समाजशास्त्र के महारथी बनें: आज का चुनौती प्रश्न
क्या आप समाजशास्त्र की गहरी समझ रखते हैं? अपनी अवधारणाओं को पैना करने और विश्लेषणात्मक कौशल को निखारने का यह शानदार अवसर है। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं समाजशास्त्र के 25 विशेष प्रश्न, जो आपकी तैयारी को एक नई दिशा देंगे। आइए, देखें कौन है समाजशास्त्र का असली महारथी!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Fact) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसे उन्होंने समाजशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय माना?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा दी। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य वे तरीके हैं जिनसे व्यक्ति के व्यवहार को बाहर से नियंत्रित किया जाता है, और जिनमें एक अनिवार्य शक्ति होती है। ये ऐसे व्यवहार, विचार और भावनाएँ हैं जो व्यक्ति के लिए बाहरी हैं और उस पर बाध्यकारी प्रभाव डालती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को विस्तार से समझाया। उन्होंने समाजशास्त्र को मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र से अलग एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने के लिए सामाजिक तथ्यों को इसका मुख्य अध्ययन क्षेत्र बनाया।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य जोर वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया (Social Action) और उसके व्याख्यात्मक समझ (Verstehen) पर बल दिया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद और सामाजिक विकास के विचारों को प्रस्तुत किया।
प्रश्न 2: किस समाजशास्त्री ने ‘वर्टिकल डायमेंशन’ और ‘हॉरिजॉन्टल डायमेंशन’ के आधार पर भारतीय जाति व्यवस्था का विश्लेषण किया?
- जी. एस. घुरिये
- एम. एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- ल. ई. हॉवेल
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: इरावती कर्वे ने अपनी पुस्तक ‘किनशिप ऑर्गनाइजेशन इन इंडिया’ में भारतीय नातेदारी व्यवस्था और जाति व्यवस्था का विश्लेषण करते हुए ‘ऊर्ध्वाधर’ (Vertical) और ‘क्षैतिज’ (Horizontal) आयामों का प्रयोग किया। ऊर्ध्वाधर आयाम पदानुक्रम (Hierarchy) को दर्शाता है, जबकि क्षैतिज आयाम अंतर्विवाह (Endogamy) समूहों के बीच फैलाव को दर्शाता है।
- संदर्भ और विस्तार: कर्वे के अनुसार, जाति एक अंतर्विवाही समूह है जो एक विशेष व्यवसाय से जुड़ा होता है और एक निश्चित सामाजिक स्थिति रखता है। ऊर्ध्वाधर आयाम विभिन्न जातियों के बीच सामाजिक पदानुक्रम को दर्शाता है, जबकि क्षैतिज आयाम यह बताता है कि समान स्थिति वाली जातियाँ अपने सामाजिक व्यवहार (जैसे विवाह) को आपस में ही सीमित रखती हैं।
- गलत विकल्प: जी. एस. घुरिये ने जाति के छः लक्षणों का उल्लेख किया था। एम. एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण (Sanskritization) और पश्चिमीकरण (Westernization) जैसी अवधारणाएँ दीं। एल. ई. हॉवेल (L. E. Howells) ने भारत में जनजातियों पर काम किया है, लेकिन कर्वे की तरह विस्तृत आयाम विश्लेषण प्रस्तुत नहीं किया।
प्रश्न 3: ‘कल्चरल लैग’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने दी, जिसका अर्थ है कि समाज में भौतिक संस्कृति (Material Culture) अभौतिक संस्कृति (Non-material Culture) की तुलना में अधिक तेजी से बदलती है?
- विलियम ग्राहम समनर
- एलविन गोल्डनर
- अग्बन्यू और निमकॉफ
- टी. पार्शन्स
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलियम ग्राहम समनर ने अपनी पुस्तक ‘फोल्क्वेज़, मोरज़ एंड कस्टम्स’ (Folkways, Mores and Customs) में ‘कल्चरल लैग’ की अवधारणा का वर्णन किया। उनका तर्क था कि समाज में तकनीकी प्रगति (भौतिक संस्कृति) अक्सर सामाजिक संस्थाओं, मूल्यों और मानदंडों (अभौतिक संस्कृति) में आवश्यक समायोजन से पहले होती है, जिससे एक प्रकार का ‘समयाभाव’ या ‘पिछड़ापन’ उत्पन्न होता है।
- संदर्भ और विस्तार: समनर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे नई प्रौद्योगिकियाँ सामाजिक जीवन में व्यवधान पैदा कर सकती हैं यदि समाज की नैतिक और सामाजिक संरचनाएं उन्हें आत्मसात करने के लिए पर्याप्त रूप से अनुकूल न हों।
- गलत विकल्प: एलविन गोल्डनर ने सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न सिद्धांतों पर काम किया। अग्बन्यू और निमकॉफ ने ‘कल्चरल सोशियोलॉजी’ पर काम किया और विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों का वर्गीकरण किया। टी. पार्शन्स एक संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक सिद्धांतकार थे जिन्होंने सामाजिक व्यवस्था और एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘सामाजिक सरंचना’ (Social Structure) का घटक नहीं है?
- समूह
- संस्थाएँ
- प्रतिष्ठा और भूमिकाएं
- सांस्कृतिक मूल्य
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Values) सामाजिक संरचना के प्रत्यक्ष घटक नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक संरचना को आकार देते हैं और उससे प्रभावित होते हैं। सामाजिक संरचना से तात्पर्य समाज के विभिन्न अंगों (जैसे समूह, संस्थाएँ, परिवार, नातेदारी, वर्ग, राष्ट्र) के बीच अंतर्संबंधों और पैटर्न से है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक संरचना उन व्यवस्थित संबंधों का जाल है जो समाज के सदस्यों को आपस में जोड़ते हैं। प्रतिष्ठा (Status) और भूमिकाएं (Roles) सामाजिक संरचना के महत्वपूर्ण आधार हैं। संस्थाएँ (Institutions) जैसे विवाह, शिक्षा, धर्म भी संरचना का हिस्सा हैं। समूह (Groups) भी सामाजिक संरचना के प्राथमिक निर्माण खंड हैं।
- गलत विकल्प: समूह, संस्थाएँ, और प्रतिष्ठा व भूमिकाएं सभी सामाजिक संरचना के अभिन्न अंग माने जाते हैं, क्योंकि वे समाज के सदस्यों के बीच संबंधों और स्थिति को परिभाषित करते हैं।
प्रश्न 5: ‘मार्क्सवादी सिद्धांत’ के अनुसार, इतिहास की मुख्य प्रेरक शक्ति क्या है?
- विचारों का संघर्ष
- धार्मिक सुधार
- वर्ग संघर्ष
- जनसांख्यिकीय परिवर्तन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) के अनुसार, इतिहास का विकास उत्पादन की शक्तियों और उत्पादन के संबंधों के बीच द्वंद्व से होता है, जो अंततः विभिन्न वर्गों के बीच संघर्ष (Class Struggle) का रूप ले लेता है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स का मानना था कि प्रत्येक समाज का आधार उसकी आर्थिक व्यवस्था (उत्पादन का तरीका) होती है। इस आर्थिक व्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व के आधार पर वर्ग बनते हैं (जैसे बुर्जुआ और सर्वहारा)। इन वर्गों के हितों में टकराव होता है, जो सामाजिक परिवर्तन का इंजन बनता है।
- गलत विकल्प: विचारों का संघर्ष आदर्शवाद की ओर इंगित करता है, न कि मार्क्सवाद की ओर। धार्मिक सुधार और जनसांख्यिकीय परिवर्तन अन्य समाजशास्त्रीय उपागमों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन मार्क्सवादी ढांचे में ये सामाजिक परिवर्तन के प्राथमिक चालक नहीं हैं।
प्रश्न 6: ‘अमीश’ (Amish) समुदाय को अध्ययन के लिए किस समाजशास्त्रीय उपागम का उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- नृवंशविज्ञान (Ethnography)
- संघर्ष सिद्धांत
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: नृवंशविज्ञान (Ethnography) एक गुणात्मक अनुसंधान विधि है जिसमें शोधकर्ता किसी विशेष सांस्कृतिक समूह के जीवन में गहराई से उतरकर, उनके रीति-रिवाजों, विश्वासों और सामाजिक जीवन का सजीव और विस्तृत वर्णन करता है। अमीश समुदाय का अध्ययन अक्सर नृवंशविज्ञान के माध्यम से किया जाता है ताकि उनके अनूठे जीवन जीने के तरीके को समझा जा सके।
- संदर्भ और विस्तार: इस पद्धति में अक्सर प्रतिभागी अवलोकन (Participant Observation) का उपयोग शामिल होता है, जहाँ शोधकर्ता समुदाय के साथ रहकर उनके दैनिक जीवन का अनुभव करता है।
- गलत विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं और प्रतीकों पर केंद्रित है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को एक एकीकृत प्रणाली के रूप में देखता है। संघर्ष सिद्धांत शक्ति और असमानता पर केंद्रित है। ये उपागम भी उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन समुदाय के जीवन का गहन, प्रत्यक्ष अध्ययन करने के लिए नृवंशविज्ञान सबसे उपयुक्त है।
प्रश्न 7: ‘बी. के. आर. वी. राव’ (B. K. R. V. Rao) ने सामाजिक परिवर्तन को समझने के लिए किस प्रकार के सामाजिक तंत्र (Social Mechanism) का उल्लेख किया?
- अनुकूलन (Adaptation)
- अनुकूलन, विविधीकरण और एकीकरण
- प्रतीकात्मक अंतःक्रिया
- संसाधन संचयन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: बी. के. आर. वी. राव, एक भारतीय समाजशास्त्री, ने सामाजिक परिवर्तन को एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखा और इसके तीन मुख्य तंत्र बताए: अनुकूलन (Adaptation), विविधीकरण (Differentiation), और एकीकरण (Integration)।
- संदर्भ और विस्तार: उनके अनुसार, समाज बाहरी वातावरण के साथ अनुकूलन करता है, अपने कार्यों को अधिक विशिष्ट बनाने के लिए विविधीकृत होता है, और फिर इन विभिन्न भागों को एक साथ एकीकृत करके अपनी संरचना को बनाए रखता है या संशोधित करता है। यह एक प्रकार का सामाजिक विकासवादी दृष्टिकोण है।
- गलत विकल्प: अनुकूलन एक महत्वपूर्ण तंत्र है, लेकिन यह पूरी प्रक्रिया नहीं है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत स्तर की समझ पर है। संसाधन संचयन किसी विशेष सिद्धांत से सीधे जुड़ा नहीं है, हालाँकि यह सामाजिक परिवर्तन का एक कारक हो सकता है।
प्रश्न 8: ‘एजमीनाइजेशन’ (Eejimisation) किस समाजशास्त्रीय अवधारणा से संबंधित है, जो पश्चिमीकरण का एक विशिष्ट भारतीय रूप है?
- संस्कृतिकरण
- आधुनिकीकरण
- पश्चिमीकरण
- धर्मनिरपेक्षीकरण
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 9: ‘पैसों की समाजशास्त्र’ (Sociology of Money) का प्रतिपादन किस समाजशास्त्री ने किया, जिसने मुद्रा को सामाजिक संबंधों के एक जटिल जाल के रूप में देखा?
- एमिल दुर्खीम
- जॉर्ज सिमेल
- मैक्स वेबर
- अल्फ्रेड शूत्ज़
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) ने अपनी पुस्तक ‘द फिलॉसफी ऑफ मनी’ (The Philosophy of Money) में ‘पैसों के समाजशास्त्र’ की नींव रखी। उन्होंने मुद्रा को केवल विनिमय का माध्यम नहीं माना, बल्कि सामाजिक संबंधों, व्यक्तिवाद और आधुनिकता के विकास में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: सिमेल के अनुसार, पैसे की अमूर्त प्रकृति और उसकी सर्वव्यापीता ने सामाजिक अंतःक्रियाओं को बदल दिया, जिससे अधिक बौद्धिकता, गणना और अलगाव की भावना पैदा हुई। उन्होंने दिखाया कि कैसे पैसा लोगों को प्रत्यक्ष, व्यक्तिगत संबंधों से दूर कर सकता है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता पर काम किया। वेबर ने सत्ता, धर्म और नौकरशाही का अध्ययन किया। अल्फ्रेड शूत्ज़ ने घटना विज्ञान (Phenomenology) के दृष्टिकोण से सामाजिक दुनिया की व्याख्या की।
प्रश्न 10: ‘भूमिका संघर्ष’ (Role Conflict) और ‘भूमिका तनाव’ (Role Strain) की अवधारणाएं किस समाजशास्त्री से जुड़ी हैं?
- रॉबर्ट किंग मर्टन
- इर्विंग गॉफमैन
- टेल्कॉट पार्सन्स
- चार्ल्स हॉर्टन कूली
- सटीकता: रॉबर्ट किंग मर्टन (Robert K. Merton) ने ‘भूमिका संघर्ष’ और ‘भूमिका तनाव’ जैसी अवधारणाओं को विकसित किया। भूमिका संघर्ष तब होता है जब एक व्यक्ति को दो या दो से अधिक भूमिकाओं को निभाना होता है जिनके बीच परस्पर विरोधी अपेक्षाएँ होती हैं। भूमिका तनाव एक ही भूमिका के भीतर परस्पर विरोधी माँगों का अनुभव है।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने ‘संदर्भ समूह’ (Reference Group) और ‘मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत’ (Middle-Range Theories) के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इन अवधारणाओं का उपयोग यह समझाने के लिए किया कि व्यक्ति सामाजिक व्यवस्था में अपनी विभिन्न भूमिकाओं को कैसे प्रबंधित करता है।
- गलत विकल्प: इर्विंग गॉफमैन ने ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) और ‘कुल संस्थाओं’ (Total Institutions) का सिद्धांत दिया। टेल्कॉट पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और प्रकार्यवाद पर ध्यान केंद्रित किया। चार्ल्स हॉर्टन कूली ने ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (Looking-glass Self) और ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) की अवधारणाएँ दीं।
- यह केवल पश्चिमीकरण का पर्याय है।
- यह संस्थागत, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक स्तरों पर परिवर्तन की एक जटिल प्रक्रिया है।
- यह हमेशा समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
- यह केवल ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक प्रभावी रहा है।
- सटीकता: आधुनिकीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें संस्थागत (जैसे नौकरशाही, शिक्षा प्रणाली), सांस्कृतिक (जैसे तर्कवाद, धर्मनिरपेक्षीकरण) और मनोवैज्ञानिक (जैसे व्यक्तिगत उपलब्धि की भावना) स्तरों पर परिवर्तन शामिल हैं। यह केवल पश्चिमीकरण का पर्याय नहीं है, बल्कि एक व्यापक प्रक्रिया है।
- संदर्भ और विस्तार: आधुनिकीकरण अक्सर औद्योगीकरण, शहरीकरण, साक्षरता में वृद्धि और पारंपरिक मान्यताओं में बदलाव से जुड़ा होता है। यह हमेशा सकारात्मक परिणाम नहीं देता और इसके अनपेक्षित नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। यह शहरी क्षेत्रों में अधिक प्रमुख रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है।
- गलत विकल्प: पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण का एक पहलू हो सकता है, लेकिन दोनों समान नहीं हैं। आधुनिकीकरण हमेशा सकारात्मक नहीं होता। यह शहरी क्षेत्रों में अधिक केंद्रित रहा है, लेकिन इसका प्रभाव व्यापक है।
- ए. आर. देसाई
- एम. एन. श्रीनिवास
- टी. बी. बॉटमोर
- योगेन्द्र सिंह
- सटीकता: योगेन्द्र सिंह, एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, ने भारतीय समाज के आधुनिकीकरण पर काम करते हुए ‘तुलनात्मक सामाजिक व्यवस्था’ (Comparative Social System) जैसे विचारों का प्रयोग किया। हालांकि ‘अनिवार्य तटस्थता’ सीधे तौर पर उनकी प्रमुख अवधारणाओं में से नहीं है, उनका काम विभिन्न समाजों के तुलनात्मक अध्ययन और भारतीय समाज में परिवर्तन को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। उनका दृष्टिकोण अक्सर संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक और मार्क्सवादी दोनों विचारों से प्रभावित रहा है, जो सामाजिक परिवर्तन के जटिल विश्लेषण के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों को एकीकृत करता है।
- संदर्भ और विस्तार: योगेन्द्र सिंह ने भारतीय समाज में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया, सांस्कृतिक परिवर्तन और सामाजिक संरचना में बदलाव का गहन अध्ययन किया। उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि कैसे भारतीय समाज पश्चिमी विचारों और प्रौद्योगिकियों को अपनाते हुए भी अपनी विशिष्टताओं को बनाए रखता है।
- गलत विकल्प: ए. आर. देसाई ने भारतीय राष्ट्रवाद और ग्रामिण समाजशास्त्र पर काम किया। एम. एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण और पश्चिमीकरण पर ध्यान केंद्रित किया। टी. बी. बॉटमोर ने वर्ग, अभिज्ञान और सामाजिक परिवर्तन पर काम किया।
- समाज में व्यक्तिगत भिन्नताओं का अध्ययन।
- समाज में शक्ति, धन और प्रतिष्ठा के असमान वितरण और उसकी पदानुक्रमित व्यवस्था।
- समाज में व्यक्तियों के बीच सहयोग की प्रक्रिया।
- समाज में समूह के भीतर होने वाली अंतःक्रियाएँ।
- सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण का तात्पर्य समाज के सदस्यों को उनकी शक्ति, धन, शिक्षा, प्रतिष्ठा और अन्य संसाधनों के आधार पर विभिन्न स्तरों या परतों में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया से है। यह समाज में एक पदानुक्रमित व्यवस्था (Hierarchy) का निर्माण करता है।
- संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के प्रमुख रूप जाति, वर्ग, लिंग, और आयु हैं। यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है जो समाज के सभी सदस्यों पर प्रभाव डालती है, भले ही उनके सामाजिक संबंधों का स्वरूप भिन्न हो।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत भिन्नताओं का अध्ययन मनोविज्ञान से संबंधित है। सहयोग समाज की एक प्रक्रिया है, न कि स्तरीकरण। समूह के भीतर अंतःक्रियाएँ सूक्ष्म-समाजशास्त्र (Micro-sociology) का हिस्सा हैं।
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- हर्बर्ट मीड
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘अनामिका’ (Anomie) की अवधारणा का प्रयोग यह समझाने के लिए किया कि जब समाज में नैतिक नियम और सामाजिक मानदंड कमजोर या अनुपस्थित हो जाते हैं, तो व्यक्ति दिशाहीन और भ्रमित महसूस करता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने ‘आत्महत्या’ (Suicide) नामक पुस्तक में अनामिका आत्महत्या (Anomic Suicide) का वर्णन किया, जो तब होती है जब व्यक्ति समाज के स्थापित नियमों और अपेक्षाओं से कट जाता है, अक्सर तीव्र सामाजिक या आर्थिक परिवर्तन के दौरान।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने शक्ति, अधिकार और नौकरशाही पर काम किया। कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और आर्थिक असमानता पर ध्यान केंद्रित किया। हर्बर्ट मीड ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद में ‘सेल्फ’ (Self) और ‘समाज’ के विकास पर जोर दिया।
- अप्रवासियों (Immigrants) के प्रति विरोध और देशी (Native) संस्कृति को बढ़ावा देना।
- आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना।
- स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग।
- सांस्कृतिक विविधता का सम्मान।
- सटीकता: नेटिविज़्म एक सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा है जो एक देश के मूल निवासियों (Native inhabitants) के हितों को अप्रवासियों (Immigrants) के हितों से ऊपर रखती है। इसमें अक्सर अप्रवासियों के प्रति शत्रुता और देशी संस्कृति, भाषा और परंपराओं को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति होती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह राष्ट्रवाद का एक रूप हो सकता है जो बाहरी तत्वों को अस्वीकार करता है और आंतरिक एकता पर जोर देता है, कभी-कभी xenophobia (विदेशियों से घृणा) के रूप में प्रकट होता है।
- गलत विकल्प: आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना आधुनिकीकरण से संबंधित है। स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग एक सकारात्मक सामाजिक प्रक्रिया है। सांस्कृतिक विविधता का सम्मान बहुसंस्कृतिवाद (Multiculturalism) का हिस्सा है।
- विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण।
- एक ही समाज के भीतर विभिन्न उप-संस्कृतियों (Sub-cultures) का विकास।
- संस्कृतियों का पदानुक्रमित वर्गीकरण।
- संस्कृतियों का अंतर्राष्ट्रीयकरण।
- सटीकता: सांस्कृतिक विभेदीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एक समाज के भीतर विभिन्न समूह अपनी विशिष्ट पहचान, मूल्यों, व्यवहारों और जीवन शैलियों के आधार पर अपनी अलग उप-संस्कृतियों का निर्माण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर समाज के भीतर वर्ग, जातीयता, धर्म, या जीवन शैली के अंतरों के कारण होता है। जैसे, युवाओं की संस्कृति, शहरी संस्कृति, या किसी विशेष व्यावसायिक समूह की संस्कृति।
- गलत विकल्प: विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण ‘सांस्कृतिक समन्वय’ (Cultural Assimilation) या ‘सांस्कृतिक संलयन’ (Cultural Fusion) हो सकता है। पदानुक्रमित वर्गीकरण स्तरीकरण से संबंधित है। अंतर्राष्ट्रीयकरण वैश्विक फैलाव है।
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- रॉबर्ट किंग मर्टन
- इर्विंग गॉफमैन
- सटीकता: इर्विंग गॉफमैन (Erving Goffman) ने अपनी पुस्तक ‘टोटल इंस्टीट्यूशंस’ (Total Institutions) में इस अवधारणा को प्रस्तुत किया। उन्होंने जेल, सैन्य बैरक, मठ, और मानसिक अस्पताल जैसे संस्थानों का अध्ययन किया जहाँ व्यक्ति को बाहरी दुनिया से अलग कर दिया जाता है और एक नई, नियंत्रित व्यवस्था के तहत रखा जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: गॉफमैन ने इन संस्थाओं में होने वाले ‘पतन’ (Mortification of the Self) और ‘बैरियर’ (Barriers) के निर्माण का विश्लेषण किया, जो व्यक्ति की पहचान और स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य और अनामिका पर काम किया। वेबर ने सत्ता और नौकरशाही का विश्लेषण किया। मर्टन ने भूमिका संघर्ष और मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत पर काम किया।
- शहरी क्षेत्रों का तेजी से विस्तार और नए शहरों का उदय।
- ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी जीवन शैली का प्रसार।
- नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर का कम होना।
- शहरीकरण की पारंपरिक प्रक्रिया का धीमा पड़ना।
- सटीकता: ‘नियो-नगरीयकरण’ (Neo-urbanization) की अवधारणा अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी जीवन शैली, उपभोग पैटर्न, मूल्यों और आकांक्षाओं के प्रसार को दर्शाने के लिए प्रयोग की जाती है। यह जरूरी नहीं कि केवल भौतिक शहरीकरण हो, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक शहरीकरण भी हो।
- संदर्भ और विस्तार: जैसे-जैसे संचार और परिवहन के साधन सुलभ होते हैं, शहरी प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करते हैं, जिससे ग्रामीण निवासियों की जीवन शैली और अपेक्षाओं में बदलाव आता है, भले ही वे शारीरिक रूप से शहरों में न रह रहे हों।
- गलत विकल्प: (a) शहरी क्षेत्रों का विस्तार ‘शहरीकरण’ का सामान्य वर्णन है। (c) नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर का कम होना एक संभावित परिणाम हो सकता है, लेकिन यह प्रत्यक्ष अर्थ नहीं है। (d) यह प्रक्रिया शहरीकरण को धीमा नहीं करती, बल्कि उसके स्वरूप को बदलती है।
- पियरे बॉर्डियू
- जेम्स कॉलमैन
- रॉबर्ट पुटनम
- (a) और (b) दोनों
- सटीकता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा के विकास में पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) और जेम्स कॉलमैन (James Coleman) दोनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जबकि बॉर्डियू ने इसे सामाजिक संबंधों से प्राप्त होने वाले लाभ के रूप में देखा, कॉलमैन ने इसे सामाजिक संरचनाओं में निहित विश्वास, नेटवर्क और मानदंडों के रूप में परिभाषित किया जो लोगों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं। रॉबर्ट पुटनम ने इस अवधारणा को सार्वजनिक जीवन में नागरिक जुड़ाव और लोकतंत्र के अध्ययन के लिए लोकप्रिय बनाया।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक पूंजी से तात्पर्य व्यक्तियों या समूहों द्वारा अपने सामाजिक नेटवर्क (नेटवर्क, संबंध, विश्वास) का उपयोग करके प्राप्त किए जाने वाले लाभों से है।
- गलत विकल्प: केवल एक को चुनना दोनों के योगदान को नजरअंदाज करेगा। पुटनम ने इस अवधारणा का लोकप्रियकरण किया, लेकिन इसकी नींव बॉर्डियू और कॉलमैन ने रखी।
- रॉबर्ट पार्क
- डब्ल्यू. आई. थॉमस
- ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
- सिडनी वर्बा
- सटीकता: ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन (A. R. Radcliffe-Brown) संरचनात्मक प्रकार्यवाद के अग्रणी थे जिन्होंने समाज को एक जीवित प्राणी के रूप में देखा और सामाजिक संरचना तथा संस्थाओं पर जोर दिया। उनके अनुसार, सामाजिक संस्थाएँ समाज के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए भूमिकाएँ प्रदान करती हैं, जिससे व्यक्ति की भूमिकाएँ काफी हद तक व्यवस्था द्वारा निर्धारित होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: रेडक्लिफ-ब्राउन ने ‘सामाजिक संरचना’ और ‘सामाजिक प्रणाली’ की अवधारणाओं पर काम किया, जहाँ प्रत्येक संरचना और संस्था एक निश्चित उद्देश्य पूरा करती है और व्यक्ति को उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए विशिष्ट भूमिकाएँ सौंपी जाती हैं।
- गलत विकल्प: रॉबर्ट पार्क शिकागो स्कूल के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे जिन्होंने शहरी समाजशास्त्र और जातीयता का अध्ययन किया। डब्ल्यू. आई. थॉमस ने ‘परिस्थिति की परिभाषा’ (Definition of the Situation) की अवधारणा दी। सिडनी वर्बा राजनीतिक समाजशास्त्र पर काम करने वाले विद्वान हैं।
- वंशानुक्रम या वंश का पिता की ओर से चलना।
- वंशानुक्रम या वंश का माता की ओर से चलना।
- परिवार का मुखिया माता का होना।
- विवाह के बाद पत्नी का पति के घर रहने का स्थान।
- सटीकता: पैट्रिलिनी (Patriliny) एक सामाजिक व्यवस्था है जहाँ वंशानुक्रम (जैसे संपत्ति, उपाधि, नाम) पिता से उसके बच्चों (विशेषकर पुत्रों) की ओर हस्तांतरित होता है। यह पितृवंशीय (Patriarchal) समाजों में आम है।
- संदर्भ और विस्तार: भारत में अधिकांश पारंपरिक परिवार और नातेदारी व्यवस्थाएँ पैट्रिलिनी पर आधारित हैं, जहाँ परिवार के पुरुष सदस्यों को अधिक महत्व दिया जाता है और वे ही वंश को आगे बढ़ाते हैं।
- गलत विकल्प: (b) माता की ओर से वंश का चलना ‘मैट्रिलिनी’ (Matriliny) कहलाता है। (c) परिवार का मुखिया माता का होना ‘मैट्रियार्की’ (Matriarchy) की ओर इंगित करता है, जो पैट्रिलिनी से भिन्न है। (d) विवाह के बाद पत्नी का पति के घर रहना ‘पैट्रिलॉकेलिटी’ (Patrilocality) कहलाता है।
- शूद्र
- वैश्य
- द्विजा (Twice-born) या उच्च क्षत्रिय/ब्राह्मण
- अछूत (Untouchable)
- सटीकता: भूमिहार जाति को सामान्यतः उत्तर भारत में एक उच्च जाति के रूप में माना जाता है, जिसे द्विजा (Twice-born) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, और अक्सर ब्राह्मण या क्षत्रिय वर्ण के साथ जोड़ा जाता है। इनका पारंपरिक व्यवसाय भूमि का स्वामित्व और कृषि का प्रबंधन रहा है।
- संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था की जटिलता के कारण, किसी विशेष जाति का सटीक वर्गीकरण क्षेत्रीय और ऐतिहासिक संदर्भों पर निर्भर कर सकता है। हालाँकि, भूमिहारों को पारंपरिक रूप से पदानुक्रम में ऊपर रखा गया है।
- गलत विकल्प: शूद्र वर्ण सेवा से जुड़ा है, वैश्य व्यापार से, और अछूतों को वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया था। भूमिहार इन श्रेणियों में फिट नहीं बैठते।
- समाज के विभिन्न अंगों के बीच अंतर्संबंध।
- किसी व्यक्ति या समूह का अपनी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन।
- समाज में शक्ति का वितरण।
- सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने वाले नियम।
- सटीकता: सामाजिक गतिशीलता से तात्पर्य समाज में व्यक्तियों या समूहों की एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में जाने की प्रक्रिया से है। यह ऊर्ध्वाधर (ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (समान स्तर पर) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह समाज में अवसरों की उपलब्धता, शिक्षा, आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन का सूचक है।
- गलत विकल्प: (a) समाज के अंगों का अंतर्संबंध सामाजिक संरचना से संबंधित है। (c) शक्ति का वितरण स्तरीकरण का हिस्सा है। (d) नियम सामाजिक नियंत्रण का हिस्सा हैं।
- समाज और सामाजिक वास्तविकताएं वस्तुनिष्ठ और स्वतंत्र रूप से मौजूद हैं।
- सामाजिक वास्तविकताएं मनुष्यों द्वारा अपने सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से निर्मित (constructed) की जाती हैं।
- सामाजिक परिवर्तन केवल आर्थिक कारकों द्वारा संचालित होता है।
- समाज को एक जैविक इकाई के रूप में समझा जा सकता है।
- सटीकता: रचनावाद (Constructivism) समाजशास्त्र में एक परिप्रेक्ष्य है जो मानता है कि समाज, सामाजिक संस्थाएं, पहचान और वास्तविकताएं अलौकिक रूप से दी गई नहीं हैं, बल्कि व्यक्तियों और समूहों के बीच सामाजिक अंतःक्रियाओं, भाषा और साझा अर्थों के माध्यम से निर्मित (constructed) की जाती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह परिप्रेक्ष्य पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन की पुस्तक ‘द सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ रियलिटी’ (The Social Construction of Reality) से काफी प्रभावित है। यह प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद जैसे सिद्धांतों से भी जुड़ा है।
- गलत विकल्प: (a) यह प्रत्यक्षवाद (Positivism) का दृष्टिकोण है। (c) यह मार्क्सवाद का अति-सरलीकरण है। (d) यह सामाजिक डार्विनवाद या प्रकार्यवाद का अति-सरलीकरण है।
- यह केवल लोगों के बीच व्यक्तिगत संबंधों का एक समूह है।
- यह विश्वास, आपसी समझ और साझा मानदंडों के माध्यम से संसाधनों तक पहुंच को सक्षम बनाता है।
- यह सामाजिक स्तरीकरण को बढ़ाता है।
- इसका सामाजिक गतिशीलता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- सटीकता: सामाजिक पूंजी के निर्माण में नेटवर्क (संबंधों का जाल) अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये नेटवर्क केवल व्यक्तिगत संपर्कों से कहीं अधिक हैं; उनमें विश्वास, आपसी सहयोग और साझा अपेक्षाएँ शामिल होती हैं जो व्यक्तियों को सूचना, सहायता और अवसरों तक पहुँचने में मदद करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मजबूत सामाजिक नेटवर्क वाले व्यक्तियों के पास अधिक सामाजिक पूंजी होती है, जिससे उन्हें रोजगार खोजने, व्यवसाय शुरू करने या सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेने में मदद मिलती है।
- गलत विकल्प: (a) यह केवल व्यक्तिगत संबंधों से अधिक है। (c) सामाजिक पूंजी सामाजिक स्तरीकरण को जटिल रूप से प्रभावित कर सकती है, लेकिन इसका प्राथमिक कार्य संसाधनों तक पहुंच को सक्षम बनाना है। (d) इसका सामाजिक गतिशीलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
उत्तर: (a)
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प्रश्न 11: भारतीय समाज में ‘आधुनिकीकरण’ की प्रक्रिया से संबंधित निम्न में से कौन सा कथन सत्य है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 12: ‘अनिवार्य तटस्थता’ (Compulsory Neutrality) और ‘तुलनात्मक सामाजिक व्यवस्था’ (Comparative Social System) की अवधारणाएं किस समाजशास्त्री के कार्य से जुड़ी हैं?
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 13: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) की अवधारणा को निम्नलिखित में से किस रूप में सबसे अच्छे से समझा जा सकता है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 14: ‘अनामिका’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों के ढहने या कमजोर पड़ने की स्थिति को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 15: ‘नेटिविज़्म’ (Nativism) का संबंध किस सामाजिक प्रक्रिया से है?
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 16: ‘सांस्कृतिक विभेदीकरण’ (Cultural Differentiation) का क्या अर्थ है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 17: ‘कुल संस्था’ (Total Institution) की अवधारणा किसने दी, जो एक ऐसी संस्था को दर्शाती है जहाँ व्यक्ति अपने जीवन के अधिकांश समय बिताते हैं, दुनिया से कटकर, और जहाँ देखभाल, काम और मनोरंजन सभी एक ही स्थान पर होते हैं?
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 18: भारतीय समाज में ‘नियो-नगरीयकरण’ (Neo-urbanization) की अवधारणा का संबंध किससे है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 19: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा का श्रेय मुख्य रूप से किस समाजशास्त्री को दिया जाता है?
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 20: ‘भूमिका निर्धारण’ (Role Determinism) की अवधारणा किसके सिद्धांत से जुड़ी है, जो यह बताती है कि व्यक्ति की भूमिकाएँ काफी हद तक उसकी सामाजिक स्थिति और व्यवस्था द्वारा निर्धारित होती हैं?
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 21: भारतीय संदर्भ में, ‘पैट्रिलिनी’ (Patriliny) का क्या अर्थ है?
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 22: ‘भूमिहार’ (Bhumihar) जाति समूह को भारतीय जाति व्यवस्था के किस प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है?
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 23: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) की अवधारणा का सबसे उपयुक्त वर्णन क्या है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 24: ‘रचनावाद’ (Constructivism) का समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य क्या मानता है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 25: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) के संदर्भ में, ‘नेटवर्क’ (Network) का क्या महत्व है?
उत्तर: (b)
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