगत विचार अनुसंधान में परिलक्षित नहीं होने चाहिए । प्रायः देखा गया है कि अनुसंधानकर्ता अपने निरीक्षण और लेखन में तटस्थ होता है । वह वस्तुस्थिति का अवलोकन कर उसके विभिन्न पहलुमों की बारीकी से छानबीन कर , निर्णय पर पहुंचने की कोशिश
सामाजिक घटनामों में क्रमबद्धता ( Sequence in Social Events ) – – सामाजिक घटनाएँ अनायास नहीं घटती हैं । इन घटनामों के पीछे निश्चित नियम माद्धता होती है । यदि उनमें ऐसा कोई क्रम न हो तो हम किसी भी प्रकार उनका पूर्वानुमान नहीं लगा सकते । यह कहना बिलकुल गलत होगा कि प्रत्येक घटना एक दूसरे से सर्वथा स्वतन्त्र और पथक है । जैसे ही क्रम का पता लगता है , हम काफी सही रूप में भविष्यवाणियाँ कर सकते हैं । ।
आदर्श प्रतिरूपों की सम्भावना ( Possibility of Ideal type ) इसमें सामाजिक तथ्यों को आदर्श प्रति रूपों में बाँटा जा सकता है । इन आदर्श प्रतिरूपों के अन्तर्गत कुछ व्यक्तियों का अध्ययन कर उनकी विशेषताओं को समस्त वर्ग पर लागू किया जा सकता है । यदि हम मजदूर वर्ग , विद्यार्थी वर्ग या स्त्री वर्ग को लें तो हमें इन पृथक् – पृथक् वर्गों में उनकी रुचियों के सम्बन्ध मे , व्यवहार व विचारों के सम्बन्ध में काफी समानता एवं सामंजस्य मिलेगा । इस प्रकार एक औसत मजदूर या स्त्री का अध्ययन समस्त मजदूर समुदाय या स्त्री वर्ग के गुणों का ज्ञान करा सकता है ।
निदर्शन की सम्भावना ( Possibility of Sample ) – प्रतिनिधित्व पर्ण सेम्पल पद्धति के आधार पर निष्कर्ष समग्र पर लागू किए जा सकते हैं । चूंकि मानव समुदाय विशाल है अतः प्रत्येक व्यक्ति का सूक्ष्म अध्ययन और जानकारी विस्तृत रूप में सम्भव नहीं है । निदर्शन प्रणाली के प्रयोग से अनुसंधान कार्य सुगम एवं शीघ्र हो पाता है ।