समाजशास्त्र के ज्ञान को पैना करें: दैनिक प्रश्नोत्तर
नमस्कार, युवा समाजशास्त्रियों! आज का दिन आपकी समाजशास्त्रीय समझ और विश्लेषणात्मक कौशल को परखने का है। प्रतिस्पर्धा की राह पर, अवधारणाओं पर पकड़ और सिद्धांतों का ज्ञान ही आपकी सबसे बड़ी पूंजी है। आइए, इन 25 बहुविकल्पीय प्रश्नों के माध्यम से अपनी तैयारी को एक नया आयाम दें और समाज की जटिलताओं को गहराई से समझें।
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की?
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- विलियम ग्राहम समनर
- ऑगस्ट कॉम्टे
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: विलियम ग्राहम समनर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘फ़ोकवेज़’ (Folkways, 1906) में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा दी। यह अवधारणा बताती है कि किसी समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे कानून, रीति-रिवाज, संस्थाएं) की तुलना में तेज़ी से बदलती है, जिससे दोनों के बीच एक अंतराल (विलंब) उत्पन्न हो जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: समनर ने यह विश्लेषण किया कि कैसे तकनीकी नवाचार सामाजिक मूल्यों, विश्वासों और संस्थागत ढाँचों को समायोजित करने से पहले समाज में आते हैं, जिससे सामाजिक तनाव और समायोजन की समस्याएँ पैदा होती हैं।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने ‘वर्टेहेन’ (Verstehen) और नौकरशाही जैसी अवधारणाएँ दीं। एमिल दुर्खीम ने ‘समाज’ (Social Facts), ‘एनोमी’ (Anomie) और ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) जैसे विचारों को विकसित किया। ऑगस्ट कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने ‘प्रत्यक्षवाद’ (Positivism) का सिद्धांत दिया।
प्रश्न 2: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज की एकजुटता का वह स्वरूप जिसमें व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से समाज से जुड़ा होता है, न कि किसी मध्यस्थ समूह से, क्या कहलाता है?
- यांत्रिक एकता (Mechanical Solidarity)
- सावयी एकता (Organic Solidarity)
- अहस्तक्षेपी एकता (Non-interventional Solidarity)
- सांस्कृतिक एकता (Cultural Solidarity)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘समाज का विभाजन’ (The Division of Labor in Society) में ‘सावयी एकता’ (Organic Solidarity) का वर्णन किया है। यह एकता आधुनिक, जटिल समाजों में पाई जाती है जहाँ श्रम का विभाजन अधिक होता है, और व्यक्ति अपनी विशिष्ट भूमिकाओं के माध्यम से समाज पर निर्भर रहता है, जैसे शरीर के विभिन्न अंग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सावयी एकता उन समाजों में विकसित होती है जहाँ अंतर-निर्भरता (interdependence) का स्तर उच्च होता है। यह ‘यांत्रिक एकता’ से भिन्न है, जो सरल समाजों में सामान्य चेतना और समानता पर आधारित होती है।
- गलत विकल्प: ‘यांत्रिक एकता’ सरल समाजों में पाई जाती है। ‘अहस्तक्षेपी एकता’ और ‘सांस्कृतिक एकता’ दुर्खीम द्वारा प्रयोग किए गए शब्द नहीं हैं।
प्रश्न 3: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवाद के अंतर्गत श्रमिकों का अपने श्रम, उत्पाद, और स्वयं से अलगाव (Alienation) किस व्यवस्था से उत्पन्न होता है?
- वर्ग संघर्ष
- उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व
- सर्वहारा क्रांति
- अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन के साधनों (जैसे कारखाने, मशीनरी) का निजी स्वामित्व होता है। इसका अर्थ है कि श्रमिक अपने श्रम द्वारा जो उत्पाद बनाते हैं, उस पर उनका कोई अधिकार नहीं होता। वे केवल मजदूरी के लिए अपना श्रम बेचते हैं, जिससे वे अपने श्रम के उत्पाद से, स्वयं अपने श्रम से (क्योंकि यह उनके नियंत्रण में नहीं है), और अंततः अन्य मनुष्यों से भी अलगाव महसूस करते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: अलगाव की यह अवधारणा मार्क्स के प्रारंभिक लेखन, विशेषकर ‘आर्थिक और दार्शनिक पांडुलिपियाँ 1844’ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में विस्तार से मिलती है।
- गलत विकल्प: ‘वर्ग संघर्ष’ अलगाव का परिणाम और क्रांति का कारण है, न कि स्वयं अलगाव का मूल कारण। ‘सर्वहारा क्रांति’ अलगाव को समाप्त करने का एक साधन है। ‘अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत’ शोषण की व्याख्या करता है, जो अलगाव से संबंधित है लेकिन अलगाव का प्रत्यक्ष कारण निजी स्वामित्व ही है।
प्रश्न 4: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य (Sociological Perspective) का अर्थ है:
- केवल व्यक्तिगत अनुभवों पर ध्यान केंद्रित करना।
- सामाजिक शक्तियों और संरचनाओं के प्रभाव को समझना।
- मानव व्यवहार का अध्ययन केवल मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से करना।
- इतिहास के अध्ययन से पूरी तरह बचना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य का मूल सिद्धांत यह है कि मानव व्यवहार, विचार और अनुभव केवल व्यक्तिगत कारकों से नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक संरचनाओं, संस्थानों, सांस्कृतिक मानदंडों और ऐतिहासिक संदर्भों से गहराई से प्रभावित होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह दृष्टिकोण हमें व्यक्तिगत समस्याओं को सार्वजनिक मुद्दों से जोड़ने में मदद करता है (जैसा कि सी. राइट मिल्स ने ‘समाजशास्त्रीय कल्पना’ में बताया है)।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत अनुभवों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के विपरीत है। (c) मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव व्यवहार का अध्ययन करना मनोविज्ञान का क्षेत्र है, समाजशास्त्र सामाजिक शक्तियों पर जोर देता है। (d) इतिहास समाजशास्त्र के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ प्रदान करता है।
प्रश्न 5: भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति को समझाने वाले विभिन्न सिद्धांतों में से कौन सा सिद्धांत ‘पवित्रता’ और ‘अपवित्रता’ (Purity and Pollution) की अवधारणा पर आधारित है?
- वंशानुगत सिद्धांत (Hereditary Theory)
- व्यावसायिक सिद्धांत (Occupational Theory)
- धार्मिक सिद्धांत (Religious Theory)
- साम्राज्यवादी सिद्धांत (Imperialist Theory)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति के धार्मिक सिद्धांतों में से एक प्रमुख तर्क यह है कि यह ‘पवित्रता’ और ‘अपवित्रता’ की अवधारणाओं पर आधारित है, जो वैदिक और उत्तर-वैदिक काल के अनुष्ठानों और सामाजिक पदानुक्रम से जुड़ी हैं। कर्मकांडीय शुद्धता का विचार जातिगत क्रम को वैधता प्रदान करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह सिद्धांत वेदों और ब्राह्मणवादी ग्रंथों में पाई जाने वाली सामाजिक व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था की व्याख्याओं से जुड़ा है।
- गलत विकल्प: ‘वंशानुगत सिद्धांत’ यह मानता है कि जाति वंशानुगत है। ‘व्यावसायिक सिद्धांत’ मानता है कि जाति व्यवसाय पर आधारित है। ‘साम्राज्यवादी सिद्धांत’ पश्चिमी विद्वानों द्वारा दिया गया एक आलोचनात्मक सिद्धांत है जो यूरोपीय औपनिवेशिक दृष्टिकोण को उजागर करता है।
प्रश्न 6: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) की अंतःक्रिया से किसका निर्माण होता है?
- संज्ञानात्मक विकास
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- स्वयं (Self)
- सामाजिक संरचना
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के एक प्रमुख विचारक, के अनुसार ‘स्वयं’ (Self) का विकास सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से होता है। ‘मैं’ (I) व्यक्ति की तात्कालिक, अनियोजित और रचनात्मक प्रतिक्रियाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि ‘मुझे’ (Me) समाज द्वारा आंतरिककृत सामान्यीकृत अन्य (generalized other) की भूमिकाओं और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करता है। इन दोनों के संतुलन से ‘स्वयं’ का निर्माण होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: मीड ने अपनी पुस्तक ‘मन, स्वयं और समाज’ (Mind, Self, and Society) में इस विचार को विस्तार से प्रस्तुत किया है।
- गलत विकल्प: ‘संज्ञानात्मक विकास’ पियाजे का सिद्धांत है। ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ वह ढाँचा है जिसके तहत मीड ने अपने विचार प्रस्तुत किए, न कि ‘I’ और ‘Me’ की अंतःक्रिया का परिणाम। ‘सामाजिक संरचना’ व्यापक अवधारणा है।
प्रश्न 7: रॉबर्ट मर्टन (Robert Merton) द्वारा प्रस्तुत ‘प्रयोजनपूर्ण विचलन’ (Manifest Function) का क्या अर्थ है?
- किसी सामाजिक संस्था के अनपेक्षित और गुप्त परिणाम।
- किसी सामाजिक संस्था के जानबूझकर और स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त परिणाम।
- समाज में विचलन का एक रूप जो व्यक्तिगत कारणों से होता है।
- समाज के नियमों का पूर्णतः पालन।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: रॉबर्ट मर्टन ने संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) में ‘प्रयोजनपूर्ण प्रकार्य’ (Manifest Function) को किसी सामाजिक प्रक्रिया, संस्था या सांस्कृतिक पैटर्न के ऐसे परिणाम के रूप में परिभाषित किया है जो स्पष्ट, जानबूझकर और समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: मर्टन ने ‘प्रयोजनपूर्ण प्रकार्य’ के साथ-साथ ‘अप्रत्ययोजनपूर्ण प्रकार्य’ (Latent Function) की भी चर्चा की है, जो अनपेक्षित और अक्सर अचेतन परिणाम होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘अप्रत्ययोजनपूर्ण प्रकार्य’ की परिभाषा है। (c) यह विचलन (deviance) की परिभाषा के करीब है, प्रकार्य की नहीं। (d) यह प्रकार्य के विपरीत है।
प्रश्न 8: भारत में ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किसके द्वारा और किस संदर्भ में किया गया?
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, अस्पृश्यता के विरोध में
- महात्मा गांधी, अछूतों को सम्मान देने के लिए
- महात्मा ज्योतिबा फुले, सामाजिक सुधार के लिए
- सर सैयद अहमद खान, मुस्लिम समुदाय के लिए
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: महात्मा गांधी ने ‘अछूतों’ या दलितों के लिए ‘हरिजन’ (अर्थात, हरि यानी ईश्वर के जन) शब्द का प्रयोग किया था। उनका उद्देश्य इस समुदाय को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाना और अस्पृश्यता की कुप्रथा का अंत करना था।
- संदर्भ एवं विस्तार: गांधीजी ने अपने साप्ताहिक पत्र का नाम भी ‘हरिजन’ रखा था। यह शब्द दलित समुदाय के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के उनके प्रयासों का प्रतीक था।
- गलत विकल्प: डॉ. अम्बेडकर ने ‘दलित’ (दबे-कुचले) शब्द का प्रयोग किया और अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए संघर्ष किया। ज्योतिबा फुले ने ‘सत्योंशोधक समाज’ की स्थापना की और सामाजिक असमानताओं के विरुद्ध आवाज उठाई। सर सैयद अहमद खान ने मुस्लिम समुदाय के उत्थान पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 9: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) किस पर सर्वाधिक बल देता है?
- सामाजिक संरचनाओं का प्रभाव
- व्यक्तियों के बीच प्रतीकों और अर्थों के माध्यम से होने वाली अंतःक्रिया
- समाज के स्थूल (Macro) स्तर के पैटर्न
- संस्थागत शक्ति संरचनाएँ
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जो मीड, ब्लूमर जैसे समाजशास्त्रियों से जुड़ा है, इस बात पर केंद्रित है कि व्यक्ति किस प्रकार प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) का उपयोग करके एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और इस अंतःक्रिया के माध्यम से अर्थ (meaning) का निर्माण करते हैं, जिससे स्वयं और समाज का निर्माण होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह एक सूक्ष्म (micro-level) समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण है जो व्यक्तिगत और अंतर-व्यक्तिगत (interpersonal) अनुभवों पर जोर देता है।
- गलत विकल्प: (a), (c), और (d) स्थूल (macro-level) समाजशास्त्रीय सिद्धांतों (जैसे संरचनात्मक प्रकार्यवाद, मार्क्सवाद) से संबंधित हैं, जबकि प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म (micro-level) अध्ययन पर केंद्रित है।
प्रश्न 10: भारत में ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार’ (Universal Adult Franchise) किस प्रकार के सामाजिक परिवर्तन का उदाहरण है?
- आर्थिक परिवर्तन
- राजनीतिक परिवर्तन
- सांस्कृतिक परिवर्तन
- जनसांख्यिकीय परिवर्तन
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, जिसमें सभी वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के वोट देने का अधिकार प्राप्त होता है, एक मौलिक राजनीतिक अधिकार है। इसका समावेश और कार्यान्वयन सीधे तौर पर राज्य की शासन प्रणाली और सत्ता के वितरण में परिवर्तन से संबंधित है, जो राजनीतिक परिवर्तन की श्रेणी में आता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: भारत में संविधान के लागू होने के साथ ही इसे अपनाया गया, जिसने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत किया और समाज में शक्ति के पुनर्वितरण की प्रक्रिया को प्रारंभ किया।
- गलत विकल्प: हालाँकि इसके अप्रत्यक्ष आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव हो सकते हैं, इसका प्राथमिक स्वरूप राजनीतिक है। जनसांख्यिकीय परिवर्तन जनसंख्या से संबंधित है।
प्रश्न 11: ‘आधुनिकता’ (Modernity) की अवधारणा को अधिकतम महत्व किसने दिया?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने अपने कार्यों में ‘आधुनिकता’ से जुड़े विभिन्न पहलुओं, विशेषकर ‘तर्कसंगतता’ (Rationalization), ‘नौकरशाही’ (Bureaucracy), ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularization) और ‘पूंजीवाद’ (Capitalism) के उदय पर गहनता से विचार किया। वेबर के लिए, आधुनिकता का सार तर्कसंगतता और व्यवस्थित गणना की बढ़ती प्रधानता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: उनकी पुस्तक ‘प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ (The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism) आधुनिक पूंजीवाद के उदय में तर्कसंगत नैतिकता की भूमिका को दर्शाती है।
- गलत विकल्प: मार्क्स ने ‘पूंजीवाद’ और ‘वर्ग संघर्ष’ पर ध्यान केंद्रित किया। दुर्खीम ने ‘श्रम विभाजन’ और ‘समाज’ पर। स्पेंसर का ‘सामाजिक विकास’ का सिद्धांत था, लेकिन वेबर आधुनिकता के विशिष्ट पहलुओं के विश्लेषण के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 12: समाजशास्त्र में ‘अभिजात वर्ग’ (Elite) की अवधारणा किसने विकसित की?
- विल्फ्रेडो पैरेटो
- गैतानो मोस्का
- सी. राइट मिल्स
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 13: भारत में ‘जाति परिवर्तन‘ (Caste Mobility) के संदर्भ में ‘सांस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया का संबंध किससे है?
- उच्च जाति का निम्न जाति के रीति-रिवाजों को अपनाना।
- निम्न जाति का उच्च जाति के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाना।
- जाति व्यवस्था का पूर्णतः लोप हो जाना।
- जातियों का मिश्रण होना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रतिपादित ‘सांस्कृतिकरण’ की अवधारणा के अनुसार, यह वह प्रक्रिया है जिसमें निचली या मध्य जातियों के लोग उच्च जातियों (विशेषकर द्विजाति) के अनुष्ठानों, पूजा-पद्धतियों, खान-पान, वेशभूषा और जीवन शैली को अपनाते हैं ताकि वे जातिगत पदानुक्रम में अपनी स्थिति को सुधार सकें और उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकें।
- संदर्भ एवं विस्तार: श्रीनिवास ने यह अवधारणा अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रस्तुत की थी। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता (cultural mobility) है।
- गलत विकल्प: (a) यह इसका उल्टा है। (c) सांस्कृतिकरण जाति व्यवस्था को समाप्त नहीं करता, बल्कि उसके भीतर गतिशीलता का एक रूप है। (d) जातियों का मिश्रण एक अलग प्रक्रिया है।
प्रश्न 14: समाज में ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) का मुख्य सरोकार क्या है?
- समाज में संघर्ष और असमानता के स्रोतों का विश्लेषण करना।
- समाज के विभिन्न भागों (संरचनाओं) के कार्यों और उनके समग्र समाज पर प्रभाव का अध्ययन करना।
- समाज में व्यक्तिगत व्यवहार के मनोवैज्ञानिक कारणों की व्याख्या करना।
- सामाजिक परिवर्तन के उत्प्रेरक कारकों पर जोर देना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद, जिसके प्रमुख प्रस्तावक एमिल दुर्खीम, टालकोट पार्सन्स और रॉबर्ट मर्टन हैं, इस दृष्टिकोण पर आधारित है कि समाज विभिन्न अंतःसंबंधित भागों (जैसे संस्थाएँ, भूमिकाएँ, मानदंड) से बना है, और प्रत्येक भाग समाज के समग्र कामकाज (function) में योगदान देता है। यह समाज की स्थिरता और व्यवस्था पर बल देता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह दृष्टिकोण मानता है कि समाज एक जैविक जीव की तरह है, जहाँ हर अंग का एक विशेष कार्य होता है जो पूरे शरीर के स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
- गलत विकल्प: (a) यह संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) का मुख्य सरोकार है। (c) यह मनोविज्ञान का क्षेत्र है। (d) यह सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांतों से संबंधित है, न कि प्रकार्यवाद से।
प्रश्न 15: निम्नलिखित में से कौन दुर्खीम के ‘समाज’ (Social Fact) के विचार का सबसे अच्छा उदाहरण है?
- किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत सुख।
- किसी व्यक्ति का जन्म।
- किसी समाज के लोगों द्वारा पालन किए जाने वाले कानून और नैतिक नियम।
- एक व्यक्ति का निजी सपना।
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘समाज’ बाहरी, बाध्यकारी शक्ति वाले विचार, भावनाएँ और क्रियाएँ हैं जो व्यक्ति को बाहर से प्रभावित करती हैं। कानून, नैतिक नियम, फैशन, भाषा, मुद्रा, और सामाजिक संस्थाएँ इसके उदाहरण हैं। ये व्यक्तिगत चेतना से स्वतंत्र होते हैं और व्यक्ति पर एक दबाव डालते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को विस्तृत रूप से समझाया।
- गलत विकल्प: (a), (b), और (d) व्यक्तिगत चेतना या जैविक घटनाओं से संबंधित हैं, न कि बाहरी सामाजिक दबावों से।
प्रश्न 16: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय गांवों के अध्ययन में किस शोध पद्धति का प्रयोग किया?
- सांख्यिकीय विश्लेषण (Statistical Analysis)
- क्षेत्रीय अध्ययन (Field Study) / नृवंशविज्ञान (Ethnography)
- प्रयोग (Experimentation)
- ऐतिहासिक अध्ययन (Historical Study)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास, जो भारत में सामाजिक नृविज्ञान के अग्रणी थे, ने भारतीय गांवों और समुदायों के गहन अध्ययन के लिए ‘क्षेत्रीय अध्ययन’ (Field Study) और ‘नृवंशविज्ञान’ (Ethnography) की पद्धतियों का व्यापक रूप से उपयोग किया। उन्होंने प्रत्यक्ष अवलोकन, साक्षात्कार और समूह के सदस्यों के साथ रहकर जीवन जीने (participant observation) जैसी तकनीकों का प्रयोग किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: उनके प्रसिद्ध कार्य जैसे ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ और ‘The Remembered Village’ इसी पद्धति के परिणाम हैं।
- गलत विकल्प: यद्यपि वे कुछ सांख्यिकीय डेटा का उपयोग करते होंगे, उनकी मुख्य पद्धति गहन क्षेत्रीय अवलोकन थी। समाजशास्त्र में प्रयोग (Experimentation) आम तौर पर प्राकृतिक विज्ञान की तरह नहीं किया जाता है। ऐतिहासिक अध्ययन उनके मुख्य सरोकार नहीं थे, हालांकि वे संदर्भ के लिए इतिहास का उपयोग करते थे।
प्रश्न 17: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘वर्ग संघर्ष’ (Class Struggle) को इतिहास की मुख्य प्रेरक शक्ति मानता है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- ऑगस्ट कॉम्टे
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) के अनुसार, इतिहास विभिन्न उत्पादन विधियों (modes of production) के क्रमिक विकास की कहानी है, और प्रत्येक काल में उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व को लेकर विभिन्न वर्गों के बीच संघर्ष (वर्ग संघर्ष) समाज को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में ले जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: मार्क्स का मानना था कि समाज शोषक (बुर्जुआ) और शोषित (सर्वहारा) वर्गों में विभाजित है, और इन वर्गों के बीच का संघर्ष ही सामाजिक परिवर्तन का मूल कारण है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम सामाजिक एकजुटता पर, वेबर तर्कसंगतता और शक्ति पर, और कॉम्टे प्रत्यक्षवाद पर बल देते थे, न कि वर्ग संघर्ष पर।
प्रश्न 18: ‘आधुनिकता’ के संदर्भ में, **”धर्मनिरपेक्षता” (Secularization)** का क्या अर्थ है?
- सभी धर्मों का अंत हो जाना।
- धर्म का प्रभाव कम होना और सामाजिक जीवन के अन्य क्षेत्रों (जैसे राजनीति, शिक्षा) का धार्मिक नियंत्रण से मुक्त होना।
- व्यक्तिगत विश्वासों में वृद्धि।
- धार्मिक ग्रंथों का पुनरुद्धार।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समाज के विभिन्न क्षेत्र (जैसे सरकार, शिक्षा, विज्ञान) धीरे-धीरे धार्मिक संस्थाओं और विचारधाराओं के पारंपरिक प्रभाव से स्वतंत्र हो जाते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि धर्म का पूरी तरह अंत हो जाता है, बल्कि यह सार्वजनिक जीवन में कम महत्वपूर्ण हो जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: मैक्स वेबर ने इसे ‘तर्कसंगतता’ की प्रक्रिया का हिस्सा माना था, जहाँ अलौकिक व्याख्याओं की जगह तर्कसंगत और वैज्ञानिक स्पष्टीकरण लेने लगते हैं।
- गलत विकल्प: (a) धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म का पूर्ण अंत नहीं है। (c) यह व्यक्तिगत विश्वासों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह प्रत्यक्ष अर्थ नहीं है। (d) यह धर्मनिरपेक्षता के विपरीत है।
प्रश्न 19: भारत में **’पंचायती राज’** व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- केंद्रीकृत शक्ति को मजबूत करना।
- ग्रामीण स्तर पर लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देना।
- शहरी विकास को प्राथमिकता देना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: पंचायती राज व्यवस्था का प्राथमिक उद्देश्य शक्तियों का विकेंद्रीकरण करके ग्रामीण स्थानीय निकायों (ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों, जिला परिषदों) को सशक्त बनाना है, ताकि वे स्थानीय स्तर पर शासन और विकास में प्रभावी भूमिका निभा सकें। यह ‘लोकतंत्र के तीसरे स्तर’ के रूप में कार्य करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया, जिससे यह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
- गलत विकल्प: (a) यह विकेंद्रीकरण के विपरीत है। (c) पंचायती राज मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए है। (d) इसका सीधा संबंध अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से नहीं है।
प्रश्न 20: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में **’मानदंड’ (Norms)** क्या हैं?
- समाज के सदस्यों की व्यक्तिगत मान्यताएँ।
- समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार के नियम और अपेक्षाएँ।
- समाज की आर्थिक स्थिति।
- सामाजिक असमानता के सिद्धांत।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: समाजशास्त्रीय भाषा में, ‘मानदंड’ (Norms) वे नियम और अपेक्षाएँ हैं जो किसी समाज या समूह के सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित करते हैं। ये बताते हैं कि किसी विशेष परिस्थिति में क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं।
- संदर्भ एवं विस्तार: मानदंडों को सकारात्मक (जैसे शिष्टाचार) या नकारात्मक (जैसे निषेध) दोनों तरह से लागू किया जा सकता है, और इनके उल्लंघन पर सामाजिक नियंत्रण (जैसे दंड या आलोचना) होता है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत मान्यताएँ व्यक्तिगत होती हैं, जबकि मानदंड सामाजिक रूप से स्वीकृत होते हैं। (c) आर्थिक स्थिति एक अलग सामाजिक विशेषता है। (d) सामाजिक असमानता के सिद्धांत समाज की संरचना का विश्लेषण करते हैं।
प्रश्न 21: **’पूंजीवाद’ (Capitalism)** के उदय के लिए मैक्स वेबर ने किस धार्मिक विचारधारा को महत्वपूर्ण माना?
- ईसाई धर्म (विशेषकर कैथोलिकवाद)
- इस्लाम
- प्रोटेस्टेंट धर्म (विशेषकर केल्विनवाद)
- हिंदू धर्म
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ (The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism) में तर्क दिया कि प्रोटेस्टेंट धर्म, विशेष रूप से जॉन केल्विन के विश्वासों (जैसे पूर्वनियति का सिद्धांत – predestination) ने पश्चिम में आधुनिक पूंजीवाद के विकास के लिए एक वैचारिक और नैतिक आधार प्रदान किया। केल्विनवादी कार्य नैतिकता (work ethic) ने कड़ी मेहनत, बचत और सांसारिक सफलता को ईश्वर की कृपा का संकेत माना, जो पूंजी संचय के लिए अनुकूल था।
- संदर्भ एवं विस्तार: वेबर ने इस तरह से धर्म और अर्थव्यवस्था के बीच संबंध का समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत किया।
- गलत विकल्प: वेबर ने कैथोलिकवाद, इस्लाम, या हिंदू धर्म की तुलना में प्रोटेस्टेंट धर्म को आधुनिक पूंजीवाद के उदय के लिए अधिक निर्णायक माना।
प्रश्न 22: **’सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification)** से तात्पर्य है:
- समाज के व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करना।
- समाज के सदस्यों को उनकी सामाजिक स्थिति, शक्ति और संसाधनों के आधार पर विभिन्न स्तरों या परतों में व्यवस्थित करना।
- व्यक्तिगत प्रतिभाओं का विकास।
- सामाजिक गतिशीलता को रोकना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण एक सार्वभौमिक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें समाज के सदस्यों को धन, शक्ति, प्रतिष्ठा, जाति, वर्ग आदि जैसे विभिन्न मापदंडों के आधार पर पदानुक्रमित स्तरों में विभाजित किया जाता है। यह असमानता का एक व्यवस्थित पैटर्न है।
- संदर्भ एवं विस्तार: इसके मुख्य सिद्धांत वर्ग, स्थिति (status) और शक्ति (power) हैं, जैसा कि मैक्स वेबर ने समझाया।
- गलत विकल्प: (a) सामाजिक स्तरीकरण असमानता पैदा करता है, समान अवसर नहीं। (c) यह व्यक्तिगत विकास का वर्णन नहीं करता। (d) यह सामाजिक स्तरीकरण की एक संभावित विशेषता हो सकती है, लेकिन इसका मूल अर्थ असमान विभाजन है।
प्रश्न 23: **’औद्योगीकरण’ (Industrialization)** का समाज पर सबसे महत्वपूर्ण **’अप्रत्ययोजनपूर्ण प्रकार्य’ (Latent Function)** क्या हो सकता है?
- उत्पादन में वृद्धि
- नए रोजगार के अवसर
- शहरीकरण और प्रवास में वृद्धि
- पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: औद्योगीकरण के स्पष्ट (प्रयोजनपूर्ण) प्रकार्य उत्पादन में वृद्धि, रोजगार सृजन और आर्थिक विकास हैं। हालाँकि, इसके अप्रत्ययोजनपूर्ण (Latent) प्रकार्यों में से एक महत्वपूर्ण परिणाम है ‘पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन’। जैसे-जैसे लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर बढ़ते हैं और कारखानों में काम करते हैं, पारंपरिक संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार (Nuclear Family) अधिक प्रचलित हो जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: रॉबर्ट मर्टन के अनुसार, अप्रत्ययोजनपूर्ण प्रकार्य वे अनपेक्षित और अक्सर अचेतन परिणाम होते हैं जो किसी सामाजिक घटना से जुड़े होते हैं।
- गलत विकल्प: (a), (b) और (c) औद्योगीकरण के प्रत्यक्ष (प्रयोजनपूर्ण) प्रकार्य हैं, जिनके बारे में समाज जानता है और जो उनके उद्देश्य होते हैं। (d) परिवार संरचना में परिवर्तन अक्सर एक अप्रत्याशित या अनपेक्षित परिणाम होता है।
प्रश्न 24: **’सभ्यता’ (Civilization)** की अवधारणा को किस समाजशास्त्री ने ‘जनसंख्या के पैमाने और सामाजिक संगठन की जटिलता’ के आधार पर परिभाषित किया?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- लुईस मॉर्गन (Lewis H. Morgan)
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: लुईस हेनरी मॉर्गन, एक अमेरिकी नृवंशविज्ञानी और समाजशास्त्री, को अक्सर प्रारंभिक समाजशास्त्रीय विचारों के लिए श्रेय दिया जाता है। उन्होंने मानव समाज के विकास के चरणों (जैसे बर्बरता, सभ्यता) को जनसंख्या के आकार, सामाजिक संगठन की जटिलता, तकनीकी विकास और संस्थाओं के आधार पर वर्गीकृत किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: उनकी प्रसिद्ध कृति ‘Ancient Society’ (1877) में उन्होंने इस विकासवादी दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया, जिसने बाद में मार्क्स और एंगेल्स जैसे विचारकों को भी प्रभावित किया।
- गलत विकल्प: मार्क्स, दुर्खीम और वेबर ने सभ्यता के बारे में विभिन्न दृष्टिकोण रखे, लेकिन मॉर्गन विशेष रूप से समाज के विकासात्मक चरणों को परिभाषित करने के लिए जनसंख्या और संगठन की जटिलता को प्रमुख मापदंड के रूप में उपयोग करने के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 25: भारत में **’कृषि संकट’ (Agricultural Crisis)** के सामाजिक-आर्थिक कारणों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल नहीं है?
- भूमि का छोटा और खंडित आकार।
- सिंचाई सुविधाओं का अपर्याप्त विकास।
- किसानों पर बढ़ता कर्ज और साहूकारों का शोषण।
- किसानों द्वारा मशीनीकृत खेती को पूर्णतः स्वीकार करना।
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता: भूमि का छोटा और खंडित आकार, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, और ऋणग्रस्तता व शोषण कृषि संकट के प्रमुख सामाजिक-आर्थिक कारण हैं। इसके विपरीत, किसानों द्वारा मशीनीकृत खेती को *पूर्णतः* स्वीकार करना एक कारण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी स्थिति है जो स्वयं समस्या का हिस्सा हो सकती है (जैसे उच्च लागत, तकनीकी ज्ञान की कमी)। बल्कि, कई भारतीय किसानों के लिए मशीनीकरण तक पहुँच अभी भी सीमित है।
- संदर्भ एवं विस्तार: ये कारण भारतीय कृषि की उत्पादकता, लाभप्रदता और किसानों की जीवन शैली को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं।
- गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सभी भारतीय कृषि क्षेत्र में व्याप्त वास्तविक समस्याओं का वर्णन करते हैं जो संकट को बढ़ाती हैं। (d) मशीनीकरण को पूर्णतः स्वीकार करना एक यथार्थवादी स्थिति नहीं है और यह समस्या का कारण नहीं, बल्कि संदर्भ का हिस्सा है।