समाजशास्त्र की दैनिक परीक्षा: अपनी समझ को परखें
नमस्ते, समाजशास्त्र के जिज्ञासु विद्वानों! क्या आप अपनी वैचारिक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को निखारने के लिए तैयार हैं? आज का दैनिक क्विज़ आपके ज्ञान की गहराई को मापने और समाजशास्त्र के प्रमुख सिद्धांतों, विचारकों और अवधारणाओं में आपकी महारत को परखने का एक शानदार अवसर है। आइए, आज ही अपनी तैयारी को एक नई दिशा दें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा को किसने समाज के सबसे मौलिक और स्थायी तत्वों के रूप में परिभाषित किया, जो सामाजिक अंतःक्रियाओं को आकार देते हैं?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- ताल्कोट पार्सन्स
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ताल्कोट पार्सन्स को ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) के प्रमुख प्रस्तावक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सामाजिक संरचना को सामाजिक व्यवस्था के अपेक्षाकृत स्थायी और स्थिर पहलुओं के रूप में देखा, जिसमें भूमिकाएँ, संस्थाएँ और सामाजिक मूल्य शामिल हैं, जो सामाजिक अंतःक्रियाओं को दिशा देते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने अपनी रचनाओं जैसे ‘द स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन’ में इस अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया। वे मानते थे कि सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए इन संरचनाओं का सुचारू कार्य आवश्यक है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स सामाजिक संरचना को वर्ग संघर्ष के लेंस से देखते थे। मैक्स वेबर ने शक्ति और नौकरशाही पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) और ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Conscience) पर जोर दिया।
प्रश्न 2: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के सिद्धांत के अनुसार, समाज में असमानता क्यों मौजूद है?
- यह व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम है।
- यह समाज के सुचारू कामकाज के लिए आवश्यक भूमिकाओं को भरने के लिए एक प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
- यह संसाधनों के वितरण में अंतर्निहित एक प्रणाली है।
- यह सांस्कृतिक भेदों का स्वाभाविक परिणाम है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल डेविस और विल्बर्ट मूर (Davis & Moore) के ‘कार्यात्मक सिद्धांत’ (Functional Theory) के अनुसार, सामाजिक स्तरीकरण (जैसे असमान वेतन) इसलिए आवश्यक है ताकि सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिकाओं को सबसे योग्य व्यक्तियों द्वारा भरा जा सके, जिन्हें इस कार्य के लिए अतिरिक्त पुरस्कार (जैसे पैसा, सम्मान) की आवश्यकता होती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत मानता है कि समाज में कुछ पद दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होते हैं और उन्हें निभाने के लिए विशेष प्रशिक्षण या प्रतिभा की आवश्यकता होती है। इन पदों के लिए व्यक्तियों को आकर्षित करने हेतु अधिक पुरस्कार प्रदान करना आवश्यक है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत प्रयास स्तरीकरण का केवल एक हिस्सा है, लेकिन यह पूरी व्याख्या नहीं है। (c) यह स्तरीकरण का एक परिणाम है, कारण नहीं। (d) सांस्कृतिक भेद स्तरीकरण को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन यह इसका मुख्य कार्यात्मक कारण नहीं है।
प्रश्न 3: “The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- सी. राइट मिल्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism” (1905) में तर्क दिया कि प्रोटेस्टेंट धर्म, विशेष रूप से केल्विनवाद, ने आधुनिक पूंजीवाद के विकास के लिए आवश्यक “आध्यात्मिक” (Spirit) को बढ़ावा दिया।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने दिखाया कि कैसे पुरोहितों का भाग्य-विपाक (predestination) का सिद्धांत, काम को एक दैवीय कर्तव्य (calling) के रूप में देखने और सफलता को ईश्वर की कृपा के संकेत के रूप में मानने की ओर ले गया, जिससे पूंजी संचय और निवेश को प्रोत्साहन मिला।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद के विकास को उत्पादन के साधनों पर पूंजीपतियों के नियंत्रण और श्रमिकों के शोषण से जोड़ा। एमिल दुर्खीम ने श्रम विभाजन और सामाजिक एकजुटता पर ध्यान केंद्रित किया। सी. राइट मिल्स ने शक्ति अभिजात वर्ग (Power Elite) की अवधारणा दी।
प्रश्न 4: ‘आत्म-विस्तार’ (Anomie) की अवधारणा, जो समाज में तब उत्पन्न होती है जब सामाजिक मानदंड या तो कमजोर हो जाते हैं या अनुपस्थित हो जाते हैं, किससे जुड़ी है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘आत्म-विस्तार’ (Anomie) की अवधारणा का उपयोग यह बताने के लिए किया कि कैसे सामाजिक मानदंडों में शिथिलता या उनका अभाव व्यक्तियों में उद्देश्यहीनता, मोहभंग और विघटन की भावना पैदा कर सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने इसे आत्महत्या (suicide) के बढ़ते दर से जोड़ा, विशेषकर सामाजिक परिवर्तन या संकट के समय में। उनकी पुस्तकें “The Division of Labour in Society” और “Suicide” में यह अवधारणा महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और अलगाव (alienation) पर था। मैक्स वेबर ने सत्ता, नौकरशाही और तर्कसंगतता पर काम किया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद (Social Darwinism) का समर्थन किया।
प्रश्न 5: सामाजिक परिवर्तन की एक प्रक्रिया के रूप में ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) का अर्थ है:
- पश्चिमी देशों की राजनीतिक व्यवस्था को अपनाना।
- पश्चिमी देशों की जीवन शैली, रीति-रिवाजों, मूल्यों और संस्थाओं को अपनाना।
- पश्चिमी देशों द्वारा किए गए तकनीकी विकास को अपनाना।
- पश्चिमी देशों से सीधे तौर पर शिक्षा प्राप्त करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: पश्चिमीकरण एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया है जिसमें गैर-पश्चिमी समाजों के लोग पश्चिमी देशों की जीवन शैली, व्यवहार, फैशन, खान-पान, रीति-रिवाज, भाषा और विचारों को अपनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: भारत के संदर्भ में, एम.एन. श्रीनिवास ने इस शब्द का प्रयोग औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय समाज में आए परिवर्तनों को समझाने के लिए किया था, जिसमें ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव प्रमुख था।
- गलत विकल्प: (a) राजनीतिक व्यवस्था को अपनाना पश्चिमीकरण का एक पहलू हो सकता है, लेकिन यह पूरी परिभाषा नहीं है। (c) तकनीकी विकास को अपनाना ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) का एक हिस्सा है, जो पश्चिमीकरण से अधिक व्यापक हो सकता है। (d) पश्चिमी देशों से शिक्षा प्राप्त करना भी पश्चिमीकरण का एक माध्यम हो सकता है, लेकिन स्वयं पश्चिमीकरण नहीं है।
प्रश्न 6: “The Presentation of Self in Everyday Life” (1959) के लेखक कौन हैं, जिन्होंने ‘नाटकीयता’ (Dramaturgy) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया?
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- इरविंग गॉफ़मैन
- अल्फ्रेड शुट्ज़
- पीटर एल. बर्जर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: इरविंग गॉफ़मैन ने अपनी पुस्तक “The Presentation of Self in Everyday Life” में ‘नाटकीयता’ (Dramaturgy) के अपने सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उन्होंने समाज को एक मंच के रूप में देखा जहाँ व्यक्ति अपनी पहचान को “प्रस्तुत” करने के लिए विभिन्न भूमिकाएँ निभाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: गॉफ़मैन ने ‘सामने का मंच’ (front stage) और ‘पीछे का मंच’ (back stage) जैसी अवधारणाओं का उपयोग करके समझाया कि कैसे लोग सामाजिक अंतःक्रियाओं में अपनी छवि को प्रबंधित करने के लिए सचेत रूप से या अनजाने में कार्य करते हैं।
- गलत विकल्प: जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने ‘आत्म’ (Self) और ‘समाज’ (Society) के विकास पर प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) का योगदान दिया। अल्फ्रेड शुट्ज़ ने ‘फेनोमेनोलॉजी’ (Phenomenology) को समाजशास्त्र में लागू किया। पीटर एल. बर्जर ने ‘सामाजिक निर्माण’ (Social Construction) की अवधारणा पर काम किया।
प्रश्न 7: भारत में, किसी व्यक्ति की जाति (Caste) को आमतौर पर कैसे निर्धारित किया जाता है?
- उसके व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर
- उसके जन्म के आधार पर
- उसके व्यवसाय के आधार पर
- उसके शिक्षा स्तर के आधार पर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: भारतीय जाति व्यवस्था में, किसी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से निर्धारित होती है, और यह एक अनैच्छिक सदस्यता है जो जीवन भर बनी रहती है।
- संदर्भ और विस्तार: जाति प्रणाली जन्म के आधार पर पदानुक्रमित समूहों (वर्णों और जातियों) में समाज को विभाजित करती है, जो अक्सर व्यावसायिक विशेषज्ञता, अंतर्विवाह (endogamy) और सामाजिक अलगाव से जुड़े होते हैं।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत योग्यता, व्यवसाय या शिक्षा स्तर जाति के सदस्य को बदल नहीं सकते, हालांकि वे कुछ हद तक सामाजिक गतिशीलता (social mobility) को प्रभावित कर सकते हैं।
प्रश्न 8: ‘अभिजन सिद्धांत’ (Elite Theory) का प्रमुख प्रतिपादक कौन है, जिसने तर्क दिया कि समाज हमेशा एक छोटे, शक्तिशाली अल्पसंख्यक (अभिजन) द्वारा शासित होता है?
- वी. पेरेटो
- सी. राइट मिल्स
- गैतानो मोस्का
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विल्फ्रेडो पेरेटो, गैतानो मोस्का और सी. राइट मिल्स – तीनों प्रमुख समाजशास्त्री हैं जिन्होंने अभिजन सिद्धांत (Elite Theory) के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने स्वतंत्र रूप से यह तर्क दिया कि सभी समाजों में, चाहे उनकी व्यवस्था कुछ भी हो, एक छोटा शासक वर्ग (अभिजन) होता है जो सत्ता और संसाधनों को नियंत्रित करता है।
- संदर्भ और विस्तार: पेरेटो ने ‘अभिजन के परिसंचरण’ (circulation of elites) की बात की, मोस्का ने ‘राजनीतिक वर्ग’ (political class) की पहचान की, और मिल्स ने अमेरिकी समाज में ‘शक्ति अभिजात वर्ग’ (Power Elite) का विश्लेषण किया।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प केवल एक विचारक को शामिल करते हैं, जबकि यह सिद्धांत इन सभी के काम से जुड़ा है।
प्रश्न 9: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो यह बताती है कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे मानदंड, मूल्य) की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलती है, किसने प्रस्तुत की?
- विलियम एफ. ऑग्बर्न
- राबर्ट ई. पार्क
- सी. लेस्ली फॉल
- किंग्सले डेविस
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलियम एफ. ऑग्बर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक “Social Change with Respect to Culture and Original Nature” में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा पेश की।
- संदर्भ और विस्तार: ऑग्बर्न ने तर्क दिया कि जब नई प्रौद्योगिकियाँ या भौतिक नवाचार विकसित होते हैं, तो समाज के गैर-भौतिक पहलू (जैसे कानून, रीति-रिवाज, नैतिकता) अक्सर पिछड़ जाते हैं, जिससे सामाजिक समायोजन की समस्याएं पैदा होती हैं।
- गलत विकल्प: राबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल के प्रमुख थे और शहरी समाजशास्त्र में योगदान दिया। सी. लेस्ली फॉल और किंग्सले डेविस अन्य महत्वपूर्ण समाजशास्त्री थे जिनके कार्य स्तरीकरण और जनसंख्या से संबंधित थे।
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा परिवार का एक प्रकार है जहाँ एक व्यक्ति अपने माता-पिता, भाई-बहनों और अपने बच्चों के साथ रहता है?
- विस्तारित परिवार (Extended Family)
- नाभिकीय परिवार (Nuclear Family)
- एकल-पालक परिवार (Single-Parent Family)
- संयुक्त परिवार (Joint Family)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विस्तारित परिवार (Extended Family) में पति-पत्नी, उनके बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची, चचेरे भाई-बहन आदि सहित कई पीढ़ियाँ और रिश्तेदार एक साथ रहते हैं या घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: संयुक्त परिवार (Joint Family) भारतीय संदर्भ में एक विशेष प्रकार का विस्तारित परिवार है जहाँ कई पीढ़ी के सदस्य एक सामान्य छत के नीचे, एक रसोई से खाते हैं और एक सामान्य संपत्ति साझा करते हैं। नाभिकीय परिवार में केवल माता-पिता और अविवाहित बच्चे होते हैं। एकल-पालक परिवार में केवल एक अभिभावक और बच्चे होते हैं।
- गलत विकल्प: नाभिकीय परिवार में केवल माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं। एकल-पालक परिवार में केवल एक अभिभावक होता है। संयुक्त परिवार विस्तारित परिवार का एक रूप है, लेकिन विस्तारित परिवार एक व्यापक शब्द है जिसमें अन्य रिश्तेदार भी शामिल हो सकते हैं।
प्रश्न 11: ‘सभ्यता’ (Civilization) के विकास में ‘आद्योदय’ (Enlightenment) काल के किस विचारक ने सामाजिक अनुबंध (Social Contract) का विचार प्रस्तुत किया, जिसके तहत व्यक्ति अपने कुछ अधिकारों को सरकार को सौंप देते हैं?
- इमैनुएल कांट
- जॉन लॉक
- जीन-जैक्स रूसो
- वोल्टेयर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जॉन लॉक, एक प्रमुख प्रबुद्धता विचारक, ने सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार, व्यक्ति प्राकृतिक अधिकारों (जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति) की रक्षा के लिए सरकार की स्थापना के लिए सहमत होते हैं, और यदि सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो लोगों को उसे बदलने का अधिकार है।
- संदर्भ और विस्तार: लॉक की “Two Treatises of Government” (1689) ने आधुनिक उदारवाद और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को प्रभावित किया।
- गलत विकल्प: रूसो ने भी सामाजिक अनुबंध का विचार दिया, लेकिन उनका दृष्टिकोण लॉक से भिन्न था। कांट ने नैतिकता और ज्ञानमीमांसा पर काम किया, और वोल्टेयर ने धार्मिक सहिष्णुता और भाषण की स्वतंत्रता पर जोर दिया।
प्रश्न 12: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा विकसित ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया में मुख्य रूप से क्या शामिल है?
- आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना।
- उच्च जातियों की धार्मिक प्रथाओं, रीति-रिवाजों और जीवन शैली को निम्न जातियों द्वारा अपनाना।
- पश्चिमी जीवन शैली और मूल्यों को अपनाना।
- शहरी क्षेत्रों में प्रवास करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संस्कृतिकरण, जैसा कि एम.एन. श्रीनिवास ने परिभाषित किया है, वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निचली या मध्यम जातियां, या जनजातियाँ, उच्च, अक्सर द्विजा (twice-born) जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों, विश्वासों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को बढ़ाने का प्रयास करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” (1952) में प्रस्तुत की गई थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
- गलत विकल्प: (a) आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना आधुनिकीकरण है। (c) पश्चिमी जीवन शैली को अपनाना पश्चिमीकरण है। (d) शहरीकरण एक अलग सामाजिक प्रक्रिया है।
प्रश्न 13: सामाजिक अनुसंधान में ‘सहसंबद्धता’ (Correlation) का क्या अर्थ है?
- एक चर का दूसरे चर पर सीधा कारण प्रभाव।
- दो या दो से अधिक चर के बीच एक सांख्यिकीय संबंध, जो सीधे कारण-प्रभाव को नहीं दर्शाता।
- किसी आबादी की विशेषताओं का अध्ययन।
- किसी घटना के पीछे व्यक्तिपरक अर्थों को समझना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सहसंबद्धता दो या दो से अधिक चर के बीच एक सांख्यिकीय संबंध को इंगित करती है, जहां एक चर में परिवर्तन दूसरे चर में परिवर्तन से जुड़ा होता है। यह आवश्यक नहीं है कि एक चर दूसरे का कारण हो।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, आइसक्रीम की बिक्री और अपराध दर के बीच एक सकारात्मक सहसंबंध हो सकता है (दोनों गर्मियों में बढ़ते हैं), लेकिन आइसक्रीम अपराध का कारण नहीं बनती।
- गलत विकल्प: (a) कारण-प्रभाव (Causation) सहसंबद्धता से अधिक गहरा है। (c) यह ‘विवरण’ (Description) या ‘जनसांख्यिकी’ (Demography) से संबंधित है। (d) यह ‘व्याख्यात्मक’ (Interpretive) या ‘गुणात्मक’ (Qualitative) अनुसंधान की ओर संकेत करता है।
प्रश्न 14: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, जिसका उपयोग औद्योगिक समाजों में श्रमिकों द्वारा अपने श्रम, उत्पादों, स्वयं और दूसरों से महसूस की जाने वाली अलगाव की भावना का वर्णन करने के लिए किया जाता है, किसने विकसित की?
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- जॉर्ज सिमेल
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा को औद्योगिक पूंजीवाद के संदर्भ में केंद्रीय माना। उन्होंने चार प्रकार के अलगाव की पहचान की: श्रम के उत्पाद से अलगाव, श्रम की प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं की प्रजाति-प्रकृति (species-being) से अलगाव, और मनुष्यों से अलगाव।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली श्रमिकों को उनके श्रम के नियंत्रण से वंचित करती है, जिससे वे शक्तिहीन और अलग-थलग महसूस करते हैं। उनकी 1844 की आर्थिक और दार्शनिक पांडुलिपियाँ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) इस अवधारणा को विस्तार से बताती हैं।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने सत्ता, नौकरशाही और तर्कसंगतता पर ध्यान केंद्रित किया। एमिल दुर्खीम ने आत्म-विस्तार (anomie) और सामाजिक एकजुटता पर काम किया। जॉर्ज सिमेल ने शहरी जीवन और सामाजिक संपर्क की सूक्ष्मता का अध्ययन किया।
- राजनीति
- अर्थव्यवस्था
- धर्म
- शिक्षा
- सटीकता: ‘धर्म’ (Religion) वह सामाजिक संस्था है जहाँ ‘व्यवस्था’ (Dharma) – जो सही आचरण, कर्तव्य और नैतिक व्यवस्था को संदर्भित करता है – और ‘कर्म’ (Karma) – अच्छे या बुरे कर्मों के परिणाम का सिद्धांत – जैसी अवधारणाएँ गहराई से अंतर्निहित हैं।
- संदर्भ और विस्तार: ये अवधारणाएँ हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म में केंद्रीय हैं, जो भारतीय समाज के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताने-बाने को आकार देती हैं। वे जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को प्रभावित करती हैं।
- गलत विकल्प: यद्यपि ये अवधारणाएँ अन्य संस्थाओं को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती हैं, उनका प्राथमिक डोमेन और उत्पत्ति धर्म में ही है।
- कबीला (Tribe)
- नौकरशाही (Bureaucracy)
- धार्मिक पंथ (Religious Cult)
- लोकतंत्र (Democracy)
- सटीकता: मैक्स वेबर ने नौकरशाही (Bureaucracy) को एक आदर्श प्रकार के रूप में परिभाषित किया, जिसकी विशेषताओं में एक स्पष्ट पदानुक्रमित संरचना, विशेषज्ञता, लिखित नियम और औपचारिकता, अ-व्यक्तिगत संबंध और योग्यता-आधारित नियुक्ति शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, नौकरशाही आधुनिक समाज में तर्कसंगतता और दक्षता लाने का सबसे प्रभावी तरीका है, हालांकि यह ‘लोहे का पिंजरा’ (iron cage) भी बना सकती है।
- गलत विकल्प: कबीले अक्सर अनौपचारिक नेतृत्व संरचनाओं और संबंधों पर आधारित होते हैं। धार्मिक पंथों में पदानुक्रम हो सकते हैं लेकिन वे हमेशा औपचारिकता से नहीं बंधे होते। लोकतंत्र में पदानुक्रम हो सकते हैं, लेकिन वे चुनाव और प्रतिनिधित्व पर आधारित होते हैं, न कि पूर्ण नौकरशाही पर।
- एक व्यक्ति को एक ही समय में दो या दो से अधिक अलग-अलग भूमिकाओं से संबंधित अपेक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई होती है।
- एक व्यक्ति को एक ही भूमिका के भीतर परस्पर विरोधी अपेक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई होती है।
- एक व्यक्ति अपनी भूमिकाओं को प्रभावी ढंग से निभाने में असमर्थ होता है।
- समाज में भूमिकाओं की कमी होती है।
- सटीकता: ‘भूमिका संघर्ष’ (Role Conflict) तब होता है जब एक व्यक्ति को एक ही समय में दो या दो से अधिक भिन्न भूमिकाओं से जुड़ी अपेक्षाओं को पूरा करने में समस्या का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जो एक ही समय में प्रबंधक और किसी की संतान है, उसे दोनों भूमिकाओं की अपेक्षाओं को संतुलित करने में संघर्ष करना पड़ सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: ‘भूमिका अंतर्विरोध’ (Role Strain) वह स्थिति है जब एक ही भूमिका के भीतर परस्पर विरोधी अपेक्षाएं होती हैं (जैसे, एक शिक्षक को न केवल पढ़ाना है, बल्कि छात्रों को प्रेरित भी करना है और अनुशासित भी रखना है)।
- गलत विकल्प: (b) यह भूमिका अंतर्विरोध (Role Strain) का वर्णन करता है। (c) यह भूमिका निभाने में अक्षमता को दर्शाता है। (d) यह भूमिकाओं की कमी से संबंधित है, संघर्ष से नहीं।
- एक ही धर्म के भीतर विभिन्न संप्रदायों का सह-अस्तित्व।
- एक राष्ट्र में विभिन्न धर्मों का सह-अस्तित्व और स्वीकृति।
- केवल एक प्रमुख धर्म का प्रभाव।
- धार्मिक समूहों के बीच निरंतर संघर्ष।
- सटीकता: धार्मिक बहुलवाद एक समाज में विभिन्न धर्मों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, सहिष्णुता और सम्मान की स्थिति को संदर्भित करता है। भारत विभिन्न धर्मों (हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, आदि) का घर है, और इन सभी को संवैधानिक रूप से स्वीकार किया गया है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘संप्रदायवाद’ (Sectarianism) का हिस्सा हो सकता है, लेकिन बहुलवाद का व्यापक अर्थ नहीं है। (c) यह ‘धार्मिक एकाधिकार’ (Religious Monopolism) है। (d) यह ‘धार्मिक संघर्ष’ (Religious Conflict) है।
- हरबर्ट ब्लूमर
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- मैक्स वेबर
- चार्ल्स कूले
- सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने अपने मरणोपरांत प्रकाशित कार्य “Mind, Self, and Society” (1934) में तर्क दिया कि ‘आत्म’ (Self) और चेतना सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से विकसित होते हैं, जहाँ व्यक्ति प्रतीकों (जैसे भाषा) का उपयोग करके अर्थ बनाते और साझा करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) के बीच अंतर किया, जहाँ ‘मैं’ तत्काल प्रतिक्रिया है और ‘मुझे’ समाज द्वारा अपनाई गई संगठित अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। हरबर्ट ब्लूमर ने मीड के विचारों को व्यवस्थित किया और ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ शब्द को गढ़ा। चार्ल्स कूले ने ‘दर्पण-आत्म’ (Looking-glass Self) की अवधारणा दी।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर व्याख्यात्मक समाजशास्त्र के थे।
- वर्ण व्यवस्था (Varna System)
- जाति व्यवस्था (Caste System)
- जाति बहिष्कृत (Outcastes)
- अस्पृश्यता (Untouchability)
- सटीकता: ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) वह प्रथा है जिसके तहत जाति पदानुक्रम में सबसे नीचे के समूहों (जिन्हें अब दलित कहा जाता है) को शारीरिक और सामाजिक रूप से अपवित्र माना जाता था और उनके साथ छुआछूत का व्यवहार किया जाता था।
- संदर्भ और विस्तार: यह भारतीय जाति व्यवस्था की सबसे विकृत और अन्यायपूर्ण विशेषता रही है, जिसने लाखों लोगों को हाशिए पर धकेल दिया। भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया है।
- गलत विकल्प: वर्ण व्यवस्था चार मुख्य वर्गों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का एक सैद्धांतिक मॉडल है। जाति व्यवस्था एक अधिक जटिल और विस्तृत प्रणाली है। ‘जाति बहिष्कृत’ (Outcaste) एक सामान्य शब्द है, लेकिन ‘अस्पृश्यता’ वह विशेष प्रथा है जो उनकी स्थिति को परिभाषित करती है।
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- प्रकार्यवाद (Functionalism)
- सामाजिक निर्माणवाद (Social Constructionism)
- सटीकता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति अपने ‘आत्म’ (Self) और दूसरों के साथ संबंधों को प्रतीकों के माध्यम से निर्मित करते हैं, जिसमें समूह की सदस्यता और पहचान महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ‘सामूहिकीकरण’ (Collectivization) की भावना या सामूहिक पहचान इसी ढांचे में समझी जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत मानता है कि लोग अपने परिवेश से अर्थ निकालते हैं और अपनी सामाजिक दुनिया को सक्रिय रूप से बनाते हैं। समूह की पहचान इसी निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा है।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) अक्सर संघर्ष और शक्ति पर केंद्रित होता है, न कि सामूहिकीकरण पर। प्रकार्यवाद (Functionalism) सामाजिक व्यवस्था और एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर की प्रतीकात्मकता पर नहीं। सामाजिक निर्माणवाद (Social Constructionism) एक व्यापक अवधारणा है, लेकिन प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद विशेष रूप से समूह पहचान निर्माण के लिए प्रासंगिक है।
- वे पश्चिमी समाजों के साथ सीधे संपर्क में नहीं आए हैं।
- उनमें पश्चिमी समाजों के अनुरूप पर्याप्त प्रौद्योगिकी और पूंजी का अभाव है।
- उनमें पारंपरिक मूल्य और संस्थाएं हैं जो प्रगति में बाधा डालती हैं।
- वे अपनी संस्कृति के प्रति अधिक प्रतिबद्ध हैं।
- सटीकता: आधुनिकीकरण सिद्धांत, विशेष रूप से प्रारंभिक रूप में, अक्सर यह तर्क देता है कि अविकसित समाजों की समस्या उनके पारंपरिक मूल्यों, विश्वासों और संस्थाओं में निहित है जो नवाचार, तर्कसंगतता और बाजार-आधारित विकास के खिलाफ काम करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: इस दृष्टिकोण के अनुसार, इन समाजों को “आधुनिक” बनने के लिए अपनी परंपराओं को छोड़ना होगा। इस सिद्धांत की आलोचना भी हुई है कि यह पश्चिमी-केंद्रित है और विकासशील देशों की जटिलताओं को नजरअंदाज करता है।
- गलत विकल्प: (a) और (b) अक्सर आधुनिकीकरण के हिस्से के रूप में आवश्यक माने जाते हैं, लेकिन सिद्धांत के अनुसार मुख्य बाधा पारंपरिक तत्व हैं। (d) परंपरा के प्रति प्रतिबद्धता को अक्सर आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधा के रूप में देखा जाता है।
- समाज की आर्थिक संरचना का अध्ययन।
- समाज में शक्ति संबंधों का विश्लेषण।
- ज्ञान के सामाजिक आधारों, इसके निर्माण, प्रसार और प्रभाव का अध्ययन।
- समाज में विश्वास प्रणालियों का अध्ययन।
- सटीकता: ज्ञान के समाजशास्त्र का मुख्य सरोकार इस बात का अध्ययन करना है कि कैसे सामाजिक कारक, जैसे वर्ग, जाति, लिंग, संस्कृति और ऐतिहासिक संदर्भ, हमारे ज्ञान के निर्माण, प्रसार और स्वीकृति को प्रभावित करते हैं। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि ज्ञान कभी भी तटस्थ या वस्तुनिष्ठ नहीं होता, बल्कि सामाजिक रूप से निर्मित होता है।
- संदर्भ और विस्तार: कार्ल मैनहाइम (Karl Mannheim) इस क्षेत्र के प्रमुख प्रस्तावक थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक “Ideology and Utopia” में विचार के समाजशास्त्र (Sociology of Ideology) और समाज के बीच संबंध की जांच की।
- गलत विकल्प: (a) यह आर्थिक समाजशास्त्र का क्षेत्र है। (b) यह शक्ति संरचनाओं का अध्ययन है। (d) यह धर्मशास्त्र या सामाजिक मनोविज्ञान का हिस्सा हो सकता है, लेकिन ज्ञान के समाजशास्त्र की पूरी परिधि नहीं है।
- जिला स्तर
- राज्य स्तर
- ग्राम पंचायत, ब्लॉक समिति और जिला परिषद
- केवल ग्राम स्तर
- सटीकता: पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs) भारत में त्रि-स्तरीय ग्रामीण स्थानीय स्वशासन प्रणाली हैं, जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, मध्यवर्ती स्तर पर ब्लॉक समिति (या मंडल पंचायत), और जिला स्तर पर जिला परिषद शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया, जिससे ग्रामीण स्थानीय सरकार को सशक्त बनाया गया।
- गलत विकल्प: (a) जिला परिषद पंचायती राज का एक हिस्सा है, लेकिन पूरी व्यवस्था नहीं। (b) राज्य स्तर सरकार की व्यवस्था के लिए है। (d) केवल ग्राम स्तर (ग्राम पंचायत) पंचायती राज का केवल एक हिस्सा है।
- यह मानता है कि समाज में परिवर्तन अक्सर क्रांति या वर्ग संघर्ष से उत्पन्न होता है।
- यह मानता है कि सामाजिक परिवर्तन तब होता है जब समाज की विभिन्न संस्थाएँ (जैसे परिवार, अर्थव्यवस्था, राजनीति) अपने कार्यों में असंतुलन या शिथिलता का अनुभव करती हैं, जिससे व्यवस्था को पुनर्संतुलित करने के लिए परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
- यह मानता है कि व्यक्ति अपने व्यक्तिगत अनुभवों और व्याख्याओं के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाते हैं।
- यह मानता है कि सामाजिक परिवर्तन एक चक्रीय प्रक्रिया है, जिसमें समाज उत्थान और पतन के चरणों से गुजरता है।
- सटीकता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism), विशेष रूप से टैल्कोट पार्सन्स जैसे विचारकों के तहत, सामाजिक परिवर्तन को मुख्य रूप से एक विकासात्मक या सामंजस्यपूर्ण प्रक्रिया के रूप में देखता है। यह मानता है कि जब समाज के विभिन्न भाग (संरचनाएं) अपने कार्यों में ठीक से काम नहीं करते हैं (शिथिलता), तो व्यवस्था को बनाए रखने के लिए समायोजन या परिवर्तन आवश्यक हो जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने ‘अनुकूली पारगमन’ (adaptive structuralism) जैसी अवधारणाओं का उपयोग करके समझाया कि कैसे समाज बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए अपनी संरचनाओं को संशोधित करता है।
- गलत विकल्प: (a) यह संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) का दृष्टिकोण है। (c) यह प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) का दृष्टिकोण है। (d) यह चक्रीय सिद्धांत (Cyclical Theory) का दृष्टिकोण है, जैसे स्पेंगलर या टोय्नबी का।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 15: भारत में, ‘व्यवस्था’ (Dharma) और ‘कर्म’ (Karma) की अवधारणाएँ किस सामाजिक संस्था के साथ सबसे निकटता से जुड़ी हुई हैं?
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 16: ‘पदानुक्रम’ (Hierarchy) और ‘औपचारिकता’ (Formality) को मैक्स वेबर के ‘आदर्श प्रारूप’ (Ideal Type) के किस सामाजिक संस्थात्मक रूप की विशेषता के रूप में वर्णित किया गया है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 17: ‘भूमिका संघर्ष’ (Role Conflict) तब उत्पन्न होता है जब:
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 18: भारत में ‘धार्मिक बहुलवाद’ (Religious Pluralism) का अर्थ क्या है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 19: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रस्तावक कौन हैं, जिन्होंने ‘आत्म’ (Self) और ‘समाज’ (Society) के विकास में प्रतीकों और अंतःक्रियाओं की भूमिका पर जोर दिया?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 20: भारतीय समाज में, ‘अछूत’ (Untouchables) या दलितों (Dalits) को पारंपरिक रूप से जाति पदानुक्रम में सबसे निचला स्थान दिया गया था। इस स्थिति को किस शब्द से जोड़ा जाता है?
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 21: ‘सामूहिकीकरण’ (Collectivization) की अवधारणा, जो उन प्रक्रियाओं को संदर्भित करती है जिनके द्वारा व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत पहचान से ऊपर एक समूह के सदस्य के रूप में पहचान करते हैं, किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत का हिस्सा है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 22: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) के सिद्धांत के अनुसार, अविकसित समाज अविकसित क्यों हैं?
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 23: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) का मुख्य सरोकार क्या है?
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 24: भारत में, ‘पंचायती राज’ व्यवस्था मुख्य रूप से किस स्तर पर ग्रामीण स्थानीय स्वशासन से संबंधित है?
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 25: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) की प्रक्रिया का अध्ययन करने के लिए ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) का दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर: (b)
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