समाजशास्त्र मंथन: अपनी पकड़ मज़बूत करें
सिविल सेवा और नेट परीक्षा की तैयारी में एक दिन का गैप भी आपकी गति को धीमा कर सकता है! आइए, आज के इस विशेष समाजशास्त्र अभ्यास सत्र के साथ अपनी अवधारणाओं को पैना करें और अपनी तैयारी को एक नई दिशा दें। क्या आप आज के 25 प्रश्नों के लिए तैयार हैं?
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (social facts) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसे उन्होंने समाजशास्त्र के अध्ययन का मूल आधार माना?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा दी। उन्होंने इसे बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाले जीवन के तरीके के रूप में परिभाषित किया।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक तथ्यों को वस्तुओं की तरह अध्ययन किया जाना चाहिए। यह प्रत्यक्षवाद (positivism) के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जो प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों को समाजशास्त्र पर लागू करने पर जोर देता है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर केंद्रित थे, मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) यानी व्याख्यात्मक समाजशास्त्र पर जोर दिया, और हरबर्ट स्पेंसर का योगदान सामाजिक विकास और संरचना पर था।
प्रश्न 2: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) के अध्ययन में, ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य केंद्र बिंदु क्या है?
- वर्ग संघर्ष और आर्थिक असमानता
- सामाजिक संरचनाओं का व्यक्तियों पर प्रभाव
- दैनिक जीवन में सामाजिक अंतःक्रियाओं और अर्थों का निर्माण
- संस्थाओं की भूमिका और उनके कार्य
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जॉर्ज हर्बर्ट मीड और हर्बर्ट ब्लूमर जैसे विचारकों से जुड़ा है। यह मानता है कि व्यक्ति अपने आसपास की दुनिया को समझने के लिए प्रतीकों (जैसे भाषा, हाव-भाव) का उपयोग करते हैं और अंतःक्रिया के माध्यम से अर्थों का निर्माण करते हैं। सामाजिक स्तरीकरण को समझने में, यह इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि लोग अपनी स्थिति को कैसे समझते हैं और बातचीत में कैसे प्रदर्शित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह परिप्रेक्ष्य ‘सूक्ष्म-समाजशास्त्र’ (micro-sociology) का हिस्सा है, जो बड़े पैमाने की सामाजिक संरचनाओं के बजाय व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत पर ध्यान केंद्रित करता है।
- गलत विकल्प: (a) मार्क्सवादी सिद्धांत से संबंधित है, (b) संरचनात्मक-कार्यात्मकतावाद (जैसे पार्सन्स) या संरचनावाद से अधिक जुड़ा है, और (d) मुख्य रूप से संरचनात्मक-कार्यात्मकतावाद का क्षेत्र है।
प्रश्न 3: “The Presentation of Self in Everyday Life” (1959) नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं, जिन्होंने ‘ड्रैमटर्जिक’ (Dramaturgical) दृष्टिकोण प्रस्तुत किया?
- इर्विंग गॉफमैन
- चार्ल्स कूली
- विलियम ग्राहम समनर
- अल्फ्रेड शूत्ज़
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: इर्विंग गॉफमैन ने इस पुस्तक में व्यक्ति के सामाजिक जीवन की तुलना रंगमंच के प्रदर्शन से की। उन्होंने बताया कि लोग विभिन्न ‘मंचों’ पर अलग-अलग ‘भूमिकाएं’ निभाते हैं और ‘मुखौटे’ पहनते हैं ताकि दूसरों पर एक निश्चित प्रभाव डाल सकें।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के भीतर एक महत्वपूर्ण योगदान है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि सामाजिक व्यवस्था कैसे बनाई जाती है और बनाए रखी जाती है।
- गलत विकल्प: चार्ल्स कूली ने ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (looking-glass self) की अवधारणा दी, विलियम ग्राहम समनर ने ‘लोकप्रियता’ (folkways) और ‘रूढ़ियाँ’ (mores) जैसे संप्रत्यय दिए, और अल्फ्रेड शूत्ज़ एक घटना विज्ञानी (phenomenologist) थे।
प्रश्न 4: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, ‘शुद्धता’ (Purity) और ‘अशुद्धता’ (Pollution) की अवधारणाएँ किसके द्वारा विश्लेषित की गई हैं?
- जी.एस. घुरिये
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- आंद्रे बेतेई
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने अपनी कृतियों, विशेषकर ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में, जाति के भीतर शुद्धता और अशुद्धता के पदानुक्रम (hierarchy) और उनके बीच के अंतःसंबंधों पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने ‘संसक्कृतिकरण’ (Sanskritization) जैसी अवधारणाओं के माध्यम से भी इन पहलुओं को छुआ।
- संदर्भ और विस्तार: यह शुद्धता-अशुद्धता का विचार अंतर-जातीय खान-पान, विवाह और स्पर्श संबंधी निषेधों (taboos) को नियंत्रित करता है, और जातिगत पदानुक्रम का एक मुख्य आधार है।
- गलत विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति पर व्यापक कार्य किया, इरावती कर्वे ने भी जाति और नातेदारी पर लिखा, लेकिन श्रीनिवास का शुद्धता-अशुद्धता पर जोर अधिक केंद्रित था। आंद्रे बेतेई ने पश्चिमी समाजों में भी शुद्धता-अशुद्धता पर काम किया है।
प्रश्न 5: दुर्खीम के अनुसार, समाज की एकता (cohesion) बनाए रखने में ‘यांत्रिक एकजुटता’ (Mechanical Solidarity) किस प्रकार के समाजों में पाई जाती है?
- औद्योगिक समाज
- आधुनिक, जटिल समाज
- सरल, पूर्व-औद्योगिक समाज जहाँ समानता अधिक होती है
- सेवा-आधारित समाज
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: दुर्खीम ने ‘The Division of Labour in Society’ में यांत्रिक एकजुटता का वर्णन किया है। यह उन समाजों में पाई जाती है जहाँ श्रम विभाजन कम होता है, लोगों के जीवन अनुभव और विश्वास समान होते हैं (सामूहिक चेतना प्रबल होती है), और व्यक्ति समूह का हिस्सा महसूस करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: इसके विपरीत, ‘कार्बनिक एकजुटता’ (Organic Solidarity) आधुनिक, जटिल समाजों में पाई जाती है जहाँ श्रम विभाजन अधिक होता है और लोग अपनी विशिष्ट भूमिकाओं के माध्यम से एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
- गलत विकल्प: औद्योगिक और आधुनिक समाज में कार्बनिक एकजुटता अधिक पाई जाती है। सेवा-आधारित समाज भी जटिल और आधुनिक समाज का ही हिस्सा हैं।
प्रश्न 6: भारत में ‘आदिवासी समुदायों’ (Tribal Communities) के अध्ययन में ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?
- जाति व्यवस्था से अलगाव
- आधुनिकीकरण, विस्थापन और मुख्यधारा के समाज में एकीकरण के कारण अपनी सांस्कृतिक पहचान खोना
- शहरीकरण के कारण ग्रामीण जीवन से अलगाव
- पूंजीवाद द्वारा उत्पन्न वर्ग विभाजन से अलगाव
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय आदिवासी समुदायों के संदर्भ में, अलगाव की अवधारणा का संबंध अक्सर बाहरी शक्तियों जैसे औपनिवेशिक शासन, आधुनिकीकरण, विकास परियोजनाओं के कारण होने वाले विस्थापन, और मुख्यधारा के समाज के साथ संपर्क से उपजी सांस्कृतिक और सामाजिक उथल-पुथल से है। इसके कारण वे अपनी पारंपरिक जीवन शैली, भूमि और पहचान से दूर हो जाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अलगाव उन्हें अपनी जड़ों से कटने और हाशिए पर महसूस करने की ओर ले जाता है।
- गलत विकल्प: (a) और (d) मार्क्सवादी अर्थों में अलगाव से संबंधित हैं, जो मुख्य रूप से श्रमिक वर्ग और उत्पादन के साधनों से जुड़ा है। (c) एक विशिष्ट प्रकार का अलगाव है, लेकिन आदिवासी समुदायों के लिए यह अवधारणा व्यापक है।
प्रश्न 7: मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में ‘अलगाव’ (Alienation) का सबसे मुख्य स्रोत क्या है?
- सरकार द्वारा सामाजिक नियंत्रण
- पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन की प्रक्रिया से विमुखता
- गलत सामाजिकरण
- धर्म का अफीम होना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने ‘Economic and Philosophic Manuscripts of 1844’ में अलगाव के चार मुख्य रूपों का वर्णन किया, जो सभी उत्पादन की प्रक्रिया से जुड़े हैं: श्रमिक अपने उत्पाद से, स्वयं उत्पादन की गतिविधि से, अपनी प्रजातीय प्रकृति (species-being) से, और अन्य मनुष्यों से अलग हो जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: पूंजीवादी व्यवस्था में, श्रमिक अपनी मेहनत के फल (उत्पाद) को बेचने के लिए मजबूर होता है, उत्पादन की प्रक्रिया पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होता, और वह अपने मानवीय सार से दूर हो जाता है।
- गलत विकल्प: (a) सामाजिक नियंत्रण मार्क्सवाद में प्रासंगिक है, लेकिन अलगाव का मूल कारण नहीं। (c) गलत समाजीकरण एक कारक हो सकता है, लेकिन मार्क्स का मुख्य बिंदु आर्थिक संरचना है। (d) धर्म के बारे में मार्क्स का कथन ‘जनता की अफीम’ के रूप में अलगाव का एक परिणाम है, न कि उसका मूल कारण।
प्रश्न 8: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की, जिसका अर्थ है कि सामाजिक परिवर्तन की गति में, भौतिक संस्कृति (material culture) अभौतिक संस्कृति (non-material culture) की तुलना में तेज़ी से बदलती है?
- विलियम एफ. ओगबर्न
- रॉबर्ट ई. पार्क
- एमिल दुर्खीम
- रॉबर्ट मैकिंतोश
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम एफ. ओगबर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Cultural and Natural Conditions’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ का विचार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि नई प्रौद्योगिकियाँ और नवाचार (भौतिक संस्कृति) अक्सर सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और कानूनों (अभौतिक संस्कृति) में परिवर्तन की तुलना में तेज़ी से उत्पन्न होते हैं, जिससे सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, कार का आविष्कार हुआ, लेकिन यातायात कानून और सड़क सुरक्षा के नियम (अभौतिक संस्कृति) तुरंत उसके अनुसार नहीं बदले।
- गलत विकल्प: रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल से जुड़े थे, एमिल दुर्खीम कार्यात्मकतावाद के अग्रदूत थे, और रॉबर्ट मैकिंतोश का समाजशास्त्र में योगदान मुख्य रूप से शक्ति और राजनीति से संबंधित रहा है।
प्रश्न 9: मैक्स वेबर के अनुसार, ‘करिश्माई अधिकार’ (Charismatic Authority) किस पर आधारित होता है?
- परंपरा और रीति-रिवाज
- तर्कसंगत नियम और कानून
- नेता के असाधारण व्यक्तिगत गुण और अनुयायियों का विश्वास
- नैतिकता और न्याय के सिद्धांत
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने अधिकार के तीन आदर्श प्रकार बताए: पारंपरिक, करिश्माई और कानूनी-तर्कसंगत। करिश्माई अधिकार किसी व्यक्ति के असाधारण गुणों, जैसे कि हीरोवाद, व्यक्तित्व या दैवीय प्रेरणा में विश्वास पर आधारित होता है, जिसके कारण उसके अनुयायी उसका अनुसरण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अधिकार अक्सर अस्थिर होता है क्योंकि यह व्यक्ति पर निर्भर करता है और करिश्माई नेता की मृत्यु या उसकी छवि के क्षरण के साथ समाप्त हो सकता है।
- गलत विकल्प: (a) पारंपरिक अधिकार से, (b) कानूनी-तर्कसंगत अधिकार से संबंधित है। (d) यह एक सामान्य नैतिक आधार है, लेकिन वेबर के करिश्माई अधिकार का मुख्य आधार व्यक्तिगत असाधारणता है।
प्रश्न 10: भारतीय समाज में, ‘जाति’ (Caste) को अक्सर एक ‘विस्तृत’ (Extended) या ‘अखंड’ (Segmentary) व्यवस्था के रूप में वर्णित किया जाता है। इसका क्या अर्थ है?
- जाति समूह के भीतर अंतर्विवाह (endogamy) का सख्त पालन
- जाति की सदियों पुरानी परंपराओं का निर्वहन
- जाति के भीतर विभिन्न उप-समूहों (sub-groups) और पदानुक्रमों की उपस्थिति, जहाँ प्रत्येक उप-समूह के अपने नियम और विशेषाधिकार होते हैं
- जाति का आर्थिक व्यवस्था से घनिष्ठ संबंध
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘विस्तृत’ या ‘अखंड’ व्यवस्था का अर्थ है कि जाति केवल एक एकल इकाई नहीं है, बल्कि यह उप-जातियों (jati) और गोत्रों (gotra) जैसे विभिन्न पदानुक्रमित स्तरों में विभाजित है। प्रत्येक उप-समूह के विवाह, खान-पान, और व्यवसाय संबंधी अपने विशेष नियम होते हैं, जो इसे एक जटिल और खंडित संरचना बनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था सामाजिक नियंत्रण और सामाजिक अलगाव को बनाए रखती है।
- गलत विकल्प: (a) अंतर्विवाह जाति का एक महत्वपूर्ण नियम है, लेकिन ‘विस्तृत/अखंड’ संरचना को पूरी तरह से परिभाषित नहीं करता। (b) परंपरा का निर्वहन सामान्य है। (d) आर्थिक संबंध एक पहलू है, लेकिन संरचनात्मक विस्तार मुख्य बिंदु है।
प्रश्न 11: ‘संस्था’ (Institution) को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से कैसे परिभाषित किया जाता है?
- व्यक्तियों का एक समूह जो एक सामान्य उद्देश्य के लिए एक साथ काम करता है
- मानदंडों, मूल्यों और भूमिकाओं का एक स्थापित पैटर्न जो समाज के एक महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए व्यवस्थित होता है
- किसी विशेष क्षेत्र में लोगों का एक अनौपचारिक जमावड़ा
- सरकार या राज्य का एक औपचारिक संगठन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, संस्था को स्थापित सामाजिक पैटर्न के रूप में परिभाषित किया जाता है जो समाज की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इसमें सदस्यों के लिए विशिष्ट भूमिकाएँ, नियम, विश्वास और व्यवहार के तरीके शामिल होते हैं। उदाहरण: विवाह, शिक्षा, धर्म, सरकार।
- संदर्भ और विस्तार: संस्थाएँ सामाजिक स्थिरता और पूर्वानुमेयता प्रदान करती हैं।
- गलत विकल्प: (a) एक संगठन या समिति जैसा है। (c) एक भीड़ या समूह जैसा है। (d) एक विशेष प्रकार का संगठन है, लेकिन संस्था की अवधारणा अधिक व्यापक है।
प्रश्न 12: ‘विभेदीय साहचर्य’ (Differential Association) का सिद्धांत, जो अपराध व्यवहार की व्याख्या करता है, किसने प्रतिपादित किया?
- रॉबर्ट मेर्टन
- एडविन सदरलैंड
- ट्रेविस हिरशी
- जॉन हौलेंड
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एडविन सदरलैंड ने अपने ‘विभेदीय साहचर्य’ सिद्धांत में तर्क दिया कि आपराधिक व्यवहार सीखा जाता है, ठीक उसी तरह जैसे कोई अन्य व्यवहार सीखा जाता है। यह सीखना उन व्यक्तियों के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से होता है जो अपराध के पक्ष में दृष्टिकोण रखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत बताता है कि अपराध की दरें व्यक्ति की निकटता और बार-बार उन लोगों के साथ अंतःक्रिया पर निर्भर करती हैं जो कानूनों के उल्लंघन को उचित ठहराते हैं।
- गलत विकल्प: रॉबर्ट मेर्टन ने ‘तनाव सिद्धांत’ (Strain Theory) प्रस्तुत किया, ट्रेविस हिरशी ने ‘सामाजिक नियंत्रण सिद्धांत’ (Social Control Theory) दिया, और जॉन हौलेंड ने भी अपराध समाजशास्त्र में योगदान दिया है।
प्रश्न 13: रॉबर्ट किंग मर्टन के अनुसार, ‘विसंगति’ (Anomie) की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
- जब व्यक्ति सामाजिक मानदंडों से पूरी तरह सहमत होते हैं
- जब समाज में सांस्कृतिक लक्ष्य और संस्थागत साधन के बीच असंतुलन होता है
- जब व्यक्ति अपनी सामाजिक भूमिकाओं को पूरी तरह से निभाते हैं
- जब समाज में अत्यधिक सामाजिक एकता होती है
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट मेर्टन ने दुर्खीम के ‘एनोमी’ के विचार को विकसित करते हुए कहा कि यह तब उत्पन्न होती है जब समाज कुछ सांस्कृतिक लक्ष्यों (जैसे धन या सफलता) को महत्व देता है, लेकिन उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी को समान संस्थागत या वैध साधन (जैसे शिक्षा, नौकरी) उपलब्ध नहीं कराता। इस असंतुलन से निराशा और विसंगति पैदा होती है।
- संदर्भ और विस्तार: मेर्टन ने विसंगति के पाँच प्रतिक्रिया प्रकारों की पहचान की: अनुरूपता (conformation), नवीनता (innovation), अनुष्ठानवाद (ritualism), वापसी (retreatism), और विद्रोह (rebellion)।
- गलत विकल्प: (a) और (c) आदर्श स्थितियाँ हैं। (d) अत्यधिक एकता से एनोमी नहीं, बल्कि अति-समाजीकरण (over-socialization) हो सकता है।
प्रश्न 14: ‘समूह’ (Group) के समाजशास्त्रीय अर्थ में, निम्नलिखित में से कौन सा तत्व आवश्यक है?
- सभी सदस्यों का एक ही स्थान पर उपस्थित होना
- सदस्यों के बीच पारस्परिक जागरूकता और अंतःक्रिया
- एक साझा नाम या पहचान
- सदस्यों के बीच समानता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, एक समूह केवल लोगों का संग्रह नहीं होता। इसमें सदस्यों के बीच पारस्परिक जागरूकता, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अंतःक्रिया, और एक सामान्य पहचान या भावना का होना आवश्यक है।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, भीड़ (crowd) में लोग एक साथ हो सकते हैं, लेकिन उनमें स्थायी अंतःक्रिया का अभाव होता है, इसलिए वे एक समूह नहीं माने जाते।
- गलत विकल्प: (a) शारीरिक निकटता आवश्यक नहीं है (जैसे ऑनलाइन समुदाय)। (c) साझा नाम हो सकता है, लेकिन यह समूह की परिभाषा के लिए पर्याप्त नहीं है। (d) सदस्यों में हमेशा पूर्ण समानता नहीं होती।
प्रश्न 15: भारत में ‘परिवार’ (Family) की संस्था के अध्ययन में, ‘संयुक्त परिवार’ (Joint Family) की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- कुछ सदस्यों का एक साथ रहना
- एक छत के नीचे अनेक पीढ़ियों का एक साथ रहना, सामान्य रसोई, संपत्ति और पूजा
- पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चों का एक साथ रहना
- एकल अभिभावक का बच्चों का पालन-पोषण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 16: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) के क्षेत्र में, पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन की प्रसिद्ध पुस्तक कौन सी है, जो सामाजिक वास्तविकता के निर्माण पर प्रकाश डालती है?
- The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism
- The Social Construction of Reality
- The Structure of Social Action
- An Essay on the Principle of Population
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पीटर एल. बर्जर और थॉमस लकमैन ने 1966 में अपनी पुस्तक ‘The Social Construction of Reality’ में तर्क दिया कि हमारी ‘वास्तविकता’ ईश्वर-प्रदत्त या प्राकृतिक नहीं है, बल्कि यह सामाजिक अंतःक्रियाओं और सामूहिक सहमतियों के माध्यम से निर्मित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह समाजशास्त्र में एक अत्यंत प्रभावशाली रचना है, जिसने घटना विज्ञान (phenomenology) और ज्ञानशास्त्र (epistemology) के बीच संबंध को मजबूत किया।
- गलत विकल्प: (a) मैक्स वेबर द्वारा लिखी गई, (c) टैल्कॉट पार्सन्स द्वारा लिखी गई, और (d) थॉमस माल्थस द्वारा लिखी गई है।
प्रश्न 17: ‘सार्वभौमिकता’ (Universality) की अवधारणा का संबंध समाजशास्त्रीय रूप से किस चीज से है?
- विशेष संस्कृतियों में पाई जाने वाली अनोखी प्रथाएँ
- सभी या लगभग सभी समाजों में पाए जाने वाले सांस्कृतिक तत्व (जैसे, भाषा, परिवार, विवाह)
- विशिष्ट समाजों के लिए आरक्षित विश्वास और मूल्य
- धार्मिक पंथों द्वारा अपनाई जाने वाली विशेष प्रथाएँ
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, ‘सार्वभौमिकता’ उन सांस्कृतिक तत्वों, व्यवहारों या संस्थाओं को संदर्भित करती है जो सभी या लगभग सभी मानव समाजों में किसी न किसी रूप में मौजूद होते हैं, भले ही उनके विशिष्ट रूप भिन्न हो सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, सभी समाजों में विवाह जैसी संस्था होती है, लेकिन विवाह की प्रथाएँ दुनिया भर में भिन्न-भिन्न होती हैं।
- गलत विकल्प: (a) और (c) विशेष या अद्वितीय प्रथाओं से संबंधित हैं, (d) एक विशिष्ट प्रकार के समूह से संबंधित है।
प्रश्न 18: भारत में ‘पेशा’ (Occupation) और ‘जाति’ (Caste) के बीच पारंपरिक संबंध को कैसे समझा जा सकता है?
- जाति का पेशे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
- जाति मुख्य रूप से एक धार्मिक पहचान है, पेशा नहीं
- अधिकांश जातियाँ पारंपरिक रूप से विशिष्ट व्यवसायों से जुड़ी हुई थीं, जिन्हें अक्सर वंशानुगत (hereditary) माना जाता था
- पेशा जातिगत पदानुक्रम को निर्धारित करता है
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय जाति व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि पारंपरिक रूप से अनेक जातियों के सदस्य विशेष व्यवसायों या पेशों से जुड़े थे, और यह व्यवसाय अक्सर वंशानुगत होता था। उदाहरण के लिए, नाई, धोबी, कुम्हार, लोहार आदि।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि आधुनिकरण ने इस संबंध को कमजोर किया है, यह ऐतिहासिक रूप से जाति व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है।
- गलत विकल्प: (a) और (b) पारंपरिक व्यवस्था के विपरीत हैं। (d) यह विपरीत क्रम है; पारंपरिक रूप से जाति पेशे को निर्धारित करती थी, न कि पेशा जाति को।
प्रश्न 19: ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) की अवधारणा का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- व्यक्तियों को अत्यधिक स्वतंत्र बनाना
- समाज में व्यवस्था, स्थिरता और पूर्वानुमेयता बनाए रखना
- सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करना
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अधिकतम करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक नियंत्रण उन तरीकों और तंत्रों को संदर्भित करता है जिनके द्वारा समाज अपने सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे स्थापित मानदंडों और मूल्यों के अनुरूप रहें। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था बनाए रखना है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक नियंत्रण औपचारिक (जैसे कानून, पुलिस) और अनौपचारिक (जैसे परिवार, जनमत, सामाजिक दबाव) दोनों हो सकता है।
- गलत विकल्प: (a) और (d) सामाजिक नियंत्रण के विपरीत हैं। (c) सामाजिक परिवर्तन सामाजिक नियंत्रण का परिणाम हो सकता है, लेकिन यह इसका प्राथमिक उद्देश्य नहीं है।
प्रश्न 20: ‘धर्म का समाजशास्त्र’ (Sociology of Religion) में, एमिल दुर्खीम ने धर्म को एक ‘एकजुटकारी शक्ति’ (Cohesive Force) के रूप में क्यों देखा?
- क्योंकि धर्म लोगों को अलौकिक शक्तियों से जोड़ता है
- क्योंकि धर्म सामूहिक अनुष्ठानों के माध्यम से साझा विश्वासों और मूल्यों को सुदृढ़ करता है, जिससे सामाजिक एकता बढ़ती है
- क्योंकि धर्म व्यक्तिगत मोक्ष का मार्ग बताता है
- क्योंकि धर्म सामाजिक नियमों को बनाए रखने के लिए दंड की व्यवस्था करता है
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Elementary Forms of Religious Life’ में तर्क दिया कि धर्म पवित्र (sacred) और अपवित्र (profane) के बीच भेद पर आधारित है। उन्होंने माना कि धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने से व्यक्तियों में सामूहिकता की भावना पैदा होती है, जिससे समाज की एकता मजबूत होती है।
- संदर्भ और विस्तार: उनके लिए, धर्म केवल व्यक्तिगत विश्वास नहीं था, बल्कि एक सामाजिक घटना थी जो सामाजिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण थी।
- गलत विकल्प: (a) यह धार्मिक विश्वास का हिस्सा है, लेकिन समाजशास्त्रीय कारण नहीं। (c) यह धर्मशास्त्र का विषय है। (d) दंड का प्रावधान कुछ धार्मिक व्यवस्थाओं में हो सकता है, लेकिन दुर्खीम का मुख्य जोर एकता पर था।
प्रश्न 21: भारत में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया ने सामाजिक संरचनाओं को किस प्रकार प्रभावित किया है?
- पारंपरिक संस्थाओं (जैसे संयुक्त परिवार, जाति) को मजबूत किया है
- जाति और वर्ग की भूमिका को कम किया है और नगरीकरण को बढ़ावा दिया है
- समाज को पूरी तरह से अपरिवर्तित रखा है
- केवल धार्मिक प्रथाओं में बदलाव लाया है
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकीकरण, औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, शिक्षा के प्रसार और पश्चिमीकरण के प्रभाव के माध्यम से, भारत में पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं को गहराई से प्रभावित किया है। इसने जाति व्यवस्था और संयुक्त परिवार जैसी संस्थाओं की पकड़ को कमजोर किया है, जबकि नगरीकरण और औपचारिक शिक्षा के प्रसार को बढ़ाया है।
- संदर्भ और विस्तार: इन परिवर्तनों ने सामाजिक गतिशीलता (social mobility) को भी बढ़ाया है।
- गलत विकल्प: (a) आधुनिकीकरण ने पारंपरिक संस्थाओं को कमजोर किया है, मजबूत नहीं। (c) आधुनिकीकरण एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया है। (d) इसने न केवल धार्मिक प्रथाओं, बल्कि समाज के लगभग हर पहलू को प्रभावित किया है।
प्रश्न 22: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के अनुसार, ‘स्व’ (Self) का विकास कैसे होता है?
- जन्म से ही पूरी तरह से विकसित होता है
- समाज से अलग-थलग रहकर विकसित होता है
- दूसरों के साथ अंतःक्रिया और उनके दृष्टिकोणों को ग्रहण करके विकसित होता है
- केवल आनुवंशिकी (genetics) द्वारा निर्धारित होता है
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, विशेष रूप से जॉर्ज हर्बर्ट मीड के विचारों के अनुसार, ‘स्व’ (self) एक सामाजिक उत्पाद है। यह व्यक्तियों के साथ अंतःक्रिया करते समय उनकी प्रतिक्रियाओं और दृष्टिकोणों को आंतरिक बनाने की प्रक्रिया के माध्यम से विकसित होता है, जिसे ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (looking-glass self) भी कहा जाता है (चार्ल्स कूली का विचार, जिसे मीड ने आगे बढ़ाया)।
- संदर्भ और विस्तार: हम दूसरों के प्रति अपने कार्यों को देखकर और उनकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर खुद को समझते हैं।
- गलत विकल्प: (a) और (d) जैविक निर्धारणावाद (biological determinism) का सुझाव देते हैं, जबकि (b) सामाजिक संपर्क की आवश्यकता को नजरअंदाज करता है।
प्रश्न 23: भारत में ‘वर्ग’ (Class) और ‘जाति’ (Caste) के बीच संबंध के बारे में समाजशास्त्रीय विश्लेषण क्या कहता है?
- वर्ग और जाति पूरी तरह से स्वतंत्र अवधारणाएँ हैं
- भारतीय समाज में जाति अक्सर वर्ग स्थिति को निर्धारित करती है, लेकिन वर्ग अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाता है
- वर्ग जाति की तुलना में भारतीय समाज में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
- जाति पूरी तरह से आर्थिक स्थिति पर आधारित है
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्रीय अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में जाति व्यवस्था ने ऐतिहासिक रूप से आर्थिक स्थिति और वर्ग संरचना को गहराई से प्रभावित किया है। उच्च जातियाँ अक्सर उच्च आर्थिक स्थिति रखती थीं, जबकि निम्न जातियों को आर्थिक अवसरों से वंचित रखा जाता था। हालांकि, आधुनिकीकरण के साथ, वर्ग भी एक महत्वपूर्ण निर्धारक कारक बनता जा रहा है, लेकिन जाति का प्रभाव पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है।
- संदर्भ और विस्तार: यह संबंध जटिल है और विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में भिन्न हो सकता है।
- गलत विकल्प: (a) वे स्वतंत्र नहीं हैं। (c) यह कहना कि वर्ग जाति से अधिक महत्वपूर्ण है, ऐतिहासिक रूप से भारतीय संदर्भ में बहस का विषय रहा है, और अक्सर जाति अधिक निर्णायक रही है। (d) जाति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयामों से भी जुड़ी है।
प्रश्न 24: ‘शहरीकरण’ (Urbanization) की प्रक्रिया के कारण शहरों में उत्पन्न होने वाली सामाजिक समस्याओं में से एक कौन सी है?
- पारिवारिक बंधन का मजबूत होना
- सामुदायिक भावना में वृद्धि
- सामाजिक विघटन, अपराध और भीड़भाड़
- रोजगार के अवसरों में कमी
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: शहरीकरण, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर बड़ी संख्या में लोगों का पलायन शामिल है, अक्सर सामाजिक विघटन, अपराध दर में वृद्धि, भीड़भाड़, आवास की कमी, प्रदूषण और अन्य सामाजिक समस्याओं को जन्म देता है। व्यक्तिगतता और गुमनामी बढ़ने से सामुदायिक भावना कमजोर हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: ये समस्याएँ अक्सर तेजी से अनियोजित शहरी विकास से जुड़ी होती हैं।
- गलत विकल्प: (a) और (b) अक्सर शहरीकरण के विपरीत प्रभाव माने जाते हैं (हालांकि शहरीकरण की विशिष्ट स्थितियाँ भिन्न हो सकती हैं)। (d) शहरीकरण सामान्यतः रोजगार के अवसरों में वृद्धि से जुड़ा होता है, भले ही वह असंगठित क्षेत्र में हो।
प्रश्न 25: ‘सामाजिक अनुसंधान’ (Social Research) में ‘वस्तुनिष्ठता’ (Objectivity) का क्या अर्थ है?
- अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों और भावनाओं का अध्ययन पर पूर्ण प्रभाव पड़ना
- अनुसंधान का निष्कर्ष व्यक्तिपरक मान्यताओं पर आधारित होना
- यह सुनिश्चित करना कि अनुसंधानकर्ता अपने व्यक्तिगत विश्वासों, मूल्यों और पूर्वाग्रहों को अध्ययन को प्रभावित न करने दे
- केवल मात्रात्मक डेटा (quantitative data) का उपयोग करना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि शोधकर्ता को साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष निकालना चाहिए, न कि अपनी व्यक्तिगत भावनाओं, विश्वासों या पूर्वकल्पित धारणाओं के आधार पर। इसका उद्देश्य सच्चाई को निष्पक्ष रूप से खोजना है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनुसंधान वस्तुनिष्ठ हो, वैज्ञानिक पद्धतियों, मानकीकृत प्रक्रियाओं और सहकर्मी-समीक्षा (peer-review) का उपयोग किया जाता है।
- गलत विकल्प: (a) और (b) वस्तुनिष्ठता के विपरीत हैं। (d) मात्रात्मक डेटा वस्तुनिष्ठता में मदद कर सकता है, लेकिन यह इसका एकमात्र या पूर्ण अर्थ नहीं है; गुणात्मक अनुसंधान (qualitative research) भी वस्तुनिष्ठ हो सकता है यदि वह व्यवस्थित और निष्पक्ष हो।