समाजशास्त्र की पकड़ मजबूत करें: दैनिक परीक्षा
सभी समाजशास्त्र के आकांक्षियों का स्वागत है! आज एक बार फिर हम आपके लिए लाए हैं समाजशास्त्र के ज्ञान को धार देने का सुनहरा अवसर। अपनी अवधारणाओं की स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को परखने के लिए तैयार हो जाइए। यह दैनिक अभ्यास सत्र आपके परीक्षा की तैयारी में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। आइए, शुरू करें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों को हल करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक संरचना’ की अवधारणा को सबसे प्रभावी ढंग से किसने परिभाषित किया, जिसमें उन्होंने समाज को व्यक्तियों के बीच संबंधों के जाल के रूप में देखा?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: हरबर्ट स्पेंसर ने ‘सामाजिक संरचना’ की अवधारणा को विस्तार से समझाया, जहाँ उन्होंने समाज को एक जटिल जैविक प्रणाली के समान माना, जिसके विभिन्न अंग (संस्थाएं) एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। उन्होंने संबंधों के इस जाल पर जोर दिया।
- संदर्भ और विस्तार: स्पेंसर का कार्य ‘समाज का प्रथम सिद्धांत’ (First Principles) और ‘समाजशास्त्र के सिद्धांत’ (The Principles of Sociology) में यह विचार प्रमुख है। वे समाज को एक विकासवादी प्रक्रिया के रूप में देखते थे, जिसमें संरचनाएं सरल से जटिल रूप में विकसित होती हैं।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का ध्यान वर्ग संघर्ष और उत्पादन की शक्तियों पर था। मैक्स वेबर ने ‘क्रिया’ और उसके ‘अर्थ’ को महत्व दिया। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता और ‘सामाजिक तथ्य’ पर बल दिया।
प्रश्न 2: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज में ‘एनोमी’ (Anomie) की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
- जब सामाजिक नियम अत्यंत कठोर हों
- जब सामाजिक नियमों और मूल्यों का अभाव हो या वे कमजोर पड़ जाएं
- जब सामाजिक संस्थाएं अत्यधिक प्रभावी हों
- जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता बहुत अधिक हो
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: दुर्खीम के अनुसार, एनोमी एक ऐसी अवस्था है जब समाज में सामूहिक चेतना (collective consciousness) या सामाजिक नियमों का कोई स्पष्ट बंधन नहीं रह जाता। ऐसे में व्यक्ति का व्यवहार अनियंत्रित हो जाता है क्योंकि उसे मार्गदर्शन देने वाले मानदंड उपलब्ध नहीं होते।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा दुर्खीम की पुस्तक ‘आत्महत्या’ (Suicide) में विशेष रूप से प्रस्तुत की गई है। एनोमी सामाजिक विघटन और व्यक्तिगत हताशा का कारण बन सकती है, खासकर सामाजिक परिवर्तनों के दौर में।
- गलत विकल्प: अत्यंत कठोर नियम ‘विशेषाधिकार’ (authoritarianism) की स्थिति बना सकते हैं, एनोमी की नहीं। मजबूत संस्थाएं सामान्यतः स्थिरता लाती हैं। अत्यधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता, यदि नियमों के अभाव से आती है, तो एनोमी को बढ़ा सकती है, लेकिन यह स्वयं एनोमी की परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 3: ‘मैक्सिमलाइजेशन ऑफ़ यूटिलिटी’ (Maximisation of Utility) का विचार किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत से जुड़ा है?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- सामाजिक विनिमय सिद्धांत (Social Exchange Theory)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: सामाजिक विनिमय सिद्धांत, विशेष रूप से जॉर्ज क्रेसि (George Homans) और पीटर ब्लौ (Peter Blau) जैसे विचारकों से जुड़ा है, जो मानते हैं कि सामाजिक संबंध व्यक्तियों के बीच संसाधनों (जैसे स्नेह, मान्यता, धन) के आदान-प्रदान पर आधारित होते हैं, जहाँ व्यक्ति अपने लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत अर्थशास्त्र से प्रभावित है और मानता है कि व्यक्ति सामाजिक व्यवहार में भी लागत-लाभ विश्लेषण करते हैं।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत लाभ के बजाय शक्ति और असमानता पर केंद्रित है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद अर्थ और प्रतीक पर ध्यान केंद्रित करता है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को एक एकीकृत प्रणाली के रूप में देखता है।
प्रश्न 4: भारतीय समाज में ‘सपिंडता’ (Sapindata) का संबंध मुख्य रूप से किससे है?
- जाति व्यवस्था
- संयुक्त परिवार
- धार्मिक अनुष्ठान
- आर्थिक सहयोग
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: ‘सपिंडता’ शब्द का प्रयोग हिंदू कानून और परंपरा में उन लोगों के समूह के लिए किया जाता है जो एक सामान्य पूर्वज (जैसे पिता, दादा, परदादा) के प्रति एक निश्चित सीमा तक रक्त संबंध रखते हैं। यह मुख्य रूप से संयुक्त परिवार प्रणाली और उत्तराधिकार से संबंधित है।
- संदर्भ और विस्तार: मिताक्षरा और दयाभाग जैसी कानूनी प्रणालियों में ‘सपिंड’ की परिभाषा भिन्न हो सकती है, लेकिन इसका मूल अर्थ निकट रक्त संबंधी ही है। यह विवाह के निषिद्ध दायरे (prohibited degrees of relationship) को भी परिभाषित करता है।
- गलत विकल्प: हालांकि जाति व्यवस्था में भी संबंध महत्वपूर्ण होते हैं, ‘सपिंडता’ का प्रत्यक्ष संबंध संयुक्त परिवार की संरचना और वंशानुक्रम से है। धार्मिक अनुष्ठानों में भी संबंध मायने रखते हैं, पर यह मुख्य परिभाषा नहीं है। आर्थिक सहयोग संयुक्त परिवार का परिणाम हो सकता है, लेकिन ‘सपिंडता’ इसकी मूल परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 5: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रणेताओं में से कौन एक हैं?
- टेल्कोट पार्सन्स
- रॉबर्ट रेडफ़ील्ड
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- विलियम ग्राहम समनर
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का संस्थापक जनक माना जाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाज व्यक्तियों के बीच होने वाली अंतःक्रियाओं से बनता है, जहाँ वे प्रतीकों (जैसे भाषा, हाव-भाव) का उपयोग करके अर्थ का निर्माण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मीड का कार्य, जो अक्सर उनके छात्रों द्वारा प्रकाशित किया गया (जैसे ‘मन, स्वयं और समाज’ – Mind, Self, and Society), आत्म (self) के विकास को सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से समझाता है।
- गलत विकल्प: टेल्कोट पार्सन्स प्रकारवाद से जुड़े हैं। रॉबर्ट रेडफ़ील्ड ने ‘जहाँ’ (folk) और ‘नगर’ (urban) समुदायों का अध्ययन किया। विलियम ग्राहम समनर ने ‘जनरीतियों’ (folkways) और ‘रूढ़ियों’ (mores) का महत्वपूर्ण कार्य किया।
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का रूप नहीं है?
- दास प्रथा (Slavery)
- जाति (Caste)
- वर्ग (Class)
- संपत्ति (Property)
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: सामाजिक स्तरीकरण समाज को विभिन्न स्तरों या परतों में विभाजित करने की एक व्यवस्था है, जिसके आधार पर लोगों को शक्ति, विशेषाधिकार और प्रतिष्ठा का असमान वितरण होता है। दास प्रथा, जाति और वर्ग इसके प्रमुख उदाहरण हैं। संपत्ति (Property) स्वयं स्तरीकरण का एक आधार या परिणाम हो सकती है, लेकिन यह स्तरीकरण का एक ‘रूप’ नहीं है, बल्कि एक ‘आधार’ है।
- संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के अन्य आधारों में आय, शिक्षा, व्यवसाय, शक्ति आदि शामिल हो सकते हैं।
- गलत विकल्प: दास प्रथा, जाति और वर्ग सभी समाज को पदानुक्रमित तरीके से विभाजित करने वाली प्रणालियाँ हैं, जो सामाजिक स्तरीकरण के रूप हैं।
प्रश्न 7: एमिल दुर्खीम ने अपनी किस पुस्तक में सामाजिक एकजुटता (Social Solidarity) के प्रकारों – यांत्रिक (Mechanical) और जैविक (Organic) – का विश्लेषण किया?
- समाज के नियम (The Rules of Sociological Method)
- आत्महत्या (Suicide)
- समाज का विभाजन (The Division of Labour in Society)
- धार्मिक जीवन के प्रारंभिक रूप (The Elementary Forms of Religious Life)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति ‘समाज का विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में दो प्रकार की सामाजिक एकजुटता का वर्णन किया है। यांत्रिक एकजुटता सरल समाजों में पाई जाती है जहाँ लोग समान विश्वासों, मूल्यों और जीवन शैली को साझा करते हैं, जबकि जैविक एकजुटता जटिल समाजों में श्रम के विशेषीकरण के कारण उत्पन्न होती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह पुस्तक दर्शाती है कि कैसे समाज सरल से जटिल होते हुए सामाजिक सामंजस्य बनाए रखता है।
- गलत विकल्प: ‘समाज के नियम’ सामाजिक तथ्यों को अध्ययन की विधि बताता है। ‘आत्महत्या’ एनोमी और आत्महत्या के प्रकारों का विश्लेषण करती है। ‘धार्मिक जीवन के प्रारंभिक रूप’ धर्म के समाजशास्त्रीय विश्लेषण से संबंधित है।
प्रश्न 8: भारतीय समाज में, ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा को किसने प्रस्तुत किया, जो ब्रिटिश शासन के प्रभाव से उत्पन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाता है?
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- डी.एन. मजूमदार
- ए.आर. देसाई
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘पश्चिमीकरण’ की अवधारणा का प्रयोग भारतीय समाज में ब्रिटिश शासन के कारण हुए सांस्कृतिक, संस्थागत और व्यवहारिक परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया। उन्होंने पश्चिमीकरण को ब्रिटिश शासन की संस्थाओं, प्रौद्योगिकी, कला, साहित्य और जीवन शैली को अपनाने के रूप में परिभाषित किया।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘सोशल चेंज इन मॉडर्न इंडिया’ (Social Change in Modern India) में महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: इरावती कर्वे एक प्रसिद्ध मानवविज्ञानी थीं। डी.एन. मजूमदार ने भी भारतीय जनजातियों पर काम किया। ए.आर. देसाई ने भारतीय समाजवाद और राष्ट्रीय आंदोलन पर लिखा।
प्रश्न 9: मैक्स वेबर के अनुसार, ‘बुर्जुआजी’ (Bourgeoisie) और ‘प्रोलिटेरियट’ (Proletariat) के बीच मुख्य अंतर किस पर आधारित है?
- धर्म और विश्वास
- उत्पादन के साधनों का स्वामित्व
- सामाजिक स्थिति और प्रतिष्ठा
- राजनीतिक शक्ति और प्रभाव
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: कार्ल मार्क्स के अनुसार, बुर्जुआजी (पूंजीपति वर्ग) वे हैं जिनके पास उत्पादन के साधनों (कारखाने, भूमि, मशीनें) का स्वामित्व होता है, जबकि प्रोलिटेरियट (श्रमिक वर्ग) वे हैं जिनके पास केवल अपनी श्रम शक्ति होती है और उन्हें अपनी आजीविका के लिए बुर्जुआजी को बेचना पड़ता है। यह स्वामित्व का अंतर उनके वर्ग की पहचान और संघर्ष का मूल कारण है।
- संदर्भ और विस्तार: यह मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (historical materialism) और वर्ग संघर्ष (class struggle) के सिद्धांत का केंद्रीय बिंदु है, जिसे उन्होंने ‘दास कैपिटल’ (Das Kapital) और ‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ (The Communist Manifesto) जैसी रचनाओं में विस्तार से बताया है।
- गलत विकल्प: हालांकि धर्म, स्थिति और राजनीतिक शक्ति भी भिन्न हो सकते हैं, मार्क्स के लिए उत्पादन के साधनों का स्वामित्व ही वह प्राथमिक कारक था जो वर्गों को परिभाषित और विभाजित करता था।
प्रश्न 10: ‘अभिजात वर्ग के सिद्धांत’ (Elite Theory) का प्रमुख प्रतिपादक कौन है, जो यह तर्क देता है कि समाज हमेशा एक छोटे, शक्तिशाली अभिजात वर्ग द्वारा शासित होता है?
- सी. राइट मिल्स
- विलफ्रेडो पारेतो
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: विलफ्रेडो पारेतो एक इतालवी समाजशास्त्री थे जिन्होंने ‘अभिजात वर्ग के परिभ्रमण’ (circulation of elites) का सिद्धांत दिया। उनका मानना था कि इतिहास शासक अभिजात वर्गों (जैसे शेर और लोमड़ी) के बीच परिवर्तन का एक चक्र है, जहाँ एक अभिजात वर्ग दूसरे द्वारा प्रतिस्थापित हो जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: पारेतो ने तर्क दिया कि यह परिभ्रमण समाज को स्थिर रखता है। सी. राइट मिल्स ने अमेरिकी समाज में ‘शक्ति अभिजात वर्ग’ (power elite) की अवधारणा दी, जो एक संबंधित लेकिन भिन्न विचार है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष पर केंद्रित थे, न कि अभिजात वर्ग के सिद्धांत पर। एमिल दुर्खीम सामाजिक एकजुटता और प्रकार्यवाद के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 11: सामाजिक परिवर्तन के ‘संघर्ष सिद्धांत’ (Conflict Theory) के अनुसार, समाज में परिवर्तन का मुख्य चालक क्या है?
- सामाजिक संस्थाओं का सामंजस्य
- विचारों और मूल्यों का प्रसार
- विभिन्न समूहों के बीच शक्ति संघर्ष और असमानता
- तकनीकी प्रगति और नवाचार
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: संघर्ष सिद्धांत, विशेष रूप से मार्क्सवादी परंपरा में, मानता है कि समाज में अंतर्निहित तनाव, असमानताएँ और शक्ति के लिए संघर्ष परिवर्तन का प्राथमिक स्रोत हैं। समाज के विभिन्न समूह (जैसे वर्ग, जाति) अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत समाज को स्थिर संतुलन के बजाय निरंतर संघर्ष और परिवर्तन की स्थिति में देखता है।
- गलत विकल्प: सामंजस्य, विचारों का प्रसार या तकनीकी प्रगति परिवर्तन ला सकते हैं, लेकिन संघर्ष सिद्धांत के अनुसार, ये परिवर्तन अक्सर संघर्ष की प्रक्रिया के माध्यम से ही प्रभावी होते हैं या संघर्ष के परिणाम होते हैं।
प्रश्न 12: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा भारतीय समाज में प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया का संबंध किससे है?
- निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाना
- पश्चिमी संस्कृति के तत्वों को अपनाना
- आधुनिक तकनीकी और वैज्ञानिक विधियों को अपनाना
- शहरी जीवन शैली की नकल करना
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: संस्किृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें भारतीय समाज में निम्न या मध्य जातियों के समूह अपने सामाजिक दर्जे को ऊपर उठाने के प्रयास में, उच्च या द्विजातियों (जैसे ब्राह्मण) के अनुष्ठानों, पूजा विधियों, खान-पान, वेशभूषा और सामाजिक व्यवहारों को अपनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा एम.एन. श्रीनिवास ने अपने ‘कूर्गों के बीच धर्म और समाज’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) नामक पुस्तक में प्रस्तुत की थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
- गलत विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी संस्कृति से संबंधित है। आधुनिकता तकनीकी प्रगति है। शहरी जीवन शैली को अपनाना शहरीकरण का हिस्सा है।
प्रश्न 13: ‘प्रतीक’ (Symbol) समाजशास्त्र में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं, विशेषकर किस परिप्रेक्ष्य में?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- लोक-विधि विज्ञान (Ethnomethodology)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य प्रतीकों के माध्यम से संवाद करते हैं और अपने आसपास की दुनिया के अर्थ का निर्माण करते हैं। भाषा, हाव-भाव, वस्तुएं – सभी प्रतीक हो सकते हैं जो सामाजिक अंतःक्रिया को संभव बनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मीड, ब्लूमर जैसे समाजशास्त्रियों ने इस विचार को विकसित किया कि आत्म (self) और समाज दोनों ही प्रतीकात्मक अंतःक्रियाओं के उत्पाद हैं।
- गलत विकल्प: अन्य परिप्रेक्ष्य भी प्रतीकों को महत्व दे सकते हैं, लेकिन प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद की यह केंद्रीय और परिभाषित विशेषता है। लोक-विधि विज्ञान दैनिक जीवन की अव्यक्त (taken-for-granted) विधियों का अध्ययन करता है।
प्रश्न 14: मैक्स वेबर ने ‘कैरिस्मैटिक अथॉरिटी’ (Charismatic Authority) को एक प्रकार की सत्ता के रूप में परिभाषित किया, जो किस पर आधारित होती है?
- परंपरा
- कानून और नियम
- नेता के असाधारण गुण या दैवीय प्रेरणा
- आर्थिक शक्ति
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: वेबर ने सत्ता (authority) के तीन आदर्श प्रकार बताए: पारंपरिक (traditional), कानूनी-तर्कसंगत (legal-rational) और करिश्माई (charismatic)। करिश्माई सत्ता अनुयायियों के नेता के प्रति असाधारण व्यक्तिगत गुणों, वीरता या उदात्त स्वभाव में विश्वास पर आधारित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: ऐसे नेता अक्सर क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हैं (जैसे यीशु, गांधी)। वेबर का मानना था कि करिश्माई सत्ता अक्सर अस्थिर होती है और धीरे-धीरे पारंपरिक या कानूनी-तर्कसंगत सत्ता में परिवर्तित हो जाती है।
- गलत विकल्प: परंपरा पारंपरिक सत्ता का आधार है। कानून और नियम कानूनी-तर्कसंगत सत्ता का आधार हैं। आर्थिक शक्ति स्तरीकरण का एक कारक हो सकती है, लेकिन करिश्माई सत्ता का प्रत्यक्ष आधार नहीं।
प्रश्न 15: ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) का मुख्य विचार क्या है?
- समाज संघर्ष और परिवर्तन की स्थिति में रहता है।
- समाज एक जटिल प्रणाली है जिसके विभिन्न अंग (संस्थाएं) एक साथ कार्य करके स्थिरता और व्यवस्था बनाए रखते हैं।
- समाज व्यक्तियों के बीच अर्थ निर्माण की प्रक्रिया से बनता है।
- सामाजिक परिवर्तन मुख्य रूप से आर्थिक असमानताओं से प्रेरित होता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को एक एकीकृत प्रणाली के रूप में देखता है, जहाँ प्रत्येक सामाजिक संस्था (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, सरकार) एक विशिष्ट कार्य (function) करती है जो समाज की समग्र स्थिरता और उत्तरजीविता में योगदान करती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम, पार्सन्स और मर्टन इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रस्तावक थे। वे समाज में व्यवस्था, संतुलन और सामाजिक सामंजस्य पर जोर देते हैं।
- गलत विकल्प: विकल्प (a) और (d) संघर्ष सिद्धांत से जुड़े हैं। विकल्प (c) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का विचार है।
प्रश्न 16: भारत में ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) का अध्ययन करते समय, किस समाजशास्त्री ने ‘जाति की शुद्धता और प्रदूषण’ (Purity and Pollution) के विचारों को एक प्रमुख आधार माना?
- एम.एन. श्रीनिवास
- एल.पी. विद्यार्थी
- इरावती कर्वे
- लुई ड्यूमोंट
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: लुई ड्यूमोंट ने अपनी पुस्तक ‘होमो हायरार्किकस’ (Homo Hierarchicus) में भारतीय जाति व्यवस्था की संरचना को ‘शुद्धता और प्रदूषण’ (purity and pollution) के अनुष्ठानिक पदानुक्रम (ritual hierarchy) के आधार पर समझाया। उनके अनुसार, जाति व्यवस्था जन्म, व्यवसाय और पवित्रता-अपवित्रता की अवधारणाओं पर आधारित है।
- संदर्भ और विस्तार: ड्यूमोंट का यह तर्क विवादास्पद रहा है, लेकिन इसने जाति के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण सैद्धांतिक दिशा प्रदान की।
- गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास ने संस्किृतिकरण और प्रभु जाति (dominant caste) की अवधारणा दी। इरावती कर्वे ने संबंध और परिवार पर काम किया। एल.पी. विद्यार्थी ने जनजातियों पर काम किया।
प्रश्न 17: रॉबर्ट किंग मर्टन के अनुसार, सामाजिक संस्थाओं के ऐसे अवांछित, अनपेक्षित और अक्सर हानिकारक परिणाम क्या कहलाते हैं?
- प्रकट प्रकार्य (Manifest Functions)
- गुप्त प्रकार्य (Latent Functions)
- अकार्य (Dysfunctions)
- सामाजिक प्रतिमान (Social Norms)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: रॉबर्ट मर्टन ने प्रकार्यवाद को और परिष्कृत करते हुए ‘प्रकट प्रकार्य’ (जो उद्देश्यपूर्ण और अपेक्षित हों) और ‘गुप्त प्रकार्य’ (जो अनपेक्षित हों) में भेद किया। ‘अकार्य’ (Dysfunctions) ऐसे परिणाम हैं जो किसी सामाजिक व्यवस्था के अनुकूलन या उत्तरजीविता के लिए नकारात्मक या हानिकारक होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने इन अवधारणाओं का उपयोग सामाजिक व्यवस्था और परिवर्तन के विश्लेषण के लिए किया।
- गलत विकल्प: प्रकट प्रकार्य अपेक्षित परिणाम हैं। गुप्त प्रकार्य अनपेक्षित, लेकिन गैर-हानिकारक या उपयोगी हो सकते हैं। सामाजिक प्रतिमान व्यवहार के नियम हैं।
प्रश्न 18: ‘प्रभु जाति’ (Dominant Caste) की अवधारणा, भारतीय ग्रामीण समाज में शक्ति और प्रभाव के संदर्भ में, किस समाजशास्त्री ने प्रस्तुत की?
- जी.एस. घुरिये
- एम.एन. श्रीनिवास
- ए.आर. देसाई
- वाई.बी. दामले
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘प्रभु जाति’ की अवधारणा दी। प्रभु जाति वह जाति होती है जो किसी गांव में संख्या में बड़ी होती है, आर्थिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होती है, और भूमि का स्वामित्व रखती है। ये जातियां गांव की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपना प्रभुत्व स्थापित करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा भारत में सत्ता संरचना को समझने में महत्वपूर्ण है, खासकर ग्रामीण संदर्भ में।
- गलत विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति और जनजातियों पर महत्वपूर्ण कार्य किया। ए.आर. देसाई ने ग्रामीण समाजशास्त्रीय समस्याओं का विश्लेषण किया। वाई.बी. दामले ने भी ग्रामीण समाज पर काम किया।
प्रश्न 19: ‘सोशल फैक्ट्स’ (Social Facts) या ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा, जिसे समाजशास्त्र के अध्ययन की वस्तु माना गया, किस समाजशास्त्री की देन है?
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- अगस्त कॉम्ते
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: एमिल दुर्खीम ने ‘समाज के नियम’ (The Rules of Sociological Method) नामक पुस्तक में ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा को प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य व्यवहार के ऐसे तरीके हैं जो व्यक्ति के बाहर मौजूद होते हैं और उस पर बाध्यकारी शक्ति रखते हैं। इन्हें ‘वस्तुओं’ की तरह अध्ययन किया जाना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा समाजशास्त्र को मनोविज्ञान या दर्शन से अलग एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने का प्रयास थी।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने ‘क्रिया’ और उसके ‘अर्थ’ पर जोर दिया। कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष पर। अगस्त कॉम्ते को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है, लेकिन ‘सामाजिक तथ्य’ दुर्खीम की विशिष्ट अवधारणा है।
प्रश्न 20: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ के अनुसार, ‘आत्म’ (Self) का विकास कैसे होता है?
- जन्मजात जैविक प्रवृत्ति से
- अन्य लोगों की प्रतिक्रियाओं और सामाजिक अंतःक्रिया से
- कठोर सामाजिक नियमों और अपेक्षाओं से
- अचेतन मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सहीता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड के अनुसार, आत्म (self) का विकास सामाजिक होता है। यह दूसरों के प्रति अपनी भूमिकाओं को निभाने और दूसरों की प्रतिक्रियाओं को आंतरिक बनाने के माध्यम से विकसित होता है। जैसे-जैसे बच्चा ‘दूसरों की सामान्यीकृत अवस्था’ (generalized other) को सीखता है, उसका आत्म-बोध दृढ़ होता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘मी’ (Me) और ‘आई’ (I) के बीच अंतर किया, जहाँ ‘मी’ समाज के मानदंडों और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करता है, और ‘आई’ व्यक्ति की तत्काल, प्रतिक्रियाशील प्रतिक्रिया है।
- गलत विकल्प: आत्म जन्मजात जैविक प्रवृत्ति, कठोर नियम या अचेतन प्रक्रियाएं से नहीं, बल्कि सक्रिय सामाजिक अंतःक्रिया से बनता है।
प्रश्न 21: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘वर्ग’ (Class) के सिद्धांत से संबंधित है, जो मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति पर आधारित है?
- जाति
- वंशानुगत उपाधि
- पेशा
- धन और आय
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 22: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जिसमें समाज के कुछ तत्व दूसरों की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलते हैं, किसने प्रस्तुत की?
- विलियम ओगबर्न
- ए.एल. क्रोबर
- रॉबर्ट रेडफील्ड
- ई.बी. टायर
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 23: मैक्स वेबर ने सत्ता (Authority) के तीन आदर्श प्रकार बताए। निम्नलिखित में से कौन सा उनमें से एक नहीं है?
- पारंपरिक सत्ता (Traditional Authority)
- कानूनी-तर्कसंगत सत्ता (Legal-Rational Authority)
- करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority)
- पूंजीवादी सत्ता (Capitalistic Authority)
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 24: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का तात्पर्य समाज में व्यक्तियों या समूहों की एक स्थिति से दूसरी स्थिति में होने वाले परिवर्तन से है। निम्नलिखित में से कौन सा ‘क्षैतिज गतिशीलता’ (Horizontal Mobility) का उदाहरण है?
- एक मजदूर का प्रबंधक बनना
- एक डॉक्टर का सेवानिवृत्त होना
- एक शिक्षक का एक स्कूल से दूसरे स्कूल में उसी पद पर स्थानांतरण
- एक गरीब किसान का अमीर जमींदार बनना
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 25: ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का सिद्धांत यह बताता है कि किसी संस्कृति को उसके अपने मानदंडों और मूल्यों के आधार पर ही समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी संस्कृति के दृष्टिकोण से। यह किस विचार के विपरीत है?
- मानवशास्त्रीय बहुलवाद (Anthropological Pluralism)
- सांस्कृतिक सार्वभौमिकता (Cultural Universalism)
- जातिवाद (Ethnocentrism)
- सामाजिक परिवर्तन (Social Change)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
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