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समाजशास्त्र की परीक्षा: अपनी अवधारणाओं को परखें

समाजशास्त्र की परीक्षा: अपनी अवधारणाओं को परखें

नमस्कार, समाजशास्त्र के जिज्ञासु विद्वानों! एक और दिन, एक और बौद्धिक चुनौती। आज की इस प्रश्नोत्तरी के साथ अपनी समाजशास्त्रीय समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता का परीक्षण करें। ये 25 प्रश्न आपके ज्ञान की गहराई को खंगालने और मुख्य अवधारणाओं पर आपकी पकड़ को मजबूत करने के लिए तैयार किए गए हैं। तो, कलम उठाइए (या उंगलियाँ तैयार रखिए) और अपनी तैयारी को एक नया आयाम दीजिए!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जो यह बताती है कि समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मूल्य, मानदंड) की तुलना में तेज़ी से बदलती है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. विलियम ग्राहम समनर
  4. एल्बिन गोल्डनर

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एल्बिन गोल्डनर (Alvin Goldner) ने 1922 में ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ की अवधारणा का प्रतिपादन किया था। यह अवधारणा समाज में परिवर्तन की गति में अंतर को स्पष्ट करती है, जहाँ भौतिक तत्व (जैसे उपकरण, मशीनें) अभौतिक तत्वों (जैसे कानून, नैतिकता, प्रथाएँ) की तुलना में अधिक तेज़ी से विकसित होते हैं, जिससे सामाजिक समायोजन में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है।
  • संदर्भ और विस्तार: गोल्डनर ने अपनी पुस्तक ‘सोर्सिस ऑफ सोशल पाथोलॉजी’ (Sources of Social Pathology) में इस विचार को विकसित किया। बाद में विलियम ग्राहम समनर ने भी ‘कस्टम्स’ (Customs) में इसी तरह के विचारों पर चर्चा की, लेकिन ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ शब्द गोल्डनर से जुड़ा है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष और ऐतिहासिक भौतिकवाद पर केंद्रित थे। मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) और नौकरशाही जैसे सिद्धांतों पर काम किया। विलियम ग्राहम समनर ने ‘फोल्क्वेज़’ (Folkways) और ‘मोरज़’ (Mores) जैसे सामाजिक मानदंडों के बीच अंतर बताया था, लेकिन ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ उनकी मुख्य अवधारणा नहीं थी।

प्रश्न 2: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज की एकीकृत शक्ति (cohesive force) मुख्य रूप से किस पर आधारित होती है?

  1. व्यक्तिगत लाभ और स्वार्थ
  2. साझा विश्वास, मूल्य और सामूहिक चेतना
  3. सत्तावादी शासन और नियंत्रण
  4. प्रतियोगिता और वर्ग संघर्ष

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम का मानना था कि समाज का एकीकरण ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) के माध्यम से होता है, जो समाज के सदस्यों द्वारा साझा किए गए विश्वासों, मूल्यों, नैतिकताओं और भावनाओं का योग है। यह साझापन सामाजिक एकजुटता और व्यवस्था बनाए रखता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी कृतियों जैसे ‘द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (The Division of Labour in Society) और ‘द एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ रिलीजियस लाइफ’ (The Elementary Forms of Religious Life) में इस पर जोर दिया। प्रारंभिक समाजों में यह ‘यांत्रिक एकजुटता’ (Mechanical Solidarity) के रूप में थी, जो समानता पर आधारित थी, जबकि आधुनिक समाजों में यह ‘जैविक एकजुटता’ (Organic Solidarity) के रूप में थी, जो श्रम विभाजन की विशिष्टता पर आधारित थी।
  • गलत विकल्प: व्यक्तिगत लाभ और स्वार्थ (a) को दुर्खीम व्यक्तिगत मनोविज्ञान का हिस्सा मानते थे, न कि सामाजिक एकीकरण का प्राथमिक आधार। सत्तावादी शासन (c) और वर्ग संघर्ष (d) (जो मार्क्स का मुख्य विचार है) जैसी धारणाएँ सामाजिक व्यवस्था को बाधित कर सकती हैं, न कि एकीकृत कर सकती हैं, दुर्खीम के दृष्टिकोण से।

प्रश्न 3: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, ‘अमीबा’ (Amoeba) समाज का उदाहरण क्यों नहीं है?

  1. इसमें संस्कृति का अभाव है।
  2. इसमें सामाजिक संरचना का अभाव है।
  3. इसमें चेतना का अभाव है।
  4. यह जीवित नहीं है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: समाजशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, समाज व्यक्तियों का एक समूह है जो एक साझा संस्कृति, विशेष रूप से एक सामान्य जीवन शैली, और एक सामान्य क्षेत्र साझा करते हैं, और इस तरह के समूह को समाज के बाहरी लोगों से अलग माना जाता है। समाज के लिए एक स्थापित संरचना, भूमिकाएँ, संस्थाएँ और अंतःक्रियाएँ आवश्यक हैं। अमीबा एक एकल-कोशिका जीव है, इसमें कोई जटिल संरचना, भूमिकाएँ, या सामाजिक अंतःक्रिया नहीं होती है, इसलिए यह समाज का उदाहरण नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: समाज की अवधारणा के लिए जटिल अंतःक्रियाएँ, प्रतीकात्मक संचार और साझा संस्कृति महत्वपूर्ण हैं। एक अमीबा जैविक रूप से मौजूद है, लेकिन इसमें समाजशास्त्रीय अर्थों में कोई ‘समाज’ नहीं है।
  • गलत विकल्प: अमीबा में चेतना (c) का प्रश्न विवादास्पद हो सकता है, लेकिन समाज के संदर्भ में यह अप्रासंगिक है। यह जीवित (d) है। हालांकि इसमें संस्कृति (a) का अभाव है, यह समाज न होने का प्राथमिक कारण नहीं है; बल्कि, समाज के लिए आवश्यक संरचनात्मक और संगठनात्मक तत्वों की कमी इसे समाज से अलग करती है।

प्रश्न 4: सी. राइट मिल्स (C. Wright Mills) ने किस शब्द का प्रयोग उस मानसिक क्षमता के लिए किया है जो व्यक्तिगत अनुभवों को बड़े सामाजिक, ऐतिहासिक और संरचनात्मक ताकतों से जोड़ने की अनुमति देती है?

  1. सामाजिक दूरदर्शिता (Social Foresight)
  2. मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि (Psychological Insight)
  3. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
  4. सामजिक कल्पनाशक्ति (Sociological Imagination)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सी. राइट मिल्स ने अपनी पुस्तक ‘द सोशियोलॉजिकल इमेजिनेशन’ (The Sociological Imagination) में ‘सामाजिक कल्पनाशक्ति’ (Sociological Imagination) की अवधारणा पेश की। यह वह क्षमता है जो व्यक्ति को अपने निजी जीवन (व्यक्तिगत परेशानियाँ – personal troubles) को व्यापक सामाजिक मुद्दों (सार्वजनिक मुद्दे – public issues) से जोड़ने में सक्षम बनाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: मिल्स ने इस क्षमता को सामाजिक मुद्दों को समझने और व्यक्तिगत जीवन में उनके प्रभाव को पहचानने के लिए महत्वपूर्ण माना। यह समाजशास्त्र का केंद्रीय उद्देश्य है – व्यक्तिगत अनुभवों को सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ में देखना।
  • गलत विकल्प: सामाजिक दूरदर्शिता (a) एक सामान्य शब्द है। मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि (b) व्यक्तिगत मनोविज्ञान पर केंद्रित है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (c) जॉर्ज हर्बर्ट मीड और हरबर्ट ब्लूमर द्वारा विकसित एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण है, न कि मिल्स द्वारा गढ़ी गई क्षमता।

प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘व्यवस्थागत दृष्टिकोण’ (Systems Approach) के संबंध में सही नहीं है?

  1. यह समाज को विभिन्न अंतःसंबंधित भागों के एक जटिल जाल के रूप में देखता है।
  2. यह स्थिरता और संतुलन बनाए रखने पर जोर देता है।
  3. यह सामाजिक परिवर्तन को व्यवधान के बजाय विकास का एक सामान्य रूप मानता है।
  4. यह अक्सर संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural-Functionalism) से जुड़ा होता है।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: व्यवस्थागत दृष्टिकोण (विशेष रूप से संरचनात्मक-प्रकार्यवाद के रूप में) समाज को परस्पर जुड़े भागों के एक समूह के रूप में देखता है जो संतुलन और स्थिरता बनाए रखते हैं। जबकि यह सामाजिक परिवर्तन को स्वीकार करता है, यह अक्सर इसे ऐसे व्यवधान के रूप में देखता है जिसे प्रणाली को अवशोषित करना होता है ताकि अपनी स्थिरता बनाए रखी जा सके। कथन (c) में कहा गया है कि परिवर्तन को ‘विकास का सामान्य रूप’ माना जाता है, जो हमेशा व्यवस्थागत दृष्टिकोण का केंद्रीय जोर नहीं होता; बल्कि, अक्सर यह संतुलन बनाए रखने के लिए परिवर्तनों को कैसे समायोजित किया जाता है, इस पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह दृष्टिकोण टालकॉट पार्सन्स जैसे समाजशास्त्रियों से जुड़ा है, जिन्होंने समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा जिसके अपने सबसिस्टम (जैसे अर्थव्यवस्था, परिवार, राजनीति) थे जो एक-दूसरे पर निर्भर थे और समग्र प्रणाली की स्थिरता में योगदान करते थे।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) सभी व्यवस्थागत दृष्टिकोण के सही पहलू हैं। समाज को परस्पर जुड़े भागों (a) के रूप में देखना, स्थिरता और संतुलन पर जोर (b), और संरचनात्मक-प्रकार्यवाद से संबंध (d) इसके प्रमुख लक्षण हैं।

प्रश्न 6: मर्टन के ‘अनुकूलित व्यवहार’ (Modes of Adaptation) के अनुसार, ‘नवप्रवर्तनक’ (Innovator) की विशेषता क्या है?

  1. वह सांस्कृतिक लक्ष्यों और संस्थागत साधनों दोनों को अस्वीकार करता है।
  2. वह सांस्कृतिक लक्ष्यों को स्वीकार करता है लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए अस्वीकृत साधनों का उपयोग करता है।
  3. वह सांस्कृतिक लक्ष्यों और संस्थागत साधनों दोनों को स्वीकार करता है।
  4. वह सांस्कृतिक लक्ष्यों को अस्वीकार करता है लेकिन संस्थागत साधनों को स्वीकार करता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: रॉबर्ट के. मर्टन ने अपनी ‘अनॉमिया’ (Anomie) की भिन्न भिन्नता सिद्धांत में पांच प्रकार के अनुकूलन बताए। ‘नवप्रवर्तनक’ (Innovator) वह व्यक्ति होता है जो समाज द्वारा निर्धारित सांस्कृतिक लक्ष्यों (जैसे धन, सफलता) को स्वीकार करता है, लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए स्वीकृत सामाजिक या संस्थागत साधनों (जैसे कड़ी मेहनत, शिक्षा) के बजाय अनैतिक या अवैध साधनों (जैसे धोखाधड़ी, अपराध) का उपयोग करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मर्टन का सिद्धांत बताता है कि जब समाज में सांस्कृतिक लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने के साधनों के बीच एक असंतुलन होता है, तो अनॉमिया (या सामाजिक विचलन) उत्पन्न हो सकता है। नवप्रवर्तनक इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जैसे कि एक डीलर जो अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए जुआ या तस्करी का सहारा लेता है।
  • गलत विकल्प: (a) ‘विद्रोही’ (Rebel) की विशेषता है। (c) ‘अनुपालक’ (Conformist) की विशेषता है। (d) यह किसी भी मानक अनुकूलन से मेल नहीं खाता।

प्रश्न 7: जी. एच. मीड (G.H. Mead) के अनुसार, ‘स्व’ (Self) का विकास मुख्य रूप से किससे होता है?

  1. जैविक अंतःप्रवृत्तियों से
  2. सामाजिक अंतःक्रिया और भूमिका ग्रहण (Role-taking) से
  3. आनुवंशिक संरचना से
  4. अचेतन मानसिक प्रक्रियाओं से

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के प्रमुख व्यक्ति, का तर्क था कि ‘स्व’ (Self) का विकास एक सामाजिक प्रक्रिया है। यह तब होता है जब व्यक्ति दूसरों के साथ बातचीत करता है और उनकी भूमिकाएँ ग्रहण करना सीखता है। बच्चा दूसरों के दृष्टिकोण को अपने अंदर समाहित करके ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) का विकास करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी’ (Mind, Self and Society) में इस विचार को विस्तृत किया। ‘मी’ (Me) समाज के संगठित दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे व्यक्ति अपने भीतर ले जाता है, जबकि ‘आई’ (I) व्यक्ति की तत्काल, अप्रत्याशित प्रतिक्रिया है।
  • गलत विकल्प: जैविक अंतःप्रवृत्तियाँ (a) और आनुवंशिक संरचना (c) का संबंध विकास के लिए स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन मीड के अनुसार ‘स्व’ के विकास के लिए सामाजिक अंतःक्रिया प्राथमिक है। अचेतन मानसिक प्रक्रियाएं (d) सिगमंड फ्रायड के मनोविश्लेषण से संबंधित हैं, न कि मीड के समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से।

प्रश्न 8: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य ध्यान किस पर होता है?

  1. बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाओं और संस्थाओं का विश्लेषण
  2. सूक्ष्म स्तर पर व्यक्तियों के बीच अंतःक्रियाओं और अर्थों का निर्माण
  3. सामाजिक परिवर्तन और क्रांति के कारण
  4. आर्थिक प्रणालियों और उत्पादन के साधनों का अध्ययन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद एक सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है जो इस बात पर केंद्रित है कि व्यक्ति सामाजिक वास्तविकता का निर्माण और पुनरुत्पादन कैसे करते हैं। यह इस बात पर जोर देता है कि लोग प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) का उपयोग करके एक-दूसरे के साथ कैसे बातचीत करते हैं और उन अंतःक्रियाओं के माध्यम से अर्थ कैसे उत्पन्न करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह दृष्टिकोण हर्बर्ट ब्लूमर द्वारा विकसित किया गया था, जिन्होंने मीड के विचारों को व्यवस्थित किया। यह रोजमर्रा की जिंदगी, आत्म-अवधारणा, और सामाजिक भूमिकाओं की समझ पर जोर देता है।
  • गलत विकल्प: (a) बड़े पैमाने पर संरचनाओं का विश्लेषण मुख्य रूप से प्रकार्यवाद (Functionalism) या द्वंद्ववाद (Conflict Theory) से जुड़ा है। (c) सामाजिक परिवर्तन और क्रांति द्वंद्ववादी दृष्टिकोण का मुख्य विषय है। (d) आर्थिक प्रणालियाँ मार्क्सवादी या अन्य आर्थिक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणों का केंद्रीय बिंदु हैं।

प्रश्न 9: भारतीय समाज के संदर्भ में, ‘दर्शन’ (Dharm) शब्द का क्या अर्थ है?

  1. केवल धार्मिक अनुष्ठान और पूजा।
  2. एक व्यक्ति का कर्तव्य, जीवन शैली और नैतिक व्यवस्था।
  3. ज्ञान और मुक्ति का मार्ग।
  4. सामाजिक नियमों और कानूनों का समूह।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: भारतीय दर्शन और संस्कृति में ‘धर्म’ एक बहुआयामी शब्द है। इसका तात्पर्य केवल धर्म से नहीं है, बल्कि इसमें व्यक्ति के कर्तव्य, उसकी जीवन शैली, उसकी सामाजिक जिम्मेदारियाँ, नैतिक आचरण और ब्रह्मांडीय व्यवस्था के प्रति उसका स्थान भी शामिल है। यह एक व्यापक जीवन जीने की कला है।
  • संदर्भ और विस्तार: ‘धर्म’ को अक्सर ‘अर्थ’ (purpose) और ‘कर्तव्य’ (duty) के रूप में भी समझा जाता है, जो व्यक्ति के जन्म, वर्ग (वर्ण) और जीवन के चरण (आश्रम) के अनुसार निर्धारित होते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) केवल धार्मिक अनुष्ठान अर्थ का एक संकीर्ण हिस्सा है। (c) ज्ञान और मुक्ति (मोक्ष) धर्म के परिणाम हो सकते हैं, लेकिन यह उसका संपूर्ण अर्थ नहीं है। (d) सामाजिक नियम और कानून (विधि) धर्म का एक हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन धर्म स्वयं उनसे कहीं अधिक व्यापक है।

प्रश्न 10: एम.एन. श्रीनिवास (M.N. Srinivas) द्वारा प्रस्तुत ‘संसृति-ग्रहण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया का क्या अर्थ है?

  1. पश्चिमी संस्कृति और जीवन शैली को अपनाना।
  2. स्थानीय जनजातीय प्रथाओं को अपनाना।
  3. निम्न जाति या समूह द्वारा उच्च (अक्सर ब्राह्मण) जाति की प्रथाओं, रीति-रिवाजों और विश्वासों को अपनाना।
  4. आधुनिक शिक्षा और प्रौद्योगिकी को अपनाना।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संसृति-ग्रहण’ (Sanskritization) की अवधारणा दी, जो भारतीय जाति व्यवस्था में सामाजिक गतिशीलता का एक प्रमुख रूप है। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक निचली या मध्यम जाति अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए किसी उच्च जाति (विशेष रूप से ब्राह्मणों) के अनुष्ठानों, रीति-रिवाजों, जीवन शैली और मान्यताओं को अपनाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘रिलिजन एंड सोसाइटी अमंग द कूर्ग्स ऑफ साउथ इंडिया’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में प्रस्तुत की गई थी। यह एक सांस्कृतिक परिवर्तन है जिसका उद्देश्य जाति पदानुक्रम में ऊपर चढ़ना है।
  • गलत विकल्प: (a) पश्चिमी संस्कृति को अपनाना ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) कहलाता है। (b) स्थानीय जनजातीय प्रथाओं को अपनाना संसृति-ग्रहण का विपरीत हो सकता है। (d) आधुनिक शिक्षा और प्रौद्योगिकी को अपनाना ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) का हिस्सा है।

प्रश्न 11: ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) के उन्मूलन के लिए भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है?

  1. अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार)
  2. अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध)
  3. अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत)
  4. अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 विशेष रूप से ‘अस्पृश्यता’ को समाप्त करता है और इसके किसी भी रूप में अभ्यास को प्रतिबंधित करता है। इस अनुच्छेद को अस्पृश्यता के उन्मूलन और दलितों (Harijans) के सामाजिक बहिष्कार को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी आधार माना जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 17 के प्रवर्तन के लिए अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 (बाद में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989) जैसे कानून बनाए गए हैं।
  • गलत विकल्प: अनुच्छेद 14, 15, और 21 सभी मौलिक अधिकार हैं जो समानता और गैर-भेदभाव को बढ़ावा देते हैं, लेकिन केवल अनुच्छेद 17 सीधे तौर पर अस्पृश्यता को समाप्त करता है।

प्रश्न 12: भारतीय गाँव की संरचना में ‘जजमानी व्यवस्था’ (Jajmani System) का क्या अर्थ है?

  1. भूमि का वितरण और भू-राजस्व संग्रह की व्यवस्था।
  2. पारंपरिक रूप से निर्धारित सेवाओं के बदले में वस्तु या सेवा का आदान-प्रदान करने वाले विभिन्न जातियों के परिवारों के बीच संबंध।
  3. ग्राम पंचायत द्वारा विवादों का समाधान।
  4. सभी जातियों के लिए समान मतदान अधिकार।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: जजमानी व्यवस्था भारतीय ग्रामीण समाज की एक पारंपरिक प्रणाली थी जहाँ विभिन्न जातियों के बीच सेवाओं का आदान-प्रदान एक-दूसरे के प्रति अनुष्ठानिक और व्यावसायिक दायित्वों के आधार पर होता था। एक जाति (जैसे कुम्हार, लोहार, नाई) दूसरी जाति (जैसे कृषक) को सेवाएँ प्रदान करती थी, और बदले में उन्हें उपज या अन्य वस्तुएँ मिलती थीं। यह एक प्रकार का सेवाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान था।
  • संदर्भ और विस्तार: इस व्यवस्था में जातिगत पदानुक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। यह एक सदियों पुरानी व्यवस्था थी जो भारतीय गांवों में सामाजिक और आर्थिक संरचना को बनाए रखती थी।
  • गलत विकल्प: (a) भूमि वितरण और भू-राजस्व संग्रह एक अलग व्यवस्था है। (c) ग्राम पंचायत विवाद समाधान करती है, लेकिन यह जजमानी व्यवस्था का हिस्सा नहीं है। (d) मतदान अधिकार आधुनिक संस्था है और जजमानी व्यवस्था से असंबंधित है।

प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘वर्ग’ (Class) की अवधारणा को मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति (धन, संपत्ति) के आधार पर परिभाषित करता है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. मैक्स वेबर
  3. कार्ल मार्क्स
  4. एच. स्पेन्सर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: कार्ल मार्क्स ने ‘वर्ग’ को उत्पादन के साधनों के स्वामित्व या नियंत्रण के आधार पर परिभाषित किया। उनके अनुसार, समाज मुख्य रूप से दो विरोधी वर्गों में बँटा हुआ है: बुर्जुआ (पूंजीपति वर्ग, जो उत्पादन के साधनों का मालिक है) और सर्वहारा (श्रमिक वर्ग, जो अपनी श्रम शक्ति बेचता है)।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के लिए, वर्ग एक आर्थिक श्रेणी से बढ़कर एक ऐतिहासिक शक्ति भी है जो सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करती है। वर्ग चेतना (Class Consciousness) और वर्ग संघर्ष (Class Struggle) उनके विश्लेषण के केंद्रीय तत्व हैं।
  • गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम (a) ने सामाजिक एकजुटता और श्रम विभाजन पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। मैक्स वेबर (b) ने वर्ग को आर्थिक स्थिति के अलावा ‘स्थिति’ (Status) और ‘शक्ति’ (Power) जैसे आयामों में भी विभाजित किया। एच. स्पेन्सर (d) सामाजिक विकास और विकासवाद (Evolutionism) से जुड़े थे।

प्रश्न 14: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का क्या अर्थ है?

  1. व्यक्तियों का उनके व्यक्तिगत गुणों के आधार पर समूहों में विभाजन।
  2. समाज का एक पदानुक्रमित व्यवस्था में विभाजन, जहाँ विभिन्न समूहों के पास अलग-अलग मात्रा में संसाधन, शक्ति और प्रतिष्ठा होती है।
  3. विभिन्न समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
  4. सामाजिक मानदंडों के प्रति व्यक्ति का अनुकूलन।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक स्तरीकरण समाज के सदस्यों का उनकी सामाजिक स्थिति, धन, शक्ति और प्रतिष्ठा के आधार पर एक पदानुक्रमित (hierarchical) तरीके से व्यवस्थित विभाजन है। यह दर्शाता है कि समाज में अवसर और विशेषाधिकार असमान रूप से वितरित किए जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण व्यवस्थाओं में जाति, वर्ग, लिंग, आयु आदि शामिल हो सकते हैं। यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है, लेकिन इसके रूप और कारण विभिन्न समाजों में भिन्न होते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) यह व्यक्तिगत गुणों के बजाय सामाजिक श्रेणियों पर आधारित है। (c) यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान है, न कि पदानुक्रमित विभाजन। (d) यह सामाजिक अनुपालन है, न कि स्तरीकरण।

प्रश्न 15: निम्नलिखित में से कौन सा ‘सामाजिक संस्था’ (Social Institution) का उदाहरण नहीं है?

  1. परिवार
  2. शिक्षा
  3. धर्म
  4. पड़ोस

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक संस्थाएँ समाज के स्थायित्व और कामकाज के लिए आवश्यक मूलभूत सामाजिक व्यवस्थाएँ या पैटर्न हैं। वे आमतौर पर नियम, मान, भूमिकाएँ और एक विशेष उद्देश्य से जुड़ी होती हैं। परिवार, शिक्षा और धर्म प्रमुख सामाजिक संस्थाएँ हैं। पड़ोस (Neighbourhood) एक भौगोलिक और सामाजिक क्षेत्र हो सकता है, लेकिन इसमें आमतौर पर संस्थाओं जैसी औपचारिक संरचना, नियम और उद्देश्य शामिल नहीं होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: संस्थाएँ समाज के लिए महत्वपूर्ण कार्य करती हैं, जैसे सामाजिकरण, सामाजिक नियंत्रण, उत्पादन, वितरण आदि।
  • गलत विकल्प: परिवार (a), शिक्षा (b), और धर्म (c) सभी प्रमुख सामाजिक संस्थाएँ हैं जो समाज में विशिष्ट भूमिकाएँ निभाती हैं। पड़ोस (d) एक सामाजिक समूह या क्षेत्र हो सकता है, लेकिन एक औपचारिक संस्था नहीं।

प्रश्न 16: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) को सबसे अच्छी तरह से कैसे परिभाषित किया जा सकता है?

  1. समाज के सदस्यों के व्यक्तिगत दृष्टिकोण में बदलाव।
  2. समाज की संरचना, कार्यप्रणाली या संस्कृति में महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन।
  3. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सांस्कृतिक ज्ञान का हस्तांतरण।
  4. सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए सरकारी नीतियाँ।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक परिवर्तन से तात्पर्य समाज की संरचना, उसके विभिन्न भागों के बीच संबंध, या उसके प्रमुख सांस्कृतिक पहलुओं (जैसे मूल्य, मानदंड, विश्वास, प्रथाएँ) में समय के साथ होने वाले किसी भी महत्वपूर्ण और अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन से है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह एक व्यापक शब्द है जिसमें प्रौद्योगिकीय परिवर्तन, आर्थिक परिवर्तन, राजनीतिक परिवर्तन, सांस्कृतिक परिवर्तन आदि शामिल हो सकते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत दृष्टिकोण में बदलाव सामाजिक परिवर्तन का कारण या परिणाम हो सकता है, लेकिन स्वयं परिवर्तन नहीं। (c) ज्ञान का हस्तांतरण समाजीकरण है। (d) सरकारी नीतियाँ सामाजिक परिवर्तन का एक साधन हो सकती हैं, लेकिन वे स्वयं परिवर्तन की परिभाषा नहीं हैं।

प्रश्न 17: ‘आत्मसातकरण’ (Assimilation) की प्रक्रिया में क्या होता है?

  1. विभिन्न सांस्कृतिक समूहों का एक-दूसरे के साथ मिश्रण, जिसमें सभी अपने अद्वितीय तत्वों को बनाए रखते हैं।
  2. एक अल्पसंख्यक समूह का बहुसंख्यक समूह की संस्कृति, भाषा और मूल्यों को अपनाना, जिससे उसकी अपनी विशिष्ट पहचान धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।
  3. विभिन्न सांस्कृतिक समूहों का एक साथ रहना, लेकिन एक-दूसरे से अलग रहना।
  4. एक प्रमुख संस्कृति का कमजोर संस्कृतियों पर प्रभुत्व।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: आत्मसातकरण वह प्रक्रिया है जहाँ एक व्यक्ति या समूह, विशेष रूप से एक अल्पसंख्यक, धीरे-धीरे बहुसंख्यक समाज की संस्कृति, भाषा, व्यवहार और मूल्यों को अपना लेता है, और अंततः अपनी मूल सांस्कृतिक पहचान को खो देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर प्रवासन (migration) के संदर्भ में देखा जाता है। यह एकरुपता (homogenization) की ओर ले जाता है।
  • गलत विकल्प: (a) सांस्कृतिक मिश्रण जिसमें तत्व बने रहते हैं, ‘बहुसंस्कृतिवाद’ (Multiculturalism) या ‘सांस्कृतिक संलयन’ (Cultural Fusion) है। (c) एक-दूसरे से अलग रहना ‘पृथक्करण’ (Segregation) या ‘सांस्कृतिक अलगाव’ (Cultural Isolation) है। (d) प्रमुख संस्कृति का प्रभुत्व ‘अधिनायकवाद’ (Dominance) हो सकता है, लेकिन आत्मसातकरण एक प्रक्रिया है जो इसे ला सकती है।

प्रश्न 18: ‘सामुदायिक अवलोकन’ (Participant Observation) किस प्रकार की अनुसंधान पद्धति का एक रूप है?

  1. मात्रात्मक (Quantitative)
  2. गुणात्मक (Qualitative)
  3. मिश्रित-विधि (Mixed-methods)
  4. द्वितीयक डेटा विश्लेषण (Secondary Data Analysis)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामुदायिक अवलोकन या सहभागी अवलोकन एक गुणात्मक अनुसंधान तकनीक है जिसमें शोधकर्ता एक समूह के भीतर सक्रिय रूप से भाग लेता है और उनकी संस्कृति, व्यवहार और सामाजिक संरचना का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने के लिए उनकी दैनिक गतिविधियों का अवलोकन करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह गहन, विस्तृत और संदर्भ-विशिष्ट जानकारी प्राप्त करने के लिए उपयोगी है। एंथ्रोपोलॉजी और समाजशास्त्र में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
  • गलत विकल्प: मात्रात्मक विधियाँ (a) संख्यात्मक डेटा और सांख्यिकीय विश्लेषण पर निर्भर करती हैं, जैसे सर्वेक्षण। मिश्रित-विधि (c) दोनों दृष्टिकोणों को जोड़ती है। द्वितीयक डेटा विश्लेषण (d) मौजूदा डेटा का उपयोग करता है।

प्रश्न 19: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की अवधारणा से कौन सा समाजशास्त्रीय विचार सबसे कम जुड़ा है?

  1. औद्योगीकरण
  2. धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)
  3. लोकतांत्रिकरण
  4. पारंपरिक समाजों का पश्चिमीकरण

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: आधुनिकीकरण पारंपरिक समाजों को औद्योगिक, शहरी और तर्कसंगत समाजों में बदलने की एक जटिल प्रक्रिया है। औद्योगीकरण (a), धर्मनिरपेक्षीकरण (b), और लोकतांत्रिकरण (c) अक्सर इस प्रक्रिया के प्रमुख पहलू माने जाते हैं। हालाँकि, ‘पारंपरिक समाजों का पश्चिमीकरण’ (d) आधुनिकीकरण का एक परिणाम या एक दृष्टिकोण हो सकता है, लेकिन यह स्वयं आधुनिकीकरण की अवधारणा का केंद्रीय और तटस्थ वर्णन नहीं है; यह एक व्याख्यात्मक या आलोचनात्मक दृष्टिकोण हो सकता है। आधुनिकीकरण में केवल पश्चिमीकरण से अधिक शामिल है।
  • संदर्भ और विस्तार: आधुनिकीकरण सिद्धांतकारों जैसे डैनियल लर्नर और साइमन कुज़्नेट ने इस प्रक्रिया का अध्ययन किया।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सभी आधुनिकीकरण के मुख्य घटकों के रूप में माने जाते हैं।

प्रश्न 20: ‘पारिवारिक संरचना’ (Family Structure) के संदर्भ में, ‘संयुक्त परिवार’ (Joint Family) की मुख्य विशेषता क्या है?

  1. एक पति, एक पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे।
  2. एक से अधिक पीढ़ियों के सदस्यों का एक साथ रहना और एक सामान्य रसोई साझा करना।
  3. एक पुरुष का एक से अधिक महिलाओं से विवाह।
  4. एक महिला का एक से अधिक पुरुषों से विवाह।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: संयुक्त परिवार वह परिवार है जिसमें माता-पिता, उनके विवाहित पुत्र और उनकी पत्नियाँ, और उनके पोते-पोतियाँ एक साथ रहते हैं। वे अक्सर एक सामान्य संपत्ति साझा करते हैं, एक सामान्य रसोई से भोजन करते हैं, और एक मुखिया (जैसे पिता या दादा) के अधीन होते हैं। यह भारत और अन्य समाजों में एक महत्वपूर्ण संस्था है।
  • संदर्भ और विस्तार: संयुक्त परिवार सामाजिकरण, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक निरंतरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह ‘नाभिकीय परिवार’ (Nuclear Family) है। (c) यह ‘बहुविवाह’ (Polygamy) का एक रूप है जिसे ‘बहुपतित्व’ (Polygyny) कहते हैं। (d) यह ‘बहुपतित्व’ (Polyandry) कहलाता है।

प्रश्न 21: ‘सामुदायिकता’ (Gemeinschaft) और ‘साहचर्य’ (Gesellschaft) की अवधारणाएँ किस समाजशास्त्री से जुड़ी हैं?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. फर्डिनेंड टोनीज

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: फर्डिनेंड टोनीज (Ferdinand Tönnies) ने अपनी पुस्तक ‘सामुदायिकता और साहचर्य’ (Gemeinschaft und Gesellschaft, 1887) में इन दो प्रकार के समाजों का वर्णन किया। ‘सामुदायिकता’ (Gemeinschaft) उन समाजों को संदर्भित करता है जहाँ संबंध घनिष्ठ, व्यक्तिगत और भावनात्मक होते हैं, जैसे कि पारंपरिक गाँव या परिवार। ‘साहचर्य’ (Gesellschaft) उन समाजों को संदर्भित करता है जहाँ संबंध अधिक अवैयक्तिक, औपचारिक और लेन-देन पर आधारित होते हैं, जैसे कि आधुनिक शहर और राष्ट्र-राज्य।
  • संदर्भ और विस्तार: यह विभाजन समाजशास्त्र में समाज के विकास और सामाजिक संबंधों में परिवर्तन को समझने के लिए एक मौलिक उपकरण है।
  • गलत विकल्प: मार्क्स (a) वर्ग और क्रांति पर केंद्रित थे। वेबर (b) शक्ति, नौकरशाही और तर्कसंगतता पर काम करते थे। दुर्खीम (c) सामाजिक एकजुटता और श्रम विभाजन पर ध्यान केंद्रित करते थे।

प्रश्न 22: ‘पोट्लैच’ (Potlatch) क्या है, जिसे अक्सर समाजशास्त्र में विनिमय के रूप में अध्ययन किया जाता है?

  1. एक प्रकार का कृषि उत्सव।
  2. प्रशांत उत्तर-पश्चिम तट के स्वदेशी लोगों द्वारा उपहारों का एक अनुष्ठानिक वितरण या विनाश, जो सामाजिक स्थिति को प्रदर्शित करता है।
  3. एक धार्मिक उपदेश।
  4. एक राजनीतिक बैठक।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: पोट्लैच प्रशांत उत्तर-पश्चिम तट की कुछ स्वदेशी संस्कृतियों (जैसे कुवाकियुल्थ, हैदा) की एक प्रथा थी, जिसमें मेजबान एक भव्य दावत का आयोजन करता था जहाँ वह अपने मेहमानों को बड़े पैमाने पर उपहार देता था या अपनी संपत्ति का विनाश करता था। यह प्रतिष्ठा, शक्ति और सामाजिक संबंध स्थापित करने का एक तरीका था।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्सेल मौस (Marcel Mauss) ने अपनी कृति ‘द गिफ्ट’ (The Gift) में इस प्रथा का विस्तृत विश्लेषण किया, जिसने विनिमय के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को उजागर किया।
  • गलत विकल्प: यह किसी भी प्रकार का कृषि उत्सव (a), धार्मिक उपदेश (c), या राजनीतिक बैठक (d) नहीं है, बल्कि एक विशिष्ट सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक प्रथा है।

प्रश्न 23: ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) से आपका क्या तात्पर्य है?

  1. समाज के सदस्यों को दंडित करने की प्रक्रिया।
  2. समाज के सदस्यों को सामाजिक मानदंडों, नियमों और मूल्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करने और उन्हें विचलन से रोकने की विधियाँ और प्रक्रियाएँ।
  3. कानून प्रवर्तन एजेंसियों का संगठन।
  4. सामाजिक अन्याय के खिलाफ विरोध।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक नियंत्रण उन सभी विधियों और प्रक्रियाओं को संदर्भित करता है जिनका उपयोग समाज अपने सदस्यों के व्यवहार को विनियमित करने, उन्हें स्वीकृत मानदंडों और मूल्यों के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करने और अनियंत्रित या विचलित व्यवहार को रोकने या सुधारने के लिए करता है। इसमें औपचारिक (जैसे कानून, पुलिस) और अनौपचारिक (जैसे परिवार, मित्र, जनमत) दोनों तंत्र शामिल हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक नियंत्रण सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  • गलत विकल्प: (a) दंड सामाजिक नियंत्रण का केवल एक हिस्सा है। (c) कानून प्रवर्तन एजेंसियों का संगठन सामाजिक नियंत्रण का एक औपचारिक तंत्र है, लेकिन सामाजिक नियंत्रण की पूरी परिभाषा नहीं है। (d) सामाजिक अन्याय के खिलाफ विरोध सामाजिक नियंत्रण के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है, न कि स्वयं नियंत्रण।

प्रश्न 24: ‘समूह’ (Group) को समाजशास्त्रीय रूप से कैसे परिभाषित किया जा सकता है?

  1. एक ही स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों का कोई भी संग्रह।
  2. दो या दो से अधिक व्यक्ति जो एक-दूसरे से बातचीत करते हैं, एक-दूसरे के व्यवहार को प्रभावित करते हैं, और एक सामान्य पहचान साझा करते हैं।
  3. समान रुचि वाले लोगों का संग्रह।
  4. एक ही राजनीतिक दल के सदस्य।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: समाजशास्त्रीय अर्थों में, एक समूह केवल व्यक्तियों का संग्रह नहीं है। इसके लिए आवश्यक है कि सदस्य आपस में बातचीत करें, एक-दूसरे को प्रभावित करें, एक-दूसरे के बारे में जागरूक हों, और अक्सर एक साझा पहचान या उद्देश्य विकसित करें।
  • संदर्भ और विस्तार: समूहों को प्राथमिक (जैसे परिवार) और द्वितीयक (जैसे कार्यस्थल) जैसे विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • गलत विकल्प: (a) केवल एक स्थान पर रहना समूह नहीं बनाता (जैसे भीड़)। (c) समान रुचि रखने वाले लोग एक ‘जनसमूह’ (aggregate) हो सकते हैं, जब तक कि वे बातचीत न करें। (d) एक राजनीतिक दल के सदस्य एक समूह हो सकते हैं, लेकिन यह समूह की सामान्य परिभाषा नहीं है।

प्रश्न 25: ‘वर्ण’ (Varna) व्यवस्था के अनुसार, ‘क्षत्रिय’ (Kshatriya) वर्ग का पारंपरिक कार्य क्या था?

  1. ज्ञान का प्रसार और धार्मिक अनुष्ठान करना।
  2. समाज की रक्षा करना, शासन करना और युद्ध करना।
  3. कृषि, व्यापार और वाणिज्य।
  4. सेवाएँ प्रदान करना, जैसे नाई, धोबी, लोहार।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: प्राचीन भारतीय ग्रंथ ‘वर्ण’ व्यवस्था को चार मुख्य वर्गों में विभाजित करते हैं: ब्राह्मण (शिक्षण, पुरोहिती), क्षत्रिय (शासन, रक्षा, युद्ध), वैश्य (कृषि, व्यापार, वाणिज्य) और शूद्र (सेवाएँ प्रदान करना)। क्षत्रियों को समाज की रक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए योद्धा और शासक के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था धर्मशास्त्र और कर्मकांडों पर आधारित थी और इसने प्राचीन भारतीय समाज में सामाजिक स्तरीकरण को आकार दिया।
  • गलत विकल्प: (a) ब्राह्मणों का कार्य था। (c) वैश्य का कार्य था। (d) शूद्रों का पारंपरिक कार्य था।

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