समाजशास्त्र मंथन: अपनी तैयारी को धार दें!
नमस्कार, भावी समाजशास्त्री! प्रतियोगिता परीक्षाओं की राह में आपकी निरंतरता और वैचारिक स्पष्टता अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज के इस विशेष सत्र में, हम समाजशास्त्र के विविध पहलुओं से 25 चुनिंदा प्रश्नों के माध्यम से आपकी समझ का गहन परीक्षण करेंगे। तैयार हो जाइए, यह आपके ज्ञान को परखने और उसे और निखारने का अवसर है!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
- यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है।
- यह समाज की विशेषताओं का परिणाम है, न कि व्यक्तियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का।
- यह समूह-आधारित है, केवल व्यक्तिगत योग्यता पर आधारित नहीं।
- यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी असमानता को बनाए रखता है।
उत्तर: (Correct Option Letter)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (a) यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक स्तरीकरण समाज की एक सार्वभौमिक घटना नहीं है, बल्कि यह विभिन्न समाजों में विभिन्न रूपों में प्रकट होती है। यद्यपि स्तरीकरण के तत्व कई समाजों में पाए जाते हैं, यह हर समाज का अनिवार्य लक्षण नहीं है (जैसे कि कुछ छोटे, गैर-कृषि समाजों में)। अन्य विकल्प (b, c, d) सामाजिक स्तरीकरण की प्रकृति को सही ढंग से परिभाषित करते हैं, जो समूहों के बीच संसाधनों के असमान वितरण और सामाजिक पदानुक्रम के निर्माण पर केंद्रित है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a) गलत है क्योंकि स्तरीकरण की प्रकृति और सीमाएँ समाज के अनुसार बदलती हैं।
प्रश्न 2: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में मुख्य वर्ग संघर्ष किन दो वर्गों के बीच है?
- बुर्जुआ और किसान
- बुर्जुआ और सर्वहारा
- सर्वहारा और किसान
- पूंजीपति और कारीगर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) बुर्जुआ और सर्वहारा।
- संदर्भ और विस्तार: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी समाज को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया: बुर्जुआ (Bourgeoisie), जो उत्पादन के साधनों के मालिक होते हैं (जैसे कारखानेदार, पूंजीपति), और सर्वहारा (Proletariat), जो अपने श्रम को बेचकर अपनी आजीविका कमाते हैं। मार्क्स का मानना था कि इन दोनों वर्गों के हित हमेशा विरोधी होते हैं, जिससे वर्ग संघर्ष उत्पन्न होता है, जो अंततः समाज में क्रांति लाएगा।
- गलत विकल्प: (a) किसान वर्ग ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन मार्क्सवादी सिद्धांत में बुर्जुआ और सर्वहारा को प्राथमिक विरोधी वर्ग माना गया है। (c) और (d) भी मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के मूल ढांचे का हिस्सा नहीं हैं।
प्रश्न 3: एमिल दुर्खीम ने ‘समाजशास्त्र’ को किस रूप में परिभाषित किया है?
- मानवीय व्यवहार का अध्ययन
- सामाजिक तथ्यों का अध्ययन
- शक्ति और प्रभुत्व का अध्ययन
- व्यक्तिगत चेतना का अध्ययन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) सामाजिक तथ्यों का अध्ययन।
- संदर्भ और विस्तार: एमिल दुर्खीम को समाजशास्त्र का एक संस्थापक माना जाता है। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में, उन्होंने समाजशास्त्र को ‘सामाजिक तथ्यों’ (Social Facts) के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया। सामाजिक तथ्य वे तरीके हैं जिनसे समाज में समूह के सदस्यों पर दबाव डालते हैं। ये बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना से उत्पन्न होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) मानवीय व्यवहार का अध्ययन मानव विज्ञान या मनोविज्ञान का अधिक केंद्रीय विषय हो सकता है। (c) शक्ति और प्रभुत्व सामाजिक तथ्यों के भीतर आ सकते हैं, लेकिन यह दुर्खीम की संपूर्ण परिभाषा नहीं है। (d) व्यक्तिगत चेतना मनोविज्ञान का विषय है।
प्रश्न 4: मैक्स वेबर ने ‘प्रत्ययवाद’ (Verstehen) की अवधारणा क्यों प्रस्तुत की?
- सामाजिक संरचनाओं को मापने के लिए
- सामाजिक घटनाओं के पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों को समझने के लिए
- सामाजिक परिवर्तनों की भविष्यवाणी करने के लिए
- सामाजिक नियंत्रण के तंत्र का अध्ययन करने के लिए
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) सामाजिक घटनाओं के पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों को समझने के लिए।
- संदर्भ और विस्तार: मैक्स वेबर की ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) की अवधारणा का अर्थ है ‘समझना’। यह व्याख्यात्मक समाजशास्त्र का एक केंद्रीय सिद्धांत है, जिसमें समाजशास्त्री को सामाजिक क्रियाओं के पीछे व्यक्तियों द्वारा दिए गए अर्थों, उद्देश्यों और प्रेरणाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह दुर्खीम के वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण के विपरीत, व्यक्तिपरक अनुभव पर जोर देता है।
- गलत विकल्प: (a) वेबर मात्रात्मक माप के बजाय गुणात्मक समझ पर जोर देते थे। (c) और (d) वेबर के व्यापक कार्य के हिस्से हो सकते हैं, लेकिन ‘वेरस्टेहेन’ का प्राथमिक उद्देश्य व्यक्तिपरक समझ है।
प्रश्न 5: ‘एलिनेशन’ (Alienation) या अलगाव की अवधारणा, जो पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था के संदर्भ में विवेचित है, किस विचारक से प्रमुखता से जुड़ी है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- जी. एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (c) कार्ल मार्क्स।
- संदर्भ और विस्तार: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ की अवधारणा को अपने प्रारंभिक लेखन, विशेष रूप से ‘इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ में गहराई से विश्लेषित किया। उन्होंने बताया कि कैसे पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली श्रमिकों को उनके श्रम, उत्पादन के उत्पाद, स्वयं से और अपने साथी मनुष्यों से अलग कर देती है, क्योंकि वे अपने श्रम के मालिक नहीं होते और उत्पादन प्रक्रिया पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) की बात की, जो सामाजिक मानदंडों की कमी से उत्पन्न होती है। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता से उत्पन्न अलगाव की बात की, लेकिन मार्क्स का अलगाव का सिद्धांत मौलिक और व्यापक था। मीड ने ‘सेल्फ’ (Self) के विकास में सामाजिक अंतःक्रिया की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 6: भारतीय समाज में ‘जाति व्यवस्था’ के संबंध में, बी. आर. अम्बेडकर ने इसे मुख्य रूप से किसका परिणाम माना है?
- धार्मिक अनुष्ठानों का प्रचलन
- श्रम के विभाजन का कृत्रिम विस्तार
- भूमि स्वामित्व का असमान वितरण
- जाति-आधारित पेशागत विशेषज्ञता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 7: एम. एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ा गया ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) शब्द किससे संबंधित है?
- पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव
- उच्च जातियों के रीति-रिवाजों और परंपराओं को अपनाना
- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
- शहरी जीवन शैली को अपनाना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) उच्च जातियों के रीति-रिवाजों और परंपराओं को अपनाना।
- संदर्भ और विस्तार: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ की अवधारणा को अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रस्तुत किया। इसका अर्थ है कि निचली या मध्यम जातियों के समूह, या कभी-कभी जनजातियाँ, उच्च द्विजों (twice-born) की प्रथाओं, अनुष्ठानों, जीवन शैली और विचारधाराओं को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है।
- गलत विकल्प: (a) पश्चिमीकरण पश्चिमी संस्कृति से संबंधित है। (c) आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है। (d) शहरीकरण शहरी जीवन शैली को अपनाना है।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रतिपादकों में से एक है?
- टोल्कोट पार्सन्स
- रॉबर्ट ई. पार्क
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- रेमंड एरोन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (c) जॉर्ज हर्बर्ट मीड।
- संदर्भ और विस्तार: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का जनक माना जाता है। उनके विचारों, जिन्हें उनके छात्रों ने उनकी मृत्यु के बाद ‘माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी’ (Mind, Self and Society) में संकलित किया, ने इस सिद्धांत की नींव रखी। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति की सामाजिक दुनिया में अर्थ निर्माण की प्रक्रिया पर केंद्रित है, जो प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से होने वाली अंतःक्रियाओं द्वारा संभव होता है।
- गलत विकल्प: (a) पार्सन्स संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) से संबंधित हैं। (b) पार्क शिकागो स्कूल से संबंधित थे जिन्होंने शहरी समाजशास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। (d) एरोन एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री और दार्शनिक थे।
प्रश्न 9: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो समाज में सामाजिक मानदंडों की अस्थिरता या कमी को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से सर्वाधिक जुड़ी है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- इर्विंग गॉफमैन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (c) एमिल दुर्खीम।
- संदर्भ और विस्तार: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ की अवधारणा का प्रयोग यह बताने के लिए किया कि जब सामाजिक नियम या मानदंड कमजोर या अनुपस्थित होते हैं, तो व्यक्ति दिशाहीन और अनिश्चित महसूस करता है। यह विशेष रूप से सामाजिक परिवर्तनों या संकटों के समय में होता है, जहाँ पुरानी मान्यताएँ टूट जाती हैं और नई स्थापित नहीं हो पातीं। उन्होंने इसे अपराध दर में वृद्धि से भी जोड़ा।
- गलत विकल्प: मार्क्स वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता के संदर्भ में बातें कीं। गॉफमैन ने ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) के सिद्धांत के माध्यम से सामाजिक अंतःक्रिया का अध्ययन किया।
प्रश्न 10: भारतीय समाज में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया का एक प्रमुख परिणाम क्या रहा है?
- जाति व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण
- पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं में वृद्धि
- लघु उद्योगों का ह्रास
- धर्मनिरपेक्षता और तर्कसंगत सोच का प्रसार
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (d) धर्मनिरपेक्षता और तर्कसंगत सोच का प्रसार।
- संदर्भ और विस्तार: आधुनिकीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन शामिल हैं। भारतीय संदर्भ में, इसने औद्योगीकरण, शहरीकरण, शिक्षा का विस्तार और पश्चिमी विचारों के प्रभाव के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता (secularism) और तर्कसंगत सोच (rational thinking) को बढ़ावा दिया है, भले ही पारंपरिक मूल्य अभी भी महत्वपूर्ण हैं।
- गलत विकल्प: (a) जबकि जाति अभी भी प्रासंगिक है, आधुनिकीकरण ने कुछ हद तक इसके प्रभाव को कम किया है। (b) आधुनिकीकरण अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों की बजाय तर्कसंगतता को बढ़ावा देता है। (c) आधुनिकीकरण के कारण कुछ लघु उद्योग प्रभावित हुए हैं, लेकिन यह इसका एक मात्र या मुख्य परिणाम नहीं है।
प्रश्न 11: ‘सामाजिक संस्था’ (Social Institution) का अर्थ क्या है?
- एक सामाजिक समूह जिसकी अपनी विशिष्ट संस्कृति हो
- मानदंडों, मूल्यों और भूमिकाओं का एक सुस्थापित और स्थायी पैटर्न जो समाज की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करता है
- समुदाय के सदस्यों के बीच संबंध
- व्यक्तिगत विश्वास और विचार
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) मानदंडों, मूल्यों और भूमिकाओं का एक सुस्थापित और स्थायी पैटर्न जो समाज की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक संस्थाएँ समाज की मूलभूत संरचनाएँ हैं जो कुछ स्थायी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विकसित होती हैं, जैसे परिवार (प्रजनन और प्रारंभिक समाजीकरण), शिक्षा (ज्ञान हस्तांतरण), अर्थव्यवस्था (संसाधन वितरण), राजनीति (शक्ति और व्यवस्था) और धर्म (अर्थ और नैतिकता)। इनमें स्पष्ट नियम, अपेक्षित व्यवहार (भूमिकाएँ) और साझा विश्वास (मान्यताएँ) शामिल होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) एक सामाजिक समूह अपनी संस्कृति के साथ एक अलग इकाई हो सकता है, लेकिन संस्था वह व्यवस्था है जो संस्कृति को मूर्त रूप देती है। (c) संबंध संस्था का हिस्सा हैं, लेकिन पूरी परिभाषा नहीं। (d) व्यक्तिगत विश्वास संस्था का आधार हो सकते हैं, लेकिन संस्था स्वयं एक सामाजिक ढाँचा है।
प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सी ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का प्रकार नहीं है?
- ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility)
- क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)
- अंतर-पीढ़ी गतिशीलता (Inter-generational Mobility)
- स्थिर सामाजिक गतिशीलता (Static Social Mobility)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (d) स्थिर सामाजिक गतिशीलता।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता का तात्पर्य व्यक्ति या समूह की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन से है। ऊर्ध्वाधर गतिशीलता का अर्थ है निम्न से उच्च या उच्च से निम्न स्थिति में जाना। क्षैतिज गतिशीलता का अर्थ है एक ही सामाजिक स्तर पर स्थिति बदलना (जैसे एक ही पद पर दूसरी कंपनी में जाना)। अंतर-पीढ़ी गतिशीलता का अर्थ है एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक होने वाला सामाजिक स्थिति परिवर्तन। ‘स्थिर सामाजिक गतिशीलता’ एक विरोधाभासी शब्द है क्योंकि गतिशीलता का अर्थ ही परिवर्तन है।
- गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सामाजिक गतिशीलता के सुस्थापित प्रकार हैं।
प्रश्न 13: ‘सामाजिक विघटन’ (Social Disorganization) की अवधारणा से कौन सा परिप्रेक्ष्य (Perspective) सबसे अधिक जुड़ा हुआ है?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- मानवशास्त्रीय समाजशास्त्र (Anthropological Sociology)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (c) संरचनात्मक प्रकार्यवाद।
- संदर्भ और विस्तार: संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है जिसके विभिन्न हिस्से (संरचनाएँ) एक साथ मिलकर काम करते हैं ताकि व्यवस्था बनी रहे। जब ये संरचनाएँ ठीक से काम करना बंद कर देती हैं या समाज अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है, तो ‘सामाजिक विघटन’ उत्पन्न होता है। दुर्खीम का ‘एनोमी’ इसी से संबंधित है।
- गलत विकल्प: (a) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तियों के बीच सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। (b) संघर्ष सिद्धांत शक्ति और प्रभुत्व पर केंद्रित है, जो विघटन का कारण बन सकते हैं, लेकिन यह विघटन का मुख्य विश्लेषणात्मक ढाँचा नहीं है। (d) मानवशास्त्रीय समाजशास्त्र सांस्कृतिक प्रणालियों का अध्ययन करता है।
प्रश्न 14: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किस समाजशास्त्री द्वारा दी गई थी?
- विलियम एफ. ओग्बर्न
- एल्बर्ट श्ज़ (Albert Schütz)
- पीटर एल. बर्जर (Peter L. Berger)
- रॉबर्ट के. मर्टन
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (a) विलियम एफ. ओग्बर्न।
- संदर्भ और विस्तार: विलियम एफ. ओग्बर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा को 1922 में अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ में प्रस्तुत किया। उनका तर्क था कि समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, आविष्कार) अभौतिक संस्कृति (जैसे कानून, रीति-रिवाज, नैतिकता, संस्थाएँ) की तुलना में बहुत तेजी से बदलती है। इससे एक ‘विलंब’ या असंतुलन पैदा होता है, जो सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है।
- गलत विकल्प: (b) श्ज़ और (c) बर्जर भी महत्वपूर्ण समाजशास्त्री रहे हैं, लेकिन सांस्कृतिक विलंब से सीधे नहीं जुड़े हैं। (d) मर्टन ने ‘अनुकूलन’ (Adaptation) और ‘कार्य’ (Function) जैसी अवधारणाएँ दीं।
प्रश्न 15: ‘अभिजन सिद्धांत’ (Elite Theory) के प्रमुख प्रतिपादकों में से कौन एक हैं?
- सी. राइट मिल्स
- जे. पी. सार्त्र
- मिशेल फूको
- एंटोनियो ग्राम्शी
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (a) सी. राइट मिल्स।
- संदर्भ और विस्तार: सी. राइट मिल्स ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक ‘The Power Elite’ (1956) में अमेरिकी समाज में शक्ति के अभिजन के उदय का विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि युद्ध, अर्थव्यवस्था और राजनीति के तीन प्रमुख क्षेत्रों में कुछ शक्तिशाली व्यक्ति (जैसे उच्च सैन्य अधिकारी, प्रमुख कॉर्पोरेट कार्यकारी, और राजनीतिक नेता) मिलकर एक ‘शक्ति अभिजन’ बनाते हैं जो समाज की दिशा तय करता है।
- गलत विकल्प: (b) सार्त्र एक अस्तित्ववादी दार्शनिक थे। (c) फूको शक्ति, ज्ञान और प्रवचन के बीच संबंधों का विश्लेषण करते हैं। (d) ग्राम्शी ने ‘सांस्कृतिक प्रभुत्व’ (Cultural Hegemony) की अवधारणा दी।
प्रश्न 16: ‘समूह की गतिशीलता’ (Group Dynamics) का अध्ययन किसने प्रारंभ किया?
- कुर्ट लेविन
- हाइमन (Hyman)
- श्ज़ (Schütz)
- गॉफमैन (Goffman)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (a) कुर्ट लेविन।
- संदर्भ और विस्तार: कुर्ट लेविन, एक जर्मन-अमेरिकी मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री, को ‘समूह गतिशीलता’ के क्षेत्र का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने ‘क्षेत्र सिद्धांत’ (Field Theory) का उपयोग करके यह समझाने का प्रयास किया कि कैसे किसी समूह के भीतर विभिन्न शक्तियाँ (व्यक्तिगत, पारस्परिक और पर्यावरणीय) समूह के व्यवहार और परिवर्तन को प्रभावित करती हैं। उन्होंने ‘समूह’ को ‘गतिशील संपूर्ण’ के रूप में देखा।
- गलत विकल्प: (b) हाइमन जनमत (Public Opinion) पर अपने शोध के लिए जाने जाते हैं। (c) श्ज़ (Schütz) घटना विज्ञान (Phenomenology) के क्षेत्र से जुड़े हैं। (d) गॉफमैन सामाजिक अंतःक्रिया को रंगमंचीय प्रदर्शन के रूप में देखते थे।
प्रश्न 17: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा का सबसे अच्छा वर्णन निम्नलिखित में से कौन करता है?
- किसी समाज के व्यक्तियों का समुच्चय
- समाज में स्थापित, स्थिर और अपेक्षाकृत स्थायी सामाजिक संबंधों, संस्थाओं और पैटर्न का जाल
- व्यक्तिगत इच्छाओं और प्रेरणाओं का समूह
- सांस्कृतिक मूल्यों और विश्वासों का संग्रह
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) समाज में स्थापित, स्थिर और अपेक्षाकृत स्थायी सामाजिक संबंधों, संस्थाओं और पैटर्न का जाल।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक संरचना समाज का वह मूलभूत ढाँचा है जो यह निर्धारित करता है कि समाज के सदस्य एक-दूसरे से कैसे संबंधित हैं और विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ कैसे कार्य करती हैं। इसमें भूमिकाएँ, प्रस्थिति, नियम, अधिकार और दायित्व शामिल होते हैं जो समाज की स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित करते हैं।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तियों का समुच्चय केवल जनसंख्या है, संरचना नहीं। (c) व्यक्तिगत इच्छाएँ संरचना को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन वे स्वयं संरचना नहीं हैं। (d) सांस्कृतिक मूल्य संरचना का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन वे स्वयं संरचना का पूरा वर्णन नहीं करते।
प्रश्न 18: भारत में ‘आदिवासी समाज’ (Tribal Society) के अध्ययन में ‘अलगाव’ (Isolation) के बजाय ‘एकीकरण’ (Integration) पर बल देने वाले समाजशास्त्री कौन हैं?
- एन. के. बोस
- एस. सी. रॉय
- घासीराम
- इरावती कर्वे
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (a) एन. के. बोस।
- संदर्भ और विस्तार: एन. के. बोस (Nirmal Kumar Bose) एक प्रसिद्ध मानवशास्त्री और समाजशास्त्री थे जिन्होंने भारतीय जनजातियों का अध्ययन किया। उन्होंने जनजातियों को पूरी तरह से अलग-थलग मानने के बजाय, भारतीय मुख्यधारा की संस्कृति के साथ उनके ‘एकीकरण’ (Integration) की प्रक्रिया पर जोर दिया। उन्होंने जनजातियों को भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग माना, न कि पूरी तरह से बाहरी।
- गलत विकल्प: (b) एस. सी. रॉय को भारतीय मानवविज्ञान का जनक माना जाता है और उन्होंने जनजातियों के विस्तृत अध्ययन किए, लेकिन बोस का जोर एकीकरण पर अधिक था। (c) घासीराम और (d) इरावती कर्वे भी महत्वपूर्ण समाजशास्त्री रहे हैं, लेकिन बोस की तरह एकीकरण पर विशेष जोर नहीं दिया।
प्रश्न 19: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा का क्या अर्थ है?
- किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध वित्तीय संसाधन
- सामाजिक संबंधों और नेटवर्क के माध्यम से प्राप्त लाभ
- किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और प्रतिष्ठा
- समूह के सदस्यों के बीच साझा ज्ञान
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) सामाजिक संबंधों और नेटवर्क के माध्यम से प्राप्त लाभ।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक पूंजी का तात्पर्य उन संसाधनों से है जो व्यक्ति अपने सामाजिक नेटवर्क (जैसे परिवार, मित्र, सहकर्मी, समुदाय) के माध्यम से प्राप्त करता है। इन संसाधनों में विश्वास, सहयोग, सूचना, अवसर और समर्थन शामिल हो सकते हैं, जो व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं। यह अवधारणा पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) जैसे विचारकों द्वारा विकसित की गई है।
- गलत विकल्प: (a) वित्तीय संसाधन ‘आर्थिक पूंजी’ से संबंधित हैं। (c) सामाजिक स्थिति ‘सामाजिक प्रतिष्ठा’ है। (d) साझा ज्ञान सामाजिक पूंजी का एक घटक हो सकता है, लेकिन यह पूरी अवधारणा नहीं है।
प्रश्न 20: ‘आदर्श प्रारूप’ (Ideal Type) की अवधारणा, जिसका उपयोग समाजशास्त्रीय विश्लेषण के लिए किया जाता है, किस विचारक से जुड़ी है?
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- टी. पार्न्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (c) मैक्स वेबर।
- संदर्भ और विस्तार: मैक्स वेबर ने ‘आदर्श प्रारूप’ (Ideal Type) को एक विश्लेषणात्मक उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया। यह वास्तविकता का एक अतिरंजित या सुसंगत चित्र होता है, जो समाजशास्त्री को वास्तविक सामाजिक घटनाओं को समझने और उनका विश्लेषण करने में मदद करता है। आदर्श प्रारूप कोई आदर्श या वांछनीय अवस्था नहीं है, बल्कि एक वैचारिक निर्माण है जो विशिष्ट लक्षणों को उजागर करता है (जैसे नौकरशाही का आदर्श प्रारूप, पूंजीवाद का आदर्श प्रारूप)।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ पर जोर दिया। मार्क्स ने ‘वर्ग संघर्ष’ पर। पार्सन्स ने ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ में ‘सबसिस्टम’ (Subsystem) और ‘पैरेड्स’ (Parades) की बात की।
प्रश्न 21: ‘समूह पहचान’ (Group Identity) के निर्माण में कौन सा कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है?
- केवल व्यक्तिगत अनुभव
- साझा इतिहास, संस्कृति और सामान्यीकृत ‘हम’ की भावना
- बाह्य समूहों से पूरी तरह अलगाव
- सभी सामाजिक नियमों का पूर्ण पालन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (b) साझा इतिहास, संस्कृति और सामान्यीकृत ‘हम’ की भावना।
- संदर्भ और विस्तार: समूह पहचान वह भावना है जो किसी व्यक्ति को किसी विशेष समूह का सदस्य महसूस कराती है। यह अक्सर साझा किए गए इतिहास, संस्कृति, मूल्यों, भाषा, परंपराओं और एक सामान्य ‘हम’ (us) बनाम ‘वे’ (them) की भावना के माध्यम से विकसित होती है। यह सामाजिक संपर्क और समूह के भीतर साझा अनुभवों पर आधारित होती है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत अनुभव महत्वपूर्ण हैं, लेकिन समूह पहचान समूह-व्यापी कारकों से अधिक प्रभावित होती है। (c) पूर्ण अलगाव समूह निर्माण को बाधित कर सकता है, जबकि कुछ बाहरी समूहों से भिन्नता पहचान को मजबूत करती है। (d) सामाजिक नियमों का पालन समूह की सदस्यता के लिए आवश्यक हो सकता है, लेकिन यह स्वयं पहचान का मुख्य निर्माता नहीं है।
प्रश्न 22: ‘संस्कृति का द्वैतवाद’ (Duality of Culture) की अवधारणा, जो संस्कृति के दोहरे स्वरूप (भौतिक और अभौतिक) को दर्शाती है, किस विद्वान से संबंधित है?
- ई. बी. टाइलर
- एमिल दुर्खीम
- विलियम एफ. ओग्बर्न
- ए. एल. क्रोबर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (c) विलियम एफ. ओग्बर्न।
- संदर्भ और विस्तार: जैसा कि प्रश्न 14 में बताया गया है, विलियम एफ. ओग्बर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अपनी अवधारणा के हिस्से के रूप में संस्कृति को दो भागों में विभाजित किया: ‘भौतिक संस्कृति’ (Material Culture) और ‘अभौतिक संस्कृति’ (Non-material Culture)। उन्होंने तर्क दिया कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अधिक तेज़ी से बदलती है, जबकि अभौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, रीति-रिवाज, नियम) धीमी गति से बदलती है, जिससे सांस्कृतिक विलंब होता है।
- गलत विकल्प: (a) टाइलर ने संस्कृति की एक विस्तृत परिभाषा दी। (b) दुर्खीम ने ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) पर बल दिया। (d) क्रोबर ने मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से संस्कृति का अध्ययन किया।
प्रश्न 23: ‘शक्ति का वैधकरण’ (Legitimation of Power) के संदर्भ में, मैक्स वेबर द्वारा बताए गए सत्ता (Authority) के तीन आदर्श प्रारूपों में कौन सा शामिल नहीं है?
- तर्कसंगत-कानूनी सत्ता (Rational-Legal Authority)
- परंपरागत सत्ता (Traditional Authority)
- चूंकि वेबर ने तीन प्रकार बताए थे, इनमें से कोई नहीं।
- करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (c) चूंकि वेबर ने तीन प्रकार बताए थे, इनमें से कोई नहीं।
- संदर्भ और विस्तार: मैक्स वेबर ने सत्ता (Authority) को तीन आदर्श प्रारूपों में वर्गीकृत किया:
- तर्कसंगत-कानूनी सत्ता: यह कानून, नियमों और प्रक्रियाओं पर आधारित होती है (जैसे आधुनिक नौकरशाही, लोकतांत्रिक सरकारें)।
- परंपरागत सत्ता: यह सदियों पुरानी परंपराओं, रीति-रिवाजों और स्थापित व्यवस्थाओं पर आधारित होती है (जैसे राजशाही, वंशानुगत पद)।
- करिश्माई सत्ता: यह किसी नेता के असाधारण व्यक्तिगत गुणों, जैसे कि वीरता, पवित्रता या असाधारण शक्ति के करिश्मे पर आधारित होती है (जैसे पैगंबर, युद्धनायक)।
- गलत विकल्प: सभी सूचीबद्ध विकल्प (a, b, d) वेबर के बताए गए सत्ता के आदर्श प्रारूपों में से हैं, इसलिए ऐसा कोई विकल्प नहीं है जो उनमें शामिल न हो।
प्रश्न 24: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) को मुख्य रूप से ‘संस्कृति’ और ‘प्रौद्योगिकी’ के बीच असंतुलन के रूप में किसने देखा?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- विलियम एफ. ओग्बर्न
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (d) विलियम एफ. ओग्बर्न।
- संदर्भ और विस्तार: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, विलियम एफ. ओग्बर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा के माध्यम से इस विचार को प्रस्तुत किया कि प्रौद्योगिकी (भौतिक संस्कृति) के तीव्र विकास और सामाजिक नियमों, मूल्यों और संस्थाओं (अभौतिक संस्कृति) के धीमी गति से परिवर्तन के बीच एक असंतुलन पैदा होता है, जो सामाजिक परिवर्तन और उससे जुड़ी समस्याओं को जन्म देता है।
- गलत विकल्प: मार्क्स ने वर्ग संघर्ष को परिवर्तन का मुख्य चालक माना। दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता (Social Solidarity) में परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया। वेबर ने विचारों और नौकरशाही जैसे कारकों को महत्वपूर्ण माना।
प्रश्न 25: ‘ग्राम समुदाय’ (Village Community) भारतीय समाजशास्त्रीय अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। इनमें से कौन से समाजशास्त्री ने भारतीय ग्राम समुदायों की व्यवस्था और परिवर्तन पर विशेष रूप से काम किया है?
- एम. एन. श्रीनिवास
- डी. एन. मजूमदार
- इरावती कर्वे
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: (d) उपरोक्त सभी।
- संदर्भ और विस्तार: एम. एन. श्रीनिवास ने मैसूर के रामपुरा गांव में अपना प्रसिद्ध फील्डवर्क किया और भारतीय ग्राम जीवन, जाति और ग्राम समुदाय पर महत्वपूर्ण कार्य किया। डी. एन. मजूमदार ने उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के हाटा तहसील में विभिन्न जनजातियों और ग्रामीण समुदायों का अध्ययन किया। इरावती कर्वे ने भी भारतीय समाज, विशेष रूप से महाराष्ट्र और अन्य क्षेत्रों के समुदायों, नातेदारी व्यवस्था और सांस्कृतिक पैटर्न पर विस्तृत अध्ययन किए, जिसमें ग्राम जीवन के पहलू भी शामिल थे। इन तीनों ने भारतीय ग्राम समुदायों की सामाजिक व्यवस्था, संरचना और परिवर्तन को समझने में अमूल्य योगदान दिया है।
- गलत विकल्प: चूंकि सभी विकल्प भारतीय ग्राम समुदायों के अध्ययन से जुड़े रहे हैं, इसलिए यह विकल्प सही है।