समाजशास्त्र की धार: आज अपनी अवधारणों को परखें
नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! अपने ज्ञान की धार को पैना करने और अपनी संकल्पनात्मक स्पष्टता को परखने के लिए तैयार हो जाइए। आज का यह विशेष प्रश्नोत्तरी सत्र आपको समाजशास्त्र के विस्तृत परिदृश्य में ले जाएगा, जहाँ आप प्रमुख सिद्धांतों, विचारकों और समकालीन मुद्दों पर अपनी पकड़ को मजबूत करेंगे। आइए, विश्लेषण और अंतर्दृष्टि की इस यात्रा को शुरू करें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘वर्स्टेहेन’ (Verstehen) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की, जो समाजशास्त्रियों की क्रियाओं के पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों को समझने की आवश्यकता पर बल देती है?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘वर्स्टेहेन’ की अवधारणा प्रस्तुत की। इसका अर्थ है ‘समझना’ या ‘व्याख्या करना’। यह समाजशास्त्रीय विश्लेषण में व्यक्ति द्वारा अपनी क्रियाओं को दिए जाने वाले व्यक्तिपरक अर्थों और प्रेरणाओं को समझने पर ज़ोर देता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा वेबर के व्याख्यात्मक समाजशास्त्र का केंद्रीय तत्व है और उनके कार्य ‘Economy and Society’ में विस्तृत है। यह दुर्खीम के प्रत्यक्षवाद (positivism) से भिन्न है, जो सामाजिक तथ्यों को वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन करने पर बल देता है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ‘वर्ग संघर्ष’ की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (anomie) और ‘सामूहिकता’ (collective consciousness) जैसे विचारों को विकसित किया। जॉर्ज हर्बर्ट मीड ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के अग्रणी थे।
प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ी गई ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा क्या दर्शाती है?
- पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण
- किसी निम्न जाति या जनजाति द्वारा उच्च जाति की रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और विश्वासों को अपनाना
- औद्योगीकरण के कारण सामाजिक संरचना में परिवर्तन
- शहरीकरण से उत्पन्न सामाजिक विसंगतियाँ
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संस्कृतीकरण, एम.एन. श्रीनिवास द्वारा दिया गया एक महत्वपूर्ण समाजशास्त्रीय सिद्धांत है। यह उस प्रक्रिया का वर्णन करता है जहाँ निम्न जातियाँ या जनजातियाँ अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने के लिए उच्च जातियों की जीवन शैली, रीति-रिवाजों, पूजा-पद्धतियों और विचारों को अपनाती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में इस अवधारणा का सर्वप्रथम उल्लेख किया। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता का।
- गलत विकल्प: ‘पश्चिमीकरण’ पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को दर्शाता है। ‘आधुनिकीकरण’ तकनीकी और संस्थागत परिवर्तनों से संबंधित एक व्यापक अवधारणा है। ‘शहरीकरण’ ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या के स्थानांतरण और उससे उत्पन्न सामाजिक परिवर्तनों को दर्शाता है।
प्रश्न 3: निम्न में से कौन सा कथन ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) के संदर्भ में सर्वाधिक उपयुक्त है?
- यह व्यक्तियों के बीच अंतरंग संबंधों का जाल है।
- यह समाज में भूमिकाओं, स्थितिओं और संस्थाओं का अपेक्षाकृत स्थिर पैटर्न है।
- यह समाज में शक्ति के वितरण का वर्णन करता है।
- यह व्यक्ति की चेतना में समाज के आदर्शों का समावेशन है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक संरचना समाज के विभिन्न तत्वों, जैसे कि भूमिकाएँ, स्थिति, समूह और संस्थाएँ, के बीच अपेक्षाकृत स्थिर और व्यवस्थित संबंधों को संदर्भित करती है। यह एक प्रकार का ‘ढाँचा’ है जो समाज के कामकाज को निर्देशित करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम जैसे समाजशास्त्रियों ने सामाजिक संरचना को ‘सामूहिकता’ (collective consciousness) से जोड़कर देखा। यह सामाजिक व्यवस्था और पूर्वानुमेयता (predictability) को समझने में मदद करती है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तियों के बीच अंतरंग संबंध ‘सामाजिक संबंध’ (social relations) का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन यह पूरी सामाजिक संरचना नहीं है। (c) शक्ति का वितरण सामाजिक स्तरीकरण (social stratification) का हिस्सा है, जो सामाजिक संरचना का एक आयाम है। (d) यह ‘सामाजिकरण’ (socialization) की प्रक्रिया का वर्णन करता है।
प्रश्न 4: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवस्था का संबंध किस समाजशास्त्री से है?
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- ऑगस्ट कॉम्ते
- एमिल दुर्खीम
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा एमिल दुर्खीम से संबंधित है। यह एक ऐसी सामाजिक अवस्था है जहाँ सामाजिक नियम या तो कमज़ोर हो जाते हैं या पूरी तरह से अनुपस्थित हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘Suicide’ में एनोमी को आत्महत्या के एक प्रमुख कारण के रूप में विश्लेषित किया। उन्होंने इसे विशेष रूप से सामाजिक परिवर्तन या संकट के समय में देखा, जब पुराने नियम अप्रचलित हो जाते हैं और नए स्थापित नहीं होते।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ‘वर्स्टेहेन’ और ‘आदर्श प्रारूप’ (ideal type) जैसे विचारों के लिए जाने जाते हैं। कार्ल मार्क्स ‘वर्ग संघर्ष’ और ‘अलगाव’ (alienation) पर केंद्रित थे। ऑगस्ट कॉम्ते को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने ‘प्रत्यक्षवाद’ (positivism) का सिद्धांत दिया।
प्रश्न 5: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य जोर किस पर है?
- बड़े सामाजिक संस्थानों का विश्लेषण
- व्यक्तियों के बीच प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से होने वाली अंतःक्रिया और उसके अर्थ निर्माण
- समाज में शक्ति और प्रभुत्व का अध्ययन
- समग्र सामाजिक व्यवस्था का कार्यात्मक विश्लेषण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद मुख्य रूप से व्यक्तियों के बीच होने वाली सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। यह इस बात पर बल देता है कि कैसे लोग अपने साझा प्रतीकों (जैसे भाषा, इशारे) के माध्यम से अर्थ बनाते हैं और यह अर्थ उनके व्यवहार और आत्म-अवधारणा को आकार देते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: इसके प्रमुख विचारकों में जॉर्ज हर्बर्ट मीड, चार्ल्स कूली और हर्बर्ट ब्लूमर शामिल हैं। ब्लूमर ने इस दृष्टिकोण को यह नाम दिया और इसके तीन मुख्य आधार बताए: 1) मनुष्य वस्तुओं के प्रति उन तरीकों से व्यवहार करते हैं जो उन वस्तुओं के लिए उनके पास मौजूद अर्थों पर आधारित होते हैं, 2) इन अर्थों का स्रोत वह अंतःक्रिया है जो व्यक्ति अपने साथी मनुष्यों के साथ करता है, और 3) ये अर्थ व्याख्यात्मक प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित, संशोधित और विकसित होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) और (d) संरचनात्मक प्रकार्यवाद (structural functionalism) के दृष्टिकोण हैं, जो बड़े पैमाने की संरचनाओं का अध्ययन करते हैं। (c) संघर्ष सिद्धांत (conflict theory), जैसे मार्क्सवाद, शक्ति और प्रभुत्व पर केंद्रित है।
प्रश्न 6: भारतीय समाज में, ‘जजमानी व्यवस्था’ (Jajmani System) मुख्य रूप से किस प्रकार की प्रणाली का प्रतिनिधित्व करती है?
- बाज़ार-आधारित विनिमय
- पारस्परिक सेवा और वस्तुओं का पारंपरिक, वंशानुगत विनिमय
- राज्य द्वारा नियंत्रित आर्थिक प्रणाली
- औपचारिक ऋण और वित्तीयन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जजमानी व्यवस्था भारतीय ग्रामीण समाज में एक पारंपरिक प्रणाली है जिसमें सेवा प्रदाता (जैसे नाई, धोबी, कुम्हार) और सेवा प्राप्तकर्ता (जजमान) के बीच वंशानुगत संबंध होते हैं। ये सेवाएँ अक्सर वस्तुओं या सेवाओं के रूप में गैर-मौद्रिक तरीके से विनिमय की जाती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह प्रणाली पारंपरिक भारतीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक संबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। यह एक जटिल सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था थी जो जाति, व्यवसाय और पारस्परिक निर्भरता पर आधारित थी।
- गलत विकल्प: यह बाज़ार-आधारित (a), राज्य-नियंत्रित (c), या औपचारिक ऋण (d) प्रणाली नहीं है; यह मुख्य रूप से पारंपरिक और व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित है।
प्रश्न 7: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, विशेष रूप से पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के संदर्भ में, किस विचारक से सबसे अधिक गहराई से जुड़ी है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- ऑगस्ट कॉम्ते
- कार्ल मार्क्स
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ (Entfremdung) की अवधारणा को पूंजीवादी समाज में श्रमिकों की दशा का विश्लेषण करने के लिए केंद्रीय माना। उनका तर्क था कि पूंजीवाद श्रमिक को उसकी मेहनत के उत्पाद, उत्पादन की प्रक्रिया, स्वयं से, और अन्य मनुष्यों से अलग कर देता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा उनके प्रारंभिक लेखन, विशेष रूप से ‘Economic and Philosophic Manuscripts of 1844’ में पाई जाती है। मार्क्स के अनुसार, श्रमिक अपनी रचनात्मक ऊर्जा को नियंत्रित नहीं करता, बल्कि एक वस्तु बन जाता है, जो उसके अस्तित्व के लिए हानिकारक है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘एनोमी’ और ‘सामूहिकता’ पर ध्यान केंद्रित किया। वेबर ने ‘तर्कसंगतता’ (rationalization) और ‘सत्ता’ (authority) जैसे विषयों पर काम किया। कॉम्ते समाजशास्त्र के संस्थापक थे।
प्रश्न 8: मैकि
- भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर
- सामाजिक संबंधों की प्रकृति के आधार पर
- धार्मिक विश्वासों के आधार पर
- आर्थिक उत्पादन विधियों के आधार पर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैकिं टायर मैकिं टायर (R.M. MacIver) और चार्ल्स पेज (Charles Page) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Society: An Introductory Analysis’ में समाज को मुख्य रूप से ‘समुदाय’ (Community) और ‘सोसाइटी’ (Society – यहाँ विशेष अर्थ में) के रूप में वर्गीकृत किया, जो सामाजिक संबंधों की प्रकृति पर आधारित था। उन्होंने ‘समाज’ को व्यक्तियों के एक जटिल समूह के रूप में परिभाषित किया जो सामान्य सामाजिक संबंधों और अंतःक्रियाओं की एक व्यवस्था में बंधे होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: उनकी वर्गीकरण की मुख्य धुरी यह थी कि संबंधों में कितना ‘हम’ की भावना ( gemeinschaftlich) है और कितना ‘मैं’ की भावना (gesellschaftlich) है।
- गलत विकल्प: यह वर्गीकरण भौगोलिक (a), धार्मिक (c), या आर्थिक (d) आधारों पर नहीं, बल्कि संबंधों की गुणवत्ता और प्रकृति पर आधारित था।
प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय पद्धति ‘कारण और प्रभाव’ (cause and effect) के संबंधों को स्थापित करने में सहायक है?
- केस स्टडी (Case Study)
- एथनोग्राफी (Ethnography)
- प्रयोग (Experiment)
- ऐतिहासिक अनुसंधान (Historical Research)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, प्रयोग (Experiment) वह पद्धति है जो कारण और प्रभाव के संबंधों को स्थापित करने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसमें एक नियंत्रित वातावरण में चर (variables) में हेरफेर करके उनके प्रभाव का अवलोकन किया जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: प्रयोगों में एक प्रयोगात्मक समूह (experimental group) और एक नियंत्रण समूह (control group) होता है, जहाँ स्वतंत्र चर (independent variable) को प्रयोगात्मक समूह पर लागू किया जाता है और फिर दोनों समूहों के बीच परिणाम की तुलना की जाती है। हालाँकि, समाजशास्त्र में इसे लागू करना नैतिक और व्यावहारिक रूप से कठिन होता है।
- गलत विकल्प: केस स्टडी (a) किसी एक इकाई का गहन अध्ययन है। एथनोग्राफी (b) किसी संस्कृति या समूह का गहन, सहभागी अवलोकन है। ऐतिहासिक अनुसंधान (d) अतीत की घटनाओं का अध्ययन करता है। ये विधियाँ कारण-प्रभाव को सीधे स्थापित करने के बजाय संबंध या सहसंबंध (correlation) पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं।
प्रश्न 10: चार्ल्स कूली (Charles Cooley) की ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (Looking-Glass Self) की अवधारणा क्या समझाती है?
- समाज में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का अवलोकन।
- दूसरों की नज़रों में हम कैसे दिखते हैं, इस बारे में हमारी अपनी समझ के माध्यम से आत्म-अवधारणा का विकास।
- समाज की संरचनात्मक असमानताओं का विश्लेषण।
- व्यक्तिगत सुख और कल्याण की खोज।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: चार्ल्स कूली की ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (looking-glass self) यह बताती है कि व्यक्ति का आत्म-बोध (self-concept) इस बात से आकार लेता है कि वह सोचता है कि दूसरे उसके बारे में क्या सोचते हैं। यह एक तीन-चरणीय प्रक्रिया है: 1) हम कल्पना करते हैं कि हम दूसरों की नज़रों में कैसे दिखते हैं, 2) हम कल्पना करते हैं कि वे हमारे बारे में क्या निर्णय लेते हैं, और 3) हम उस निर्णय के आधार पर अपनी भावनाएँ (जैसे गर्व या शर्म) विकसित करते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का एक प्रमुख अंग है और समझाती है कि सामाजिक अंतःक्रियाएँ हमारे आत्म-बोध के निर्माण में कितनी महत्वपूर्ण हैं।
- गलत विकल्प: (a) सामाजिक स्थिति (social status) को मापा जा सकता है, लेकिन लुकिंग-ग्लास सेल्फ आत्म-बोध के निर्माण की प्रक्रिया है। (c) संरचनात्मक असमानताओं का अध्ययन मार्क्स या वेबर जैसे समाजशास्त्रियों द्वारा किया गया। (d) व्यक्तिगत सुख की खोज मनोवैज्ञानिक या दार्शनिक विषय है।
प्रश्न 11: भारतीय जाति व्यवस्था के संदर्भ में, ‘प्रदूषण’ (pollution) और ‘शुद्धता’ (purity) की अवधारणाएँ किस प्रकार की भूमिका निभाती हैं?
- यह भोजन के पोषण मूल्य को निर्धारित करती हैं।
- ये सामाजिक स्तरीकरण और जातियों के बीच संबंध को बनाए रखने के लिए एक आधार प्रदान करती हैं।
- ये केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित हैं।
- ये आर्थिक उत्पादन को प्रभावित नहीं करतीं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जाति व्यवस्था में, ‘शुद्धता’ और ‘प्रदूषण’ की अवधारणाएं सामाजिक स्तरीकरण का मूल आधार हैं। उच्च जातियों को शुद्ध माना जाता है और निम्न जातियों को अपवित्र या दूषित। यह पवित्रता-अपवित्रता का पदानुक्रम जातियों के बीच संपर्क, खान-पान, विवाह और व्यवसाय को नियंत्रित करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: एल.पी. विद्यानाथन, एम.एन. श्रीनिवास और फ्रांज़ बुआस जैसे मानवशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने जाति व्यवस्था में इन अवधारणाओं की भूमिका पर विस्तार से लिखा है। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को जाति से बहिष्कृत भी किया जा सकता है।
- गलत विकल्प: (a) पोषण मूल्य से इनका कोई लेना-देना नहीं है। (c) यद्यपि ये धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण हैं, इनका प्रभाव केवल उन तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे सामाजिक जीवन पर पड़ता है। (d) ये निश्चित रूप से आर्थिक उत्पादन को प्रभावित करती हैं, क्योंकि व्यवसाय अक्सर जाति से जुड़े होते हैं।
प्रश्न 12: टैल्कॉट पार्सन्स (Talcott Parsons) द्वारा प्रस्तावित ‘एजीएल’ (AGIL) प्रतिमान (schema) समाज की किन चार कार्यात्मक आवश्यकताओं का वर्णन करता है?
- अनुकूलन, लक्ष्य प्राप्ति, एकीकरण, व्यवहार्यता
- अनुकूलन, लक्ष्य प्राप्ति, एकीकरण, अव्यवस्था
- अनुकूलन, नियंत्रण, अलगाव, गतिशीलता
- लक्ष्य प्राप्ति, संरचना, अंतःक्रिया, व्यवस्था
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने समाज को एक प्रणाली के रूप में देखा जो जीवित रहने के लिए चार बुनियादी कार्यात्मक आवश्यकताओं को पूरा करती है: Adaptation (अनुकूलन), Goal Attainment (लक्ष्य प्राप्ति), Integration (एकीकरण), और Latency/Pattern Maintenance (सुप्तता/आदर्श अनुरक्षण या व्यवहार्यता)।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह सिद्धांत उनके बड़े ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (structural functionalism) के ढांचे का हिस्सा है, जो बताता है कि समाज के विभिन्न उप-प्रणालियाँ (जैसे अर्थव्यवस्था, राजनीति, परिवार) इन कार्यात्मक आवश्यकताओं को कैसे पूरा करती हैं।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प (b), (c), (d) में या तो गलत शब्द हैं (अव्यवस्था, व्यवहार्यता के बजाय), या प्रासंगिक नहीं हैं (नियंत्रण, अलगाव), या गलत संयोजन (गतिशीलता, व्यवस्था) हैं। ‘Latentcy’ या ‘Pattern Maintenance’ को व्यवहार्यता या व्यवहार अनुरक्षण के रूप में समझा जा सकता है।
प्रश्न 13: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो यह बताती है कि समाज के विभिन्न हिस्से अलग-अलग दरों पर बदलते हैं, विशेष रूप से भौतिक संस्कृति की तुलना में अभौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, मानदंड) के पीछे रह जाने की प्रवृत्ति है, किस समाजशास्त्री से संबंधित है?
- डेविड ई. लिलिएनफेल्ड
- विलियम एफ. ओगबर्न
- रॉबर्ट मर्टन
- अर्धम अर्नेस्ट स्टिगलिट्ज़
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा विलियम एफ. ओगबर्न (William F. Ogburn) ने प्रस्तुत की थी। उन्होंने तर्क दिया कि तकनीकी और भौतिक संस्कृति (जैसे मशीनें, गैजेट) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मानदंड, कानून, मूल्य) की तुलना में तेज़ी से विकसित होती हैं, जिससे समाज में एक असंतुलन या ‘विलंब’ पैदा होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक परिवर्तन और आधुनिकता के अध्ययन में महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसी नई तकनीकों का तेजी से विकास हुआ है, लेकिन उनके उपयोग से संबंधित नैतिक और कानूनी मानदंड अभी भी विकसित हो रहे हैं।
- गलत विकल्प: अन्य दिए गए नाम समाजशास्त्र या संबंधित क्षेत्रों से हो सकते हैं, लेकिन सांस्कृतिक विलंब की अवधारणा विशेष रूप से ओगबर्न से जुड़ी है।
प्रश्न 14: भारतीय समाज में, ‘अ.श. (A.S.)’ या ‘आर्थिक दुर्बल वर्ग’ (EWS) के लिए आरक्षण का उद्देश्य क्या है?
- जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना।
- आय और संपत्ति के आधार पर वंचितों को अवसर प्रदान करना।
- धार्मिक अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाना।
- महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 15: रॉबर्ट मर्टन (Robert Merton) द्वारा प्रस्तुत ‘गुप्त कार्य’ (Latent Functions) की अवधारणा का क्या अर्थ है?
- समाजशास्त्रीय अनुसंधान के लिए आवश्यक गुप्त तरीके।
- किसी सामाजिक संस्था या प्रथा के अनपेक्षित, अप्रकट, और अक्सर लाभकारी परिणाम।
- समाज में छिपे हुए शक्ति संतुलन।
- व्यक्ति की अचेतन मानसिक प्रक्रियाएँ।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट मर्टन ने कार्यात्मक विश्लेषण (functional analysis) में ‘गुप्त कार्य’ (Latent Functions) की अवधारणा दी। इसके अनुसार, किसी भी सामाजिक संस्था या प्रथा के कुछ स्पष्ट (manifest) या इच्छित कार्य होते हैं, लेकिन कुछ अनपेक्षित, अप्रकट और अक्सर लाभप्रद परिणाम भी हो सकते हैं, जिन्हें गुप्त कार्य कहा जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: उदाहरण के लिए, किसी शहर में एक बड़ा पार्क बनाने का स्पष्ट कार्य लोगों को मनोरंजन और हरियाली प्रदान करना है, लेकिन इसका गुप्त कार्य यह हो सकता है कि यह स्थानीय समुदाय में एकता की भावना को बढ़ाता है या अपराध दर को कम करता है।
- गलत विकल्प: (a) अनुसंधान पद्धतियाँ (research methods) गुप्त नहीं होतीं। (c) शक्ति संतुलन (power balance) का अध्ययन किया जाता है, लेकिन मर्टन का ‘गुप्त कार्य’ इससे भिन्न है। (d) अचेतन मानसिक प्रक्रियाएँ फ्रायडियन मनोविज्ञान (Freudian psychology) से संबंधित हैं।
प्रश्न 16: ‘नारीवाद’ (Feminism) के सिद्धांत के अनुसार, समाज की प्रमुख समस्या क्या है?
- वर्ग असमानता
- लैंगिक असमानता और पितृसत्ता (Patriarchy)
- प्रवासी श्रमिकों का शोषण
- पर्यावरणीय क्षरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: नारीवाद के विभिन्न विचारधाओं के अनुसार, समाज की सबसे मौलिक समस्या लैंगिक असमानता और पितृसत्तात्मक व्यवस्था है, जहाँ पुरुषों को महिलाओं पर संस्थागत और सांस्कृतिक रूप से प्रभुत्व प्राप्त है।
- संदर्भ एवं विस्तार: नारीवाद का लक्ष्य लैंगिक समानता प्राप्त करना और महिलाओं के उत्पीड़न को समाप्त करना है। यह सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में महिलाओं के अनुभवों और उनके द्वारा सामना की जाने वाली असमानताओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
- गलत विकल्प: वर्ग असमानता (a) मार्क्सवाद का मुख्य सरोकार है। प्रवासी श्रमिकों का शोषण (c) और पर्यावरणीय क्षरण (d) अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे हैं, लेकिन ये नारीवादी सिद्धांत के केंद्रीय फोकस नहीं हैं, हालांकि कुछ नारीवादी इन मुद्दों को लैंगिक दृष्टिकोण से भी देखती हैं।
प्रश्न 17: ‘समुदाय’ (Community) की अवधारणा की पहचान किन विशेषताओं से होती है?
- औपचारिक नियम और नियमन
- भौगोलिक निकटता, साझा पहचान और घनिष्ठ संबंध
- केवल आर्थिक हित
- अस्थायी और स्वैच्छिक सदस्यता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘समुदाय’ को आम तौर पर भौगोलिक निकटता, साझा मूल्यों, विश्वासों, पहचान और लोगों के बीच घनिष्ठ, व्यक्तिगत संबंधों की भावना से पहचाना जाता है। फर्डीनेंड टोनीज़ (Ferdinand Tönnies) ने ‘गेमाइनशाफ्ट’ (Gemeinschaft – समुदाय) और ‘गेसेलशाफ्ट’ (Gesellschaft – समाज/संघ) के बीच अंतर किया, जिसमें गेमाइनशाफ्ट को इन सामुदायिक विशेषताओं से जोड़ा।
- संदर्भ एवं विस्तार: समुदाय में लोग एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं और उनके बीच भावनात्मक बंधन होते हैं।
- गलत विकल्प: औपचारिक नियम (a) ‘सोसाइटी’ या ‘संघ’ की विशेषता हैं। केवल आर्थिक हित (c) समुदाय को सीमित करता है। अस्थायी और स्वैच्छिक सदस्यता (d) अक्सर ‘संघ’ (association) या ‘समूह’ (group) की विशेषता होती है, न कि समुदाय की।
प्रश्न 18: भारतीय समाज में ‘अनुसूचित जनजातियों’ (Scheduled Tribes) के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
- सभी अनुसूचित जनजातियों के पास समान संस्कृति और जीवन शैली है।
- वे मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में निवास करती हैं।
- वे अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और भौगोलिक अलगाव के लिए जानी जाती हैं।
- उन्हें कभी भी किसी भी प्रकार के सरकारी संरक्षण की आवश्यकता नहीं रही है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: अनुसूचित जनजातियों को भारत के संविधान में उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और भौगोलिक अलगाव के कारण विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। वे अपनी अनूठी परंपराओं, भाषाओं और रीति-रिवाजों के लिए जानी जाती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यद्यपि वे मुख्य रूप से ग्रामीण और वनाच्छादित क्षेत्रों में निवास करती हैं, उनकी एकरूपता नहीं है; विभिन्न जनजातियों में काफी विविधता पाई जाती है।
- गलत विकल्प: (a) गलत है क्योंकि जनजातियों में सांस्कृतिक विविधता है। (b) वे मुख्य रूप से ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में रहती हैं, न कि शहरी क्षेत्रों में। (d) उन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 और अन्य प्रावधानों के तहत संरक्षण दिया गया है, जिसका अर्थ है कि उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।
प्रश्न 19: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) किस प्रकार की समस्याओं का अध्ययन करता है?
- ज्ञान के निर्माण, प्रसार और सामाजिक प्रभाव का अध्ययन।
- व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन।
- सामूहिक स्मृति की प्रकृति का अध्ययन।
- वैज्ञानिक सिद्धांतों के विकास का अध्ययन।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ज्ञान का समाजशास्त्र यह जांचता है कि ज्ञान का उत्पादन, प्रसार और उसका समाज पर पड़ने वाला प्रभाव कैसे होता है। यह इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारक हमारे ज्ञान को कैसे आकार देते हैं, और इसके विपरीत, ज्ञान समाज को कैसे प्रभावित करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: कार्ल मैनहाइम (Karl Mannheim) इस क्षेत्र के प्रमुख विचारकों में से एक हैं, जिन्होंने ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ को एक विस्तृत सैद्धांतिक ढांचे के रूप में विकसित किया।
- गलत विकल्प: (b) व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन मनोविज्ञान का क्षेत्र है। (c) सामूहिक स्मृति (collective memory) का अध्ययन किया जाता है, लेकिन यह ज्ञान के समाजशास्त्र का केवल एक पहलू हो सकता है, पूरा विषय नहीं। (d) वैज्ञानिक सिद्धांतों का विकास (development of scientific theories) ज्ञान के समाजशास्त्र का एक उप-क्षेत्र हो सकता है, लेकिन यह उसका पूरा दायरा नहीं है।
प्रश्न 20: ‘संस्था’ (Institution) के समाजशास्त्रीय अर्थ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक उदाहरण है?
- एक क्लब की सदस्यता सूची
- परिवार, शिक्षा, विवाह, धर्म
- व्यक्तिगत भावनाएँ
- किसी विशेष दिन पर लोगों का समूह
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, ‘संस्था’ (Institution) को सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए स्थापित, स्थायी और संगठित सामाजिक व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें विशेष नियम, भूमिकाएँ और संरचनाएँ होती हैं। परिवार, विवाह, शिक्षा, धर्म, और सरकार प्रमुख सामाजिक संस्थाएँ हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: ये संस्थाएँ समाज के सदस्यों के व्यवहार को विनियमित करती हैं और समाज की निरंतरता सुनिश्चित करती हैं।
- गलत विकल्प: (a) सदस्यता सूची एक दस्तावेज़ है, न कि संस्था। (c) व्यक्तिगत भावनाएँ व्यक्तिनिष्ठ (subjective) हैं। (d) लोगों का एक विशेष समूह एक ‘समूह’ (group) या ‘भीड़’ (crowd) हो सकता है, लेकिन यदि उसमें स्थायी संरचना और उद्देश्य न हों तो वह संस्था नहीं है।
प्रश्न 21: ‘पदानुक्रम’ (Hierarchy) का सिद्धांत, जो सामाजिक व्यवस्थाओं में शक्ति, विशेषाधिकार और स्थिति के स्तरों को दर्शाता है, किस प्रकार की सामाजिक संरचना से सर्वाधिक संबंधित है?
- सामूहिक चेतना
- सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रिया
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पदानुक्रम (Hierarchy) सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का एक मुख्य आधार है। सामाजिक स्तरीकरण समाज को विभिन्न स्तरों या परतों में विभाजित करने की प्रक्रिया है, जहाँ कुछ समूहों के पास दूसरों की तुलना में अधिक संपत्ति, शक्ति और प्रतिष्ठा होती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: जाति व्यवस्था, वर्ग व्यवस्था और लिंग आधारित असमानताएँ पदानुक्रम के विभिन्न रूप हैं जो समाज में पाए जाते हैं।
- गलत विकल्प: (a) सामूहिक चेतना (collective consciousness) दुर्खीम का विचार है जो सामाजिक एकता से जुड़ा है। (c) प्रतीकात्मक अंतःक्रिया (symbolic interaction) सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) है। (d) सांस्कृतिक सापेक्षवाद (cultural relativism) संस्कृतियों को उनके अपने संदर्भ में समझने का दृष्टिकोण है।
प्रश्न 22: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) के अध्ययन में ‘विकासवादी सिद्धांत’ (Evolutionary Theory) का मुख्य विचार क्या था?
- समाज एक चक्र में घूमता है, हमेशा समान चरणों से गुजरता है।
- समाज एक रैखिक (linear) मार्ग पर, सरल से जटिल रूपों की ओर विकसित होता है।
- सामाजिक परिवर्तन हमेशा हिंसक क्रांतियों के माध्यम से होता है।
- सामाजिक परिवर्तन तब होता है जब व्यक्ति अपनी इच्छाएँ बदलते हैं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: 19वीं सदी के प्रमुख समाजशास्त्री जैसे हर्बर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) और ऑगस्ट कॉम्ते (Auguste Comte) ने सामाजिक परिवर्तन के विकासवादी सिद्धांत का समर्थन किया। उनका मानना था कि समाज सरल, आदिम अवस्थाओं से विकसित होकर अधिक जटिल, औद्योगिक और सभ्य अवस्थाओं की ओर एक रैखिक पथ पर आगे बढ़ता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह सिद्धांत डार्विन के जैविक विकासवाद से प्रेरित था। हालांकि, बाद में इसकी आलोचना हुई क्योंकि यह अक्सर यूरोसेंट्रिक (Eurocentric) था और इसने सभी समाजों के लिए एक ही मार्ग सुझाया।
- गलत विकल्प: (a) चक्रीय सिद्धांत (cyclical theories) सामाजिक परिवर्तन को चक्रों में देखते हैं। (c) हिंसक क्रांति (violent revolution) मार्क्स जैसे विचारकों से जुड़ी है, न कि विकासवादी सिद्धांत से। (d) यह व्यक्ति की भूमिका को अत्यधिक महत्व देता है, जबकि विकासवादी सिद्धांत व्यापक सामाजिक संरचनाओं पर केंद्रित है।
प्रश्न 23: भारतीय ग्रामीण समाज में, ‘भूमि सुधार’ (Land Reforms) का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है?
- खेती का मशीनीकरण बढ़ाना
- भूमि का पुनर्वितरण कर कृषि श्रमिकों को भूमि के स्वामित्व से वंचित करना
- कृषि उत्पादन बढ़ाना और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता कम करना
- केवल शहरी विकास को प्रोत्साहित करना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारत में भूमि सुधारों का प्राथमिक उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से भूमि का पुनर्वितरण करके भूमिहीन कृषि श्रमिकों को भूमि का स्वामित्व प्रदान करना, बिचौलियों (जैसे जमींदारों) को समाप्त करना, कृषि उत्पादकता बढ़ाना और ग्रामीण समाज में आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को कम करना रहा है।
- संदर्भ एवं विस्तार: ये सुधार भारत की स्वतंत्रता के बाद से सरकार की नीतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं, हालांकि उनके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी रही हैं।
- गलत विकल्प: (a) मशीनीकरण एक अलग नीति है। (b) यह उद्देश्य के विपरीत है; भूमि सुधारों का उद्देश्य कृषि श्रमिकों को स्वामित्व देना है, वंचित करना नहीं। (d) इसका संबंध ग्रामीण विकास से है, न कि केवल शहरी विकास से।
प्रश्न 24: ‘प्रस्थिति’ (Status) और ‘भूमिका’ (Role) की अवधारणाएं समाजशास्त्र में किसके द्वारा विकसित की गईं?
- कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
- एमिल दुर्खीम और मैक्स वेबर
- रॉल्फ लिंटन (Ralph Linton) और रॉबर्ट मर्टन (Robert Merton)
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड और चार्ल्स कूली
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रस्थिति (Status) समाज में व्यक्ति के पद या स्थान को संदर्भित करती है, और भूमिका (Role) उस प्रस्थिति से जुड़ी अपेक्षाओं और व्यवहारों का समूह है। इन अवधारणाओं को विशेष रूप से मानवशास्त्री रॉल्फ लिंटन ने व्यवस्थित रूप से विकसित किया, और रॉबर्ट मर्टन ने इसे आगे बढ़ाते हुए ‘भूमिका सेट’ (role set) और ‘भूमिका संघर्ष’ (role conflict) जैसी बारीकियों को समझाया।
- संदर्भ एवं विस्तार: ये अवधारणाएँ सामाजिक संरचना और अंतःक्रिया को समझने के लिए मूलभूत हैं।
- गलत विकल्प: (a) मार्क्स और एंगेल्स वर्ग और संघर्ष पर केंद्रित थे। (b) दुर्खीम और वेबर मुख्य रूप से सामाजिक व्यवस्था, तर्कसंगतता और प्रकार्यों पर केंद्रित थे। (d) मीड और कूली प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से जुड़े हैं, जो व्यक्तिगत आत्म-बोध पर अधिक केंद्रित है, हालांकि भूमिका की समझ वहां भी है।
प्रश्न 25: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का अर्थ क्या है?
- समाज में लोगों की शारीरिक आवाजाही।
- एक व्यक्ति या समूह का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी में जाना।
- समाज में सत्ता का वितरण।
- सामाजिक मानदंडों में परिवर्तन।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति या समूह एक सामाजिक स्तर या स्थिति से दूसरे स्तर या स्थिति में जाते हैं। यह ऊर्ध्वाधर (vertical – ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (horizontal – समान स्तर पर) हो सकती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह आधुनिक समाजों की एक प्रमुख विशेषता मानी जाती है, विशेष रूप से उन समाजों में जहाँ जन्म के बजाय योग्यता और प्रयास को महत्व दिया जाता है।
- गलत विकल्प: (a) शारीरिक आवाजाही ‘प्रवास’ (migration) या ‘गति’ (movement) हो सकती है, लेकिन सामाजिक गतिशीलता नहीं। (c) सत्ता का वितरण ‘शक्ति संरचना’ (power structure) का हिस्सा है। (d) सामाजिक मानदंडों में परिवर्तन ‘सामाजिक परिवर्तन’ (social change) का एक पहलू है, न कि सामाजिक गतिशीलता।