समाज मनोविज्ञान

समाज मनोविज्ञान

समाज मनोविज्ञान को प्रायः व्यक्ति के विचारों , भावों और कार्यों पर अन्य व्यक्तियों के प्रभावों का अध्ययन माना जाता है । वस्तुतः किसी व्यक्ति की अन्य व्यक्तियों के प्रति संवेदनशीलता ही उसके व्यवहार को सामाजिक बनाती है । वैसे तो शायद ही कोई ऐसा व्यवहार हो जिसमें कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव या सम्पर्क में न आता हो । ऐसी स्थिति में सभी व्यवहार ‘ सामाजिक ‘ कहे जा सकते हैं । ऐसा विचार करने पर मनोविज्ञान का समस्त क्षेत्र ही समाज मनोविज्ञान के अन्तर्गत समाविष्ट हो जाता है । समाज मनोविज्ञान के स्वरूप में क्या समाहित किया जाये ? इसे स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख परिभाषाओं पर विचार करना अप्रासंगिक नहीं होगा ।

 बेरन तथा बर्न ( 1991 ) ने समाज मनोविज्ञान को वैज्ञानिक अध्ययन के एक ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया है जो सामाजिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार , स्वरूप और उसके कारणों को समझने की चेष्टा करता है । व्यवहार के कारणों की चर्चा करते हुए इन लेखकों ने अन्य व्यक्तियों की विशेषताएँ तथा व्यवहार , सामाजिक संज्ञान , पर्यावरण के घटक , सामाजिक – सांस्कृतिक कारक तथा जैविक कारकों का उल्लेख किया है । इस दृष्टिकोण में व्यवहार में परिलक्षित सामाजिकता को परिस्थिति से जोड़ा गया है ; न कि उसे व्यवहार की विशेषता के रूप में माना गया है । वार्चल तथा कूपर ( 1979 ) समाज मनोविज्ञान को व्यक्ति का व्यवहार किस तर सामाजिक दशाओं द्वारा प्रभावित होता है ? इसका वैज्ञानिक अध्ययन मानते हैं । टेडेशी , लिन्डस्कोल्ड तथा रोजनफेल्ड ( 1985 ) के मत में समाज मनोविज्ञान विचारों , कार्यों तथा अन्त : क्रियाओं का अन्य व्यक्तियों की वास्तविक , सोची हुई या आपादित ( implied ) उपस्थिति के प्रभाव के प्रसंग में वैज्ञानिक अध्ययन करता है । सामाजिक परिस्थिति पर बल दिये जाने के कारण यह सामान्य मनोविज्ञान से अलग है और व्यक्ति पर बल देने के कारण समाजशास्त्र से भित्र है । किन्तु इन दोनों से इसका सम्बन्ध नकारा नहीं जा सकता । दोनों से प्रभावित होते हुए भी इसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है ।

जहाँ मनोवैज्ञानिक प्राय : व्यक्ति को उसके सामाजिक संदर्भ से अलग रखकर देखते हैं वहीं समाजशास्त्री बड़ी सामाजिक इकाइयों , जैसे – वर्ग ( Class ) , समूह ( Group ) तथा संस्था ( Institution ) आदि का उपयोग करते हैं । उनके उपागम में आन्तरिक मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों ( functions ) को विशेष महत्व नहीं दिया जाता है । व्यक्ति , परिस्थिति द्वारा दी गयी भूमिकाएं निभाता है । समाज मनोवैज्ञानिक व्यवहार की व्याख्या करने में इन दोनों दृष्टिकोणों का उपयोग करता है । वह यह मानता है कि आन्तरिक मानसिक प्रक्रम जहाँ व्यवहार को निर्धारित करते हैं , समाजशास्त्रीय कारक , सामाजिक उद्दीपक , निर्णय और लक्ष्य प्रदान करते हैं । वस्तुतः इन विषयों के बीच विश्लेषण के स्तर का अन्तर है । मनोविज्ञान का केन्द्र व्यक्ति है तथा इसके विश्लेषण में आन्तरिक प्रक्रम जैसे प्रत्यक्षीकरण , चिन्तन , अधिगम तथा प्रेरणा आदि प्रक्रम आते हैं जबकि समाजशास्त्र समूहकेन्द्रित है तथा इसमें मानकों , संगठनों और संस्थाओं को लिया जाता है ।

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किम्बाल यंग के अनुसार – समाज मनोविज्ञान व्यक्तियों का उनकी एक – दूसरे के प्रति अन्त : क्रियाओं में और इस क्रिया का व्यक्ति के विचारों , अनभतियों . संवेगों और आदतों पर प्रभाव के प्रसंग में अध्ययन है ।

. आलपोर्ट के अनुसार – समाज मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो कि एक व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है यहाँ तक कि उसका व्यवहार अन्य व्यक्तियों को प्रेरित करता है अथवा स्वयं उनके व्यवहार की प्रक्रियाओं की चेतना है ।

. रॉस के अनुसार – यह ज्ञान की वह शाखा है जो कि मनुष्य और उसके चारों ओर के समाज के मध्य मानसिक अन्त : क्रिया का अध्ययन कराती है ।

. क्रेच और कृचफील्ड के अनुसार – समाज मनोविज्ञान की परिभाषा समाज में व्यक्ति के व्यवहार के विज्ञान के रूप में की जा सकती है ।

. अकोलकर के अनुसार – समाज मनोविज्ञान का उद्देश्य सामाजिक परिवेश में शक्ति का उसके व्यक्तित्व और व्यवहार का अध्ययन करना है ।

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समाज मनोविज्ञान की विशेषताएँ

 ( CHARACTERISTICS OF SOCIAL PSYCHOLOGY )

. उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर समाज मनोविज्ञान की निम्न विशेषताएँ स्पष्ट की जा सकती हैं

मानसिक अन्त : क्रियाओं का अध्ययन ( Study of Psychological Interaction ) – यह बात पूर्णतया स्पष्ट है कि समाज मनोविज्ञान व्यक्तियों की अन्त : क्रियाओं का अध्ययन करता है किन्तु ये अन्त : क्रियाएँ भी दो प्रकार की होती हैं – एक बाह्य अन्त : क्रियाएँ तथा दूसरी आन्तरिक अथवा मानसिक अन्त : क्रियाएँ । मानसिक अन्त : क्रियाओं का अध्ययन समाज मनोविज्ञान के अन्तर्गत होता है , जबकि बाह्य अन्त : क्रियाओं का अध्ययन समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु है । रॉस ने भी इस बात को अपनी भाषा में स्पष्ट किया है । इस पर समाज मनोविज्ञान का विस्तृत रूप सरल शब्दों में इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि ” समाज मनोविज्ञान का वह विज्ञान है जो कि व्यक्ति के व्यवहार का सामाजिक परिवेश में एक सीमा तक अध्ययन करता है जहाँ तक वह मानसिक अन्त : क्रिया द्वारा दूसरों को प्रभावित करता है तथा अन्य व्यक्तियों से स्वयं भी प्रभावित होता

सामाजिक प्रभावों से निर्मित चेतना का अध्ययन ( Study of Conciousness by the Formation of Soical Effects ) – मनोविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में व्यक्ति के समस्त व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है ! अत : समाज मनोविज्ञान सामाजिक व्यवहारों का अध्ययन करता है क्योंकि वह भी मनोविज्ञान की एक शाखा है । इसमें मनोविज्ञान किसी व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है , जबकि समाजशास्त्र समूह के व्यवहार का अध्ययन करता है किन्तु समाज मनोविज्ञान इन दोनों मनोविज्ञानों से भिन्न केवल व्यक्ति के उसी व्यवहार का अध्ययन करता है जिसके द्वारा वह अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करता है तथा अन्य व्यक्तियों से प्रभावित होता है । इस प्रकार समाज मनोविज्ञान व्यक्तियों की सामाजिक प्रभावों से निर्मित चेतना का अध्ययन करता है ।

. व्यक्तियों की अन्तःक्रियाओं का अध्ययन ( Study of Person ‘ s Interactions ) – समाज मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र अति विस्तृत है क्योंकि मनुष्य द्वारा किया गया प्रत्येक व्यवहार सामाजिक परिवेश में ही होता है । एक समाज सामाजिक सम्बन्धों का ताना बाना होता है । समाज में व्यक्ति के सगे सम्बन्धी , रिश्तेदार , पड़ोसी संगी साथी होते हैं । जिनके साथ व्यक्ति द्वारा की गई क्रिया प्रतिक्रिया के कारण व्यक्ति दूसरों के व्यवहार द्वारा प्रभावित होता है । सभी समाज मनोवैज्ञानिकों ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि समाज मनोविज्ञान के अन्तर्गत व्यक्तियों की सामाजिक अन्त : क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । समाज में व्यक्ति द्वारा की गयी क्रिया प्रतिक्रिया के कारण व्यक्ति के अन्य व्यक्तियों से अच्छे या बुरे सम्बन्ध बनते हैं । अत : व्यक्तियों की सामाजिक अन्त : क्रियाओं का अध्ययन करने वाली मनोविज्ञान की शाखा समाज मनोविज्ञान है ।

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