समाजशास्त्र में महारत: आज की दैनिक चुनौती
समाजशास्त्र के प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के उम्मीदवारों के लिए यह एक विशेष दिन है! अपनी वैचारिक स्पष्टता को परखने और विश्लेषणात्मक कौशल को निखारने के लिए तैयार हो जाइए। आज हम आपके लिए लाए हैं समाजशास्त्र के 25 बहुविकल्पीय प्रश्नों का एक अनूठा सेट, जो आपको परीक्षा के माहौल का अनुभव कराएगा। आइए, देखें कि आप इन चुनौतियों के लिए कितने तैयार हैं!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: मैक्स वेबर के अनुसार, समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य क्या है? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- सामाजिक संरचनाओं का वर्णन करना।
- सामाजिक घटनाओं के ‘अर्थ’ को समझना (Verstehen)।
- वर्ग संघर्ष के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या करना।
- समाज में पाए जाने वाले संस्थागत पैटर्न की पहचान करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: मैक्स वेबर ने ‘वरस्टेहेन’ (Verstehen) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसका अर्थ है सामाजिक क्रियाओं को उनके कर्ताओं द्वारा दिए गए व्यक्तिपरक अर्थों के संदर्भ में समझना। वेबर का मानना था कि समाजशास्त्र को केवल बाहरी व्यवहार का अवलोकन नहीं करना चाहिए, बल्कि उन प्रेरणाओं, विश्वासों और मूल्यों को भी समझना चाहिए जो लोगों के कार्यों को निर्देशित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology) का मूल है और ‘इकॉनॉमी एंड सोसाइटी’ (Economy and Society) जैसी उनकी कृतियों में विस्तार से वर्णित है। यह दुर्खीम के प्रत्यक्षवादी (positivist) दृष्टिकोण के विपरीत है, जो सामाजिक तथ्यों को ‘वस्तुओं’ की तरह अध्ययन करने पर जोर देता है।
- गलत विकल्प: (a) सामाजिक संरचनाओं का वर्णन दुर्खीम के लिए भी महत्वपूर्ण था, लेकिन वेबर का मुख्य जोर उनके अर्थ को समझना है। (c) वर्ग संघर्ष कार्ल मार्क्स की केंद्रीय अवधारणा है। (d) संस्थागत पैटर्न का अध्ययन कई समाजशास्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन वेबर का अनूठा योगदान ‘अर्थ’ को समझना है।
प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा दी गई ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा का क्या अर्थ है? (भारतीय समाज)
- पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण करना।
- एक निचली जाति या जनजाति का उच्च जाति के रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और विश्वासों को अपनाना।
- आधुनिक तकनीकी और औद्योगिक पद्धतियों को अपनाना।
- शहरी जीवन शैली का अनुकरण करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ शब्द गढ़ा, जो एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करता है जहाँ एक निम्न जाति या जनजाति, सामाजिक सीढ़ी में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए, एक उच्चतर, अक्सर द्विजाति (twice-born) जाति के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, विचारधाराओं और जीवन शैली को अपनाती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘धर्म और दक्षिण भारत के कूर्गों के बीच समाज’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में पहली बार प्रस्तावित की गई थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता का।
- गलत विकल्प: (a) पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) कहलाता है। (c) ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) एक व्यापक अवधारणा है जिसमें तकनीकी और संस्थागत परिवर्तन शामिल हैं। (d) शहरी जीवन शैली का अनुकरण भी एक प्रकार का सामाजिक परिवर्तन है, लेकिन यह संस्किृतिकरण का सीधा अर्थ नहीं है।
प्रश्न 3: दुर्खीम के अनुसार, समाजशास्त्रीय अध्ययन का प्राथमिक ‘तथ्य’ (Fact) क्या है? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- व्यक्तिगत चेतना।
- व्यक्तिपरक अर्थ।
- सामाजिक तथ्य (Social Facts)।
- आर्थिक संरचनाएं।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एमिल दुर्खीम ने समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया और इसके अध्ययन की प्राथमिक इकाई को ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य वे हैं जो व्यक्ति से बाहर होते हैं और व्यक्ति पर एक बाह्य दबाव डालते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में सामाजिक तथ्यों को ‘वस्तुओं की तरह’ (as things) अध्ययन करने का आग्रह किया। ये तथ्य समाज के ढांचे, सामूहिक चेतना या संस्थाओं से उत्पन्न होते हैं, जैसे कि कानून, नैतिकता, रीति-रिवाज, विश्वास आदि।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत चेतना मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र है। (b) व्यक्तिपरक अर्थ वेबर के ‘वरस्टेहेन’ का हिस्सा है। (d) आर्थिक संरचनाएं मार्क्स की केंद्रीय अवधारणा हैं।
प्रश्न 4: संस्कृति को ‘साझा प्रतीकों’ (Shared Symbols) के एक समूह के रूप में परिभाषित करना किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का हिस्सा है? (मूल अवधारणाएँ)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)।
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)।
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)।
- सामाजिक विनिमय सिद्धांत (Social Exchange Theory)।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जो जॉर्ज हर्बर्ट मीड, हरबर्ट ब्लूमर और अन्य द्वारा विकसित किया गया, इस बात पर जोर देता है कि समाज का निर्माण व्यक्तियों के बीच होने वाली अंतःक्रियाओं से होता है, जो प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव, वस्तुएं) के साझा अर्थों के माध्यम से होती हैं। संस्कृति को इन साझा प्रतीकों और उनके अर्थों के समूह के रूप में देखा जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह दृष्टिकोण सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) विश्लेषण पर केंद्रित है और मानता है कि व्यक्ति अपने परिवेश को कैसे समझते हैं और प्रतिक्रिया करते हैं, यह उन प्रतीकों पर निर्भर करता है जो वे साझा करते हैं।
- गलत विकल्प: (b) संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को परस्पर संबंधित भागों की एक प्रणाली के रूप में देखता है, जो सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं। (c) संघर्ष सिद्धांत शक्ति, असमानता और प्रभुत्व पर केंद्रित है। (d) सामाजिक विनिमय सिद्धांत मानता है कि सामाजिक संबंध लाभ और लागत के आदान-प्रदान पर आधारित होते हैं।
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) का उदाहरण है? (मूल अवधारणाएँ)
- किसी विश्वविद्यालय का छात्र संघ।
- सहकर्मी समूह (Peer Group) या परिवार।
- एक पेशेवर फुटबॉल टीम।
- ऑनलाइन सोशल मीडिया समुदाय।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: चार्ल्स कूली ने ‘प्राथमिक समूह’ की अवधारणा पेश की, जो छोटे, अंतरंग समूह होते हैं जिनमें आमने-सामने संपर्क, सहयोग और ‘हम’ की भावना (we-feeling) होती है। परिवार और सहकर्मी समूह (मित्र मंडली) इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- संदर्भ और विस्तार: प्राथमिक समूह व्यक्ति के समाजीकरण और व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन समूहों में संबंध आमतौर पर अनौपचारिक और स्थायी होते हैं।
- गलत विकल्प: (a), (c) और (d) सभी ‘द्वितीयक समूहों’ (Secondary Groups) के उदाहरण हैं। द्वितीयक समूह बड़े, अधिक अवैयक्तिक होते हैं, और अक्सर किसी विशेष लक्ष्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए गठित होते हैं, और इनमें संबंध आमतौर पर औपचारिक और अस्थायी होते हैं।
प्रश्न 6: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का अर्थ क्या है? (मूल अवधारणाएँ)
- समाज में विभिन्न भूमिकाओं का विभाजन।
- समाज को पदानुक्रमित स्तरों या परतों में व्यवस्थित करना।
- सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया।
- व्यक्तिगत सामाजिक नेटवर्क का विस्तार।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक स्तरीकरण समाज के सदस्यों को उनकी आय, संपत्ति, सामाजिक स्थिति, शक्ति या शिक्षा जैसे विभिन्न मानदंडों के आधार पर विभिन्न पदानुक्रमित स्तरों या ‘परतों’ में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया है। यह समाज में असमानता का एक व्यवस्थित पैटर्न है।
- संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के प्रमुख रूपों में वर्ग, जाति, लिंग, नस्ल और आयु शामिल हैं। यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है, हालांकि इसके रूप विभिन्न समाजों में भिन्न होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) भूमिकाओं का विभाजन श्रम विभाजन का हिस्सा हो सकता है। (c) सामाजिक गतिशीलता वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति या समूह एक सामाजिक स्तर से दूसरे स्तर पर जाते हैं। (d) व्यक्तिगत सामाजिक नेटवर्क का विस्तार सामाजिक पूंजी से संबंधित है।
प्रश्न 7: आर. के. मर्टन की ‘कार्यवादी’ (Functionalist) उपागम में, ‘गुप्त कार्य’ (Latent Functions) क्या हैं? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- किसी सामाजिक संस्था के स्पष्ट और इरादतन परिणाम।
- किसी सामाजिक संस्था के अनपेक्षित और अक्सर अदृश्य परिणाम।
- समाज के लिए हानिकारिक परिणाम।
- सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने वाली प्रक्रियाएं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: आर. के. मर्टन ने अपने संरचनात्मक प्रकार्यवाद में ‘कार्य’ (Functions) को तीन श्रेणियों में बांटा: प्रकट कार्य (Manifest Functions) – ये किसी सामाजिक पैटर्न के स्पष्ट और पहचाने जाने योग्य परिणाम होते हैं; गुप्त कार्य (Latent Functions) – ये अनपेक्षित, अक्सर अदृश्य परिणाम होते हैं; और ‘अवकार्य’ (Dysfunctions) – ये समाज की स्थिरता को बाधित करने वाले परिणाम होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: गुप्त कार्य अक्सर उन लाभों या परिणामों को संदर्भित करते हैं जो किसी सामाजिक संस्था या अभ्यास के मूल उद्देश्य का हिस्सा नहीं होते हैं, लेकिन फिर भी वे मौजूद होते हैं। उदाहरण के लिए, विश्वविद्यालय की डिग्री प्राप्त करना ‘प्रकट कार्य’ है, लेकिन छात्रों का सामाजिक संबंध बनाना या नई रुचियां विकसित करना ‘गुप्त कार्य’ हो सकता है।
- गलत विकल्प: (a) ये ‘प्रकट कार्य’ हैं। (c) ये ‘अवकार्य’ हैं। (d) यह कार्यवाद का एक सामान्य विचार है, लेकिन मर्टन द्वारा ‘गुप्त कार्य’ की विशिष्ट परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 8: पैट्रिक गिडन्स द्वारा विकसित ‘संरचनाकरण का सिद्धांत’ (Theory of Structuration) किस पर जोर देता है? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- व्यक्तिगत निर्णय निर्माण की स्वायत्तता।
- सामाजिक संरचना और मानव एजेंसी (Agency) के बीच द्वंद्वात्मक संबंध।
- सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में सामूहिक चेतना की भूमिका।
- शक्ति संबंधों का आर्थिक निर्धारणवाद।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एंथोनी गिडन्स का ‘संरचनाकरण का सिद्धांत’ इस विचार पर आधारित है कि सामाजिक संरचनाएं (नियम और संसाधन) और मानव एजेंसी (व्यक्तियों की कार्य करने की क्षमता) अविभाज्य रूप से जुड़ी हुई हैं। संरचनाएं व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों का परिणाम होती हैं, और साथ ही, ये संरचनाएं उन कार्यों को सक्षम या सीमित भी करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: गिडन्स इसे ‘द्वैतता’ (duality) कहते हैं: सामाजिक संरचनाएं न केवल हमारे कार्यों को प्रभावित करती हैं, बल्कि हमारे कार्यों से ही वे पुनरुत्पादित या रूपांतरित होती हैं। यह समाजशास्त्र में व्यक्ति बनाम समाज (agency vs. structure) की चिरस्थायी बहस को हल करने का एक प्रयास है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत निर्णय निर्माण महत्वपूर्ण है, लेकिन सिद्धांत संरचना के साथ इसके संबंध पर जोर देता है। (c) सामूहिक चेतना दुर्खीम की अवधारणा है। (d) शक्ति संबंधों का आर्थिक निर्धारणवाद मार्क्सवादी दृष्टिकोण है।
प्रश्न 9: भारतीय संदर्भ में, ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) को निम्न में से किसके द्वारा सबसे अच्छी तरह समझा जा सकता है? (भारतीय समाज)
- एक कठोर वर्ग व्यवस्था, जो विशुद्ध रूप से आर्थिक स्थिति पर आधारित है।
- एक बंद स्तरीकरण प्रणाली, जो वंशानुक्रम, अंतर्विवाह (Endogamy) और व्यावसायिक विशिष्टता पर आधारित है।
- एक लचीली व्यवस्था, जिसमें सामाजिक गतिशीलता आसानी से संभव है।
- एक ऐसी प्रणाली जहाँ व्यवसाय का चुनाव पूरी तरह से व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: भारतीय जाति व्यवस्था को एक ‘बंद स्तरीकरण प्रणाली’ के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें सामाजिक स्थिति जन्म से निर्धारित होती है, सदस्य अपनी जाति के भीतर ही विवाह करते हैं (अंतर्विवाह), और पारंपरिक रूप से प्रत्येक जाति एक विशिष्ट व्यवसाय से जुड़ी होती थी। यह व्यवस्था अत्यधिक स्तरीकृत और कठोर है, जिसमें गतिशीलता बहुत सीमित है।
- संदर्भ और विस्तार: जी.एस. घुरिये, एम.एन. श्रीनिवास जैसे समाजशास्त्रियों ने जाति व्यवस्था के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसे न केवल एक धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था के रूप में, बल्कि एक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था के रूप में भी समझा गया है।
- गलत विकल्प: (a) जाति विशुद्ध रूप से आर्थिक नहीं है, बल्कि शुद्धता-अशुद्धता, वंश और कर्मकांडीय स्थिति पर भी आधारित है। (c) जाति व्यवस्था अपनी कठोरता के लिए जानी जाती है, न कि लचीलेपन के लिए। (d) व्यवसाय का चुनाव पारंपरिक रूप से जन्म पर आधारित था, व्यक्तिगत पसंद पर नहीं।
प्रश्न 10: ‘अजनबीपन’ (Alienation) की अवधारणा, जिसे कार्ल मार्क्स ने विकसित किया, का संबंध किससे है? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- समाज में व्यक्ति की अलगाव की भावना।
- पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया में श्रमिकों का अपने श्रम, उत्पादन, अन्य श्रमिकों और अपनी मानवीय क्षमता से अलगाव।
- राजनीतिक व्यवस्था से नागरिक का अलगाव।
- पारंपरिक मूल्यों से युवा पीढ़ी का अलगाव।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: कार्ल मार्क्स के लिए, पूंजीवाद के तहत श्रमिक अपने श्रम के उत्पाद से, उत्पादन की प्रक्रिया से, अपने साथी श्रमिकों से, और अंततः अपनी मानवीय सार (species-being) से अलग हो जाते हैं। यह अलगाव उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति वर्ग के स्वामित्व और श्रमिकों के शोषण का परिणाम है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने ‘द इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ में इस अवधारणा को विस्तार से समझाया। उनके अनुसार, अलगाव उत्पादक गतिविधियों को एक मजबूरी बनाता है, न कि एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति।
- गलत विकल्प: (a) यह एक सामान्य अर्थ है, लेकिन मार्क्स का विशिष्ट अर्थ (b) में है। (c) और (d) आधुनिक समाज में देखे जाने वाले अलगाव के अन्य रूप हो सकते हैं, लेकिन मार्क्स की मूल अवधारणा (b) पर केंद्रित थी।
प्रश्न 11: ‘सामाजिक संस्था’ (Social Institution) क्या है? (मूल अवधारणाएँ)
- लोगों का एक बड़ा समूह जो समान गतिविधियों में संलग्न है।
- समाज द्वारा मान्यता प्राप्त और स्थापित व्यवहार के पैटर्न, नियम और मूल्य जो सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- एक विशेष स्थान जहाँ लोग मिलते हैं।
- सांस्कृतिक प्रतीकों का एक संग्रह।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक संस्थाएं समाज की मूलभूत इकाइयाँ हैं जो व्यक्तियों के व्यवहार को व्यवस्थित और विनियमित करती हैं। वे समाज की आवश्यक जरूरतों जैसे कि प्रजनन (परिवार), सामाजिक नियंत्रण (सरकार, कानून), शिक्षा (स्कूल), या अर्थ (अर्थव्यवस्था) को पूरा करने के लिए विकसित होती हैं। ये व्यवहार के स्थापित पैटर्न, मानदंड और मूल्य हैं।
- संदर्भ और विस्तार: परिवार, विवाह, धर्म, शिक्षा, सरकार, अर्थव्यवस्था प्रमुख सामाजिक संस्थाएं हैं। वे समाज की स्थिरता और निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘संगठन’ या ‘समूह’ हो सकता है। (c) यह एक ‘स्थान’ है। (d) यह ‘संस्कृति’ का हिस्सा है।
प्रश्न 12: ‘अराजकता’ (Anomie) की अवधारणा, जिसे दुर्खीम ने अपने अध्ययन में प्रयोग किया, किस स्थिति का वर्णन करती है? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- समाज में अत्यधिक सामाजिक नियंत्रण।
- समाज में नियमों और नैतिक मानदंडों की अनुपस्थिति या क्षरण, जिससे सामाजिक अव्यवस्था उत्पन्न होती है।
- व्यक्तियों का समाज से पूर्ण अलगाव।
- शक्ति का असमान वितरण।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘अराजकता’ (Anomie) वह स्थिति है जब समाज के सदस्यों के बीच सामान्य मूल्यों, मानदंडों और अपेक्षाओं का अभाव होता है। यह सामाजिक नियंत्रण की कमी और व्यक्तिगत इच्छाओं के विनियमन की विफलता की ओर ले जाता है, जिससे व्यक्ति दिशाहीन और अनिश्चित महसूस करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने इस अवधारणा का उपयोग अपनी पुस्तक ‘आत्महत्या’ (Suicide) में यह समझाने के लिए किया कि कैसे सामाजिक परिस्थितियाँ, जैसे कि आर्थिक संकट या अचानक धन लाभ, एनोमी की स्थिति पैदा करके आत्महत्या की दर को प्रभावित कर सकती हैं।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘अति-नियमन’ (Over-regulation) की स्थिति होगी। (c) यह ‘अलगाव’ (Alienation) का वर्णन है। (d) यह ‘संघर्ष सिद्धांत’ का विषय है।
प्रश्न 13: ‘शहरीकरण’ (Urbanization) का सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक परिणाम क्या है? (ग्रामीण और शहरी समाजशास्त्र)
- पारिवारिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण।
- सामुदायिक भावना में वृद्धि।
- सामाजिक अलगाव और व्यक्तिवाद में वृद्धि।
- पारंपरिक सामाजिक नियंत्रण का सुदृढ़ीकरण।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: शहरीकरण, जो गांवों से शहरों की ओर लोगों के प्रवास और शहरी जीवन शैली के प्रसार की प्रक्रिया है, अक्सर कई सामाजिक परिवर्तनों को जन्म देता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण परिणाम है सामाजिक अलगाव (social isolation) और व्यक्तिवाद (individualism) में वृद्धि। शहरी वातावरण में, लोग अक्सर बड़ी संख्या में अजनबियों के बीच रहते हैं, जिससे अंतरंग, प्राथमिक संबंधों में कमी आती है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता को अधिक महत्व मिलता है।
- संदर्भ और विस्तार: फर्डीनेंड टोंनीज ने ‘गेमेन्शाफ्ट’ (Gemeinschaft – समुदाय) और ‘गेसेलशाफ्ट’ (Gesellschaft – समाज) के बीच अंतर करके शहरीकरण के प्रभाव को समझाया, जिसमें शहरी जीवन को गेसेलशाफ्ट (अधिक अवैयक्तिक, अनुबंध-आधारित संबंध) के रूप में देखा गया।
- गलत विकल्प: (a) और (b) अक्सर शहरीकरण के विपरीत प्रभाव माने जाते हैं; पारंपरिक पारिवारिक संबंध कमजोर हो सकते हैं और सामुदायिक भावना कम हो सकती है। (d) पारंपरिक सामाजिक नियंत्रण शहरी वातावरण में अक्सर कमजोर पड़ जाता है।
प्रश्न 14: ‘सामाजिक अनुसंधान’ (Social Research) में ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का क्या अर्थ है? (अनुसंधान विधियाँ)
- अपनी संस्कृति को अन्य संस्कृतियों से श्रेष्ठ मानना।
- किसी भी संस्कृति का मूल्यांकन उसके अपने मानदंडों और मूल्यों के आधार पर करना, न कि बाहरी मानदंडों पर।
- सभी संस्कृतियों को एक समान मानकों के तहत मापना।
- मानव व्यवहार को पूरी तरह से पर्यावरण द्वारा निर्धारित मानना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सांस्कृतिक सापेक्षवाद वह दृष्टिकोण है जो मानता है कि किसी भी संस्कृति के विश्वासों, मूल्यों और प्रथाओं को उसी संस्कृति के अन्य तत्वों के संदर्भ में और उस संस्कृति के सदस्यों के दृष्टिकोण से समझा जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि कोई भी संस्कृति अपने आप में ‘सही’ या ‘गलत’ नहीं है, बल्कि हर संस्कृति का अपना आंतरिक तर्क होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह नृविज्ञान (Anthropology) और समाजशास्त्र में एक महत्वपूर्ण विश्लेषणात्मक उपकरण है, जो नृजातीयतावाद (Ethnocentrism – अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ मानना) से बचने में मदद करता है।
- गलत विकल्प: (a) यह नृजातीयतावाद है। (c) यह सांस्कृतिक सार्वभौमिकतावाद (Cultural Universalism) की ओर झुकाव हो सकता है, जो सापेक्षवाद के विपरीत है। (d) यह पर्यावरणीय नियतत्ववाद (Environmental Determinism) है।
प्रश्न 15: ‘लैंगिक भूमिका’ (Gender Role) से आपका क्या तात्पर्य है? (मूल अवधारणाएँ)
- किसी व्यक्ति की यौन पहचान।
- समाज द्वारा पुरुषों और महिलाओं के लिए निर्धारित व्यवहार, अपेक्षाओं और जिम्मेदारियों का समूह।
- जैविक रूप से निर्धारित लिंग अंतर।
- पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं का निर्वाह।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: लैंगिक भूमिकाएँ समाज द्वारा निर्मित (socially constructed) वे व्यवहार, गुण और जिम्मेदारियाँ हैं जिन्हें एक विशेष लिंग (पुरुष या महिला) के सदस्यों से अपेक्षा की जाती है। ये भूमिकाएँ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भिन्न होती हैं और जैविक लिंग (sex) से भिन्न होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: लैंगिक भूमिकाओं का समाजीकरण के माध्यम से अधिग्रहण किया जाता है, जिसमें परिवार, शिक्षा, मीडिया और सहकर्मी समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- गलत विकल्प: (a) यौन पहचान (Sexual Identity) व्यक्तिगत होती है। (c) जैविक लिंग (Sex) जन्मजात है, जबकि लैंगिक भूमिका (Gender Role) सीखी जाती है। (d) यह एक संभावित परिणाम हो सकता है, लेकिन यह लैंगिक भूमिका की परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 16: जाति व्यवस्था के संदर्भ में ‘पवित्रता-अशुद्धता’ (Purity-Pollution) की अवधारणा का क्या महत्व है? (भारतीय समाज)
- यह जाति पदानुक्रम को बनाए रखने का एक प्रमुख आधार है, जिसमें उच्च जातियाँ शुद्ध और निम्न जातियाँ अशुद्ध मानी जाती हैं।
- यह केवल धार्मिक कर्मकांडों तक सीमित है।
- यह व्यक्तिगत स्वच्छता की आदतों को दर्शाता है।
- यह दर्शाता है कि सभी जातियाँ समान हैं।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: जाति व्यवस्था में पवित्रता-अशुद्धता की अवधारणा जाति पदानुक्रम के आधार के रूप में कार्य करती है। उच्च जातियों को स्वाभाविक रूप से अधिक ‘शुद्ध’ माना जाता है, जबकि निम्न जातियों को ‘अशुद्ध’ समझा जाता है। यह शुद्धता/अशुद्धता भोजन, स्पर्श, व्यवसाय और यहां तक कि विचार से भी जुड़ी होती है, और इसके माध्यम से विभिन्न जातियों के बीच सामाजिक संपर्क को विनियमित किया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: मैरी डगलस की ‘पवित्रता और खतरा’ (Purity and Danger) जैसी मानवशास्त्रीय अध्ययनों ने इन अवधारणाओं को व्यापक रूप से विश्लेषित किया है, जिनका भारतीय जाति व्यवस्था में गहरा प्रभाव रहा है।
- गलत विकल्प: (b) यह केवल कर्मकांडों तक सीमित नहीं है, बल्कि दैनिक जीवन के सामाजिक संपर्क पर भी लागू होता है। (c) यह व्यक्तिगत स्वच्छता की आदतों से अधिक व्यापक है। (d) यह जाति व्यवस्था की असमान प्रकृति के विपरीत है।
प्रश्न 17: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का क्या अर्थ है? (मूल अवधारणाएँ)
- समाज के भीतर व्यक्तियों या समूहों की स्थिति में परिवर्तन।
- सामाजिक संरचनाओं का विकास।
- किसी व्यक्ति का समाज से पलायन।
- नए सामाजिक मानदंडों की स्थापना।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक गतिशीलता से तात्पर्य समाज में व्यक्तियों या समूहों की स्थिति में ऊपर या नीचे की ओर होने वाले परिवर्तन से है। यह एक पीढ़ी के भीतर (अंतः-पीढ़ीगत गतिशीलता) या विभिन्न पीढ़ियों के बीच (अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: गतिशीलता क्षैतिज (एक ही स्तर पर स्थिति परिवर्तन) या ऊर्ध्वाधर (ऊपर या नीचे के स्तर पर परिवर्तन) हो सकती है। यह सामाजिक स्तरीकरण की प्रकृति और डिग्री को समझने में महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: (b) सामाजिक संरचनाओं का विकास सामाजिक परिवर्तन (Social Change) का हिस्सा है। (c) यह पलायन (Migration) या बहिष्करण (Exclusion) है। (d) यह समाजीकरण या नवाचार का परिणाम हो सकता है।
प्रश्न 18: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) के समाजशास्त्रीय सिद्धांत मुख्य रूप से किस पर ध्यान केंद्रित करते हैं? (समकालीन मुद्दे)
- पारंपरिक समाजों का औद्योगीकरण और पश्चिमीकरण।
- समाज में प्राचीन मूल्यों का पुनरुद्धार।
- सांस्कृतिक अनुरूपता और वैश्वीकरण को रोकना।
- कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं को बनाए रखना।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: आधुनिकीकरण सिद्धांत, जो 20वीं शताब्दी के मध्य में लोकप्रिय हुआ, मानता है कि पारंपरिक, अविकसित समाज औद्योगीकरण, शहरीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण (secularization) और लोकतंत्र जैसे पश्चिमी समाजों की विशेषताओं को अपनाकर ‘आधुनिक’ बन सकते हैं। यह अक्सर पश्चिमीकरण के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।
- संदर्भ और विस्तार: इस सिद्धांत की आलोचना भी की गई है कि यह पश्चिमी-केंद्रित है और विकासशील देशों की अपनी विशिष्टताओं को अनदेखा करता है। डेनियल लर्नर, वाइल्बरट मूर जैसे विद्वानों ने इसमें योगदान दिया।
- गलत विकल्प: (b) और (c) आधुनिकीकरण के विपरीत या विरोधी दिशा में जाते हैं। (d) आधुनिकीकरण का अर्थ अक्सर कृषि से औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ना है।
प्रश्न 19: ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) की अवधारणा क्या परिभाषित करती है? (मूल अवधारणाएँ)
- समाज के सदस्यों द्वारा स्थापित नियम और कानून।
- समाज द्वारा उपयोग की जाने वाली वे सभी विधियाँ जिनके द्वारा वह अपने सदस्यों के व्यवहार को विनियमित करता है ताकि व्यवस्था बनाए रखी जा सके।
- किसी व्यक्ति का अपने व्यवहार पर आत्म-नियंत्रण।
- राज्य द्वारा नागरिकों पर लगाया गया प्रतिबंध।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक नियंत्रण उन प्रक्रियाओं और तंत्रों का उल्लेख करता है जिनके द्वारा समाज अपने सदस्यों के व्यवहार को विनियमित करता है, उन्हें सामाजिक मानदंडों और मूल्यों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करता है, और विचलन (deviance) को रोकता है। इसमें औपचारिक (जैसे कानून, पुलिस) और अनौपचारिक (जैसे सामाजिक दबाव, परिवार का नियंत्रण) दोनों तरह के तरीके शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने सामाजिक नियंत्रण को सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक माना। यह समाज के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: (a) नियम और कानून सामाजिक नियंत्रण के साधन हैं, लेकिन यह स्वयं नियंत्रण की संपूर्ण परिभाषा नहीं है। (c) यह आत्म-नियंत्रण है, जो सामाजिक नियंत्रण का एक आंतरिक रूप है, लेकिन समाज द्वारा लागू नहीं। (d) राज्य नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, लेकिन सामाजिक नियंत्रण इससे व्यापक है।
प्रश्न 20: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रतिपादक कौन हैं? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- एमिल दुर्खीम।
- कार्ल मार्क्स।
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड।
- ऑगस्ट कॉम्त।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का संस्थापक पिता माना जाता है। हालांकि उन्होंने स्वयं इस शब्द का प्रयोग नहीं किया, उनके विचारों (जैसे ‘स्व’ (Self) का विकास, ‘अन्य’ (Me, I, Generalized Other)) ने हरबर्ट ब्लूमर को इस क्षेत्र में काम करने और ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ शब्द को गढ़ने के लिए प्रेरित किया।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत मानता है कि सामाजिक वास्तविकता व्यक्तियों के बीच अर्थ बनाने और व्याख्या करने की प्रक्रिया से निर्मित होती है।
- गलत विकल्प: (a) दुर्खीम प्रकार्यवाद और सामाजिक तथ्यों से जुड़े हैं। (b) मार्क्स संघर्ष सिद्धांत से जुड़े हैं। (d) कॉम्त समाजशास्त्र के संस्थापक हैं जिन्होंने प्रत्यक्षवाद (Positivism) का विचार दिया।
प्रश्न 21: भारतीय समाज में ‘आधुनिकीकरण’ ने जाति व्यवस्था को कैसे प्रभावित किया है? (भारतीय समाज/समकालीन मुद्दे)
- जाति व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।
- जाति के महत्व को कम कर दिया है, लेकिन यह अभी भी सामाजिक और राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती है।
- जाति व्यवस्था को और अधिक कठोर बना दिया है।
- जाति व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं डाला है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं जैसे शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, शिक्षा का प्रसार और पश्चिमीकरण ने पारंपरिक जाति व्यवस्था के कुछ पहलुओं को कमजोर किया है। इसने व्यवसाय के चयन में अधिक स्वतंत्रता दी है और अंतर-जातीय विवाह को कुछ हद तक बढ़ावा दिया है। हालांकि, जाति अभी भी भारत में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक कारक बनी हुई है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में और राजनीतिक दलों के लिए मतदाता आधार के पुनर्गठन में।
- संदर्भ और विस्तार: एम.एन. श्रीनिवास, वाई.सिंह जैसे समाजशास्त्रियों ने आधुनिक भारत में जाति के बदलते स्वरूप पर महत्वपूर्ण कार्य किया है।
- गलत विकल्प: (a) जाति व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सका है। (c) जबकि कुछ पुराने बंधन टूटे हैं, जाति अक्सर नए रूपों में प्रकट हुई है। (d) आधुनिकीकरण का जाति पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है।
प्रश्न 22: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) से अभिप्राय है: (मूल अवधारणाएँ)
- लोगों का एक संग्रह जो एक विशेष क्षेत्र में रहता है।
- समाज के विभिन्न अंगों या भागों के बीच संबंधों का एक प्रतिमान।
- किसी व्यक्ति के सामाजिक संबंध।
- समाज का भौतिक ढांचा।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक संरचना से तात्पर्य समाज के प्रमुख सामाजिक संस्थानों (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, सरकार) और सामाजिक समूहों (जैसे वर्ग, जाति, लिंग) के बीच स्थायी और सुसंगत संबंधों के प्रतिमान से है। यह समाज के ‘ढांचे’ को दर्शाता है जो लोगों के व्यवहार को आकार देता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम, पार्सन्स जैसे समाजशास्त्रियों ने सामाजिक संरचना के महत्व पर जोर दिया है। यह एक अमूर्त अवधारणा है जो समाज के संगठन को समझने में मदद करती है।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘जनसंख्या’ या ‘समुदाय’ हो सकता है। (c) यह ‘सामाजिक नेटवर्क’ है। (d) यह ‘भौतिक पर्यावरण’ या ‘भूगोल’ है।
प्रश्न 23: ‘धर्मनिरपेक्षीकरण’ (Secularization) का समाजशास्त्रीय अर्थ क्या है? (समकालीन मुद्दे)
- सभी धार्मिक अनुष्ठानों पर पूर्ण प्रतिबंध।
- समाज के सार्वजनिक जीवन से धर्म की भूमिका और प्रभाव का धीरे-धीरे कम होना।
- धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देना।
- धर्म को केवल व्यक्तिगत विश्वास तक सीमित रखना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: धर्मनिरपेक्षीकरण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें धर्म का प्रभाव सार्वजनिक जीवन (जैसे राजनीति, शिक्षा, कानून) से कम हो जाता है और व्यक्तिगत, निजी क्षेत्र तक सीमित हो जाता है। यह अक्सर तर्कसंगतता, विज्ञान और बुर्जुआ समाज की वृद्धि से जुड़ा होता है।
- संदर्भ और विस्तार: पीटर बर्जर जैसे समाजशास्त्रियों ने धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया पर विस्तृत रूप से लिखा है, जो पश्चिमी समाजों में अधिक प्रमुख रही है।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘अधार्मिकता’ (Irreligion) या दमन है, धर्मनिरपेक्षीकरण नहीं। (c) धर्मनिरपेक्षीकरण सहिष्णुता का पर्याय नहीं है, हालांकि यह साथ-साथ चल सकता है। (d) यह धर्मनिरपेक्षीकरण का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन यह पूरी प्रक्रिया की परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 24: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) के मुख्य स्रोत क्या हैं? (समकालीन मुद्दे)
- केवल प्राकृतिक आपदाएँ।
- तकनीकी नवाचार, सांस्कृतिक संपर्क, संघर्ष और सामाजिक आंदोलनों सहित विभिन्न आंतरिक और बाहरी कारक।
- व्यक्तिगत असंतोष।
- सांस्कृतिक अलगाव।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक परिवर्तन एक जटिल प्रक्रिया है जो विभिन्न कारकों से उत्पन्न होती है। इनमें तकनीकी प्रगति (जैसे इंटरनेट), विभिन्न संस्कृतियों के बीच संपर्क (वैश्वीकरण), सामाजिक या आर्थिक असमानताओं से उत्पन्न संघर्ष, और विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लोगों द्वारा किए जाने वाले संगठित प्रयास (सामाजिक आंदोलन) शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: समाजशास्त्री परिवर्तन के स्रोतों को व्यापक रूप से वर्गीकृत करते हैं, जिसमें डेमोग्राफिक परिवर्तन, आर्थिक परिवर्तन, राजनीतिक परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन शामिल हैं।
- गलत विकल्प: (a) प्राकृतिक आपदाएँ एक कारक हो सकती हैं, लेकिन वे एकमात्र या मुख्य स्रोत नहीं हैं। (c) व्यक्तिगत असंतोष सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बन सकता है, लेकिन यह स्वयं परिवर्तन का स्रोत नहीं है। (d) सांस्कृतिक अलगाव परिवर्तन को बाधित कर सकता है, उत्पन्न नहीं कर सकता।
प्रश्न 25: ‘प्रकार्यवाद’ (Functionalism) के अनुसार, समाज एक ‘जैविक जीव’ (Biological Organism) के समान है। इस उपमा के पीछे मुख्य विचार क्या है? (समाजशास्त्रीय विचारक)
- जैसे एक जीव के अंग विशिष्ट कार्य करते हैं, वैसे ही समाज के विभिन्न संस्थान (परिवार, शिक्षा, धर्म) समाज के समग्र अस्तित्व और स्थिरता के लिए विशिष्ट कार्य करते हैं।
- समाज की तरह जीव भी लगातार बदलते रहते हैं।
- दोनों ही प्राकृतिक शक्तियों द्वारा शासित होते हैं।
- दोनों में व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण इकाई हैं।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण (Functionalism) मानता है कि समाज को एक एकीकृत प्रणाली के रूप में देखा जाना चाहिए, जैसे एक जीवित जीव। जीव के प्रत्येक अंग (हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क) का एक विशिष्ट कार्य होता है जो पूरे जीव के अस्तित्व और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। इसी प्रकार, समाज के विभिन्न ‘अंग’ या संस्थान (जैसे परिवार, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, धर्म) समाज के सुचारू संचालन और स्थिरता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण और विशिष्ट कार्य करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: हर्बर्ट स्पेंसर ने इस ‘जैविक उपमा’ को सबसे पहले लोकप्रिय बनाया, और बाद में एमिल दुर्खीम और तालकोट पार्सन्स जैसे समाजशास्त्रियों ने इसे परिष्कृत किया।
- गलत विकल्प: (b) जबकि जीव बदलते हैं, प्रकार्यवाद का मुख्य जोर वर्तमान कार्य और स्थिरता पर है, न कि निरंतर परिवर्तन पर। (c) यह बहुत सामान्य है और उपमा के विशिष्ट बिंदु को पकड़ता नहीं है। (d) प्रकार्यवाद में, ‘समाज’ (समग्र) को अक्सर ‘व्यक्ति’ (भाग) से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
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