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समाजशास्त्र की दैनिक परीक्षा: अपनी अवधारणाओं को परखें!

समाजशास्त्र की दैनिक परीक्षा: अपनी अवधारणाओं को परखें!

समाजशास्त्र की दुनिया में एक नई सुबह, एक नई चुनौती! क्या आप अपनी वैचारिक स्पष्टता को तेज करने और विश्लेषणात्मक कौशल को निखारने के लिए तैयार हैं? आज के प्रश्नपत्र के साथ अपनी समाजशास्त्रीय यात्रा को एक नया आयाम दें और अपनी तैयारी को मजबूत करें।

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘औद्योगीकरण’ की अवधारणा समाजशास्त्रीय विश्लेषण में किस प्रमुख विचारक से जुड़ी है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. अगस्त कॉम्टे

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: मैक्स वेबर ने औद्योगीकरण को केवल आर्थिक परिवर्तन के रूप में नहीं, बल्कि तर्कसंगतता (rationality), नौकरशाही (bureaucracy) और ‘जादू टोना’ (disenchantment) के फैलाव के व्यापक सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन के रूप में विश्लेषण किया। उनकी पुस्तक ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने औद्योगीकरण के विकास को पश्चिमी समाजों में प्रोटेस्टेंट नैतिकता के उदय से जोड़ा, जिसने पूंजीवाद के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा कीं। उन्होंने आधुनिक समाज को तर्कसंगतता के बढ़ते प्रभुत्व के रूप में देखा।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और उत्पादन के साधनों पर आधारित आर्थिक संरचना पर था। एमिल दुर्खीम का काम सामाजिक एकजुटता (social solidarity) और श्रम के विभाजन (division of labor) पर केंद्रित था। अगस्त कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है, लेकिन उनका विश्लेषण औद्योगीकरण की सूक्ष्मता पर वेबर जैसा नहीं था।

प्रश्न 2: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की?

  1. विलियम ओग्बर्न
  2. एमिल दुर्खीम
  3. हरबर्ट स्पेंसर
  4. रॉबर्ट मर्टन

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: विलियम ओग्बर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा दी, जिसके अनुसार भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मूल्य, कानून, नैतिकता) की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलती है, जिससे समाज में तालमेल की कमी और संघर्ष उत्पन्न होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: ओग्बर्न ने अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज’ (1922) में इस विचार को प्रस्तुत किया। यह अवधारणा बताती है कि कैसे तकनीकी प्रगति सामाजिक और नैतिक प्रगति से आगे निकल जाती है, जिससे सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं।
  • गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने ‘सामूहिक चेतना’ (collective conscience) और ‘सामाजिक एकजुटता’ पर काम किया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का विचार दिया। रॉबर्ट मर्टन ने ‘मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत’ (middle-range theories) और ‘प्रकट एवं अप्रकट कार्य’ (manifest and latent functions) जैसी अवधारणाएं दीं।

प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन-सा समाजशास्त्री ‘वर्ण व्यवस्था’ को एक ‘क्रमिक श्रेणीबद्ध’ (hierarchical) व्यवस्था के रूप में देखता है, जहाँ प्रत्येक वर्ण का अपना निश्चित स्थान और कर्तव्य है?

  1. एम.एन. श्रीनिवास
  2. इरावती कर्वे
  3. जी.एस. घुरिये
  4. लुई डुमॉन्ट

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: लुई डुमॉन्ट ने अपनी कृति ‘होमो हायरार्किकस’ (Homo Hierarchicus) में भारतीय जाति व्यवस्था को एक ऐसी ‘श्रेणीबद्ध’ व्यवस्था के रूप में प्रस्तुत किया है जहाँ शुद्धता (purity) और प्रदूषण (pollution) के विचारों के आधार पर विभिन्न जातियों को एक पदानुक्रम में रखा गया है। इस व्यवस्था में व्यक्तिगत स्थिति सामाजिक संबंधों और कर्तव्यों को निर्धारित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: डुमॉन्ट का दृष्टिकोण संरचनात्मक और प्रतीकात्मक था, जो जाति को केवल एक सामाजिक स्तरीकरण के रूप में नहीं, बल्कि एक पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के रूप में देखता था जिसमें धार्मिक और वैचारिक आधार प्रमुख थे।
  • गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) जैसी अवधारणाएं दीं और जाति को गतिशील रूप में देखा। इरावती कर्वे ने जाति को एक ‘विस्तृत परिवार’ के रूप में देखा। जी.एस. घुरिये ने जाति व्यवस्था के विशिष्ट लक्षणों पर जोर दिया, लेकिन डुमॉन्ट की तरह इसे एक पूर्ण ‘श्रेणीबद्ध’ व्यवस्था के रूप में नहीं देखा।

प्रश्न 4: ‘अराजकता’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों में गिरावट को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से मुख्य रूप से जुड़ी है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. जॉर्ज सिमेल

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: एमिल दुर्खीम ने ‘अराजकता’ की अवधारणा को सामाजिक नियंत्रण और सामाजिक व्यवस्था के टूटने के संदर्भ में विकसित किया। यह तब उत्पन्न होती है जब समाज में नैतिक और सामाजिक मानदंडों का अभाव या अस्पष्टता होती है, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी प्रसिद्ध कृतियों ‘द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ और ‘सुसाइड’ में इस अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने दिखाया कि कैसे औद्योगिक समाज में पारंपरिक बंधन कमजोर पड़ने से अराजकता बढ़ सकती है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का ध्यान वर्ग संघर्ष पर था। मैक्स वेबर ने तर्कसंगतता और नौकरशाही पर जोर दिया। जॉर्ज सिमेल ने व्यक्ति और समाज के बीच सूक्ष्म सामाजिक अंतःक्रियाओं का अध्ययन किया।

प्रश्न 5: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के ‘संघर्ष सिद्धांत’ (Conflict Theory) का प्रमुख प्रस्तावक कौन है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. मैक्स वेबर
  4. टैल्कॉट पार्सन्स

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: कार्ल मार्क्स को सामाजिक स्तरीकरण के संघर्ष सिद्धांत का प्रमुख प्रस्तावक माना जाता है। उनके अनुसार, समाज विभिन्न वर्गो में विभाजित है (मुख्यतः बुर्जुआ और सर्वहारा) जो उत्पादन के साधनों के स्वामित्व को लेकर निरंतर संघर्षरत रहते हैं, और यही संघर्ष सामाजिक स्तरीकरण का मूल कारण है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद (historical materialism) के अपने सिद्धांत के माध्यम से समझाया कि कैसे उत्पादन की शक्तियां और उत्पादन के संबंध समाज के ढांचे को निर्धारित करते हैं, जिससे वर्ग संरचना और संघर्ष उत्पन्न होता है।
  • गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता पर बल दिया। मैक्स वेबर ने वर्ग, प्रतिष्ठा (status) और शक्ति (power) के आधार पर बहुआयामी स्तरीकरण का विचार दिया। टैल्कॉट पार्सन्स ने संरचनात्मक-प्रक्रियात्मक (structural-functionalist) दृष्टिकोण अपनाया।

प्रश्न 6: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख सिद्धांतकारों में कौन शामिल हैं?

  1. अल्फ्रेड शुट्ज
  2. हर्बर्ट ब्लूमर
  3. ई. सी. हूज
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के विकास में इन सभी विचारकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) को इसका जनक माना जाता है, जबकि हर्बर्ट ब्लूमर ने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ शब्द गढ़ा और इसके मूल सिद्धांतों को व्यवस्थित किया। अल्फ्रेड शुट्ज ने घटना विज्ञान (phenomenology) के माध्यम से इसमें योगदान दिया, और ई. सी. हूज (E.C. Hughes) ने श्रमिक वर्गों और व्यवसायों के अध्ययन में इस दृष्टिकोण का प्रयोग किया।
  • संदर्भ और विस्तार: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति के अपने सामाजिक परिवेश के साथ प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से होने वाली अंतःक्रिया पर केंद्रित है, और यह बताता है कि कैसे इन अंतःक्रियाओं से सामाजिक वास्तविकता का निर्माण होता है।
  • गलत विकल्प: चूंकि सभी विकल्प सही योगदानकर्ताओं को दर्शाते हैं, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है।

प्रश्न 7: भारतीय समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रतिपादित ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा का क्या अर्थ है?

  1. पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण
  2. निम्न जाति द्वारा उच्च जाति की प्रथाओं, कर्मकांडों और जीवनशैली को अपनाना
  3. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
  4. शहरीकरण के कारण होने वाले सामाजिक परिवर्तन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ शब्द का प्रयोग यह समझाने के लिए किया कि कैसे भारतीय समाज में निम्न जातियाँ या जनजातियाँ उच्च जातियों (विशेष रूप से द्विजातियों) की जीवनशैली, कर्मकांडों, रीति-रिवाजों और विचारों को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाने का प्रयास करती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में पहली बार प्रस्तुत की गई थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता।
  • गलत विकल्प: (a) पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) कहलाता है। (c) आधुनिकीकरण एक व्यापक अवधारणा है जिसमें तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन शामिल हैं। (d) शहरीकरण एक जनसांख्यिकीय और भौगोलिक प्रक्रिया है।

प्रश्न 8: ‘संरचनात्मक-प्रक्रियात्मक सिद्धांत’ (Structural-Functionalist Theory) के अनुसार, समाज को एक ऐसे तंत्र (organism) के रूप में देखा जाता है जिसके विभिन्न अंग (संरचनाएं) एक-दूसरे के साथ मिलकर समाज के समग्र अस्तित्व (कार्य) को बनाए रखते हैं। इस सिद्धांत के प्रमुख प्रस्तावक कौन हैं?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. टैल्कॉट पार्सन्स
  4. जॉर्ज हर्बर्ट मीड

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: टैल्कॉट पार्सन्स को संरचनात्मक-प्रक्रियात्मक सिद्धांत का प्रमुख प्रस्तावक माना जाता है। उन्होंने समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा जिसकी विभिन्न संरचनाएं (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, राजनीति) अपने विशिष्ट कार्यों (functions) के माध्यम से समाज की स्थिरता और व्यवस्था बनाए रखने में योगदान करती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने AGIL मॉडल (Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency) के माध्यम से सामाजिक प्रणालियों के चार आवश्यक कार्यों का वर्णन किया। उनके काम ने समाजशास्त्रीय सिद्धांत पर गहरा प्रभाव डाला।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर मुख्य रूप से संघर्ष सिद्धांत और व्याख्यात्मक समाजशास्त्र से जुड़े हैं। जॉर्ज हर्बर्ट मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के जनक हैं।

प्रश्न 9: ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) भारतीय समाज की एक प्रमुख सामाजिक समस्या है, जो किस व्यवस्था से गहराई से जुड़ी हुई है?

  1. जाति व्यवस्था
  2. वर्ग व्यवस्था
  3. आदिवासी व्यवस्था
  4. धार्मिक व्यवस्था

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: अस्पृश्यता भारतीय जाति व्यवस्था का एक प्रत्यक्ष परिणाम है। यह उन जातियों से संबंधित है जिन्हें परंपरागत रूप से ‘अछूत’ माना जाता था और जिन्हें उच्च जातियों द्वारा अशुद्ध या अपवित्र समझा जाता था।
  • संदर्भ और विस्तार: अस्पृश्यता का संबंध शुद्धता-अशुद्धता (purity-pollution) की अवधारणाओं से है, जिसके कारण तथाकथित निम्न जातियों को सामाजिक बहिष्कार, सार्वजनिक स्थानों के उपयोग से इनकार और अन्य भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है। भारतीय संविधान ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है।
  • गलत विकल्प: वर्ग व्यवस्था में आर्थिक स्थिति के आधार पर स्तरीकरण होता है। आदिवासी व्यवस्था जनजातीय समुदायों से संबंधित है। धार्मिक व्यवस्था सामान्यतः आस्था और पूजा पद्धतियों से संबंधित है, हालांकि यह कभी-कभी जाति से जुड़ी हो सकती है।

प्रश्न 10: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया का समाजशास्त्रीय विश्लेषण किस पर अधिक बल देता है?

  1. परंपरागत समाजों का पश्चिमी समाजों के समान बनना
  2. औद्योगीकरण, नगरीकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण
  3. तकनीकी विकास की सार्वभौमिकता
  4. पूंजीवाद का उदय

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, आधुनिकीकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें मुख्य रूप से औद्योगीकरण (अधिक उत्पादन और रोजगार), नगरीकरण (ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का स्थानांतरण) और धर्मनिरपेक्षीकरण (धर्म के सार्वजनिक प्रभाव में कमी) जैसे परिवर्तन शामिल होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह केवल तकनीकी या आर्थिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संरचनाओं में भी परिवर्तन लाता है, जैसे कि शिक्षा का प्रसार, तर्कसंगत नौकरशाही का विकास और व्यक्तिगत अधिकारों का महत्व बढ़ना।
  • गलत विकल्प: (a) यद्यपि पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण का एक पहलू हो सकता है, आधुनिकीकरण की अवधारणा इससे अधिक व्यापक है और हर समाज के लिए एक समान मॉडल का अनुकरण नहीं करती। (c) तकनीकी विकास एक महत्वपूर्ण घटक है, लेकिन आधुनिकीकरण केवल इस तक सीमित नहीं है। (d) पूंजीवाद आधुनिकीकरण से संबंधित है, लेकिन यह उसका एकमात्र या अंतिम परिणाम नहीं है।

प्रश्न 11: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का क्या अर्थ है?

  1. एक ही पीढ़ी में व्यक्ति या समूह का सामाजिक स्थिति में परिवर्तन
  2. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सामाजिक स्थिति का परिवर्तन
  3. लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना
  4. समाज में विभिन्न वर्गों का संघर्ष

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: ‘सामाजिक गतिशीलता’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति या समूह की एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन से है। जब यह परिवर्तन एक ही पीढ़ी के भीतर होता है, तो इसे ‘क्षैतिज गतिशीलता’ (Horizontal Mobility) या ‘अंतः-पीढ़ीगत गतिशीलता’ (Intra-generational Mobility) कहा जाता है। जब यह परिवर्तन पीढ़ियों के बीच होता है, तो इसे ‘ऊर्ध्वाधर गतिशीलता’ (Vertical Mobility) या ‘अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता’ (Inter-generational Mobility) कहा जाता है। प्रश्न का सबसे सटीक उत्तर ‘एक ही पीढ़ी में व्यक्ति या समूह का सामाजिक स्थिति में परिवर्तन’ है, जो व्यापक रूप से गतिशीलता को दर्शाता है, हालांकि विकल्प (b) भी गतिशीलता का एक रूप है। प्रश्न के शब्दों के अनुसार, (a) सबसे व्यापक उत्तर है। (यदि प्रश्न के विकल्प में ‘क्षैतिज’ या ‘ऊर्ध्वाधर’ स्पष्ट रूप से दिए होते तो उत्तर भिन्न हो सकता था, लेकिन यहाँ सामान्य गतिशीलता पूछी गई है)।
  • संदर्भ और विस्तार: गतिशीलता यह दर्शाती है कि कोई समाज कितना खुला या बंद है। खुला समाज अधिक गतिशीलता की अनुमति देता है।
  • गलत विकल्प: (b) यह अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता है। (c) यह भौगोलिक गतिशीलता है, सामाजिक नहीं। (d) यह सामाजिक संघर्ष की अवधारणा है।

प्रश्न 12: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) किस प्रकार के प्रश्नों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है?

  1. समाज में शक्ति संरचना का विश्लेषण
  2. ज्ञान के सामाजिक निर्माण और इसके प्रभाव का विश्लेषण
  3. व्यक्तिगत मनोविज्ञान का अध्ययन
  4. अर्थव्यवस्था के विकास के नियम

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: ज्ञान के समाजशास्त्र का मुख्य सरोकार यह समझना है कि ज्ञान कैसे सामाजिक रूप से निर्मित होता है, अर्थात, सामाजिक परिस्थितियाँ, संस्थाएँ, हित और अंतःक्रियाएँ हमारे विचारों, विश्वासों और ज्ञान प्रणालियों को कैसे आकार देती हैं। यह ज्ञान के सामाजिक मूल और इसके सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: कार्ल मैनहाइम (Karl Mannheim) इस क्षेत्र के प्रमुख विचारकों में से एक हैं, जिन्होंने ‘Ideology and Utopia’ में इस विषय पर विस्तृत चर्चा की।
  • गलत विकल्प: (a) यह राजनीतिक समाजशास्त्र या शक्ति के समाजशास्त्र से संबंधित है। (c) यह मनोविज्ञान का क्षेत्र है। (d) यह अर्थशास्त्र या आर्थिक समाजशास्त्र से संबंधित है।

प्रश्न 13: ‘रैंकिंग’ (Ranking) का सिद्धांत, जिसमें सामाजिक समूह को उनकी प्रतिष्ठा, शक्ति और धन के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, किस विचारक से मुख्य रूप से जुड़ा है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. एमिल दुर्खीम
  3. मैक्स वेबर
  4. औगस्ट कॉम्टे

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: मैक्स वेबर ने सामाजिक स्तरीकरण को केवल आर्थिक वर्ग (जैसे मार्क्स ने) तक सीमित न रखकर, तीन स्वतंत्र आयामों – वर्ग (class), प्रतिष्ठा (status) और शक्ति (party/power) – के आधार पर परिभाषित किया। इन तीनों आयामों का संयोजन किसी व्यक्ति या समूह की सामाजिक स्थिति को निर्धारित करता है, जो एक प्रकार की ‘रैंकिंग’ है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर का बहुआयामी दृष्टिकोण मार्क्स के एकल-आयामी (आर्थिक) दृष्टिकोण से भिन्न था और सामाजिक स्तरीकरण के अधिक परिष्कृत विश्लेषण की ओर ले गया।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने मुख्य रूप से आर्थिक वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता पर जोर दिया। औगस्ट कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है, लेकिन उनका स्तरीकरण का सिद्धांत वेबर जैसा जटिल नहीं था।

प्रश्न 14: ‘अधिकारिता’ (Empowerment) की अवधारणा समाजशास्त्र में अक्सर किस संदर्भ में प्रयोग की जाती है?

  1. अत्याचार और उत्पीड़न को बढ़ावा देना
  2. वंचित समूहों को अपनी आवाज उठाने और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करना
  3. व्यक्तिगत एकांत को बढ़ाना
  4. सामाजिक असमानता को मजबूत करना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: अधिकारिता (Empowerment) का अर्थ है व्यक्तियों या समूहों को, विशेष रूप से उन लोगों को जिन्हें ऐतिहासिक रूप से वंचित या शक्तिहीन बनाया गया है, अपनी नियति को नियंत्रित करने, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने और अपने अधिकारों का दावा करने के लिए सशक्त बनाना।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा विशेष रूप से नारीवाद, दलित अध्ययन और अन्य सामाजिक न्याय आंदोलनों में महत्वपूर्ण है, जहाँ इसका उद्देश्य शक्ति असंतुलन को कम करना और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है।
  • गलत विकल्प: (a), (c) और (d) अधिकारिता के मूल अर्थ के विपरीत हैं, क्योंकि यह सकारात्मक परिवर्तन और शक्ति के पुनर्वितरण की बात करती है।

प्रश्न 15: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा से क्या तात्पर्य है?

  1. व्यक्ति की व्यक्तिगत संपत्ति और वित्तीय निवेश
  2. किसी व्यक्ति की शिक्षा और कौशल का स्तर
  3. सामाजिक संबंधों, नेटवर्क और आपसी विश्वास से उत्पन्न लाभ
  4. भौतिक संसाधनों का संचय

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: सामाजिक पूंजी से तात्पर्य उन संसाधनों से है जो लोगों को उनके सामाजिक नेटवर्क (रिश्ते, मित्र, सहकर्मी) के माध्यम से प्राप्त होते हैं। इसमें विश्वास, सहयोग और पारस्परिकता के तत्व शामिल हैं जो सामूहिक क्रियाओं को सुगम बनाते हैं और व्यक्तियों तथा समूहों को लाभ पहुँचाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) और रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) जैसे समाजशास्त्रियों ने इस अवधारणा को विकसित किया है। सामाजिक पूंजी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक भागीदारी जैसे विभिन्न परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) क्रमशः वित्तीय पूंजी, मानव पूंजी और भौतिक पूंजी के उदाहरण हैं, न कि सामाजिक पूंजी के।

प्रश्न 16: ‘धर्मनिरपेक्षीकरण’ (Secularization) की प्रक्रिया समाजशास्त्रीय रूप से किस बदलाव को दर्शाती है?

  1. धार्मिक अंधविश्वासों का बढ़ना
  2. धर्म का सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरण और तर्कसंगतता का बढ़ता प्रभुत्व
  3. सभी देशों में एक ही धर्म का प्रसार
  4. धार्मिक संस्थाओं की बढ़ती शक्ति

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: धर्मनिरपेक्षीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें धर्म का समाज में सार्वजनिक, संस्थागत और राजनीतिक प्रभाव कम हो जाता है, और समाज पर तर्कसंगत, धर्मनिरपेक्ष (secular) विचारों और संस्थाओं का प्रभुत्व बढ़ जाता है। धर्म की भूमिका अक्सर व्यक्तिगत और निजी जीवन तक सीमित हो जाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया अक्सर आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और वैज्ञानिक प्रगति के साथ जुड़ी होती है। हालाँकि, समाजशास्त्रियों में धर्मनिरपेक्षीकरण की दिशा और सीमा पर बहस जारी है।
  • गलत विकल्प: (a) यह धर्मनिरपेक्षीकरण के विपरीत है। (c) यह सार्वभौमीकरण (universalization) या प्रसार की प्रक्रिया है, धर्मनिरपेक्षीकरण नहीं। (d) यह धर्मनिरपेक्षीकरण के विपरीत दिशा है।

प्रश्न 17: ‘नगरीकरण’ (Urbanization) को समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में कैसे परिभाषित किया जाता है?

  1. शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व बढ़ना
  2. ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर लोगों का प्रवास और शहरी जीवन शैली का प्रसार
  3. शहरी विकास और अवसंरचना में वृद्धि
  4. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच की दूरी का कम होना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: नगरीकरण केवल जनसंख्या घनत्व या शहरी विकास से कहीं अधिक है; यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया भी है। इसमें मुख्य रूप से ग्रामीण आबादी का शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप शहरी जीवन शैली, मूल्यों, व्यवहारों और सामाजिक संरचनाओं का प्रसार होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: नगरीकरण ने आधुनिक समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे नए सामाजिक वर्ग, संस्थाएँ और जीवन के तरीके उत्पन्न हुए हैं।
  • गलत विकल्प: (a) जनसंख्या घनत्व नगरीकरण का एक परिणाम है, लेकिन पूरी परिभाषा नहीं। (c) अवसंरचना में वृद्धि नगरीकरण का एक पहलू है। (d) यह एक अप्रत्यक्ष परिणाम हो सकता है, लेकिन मूल परिभाषा नहीं।

प्रश्न 18: ‘आदिवासी समाज’ (Tribal Society) की निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता प्रमुख है?

  1. विस्तृत संपत्ति का स्वामित्व
  2. लिखित कानून और जटिल नौकरशाही
  3. गहरे सामुदायिक बंधन, साझा क्षेत्र और सांस्कृतिक पहचान
  4. औद्योगिक उत्पादन की प्रधानता

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: आदिवासी समाजों को अक्सर गहरे सामुदायिक बंधन (strong community ties), साझा भौगोलिक क्षेत्र (common territory) और एक विशिष्ट, अक्सर अलिखित, सांस्कृतिक पहचान (distinct cultural identity) की विशेषता से पहचाना जाता है। उनकी सामाजिक व्यवस्था अक्सर नातेदारी (kinship) पर आधारित होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: इन समाजों में प्रायः संपत्ति का सामुदायिक स्वामित्व होता है (a गलत), कानून अलिखित और परंपराओं पर आधारित होते हैं (b गलत), और वे आमतौर पर गैर-औद्योगिक होते हैं (d गलत)।
  • गलत विकल्प: जैसा कि ऊपर बताया गया है, (a), (b), और (d) आदिवासी समाजों की प्रमुख विशेषताएँ नहीं हैं।

प्रश्न 19: ‘अशास्त्रीय समाजशास्त्र’ (Interpretive Sociology) का मुख्य जोर किस पर होता है?

  1. वस्तुनिष्ठ सामाजिक नियमों की खोज
  2. लोगों के कार्यों के पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों (subjective meanings) को समझना
  3. सामाजिक संरचनाओं का गणितीय विश्लेषण
  4. बड़े पैमाने पर सामाजिक घटनाओं का सांख्यिकीय अवलोकन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: अशास्त्रीय या व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology), जिसे अक्सर ‘वर्स्टेहेन’ (Verstehen) दृष्टिकोण से जोड़ा जाता है, समाजशास्त्रीय अध्ययन का वह तरीका है जो सामाजिक घटनाओं को समझने के लिए व्यक्तियों द्वारा अपनी क्रियाओं को दिए जाने वाले व्यक्तिपरक अर्थों और इरादों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मैक्स वेबर इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रस्तावक थे। उनका मानना था कि समाजशास्त्र केवल बाहरी घटनाओं का अध्ययन नहीं है, बल्कि मानव व्यवहार के पीछे छिपे अर्थों को समझना भी है।
  • गलत विकल्प: (a) और (d) प्रत्यक्षवादी (positivist) या मात्रात्मक (quantitative) दृष्टिकोण से जुड़े हैं। (c) गणितीय विश्लेषण का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन अशास्त्रीय समाजशास्त्र का मुख्य जोर अर्थों को समझने पर है, न कि केवल गणित पर।

प्रश्न 20: ‘सामाजिक समस्या’ (Social Problem) की समाजशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, यह क्या है?

  1. ऐसी व्यक्तिगत असुविधा जिसका निवारण स्वयं किया जा सके
  2. समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से द्वारा अनुभव की जाने वाली एक स्थिति जिसे नकारात्मक माना जाता है और जिसके लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है
  3. केवल आर्थिक असमानता
  4. ऐतिहासिक रूप से हुई घटनाएँ जिनका वर्तमान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: एक सामाजिक समस्या वह स्थिति है जिसे समाज का एक बड़ा वर्ग नकारात्मक मानता है, जिससे सामाजिक व्यवस्था, कल्याण या मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और जिसे हल करने के लिए सामूहिक या संस्थागत प्रयासों की आवश्यकता होती है। यह केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि सामूहिक चेतना को प्रभावित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: गरीबी, अपराध, बेरोजगारी, भेदभाव आदि सामाजिक समस्याएं हैं क्योंकि ये समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित करती हैं और समाज की सामूहिक चेतना के लिए चिंता का विषय बनती हैं।
  • गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत समस्याओं को आमतौर पर सामाजिक समस्याओं के रूप में नहीं देखा जाता जब तक कि वे व्यापक न हों। (c) आर्थिक असमानता एक सामाजिक समस्या का *कारण* या *स्वरूप* हो सकती है, लेकिन यह स्वयं परिभाषा नहीं है। (d) ऐतिहासिक घटनाओं का वर्तमान पर प्रभाव हो सकता है, लेकिन वे स्वयं में वर्तमान सामाजिक समस्या नहीं हैं।

प्रश्न 21: ‘आत्म’ (Self) की अवधारणा, जो सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से विकसित होती है, किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत का केंद्रीय तत्व है?

  1. संरचनात्मक-प्रक्रियात्मक सिद्धांत
  2. संघर्ष सिद्धांत
  3. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  4. घटना विज्ञान (Phenomenology)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का मानना है कि ‘आत्म’ (Self) एक जन्मजात विशेषता नहीं है, बल्कि सामाजिक अंतःक्रियाओं, विशेष रूप से भाषा और प्रतीकों के माध्यम से विकसित होती है। जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने ‘मैं’ (I) और ‘मी’ (Me) की अवधारणाओं के माध्यम से समझाया कि कैसे हम दूसरों के दृष्टिकोण को ग्रहण करके और समाज के ‘महत्वपूर्ण अन्य’ (Significant Others) की भूमिकाओं को अपनाकर अपने आत्म का निर्माण करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड के अनुसार, आत्म दर्पण की तरह होता है, जो दूसरों के साथ हमारी अंतःक्रियाओं को दर्शाता है।
  • गलत विकल्प: (a) और (b) बड़े पैमाने की संरचनाओं और संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, न कि व्यक्तिगत ‘आत्म’ के विकास पर। (d) घटना विज्ञान व्यक्तिपरक अनुभव के निर्माण पर केंद्रित है, लेकिन ‘आत्म’ के विकास पर प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद जितना विस्तार से नहीं।

प्रश्न 22: ‘पाश्चात्यकरण’ (Westernization) की अवधारणा क्या दर्शाती है?

  1. सभी संस्कृतियों का एक समान पश्चिमी संस्कृति में विलीन हो जाना
  2. पश्चिमी देशों की जीवन शैली, प्रौद्योगिकी, मूल्यों और संस्थानों को अपनाना
  3. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पश्चिमी देशों का प्रभुत्व
  4. विश्वव्यापी शिक्षा का प्रसार

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: पाश्चात्यकरण से तात्पर्य गैर-पश्चिमी समाजों द्वारा पश्चिमी समाजों की जीवन शैली, रीति-रिवाजों, प्रौद्योगिकी, मूल्यों, कला, फैशन और राजनीतिक-आर्थिक प्रणालियों को अपनाने की प्रक्रिया से है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर उपनिवेशवाद के ऐतिहासिक संदर्भ में चर्चा की जाती है, लेकिन यह एक सतत प्रक्रिया है जो वैश्वीकरण के युग में भी जारी है। एम.एन. श्रीनिवास ने इसका प्रयोग भारतीय संदर्भ में किया था।
  • गलत विकल्प: (a) यह पाश्चात्यकरण का एक संभावित परिणाम हो सकता है, लेकिन इसकी परिभाषा नहीं। (c) यह एक आर्थिक घटना है। (d) शिक्षा का प्रसार एक व्यापक प्रक्रिया है, जो पाश्चात्यकरण से जुड़ी हो सकती है, लेकिन यह इसकी परिभाषा नहीं है।

प्रश्न 23: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा का अर्थ क्या है?

  1. किसी समाज में व्यक्तियों का समूह
  2. समाज में सामाजिक संबंधों, संस्थाओं और भूमिकाओं का एक व्यवस्थित पैटर्न
  3. मानव निर्मित भौतिक ढाँचे
  4. किसी समाज की जनसंख्या का आकार

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: सामाजिक संरचना समाज के विभिन्न तत्वों (जैसे परिवार, शिक्षा, सरकार) के बीच स्थायी और व्यवस्थित संबंधों के पैटर्न को संदर्भित करती है। ये संबंध व्यक्तियों को भूमिकाएँ और अपेक्षाएँ प्रदान करते हैं, जो समाज को स्थिरता और व्यवस्था प्रदान करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अदृश्य होती है लेकिन हमारे व्यवहार और सामाजिक जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। संरचनात्मक-प्रक्रियात्मक सिद्धांतकार इसे विशेष महत्व देते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) व्यक्तियों का समूह सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा है, लेकिन संरचना नहीं। (c) यह भौतिक संरचना है, सामाजिक नहीं। (d) जनसंख्या का आकार जनसांख्यिकी से संबंधित है।

प्रश्न 24: ‘भूमिहार’ (Bhumihar) और ‘भूमिपुत्र’ (Son of the soil) जैसी अवधारणाएं भारतीय समाजशास्त्रीय अध्ययन में किन मुद्दों से संबंधित हैं?

  1. वर्ग संघर्ष और कृषि संबंध
  2. धार्मिक पहचान और अनुष्ठान
  3. जाति व्यवस्था और भू-स्वामित्व
  4. शहरीकरण और प्रवास

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: ‘भूमिहार’ एक विशिष्ट जाति समूह है जिसका ऐतिहासिक रूप से भू-स्वामित्व से गहरा संबंध रहा है। ‘भूमिपुत्र’ (son of the soil) जैसी अवधारणाएँ अक्सर स्थानीय पहचान, क्षेत्रवाद और स्थानीय संसाधनों पर अधिकार के दावों से जुड़ी होती हैं, जो अक्सर जाति और वर्ग के साथ मिलकर भू-स्वामित्व और सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती हैं। यह सभी मिलकर जाति व्यवस्था, भू-स्वामित्व और उससे जुड़े सामाजिक-आर्थिक शक्ति संबंधों का एक जटिल ताना-बाना बुनते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: भारतीय कृषि समाज के अध्ययन में इन शब्दों का प्रयोग भूमि पर नियंत्रण, सामाजिक पदानुक्रम और स्थानीय समुदायों में शक्ति की गतिशीलता को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • गलत विकल्प: (a) वर्ग संघर्ष और कृषि संबंध प्रासंगिक हो सकते हैं, लेकिन ये शब्द सीधे तौर पर भू-स्वामित्व और जाति के साथ अधिक जुड़े हैं। (b) धार्मिक पहचान और अनुष्ठान भी जाति से जुड़ सकते हैं, लेकिन ये मुख्य फोकस नहीं हैं। (d) शहरीकरण और प्रवास का इससे सीधा संबंध नहीं है।

प्रश्न 25: ‘सामूहिकता’ (Collectivism) और ‘व्यक्तिवाद’ (Individualism) सामाजिक मूल्यों के दो विपरीत ध्रुव हैं। निम्न में से कौन सा समाज ‘सामूहिकता’ को अधिक महत्व देता है?

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका
  2. पश्चिमी यूरोपीय देश
  3. पूर्वी एशियाई समाज (जैसे जापान, चीन)
  4. ऑस्ट्रेलिया

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही उत्तर: पूर्वी एशियाई समाज, जैसे कि जापान, चीन, और दक्षिण कोरिया, पारंपरिक रूप से सामूहिकता को अधिक महत्व देते हैं। इनमें परिवार, समुदाय, राष्ट्र या संगठन के हितों को व्यक्ति के हितों से ऊपर रखा जाता है। निर्णय लेते समय समूह की एकता और सद्भाव पर जोर दिया जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: इसके विपरीत, संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देश व्यक्तिवाद को अधिक महत्व देते हैं, जहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता, स्वायत्तता और आत्म-अभिव्यक्ति को प्राथमिकता दी जाती है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) मुख्य रूप से व्यक्तिवादी समाजों के उदाहरण हैं, जहाँ व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता पर अधिक बल दिया जाता है।

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