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समाजशास्त्र के पारखी बनें: आज की दैनिक प्रश्नोत्तरी

समाजशास्त्र के पारखी बनें: आज की दैनिक प्रश्नोत्तरी

तैयारी के मैदान में एक और दिन, एक और चुनौती! आज हम समाजशास्त्र के आपके ज्ञान को परखने और आपकी अवधारणात्मक स्पष्टता को पैना करने के लिए 25 गहन प्रश्नों का एक सेट लेकर आए हैं। क्या आप अपनी विश्लेषणात्मक क्षमताओं को प्रदर्शित करने और समाजशास्त्र की दुनिया में महारत हासिल करने के लिए तैयार हैं? आइए, इस बौद्धिक यात्रा को शुरू करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की अवधारणा किसके द्वारा प्रतिपादित की गई थी, जिसे उन्होंने बाहरी और बाध्यकारी के रूप में परिभाषित किया?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा पेश की। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य समाज के लोगों पर बाहरी दबाव डालते हैं और उनसे चिपके रहने के लिए मजबूर करते हैं। ये व्यक्ति की चेतना से स्वतंत्र होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को विस्तार से समझाया। उन्होंने तर्क दिया कि समाजशास्त्र को मानसिक या मनोवैज्ञानिक घटनाओं के बजाय सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करना चाहिए।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और अलगाव (alienation) पर ध्यान केंद्रित किया। मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) और नौकरशाही (bureaucracy) जैसी अवधारणाएँ दीं। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक विकासवाद (social evolutionism) का विचार दिया।

प्रश्न 2: समाजशास्त्र में ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) पद्धति का क्या अर्थ है?

  1. सामाजिक घटनाओं का वस्तुनिष्ठ मापन
  2. सामाजिक घटनाओं के पीछे व्यक्तिपरक अर्थ को समझना
  3. सामाजिक संरचनाओं का मात्रात्मक विश्लेषण
  4. सामाजिक व्यवहार के सामान्यीकरण की खोज

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: ‘वेरस्टेहेन’ जर्मन शब्द है जिसका अर्थ है ‘समझना’। मैक्स वेबर ने समाजशास्त्र को एक ऐसी विज्ञान के रूप में देखा जो सामाजिक क्रियाओं के पीछे व्यक्तिपरक अर्थों को समझने का प्रयास करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह पद्धति व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (interpretive sociology) का एक मुख्य हिस्सा है, जो सामाजिक व्यवहार को उसके संदर्भ और अभिनेताओं द्वारा दिए गए अर्थों के माध्यम से समझने पर जोर देती है।
  • गलत विकल्प: (a) और (c) वस्तुनिष्ठ मापन और मात्रात्मक विश्लेषण की बात करते हैं, जो वेबर के ‘वेरस्टेहेन’ के विपरीत है। (d) सामान्यीकरण की खोज दुर्खीम जैसे प्रत्यक्षवादी समाजशास्त्रियों का लक्ष्य हो सकता है, लेकिन वेबर का मुख्य जोर व्यक्तिपरक समझ पर था।

प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का एक रूप नहीं है?

  1. जाति (Caste)
  2. वर्ग (Class)
  3. दासता (Slavery)
  4. समूह (Group)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जाति, वर्ग और दासता सभी सामाजिक स्तरीकरण के रूप हैं, जो समाज में व्यक्तियों और समूहों को उनकी स्थिति, शक्ति या विशेषाधिकार के आधार पर ऊर्ध्वाधर (vertical) रूप से व्यवस्थित करते हैं। ‘समूह’ एक सामान्य शब्द है जो सामाजिक स्तरीकरण का प्रत्यक्ष रूप नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण समाज को विभिन्न स्तरों में विभाजित करता है, जहाँ शीर्ष स्तरों के पास अधिक संसाधन और शक्ति होती है। जाति एक बंद व्यवस्था है, वर्ग एक खुली व्यवस्था है, और दासता एक चरम रूप है जहाँ व्यक्ति को संपत्ति माना जाता है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) समाज में शक्ति, धन और प्रतिष्ठा के वितरण से सीधे तौर पर जुड़े स्तरीकरण के स्थापित रूप हैं।

प्रश्न 4: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में संघर्ष का मुख्य स्रोत क्या है?

  1. राजनीतिक विचारधारा में अंतर
  2. उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व को लेकर वर्ग संघर्ष
  3. धार्मिक मान्यताओं में भिन्नता
  4. सांस्कृतिक मूल्यों का टकराव

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कार्ल मार्क्स ने तर्क दिया कि पूंजीवादी समाज मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित है: बुर्जुआ (पूंजीपति, जिनके पास उत्पादन के साधन हैं) और सर्वहारा (श्रमिक, जिनके पास केवल अपनी श्रम शक्ति है)। इन दो वर्गों के बीच उत्पादन के साधनों के स्वामित्व को लेकर निरंतर संघर्ष होता है, जो सामाजिक परिवर्तन का मुख्य चालक है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (historical materialism) का केंद्रीय विचार है, जिसे उन्होंने ‘दास कैपिटल’ (Das Kapital) और ‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ (The Communist Manifesto) जैसी रचनाओं में प्रस्तुत किया।
  • गलत विकल्प: जबकि राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारक समाज को प्रभावित करते हैं, मार्क्स के लिए पूंजीवादी व्यवस्था में प्राथमिक और निर्णायक संघर्ष आर्थिक आधार पर, विशेषकर उत्पादन के साधनों के स्वामित्व को लेकर था।

प्रश्न 5: “मुझे दिखाओ कि तुम कैसे खाते हो, और मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम क्या हो।” यह कथन किस समाजशास्त्री से जुड़ा है और किस अवधारणा को इंगित करता है?

  1. एमिल दुर्खीम – सामाजिक तथ्य
  2. मैक्स वेबर – प्रोटेस्टेंट नैतिकता
  3. पियरे बॉर्डियू – सांस्कृतिक उपभोग (Cultural Consumption)
  4. ज्यां बॉद्रिलार्ड – सिमुलेशन (Simulation)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: यह कथन पियरे बॉर्डियू से जुड़ा है और यह दर्शाता है कि व्यक्ति का खान-पान, जीवन शैली और सांस्कृतिक पसंद (habitus) उसकी सामाजिक स्थिति और वर्ग की पहचान को कैसे दर्शाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू ने ‘डिंक्टिओं’ (distinction) की अवधारणा का उपयोग करके समझाया कि कैसे सांस्कृतिक उपभोग (जैसे भोजन, कला, संगीत) वर्ग विभाजन को बनाए रखने और सामाजिक पहचान को व्यक्त करने का एक साधन बनता है। यह उनकी पुस्तक ‘डिंक्टिओं: सोशल क्रिटिक ऑफ टेस्ट’ (Distinction: A Social Critique of the Judgement of Taste) में प्रमुखता से है।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम सामाजिक तथ्यों पर, वेबर नौकरशाही और प्रोटेस्टेंट नैतिकता पर, और बॉद्रिलार्ड उत्तर-आधुनिकतावाद पर केंद्रित थे।

प्रश्न 6: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज का ‘एकजुटता’ (Solidarity) का वह रूप जिसमें व्यक्ति अपने श्रम के विशेषज्ञता के कारण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, उसे क्या कहा जाता है?

  1. यांत्रिक एकजुटता (Mechanical Solidarity)
  2. जैविक एकजुटता (Organic Solidarity)
  3. नारी-प्रतीकात्मक एकजुटता (Gynsymolic Solidarity)
  4. संज्ञानात्मक एकजुटता (Cognitive Solidarity)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: दुर्खीम ने ‘जैविक एकजुटता’ (Organic Solidarity) का वर्णन किया है, जो आधुनिक, औद्योगिक समाजों में पाई जाती है। इसमें विभिन्न अंगों की तरह, लोग अपनी विशेषज्ञता के कारण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, जो समाज को एकीकृत रखता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में प्रस्तुत की गई थी। इसके विपरीत, ‘यांत्रिक एकजुटता’ आदिम समाजों में पाई जाती है, जहाँ समान विश्वासों और अनुभवों के कारण एकजुटता होती है।
  • गलत विकल्प: (a) आदिम समाजों के लिए है। (c) और (d) समाजशास्त्रीय शब्दावली में स्थापित अवधारणाएँ नहीं हैं।

प्रश्न 7: आर. के. मर्टन द्वारा प्रस्तुत ‘अनपेक्षित परिणाम’ (Unintended Consequences) की अवधारणा को क्या कहा जाता है?

  1. सक्रिय परिणाम (Active Consequences)
  2. अप्रत्यक्ष परिणाम (Indirect Consequences)
  3. अनभिप्रेत परिणाम (Latent Consequences)
  4. प्रच्छन्न परिणाम (Manifest Consequences)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: आर. के. मर्टन ने सामाजिक क्रियाओं के परिणामों को ‘प्रच्छन्न’ (Manifest) और ‘अनभिप्रेत’ (Latent) परिणामों में वर्गीकृत किया। अनभिप्रेत परिणाम वे होते हैं जो जानबूझकर या अपेक्षित नहीं होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने ‘सामाजिक संरचना और एनोमी’ (Social Theory and Social Structure) में इस अवधारणा को विकसित किया, जहाँ उन्होंने बताया कि कैसे एक सामाजिक व्यवस्था के अनभिप्रेत परिणाम हो सकते हैं जो व्यवस्था को बनाए रखने या बाधित करने में भूमिका निभा सकते हैं।
  • गलत विकल्प: प्रच्छन्न परिणाम (Manifest Consequences) वे होते हैं जो स्पष्ट और अपेक्षित होते हैं। (a) और (b) मर्टन की शब्दावली का हिस्सा नहीं हैं।

प्रश्न 8: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) की अवधारणाएँ किस प्रक्रिया का हिस्सा हैं?

  1. सामाजिक स्तरीकरण
  2. आत्म-विकास (Development of Self)
  3. सांस्कृतिक प्रसार
  4. राजनीतिक समाजीकरण

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के प्रमुख विचारक थे, जिन्होंने आत्म (Self) के विकास की प्रक्रिया को समझाने के लिए ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) की अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं। ‘मैं’ व्यक्तित्व का वह हिस्सा है जो अनियोजित, अप्रत्याशित और प्रतिक्रियाशील है, जबकि ‘मुझे’ समाज द्वारा आंतरीकृत अपेक्षाओं और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘मन, आत्म और समाज’ (Mind, Self, and Society) में इस पर विस्तार से लिखा। उन्होंने बताया कि व्यक्ति दूसरों के साथ बातचीत करके और उनके दृष्टिकोणों को अपनाकर अपना ‘आत्म’ विकसित करता है।
  • गलत विकल्प: ये अवधारणाएँ सामाजिक स्तरीकरण, सांस्कृतिक प्रसार या राजनीतिक समाजीकरण से सीधे तौर पर संबंधित नहीं हैं।

प्रश्न 9: भारतीय समाज में ‘सक्रिय’ (Active) से ‘निष्क्रिय’ (Passive) होने की प्रक्रिया, जिसमें निम्न जातियाँ उच्च जातियों के रीति-रिवाजों और जीवन शैली को अपनाती हैं, किस नाम से जानी जाती है?

  1. पश्चिमीकरण (Westernization)
  2. आधुनिकीकरण (Modernization)
  3. संस्कृतिकरण (Sanskritization)
  4. धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा उस प्रक्रिया का वर्णन करती है जहाँ निम्न जातियों या जनजातियाँ उच्च, विशेषकर द्विजातीय (twice-born) जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाती हैं ताकि उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा ‘धर्म और दक्षिण भारत के कूर्गों में समाज’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) जैसी उनकी रचनाओं में प्रमुख है। यह सामाजिक गतिशीलता का एक रूप है।
  • गलत विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को दर्शाता है। आधुनिकीकरण तकनीकी और संस्थागत परिवर्तन से संबंधित है। धर्मनिरपेक्षीकरण धर्म के प्रभाव में कमी को दर्शाता है।

प्रश्न 10:GIDDENS के अनुसार, संरचना (Structure) और प्रActivity (Agency) के बीच द्वंद्वात्मक संबंध को क्या कहा जाता है?

  1. संरचनात्मक द्वंद्ववाद (Structural Dualism)
  2. द्वि-विभाजन (Duality)
  3. संरचनात्मक द्वंद्व (Structural Duality)
  4. संरचनात्मक द्वि-अर्थक (Structural Binarism)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एंथोनी गिडेंस अपनी ‘संरचना का सिद्धांत’ (Structuration Theory) में ‘संरचनात्मक द्वि-अर्थक’ (Duality of Structure) का विचार प्रस्तुत करते हैं। इसका मतलब है कि संरचनाएँ (नियम और संसाधन) मानव कार्य-कलाप (Agency) के माध्यम से निर्मित और पुन: उत्पन्न होती हैं, और साथ ही, वे कार्य-कलाप को भी सक्षम और बाधित करती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: गिडेंस के अनुसार, सामाजिक व्यवस्थाएं मानव एजेंसी की निरंतर क्रियाओं द्वारा निर्मित होती हैं, और यही क्रियाएं उन संरचनाओं को सुदृढ़ या रूपांतरित करती हैं जो उनके सामाजिक जीवन को आकार देती हैं।
  • गलत विकल्प: (a), (b) और (d) इस द्वंद्वात्मक और गतिशील संबंध को सटीक रूप से व्यक्त नहीं करते जैसा कि गिडेंस ने ‘द्वि-अर्थक’ (Duality) शब्द से किया है।

प्रश्न 11: किसने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा दी, जिसमें समाज के भौतिक पहलू अनैतिक पहलुओं की तुलना में तेजी से बदलते हैं?

  1. विलियम ग्राहम समनर (William Graham Sumner)
  2. विलियम फीडर (William F. Ogburn)
  3. एल्बर्ट कॉलिन्स (Albert Collins)
  4. ए. एल. क्रॉबर (A. L. Kroeber)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: विलियम फीडर (William F. Ogburn) ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा दी। उन्होंने बताया कि तकनीकी प्रगति (भौतिक संस्कृति) अक्सर सामाजिक संस्थाओं, विश्वासों और मूल्यों (अनैतिक संस्कृति) की तुलना में अधिक तेज़ी से होती है, जिससे सामाजिक समायोजन में समस्याएं पैदा होती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: फीडर ने अपनी पुस्तक ‘सोशियोलॉजी’ (Sociology, 1940) में इस अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया, जो सामाजिक परिवर्तन को समझने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
  • गलत विकल्प: विलियम ग्राहम समनर ने ‘लोकप्रिय रीति’ (Folkways) और ‘रूढ़ियों’ (Mores) का अंतर बताया। क्रॉबर ने संस्कृति के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन सांस्कृतिक विलंब की अवधारणा उनकी नहीं थी।

प्रश्न 12: निम्न में से कौन सी विशेषता ‘आदर्श प्रारूप’ (Ideal Type) की नहीं है, जैसा कि मैक्स वेबर ने प्रयोग किया?

  1. यह एक विश्लेषणात्मक उपकरण है।
  2. यह वास्तविकता का पूर्ण और सटीक प्रतिनिधित्व है।
  3. यह अतिशयोक्ति (exaggeration) और संयोजन (combination) पर आधारित है।
  4. यह किसी विशेष सामाजिक घटना की विशेषताओं को समझने में मदद करता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मैक्स वेबर के अनुसार, ‘आदर्श प्रारूप’ वास्तविकता का एक तार्किक रूप से सुसंगत, अतिरंजित और संयुग्मित (combined) चित्र है। यह कोई नैतिक आदर्श या पूर्ण रूप से प्राप्त होने वाला मॉडल नहीं है, बल्कि एक विश्लेषणात्मक उपकरण है जो सामाजिक घटनाओं को समझने और उनका तुलनात्मक अध्ययन करने में मदद करता है। इसलिए, यह वास्तविकता का पूर्ण और सटीक प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने नौकरशाही, पूंजीवाद और प्रोटेस्टेंट नैतिकता जैसे विषयों का अध्ययन करने के लिए आदर्श प्रारूपों का उपयोग किया।
  • गलत विकल्प: (a), (c), और (d) आदर्श प्रारूप की सही विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 13: भारतीय समाज में ‘सगोत्र विवाह’ (Endogamy) का क्या अर्थ है?

  1. समान गोत्र के व्यक्तियों के बीच विवाह
  2. विभिन्न गोत्रों के व्यक्तियों के बीच विवाह
  3. समान जाति के भीतर विवाह
  4. विभिन्न जातियों के व्यक्तियों के बीच विवाह

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भारतीय जाति व्यवस्था में ‘सगोत्र विवाह’ (Endogamy) का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी ही जाति के भीतर विवाह करना चाहिए। ‘गोत्र’ (Gotra) एक वंशानुगत इकाई है, लेकिन व्यापक अर्थ में, जाति-आधारित सगोत्र विवाह अधिक प्रमुख सामाजिक नियम है।
  • संदर्भ और विस्तार: इसका विपरीत ‘बहिर्विवाह’ (Exogamy) है, जहाँ विवाह समूह के बाहर किया जाता है (जैसे, सपिंड बहिर्विवाह)। जाति-आधारित सगोत्र विवाह सामाजिक स्तरीकरण और जाति की अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • गलत विकल्प: (a) जबकि गोत्र बहिर्विवाह का नियम है, सगोत्र विवाह जाति के भीतर विवाह को संदर्भित करता है। (b) और (d) बहिर्विवाह (Exogamy) के उदाहरण हैं।

प्रश्न 14: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जिसका अर्थ है सामाजिक मानदंडों की कमी या कमजोर पड़ना, किसके द्वारा विकसित की गई?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. टेल्कोट पार्सन्स

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा का उपयोग समाज में उत्पन्न होने वाली उस स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जब व्यक्ति के व्यवहार को निर्देशित करने वाले सामाजिक नियम या तो अनुपस्थित होते हैं या कमजोर पड़ जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने ‘आत्महत्या’ (Suicide) पुस्तक में एनोमी का विस्तृत विश्लेषण किया, जहाँ उन्होंने दिखाया कि कैसे सामाजिक विघटन और अनिश्चितता की स्थिति में आत्महत्या की दरें बढ़ सकती हैं।
  • गलत विकल्प: मार्क्स वर्ग संघर्ष पर, वेबर नौकरशाही और शक्ति पर, और पार्सन्स सामाजिक व्यवस्था और प्रकार्यवाद (functionalism) पर केंद्रित थे।

प्रश्न 15: सामाजिक नियंत्रण (Social Control) का वह रूप क्या है जो औपचारिक नियमों, कानूनों और दंडों द्वारा लागू होता है?

  1. अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण
  2. प्रत्यक्ष सामाजिक नियंत्रण
  3. सांस्कृतिक सामाजिक नियंत्रण
  4. औपचारिक सामाजिक नियंत्रण

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: औपचारिक सामाजिक नियंत्रण में वे सभी तरीके शामिल होते हैं जिनके द्वारा समाज अपने सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए स्थापित संस्थाओं, नियमों, कानूनों और दंडों का उपयोग करता है। पुलिस, अदालतें और जेल इसके उदाहरण हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह समाज के व्यवस्थित कामकाज को सुनिश्चित करने में मदद करता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण परिवार, मित्र या समुदाय जैसे सामाजिक समूहों द्वारा लागू होता है।
  • गलत विकल्प: अनौपचारिक नियंत्रण (a) अनौपचारिक तरीकों जैसे सामाजिक अनुमोदन या निंदा पर निर्भर करता है। (b) और (c) स्पष्ट रूप से परिभाषित समाजशास्त्रीय श्रेणियां नहीं हैं।

प्रश्न 16: भारतीय समाज में, ‘दलित’ शब्द का प्रयोग आम तौर पर किसके लिए किया जाता है?

  1. उच्च जाति के सदस्य
  2. शूद्र वर्ण के सदस्य
  3. अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) के लिए एक आत्म-पहचान वाला शब्द
  4. भूमिहीन किसान

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: ‘दलित’ शब्द का अर्थ है ‘कुचला हुआ’ या ‘दबाया हुआ’। यह शब्द विशेष रूप से भारत की उन निचली जातियों के लिए एक आत्म-पहचान वाला शब्द है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता (untouchability) और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा है, और जो अब अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) के रूप में वर्गीकृत हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इस शब्द का प्रयोग सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष करने वाले आंदोलनों द्वारा किया जाता है।
  • गलत विकल्प: (a) और (b) पूरी तरह से गलत हैं। (d) भूमिहीन किसान कई श्रेणियों से हो सकते हैं, लेकिन ‘दलित’ शब्द विशेष रूप से ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित जातियों के लिए प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 17: ‘पैटर्न वेरिएबल’ (Pattern Variables) की अवधारणा किसके द्वारा विकसित की गई थी, जो सामाजिक क्रियाओं और संरचनाओं के विश्लेषण के लिए पाँच द्वंद्वों को प्रस्तुत करती है?

  1. आर. के. मर्टन
  2. ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
  3. टेल्कोट पार्सन्स
  4. इमाइल दुर्खीम

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: टेल्कोट पार्सन्स ने सामाजिक क्रिया और संरचना के विश्लेषण के लिए ‘पैटर्न वेरिएबल’ (Pattern Variables) की अवधारणा प्रस्तुत की। ये पाँच द्वंद्व (जैसे, भावना बनाम भावनात्मक तटस्थता) बताते हैं कि व्यक्ति या समूह सामाजिक क्रियाएँ करते समय कैसे चुनाव करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने अपने कार्यात्मक विश्लेषण (functional analysis) में इन चरों का उपयोग करके सामाजिक व्यवस्था की स्थिरता और परिवर्तन को समझाया।
  • गलत विकल्प: मर्टन ने प्रकार्य (function) और प्रकटन (manifest/latent) पर काम किया, रेडक्लिफ-ब्राउन ने संरचनात्मक प्रकार्यवाद (structural functionalism) पर, और दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों पर।

प्रश्न 18: सामाजिक अनुसंधान में ‘पद्धतिगत एकाश्मता’ (Methodological Solipsism) की आलोचना किसके द्वारा की गई, जिसमें यह तर्क दिया गया कि समाज का अध्ययन व्यक्ति के मन से शुरू नहीं हो सकता?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. मैक्स वेबर
  4. पीटर एल. बर्जर और थॉमस लकमैन

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘पद्धतिगत एकाश्मता’ (Methodological Solipsism) की आलोचना की। उनका तर्क था कि समाजशास्त्र का अध्ययन ‘सामाजिक तथ्यों’ से शुरू होना चाहिए, जो व्यक्तियों के मन के बाहर और उन पर बाध्यकारी होते हैं, न कि व्यक्ति की चेतना या व्यक्तिपरक अनुभवों से।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के प्रत्यक्षवाद (positivism) के दृष्टिकोण ने सामाजिक घटनाओं को वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन करने पर जोर दिया।
  • गलत विकल्प: मार्क्स आर्थिक संरचनाओं पर, वेबर व्यक्तिपरक अर्थों पर, और बर्जर-लकमैन सामाजिक निर्माण (social construction) पर जोर देते थे, लेकिन दुर्खीम विशेष रूप से व्यक्तिवादी दृष्टिकोण को सामाजिक अध्ययन के लिए अपर्याप्त मानते थे।

प्रश्न 19: पीटर एल. बर्जर और थॉमस लकमैन की पुस्तक ‘द सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ रियलिटी’ (The Social Construction of Reality) किस मुख्य सिद्धांत पर आधारित है?

  1. प्रत्यक्षवाद (Positivism)
  2. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
  3. संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
  4. द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: बर्जर और लकमैन की यह प्रभावशाली पुस्तक प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के सिद्धांतों पर आधारित है। यह बताती है कि कैसे सामाजिक वास्तविकता (जैसे संस्थाएँ, पहचान, ज्ञान) व्यक्तियों के बीच निरंतर सामाजिक अंतःक्रिया और साझा प्रतीकों के माध्यम से निर्मित होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने ‘बाह्यीकरण’ (Externalization), ‘वस्तुनिष्ठता’ (Objectivation) और ‘आंतरीकरण’ (Internalization) की प्रक्रियाओं द्वारा सामाजिक वास्तविकता के निर्माण की व्याख्या की।
  • गलत विकल्प: प्रत्यक्षवाद वस्तुनिष्ठता पर, प्रकार्यवाद समाज को एक प्रणाली के रूप में देखता है, और द्वंद्वात्मक भौतिकवाद मार्क्सवादी विचार का हिस्सा है, जबकि प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति-से-व्यक्ति अंतःक्रिया पर केंद्रित है।

प्रश्न 20: ग्रामीण समाजों के अध्ययन में, ‘नारी-विवाह’ (Marriage by Capture) के स्थान पर ‘नारी-क्रीत’ (Purchase of Bride) की प्रथा का उल्लेख किस समाजशास्त्री ने भारतीय ग्रामीण समुदायों के संदर्भ में किया है?

  1. एम.एन. श्रीनिवास
  2. इरावती कर्वे
  3. टी.बी. नंबूद्रीपाद
  4. रामकृष्ण मुखर्जी

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: इरावती कर्वे, जो भारत में मानव विज्ञान और समाजशास्त्र की एक प्रमुख हस्ती थीं, ने अपने कार्यों में भारतीय विवाह प्रथाओं, विशेषकर ग्रामीण समुदायों में, का विस्तृत अध्ययन किया। उन्होंने ‘नारी-क्रीत’ (bride price) या दुल्हन की खरीद जैसी प्रथाओं का विश्लेषण किया।
  • संदर्भ और विस्तार: उनकी पुस्तक ‘किनशिप ऑर्गनाइजेशन इन इंडिया’ (Kinship Organisation in India) में भारतीय समाजों में विवाह, परिवार और नातेदारी की जटिलताओं का गहन विश्लेषण मिलता है।
  • गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास, रामकृष्ण मुखर्जी और टी.बी. नंबूद्रीपाद ने भी भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण कार्य किए, लेकिन ‘नारी-क्रीत’ का विशेष उल्लेख और विश्लेषण कर्वे के कार्यों में प्रमुख है।

प्रश्न 21: भारत में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया के संदर्भ में, शहरीकरण (Urbanization) का क्या परिणाम रहा है?

  1. पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली का सुदृढ़ीकरण
  2. जाति व्यवस्था की सुदृढ़ता
  3. व्यक्तिवाद (Individualism) और नाभिकीय परिवार (Nuclear Family) का उदय
  4. ग्रामीण सामुदायिक भावना में वृद्धि

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भारत में आधुनिकीकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया ने पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित किया है। शहरीकरण के साथ बड़े परिवारों का टूटना, नाभिकीय परिवारों का उदय, और व्यक्तिवाद की ओर झुकाव देखा गया है, जहाँ व्यक्ति की अपनी आकांक्षाएं और स्वतंत्रता अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया शिक्षा, रोजगार के अवसर और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों से जुड़ी है जो ग्रामीण से शहरी वातावरण में प्रवास को प्रेरित करते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) और (b) आमतौर पर शहरीकरण से कमजोर हुए हैं, और (d) शहरी वातावरण में ग्रामीण सामुदायिक भावना अक्सर कम हो जाती है।

प्रश्न 22: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जिसमें सामाजिक नेटवर्क, साझा मूल्य और विश्वास शामिल हैं, का उपयोग किसके कार्यों में प्रमुख रूप से किया गया है?

  1. पीटर एल. बर्जर
  2. जेम्स एस. कोलमैन
  3. रॉबर्ट पुटनम
  4. सभी (a, b, और c)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: पीटर एल. बर्जर (सामाजिक निर्माण के संदर्भ में), जेम्स एस. कोलमैन (बच्चों के पालन-पोषण में), और रॉबर्ट पुटनम (लोकतंत्र में) – इन तीनों समाजशास्त्रियों ने ‘सामाजिक पूंजी’ की अवधारणा को विकसित करने और इसके महत्व को समझाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सामाजिक पूंजी वह लाभ है जो व्यक्ति या समूह अपने सामाजिक संबंधों और नेटवर्क से प्राप्त करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: कोलमैन ने इसे बच्चों की शिक्षा के संदर्भ में समझाया, जबकि पुटनम ने नागरिक समाज और लोकतंत्र पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया।
  • गलत विकल्प: हालांकि सभी ने योगदान दिया, (d) इन सभी को शामिल करता है।

प्रश्न 23: भारतीय समाज में ‘आदिवासी’ (Tribal) समुदायों की मुख्य विशेषता क्या है, जो उन्हें अन्य सामाजिक समूहों से अलग करती है?

  1. एक सामान्य भाषा और संस्कृति
  2. राजधानी शहरों से निकटता
  3. एक औपचारिक राज्य प्रणाली
  4. उच्च स्तर का औद्योगिकरण

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: आदिवासी समुदायों को अक्सर एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले, एक सामान्य भाषा, संस्कृति, सामाजिक संगठन और अक्सर एक उभयनिष्ठ पूर्वज की मान्यता से पहचाना जाता है। उनकी अपनी अनूठी परंपराएँ और जीवन शैली होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: जबकि आदिवासी समुदायों में भिन्नता होती है, एक सामान्य भाषा और संस्कृति का बोध उन्हें अक्सर मुख्यधारा के समाज या अन्य समुदायों से अलग करने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व रहा है।
  • गलत विकल्प: आदिवासी समुदाय अक्सर शहरों से दूर, पहाड़ों या जंगलों जैसे दुर्गम क्षेत्रों में रहते हैं (b)। उनके पास अक्सर अनौपचारिक या पारंपरिक शासन प्रणालियाँ होती हैं, न कि औपचारिक राज्य प्रणालियाँ (c)। वे आमतौर पर औद्योगिकरण के निम्न स्तर वाले होते हैं (d)।

प्रश्न 24: ‘संस्था’ (Institution) को समाजशास्त्र में कैसे परिभाषित किया जाता है?

  1. कुछ व्यक्तियों का एक समूह जो एक सामान्य उद्देश्य के लिए एक साथ आते हैं।
  2. सभी सामाजिक संबंधों और अंतःक्रियाओं का योग।
  3. व्यवहार के स्थापित और स्वीकृत पैटर्न का एक पैटर्न, जो सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  4. किसी भी सामाजिक संगठन का एक निश्चित पद (hierarchy)।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: समाजशास्त्र में, ‘संस्था’ (Institution) से तात्पर्य व्यवहार के ऐसे स्थायी, संगठित और स्वीकृत तरीकों से है जो समाज की कुछ महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। परिवार, शिक्षा, धर्म, सरकार और अर्थव्यवस्था प्रमुख सामाजिक संस्थाएं हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: संस्थाएं समाज के सदस्यों के लिए एक प्रकार का ढांचा (framework) प्रदान करती हैं, जिससे वे पूर्वानुमेय तरीके से कार्य कर सकें।
  • गलत विकल्प: (a) समूह को परिभाषित करता है, (b) सामाजिक संबंधों को, और (d) नौकरशाही जैसी किसी विशेष संरचना को। संस्थाएं इससे कहीं अधिक व्यापक और व्यवहार-आधारित होती हैं।

  • प्रश्न 25: किस समाजशास्त्री ने ‘समाज के प्रकार’ (Types of Society) का वर्गीकरण ‘श्रम विभाजन’ (Division of Labour) के आधार पर किया?

    1. हरबर्ट स्पेंसर
    2. कार्ल मार्क्स
    3. एमिल दुर्खीम
    4. मैक्स वेबर

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में समाजों को उनके श्रम विभाजन की प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया। उन्होंने ‘यांत्रिक एकजुटता’ वाले सरल समाजों (जहाँ श्रम विभाजन कम होता है) और ‘जैविक एकजुटता’ वाले जटिल, औद्योगिक समाजों (जहाँ श्रम विभाजन बहुत अधिक होता है) के बीच अंतर किया।
  • संदर्भ और विस्तार: यह वर्गीकरण सामाजिक एकजुटता के स्रोतों को समझने के लिए महत्वपूर्ण था।
  • गलत विकल्प: स्पेंसर ने सामाजिक विकासवाद, मार्क्स ने आर्थिक आधार, और वेबर ने शक्ति और नौकरशाही के आधार पर समाजों का विश्लेषण किया, लेकिन सीधे तौर पर श्रम विभाजन को वर्गीकरण का मुख्य आधार दुर्खीम ने बनाया।
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