समाजशास्त्र की दैनिक परीक्षा: अपनी समझ को परखें!
नमस्ते, युवा समाजशास्त्रियों! क्या आप अपनी वैचारिक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को परखने के लिए तैयार हैं? आज हम आपके लिए लाए हैं समाजशास्त्र के 25 बहुविकल्पीय प्रश्नों का एक अनूठा सेट, जो आपकी तैयारी को एक नई दिशा देगा। आइए, इस बौद्धिक चुनौती का सामना करें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “सामाजिक संरचना” (Social Structure) की अवधारणा को सबसे अधिक किसने विकसित किया?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- टैल्कॉट पार्सन्स
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: टैल्कॉट पार्सन्स को आधुनिक समाजशास्त्र में ‘सामाजिक संरचना’ की अवधारणा के व्यवस्थित विकास का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था को परस्पर संबंधित भूमिकाओं और स्थिति-समूहों के एक जटिल जाल के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने अपनी पुस्तक ‘द स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन’ (1937) में इस विचार को प्रमुखता से प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, सामाजिक संरचना वह प्रतिमान है जो समाज के सदस्यों के बीच सामाजिक अंतःक्रियाओं को व्यवस्थित करता है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ‘वर्ग संरचना’ और संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया। मैक्स वेबर ने ‘सामाजिक क्रिया’ और ‘सत्ता’ पर जोर दिया, जबकि एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक एकता’ और ‘संज्ञान’ (anomie) जैसी अवधारणाओं को विकसित किया।
प्रश्न 2: किस समाजशास्त्री ने “मैक्रो-लेवल” (Macro-level) समाजशास्त्र का अध्ययन करने पर जोर दिया, जिसमें सामाजिक व्यवस्था और उसके बड़े पैटर्न शामिल हैं?
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- हर्बर्ट ब्लूमर
- एमिल दुर्खीम
- इर्विंग गॉफमैन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम को मैक्रो-लेवल समाजशास्त्र के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने समाज को एक ‘अलग वास्तविकता’ के रूप में देखा, जिसके अपने नियम और संरचनाएँ होती हैं, जो व्यक्तियों से स्वतंत्र होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी रचनाओं जैसे ‘द डिवीजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ और ‘सुसाइड’ में सामाजिक तथ्यों (social facts) का अध्ययन किया, जो समाज के स्थूल (macro) पहलुओं को दर्शाते हैं।
- गलत विकल्प: जॉर्ज हर्बर्ट मीड और हर्बर्ट ब्लूमर प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) से जुड़े हैं, जो माइक्रो-लेवल पर केंद्रित है। इर्विंग गॉफमैन भी माइक्रो-सोशियोलॉजी (जैसे ‘ड्रैमेटर्जिकल विश्लेषण’) के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 3: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) का मुख्य प्रतिपादक कौन है?
- तालकॉट पार्सन्स
- रॉबर्ट मर्टन
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- अगस्त कॉम्टे
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 4: कार्ल मार्क्स के अनुसार, समाज के परिवर्तन का मुख्य चालक क्या है?
- सांस्कृतिक भिन्नता
- वर्ग संघर्ष
- धार्मिक विश्वास
- जनसंख्या वृद्धि
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) के अनुसार, समाज के परिवर्तन का मूल आधार उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण को लेकर विभिन्न वर्गों के बीच होने वाला संघर्ष है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने ‘दास कैपिटल’ और ‘द कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ जैसी रचनाओं में बताया कि कैसे बुर्जुआ (पूंजीपति वर्ग) और सर्वहारा (मजदूर वर्ग) के बीच का संघर्ष ही समाज को साम्यवाद की ओर ले जाएगा।
- गलत विकल्प: मार्क्स के लिए, संस्कृति, धर्म और जनसंख्या परिवर्तन ये सब उत्पादन की शक्तियों और उत्पादन संबंधों से उत्पन्न होने वाले ‘अधिरचना’ (superstructure) का हिस्सा हैं, जो ‘आधार’ (base) से प्रभावित होता है।
प्रश्न 5: “अभिजात वर्ग” (Elite) की अवधारणा का मुख्य प्रतिपादक कौन है?
- विल्फ्रेडो पैरेटो
- सी. राइट मिल्स
- गैस्ट्रोन मोस्का
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विल्फ्रेडो पैरेटो, गैस्ट्रोन मोस्का और सी. राइट मिल्स तीनों ने अभिजात वर्ग के सिद्धांत (Elite Theory) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पैरेटो और मोस्का ने तर्क दिया कि हर समाज में एक छोटा, शक्तिशाली अभिजात वर्ग होता है जो शासन करता है, जबकि मिल्स ने अमेरिकी समाज में ‘शक्ति अभिजात वर्ग’ (Power Elite) की अवधारणा का विश्लेषण किया।
- संदर्भ और विस्तार: पैरेटो ने ‘अभिजनों का परिसंचरण’ (circulation of elites) का सिद्धांत दिया। मोस्का ने ‘शासक वर्ग’ की सार्वभौमिकता पर जोर दिया। मिल्स ने अपनी पुस्तक ‘द पावर एलीट’ (1956) में सैन्य, औद्योगिक और राजनीतिक नेताओं के एक संकेंद्रित समूह की पहचान की।
- गलत विकल्प: चूंकि तीनों ने इस क्षेत्र में योगदान दिया है, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है।
प्रश्न 6: किस समाजशास्त्री ने “संज्ञान” (Anomie) की अवधारणा को सामाजिक विघटन या नियमों की कमी की स्थिति के रूप में परिभाषित किया?
- ई. क्रॉम्बी
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- सोरोकिन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘संज्ञान’ (Anomie) की अवधारणा का व्यापक रूप से उपयोग किया। उन्होंने इसे समाज में नैतिक नियमों के कमजोर पड़ने या अनुपस्थित होने की स्थिति के रूप में वर्णित किया, जिससे व्यक्तिगत विघटन और अपराध दर में वृद्धि होती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द डिवीजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ में औद्योगिक समाजों में श्रम के बढ़ते विभाजन के कारण संज्ञान की स्थिति पैदा होने का वर्णन किया। उन्होंने ‘सुसाइड’ में भी आत्महत्या के कारणों में संज्ञान की भूमिका बताई।
- गलत विकल्प: क्रॉम्बी, वेबर और सोरोकिन अन्य महत्वपूर्ण समाजशास्त्री हैं, लेकिन संज्ञान की अवधारणा दुर्खीम से विशेष रूप से जुड़ी है।
प्रश्न 7: “अलगाव” (Alienation) की अवधारणा, जो व्यक्ति को उसके श्रम, स्वयं और समाज से अलग कर देती है, किस विचारक से जुड़ी है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- जी. एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिक के ‘अलगाव’ (Alienation) की चार प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन किया: उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव, उत्पाद से अलगाव, स्वयं की प्रजाति-प्रकृति से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी प्रारंभिक रचनाओं, विशेष रूप से ‘इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफ़िकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ में पाई जाती है। यह उनकी आलोचना का केंद्रीय बिंदु था कि कैसे पूंजीवाद मनुष्य की रचनात्मकता को छीन लेता है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘संज्ञान’ पर, वेबर ने ‘तर्कसंगतता’ और ‘अधिकारिता’ (authority) पर, और मीड ने ‘आत्म’ (self) और ‘समाज’ के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 8: “आत्म” (Self) के विकास में सामाजिक अंतःक्रिया की भूमिका पर किस समाजशास्त्री ने सबसे अधिक जोर दिया?
- तालकॉट पार्सन्स
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- एमिल दुर्खीम
- ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने ‘मी’ (Me) और ‘आई’ (I) के बीच द्वंद्वात्मक संबंध के माध्यम से ‘आत्म’ (Self) के सामाजिक निर्माण की प्रक्रिया को समझाया। उनके अनुसार, ‘आत्म’ सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से विकसित होता है, विशेष रूप से जब व्यक्ति ‘दूसरों के सामान्यीकृत दृष्टिकोण’ (Generalized Other) को आत्मसात करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का मूल है, जैसा कि उनकी मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक ‘माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी’ में विस्तृत है।
- गलत विकल्प: पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था पर, दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों और एकता पर, और रेडक्लिफ-ब्राउन ने संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) और मानव विज्ञान में सामाजिक संरचना पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 9: “तर्कसंगतता” (Rationalization) की प्रक्रिया, जिसके तहत पारंपरिक या भावनात्मक तरीकों के बजाय कुशल और तार्किक तरीकों को समाज में प्राथमिकता दी जाती है, किस समाजशास्त्री के कार्य का केंद्रीय विषय है?
- कार्ल मार्क्स
- ई. दूरखीम
- मैक्स वेबर
- एच. स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने आधुनिक पश्चिमी समाज के विकास में ‘तर्कसंगतता’ को एक प्रमुख शक्ति के रूप में पहचाना। उन्होंने नौकरशाही (bureaucracy) और पूंजीवाद जैसी संस्थाओं को तर्कसंगतता के अभिव्यक्ति के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ में बताया कि कैसे प्रोटेस्टेंट नैतिकता ने तर्कसंगत आर्थिक आचरण को बढ़ावा दिया। उन्होंने ‘लौह पिंजरे’ (iron cage) के खतरे की भी चेतावनी दी, जहाँ अत्यधिक तर्कसंगतता व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकती है।
- गलत विकल्प: मार्क्स ने वर्ग संघर्ष, दुर्खीम ने सामाजिक एकता और संज्ञान, और स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 10: भारत में “पवित्रता-अपवित्रता” (Purity-Pollution) की अवधारणा, जो जाति व्यवस्था का आधार है, को किसने अपनी जाति अध्ययन में महत्वपूर्ण माना?
- श्रीनिवास
- घुरिये
- इरावती कर्वे
- एम. एन. श्रीनिवास
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम. एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज, विशेषकर लिंगायत समुदाय पर अपने शोध में “पवित्रता-अपवित्रता” की अवधारणा का विस्तार से विश्लेषण किया और इसे जाति पदानुक्रम को समझने की कुंजी बताया।
- संदर्भ और विस्तार: उनकी पुस्तक ‘रिलिजन एंड सोसाइटी अमंग द कूर्ग्स ऑफ साउथ इंडिया’ (1952) में उन्होंने ‘संसकृति’ (Sanskritization) की अवधारणा भी प्रस्तुत की, जो निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों की प्रथाओं को अपनाने की प्रक्रिया है। पवित्रता-अपवित्रता जातिगत नियमों और प्रतिबंधों का आधार बनती है।
- गलत विकल्प: श्रीनिवास (G.S. Ghurye) और इरावती कर्वे ने भी जाति पर महत्वपूर्ण कार्य किया है, लेकिन पवित्रता-अपवित्रता की अवधारणा को मुख्य रूप से एम. एन. श्रीनिवास के कार्यों से जोड़ा जाता है।
प्रश्न 11: “संसकृति” (Sanskritization) की अवधारणा, जो निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों की धार्मिक, सांस्कृतिक और जीवनशैली की प्रथाओं को अपनाने की प्रक्रिया है, किसने दी?
- जी. एस. घुरिये
- इरावती कर्वे
- एम. एन. श्रीनिवास
- आंद्रे बेतेई
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम. एन. श्रीनिवास ने “संसकृति” (Sanskritization) शब्द गढ़ा, जो भारतीय जाति व्यवस्था में सामाजिक गतिशीलता (social mobility) की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने इसे मुख्य रूप से अपनी पुस्तक ‘रिलिजन एंड सोसाइटी अमंग द कूर्ग्स ऑफ साउथ इंडिया’ में प्रस्तुत किया। यह प्रक्रिया तब होती है जब कोई निचली जाति या जनजाति किसी उच्च, पारंपरिक रूप से ‘पवित्र’ मानी जाने वाली जाति की रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाना चाहती है।
- गलत विकल्प: घुरिये ने जाति के ‘सात लक्षण’ प्रस्तुत किए, कर्वे ने ‘किनशिप’ पर काम किया, और बेतेई ने ‘जाति और जीविका’ पर।
प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सा “मध्यम-श्रेणी का सिद्धांत” (Middle-Range Theory) का प्रमुख समर्थक है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- रॉबर्ट के. मर्टन
- पी. ए. सोरोकिन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: रॉबर्ट के. मर्टन ने “मध्यम-श्रेणी के सिद्धांतों” की वकालत की। उनका मानना था कि समाजशास्त्र को बहुत सामान्य (जैसे मार्क्स का वर्ग संघर्ष) या बहुत विशिष्ट (जैसे एक विशिष्ट सामाजिक समूह का अध्ययन) सिद्धांतों के बजाय, कुछ विशिष्ट सामाजिक घटनाओं को समझाने वाले अधिक प्रबंधनीय सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने ‘सोशल थ्योरी एंड सोशल स्ट्रक्चर’ (1949) में इस विचार को प्रस्तुत किया। उन्होंने ‘अनपेक्षित परिणाम’ (unintended consequences), ‘कार्यात्मक विकल्प’ (functional alternatives), और ‘भविष्यसूचक भूमिका’ (prophetic function) जैसी अवधारणाओं को भी विकसित किया।
- गलत विकल्प: मार्क्स और वेबर व्यापक, समग्र सिद्धांतकार थे। सोरोकिन भी एक व्यापक सिद्धांतकार थे जिन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक गतिशीलता पर काम किया।
प्रश्न 13: “सामाजिक स्तरीकरण” (Social Stratification) का कौन सा सिद्धांत मानता है कि यह समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक है और लोगों को महत्वपूर्ण पदों के लिए प्रेरित करता है?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रकार्यवादी सिद्धांत (Functionalist Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- संसाधन जुटाव सिद्धांत (Resource Mobilization Theory)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: प्रकार्यवादियों, विशेष रूप से किंग्सले डेविस और विल्बर्ट मूर, ने तर्क दिया कि सामाजिक स्तरीकरण समाज के लिए कार्यात्मक है। उनके अनुसार, यह सबसे योग्य व्यक्तियों को सबसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होने के लिए प्रेरित करता है, क्योंकि ये पद अधिक पुरस्कार (धन, प्रतिष्ठा) के साथ आते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह विचार “डेविस-मूर थीसिस” के रूप में जाना जाता है। वे मानते थे कि यह स्तरीकरण प्रणाली समाज को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती है।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांतकार स्तरीकरण को शोषण और शक्ति के खेल के रूप में देखते हैं। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति-स्तर पर स्तरीकरण के अनुभवों का विश्लेषण करता है। संसाधन जुटाव सिद्धांत सामाजिक आंदोलनों से संबंधित है।
प्रश्न 14: “औद्योगीकरण” (Industrialization) के संदर्भ में “गुलाम प्रथा” (Slavery) और “दास प्रथा” (Serfdom) के बीच मुख्य अंतर क्या है?
- गुलाम प्रथा वंशानुगत होती है, जबकि दास प्रथा अर्जित होती है।
- गुलामों के पास कोई अधिकार नहीं होता, जबकि दासों के पास सीमित अधिकार होते हैं।
- गुलामों को बेचा जा सकता है, जबकि दासों को भूमि से बांधा जाता है।
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: औद्योगीकरण के संदर्भ में, दास प्रथा (slavery) में व्यक्ति को संपत्ति माना जाता है, उसके कोई अधिकार नहीं होते और उसे खरीदा-बेचा जा सकता है। वहीं, दासता (serfdom) में व्यक्ति भूमि से बंधा होता है, वह स्वतंत्र नहीं होता, लेकिन उसे कुछ सीमित अधिकार और जिम्मेदारियां प्राप्त होती हैं (जैसे भूमि का उपयोग)। ये प्रथाएं अक्सर वंशानुगत भी होती थीं।
- संदर्भ और विस्तार: ऐतिहासिक रूप से, दासता अधिक कठोर थी जहाँ व्यक्ति का पूर्ण स्वामित्व होता था, जबकि दासता में एक तरह का अर्ध-स्वतंत्रता होती थी जहाँ व्यक्ति भूमि से जुड़ा होता था और मालिक को सेवाएँ प्रदान करता था।
- गलत विकल्प: ये सभी विकल्प इन दोनों प्रथाओं के बीच के अंतर को सही ढंग से दर्शाते हैं।
प्रश्न 15: “सामाजिक परिवर्तन” (Social Change) को परिभाषित करने वाले प्रमुख कारकों में से कौन सा बाहरी कारकों (External Factors) को संदर्भित करता है?
- जनसांख्यिकीय परिवर्तन (Demographic Changes)
- तकनीकी नवाचार (Technological Innovations)
- विचारधारात्मक परिवर्तन (Ideological Changes)
- सांस्कृतिक विलंब (Cultural Lag)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: तकनीकी नवाचार, जैसे कि नए उपकरणों या प्रक्रियाओं का आविष्कार, अक्सर सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख बाहरी कारक होता है। यह लोगों के काम करने, संवाद करने और जीवन जीने के तरीके को मौलिक रूप से बदल सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, इंटरनेट या मोबाइल फोन ने समाज में बड़े पैमाने पर बदलाव लाए हैं, जो मुख्य रूप से तकनीकी प्रगति से प्रेरित थे।
- गलत विकल्प: जनसांख्यिकीय परिवर्तन (जैसे जनसंख्या वृद्धि), विचारधारात्मक परिवर्तन (जैसे नए विचारों का उदय), और सांस्कृतिक विलंब (विलियम ओग्बर्न द्वारा दी गई अवधारणा, जहाँ भौतिक संस्कृति, अभौतिक संस्कृति की तुलना में तेज़ी से बदलती है) आंतरिक कारक या परिवर्तन के परिणाम हो सकते हैं, लेकिन तकनीकी नवाचार एक स्पष्ट बाहरी उत्प्रेरक है।
प्रश्न 16: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा, जो सामग्री संस्कृति (Material Culture) के तेजी से बदलने और गैर-सामग्री संस्कृति (Non-material Culture) के पिछड़ने को दर्शाती है, किसने प्रस्तुत की?
- ए. एल. क्रोएबर
- विलियम एफ. ओग्बर्न
- अल्बर्ट सांचेज़
- पीटर एल. बर्जर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलियम एफ. ओग्बर्न ने “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने तर्क दिया कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, उपकरण) अभौतिक संस्कृति (जैसे नैतिकता, कानून, मान्यताएँ) की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलती है, जिससे समाज में असंतुलन और समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा 1922 में उनके निबंध “लॉस ऑफ कल्चरल मोमेंटम” में सामने आई। इसके उदाहरणों में बंदूक नियंत्रण कानून (तकनीकी नवाचार बनाम सामाजिक नियम) या पर्यावरण नीतियाँ (नई औद्योगिक प्रौद्योगिकियों बनाम पुरानी नीतियाँ) शामिल हो सकते हैं।
- गलत विकल्प: क्रोएबर ने संस्कृति पर व्यापक कार्य किया। सांचेज़ और बर्जर अन्य महत्वपूर्ण समाजशास्त्री हैं, लेकिन यह अवधारणा विशेष रूप से ओग्बर्न से जुड़ी है।
प्रश्न 17: “रचनात्मकता” (Creativity) और “नवीनता” (Innovation) के समाजशास्त्र का अध्ययन करने वाले प्रमुख समाजशास्त्री कौन हैं?
- वेबलेन
- शॉम्पेटर
- गिल्बर्ट
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: थॉर्स्टीन वेबलेन ने “नकल करने वाले उपभोग” (conspicuous consumption) और “ट्राइबल इकोनॉमी” जैसे अपने कार्यों में आर्थिक व्यवहार की नवीनता पर प्रकाश डाला। जोसेफ शम्पेटर ने “रचनात्मक विनाश” (creative destruction) की अवधारणा के माध्यम से उद्यमिता और नवाचार को पूंजीवाद के विकास के इंजन के रूप में वर्णित किया। गिलबर्ट ने भी कला और समाज के बीच संबंधों पर काम किया है, जिसमें रचनात्मकता का तत्व शामिल है।
- संदर्भ और विस्तार: तीनों ही विद्वानों ने किसी न किसी रूप में नवीनता, आविष्कार और रचनात्मकता के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं का विश्लेषण किया है।
- गलत विकल्प: चूंकि तीनों ने इस क्षेत्र में योगदान दिया है, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही है।
प्रश्न 18: “नारीवाद” (Feminism) के संदर्भ में, “लैंगिक भूमिकाएँ” (Gender Roles) मुख्य रूप से किस कारण से उत्पन्न होती हैं?
- जैविक अंतर (Biological Differences)
- सामाजिक और सांस्कृतिक निर्माण (Social and Cultural Constructions)
- मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति (Psychological Tendencies)
- प्राकृतिक चयन (Natural Selection)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: नारीवाद का मुख्य तर्क यह है कि लैंगिक भूमिकाएँ जन्मजात जैविक अनिवार्यताएँ नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ हैं जो समाज द्वारा सिखाई और लागू की जाती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: नारीवादी विद्वान इस बात पर जोर देते हैं कि कैसे समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए विशिष्ट व्यवहार, अपेक्षाओं और अवसरों का निर्माण करता है, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भिन्न हो सकते हैं।
- गलत विकल्प: जबकि जैविक अंतर मौजूद हो सकते हैं, नारीवाद मानता है कि लैंगिक भूमिकाओं का अधिकांश हिस्सा सामाजिक निर्माण है। मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ और प्राकृतिक चयन भी लैंगिक भूमिकाओं की व्याख्या करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं माने जाते हैं।
प्रश्न 19: “सामाजिक गतिशीलता” (Social Mobility) का अध्ययन करते समय, “ऊर्ध्व गतिशीलता” (Upward Mobility) का अर्थ क्या है?
- समाज में एक ही स्तर पर रहना
- समाज में निम्न स्तर से उच्च स्तर पर जाना
- समाज में उच्च स्तर से निम्न स्तर पर जाना
- समाज में विभिन्न स्तरों के बीच बदलना
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: ऊर्ध्व गतिशीलता (Upward Mobility) वह प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति या समूह अपनी पिछली सामाजिक स्थिति की तुलना में उच्च सामाजिक वर्ग, स्थिति या आय प्राप्त करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक स्तरीकरण के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो दर्शाती है कि कैसे व्यक्ति या परिवार समय के साथ अपनी सामाजिक स्थिति को बेहतर बना सकते हैं।
- गलत विकल्प: (a) स्थिर स्थिति है, (c) निम्नगामी गतिशीलता (Downward Mobility) है, और (d) सामान्य सामाजिक गतिशीलता है जिसमें ऊपर और नीचे दोनों शामिल हो सकते हैं।
प्रश्न 20: “ग्रामीण समाजशास्त्र” (Rural Sociology) में “सामुदायिक भावना” (Gemeinschaft) और “समाज” (Gesellschaft) की अवधारणाएँ किसने प्रस्तुत कीं?
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- फर्डिनेंड टॉनिस
- चार्ल्स कूर्ली
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: फर्डिनेंड टॉनिस ने अपनी पुस्तक ‘Gemeinschaft und Gesellschaft’ (1887) में इन दो आदर्श प्रकारों (ideal types) का वर्णन किया। उन्होंने पारंपरिक, घनिष्ठ सामुदायिक संबंधों (Gemeinschaft) और आधुनिक, व्यक्तिगत, उद्देश्य-उन्मुख संबंधों (Gesellschaft) के बीच अंतर किया।
- संदर्भ और विस्तार: Gemeinschaft को आम तौर पर ग्रामीण समुदायों से जोड़ा जाता है जहाँ पारिवारिक संबंध, साझा मूल्य और दीर्घकालिक संबंध प्रभावी होते हैं। Gessellschaft को शहरी, औद्योगिक समाजों से जोड़ा जाता है जहाँ संबंध अवैयक्तिक, संविदात्मक और लेन-देन आधारित होते हैं।
- गलत विकल्प: वेबर ने तर्कसंगतता और नौकरशाही पर, दुर्खीम ने सामाजिक एकता और संज्ञान पर, और कूर्ली ने प्राथमिक समूहों (primary groups) पर काम किया।
प्रश्न 21: “शहरीकरण” (Urbanization) के संदर्भ में, “सामाजिक विघटन” (Social Disorganization) का विचार, जो अक्सर बड़े शहरों से जुड़ा होता है, किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से उत्पन्न हुआ?
- शिकागो स्कूल (Chicago School)
- फ्रांकफर्ट स्कूल (Frankfurt School)
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद (Cultural Relativism)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: शिकागो स्कूल, विशेष रूप से रॉबर्ट पार्क, अर्नेस्ट बर्गेस और क्लिफोर्ड शॉ जैसे समाजशास्त्रियों ने शहरीकरण के प्रभावों का अध्ययन किया और “सामाजिक विघटन” की अवधारणा को विकसित किया। उन्होंने देखा कि कैसे बड़े शहरों में पारंपरिक सामाजिक नियंत्रण कमजोर पड़ जाता है, जिससे अपराध और अन्य सामाजिक समस्याएं बढ़ती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उनके “मानव पारिस्थितिकी” (Human Ecology) दृष्टिकोण ने शहरी क्षेत्रों को एक पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में देखा, जहाँ विभिन्न समूह प्रतिस्पर्धा करते हैं और क्षेत्रों को अनुकूलित करते हैं।
- गलत विकल्प: फ्रैंकफर्ट स्कूल महत्वपूर्ण सिद्धांत (Critical Theory) से संबंधित है, सांस्कृतिक सापेक्षवाद संस्कृतियों को उनके अपने संदर्भ में समझने पर जोर देता है, और संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को एक सुसंगत प्रणाली के रूप में देखता है।
प्रश्न 22: “संरचनात्मक प्रकार्यवाद” (Structural Functionalism) के अनुसार, समाज एक जटिल तंत्र के समान है जिसके विभिन्न अंग (संस्थाएँ) एक साथ कार्य करते हैं ताकि समग्र स्थिरता और संतुलन बना रहे। इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रस्तावक कौन थे?
- एमिल दुर्खीम और तालकॉट पार्सन्स
- कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड और हर्बर्ट ब्लूमर
- मैक्स वेबर और जॉर्ज सिमेल
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम को अक्सर संरचनात्मक प्रकार्यवाद का अग्रदूत माना जाता है, जबकि तालकॉट पार्सन्स ने इस सिद्धांत को आधुनिक समाजशास्त्र में एक प्रमुख सैद्धांतिक ढाँचा बनाया।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने ‘सामाजिक क्रिया का सिद्धांत’ (Theory of Social Action) विकसित किया और समाज को चार कार्यात्मक अनिवार्यताएँ (AGIL schema: Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency) पूरी करनी होती हैं। दुर्खीम ने सामाजिक एकता (social solidarity) के महत्व पर जोर दिया।
- गलत विकल्प: मार्क्स और एंगेल्स संघर्ष सिद्धांत के हैं, मीड और ब्लूमर प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के, और वेबर और सिमेल विभिन्न दृष्टिकोणों से जुड़े हैं (वेबर मुख्य रूप से प्रकार्यवाद से नहीं)।
प्रश्न 23: “पारिवारिक संस्था” (Family Institution) के अध्ययन में, “संयुक्त परिवार” (Joint Family) की व्यवस्था किस सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ से विशेष रूप से जुड़ी है?
- पश्चिमी औद्योगिक समाज
- पारंपरिक भारतीय समाज
- उत्तरी अमेरिकी जनजातीय समाज
- लैटिन अमेरिकी शहरी क्षेत्र
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: संयुक्त परिवार, जिसमें कई पीढ़ियों के सदस्य एक साथ रहते हैं और संपत्ति साझा करते हैं, पारंपरिक भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता रही है।
- संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था न केवल भावनात्मक समर्थन प्रदान करती है, बल्कि आर्थिक उत्पादन, सामाजिक सुरक्षा और सांस्कृतिक प्रसारण के लिए भी एक ढाँचा प्रदान करती है। हालाँकि आधुनिकीकरण के साथ इसमें परिवर्तन आया है, फिर भी यह भारतीय समाज के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: पश्चिमी औद्योगिक समाजों में एकल परिवार (nuclear family) अधिक आम है। जनजातीय और शहरी समाजों की अपनी विशिष्ट पारिवारिक संरचनाएँ हो सकती हैं, लेकिन संयुक्त परिवार भारतीय संदर्भ से सबसे अधिक निकटता से जुड़ा है।
प्रश्न 24: “सामाजिक अनुसंधान” (Social Research) में, “गुणात्मक अनुसंधान” (Qualitative Research) का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
- सांख्यिकीय डेटा एकत्र करना और उसका विश्लेषण करना
- अवधारणाओं और घटनाओं के गहन अर्थों को समझना
- कारण-प्रभाव संबंधों को मापना
- एक बड़े नमूने से सामान्यीकरण करना
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: गुणात्मक अनुसंधान का मुख्य लक्ष्य सामाजिक घटनाओं, व्यवहारों, अनुभवों और दृष्टिकोणों के अंतर्निहित अर्थों, व्याख्याओं और संदर्भों को गहराई से समझना है। इसमें अक्सर अवलोकन, साक्षात्कार और केस स्टडी जैसी विधियाँ शामिल होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह ‘क्यों’ और ‘कैसे’ के प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करता है, बजाय इसके कि ‘कितना’ या ‘क्या’।
- गलत विकल्प: (a) और (c) मात्रात्मक अनुसंधान (Quantitative Research) के उद्देश्य हैं, जबकि (d) मात्रात्मक अनुसंधान का एक संभावित परिणाम है, लेकिन गुणात्मक अनुसंधान का प्राथमिक उद्देश्य गहरी समझ है, न कि बड़े पैमाने पर सामान्यीकरण।
प्रश्न 25: “धर्म” (Religion) के समाजशास्त्र में, “कालातीत” (Transcendental) और “अनुभवातीत” (Immanent) शब्द किस प्रकार के धार्मिक अनुभव या विश्वास को दर्शाते हैं?
- कालातीत अलौकिक शक्ति है, जबकि अनुभूत मानव के भीतर या दुनिया में निहित है।
- कालातीत अनुष्ठानों पर केंद्रित है, जबकि अनुभूत विश्वासों पर।
- दोनों ही किसी भी अलौकिक शक्ति को नहीं मानते।
- कालातीत व्यक्तिगत है, जबकि अनुभूत सामूहिक है।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: “कालातीत” (Transcendental) उस विश्वास या अनुभव को संदर्भित करता है जो इस भौतिक दुनिया से परे, किसी अलौकिक, शाश्वत या परम शक्ति (जैसे ईश्वर) से संबंधित होता है। वहीं, “अनुभूत” (Immanent) का अर्थ है कि वह शक्ति या पवित्रता इस दुनिया के भीतर, प्रकृति में, मनुष्यों में या दैनिक जीवन में मौजूद है।
- संदर्भ और विस्तार: यह भेद विभिन्न धार्मिक परंपराओं और दार्शनिक विचारों में पाया जाता है। उदाहरण के लिए, कई एकेश्वरवादी धर्मों में ईश्वर कालातीत माना जाता है, जबकि कुछ पूर्वी दर्शन या रहस्यवादी परंपराओं में ईश्वर या पवित्रता को अनुभूत माना जा सकता है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प इन अवधारणाओं के अर्थों को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं।