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समाजशास्त्र की धार: दैनिक अभ्यास प्रश्नोत्तरी

समाजशास्त्र की धार: दैनिक अभ्यास प्रश्नोत्तरी

नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! अपनी विश्लेषणात्मक शक्ति और अवधारणाओं की स्पष्टता को परखने के लिए तैयार हो जाइए। आज हम समाजशास्त्र के विस्तृत परिदृश्य से 25 नए और चुनौतीपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्नों के साथ आपके ज्ञान की परीक्षा लेंगे। प्रत्येक प्रश्न आपके अध्ययन को एक नई दिशा देगा और आपकी सफलता की राह को और सुगम बनाएगा। आइए, आज के इस बौद्धिक मुकाबले का प्रारंभ करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: “सामाजिक तथ्य” (Social Fact) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसे उन्होंने समाजशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय माना?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम” (The Rules of Sociological Method) में “सामाजिक तथ्य” की अवधारणा पेश की। उन्होंने इसे “समाज के प्रत्येक प्रकार के व्यवहार करने के तरीके” के रूप में परिभाषित किया, जो व्यक्ति पर बाहरी दबाव डालते हैं और व्यक्ति से स्वतंत्र रूप से मौजूद होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने समाजशास्त्र को मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र से अलग एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने के लिए सामाजिक तथ्यों पर जोर दिया। ये तथ्य समाज के वे सामूहिक अभ्यावेदन, विचार और क्रिया के तरीके हैं जो व्यक्ति के लिए बाहरी होते हैं और उसे बाध्य करते हैं।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया और उसकी व्याख्यात्मक समझ (Verstehen) पर जोर दिया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद और सामाजिक विकास के सिद्धांतों पर काम किया।

प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा एक “सामाजिक संस्था” का उदाहरण नहीं है?

  1. परिवार
  2. राज्य
  3. साक्षरता दर
  4. शिक्षा

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: साक्षरता दर (Literacy Rate) एक सामाजिक संस्था नहीं है, बल्कि यह समाज की एक विशेषता या संकेतक है। सामाजिक संस्थाएँ वे स्थापित और स्थायी प्रणालियाँ हैं जो समाज की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं, जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, अर्थव्यवस्था और राज्य।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक संस्थाएँ समाज के व्यवहार पैटर्न को व्यवस्थित करती हैं और स्थायित्व प्रदान करती हैं। परिवार विवाह, संतानोत्पत्ति और समाजीकरण की भूमिका निभाता है, जबकि शिक्षा ज्ञान और कौशल के हस्तांतरण का कार्य करती है।
  • गलत विकल्प: परिवार, राज्य और शिक्षा समाज की प्रमुख सामाजिक संस्थाएँ हैं क्योंकि वे स्पष्ट रूप से परिभाषित उद्देश्य, नियम और व्यवहार के तरीके रखती हैं और समाज के सदस्यों द्वारा इनका पालन किया जाता है।

प्रश्न 3: “पैराडाइम” (Paradigm) शब्द का प्रयोग समाजशास्त्र में किसने और किस संदर्भ में किया?

  1. कार्ल मार्क्स – आर्थिक व्यवस्था के सिद्धांत
  2. टॉल्कॉट पार्सन्स – सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत
  3. थॉमस कुह्न – वैज्ञानिक क्रांति का सिद्धांत
  4. इरविंग गॉफमैन – नाटकशास्त्र का सिद्धांत

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: थॉमस कुह्न ने अपनी पुस्तक “वैज्ञानिक क्रांतियों की संरचना” (The Structure of Scientific Revolutions) में “पैराडाइम” शब्द का प्रयोग किया। समाजशास्त्र में, यह शब्द किसी विशेष समय में किसी क्षेत्र में प्रचलित सामान्य दृष्टिकोण, सिद्धांत और पद्धतियों के एक सेट को संदर्भित करता है, जो बाद में एक “क्रांति” के माध्यम से बदल सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: कुह्न के अनुसार, एक पैराडाइम वह ढाँचा है जिसके भीतर वैज्ञानिक कार्य करते हैं। समाजशास्त्र में, मुख्य पैराडाइमों में प्रकार्यवाद (Functionalism), संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) और प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) शामिल हैं।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद दिया, टॉल्कॉट पार्सन्स ने संरचनात्मक प्रकार्यवाद विकसित किया, और इरविंग गॉफमैन ने नाट्यशास्त्र (Dramaturgy) का सिद्धांत प्रस्तुत किया। कुह्न एक वैज्ञानिक दार्शनिक थे, समाजशास्त्री नहीं, लेकिन उनके विचार समाजशास्त्र में बहुत प्रभावशाली रहे।

प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) की एक विशेषता **नहीं** है?

  1. यह एक सामाजिक गुण है, व्यक्तिगत गुण नहीं।
  2. यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है, पर इसमें परिवर्तन भी संभव है।
  3. यह सार्वभौमिक है, लेकिन इसके स्वरूप भिन्न होते हैं।
  4. यह व्यक्तिगत प्रतिभा और प्रयास पर आधारित होता है।

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण मुख्य रूप से समाज में व्यक्तियों की स्थिति और संसाधनों के असमान वितरण पर आधारित होता है, न कि केवल व्यक्तिगत प्रतिभा या प्रयास पर। हालांकि प्रतिभा महत्वपूर्ण हो सकती है, स्तरीकरण व्यवस्थाएं अक्सर जन्म, वंशानुक्रम और सामाजिक संरचनाओं द्वारा निर्धारित होती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक स्तरीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें समाज के सदस्यों को उनकी सामाजिक स्थिति के आधार पर विभिन्न स्तरों (जैसे वर्ग, जाति, लिंग) में वर्गीकृत किया जाता है, और यह असमानता पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती है।
  • गलत विकल्प: सामाजिक स्तरीकरण हमेशा सामाजिक होता है, न कि व्यक्तिगत (a)। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है लेकिन इसमें गतिशीलता (Mobility) भी होती है (b)। यह विभिन्न समाजों में अलग-अलग रूपों में सार्वभौमिक है (c)। व्यक्तिगत प्रतिभा एक कारक हो सकती है, लेकिन स्तरीकरण का आधार यह अकेला नहीं है (d)।

प्रश्न 5: “एकीकरण” (Integration) की अवधारणा, विशेष रूप से समाज के नैतिक एकीकरण के संबंध में, किस प्रमुख समाजशास्त्री से जुड़ी है?

  1. मैक्स वेबर
  2. कार्ल मार्क्स
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हर्बर्ट मीड

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने समाज के “एकीकरण” (Integration) और “विनियमन” (Regulation) की अवधारणाओं पर जोर दिया। उन्होंने देखा कि समाज में सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सदस्यों के बीच एकीकरण (सामूहिकता की भावना) और साझा मूल्यों की आवश्यकता होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने विशेष रूप से “आत्महत्या” (Suicide) नामक अपनी पुस्तक में “अहंवादी” (Egoistic) और “पराश्रित” (Altruistic) आत्महत्याओं के बीच अंतर करते हुए एकीकरण के निम्न या उच्च स्तरों के प्रभाव को समझाया। उनके लिए, सामाजिक एकजुटता (Solidarity) और साझा चेतना (Collective Consciousness) एकीकरण के महत्वपूर्ण पहलू थे।
  • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने शक्ति, अधिकार और नौकरशाही पर ध्यान केंद्रित किया। कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और उत्पादन के साधनों पर ध्यान दिया। हर्बर्ट मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के संस्थापक थे।

प्रश्न 6: भारतीय संदर्भ में, “संसक्ति” (Sanskritization) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?

  1. डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
  2. एम. एन. श्रीनिवास
  3. टी. के. उम्मर
  4. योगेन्द्र सिंह

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम. एन. श्रीनिवास, एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, ने “संसक्ति” (Sanskritization) की अवधारणा को अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में प्रस्तुत किया।
  • संदर्भ और विस्तार: संसक्ति उस प्रक्रिया को संदर्भित करती है जिसमें निम्न या मध्य जातियों के सदस्य उच्च (अक्सर ब्राह्मणवादी) जातियों के अनुष्ठानों, परंपराओं, जीवन शैली और विचारधाराओं को अपनाते हैं ताकि जाति पदानुक्रम में अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठा सकें। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है।
  • गलत विकल्प: डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था के उन्मूलन और दलितों के अधिकारों पर महत्वपूर्ण कार्य किया। टी. के. उम्मर और योगेन्द्र सिंह भी भारतीय समाजशास्त्री हैं जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन पर काम किया, लेकिन संसक्ति की अवधारणा मुख्य रूप से श्रीनिवास से जुड़ी है।

प्रश्न 7: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) का मुख्य जोर किस पर है?

  1. सामाजिक संरचनाओं और संस्थानों का विश्लेषण।
  2. व्यक्तिगत और सामूहिक चेतना का विश्लेषण।
  3. व्यक्तियों के बीच अर्थपूर्ण अंतःक्रिया और प्रतीकों के माध्यम से समाज का निर्माण।
  4. समाज में शक्ति और संघर्ष का विश्लेषण।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद जॉर्ज हर्बर्ट मीड, हर्बर्ट ब्लूमर और चार्ल्स कुले जैसे विचारकों से जुड़ा है। यह समाजशास्त्र का एक सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) दृष्टिकोण है जो इस बात पर केंद्रित है कि लोग प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से एक-दूसरे के साथ कैसे बातचीत करते हैं और इस प्रक्रिया में सामाजिक वास्तविकता का निर्माण कैसे करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इस दृष्टिकोण के अनुसार, समाज व्यक्तियों द्वारा अपनी अंतःक्रियाओं में बनाए गए अर्थों का एक उत्पाद है। व्यक्ति अपनी भूमिकाओं को सीखने के लिए प्रतीकों का उपयोग करते हैं और अपने आत्म (self) का विकास करते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) सामाजिक संरचनाओं पर प्रकार्यवाद और (d) शक्ति और संघर्ष पर मार्क्सवाद या संघर्ष सिद्धांत का जोर होता है। (b) सामूहिक चेतना दुर्खीम का एक प्रमुख विचार था।

प्रश्न 8: “एलिनेशन” (Alienation) या अलगाव की अवधारणा, विशेष रूप से पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था के संदर्भ में, किस विचारक से जुड़ी है?

  1. मैक्स वेबर
  2. कार्ल मार्क्स
  3. एमिल दुर्खीम
  4. इमाइल दुBois
  5. उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: कार्ल मार्क्स ने “अलगाव” (Alienation) की अवधारणा को विशेष रूप से पूंजीवादी समाज में श्रमिक के अनुभव के रूप में विस्तृत रूप से समझाया। उन्होंने उत्पादन की प्रक्रिया, उत्पाद, अपने सहकर्मियों और अंततः स्वयं से अलगाव का वर्णन किया।
    • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, पूंजीवाद के तहत, श्रमिक अपने श्रम से, उत्पादन के साधनों से, और अपने श्रम के फल से अलग हो जाता है क्योंकि उत्पादन का उद्देश्य लाभ कमाना होता है, न कि श्रमिक की रचनात्मक अभिव्यक्ति। यह अलगाव उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व का परिणाम है।
    • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता के संदर्भ में अलगाव पर बात की, लेकिन मार्क्स की तरह गहनता से नहीं। दुर्खीम ने “एनोमी” (Anomie) या बेनियमता की बात की, जो अलगाव से भिन्न है।

    प्रश्न 9: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) का सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया?

    1. एल्बर्ट समनर
    2. विलियम ग्राहम समनर
    3. विलियम ओगबर्न
    4. रॉबर्ट पार्क

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

  6. सटीकता: विलियम ओगबर्न ने 1922 में “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा प्रस्तुत की।
  7. संदर्भ और विस्तार: ओगबर्न के अनुसार, समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, उपकरण) और अभौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, मानदंड, संस्थाएँ) के बीच एक अंतर हो सकता है। जब भौतिक संस्कृति तेजी से बदलती है, लेकिन अभौतिक संस्कृति उस गति से नहीं बदल पाती, तो एक “सांस्कृतिक विलंब” उत्पन्न होता है, जिससे सामाजिक समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
  8. गलत विकल्प: एल्बर्ट समनर ने “लोकप्रिय रीति” (Folkways) और “रूढ़ियों” (Mores) का अंतर समझाया। विलियम ग्राहम समनर अमेरिकी समाजशास्त्री थे। रॉबर्ट पार्क शिकागो स्कूल से संबंधित थे और शहरी समाजशास्त्र के अग्रदूतों में से एक थे।

  9. प्रश्न 10: “एनोमी” (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों के क्षरण या अनुपस्थिति से उत्पन्न होती है, किससे जुड़ी है?

    1. कार्ल मार्क्स
    2. मैक्स वेबर
    3. एमिल दुर्खीम
    4. सी. राइट मिल्स

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने “एनोमी” (Anomie) या बेनियमता की अवधारणा का प्रयोग यह समझाने के लिए किया कि जब समाज में सामान्य नैतिक नियमों और मूल्यों का क्षरण होता है, तो व्यक्ति दिशाहीन और अनियंत्रित महसूस कर सकता है, जिससे अपराध, आत्महत्या या सामाजिक अव्यवस्था बढ़ सकती है।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने “दशविभाजन” (The Division of Labour in Society) और “आत्महत्या” (Suicide) जैसी अपनी रचनाओं में एनोमी का उल्लेख किया। उन्होंने इसे विशेष रूप से तब देखा जब समाज में बड़े पैमाने पर आर्थिक या सामाजिक परिवर्तन होते हैं, जिससे पुराने मानदंड अप्रचलित हो जाते हैं और नए पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाते।
    • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का ध्यान वर्ग संघर्ष और शोषण पर था। मैक्स वेबर ने तर्कसंगतता और नौकरशाही पर जोर दिया। सी. राइट मिल्स ने “पावर एलिट” (Power Elite) जैसी अवधारणाएं दीं।

    प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री “सामाजिक क्रिया” (Social Action) को समाजशास्त्र के अध्ययन का केंद्रीय बिंदु मानता है?

    1. एमिल दुर्खीम
    2. कार्ल मार्क्स
    3. मैक्स वेबर
    4. तात्सुओ हमागुची

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: मैक्स वेबर ने “सामाजिक क्रिया” (Social Action) को समाजशास्त्र का मूल विषय माना। उन्होंने समाजशास्त्र को “सामाजिक क्रिया का अर्थपूर्ण ढंग से अध्ययन” के रूप में परिभाषित किया, जहाँ क्रिया का अर्थ व्यक्ति द्वारा की जाने वाली क्रिया में शामिल व्यक्तिपरक समझ से होता है।
    • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने सामाजिक क्रिया को उन क्रियाओं के रूप में परिभाषित किया जो व्यक्ति अपनी क्रियाओं में दूसरों के व्यवहार से प्रभावित होकर या दूसरों के व्यवहार के प्रति उन्मुख होकर करते हैं। उन्होंने विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं, जैसे लक्ष्य-तर्कसंगत, मूल्य-तर्कसंगत, भावात्मक और पारंपरिक क्रियाओं का वर्गीकरण भी किया।
    • गलत विकल्प: दुर्खीम सामाजिक तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करते थे, मार्क्स आर्थिक संरचनाओं पर, और तात्सुओ हमागुची एक आधुनिक जापानी समाजशास्त्री हैं।

    प्रश्न 12: “पवित्र” (Sacred) और “अपवित्र” (Profane) का भेद किस समाजशास्त्री ने धर्म के विश्लेषण में केंद्रीय माना?

    1. मैक्स वेबर
    2. एमिल दुर्खीम
    3. कार्ल मार्क्स
    4. ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति “धर्म के प्रारंभिक रूप” (The Elementary Forms of Religious Life) में “पवित्र” और “अपवित्र” के भेद को धर्म की मौलिक विशेषता माना।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, पवित्र वह है जिसे सामान्य जीवन से अलग, वर्जित और आदरणीय माना जाता है, जबकि अपवित्र वह है जो रोजमर्रा के जीवन से संबंधित है। धर्म प्रतीकों, अनुष्ठानों और विश्वासों की एक प्रणाली है जो पवित्र के इर्द-गिर्द केंद्रित होती है, और यह समाज के सदस्यों को एक साथ लाती है, जिससे सामूहिक चेतना और सामाजिक एकजुटता मजबूत होती है।
    • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेंट नैतिकता और पूंजीवाद के बीच संबंध पर काम किया। कार्ल मार्क्स ने धर्म को “जनता के लिए अफीम” कहा। रेडक्लिफ-ब्राउन संरचनात्मक प्रकार्यवाद के क्षेत्र में एक मानवविज्ञानी थे।

    प्रश्न 13: “भूमिहार” किस सामाजिक समूह का उदाहरण है, जिसे पारंपरिक भारतीय समाज में विशेष दर्जा प्राप्त था?

    1. व्यापारी वर्ग
    2. किसानों का एक विशिष्ट समूह
    3. जमींदार और भू-स्वामी वर्ग
    4. शिल्पकार और कारीगर

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: “भूमिहार” भारत, विशेषकर उत्तर भारत और पूर्वी भारत में, एक ऐसी जाति या समुदाय को संदर्भित करता है जो पारंपरिक रूप से भूमि-स्वामी और जमींदार रहा है।
    • संदर्भ और विस्तार: भूमिहार जाति व्यवस्था में एक उच्च स्थान रखती थी और उनकी पहचान उनकी भूमि के स्वामित्व से जुड़ी थी। वे अक्सर जमींदारी व्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाते थे और सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक शक्ति के धारक थे।
    • गलत विकल्प: हालांकि वे कृषि से जुड़े थे, वे केवल किसान नहीं थे बल्कि भू-स्वामी थे। वे पारंपरिक व्यापारी वर्ग या शिल्पकारों से भिन्न थे।

    प्रश्न 14: “सांस्कृतिक सापेक्षवाद” (Cultural Relativism) का अर्थ क्या है?

    1. सभी संस्कृतियों को उनके अपने संदर्भ में समझना और उनका मूल्यांकन करना।
    2. किसी एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति से श्रेष्ठ मानना।
    3. आधुनिक पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठ मानना।
    4. वैज्ञानिक प्रगति को संस्कृति का अंतिम लक्ष्य मानना।

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सांस्कृतिक सापेक्षवाद एक दृष्टिकोण है जो यह मानता है कि किसी व्यक्ति की मान्यताओं, मूल्यों और प्रथाओं को उस व्यक्ति की अपनी संस्कृति के संदर्भ में ही समझा और आंका जाना चाहिए।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा मानवविज्ञानी फ्रैंज बोस और उनके छात्रों द्वारा विकसित की गई थी। इसका उद्देश्य किसी संस्कृति को बाहरी, अक्सर पश्चिमी, मानकों के आधार पर पूर्वाग्रहपूर्ण या श्रेष्ठतावादी तरीके से आंकने से बचना है।
    • गलत विकल्प: (b) और (c) आत्म-केंद्रवाद (Ethnocentrism) के उदाहरण हैं, जो सांस्कृतिक सापेक्षवाद के विपरीत है। (d) एक प्रकार का सांस्कृतिक विकासवाद है।

    प्रश्न 15: “आत्म-दर्पण” (Looking-Glass Self) की अवधारणा किसने विकसित की?

    1. जी.एच. मीड
    2. सी.एच. कुले
    3. हरबर्ट ब्लूमर
    4. एर्विंग गॉफमैन

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: चार्ल्स हर्टन कुले ने 1902 में अपनी पुस्तक “सामाजिक संगठन” (Social Organization) में “आत्म-दर्पण” (Looking-Glass Self) की अवधारणा प्रस्तुत की।
    • संदर्भ और विस्तार: कुले के अनुसार, हमारा आत्म (self) दूसरों के साथ हमारी अंतःक्रियाओं से विकसित होता है। यह तीन चरणों में होता है: (1) हम सोचते हैं कि दूसरे हमें कैसे देखते हैं, (2) हम सोचते हैं कि दूसरे हमारे बारे में क्या निर्णय लेते हैं, और (3) हम इन निर्णयों के आधार पर अपने बारे में एक भावना (जैसे गर्व या शर्म) विकसित करते हैं।
    • गलत विकल्प: जी.एच. मीड ने “मैं” (I) और “मुझे” (Me) के भेद के माध्यम से आत्म के विकास को समझाया। ब्लूमर ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद को व्यवस्थित किया। गॉफमैन ने नाट्यशास्त्र का उपयोग किया।

    प्रश्न 16: भारतीय समाज में “जाति व्यवस्था” के संदर्भ में, “जातिगत अंतर-विवाह” (Endogamy) का क्या अर्थ है?

    1. अपनी जाति के बाहर विवाह करना।
    2. केवल अपनी जाति के सदस्यों के भीतर विवाह करना।
    3. किसी भी जाति से विवाह करना।
    4. विभिन्न उप-जातियों के बीच विवाह करना।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: जाति व्यवस्था में “जातिगत अंतर-विवाह” (Endogamy) का अर्थ है कि एक व्यक्ति को केवल अपनी ही जाति या उप-जाति के सदस्यों के भीतर ही विवाह करना चाहिए।
    • संदर्भ और विस्तार: यह जाति व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता है जो जाति की शुद्धता और निरंतरता बनाए रखने में मदद करती है। यह नियम सामाजिक अलगाव और पदानुक्रम को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • गलत विकल्प: (a) बहिर्विवाह (Exogamy) है। (c) आधुनिक समाजों में देखा जाता है, लेकिन जाति व्यवस्था के लिए नहीं। (d) कुछ हद तक स्वीकार्य हो सकता है, लेकिन मुख्य नियम अंतर-विवाह का है।

    प्रश्न 17: “सामाजिक पूंजी” (Social Capital) की अवधारणा किसने विकसित की, जिसका अर्थ है सामाजिक नेटवर्क से प्राप्त लाभ?

    1. पियरे बॉर्डियू
    2. रॉबर्ट पुटनम
    3. जेम्स कॉलमैन
    4. उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा का विकास पियरे बॉर्डियू, जेम्स कॉलमैन और रॉबर्ट पुटनम जैसे कई समाजशास्त्रियों द्वारा किया गया है, जिन्होंने विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया।
    • संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू ने इसे सामाजिक संबंधों के माध्यम से प्राप्त संसाधनों के रूप में देखा, कॉलमैन ने इसे नेटवर्क में विश्वास, आशा और मानदंडों के माध्यम से व्यक्तियों और समूहों की क्षमता में वृद्धि के रूप में परिभाषित किया, और पुटनम ने इसे नागरिक जुड़ाव और सामुदायिक जीवन के लाभों से जोड़ा। तीनों ही सामाजिक नेटवर्क से प्राप्त लाभों पर जोर देते हैं।
    • गलत विकल्प: ये तीनों विचारक सामाजिक पूंजी की अवधारणा के लिए महत्वपूर्ण हैं, इसलिए सभी विकल्प सही हैं।

    प्रश्न 18: “पदानुक्रम” (Hierarchy) समाजशास्त्रीय रूप से क्या दर्शाता है?

    1. व्यक्तियों के बीच सहयोग की मात्रा।
    2. समाज में शक्ति, प्रतिष्ठा और संसाधनों का स्तर-आधारित वितरण।
    3. सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार।
    4. सामाजिक गतिशीलता की दर।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: समाजशास्त्र में, “पदानुक्रम” (Hierarchy) एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ व्यक्तियों या समूहों को शक्ति, प्रतिष्ठा, धन या विशेषाधिकारों के आधार पर विभिन्न स्तरों या श्रेणियों में क्रमबद्ध किया जाता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक स्तरीकरण, वर्ग संरचना, जाति व्यवस्था और संगठनात्मक संरचनाओं को समझने में महत्वपूर्ण है। प्रत्येक स्तर पर स्थित लोगों के पास अलग-अलग मात्रा में संसाधन और अधिकार होते हैं।
    • गलत विकल्प: (a) सहयोग की मात्रा से, (c) सांस्कृतिक मूल्यों के प्रसार से, और (d) सामाजिक गतिशीलता की दर से भिन्न है, हालांकि ये सभी पदानुक्रम से प्रभावित हो सकते हैं।

    प्रश्न 19: “सामाजिक परिवर्तन” (Social Change) की प्रक्रिया को समझने के लिए “संरचनात्मक प्रकार्यवाद” (Structural Functionalism) का दृष्टिकोण क्या है?

    1. यह मानता है कि परिवर्तन अप्रत्याशित और अराजक होता है।
    2. यह मानता है कि समाज स्वाभाविक रूप से संतुलन में रहता है और परिवर्तन केवल तभी होता है जब व्यवस्था में कोई असंतुलन या समस्या उत्पन्न होती है।
    3. यह परिवर्तन को सामाजिक संघर्ष का प्रत्यक्ष परिणाम मानता है।
    4. यह केवल व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन पर केंद्रित है।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद (जैसे कि पार्सन्स और मर्टन द्वारा विकसित) मानता है कि समाज में विभिन्न भाग (संस्थाएँ, संरचनाएँ) होते हैं जो एक साथ काम करके समाज को स्थिर रखते हैं। परिवर्तन को आमतौर पर एक आवश्यकता के रूप में देखा जाता है जो व्यवस्था को फिर से संतुलन में लाने के लिए होती है।
    • संदर्भ और विस्तार: इस दृष्टिकोण के अनुसार, जब समाज की किसी संरचना (जैसे परिवार, शिक्षा) में कोई समस्या उत्पन्न होती है जो उसके प्रकार्य (function) को ठीक से करने से रोकती है, तो उसमें परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है ताकि वह फिर से समाज की आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
    • गलत विकल्प: (a) प्रकार्यवाद परिवर्तन को पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं मानता। (c) यह संघर्ष सिद्धांत का दृष्टिकोण है, प्रकार्यवाद का नहीं। (d) प्रकार्यवाद संरचनाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, केवल व्यक्तिगत व्यवहार पर नहीं।

    प्रश्न 20: “आधुनिकीकरण” (Modernization) सिद्धांत के अनुसार, विकासशील समाजों में मुख्य चुनौती क्या है?

    1. पारंपरिक मूल्यों और संस्थाओं को बनाए रखना।
    2. पश्चिमी औद्योगिक समाजों की तरह विकास करना।
    3. सामुदायिक संबंधों को मजबूत करना।
    4. गरीबी और अशिक्षा को बढ़ावा देना।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: आधुनिकीकरण सिद्धांत, जो 20वीं सदी के मध्य में लोकप्रिय हुआ, मानता है कि अविकसित या विकासशील समाजों को विकसित, औद्योगिक पश्चिमी समाजों के पथ का अनुसरण करके ही आधुनिकता और प्रगति प्राप्त करनी चाहिए।
    • संदर्भ और विस्तार: इस सिद्धांत के अनुसार, विकासशील समाजों को पारंपरिक कृषि-आधारित अर्थव्यवस्थाओं से औद्योगिक, शहरी और तर्कसंगत समाजों में बदलना होता है, जिसमें पश्चिमी मूल्यों और संस्थानों को अपनाना शामिल है।
    • गलत विकल्प: (a), (c) और (d) आधुनिकीकरण सिद्धांत के विपरीत या उससे असंगत हैं, जो पारंपरिक तत्वों को अक्सर विकास की बाधा के रूप में देखता है।

    प्रश्न 21: “पवित्र पदानुक्रम” (Sacred Hierarchy) की अवधारणा किस भारतीय समाजशास्त्री ने जाति व्यवस्था को समझने के लिए प्रयोग की?

    1. जी. एस. घुरिये
    2. एम. एन. श्रीनिवास
    3. डी. एन. मजूमदार
    4. इरावती कर्वे

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: जी. एस. घुरिये ने भारतीय जाति व्यवस्था की विशेषताओं का विश्लेषण करते हुए “पवित्रता और प्रदूषण” (Purity and Pollution) के आधार पर जाति के पदानुक्रम पर जोर दिया।
    • संदर्भ और विस्तार: घुरिये ने माना कि जाति व्यवस्था न केवल व्यवसायों का विभाजन है, बल्कि एक कठोर पदानुक्रम है जो पवित्रता और प्रदूषण की धारणाओं पर आधारित है, जहाँ उच्च जातियाँ अधिक पवित्र और निम्न जातियाँ कम पवित्र (अशुद्ध) मानी जाती हैं।
    • गलत विकल्प: एम. एन. श्रीनिवास ने संसक्ति पर काम किया। डी. एन. मजूमदार और इरावती कर्वे ने भी भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण कार्य किया, लेकिन पवित्र पदानुक्रम का विशेष जोर घुरिये के विश्लेषण में था।

    प्रश्न 22: “सामाजिक अनुसंधान” (Social Research) में “गुणात्मक विधि” (Qualitative Method) का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    1. संख्यात्मक डेटा एकत्र करना और सांख्यिकीय विश्लेषण करना।
    2. सामाजिक घटनाओं के पीछे के अर्थ, अनुभवों और संदर्भों को गहराई से समझना।
    3. बड़े जनसमूह से सामान्यीकरण (generalization) निकालना।
    4. कारण और प्रभाव संबंधों को मापना।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: गुणात्मक विधि का उद्देश्य उन सामाजिक घटनाओं की गहराई से समझ प्राप्त करना है जो संख्याओं में मापी नहीं जा सकतीं, जैसे कि लोगों की भावनाएँ, विश्वास, अनुभव और अर्थ। इसमें साक्षात्कार, समूह चर्चा, अवलोकन आदि शामिल हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह विधि व्यक्तियों के दृष्टिकोण और सामाजिक दुनिया की उनकी व्याख्याओं को समझने पर केंद्रित है। यह “क्यों” और “कैसे” जैसे प्रश्नों का उत्तर देने में सहायक है।
    • गलत विकल्प: (a) और (c) मात्रात्मक विधि (Quantitative Method) की विशेषताएँ हैं। (d) मात्रात्मक विधि में भी महत्वपूर्ण है, लेकिन गुणात्मक विधि का प्राथमिक उद्देश्य यह नहीं है।

    प्रश्न 23: “सांस्कृतिक भौतिकवाद” (Cultural Materialism) के दृष्टिकोण के अनुसार, समाज के “_आधार_” (Infrastructure) में क्या शामिल है?

    1. कला, धर्म और दर्शन।
    2. नैतिक मूल्य और मान्यताएँ।
    3. उत्पादन और प्रजनन की विधियाँ।
    4. राज्य और कानून।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सांस्कृतिक भौतिकवाद, जिसका प्रमुख प्रस्तावक मार् से हैरिस (Marvin Harris) हैं, मानता है कि समाज का ‘आधार’ (Infrastructure) उसके आर्थिक और जनसांख्यिकीय (जनसंख्या संबंधी) तत्व हैं। इसमें लोगों द्वारा भोजन, आश्रय और अन्य भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के तरीके शामिल हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: हैरिस के अनुसार, आधार (Infrastructure) संरचना (Structure – सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संगठन) और अधिरचना (Superstructure – कला, धर्म, विचार) को निर्धारित करता है। इस प्रकार, उत्पादन और प्रजनन की विधियाँ समाज के सबसे मौलिक पहलू हैं।
    • गलत विकल्प: (a) और (b) अधिरचना (Superstructure) का हिस्सा हैं, जबकि (d) संरचना (Structure) का हिस्सा हो सकता है, लेकिन आधार नहीं।

    प्रश्न 24: “संरचनात्मक द्वंद्ववाद” (Structural Dualism) की अवधारणा, जो आधुनिक और पारंपरिक समाजों के सह-अस्तित्व को दर्शाती है, विशेष रूप से किस क्षेत्र के अध्ययन में उपयोगी रही है?

    1. शहरी समाजशास्त्र
    2. कृषि समाजशास्त्र
    3. विकासशील समाजों का समाजशास्त्र
    4. औद्योगिक समाजशास्त्र

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: “संरचनात्मक द्वंद्ववाद” (Structural Dualism) की अवधारणा अक्सर विकासशील समाजों के अध्ययन में प्रयोग की जाती है, जहाँ अक्सर एक आधुनिक, औद्योगिक या पश्चिमीकृत क्षेत्र (जैसे शहर, कॉर्पोरेट क्षेत्र) और एक पारंपरिक, ग्रामीण या जनजातीय क्षेत्र (जैसे ग्रामीण क्षेत्र, स्वदेशी समुदाय) एक साथ मौजूद होते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा बताती है कि कैसे ये दोनों क्षेत्र एक-दूसरे से अलग-अलग विकसित हो सकते हैं, या कैसे आधुनिक क्षेत्र पारंपरिक क्षेत्रों का शोषण कर सकता है, जिससे जटिल सामाजिक और आर्थिक संरचनाएँ बनती हैं।
    • गलत विकल्प: हालांकि शहरी, औद्योगिक और कृषि समाजों में द्वंद्ववाद के तत्व हो सकते हैं, यह अवधारणा विशेष रूप से विकासशील देशों के समग्र परिदृश्य में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं के सह-अस्तित्व को समझाने के लिए महत्वपूर्ण है।

    प्रश्न 25: “सार्वभौमिकता” (Universality) और “विशेषता” (Particularism) का द्वंद्व किस समाजशास्त्रीय अवधारणा से संबंधित है?

    1. सामाजिक भूमिकाएँ (Social Roles)
    2. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)
    3. सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification)
    4. सामाजिक व्यवस्था (Social Order)

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: “सार्वभौमिकता” (Universality) और “विशेषता” (Particularism) टैलकॉट पार्सन्स द्वारा “पैटर्न वेरिएबल” (Pattern Variables) के एक सेट के रूप में प्रस्तुत की गईं, जो बताते हैं कि व्यक्ति सामाजिक अंतःक्रियाओं में भूमिकाओं को कैसे परिभाषित करते हैं। सार्वभौमिकता का अर्थ है कि व्यवहार को सामान्यीकृत मानदंडों के आधार पर आंका जाता है, जबकि विशेषता का अर्थ है कि व्यवहार को विशेष संबंधों या संदर्भों के आधार पर आंका जाता है।
    • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर को अपने सभी रोगियों के साथ सार्वभौमिक रूप से (ईमानदारी, निष्पक्षता से) व्यवहार करना चाहिए, न कि केवल उन रोगियों के साथ जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से पसंद करते हैं (विशेषता)। ये चर यह समझने में मदद करते हैं कि समाज कैसे काम करता है और विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति कैसे व्यवहार करते हैं।
    • गलत विकल्प: सामाजिक गतिशीलता, सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक व्यवस्था महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं, लेकिन सार्वभौमिकता/विशेषता का सीधा संबंध सामाजिक भूमिकाओं के निर्धारण और निर्वहन से है।

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