समाजशास्त्र मंथन: आपकी परीक्षा की तैयारी का एक नया पैमाना
नमस्कार, समाजशास्त्र के जिज्ञासु विद्वानों! आज आपके ज्ञान की धार को और तेज करने का दिन है। अपनी अवधारणाओं की स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को परखने के लिए तैयार हो जाइए। यहाँ प्रस्तुत हैं 25 विशेष रूप से तैयार किए गए समाजशास्त्रीय प्रश्न, जो आपकी आगामी परीक्षाओं के लिए आपकी तैयारी को एक नया पैमाना देंगे। चलिए, शुरू करते हैं यह बौद्धिक यात्रा!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की अवधारणा का प्रतिपादन किस प्रमुख समाजशास्त्री ने किया है? उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य क्या हैं?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमील दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: एमील दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य वे हैं जो समाज के सदस्य के बाहरी होते हैं और व्यक्ति पर बाध्यकारी शक्ति रखते हैं। ये विचार, भावनाएं और कार्य समाज में सामूहिक चेतना का हिस्सा होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय विधि की नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को विस्तार से समझाया है। वे सामाजिक तथ्यों को ‘चीजों’ की तरह अध्ययन करने का सुझाव देते हैं।
- अincorrect विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिकDeterminism पर था। मैक्स वेबर ने ‘सामाजिक क्रिया’ (Social Action) और ‘समझ’ (Verstehen) पर जोर दिया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद और सामाजिक विकास के सिद्धांत दिए।
प्रश्न 2: मैक्स वेबर के अनुसार, शक्ति (Power) का वह प्रकार जिसमें किसी व्यक्ति या संस्था की आज्ञा मानने की एक विशेष वैधता होती है, क्या कहलाता है?
- जबरदस्ती (Coercion)
- आर्थिक प्रभुत्व (Economic Domination)
- वैध प्रभुत्व (Legitimate Domination)
- राजनीतिक शक्ति (Political Power)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने ‘वैध प्रभुत्व’ (Legitimate Domination) की अवधारणा दी, जिसे वे ‘सत्ता’ (Authority) भी कहते हैं। यह वह शक्ति है जिसे अनुयायी स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं क्योंकि वे इसे सही या वैध मानते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: वेबर ने तीन प्रकार के वैध प्रभुत्व बताए: परम्परागत (Traditional), करिश्माई (Charismatic) और कानूनी-तर्कसंगत (Legal-Rational)।
- अincorrect विकल्प: जबरदस्ती बाहरी दबाव से आज्ञा मनवाती है, न कि वैधता पर आधारित होती है। आर्थिक प्रभुत्व केवल आर्थिक संसाधनों पर आधारित होता है। राजनीतिक शक्ति एक व्यापक शब्द है, लेकिन वेबर ‘वैधता’ पर विशेष बल देते हैं।
प्रश्न 3: आर. के. मर्टन द्वारा प्रस्तुत ‘स्पष्ट कार्य’ (Manifest Functions) और ‘अस्पष्ट कार्य’ (Latent Functions) की अवधारणाएँ किस समाजशास्त्रीय उपागम (Approach) से संबंधित हैं?
- संघर्ष उपागम (Conflict Approach)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- मार्क्सवाद (Marxism)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: रॉबर्ट के. मर्टन, जो स्वयं एक संरचनात्मक प्रकार्यवादी थे, ने ‘स्पष्ट कार्य’ (जो जानबूझकर और पहचाने गए परिणाम होते हैं) और ‘अस्पष्ट कार्य’ (जो अनजाने और अनपेक्षित परिणाम होते हैं) की अवधारणाएँ दीं। यह संरचनात्मक प्रकार्यवाद के भीतर एक महत्वपूर्ण विस्तार था।
- संदर्भ एवं विस्तार: मर्टन ने ‘सामाजिक संरचना और एनीमी’ (Social Structure and Anomie) जैसी कृतियों में इन अवधारणाओं का प्रयोग किया। उन्होंने ‘प्रकार्यात्मक विकल्प’ (Functional Alternatives) और ‘प्रकार्यात्मक अनिवार्यता’ (Functional Imperatives) जैसी अन्य महत्वपूर्ण बातें भी जोड़ीं।
- अincorrect विकल्प: संघर्ष उपागम और मार्क्सवाद समाज में असमानता और संघर्ष पर केंद्रित हैं। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) अंतःक्रियाओं और अर्थों पर ध्यान केंद्रित करता है।
प्रश्न 4: ‘अजनबी’ (The Stranger) की अवधारणा, जो समाज में एक ऐसे व्यक्ति का वर्णन करती है जो समाज का हिस्सा भी है और बाहर भी, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
- जॉर्ज सिमेल
- चार्ल्स हॉर्टन कूली
- अल्फ्रेड शुट्ज़
- एर्विंग गॉफमैन
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: जॉर्ज सिमेल ने अपनी कृति ‘सोशियोलॉजी’ (Sociology) में ‘अजनबी’ की अवधारणा को विकसित किया। अजनबी समाज का एक सदस्य होता है, लेकिन उसकी स्थिति उसे तटस्थता और वस्तुनिष्ठता प्रदान करती है, जिससे वह समाज को एक विशेष परिप्रेक्ष्य से देख पाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: सिमेल ने सामाजिक अंतःक्रियाओं की ‘रूप’ (Form) का विश्लेषण करने पर जोर दिया। अजनबी की अवधारणा उनके ‘रूपों’ (Forms of Social Interaction) में से एक है, जो समाज के भीतर रहते हुए अलगाव और जुड़ाव दोनों का अनुभव करता है।
- अincorrect विकल्प: जॉर्ज हर्बर्ट मीड और चार्ल्स हॉर्टन कूली ‘हम’ (We-Group) और ‘वे-समूह’ (They-Group) जैसी अवधारणाओं से जुड़े हैं। अल्फ्रेड शुट्ज़ ने फेनोमेनोलॉजी (Phenomenology) का समाजशास्त्र में अनुप्रयोग किया। एर्विंग गॉफमैन ने ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) का सिद्धांत दिया।
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का आधार नहीं माना जाता है?
- धन (Wealth)
- शक्ति (Power)
- प्रतिष्ठा (Prestige)
- जन्म (Birth)
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: धन, शक्ति और प्रतिष्ठा सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आयाम हैं, जैसा कि मैक्स वेबर ने बताया था। जन्म (जैसे वंश या जाति) हालांकि ऐतिहासिक रूप से स्तरीकरण का एक महत्वपूर्ण कारक रहा है (विशेषकर बंद समाजों में), लेकिन यह स्वयं में एक ‘आधार’ (dimension) के बजाय एक ‘तंत्र’ (mechanism) या ‘विशेषाधिकार’ (privilege) का स्रोत हो सकता है। स्तरीकरण के आयाम वे चर हैं जिनके आधार पर समाज में लोगों को पदानुक्रमित किया जाता है। हालाँकि, यदि जन्म के आधार पर विशेषाधिकार और स्थिति तय होती है, तो इसे भी एक आधार माना जा सकता है, लेकिन धन, शक्ति और प्रतिष्ठा अधिक सार्वभौमिक और निरंतर आयाम हैं। प्रश्न की व्याख्या को ध्यान में रखते हुए, अन्य तीन विकल्प स्तरीकरण के अधिक प्रत्यक्ष और बहुआयामी आयाम हैं। (यह प्रश्न थोड़ा विवादास्पद हो सकता है, लेकिन आम तौर पर वेबरियन आयामों पर आधारित उत्तरों में धन, शक्ति, प्रतिष्ठा मुख्य होते हैं।)
- संदर्भ एवं विस्तार: वेबर ने वर्ग (धन), दर्जा (प्रतिष्ठा) और पार्टी (शक्ति) को स्तरीकरण के तीन मुख्य आधार माने।
- अincorrect विकल्प: धन, शक्ति और प्रतिष्ठा सीधे तौर पर समाज में विभिन्न स्तरों पर व्यक्तियों या समूहों को विभाजित करते हैं। जन्म, विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में जाति के साथ, एक महत्वपूर्ण कारक रहा है, लेकिन आधुनिक समाजशास्त्र अक्सर इन तीन आयामों पर अधिक जोर देता है।
प्रश्न 6: ‘एलीनेशन’ (Alienation) या अलगाव की अवधारणा, जिसका संबंध पूंजीवाद में श्रमिक के उत्पादन से अलगाव से है, किस विचारक से सबसे अधिक जुड़ी है?
- एमील दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- जॉर्ज सिमेल
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिकों के अलगाव (Alienation) के सिद्धांत का गहराई से विश्लेषण किया। उनके अनुसार, श्रमिक अपने श्रम, उत्पाद, स्वयं से और अन्य मनुष्यों से अलग-थलग महसूस करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: मार्क्स ने ‘आर्थिक और दार्शनिक पांडुलिपियाँ 1844’ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में अलगाव के चार प्रमुख रूपों का वर्णन किया: श्रम से अलगाव, उत्पादन के उत्पाद से अलगाव, अपनी प्रजाति-प्रकृति (Species-Nature) से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव।
- अincorrect विकल्प: दुर्खीम ने ‘एनॉमी’ (Anomie) की अवधारणा दी, जो सामाजिक विघटन से संबंधित है। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता के संदर्भ में अलगाव की बात की, लेकिन मार्क्स जितना केंद्रीय नहीं। सिमेल ने व्यक्तिवाद और शहरी जीवन में सामाजिक संबंधों के विघटन की चर्चा की।
प्रश्न 7: ‘जाति’ (Caste) की व्यवस्था को एक ‘बंद स्तरीकरण’ (Closed System of Stratification) के रूप में किसने वर्णित किया?
- एम. एन. श्रीनिवास
- टी. बी. ब siapa
- ई. जे. हॉबसन
- इरावती कर्वे
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: टी. बी. ब siapa (T.B. Bottomore) ने ‘वर्ग और जनजाति’ (Classes in Modern Society) जैसी अपनी रचनाओं में सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न रूपों का विश्लेषण करते हुए जाति को एक ‘बंद स्तरीकरण’ व्यवस्था के रूप में वर्णित किया, जहाँ स्थिति जन्म से निर्धारित होती है और उसमें परिवर्तन की गुंजाइश अत्यंत कम होती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: बंद स्तरीकरण वह है जहाँ गतिशीलता (Mobility) बहुत सीमित होती है, इसके विपरीत खुली व्यवस्थाएँ (जैसे वर्ग व्यवस्था) जहाँ गतिशीलता संभव होती है।
- अincorrect विकल्प: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) और ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाएँ दीं। इरावती कर्वे ने भारतीय परिवारों और नातेदारी पर विस्तृत कार्य किया। ई. जे. हॉबसन एक महत्वपूर्ण समाजशास्त्री थे, लेकिन इस विशिष्ट परिभाषा के लिए नहीं जाने जाते।
प्रश्न 8: ‘एनॉमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों के विघटन या कमी की स्थिति को दर्शाती है, किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत का एक प्रमुख तत्व है?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- फेनोमेनोलॉजी
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: ‘एनॉमी’ की अवधारणा मुख्य रूप से एमील दुर्खीम से जुड़ी है, जो संरचनात्मक प्रकार्यवाद के अग्रदूतों में से एक थे। दुर्खीम के अनुसार, एनॉमी तब उत्पन्न होती है जब समाज में सामूहिक चेतना कमजोर हो जाती है और व्यक्ति के लिए कोई स्पष्ट नियम या मार्गदर्शक सिद्धांत नहीं रह जाते।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘आत्महत्या’ (Suicide) में यह तर्क दिया कि एनॉमी आत्महत्या की दर में वृद्धि का एक कारण है। उन्होंने यह भी बताया कि आर्थिक या सामाजिक परिवर्तनों के दौरान जब नियम तेजी से बदलते हैं, तो एनॉमी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- अincorrect विकल्प: संघर्ष सिद्धांत समाज में शक्ति और असमानता के मुद्दों पर केंद्रित है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं और अर्थ निर्माण पर केंद्रित है। फेनोमेनोलॉजी व्यक्तिपरक अनुभवों और चेतना के अध्ययन पर जोर देती है।
प्रश्न 9: भारतीय समाज के संदर्भ में, ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया को किस समाजशास्त्री ने लोकप्रिय बनाया?
- ए. आर. देसाई
- एम. एन. श्रीनिवास
- ई. वी. रामासामी पेरियार
- जी. एस. घुरिये
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ की अवधारणा को गढ़ा और लोकप्रिय बनाया। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निम्न जातियाँ (या आदिवासी समूह) उच्च, विशेष रूप से द्विजाति (twice-born) जातियों की प्रथाओं, कर्मकांडों, रीति-रिवाजों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: श्रीनिवास ने इस अवधारणा का प्रयोग पहली बार अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ (1952) में किया था। यह भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता (social mobility) का एक महत्वपूर्ण रूप है।
- अincorrect विकल्प: ए. आर. देसाई भारतीय समाज में पूंजीवाद और वर्ग संरचना पर काम करते थे। ई. वी. रामासामी पेरियार एक समाज सुधारक और आत्म-सम्मान आंदोलन के नेता थे। जी. एस. घुरिये ने जाति, जनजाति और भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण शोध किया, लेकिन संस्स्कृतिकरण शब्द उनका नहीं है।
प्रश्न 10: ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularization) के सिद्धांत के अनुसार, आधुनिक समाजों में धर्म की भूमिका और प्रभाव में किस प्रकार का परिवर्तन देखा जाता है?
- धर्म का प्रभाव बढ़ता है।
- धर्म का प्रभाव कम होता है और सार्वजनिक जीवन में उसकी भूमिका घटती है।
- धर्म का प्रभाव सभी क्षेत्रों में अपरिवर्तित रहता है।
- धर्म पूरी तरह से समाप्त हो जाता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत यह मानता है कि आधुनिक समाजों में, जैसे-जैसे शिक्षा, विज्ञान और तर्कवाद का प्रसार होता है, धर्म का प्रभाव कम होता जाता है और यह निजी या व्यक्तिगत दायरे तक सीमित हो जाता है, जबकि सार्वजनिक जीवन (जैसे राजनीति, शिक्षा, अर्थव्यवस्था) में इसकी भूमिका घट जाती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा विशेष रूप से पीटर एल. बर्गर (Peter L. Berger) जैसे समाजशास्त्रियों के कार्यों में महत्वपूर्ण है, हालांकि इसके विभिन्न रूप और व्याख्याएं हैं।
- अincorrect विकल्प: यह सिद्धांत मानता है कि धर्म पूरी तरह से समाप्त नहीं होता, बल्कि उसका स्वरूप और सामाजिक प्रभाव बदल जाता है। प्रभाव में वृद्धि या अपरिवर्तित रहना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विरुद्ध है।
प्रश्न 11: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो व्यक्तियों के बीच संबंधों, नेटवर्क और विश्वास के महत्व पर जोर देती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
- पियरे बॉर्डियू
- रॉबर्ट पुटनम
- जेम्स कॉलमैन
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को पियरे बॉर्डियू, रॉबर्ट पुटनम और जेम्स कॉलमैन जैसे कई प्रमुख समाजशास्त्रियों ने विकसित किया है, हालांकि उनके दृष्टिकोणों में कुछ भिन्नताएँ हैं। बॉर्डियू ने इसे सामाजिक संबंधों के माध्यम से प्राप्त संसाधनों के रूप में देखा, पुटनम ने नागरिक समाज और सामुदायिक जीवन में इसके महत्व पर जोर दिया, और कॉलमैन ने इसे सामाजिक संरचनाओं में एक संसाधन के रूप में परिभाषित किया जो अभिनेताओं (actors) को कुछ उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: तीनों ने सामाजिक पूंजी को व्यक्तिगत और सामूहिक लाभ के लिए सामाजिक नेटवर्क और इनसे उत्पन्न होने वाले विश्वास और सहयोग के महत्व को रेखांकित करने हेतु एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उपयोग किया।
- अincorrect विकल्प: चूंकि तीनों ने इस अवधारणा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है।
प्रश्न 12: ‘नियोजन’ (Pluralism) के सिद्धांत के अनुसार, एक लोकतांत्रिक समाज में शक्ति का वितरण कैसा होता है?
- शक्ति कुछ विशिष्ट अभिजात वर्ग के हाथों में केंद्रित होती है।
- शक्ति विभिन्न हित समूहों (Interest Groups) के बीच वितरित होती है, जो प्रतिस्पर्धा करते हैं।
- शक्ति केवल सरकार के हाथों में होती है।
- शक्ति का वितरण पूरी तरह से यादृच्छिक (Random) होता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: नियोजन (Pluralism) सिद्धांत का तर्क है कि आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों में शक्ति किसी एक समूह या अभिजात वर्ग के हाथों में केंद्रित नहीं होती, बल्कि यह विभिन्न हितों वाले समूहों (जैसे व्यापार संघ, राजनीतिक दल, लॉबी समूह) के बीच वितरित होती है। ये समूह आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं और संतुलन बनाते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: रॉबर्ट डहल (Robert Dahl) जैसे विद्वानों ने इस सिद्धांत का विस्तार से विश्लेषण किया है, विशेष रूप से शहरी शासन के संदर्भ में।
- अincorrect विकल्प: अभिजात वर्ग सिद्धांत (Elite Theory) शक्ति के केंद्रीकरण की बात करता है, जो नियोजन के विपरीत है। शक्ति का केवल सरकार के हाथों में होना भी अपूर्ण है, और यादृच्छिक वितरण अव्यवहारिक है।
प्रश्न 13: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो प्रौद्योगिकी और अभौतिक संस्कृति (जैसे मानदंड, मूल्य) के बीच असमान विकास को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री ने प्रस्तुत की?
- विलियम ओग्बर्न
- एमील दुर्खीम
- ई. जी. क्विन
- रॉबर्ट ई. पार्क
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: विलियम ओग्बर्न (William Ogburn) ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा को प्रस्तुत किया। उनका तर्क था कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे कानून, नैतिकता, रीति-रिवाज) की तुलना में तेजी से बदलती है, जिससे समाज में असंतुलन और समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: ओग्बर्न का मानना था कि समाज की अनुकूलन क्षमता भौतिक संस्कृति में होने वाले तीव्र परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाने में पीछे रह जाती है।
- अincorrect विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों और सामूहिक चेतना पर काम किया। ई. जी. क्विन ने सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांतों पर लिखा। रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल से जुड़े थे और शहरी समाजशास्त्र में योगदान दिया।
प्रश्न 14: ‘अभिजात वर्ग सिद्धांत’ (Elite Theory) के अनुसार, समाज में शक्ति का वास्तविक स्रोत कौन होता है?
- आम जनता
- चुने हुए प्रतिनिधि
- एक छोटी, शक्तिशाली और विशेषाधिकार प्राप्त अल्पसंख्यक (अभिजात वर्ग)
- विभिन्न हित समूह
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: अभिजात वर्ग सिद्धांत, जैसा कि विल्फ्रेडो पैरेटो (Vilfredo Pareto) और सी. राइट मिल्स (C. Wright Mills) जैसे विचारकों ने विकसित किया, यह तर्क देता है कि समाज पर हमेशा एक छोटा, एकजुट और शक्तिशाली अल्पसंख्यक वर्ग (अभिजात वर्ग) का शासन होता है, चाहे शासन का स्वरूप कुछ भी हो।
- संदर्भ एवं विस्तार: सी. राइट मिल्स ने अपनी पुस्तक ‘द पावर एलीट’ (The Power Elite) में अमेरिकी समाज में सैन्य, कॉर्पोरेट और राजनीतिक अभिजात वर्ग के बीच सत्ता के संकेंद्रण का विश्लेषण किया।
- अincorrect विकल्प: आम जनता, चुने हुए प्रतिनिधि और हित समूह (नियोजन सिद्धांत के अनुसार) शक्ति का वितरण करते हैं, लेकिन अभिजात वर्ग सिद्धांत के अनुसार, ये केवल दिखावटी या अभिजात वर्ग द्वारा नियंत्रित व्यवस्थाएँ होती हैं।
प्रश्न 15: ‘कन्वर्ट कल्चर’ (Convergent Culture) की अवधारणा, जो यह बताती है कि विभिन्न संस्कृतियाँ समय के साथ एक-दूसरे के करीब आती हैं और समान विशेषताओं को अपनाती हैं, किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से संबंधित है?
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद (Cultural Relativism)
- सांस्कृतिक विलंब (Cultural Lag)
- सांस्कृतिक प्रसार (Cultural Diffusion)
- सांस्कृतिक सर्वव्यापी (Cultural Universals)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: ‘सांस्कृतिक प्रसार’ (Cultural Diffusion) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सांस्कृतिक तत्व (जैसे विचार, आविष्कार, रीति-रिवाज) एक समाज से दूसरे समाज में फैलते हैं। समय के साथ, निरंतर प्रसार के कारण विभिन्न संस्कृतियाँ समान विशेषताओं को अपना सकती हैं, जिससे वे अभिसारी (convergent) लगने लगती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा इस विचार को रेखांकित करती है कि संस्कृतियाँ अलग-थलग नहीं रहतीं, बल्कि एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं और उनसे सीखती हैं, जिससे वैश्विक संस्कृतियों में कुछ हद तक समानता आती है।
- अincorrect विकल्प: सांस्कृतिक सापेक्षवाद प्रत्येक संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में समझने पर जोर देता है। सांस्कृतिक विलंब प्रौद्योगिकी और अमूर्त संस्कृति के बीच के अंतर से संबंधित है। सांस्कृतिक सर्वव्यापी वे तत्व हैं जो सभी ज्ञात संस्कृतियों में पाए जाते हैं, न कि प्रसार से उत्पन्न होने वाले।
प्रश्न 16: एम. एन. श्रीनिवास द्वारा ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा का उपयोग किस सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए किया गया था?
- भारत में ब्रिटिश शासन के प्रभाव से आए परिवर्तन
- आधुनिक शिक्षा और प्रौद्योगिकी का प्रसार
- शहरीकरण और औद्योगीकरण
- जाति व्यवस्था का विघटन
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘पश्चिमीकरण’ शब्द का प्रयोग विशेष रूप से भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान और उसके बाद आए उन सभी परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया जो पश्चिमी (विशेषकर ब्रिटिश) जीवन शैली, संस्थाओं, विचारों, प्रौद्योगिकी और मूल्यों के प्रभाव से उत्पन्न हुए थे।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह केवल राजनीतिक या आर्थिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत स्तर पर भी इसके गहरे प्रभाव थे। यह संस्स्कृतिकरण के विपरीत एक दिशा में परिवर्तन का संकेत देता है।
- अincorrect विकल्प: आधुनिक शिक्षा, प्रौद्योगिकी, शहरीकरण और औद्योगीकरण पश्चिमीकरण के ‘घटक’ या ‘परिणाम’ हो सकते हैं, लेकिन पश्चिमीकरण स्वयं ब्रिटिश शासन के व्यापक सांस्कृतिक प्रभाव को दर्शाता है। जाति व्यवस्था का विघटन एक परिणाम हो सकता है, लेकिन स्वयं पश्चिमीकरण नहीं।
प्रश्न 17: ‘पॉवर एलीट’ (The Power Elite) नामक अपनी प्रभावशाली पुस्तक में, सी. राइट मिल्स ने अमेरिकी समाज में शक्ति के तीन प्रमुख स्तंभों की पहचान की। इनमें से कौन सा स्तंभ इसमें शामिल नहीं है?
- सैन्य प्रतिष्ठान (Military Establishment)
- कॉर्पोरेट प्रतिष्ठान (Corporate Establishment)
- राजनीतिक प्रतिष्ठान (Political Establishment)
- मीडिया प्रतिष्ठान (Media Establishment)
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: सी. राइट मिल्स ने अपनी पुस्तक ‘द पावर एलीट’ (1956) में अमेरिकी समाज में शक्ति के तीन प्रमुख स्तंभों या क्षेत्रों की पहचान की: सैन्य प्रतिष्ठान, कॉर्पोरेट प्रतिष्ठान (बिग बिजनेस), और राष्ट्रीय सरकार (राजनीतिक प्रतिष्ठान)। इन तीन क्षेत्रों के शीर्ष नेता मिलकर ‘पॉवर एलीट’ का निर्माण करते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: मिल्स ने तर्क दिया कि ये तीन क्षेत्र आपस में इतने जुड़े हुए हैं कि उनके शीर्ष व्यक्ति एक ही अभिजात वर्ग का हिस्सा बन जाते हैं और देश की नीतियों को अपने हितों के अनुसार निर्देशित करते हैं।
- अincorrect विकल्प: जबकि मीडिया शक्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, मिल्स ने इसे सीधे तौर पर ‘पॉवर एलीट’ के तीन केंद्रीय स्तंभों में से एक के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया, बल्कि इसे अभिजात वर्ग के प्रभाव को बनाए रखने या प्रसारित करने वाले तंत्र के रूप में देखा।
प्रश्न 18: ‘सबल्टरन स्टडीज’ (Subaltern Studies) समूह के समाजशास्त्री मुख्य रूप से किन विषयों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते हैं?
- राज्य और अभिजात वर्ग की भूमिका
- कृषक आंदोलन और वंचित समूहों का प्रतिरोध
- शहरीकरण और औद्योगीकरण के प्रभाव
- आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: ‘सबल्टरन स्टडीज’ (Subaltern Studies) समूह, जिसमें कई इतिहासकार और समाजशास्त्री शामिल हैं, मुख्य रूप से औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक समाजों में अधीनस्थ, शोषित और हाशिए पर पड़े समूहों (जैसे कृषक, आदिवासी, महिलाएं, मजदूर) के इतिहास, उनके संघर्षों, प्रतिरोधों और स्वायत्त क्रियाओं का अध्ययन करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह उपागम इतिहास लेखन में एक नया दृष्टिकोण लाया, जिसने अभिजात वर्ग के इतिहास के बजाय नीचे से ऊपर (bottom-up) के इतिहास को सामने रखा।
- अincorrect विकल्प: यह उपागम राज्य, अभिजात वर्ग, शहरीकरण या शिक्षा प्रणाली के बजाय मुख्य रूप से उन लोगों पर ध्यान केंद्रित करता है जिन्हें पारंपरिक इतिहास में हाशिए पर रखा गया था।
प्रश्न 19: ‘संस्कृति’ (Culture) की समाजशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, इसमें क्या शामिल होता है?
- केवल कला और साहित्य
- केवल भौतिक वस्तुएँ (जैसे उपकरण, भवन)
- लोगों द्वारा सीखा गया व्यवहार, विश्वास, मूल्य, प्रतीक और कलाकृतियाँ
- केवल राष्ट्रीय पहचान
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: समाजशास्त्र में, संस्कृति को व्यापक अर्थों में समझा जाता है। यह केवल कला या भौतिक वस्तुएँ नहीं हैं, बल्कि वह सीखा हुआ व्यवहार, विचार, मूल्य, विश्वास, प्रतीक, भाषा और उत्पाद हैं जो किसी समूह या समाज के सदस्यों द्वारा साझा किए जाते हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: इसमें अभौतिक संस्कृति (मानदंड, मूल्य, विश्वास) और भौतिक संस्कृति (कलाकृतियाँ, उपकरण, प्रौद्योगिकी) दोनों शामिल हैं।
- अincorrect विकल्प: कला और साहित्य, या केवल भौतिक वस्तुएँ, संस्कृति के केवल अंग हैं, पूरी परिभाषा नहीं। राष्ट्रीय पहचान भी एक सांस्कृतिक तत्व हो सकता है, लेकिन यह पूरी संस्कृति को परिभाषित नहीं करता।
प्रश्न 20: ‘शहरीकरण’ (Urbanization) की प्रक्रिया का अर्थ क्या है?
- ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
- शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का बढ़ता घनत्व और शहरी जीवन शैली का प्रसार
- शहरों में अपराध दर में वृद्धि
- गांवों से शहरों की ओर पलायन को रोकना
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: शहरीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व बढ़ना, शहरों का आकार बढ़ना और शहरी जीवन शैली, मूल्यों और व्यवहारों का ग्रामीण और अन्य क्षेत्रों में प्रसार शामिल है। यह केवल लोगों का शहरों में जाना नहीं है, बल्कि शहरी तरीके से जीना भी है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह प्रक्रिया अक्सर औद्योगीकरण और आर्थिक अवसरों की उपलब्धता से जुड़ी होती है।
- अincorrect विकल्प: ग्रामीण विकास एक अलग प्रक्रिया है। अपराध दर में वृद्धि शहरीकरण का एक संभावित परिणाम या समस्या हो सकती है, लेकिन यह प्रक्रिया की परिभाषा नहीं है। पलायन रोकना शहरीकरण के विपरीत होगा।
प्रश्न 21: ‘सामाजिक अनुसंधान’ (Social Research) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
- केवल सामाजिक समस्याओं का समाधान खोजना
- समाज की व्याख्या करना, समझना और भविष्यवाणी करना
- सिर्फ मौजूदा ज्ञान की पुष्टि करना
- समाजशास्त्रियों के लिए रोजगार सृजित करना
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: सामाजिक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य सामाजिक घटनाओं, संरचनाओं, प्रक्रियाओं और अंतःक्रियाओं को व्यवस्थित तरीके से व्यवस्थित करना, उनकी व्याख्या करना, उनके कारणों और परिणामों को समझना, और भविष्य के व्यवहार या घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी करने के लिए सामान्यीकरण (generalizations) विकसित करना है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह विज्ञान की विधियों का उपयोग करके ज्ञान का विस्तार करने की एक प्रक्रिया है।
- अincorrect विकल्प: हालांकि सामाजिक अनुसंधान अक्सर समस्याओं को हल करने में मदद करता है, यह इसका एकमात्र या प्राथमिक उद्देश्य नहीं है। मौजूदा ज्ञान की पुष्टि के अलावा, यह नए ज्ञान की खोज भी करता है। रोजगार सृजन एक उप-उत्पाद हो सकता है, मुख्य उद्देश्य नहीं।
प्रश्न 22: ‘पारिवारिक संरचना’ (Family Structure) के संबंध में, ‘नातेदारी’ (Kinship) का क्या अर्थ है?
- विवाह से बने संबंध
- रक्त संबंध (Descent) या विवाह के माध्यम से स्थापित सामाजिक संबंध
- केवल माता-पिता और बच्चों के बीच संबंध
- परिवार में आर्थिक व्यवस्था
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: नातेदारी (Kinship) उन सामाजिक संबंधों को संदर्भित करती है जो रक्त संबंध (Descent) या विवाह (Affinity) के माध्यम से लोगों के बीच स्थापित होते हैं। यह न केवल जैविक बंधनों को बल्कि समाज द्वारा मान्यता प्राप्त सामाजिक और सांस्कृतिक बंधनों को भी शामिल करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: नातेदारी प्रणालियाँ समाज की संरचना, उत्तराधिकार, विरासत और सामाजिक व्यवस्था को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- अincorrect विकल्प: केवल विवाह से बने संबंध (जैसे कि वैवाहिक नातेदारी) नातेदारी का एक हिस्सा हैं, लेकिन इसमें रक्त संबंध (जैसे भाई-बहन) भी शामिल हैं। केवल माता-पिता-बच्चे का संबंध परिवार की एक छोटी इकाई है। आर्थिक व्यवस्था नातेदारी से जुड़ी हो सकती है, लेकिन यह नातेदारी का अर्थ नहीं है।
प्रश्न 23: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) से आप क्या समझते हैं?
- लोगों का केवल एक शहर से दूसरे शहर में जाना
- किसी व्यक्ति या समूह की एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में ऊपर या नीचे की ओर गति
- किसी समाज में राजनीतिक परिवर्तन
- सामाजिक नियमों का उल्लंघन
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) किसी व्यक्ति या समूह की सामाजिक पदानुक्रम (social hierarchy) में स्थिति में परिवर्तन को संदर्भित करती है। यह ऊर्ध्वाधर (vertical) (ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (horizontal) (समान स्तर पर) हो सकती है, और यह अंतर-पीढ़ी (intergenerational) (जैसे पिता और पुत्र की स्थिति) या अंतरा-पीढ़ी (intragenerational) (एक ही व्यक्ति के जीवनकाल में) हो सकती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह समाज की खुलीपन या बंदपन को मापने का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
- अincorrect विकल्प: शहरीकरण, राजनीतिक परिवर्तन या नियमों का उल्लंघन सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण या परिणाम हो सकते हैं, लेकिन वे स्वयं सामाजिक गतिशीलता की परिभाषा नहीं हैं।
प्रश्न 24: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) उपागम के मुख्य प्रवर्तक कौन माने जाते हैं?
- एमील दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- मैक्स वेबर
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के प्रमुख सैद्धांतिक अग्रदूतों में से एक माना जाता है। यद्यपि यह शब्द उनके छात्र हर्बर्ट ब्लूमर (Herbert Blumer) द्वारा गढ़ा गया था, मीड के विचार (जैसे ‘स्व’ (self), ‘अन्य’ (other), ‘समाज’ (society)) इस उपागम की नींव हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह उपागम मानता है कि समाज प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से होने वाली अंतःक्रियाओं से बनता है, और व्यक्ति इन प्रतीकों के माध्यम से ही अपने ‘स्व’ और दुनिया के बारे में अर्थ निर्मित करते हैं।
- अincorrect विकल्प: दुर्खीम और वेबर प्रकार्यवाद और व्याख्यात्मक समाजशास्त्र के प्रमुख विचारक थे। मार्क्स संघर्ष सिद्धांत के मुख्य विचारक थे।
प्रश्न 25: भारत में ‘आदिवासी’ (Tribal Communities) को परिभाषित करने में निम्नलिखित में से कौन सा एक मुख्य कारक आमतौर पर शामिल नहीं किया जाता है?
- उनकी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति
- उनकी अलग संस्कृति और भाषा
- उनकी सामान्य शारीरिक बनावट (Phenotype)
- उनका मुख्यधारा के समाज से भिन्न सामाजिक-आर्थिक संगठन
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: जबकि विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, अलग संस्कृति-भाषा और मुख्यधारा से भिन्न सामाजिक-आर्थिक संगठन भारतीय आदिवासियों को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण कारक रहे हैं (जैसा कि कई नृवंशविज्ञानियों और समाजशास्त्रियों द्वारा अध्ययन किया गया है), उनकी ‘सामान्य शारीरिक बनावट’ (Phenotype) को एक निर्णायक या प्राथमिक परिभाषित कारक नहीं माना जाता है। विभिन्न आदिवासी समुदायों में शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं, और उन्हें एक ही शारीरिक प्रकार में वर्गीकृत करना समस्याग्रस्त और वैज्ञानिक रूप से अमान्य है।
- संदर्भ एवं विस्तार: समाजशास्त्रीय और नृवंशविज्ञान संबंधी अध्ययन सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारकों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, न कि शारीरिक लक्षणों पर।
- अincorrect विकल्प: इन समुदायों की भौगोलिक एकांतता, विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान (जिसमें भाषा, रीति-रिवाज, विश्वास शामिल हैं), और मुख्यधारा के समाज से उनकी अलग आर्थिक और सामाजिक संरचनाएँ उन्हें परिभाषित करने में महत्वपूर्ण रही हैं।
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