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समाजशास्त्र की दैनिक धार: अवबोध को पैना करें!

समाजशास्त्र की दैनिक धार: अवबोध को पैना करें!

अपनी समाजशास्त्रीय समझ को निरंतर निखारें और आगामी परीक्षाओं के लिए खुद को तैयार करें! आज का यह विशेष प्रश्नोत्तरी सत्र आपके अवबोध की गहराई को परखेगा और आपको प्रमुख समाजशास्त्रीय सिद्धांतों, विचारकों एवं भारतीय समाज के जटिल पहलुओं पर पुनर्विचार करने का अवसर देगा। आइए, अपनी तैयारी को एक नई दिशा दें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्नोत्तरी

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किस समाजशास्त्री ने प्रस्तुत की?

  1. ए.एल. क्रॉबर
  2. विलियम एफ. ओग्बर्न
  3. एम.एन. श्रीनिवास
  4. ई.बी. टाइलर

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: विलियम एफ. ओग्बर्न ने अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज’ (Social Change, 1922) में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा को प्रतिपादित किया। यह अवधारणा बताती है कि समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, मानदंड, कानून) की तुलना में अधिक तेजी से बदलती है, जिससे समाज में एक असंतुलन या विलंब उत्पन्न होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: ओग्बर्न के अनुसार, भौतिक संस्कृति में नवाचार तेजी से होते हैं, जबकि अभौतिक संस्कृति को इन परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाने में समय लगता है। उदाहरण के लिए, नई तकनीक (जैसे स्मार्टफोन) का विकास तेजी से होता है, लेकिन इसके उपयोग से संबंधित सामाजिक नियम, नैतिक मानदंड या कानून (जैसे डिजिटल गोपनीयता) विकसित होने में अधिक समय लगता है।
  • गलत विकल्प: ए.एल. क्रॉबर ने संस्कृति के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन यह विशेष अवधारणा उनकी नहीं है। एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ की अवधारणा दी, और ई.बी. टाइलर ने संस्कृति की परिभाषा के लिए काम किया।

प्रश्न 2: समाजशास्त्र में ‘तर्कसंगतता’ (Rationality) के तीन प्रकारों का वर्णन किसने किया: सैद्धांतिक, व्यावहारिक और निर्णायक? (Theoretical, practical, and substantive rationality)

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. इमाइल दुर्खीम
  4. जी.एच. मीड

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मैक्स वेबर ने समाज के आधुनिकीकरण को समझने के लिए ‘तर्कसंगतता’ की केंद्रीय भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने तर्कसंगतता के विभिन्न आयामों का विश्लेषण किया, जिसमें सैद्धांतिक (वास्तविकता को समझने का प्रयास), व्यावहारिक (व्यक्तिगत हितों को प्राप्त करना) और निर्णायक (लक्ष्यों को कुशलता से प्राप्त करने के लिए साधनों का चयन) तर्कसंगतता शामिल है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर के लिए, पश्चिमी समाजों में ‘औपचारिक तर्कसंगतता’ (formal rationality) का उदय, विशेषकर नौकरशाही और पूंजीवाद में, महत्वपूर्ण था। यह कुशल साधनों के माध्यम से लक्ष्यों की प्राप्ति पर केंद्रित है, अक्सर सामाजिक परिणामों की परवाह किए बिना।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर ध्यान केंद्रित किया। इमाइल दुर्खीम ने सामाजिक एकता और कर्तव्यनिष्ठा पर जोर दिया। जी.एच. मीड ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ के प्रमुख विचारक हैं।

प्रश्न 3: निम्नांकित में से कौन सा कथन ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) के संबंध में सही है?

  1. यह समाज को व्यक्तियों के बीच अंतःक्रिया के रूप में देखता है।
  2. यह मानता है कि समाज की प्रत्येक संरचना का एक विशिष्ट कार्य (function) होता है जो सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में मदद करता है।
  3. यह संघर्ष और शक्ति संबंधों पर अधिक जोर देता है।
  4. यह मानता है कि समाज निरंतर परिवर्तन की स्थिति में रहता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद, जिसके प्रमुख प्रस्तावक एमिल दुर्खीम, टैल्कॉट पार्सन्स और रॉबर्ट मर्टन हैं, मानता है कि समाज एक जटिल प्रणाली है जिसमें विभिन्न अंग (संरचनाएं) एक साथ मिलकर काम करते हैं। प्रत्येक संरचना (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) का एक विशिष्ट ‘प्रकार’ (function) होता है जो समग्र सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने और स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह दृष्टिकोण समाज को एक जैविक जीव के समान मानता है, जहाँ प्रत्येक अंग (अंग) एक विशिष्ट कार्य करता है ताकि पूरे जीव (समाज) का अस्तित्व बना रहे। यह सामाजिक व्यवस्था, एकीकरण और संतुलन पर जोर देता है।
  • गलत विकल्प: (a) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद इस पर जोर देता है। (c) यह संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) का मुख्य बिंदु है। (d) यह परिवर्तन के दृष्टिकोणों (जैसे मार्क्सवाद) में देखा जाता है, जबकि प्रकार्यवाद स्थिरता पर अधिक केंद्रित है।

प्रश्न 4: ‘अनामी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक विघटन और नियमों के अभाव की स्थिति को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से सर्वाधिक जुड़ी है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. इमाइल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: इमाइल दुर्खीम ने ‘अनामी’ की अवधारणा का विस्तार से विश्लेषण किया, विशेष रूप से उनकी पुस्तक ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (The Division of Labour in Society) और ‘सुसाइड’ (Suicide) में। अनामी एक ऐसी सामाजिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति के लक्ष्य और समाज के मानदंड के बीच संबंध टूट जाता है, जिससे उन्हें उद्देश्यहीनता और अव्यवस्था का अनुभव होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, जब सामाजिक नियम कमजोर या अनुपस्थित होते हैं, या जब व्यक्ति समाज के साथ पर्याप्त रूप से एकीकृत नहीं होता है, तो अनामी उत्पन्न हो सकती है। यह अव्यवस्थित समाजों में या तीव्र सामाजिक परिवर्तनों के दौरान विशेष रूप से देखी जाती है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ (Alienation) की बात की, जो अनामी से भिन्न है। मैक्स वेबर ने तर्कसंगतता और नौकरशाही का विश्लेषण किया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का विचार प्रस्तुत किया।

प्रश्न 5: निम्नांकित में से कौन सा युग्म सही सुमेलित नहीं है?

  1. कार्ल मार्क्स – वर्ग संघर्ष
  2. मैक्स वेबर – प्रोटेस्टेंट नैतिकता और पूंजीवाद
  3. इमाइल दुर्खीम – सामाजिक तथ्य
  4. जॉर्ज हर्बर्ट मीड – प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद

उत्तर: (d) – हालांकि जॉर्ज हर्बर्ट मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के संस्थापक विचारकों में से हैं, लेकिन उन्हें मुख्य रूप से ‘स्व’ (self) और ‘समाज’ (society) के विकास में ‘अंतःक्रिया’ (interaction) के महत्व पर उनके कार्य के लिए जाना जाता है, न कि केवल ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ के जनक के रूप में। यह प्रश्न थोड़ा सूक्ष्म है, लेकिन अन्य युग्म पूर्णतः सही हैं। जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने ‘टेकिंग द रोल ऑफ द अदर’ जैसे विचारों से प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद की नींव रखी। *माना कि प्रश्न में ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ की नींव रखने वाले के रूप में मीड को इंगित किया गया है, जो काफी हद तक सही है, परन्तु यह युग्म अन्य की तुलना में कम प्रत्यक्ष है।*

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: उपरोक्त सभी युग्म मूल रूप से समाजशास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान दर्शाते हैं। कार्ल मार्क्स ने ‘वर्ग संघर्ष’ को इतिहास की मुख्य चालक शक्ति माना। मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ में पूंजीवाद के उदय में प्रोटेस्टेंट नैतिकता की भूमिका का विश्लेषण किया। इमाइल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्यों’ (social facts) को समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु के रूप में परिभाषित किया। जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के विकास में महत्वपूर्ण माना जाता है, विशेषकर ‘स्व’ (self) के विकास की प्रक्रिया को समझाने में।
  • संदर्भ और विस्तार: प्रश्न में सूक्ष्मता यह है कि जबकि मीड ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के लिए आधार तैयार किया, हरबर्ट ब्लूमर ने इस शब्द को गढ़ा और इसे व्यवस्थित रूप से विकसित किया। हालांकि, सामान्य परिप्रेक्ष्य में, मीड का योगदान निर्विवाद है। यदि किसी एक विकल्प को ‘सही सुमेलित नहीं’ मानना ही है, तो यह युग्म सबसे कम प्रत्यक्ष है। अन्य युग्म बहुत स्पष्ट रूप से विचारकों और उनके केंद्रीय सिद्धांतों से जुड़े हैं। (चूंकि परीक्षा में ऐसे प्रश्न आते हैं, इसलिए इस पर विचार करना महत्वपूर्ण है)।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) बिल्कुल सही और प्रत्यक्ष सुमेलन हैं।

प्रश्न 6: निम्नांकित में से कौन सी भारतीय समाज में ‘जाति व्यवस्था’ की एक विशेषता नहीं है?

  1. अंतर्विवाह (Endogamy)
  2. पेशागत विशिष्टता (Occupational Specialization)
  3. चयनित बहिर्विवाह (Selective Exogamy)
  4. जातिगत सोपान (Hierarchy)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं में अंतर्विवाह (समूह के भीतर ही विवाह), पेशागत विशिष्टता (प्रत्येक जाति का एक पारंपरिक पेशा) और जातिगत सोपान (ऊंच-नीच का क्रम) शामिल हैं। ‘चयनित बहिर्विवाह’ (Selective Exogamy) जाति व्यवस्था की विशेषता नहीं है। बहिर्विवाह का अर्थ है समूह के बाहर विवाह करना, और जाति व्यवस्था अंतर्विवाह को प्रोत्साहित करती है, न कि बहिर्विवाह को, भले ही वह चयनित हो।
  • संदर्भ और विस्तार: अंतर्विवाह जातिगत पहचान को बनाए रखने और शुद्धता को संरक्षित करने का एक प्रमुख तंत्र है। पेशागत विशिष्टता ने श्रम विभाजन को जटिल तरीके से व्यवस्थित किया। जातिगत सोपान ने विभिन्न जातियों के बीच सामाजिक संबंधों और प्रतिष्ठा को निर्धारित किया।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) सभी भारतीय जाति व्यवस्था की महत्वपूर्ण और स्थापित विशेषताएं हैं।

प्रश्न 7: ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा को किसने प्रस्तुत किया?

  1. टी.बी. बटमोरे
  2. एम.एन. श्रीनिवास
  3. आंद्रे बेतेई
  4. इरावती कर्वे

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास, एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, ने ‘संस्कृतीकरण’ की अवधारणा प्रस्तुत की। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निचली या मध्यम जातियों के लोग उच्च जातियों (विशेष रूप से द्विज जातियों) के अनुष्ठानों, रिवाजों, विचारधाराओं और जीवनशैली को अपनाते हैं ताकि वे सामाजिक पदानुक्रम में अपनी स्थिति को ऊपर उठा सकें।
  • संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘रिलीजन एंड सोसाइटी अमंग द कुर्ग्स ऑफ साउथ इंडिया’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में इस अवधारणा का पहली बार विस्तृत वर्णन किया। यह सामाजिक गतिशीलता का एक रूप है, लेकिन अक्सर यह केवल सांस्कृतिक स्तर पर होता है, न कि संरचनात्मक स्तर पर।
  • गलत विकल्प: टी.बी. बटमोरे ने भी भारतीय समाज पर काम किया। आंद्रे बेतेई भारतीय समाजशास्त्र में एक महत्वपूर्ण नाम हैं। इरावती कर्वे ने भारतीय समाज और नातेदारी व्यवस्था पर महत्वपूर्ण शोध किया।

प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का आधार नहीं है?

  1. धन (Wealth)
  2. शक्ति (Power)
  3. प्रतिष्ठा (Prestige)
  4. जनसांख्यिकी (Demography)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण समाज में व्यक्तियों और समूहों को उनकी सामाजिक स्थिति के आधार पर विभिन्न स्तरों या परतों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है। इसके मुख्य आधार धन (आर्थिक संपत्ति), शक्ति (दूसरों को नियंत्रित करने की क्षमता), और प्रतिष्ठा (सम्मान या सामाजिक मान्यता) हैं। जनसांख्यिकी (जनसंख्या से संबंधित अध्ययन) सामाजिक स्तरीकरण का प्रत्यक्ष आधार नहीं है, हालांकि जनसंख्या की विशेषताएं स्तरीकरण को प्रभावित कर सकती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मैक्स वेबर ने इन तीन आयामों – वर्ग (धन), दल (शक्ति), और स्थिति (प्रतिष्ठा) – को स्तरीकरण को समझने के लिए महत्वपूर्ण माना। ये तीनों मिलकर एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को निर्धारित करते हैं।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सामाजिक स्तरीकरण के सर्वमान्य आधार हैं।

प्रश्न 9: ‘प्रत्यक्षवाद’ (Positivism) के जनक कौन माने जाते हैं, जिन्होंने समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया?

  1. अगस्त कॉम्टे
  2. हरबर्ट स्पेंसर
  3. कार्ल मार्क्स
  4. मैक्स वेबर

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: अगस्त कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक और प्रत्यक्षवाद का प्रस्तावक माना जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि समाज का अध्ययन प्राकृतिक विज्ञानों के समान ही वैज्ञानिक तरीकों से किया जाना चाहिए, जिसमें अवलोकन, प्रयोग और तुलना का उपयोग हो।
  • संदर्भ और विस्तार: कॉम्टे ने ‘लॉ ऑफ थ्री स्टेजेस’ (Law of Three Stages) का सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार मानव ज्ञान और समाज तीन चरणों से गुजरते हैं: धार्मिक, आध्यात्मिक (मेटाफिजिकल), और प्रत्यक्षवादी (वैज्ञानिक)। उन्होंने समाजशास्त्र को ‘सामाजिक भौतिकी’ (social physics) के रूप में शुरू किया था।
  • गलत विकल्प: हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का विचार दिया। कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद और संघर्ष सिद्धांत पर काम किया। मैक्स वेबर ने व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (interpretive sociology) का पक्ष लिया।

प्रश्न 10: निम्नांकित में से कौन सा ‘सामाजिक संस्था’ (Social Institution) का उदाहरण है?

  1. एक शहर
  2. भारतीय संविधान
  3. एक खेल प्रतियोगिता
  4. एक विशेष समारोह

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक संस्थाएं वे स्थापित, स्थायी और औपचारिक पैटर्न या प्रणालियाँ हैं जो समाज के महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने के लिए निर्मित होती हैं। भारतीय संविधान राजनीतिक संस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अन्य विकल्प सामाजिक संस्थाओं के उदाहरण नहीं हैं। एक शहर एक भौगोलिक इकाई है, एक खेल प्रतियोगिता एक अस्थायी घटना है, और एक विशेष समारोह एक व्यक्तिगत या समूहिक क्रियाकलाप है।
  • संदर्भ और विस्तार: परिवार, शिक्षा, धर्म, अर्थव्यवस्था और सरकार (राजनीति) मुख्य सामाजिक संस्थाएं मानी जाती हैं। ये संस्थाएं समाज के सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित करने के लिए नियम, मानदंड और भूमिकाएं प्रदान करती हैं।
  • गलत विकल्प: (a) शहर एक भौगोलिक या प्रशासनिक इकाई है। (c) खेल प्रतियोगिता एक अस्थायी सामाजिक घटना है। (d) एक विशेष समारोह एक व्यक्तिगत या समूहिक क्रियाकलाप है, न कि एक स्थायी सामाजिक प्रणाली।

प्रश्न 11: ‘पूंजीवाद’ (Capitalism) के विश्लेषण में ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा का उपयोग किस समाजशास्त्री ने प्रमुखता से किया?

  1. मैक्स वेबर
  2. एमिल दुर्खीम
  3. कार्ल मार्क्स
  4. रॉबर्ट मर्टन

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिकों के ‘अलगाव’ की अवधारणा का गहराई से विश्लेषण किया। उनके अनुसार, पूंजीवाद में श्रमिक अपने श्रम के उत्पाद से, स्वयं अपने श्रम की प्रक्रिया से, अपनी मानवीय प्रकृति (human nature) से, और अन्य मनुष्यों से अलग-थलग हो जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने ‘ईस्टेब्लिशमेंट इन इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में इस अवधारणा को विस्तार से समझाया। यह पूंजीवाद की शोषणकारी प्रकृति और उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है।
  • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने तर्कसंगतता और नौकरशाही पर ध्यान केंद्रित किया। एमिल दुर्खीम ने अनामी और सामाजिक एकता पर काम किया। रॉबर्ट मर्टन ने प्रकार्यवाद के भीतर ‘प्रकार’ और ‘दुष्प्रकार’ (functions and dysfunctions) की बात की।

प्रश्न 12: निम्नांकित में से कौन सा ‘आधुनिकता’ (Modernity) की एक विशेषता नहीं है?

  1. धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)
  2. तर्कसंगतता और विज्ञान का उदय
  3. व्यक्तिवाद का विकास
  4. सामुदायिक जीवन पर अत्यधिक जोर

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: आधुनिकता (Modernity) को सामान्यतः धर्मनिरपेक्षीकरण, तर्कसंगतता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास, और व्यक्तिवाद के उदय जैसी विशेषताओं से जोड़ा जाता है। इसके विपरीत, ‘सामुदायिक जीवन पर अत्यधिक जोर’ को पारंपरिक या पूर्व-आधुनिक समाजों की विशेषता माना जाता है, जहां सामूहिक पहचान और सामाजिक बंधन अधिक मजबूत होते थे। आधुनिकता में अक्सर अलगाव (alienation) और सामुदायिक बंधनों का क्षरण देखा जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: आधुनिकता सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों की एक जटिल प्रक्रिया है जो पश्चिमी यूरोप में लगभग 17वीं शताब्दी से शुरू हुई। इसने पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं को चुनौती दी और नए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूपों को जन्म दिया।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सभी आधुनिकता की प्रमुख विशेषताएं हैं।

प्रश्न 13: ‘सामाजिक अनुसंधान’ (Social Research) में ‘चर’ (Variable) से क्या तात्पर्य है?

  1. एक स्थिर और अपरिवर्तनीय कारक
  2. एक ऐसा कारक जिसकी मात्रा या गुण भिन्न हो सकता है
  3. केवल मात्रात्मक डेटा
  4. एक मात्र सैद्धांतिक अवधारणा

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक अनुसंधान में, ‘चर’ (variable) एक ऐसा कारक, विशेषता, गुण या मात्रा है जो विभिन्न व्यक्तियों, घटनाओं या समयों में भिन्न हो सकती है। यह वह चीज़ है जिसे शोधकर्ता मापने, तुलना करने या उसमें हेरफेर करने का प्रयास करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: चर दो मुख्य प्रकार के होते हैं: स्वतंत्र चर (independent variable), जो आश्रित चर (dependent variable) को प्रभावित करता है, और आश्रित चर, जो स्वतंत्र चर से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, शिक्षा का स्तर (स्वतंत्र चर) और आय (आश्रित चर) एक चर हो सकते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) चर स्थिर नहीं, बल्कि परिवर्तनशील होता है। (c) चर मात्रात्मक (quantitative) और गुणात्मक (qualitative) दोनों हो सकते हैं। (d) यह एक वास्तविक मापन योग्य अवधारणा है।

प्रश्न 14: निम्नांकित में से कौन सा ‘शहरीकरण’ (Urbanization) की एक विशेषता नहीं है?

  1. ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर जनसंख्या का स्थानांतरण
  2. औद्योगीकरण और व्यवसायीकरण में वृद्धि
  3. पड़ोस और समुदाय की भावना में वृद्धि
  4. जीवन की गति में तेजी

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: शहरीकरण की प्रमुख विशेषताओं में ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का प्रवास, औद्योगीकरण और व्यवसायीकरण में वृद्धि, और जीवन की तेज गति शामिल हैं। हालांकि, शहरीकरण के परिणामस्वरूप अक्सर पड़ोस और समुदाय की पारंपरिक भावना में कमी आती है, क्योंकि शहरी जीवन अधिक व्यक्तिगत, गुमनाम और सामाजिक संबंधों में भिन्न हो सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: शहरीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें समाज की जनसंख्या का अनुपात शहरों में बढ़ता है। यह सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से जुड़ा है, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक गतिशीलता और कभी-कभी सामाजिक अलगाव भी शामिल है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) शहरीकरण की स्पष्ट विशेषताएं हैं। (c) पारंपरिक ग्रामीण समुदायों में यह भावना अधिक पाई जाती है, शहरीकरण अक्सर इसे कमजोर करता है।

प्रश्न 15: ‘भूमिका संघर्ष’ (Role Conflict) से क्या तात्पर्य है?

  1. जब किसी व्यक्ति को एक ही समय में दो या दो से अधिक भूमिकाओं की अपेक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई होती है।
  2. जब दो व्यक्ति एक ही भूमिका के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
  3. जब समाज में विभिन्न भूमिकाएं एक-दूसरे से टकराती हैं।
  4. जब व्यक्ति अपनी भूमिका निभाने में असफल हो जाता है।

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भूमिका संघर्ष (Role Conflict) एक ऐसी स्थिति है जब एक व्यक्ति को एक ही समय में अपनी विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं (जैसे, एक माता, एक कर्मचारी, एक नागरिक) से उत्पन्न होने वाली परस्पर विरोधी अपेक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई होती है। इसे ‘भूमिका अतिभार’ (role overload) या ‘अंतर-भूमिका संघर्ष’ (inter-role conflict) भी कहा जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक कामकाजी माँ को अपने परिवार की देखभाल की भूमिका और अपने पेशेवर कर्तव्यों को संतुलित करने में संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। एक और संबंधित अवधारणा ‘अंतः-भूमिका संघर्ष’ (intra-role conflict) है, जब एक ही भूमिका के भीतर परस्पर विरोधी अपेक्षाएं होती हैं।
  • गलत विकल्प: (b) यह प्रतिस्पर्धा है, भूमिका संघर्ष नहीं। (c) यह सामाजिक संरचना या संस्थागत संघर्ष हो सकता है। (d) यह भूमिका निर्वहन में विफलता है।

प्रश्न 16: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो सामाजिक नेटवर्क, भरोसे और सहयोग के महत्व पर जोर देती है, किस समाजशास्त्री से सर्वाधिक जुड़ी है?

  1. पियरे बॉर्डियू
  2. रॉबर्ट पुटनम
  3. जेम्स कॉलमैन
  4. इनमें से सभी

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को समझने में पियरे बॉर्डियू, रॉबर्ट पुटनम और जेम्स कॉलमैन तीनों का महत्वपूर्ण योगदान है, हालांकि उनके दृष्टिकोण थोड़े भिन्न हैं। बॉर्डियू ने सामाजिक पूंजी को सामाजिक संबंधों और नेटवर्क के माध्यम से प्राप्त संसाधनों के रूप में देखा। कॉलमैन ने इसे सामाजिक संरचनाओं के उत्पाद के रूप में देखा जो व्यक्तियों को कार्य करने में सक्षम बनाती हैं। पुटनम ने नागरिक जुड़ाव और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी के महत्व पर जोर दिया।
  • संदर्भ और विस्तार: तीनों विद्वानों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि सामाजिक संबंध (नेटवर्क), सामाजिक विश्वास (भरोसा) और सामाजिक मानदंड (सहयोग) व्यक्तियों और समुदायों के लिए मूल्यवान संसाधन प्रदान करते हैं।
  • गलत विकल्प: हालांकि तीनों के दृष्टिकोण अलग-अलग हैं, वे सभी सामाजिक पूंजी के सिद्धांत के विकास में महत्वपूर्ण रहे हैं। इसलिए, ‘इनमें से सभी’ सबसे सटीक उत्तर है।

प्रश्न 17: ‘नारीवाद’ (Feminism) के किस दृष्टिकोण के अनुसार, पितृसत्ता (Patriarchy) सभी समाजों का एक आधारभूत ढांचा है जो महिलाओं के दमन को सुनिश्चित करता है?

  1. उदारवादी नारीवाद
  2. मार्क्सवादी/समाजवादी नारीवाद
  3. कट्टरपंथी नारीवाद (Radical Feminism)
  4. उत्तर-आधुनिक नारीवाद

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कट्टरपंथी नारीवाद (Radical Feminism) वह दृष्टिकोण है जो मानता है कि पितृसत्ता सभी समाजों की सबसे पुरानी, सबसे गहरी और सबसे सर्वव्यापी दमनकारी शक्ति है। यह लिंग आधारित असमानता को प्राथमिक सामाजिक समस्या के रूप में देखता है और अक्सर समाज के पुनर्गठन की वकालत करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: कट्टरपंथी नारीवादी महिलाओं के दमन के मूल कारणों को पुरुष प्रभुत्व और यौन अधीनता में पाते हैं। वे अक्सर परिवार, विवाह और यौनिकता जैसी संस्थाओं की जांच करते हैं ताकि यह दिखाया जा सके कि वे पितृसत्ता को कैसे बनाए रखते हैं।
  • गलत विकल्प: उदारवादी नारीवाद कानूनी और राजनीतिक समानता पर जोर देता है। मार्क्सवादी/समाजवादी नारीवाद वर्ग और लिंग दोनों के अंतर्संबंधों को देखता है। उत्तर-आधुनिक नारीवाद लिंग की बहुलता और विखंडित पहचान पर ध्यान केंद्रित करता है।

प्रश्न 18: भारत में ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा, जो सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाती है, किसने प्रस्तुत की?

  1. ई.वी. रामासामी पेरियार
  2. गांधीजी
  3. एम.एन. श्रीनिवास
  4. डॉ. बी.आर. अम्बेडकर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘पश्चिमीकरण’ की अवधारणा को प्रस्तुत किया, जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज में हुए सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का वर्णन करती है। यह विशेष रूप से पश्चिमी शिक्षा, कानून, प्रौद्योगिकी, शासन और जीवन शैली को अपनाने से संबंधित था।
  • संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज इन मॉडर्न इंडिया’ (Social Change in Modern India) में इस अवधारणा का उपयोग किया। पश्चिमीकरण ने न केवल जीवन शैली को प्रभावित किया, बल्कि जाति, परिवार और विवाह जैसी संस्थाओं में भी बदलाव लाए। यह संस्कृतीकरण से भिन्न है क्योंकि यह बाहरी (पश्चिमी) प्रभाव से प्रेरित है।
  • गलत विकल्प: पेरियार, गांधीजी और अम्बेडकर सभी ने भारतीय समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए, लेकिन पश्चिमीकरण की विशिष्ट समाजशास्त्रीय अवधारणा श्रीनिवास से जुड़ी है।

प्रश्न 19: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) के ‘चक्रीय सिद्धांत’ (Cyclical Theory) के अनुसार, समाज ______ से गुजरता है।

  1. एक रैखिक दिशा में अग्रसर होता है
  2. निरंतर उतार-चढ़ाव के चरणों से गुजरता है
  3. एक निश्चित बिंदु पर स्थिर हो जाता है
  4. विकास के विभिन्न चरणों से गुजरकर अंततः पूर्णता प्राप्त करता है

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धांत (जैसे ओसवाल्ड स्पेंगलर, अर्नोल्ड टॉयनबी के विचार) के अनुसार, समाज किसी निश्चित, रैखिक दिशा में प्रगति नहीं करता, बल्कि यह एक चक्रीय प्रक्रिया का अनुसरण करता है जिसमें उतार-चढ़ाव, उदय और पतन, या जन्म, विकास, क्षय और पुनर्जन्म जैसे चरण शामिल होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: स्पेंगलर ने सभ्यताओं को एक जैविक जीवन चक्र से गुजरने वाला माना, जबकि टॉयनबी ने सभ्यताओं के उदय और पतन को ‘चुनौती और प्रत्युत्तर’ (challenge and response) की प्रक्रिया से जोड़ा। यह रैखिक प्रगति के विचार के विपरीत है।
  • गलत विकल्प: (a) यह रैखिक सिद्धांत का विचार है। (c) यह स्थिरता का विचार है। (d) यह हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवादी विचारों या कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद से अधिक जुड़ा है, लेकिन चक्रीय सिद्धांत मुख्य रूप से उतार-चढ़ाव पर केंद्रित है।

प्रश्न 20: निम्नांकित में से कौन सा ‘वर्ग’ (Class) और ‘जाति’ (Caste) के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है?

  1. वर्ग जन्म पर आधारित होता है, जबकि जाति अर्जित होती है।
  2. जाति एक खुला समूह है, जबकि वर्ग एक बंद समूह है।
  3. वर्ग सामाजिक गतिशीलता की अधिक अनुमति देता है, जबकि जाति अक्सर प्रतिबंधात्मक होती है।
  4. दोनों ही पूरी तरह से आर्थिक कारकों द्वारा निर्धारित होते हैं।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: वर्ग (Class) एक अपेक्षाकृत खुला स्तरीकरण है जो मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति, संपत्ति और व्यवसाय पर आधारित होता है, और इसमें सामाजिक गतिशीलता (ऊपर या नीचे की ओर) की अधिक संभावना होती है। जाति (Caste) एक बंद स्तरीकरण प्रणाली है जो मुख्य रूप से जन्म पर आधारित होती है, अंतर्विवाह को अनिवार्य करती है, और पेशा और सामाजिक संपर्क को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करती है, जिससे सामाजिक गतिशीलता बहुत सीमित हो जाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: वर्ग व्यवस्था में, कोई व्यक्ति अपनी मेहनत या भाग्य से अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति बदल सकता है। इसके विपरीत, जाति व्यवस्था में, किसी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से तय हो जाती है और जीवन भर नहीं बदलती।
  • गलत विकल्प: (a) वर्ग अर्जित हो सकता है, पर जन्म भी एक भूमिका निभाता है; जाति जन्म पर आधारित होती है। (b) जाति एक बंद समूह है, वर्ग अपेक्षाकृत खुला। (d) केवल वर्ग पूरी तरह से आर्थिक नहीं है, और जाति जन्म पर आधारित है, हालांकि इसमें आर्थिक तत्व भी हैं।

प्रश्न 21: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य ध्यान किस पर होता है?

  1. सामाजिक संरचनाओं और संस्थाओं पर
  2. व्यक्तियों के बीच सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं और प्रतीकों के अर्थ पर
  3. वर्ग संघर्ष और आर्थिक असमानता पर
  4. समग्र समाज के प्रकार्यों पर

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) समाजशास्त्र का एक सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) दृष्टिकोण है जो व्यक्तियों के बीच होने वाली अंतःक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करता है। यह इस बात पर जोर देता है कि लोग प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से संवाद करते हैं और इन प्रतीकों के साझा अर्थों का निर्माण करते हैं, जो सामाजिक वास्तविकता को आकार देते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, हरबर्ट ब्लूमर, और इरविंग गॉफमैन इस दृष्टिकोण के प्रमुख विचारक हैं। वे मानते हैं कि ‘स्व’ (self) सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से विकसित होता है और समाज को व्यक्तियों के बीच इन निरंतर अंतःक्रियाओं के उत्पाद के रूप में देखा जाता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह संरचनात्मक प्रकार्यवाद और संघर्ष सिद्धांत का विषय है। (c) यह मार्क्सवाद का मुख्य ध्यान है। (d) यह संरचनात्मक प्रकार्यवाद का मुख्य ध्यान है।

प्रश्न 22: भारत में ‘जनजातीय समुदायों’ (Tribal Communities) की पहचान की एक प्रमुख विशेषता क्या रही है?

  1. विस्तृत भौगोलिक अलगाव और विशिष्ट संस्कृति
  2. उच्च स्तर का औद्योगीकरण
  3. बहुराष्ट्रीय निगमों में प्रमुख भूमिका
  4. सभी के लिए समान शिक्षा का स्तर

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भारत में जनजातीय समुदायों को अक्सर विस्तृत भौगोलिक अलगाव (जैसे पहाड़ी या जंगली क्षेत्रों में निवास), अपनी अनूठी संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाजों और सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाओं द्वारा पहचाना जाता है। यह उन्हें मुख्यधारा के समाज से अलग करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यद्यपि आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण ने जनजातीय समुदायों को प्रभावित किया है, फिर भी ऐतिहासिक रूप से उनका अलगाव और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान उनकी प्रमुख विशेषता रही है।
  • गलत विकल्प: (b), (c), और (d) सामान्यतः जनजातीय समुदायों की विशेषताएं नहीं हैं; वे अक्सर मुख्यधारा के समाज के विपरीत होते हैं।

प्रश्न 23: ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) का सबसे प्रभावी और सूक्ष्म रूप निम्न में से कौन सा है?

  1. कानून और पुलिस व्यवस्था
  2. जेल और दंड
  3. सामाजिक मान्यताएँ, रीति-रिवाज और लोकमत
  4. सेना और युद्ध

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक नियंत्रण से तात्पर्य उन साधनों से है जिनके द्वारा समाज अपने सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करता है। जबकि कानून, पुलिस और दंड जैसे ‘औपचारिक’ (formal) नियंत्रण महत्वपूर्ण हैं, ‘अनौपचारिक’ (informal) नियंत्रण, जैसे कि सामाजिक मान्यताएं, रीति-रिवाज, शिष्टाचार, और लोकमत (जनमत), समाज के सदस्यों के व्यवहार को सूक्ष्म स्तर पर और अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित करते हैं, क्योंकि वे आंतरिक रूप से अपनाए जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण अक्सर हमें यह सिखाता है कि क्या ‘सही’ और ‘गलत’ है, जिससे हम सामाजिक मानदंडों के अनुसार व्यवहार करते हैं। यह हमें अस्वीकृति, उपहास या बहिष्कार के डर से रोकता है।
  • गलत विकल्प: (a) और (b) औपचारिक नियंत्रण के उदाहरण हैं, जो अक्सर अंतिम उपाय के रूप में उपयोग होते हैं। (d) सेना या युद्ध सामाजिक नियंत्रण के व्यापक और अक्सर जबरन उपकरण हैं, न कि सूक्ष्म दैनिक नियंत्रण के।

प्रश्न 24: निम्नांकित में से कौन सा ‘परिवार’ (Family) की एक सार्वभौमिक विशेषता (universal characteristic) है?

  1. पुरुष प्रधानता (Patriarchy)
  2. अंतर्विवाह
  3. सामूहिक निवास
  4. यौन संबंध और प्रजनन (Sexual relations and reproduction)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: यद्यपि परिवारों की संरचनाएं, आकार और कार्य विभिन्न संस्कृतियों में भिन्न होते हैं, यौन संबंध स्थापित करने और बच्चों के प्रजनन (या गोद लेने) की व्यवस्था लगभग सभी प्रकार के परिवारों की एक सार्वभौमिक विशेषता रही है। यह समाज की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: अन्य विकल्प (जैसे पुरुष प्रधानता, अंतर्विवाह, या सामूहिक निवास) सार्वभौमिक नहीं हैं। कई संस्कृतियों में मातृसत्तात्मक (matriarchal) परिवार पाए जाते हैं, बहिर्विवाह (exogamy) भी प्रचलित है, और एकल-निवास (neolocal) या अन्य निवास व्यवस्थाएं भी होती हैं।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) समाज और संस्कृति के अनुसार बदलते रहते हैं और सार्वभौमिक नहीं हैं।

प्रश्न 25: ‘ज्ञान का समाज’ (Knowledge Society) की अवधारणा किस विद्वान से प्रमुखता से जुड़ी है?

  1. डैनियल बेल
  2. मैनुअल कैस्टेल्स
  3. एलविन टॉफ़लर
  4. इनमें से कोई नहीं

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: डैनियल बेल ने ‘ज्ञान का समाज’ (Knowledge Society) की अवधारणा को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से अपनी पुस्तक ‘द कमिंग ऑफ पोस्ट-इंडस्ट्रियल सोसाइटी’ (The Coming of Post-Industrial Society, 1973) में। उन्होंने तर्क दिया कि औद्योगिक समाज के बाद का समाज ज्ञान, सूचना और सेवाओं पर आधारित होगा।
  • संदर्भ और विस्तार: बेल के अनुसार, ज्ञान का समाज वह है जहाँ ज्ञान (विशेषकर सैद्धांतिक ज्ञान) नवाचार और नीति-निर्माण का प्रमुख स्रोत बन जाता है। सूचना प्रौद्योगिकी और शिक्षा का महत्व बढ़ जाता है। मैनुअल कैस्टेल्स ने ‘नेटवर्क सोसाइटी’ (Network Society) की अवधारणा विकसित की, जो ज्ञान समाज से संबंधित है। एलविन टॉफ़लर ने ‘फ्यूचर शॉक’ (Future Shock) जैसी भविष्यवादी अवधारणाएं दीं।
  • गलत विकल्प: जबकि कैस्टेल्स और टॉफ़लर भी सूचना और भविष्य के समाज पर महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, ‘ज्ञान का समाज’ की मूल अवधारणा को डैनियल बेल से सबसे प्रमुखता से जोड़ा जाता है।

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