समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: संकल्पनाओं को करें पुष्ट!
नमस्कार, समाजशास्त्र के जिज्ञासु अध्ययनों! आज एक बार फिर हम लेकर आए हैं आपके लिए ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक प्रश्नों का एक नया संकलन। अपनी समाजशास्त्रीय समझ को परखने और महत्वपूर्ण अवधारणाओं को गहराई से आत्मसात करने के लिए तैयार हो जाइए। यह दैनिक अभ्यास सत्र आपकी आगामी परीक्षाओं में सफलता की राह को और सुगम बनाएगा। आइए, शुरू करें आज की यह बौद्धिक यात्रा!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों को हल करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “सामाजिक तथ्य” (social facts) की अवधारणा, जिसे उन्होंने वस्तुनिष्ठता के साथ अध्ययन करने योग्य माना, निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री द्वारा प्रतिपादित की गई थी?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “सामाजिक तथ्य क्या हैं?” (The Rules of Sociological Method) में “सामाजिक तथ्य” की अवधारणा को परिभाषित किया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य बाहरी, बाध्यकारी और सामूहिक चेतना से उत्पन्न होते हैं, जिन्हें किसी भी अन्य सामाजिक तथ्य की तरह ही अध्ययन किया जाना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम का मानना था कि समाजशास्त्र को मनोविज्ञान या दर्शनशास्त्र से अलग एक विशिष्ट अध्ययन क्षेत्र के रूप में स्थापित करने के लिए, इसे स्पष्ट, अवलोकन योग्य और अनुभवजन्य रूप से अध्ययन योग्य सामाजिक तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। ये तथ्य व्यक्तियों के व्यवहार को निर्देशित करते हैं, भले ही व्यक्ति अनभिज्ञ हों।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर जोर दिया। मैक्स वेबर ने ‘समझ’ (Verstehen) और व्यक्तिपरक अर्थों के अध्ययन पर बल दिया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद का विकास किया।
प्रश्न 2: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, ‘सकर्मणता’ (Sanskritization) की अवधारणा किसने दी?
- जी.एस. घुरिये
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- ए.आर. देसाई
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास, जो भारत में जाति और सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं, ने ‘सकर्मणता’ (Sanskritization) शब्द का प्रयोग किया। यह एक प्रक्रिया है जिसमें निम्न जातियाँ या समूह उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, विश्वासों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में इस अवधारणा को प्रस्तुत किया। यह सामाजिक गतिशीलता का एक रूप है, जहाँ सांस्कृतिक अनुकरण के माध्यम से स्थिति प्राप्त की जाती है, न कि संरचनात्मक परिवर्तन से।
- गलत विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति पर विस्तार से लिखा, लेकिन सकर्मणता की अवधारणा नहीं दी। इरावती कर्वे ने नातेदारी और भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण कार्य किया। ए.आर. देसाई भारतीय समाज में पूंजीवाद के विकास पर केंद्रित थे।
प्रश्न 3: मैक्स वेबर के अनुसार, नौकरशाही (bureaucracy) की विशेषता क्या है?
- व्यक्तिगत संबंध और अनियमित पदानुक्रम
- अस्पष्ट नियम और व्यक्तिगत विवेक पर आधारित निर्णय
- श्रम का विशेषीकरण, पदसोपान और नियम-आधारित संचालन
- अनौपचारिक संचार और अनिश्चित अधिकार
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने आदर्श-प्रारूप (ideal type) के रूप में नौकरशाही की विशेषताओं का वर्णन किया। इसमें श्रम का स्पष्ट विभाजन, पदसोपान (hierarchy), लिखित नियमों और प्रक्रियाओं का पालन, व्यावसायिकता और अ-व्यक्तिगत (impersonal) संबंध शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, ये विशेषताएँ किसी भी बड़े संगठन को कुशलतापूर्वक और तर्कसंगत रूप से संचालित करने में मदद करती हैं, हालाँकि वे “लोहे का पिंजरा” (iron cage) भी बना सकती हैं, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करता है।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत संबंध, अनौपचारिक संचार और अस्पष्ट नियम नौकरशाही की आदर्श विशेषताओं के विपरीत हैं।
प्रश्न 4: सामाजिक स्तरीकरण (social stratification) के किस सिद्धांत के अनुसार, समाज में विभिन्न भूमिकाओं के महत्व के आधार पर असमानताएँ स्वाभाविक और आवश्यक हैं?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रकार्यवादी सिद्धांत (Functionalist Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- नारीवादी सिद्धांत (Feminist Theory)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: प्रकार्यवादी सिद्धांत (विशेष रूप से डेविस और मूर का सिद्धांत) मानता है कि सामाजिक स्तरीकरण एक सर्वव्यापी और प्रकार्यात्मक व्यवस्था है। वे तर्क देते हैं कि समाज को महत्वपूर्ण पदों को भरने के लिए सबसे योग्य व्यक्तियों को प्रेरित करने की आवश्यकता होती है, और इसके लिए उन्हें अधिक पुरस्कार (धन, प्रतिष्ठा, शक्ति) प्रदान किए जाते हैं, जिससे असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: डेविस और मूर के अनुसार, यह असमानता सुनिश्चित करती है कि सबसे महत्वपूर्ण कार्य योग्य लोगों द्वारा किए जाएं। यह समाज की समग्र स्थिरता और कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक है।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत असमानता को शक्ति और शोषण का परिणाम मानता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं और अर्थों पर ध्यान केंद्रित करता है। नारीवादी सिद्धांत लैंगिक असमानताओं पर केंद्रित है।
प्रश्न 5: दुर्खीम के अनुसार, समाज में एकता और स्थायित्व बनाए रखने वाली सामाजिक एकजुटता (social solidarity) के दो मुख्य प्रकार क्या हैं?
- यांत्रिक और जैविक
- यांत्रिक और जैविक
- यांत्रिक और कार्बनिक
- जैविक और कार्बनिक
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “The Division of Labour in Society” में दो प्रकार की सामाजिक एकजुटता का वर्णन किया है: यांत्रिक एकजुटता (mechanical solidarity) और कार्बनिक एकजुटता (organic solidarity)।
- संदर्भ और विस्तार: यांत्रिक एकजुटता पारंपरिक समाजों में पाई जाती है, जहाँ लोग समान विश्वासों, मूल्यों और अनुभवों को साझा करते हैं (सामूहिक चेतना)। कार्बनिक एकजुटता आधुनिक, जटिल समाजों में पाई जाती है, जहाँ श्रम के विभाजन के कारण लोग एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
- गलत विकल्प: ‘जैविक’ एकजुटता का कोई संबंध दुर्खीम के वर्गीकरण से नहीं है; यहाँ ‘जैविक’ का तात्पर्य जीवों से हो सकता है, जो समाजशास्त्र के संदर्भ में प्रासंगिक नहीं है।
प्रश्न 6: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में मुख्य संघर्ष किस वर्ग के बीच होता है?
- बुर्जुआ और सर्वहारा
- प्रभु और दास
- स्वामी और नौकर
- शिक्षक और छात्र
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी समाज को दो मुख्य विरोधी वर्गों में विभाजित किया: बुर्जुआ (bourgeoisie) – जो उत्पादन के साधनों के मालिक हैं (पूंजीपति), और सर्वहारा (proletariat) – जो केवल अपनी श्रम शक्ति बेच सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (historical materialism) के सिद्धांत के अनुसार, इन दोनों वर्गों के बीच का संघर्ष ही समाज के परिवर्तन का मुख्य चालक है। सर्वहारा वर्ग का शोषण बुर्जुआ वर्ग द्वारा किया जाता है, जिससे अंततः क्रांति होती है।
- गलत विकल्प: प्रभु और दास, स्वामी और नौकर, शिक्षक और छात्र अन्य सामाजिक संबंधों या ऐतिहासिक व्यवस्थाओं का वर्णन करते हैं, न कि मार्क्स द्वारा परिभाषित पूंजीवादी समाज के मुख्य वर्गों का।
प्रश्न 7: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) द्वारा विकसित सिद्धांत, जो आत्म (self) के विकास पर केंद्रित है, क्या कहलाता है?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- द्वंद्ववादी भौतिकवाद (Dialectical Materialism)
- सामाजिक विनिमय सिद्धांत (Social Exchange Theory)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने बताया कि आत्म (self) का विकास सामाजिक अंतःक्रियाओं और भाषा के माध्यम से होता है। व्यक्ति दूसरों के दृष्टिकोण को आत्मसात करके ‘मैं’ (I) और ‘वस्तु’ (Me) के बीच संतुलन बनाता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड का तर्क है कि व्यक्ति समाज में ‘अन्य’ (significant others) और ‘सामान्यीकृत अन्य’ (generalized others) की भूमिकाओं को अपनाकर आत्म-चेतना विकसित करता है। यह सिद्धांतMicro-sociology का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- गलत विकल्प: संरचनात्मक प्रकार्यवाद मैक्रो-स्तरीय सामाजिक संरचनाओं पर केंद्रित है। द्वंद्ववादी भौतिकवाद मार्क्स से जुड़ा है। सामाजिक विनिमय सिद्धांत व्यवहारवादी दृष्टिकोण अपनाता है।
प्रश्न 8: भारतीय समाज में, ‘धर्मांतरण’ (conversion) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
- यह केवल धार्मिक पहचान में परिवर्तन को दर्शाता है।
- यह सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार का एक मार्ग हो सकता है, विशेषकर दलितों के लिए।
- यह हमेशा व्यक्ति को जाति व्यवस्था से पूरी तरह मुक्त कर देता है।
- यह केवल औपनिवेशिक काल की एक घटना थी।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: धर्मांतरण अक्सर उन लोगों के लिए सामाजिक-आर्थिक अवसरों को खोल सकता है जो भेदभाव या बहिष्कार का सामना कर रहे थे, जैसे कि कुछ दलित समूह। यह उन्हें नए धार्मिक समुदाय से सहायता या समान अवसर प्रदान कर सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि धर्मांतरण का अर्थ धार्मिक पहचान में परिवर्तन है (a गलत), यह हमेशा व्यक्ति को पूरी तरह से जाति व्यवस्था के बंधनों से मुक्त नहीं करता (c गलत)। यह एक सतत प्रक्रिया है जो औपनिवेशिक काल से पहले और बाद दोनों में मौजूद रही है (d गलत)।
- गलत विकल्प: उपरोक्त स्पष्टीकरण देखें।
प्रश्न 9: इरावती कर्वे ने भारतीय समाज को समझने के लिए किस प्रकार की ‘इकाइयों’ (units) का प्रयोग किया?
- वर्ग (Class)
- जाति (Caste)
- जनजाति (Tribe)
- सभी ऊपर दिए गए
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: इरावती कर्वे, एक प्रमुख मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री, ने भारतीय समाज की जटिलताओं को समझने के लिए जाति, जनजाति और वर्ग जैसी विभिन्न सामाजिक इकाइयों का व्यापक विश्लेषण किया।
- संदर्भ और विस्तार: उनकी पुस्तक “Kinship Organization in India” में, उन्होंने नातेदारी और विवाह व्यवस्थाओं के माध्यम से जाति और क्षेत्रीय भिन्नताओं का अध्ययन किया। उन्होंने जनजातीय समुदायों के सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक प्रथाओं का भी गहन अध्ययन किया, साथ ही विभिन्न वर्गों के उद्भव और प्रभाव का भी विश्लेषण किया।
- गलत विकल्प: उन्होंने केवल एक इकाई पर ध्यान केंद्रित नहीं किया; उनका कार्य इन सभी महत्वपूर्ण सामाजिक इकाइयों की परस्पर संबद्धता को दर्शाता है।
प्रश्न 10: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘अभिज्ञान’ (validity) का क्या अर्थ है?
- माप की स्थिरता
- माप की सटीकता – क्या हम वही माप रहे हैं जो हम मापने का इरादा रखते हैं?
- चरों के बीच संबंध की भविष्यवाणी
- प्रतिभागियों का चयन करने की विधि
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 11: रॉबर्ट मर्टन (Robert Merton) द्वारा प्रस्तावित ‘प्रकार्य’ (function) के संदर्भ में, ‘अनैच्छिक’ या ‘अप्रत्याशित’ परिणाम क्या कहलाते हैं?
- प्रकार्य (Function)
- प्रच्छन्न प्रकार्य (Latent Function)
- प्रकट प्रकार्य (Manifest Function)
- दुष्कार्य (Dysfunction)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: रॉबर्ट मर्टन ने प्रकार्यों को दो श्रेणियों में विभाजित किया: प्रकट प्रकार्य (Manifest Function), जो किसी सामाजिक संरचना के इच्छित और स्पष्ट परिणाम होते हैं, और प्रच्छन्न प्रकार्य (Latent Function), जो अनैच्छिक, अप्रत्याशित या छिपे हुए परिणाम होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक विश्वविद्यालय का प्रकट प्रकार्य छात्रों को शिक्षा प्रदान करना है, जबकि उसका प्रच्छन्न प्रकार्य छात्रों के लिए साथी ढूंढना या सामाजिक नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करना हो सकता है। दुष्कार्य (Dysfunction) वे परिणाम हैं जो सामाजिक व्यवस्था के लिए हानिकारक होते हैं।
- गलत विकल्प: प्रकट प्रकार्य इच्छित परिणाम होते हैं। दुष्कार्य नकारात्मक परिणाम होते हैं। केवल ‘प्रकार्य’ एक सामान्य शब्द है।
प्रश्न 12: भारतीय संदर्भ में, ‘उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण’ (LPG) नीतियों का सामाजिक संरचना पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- जाति व्यवस्था को और सुदृढ़ किया है।
- पारंपरिक संयुक्त परिवारों को कमजोर किया है और व्यक्तिवाद को बढ़ावा दिया है।
- ग्रामीण समुदायों के अलगाव को बढ़ाया है।
- धार्मिक सहिष्णुता में वृद्धि की है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: LPG नीतियों ने अर्थव्यवस्था को खोलकर रोजगार के नए अवसर पैदा किए, जिससे लोगों का शहरीकरण बढ़ा, गतिशीलता में वृद्धि हुई और पारंपरिक संस्थाएँ जैसे संयुक्त परिवार कमजोर हुए। व्यक्तिवाद और उपभोक्तावाद को बढ़ावा मिला।
- संदर्भ और विस्तार: इन नीतियों ने आर्थिक असमानताओं को भी बढ़ाया है, लेकिन सामाजिक संरचना पर सबसे स्पष्ट प्रभाव परिवार संस्था और व्यक्तिगत जीवन शैली पर पड़ा है। यह जरूरी नहीं कि जाति व्यवस्था को और मजबूत करे (a गलत), बल्कि कुछ संदर्भों में उसे चुनौती दे सकता है। ग्रामीण अलगाव (c) और धार्मिक सहिष्णुता (d) के प्रभाव अधिक जटिल और परिवर्तनशील हैं।
- गलत विकल्प: उपरोक्त स्पष्टीकरण देखें।
प्रश्न 13: समाजशास्त्र में ‘एजेंडा सेटिंग’ (agenda setting) का संबंध किससे है?
- सार्वजनिक एजेंडे को प्रभावित करने के लिए मीडिया द्वारा मुद्दों को चुनना और हाइलाइट करना
- सरकार द्वारा निर्धारित विकास योजनाएँ
- राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव घोषणा पत्र
- शैक्षिक संस्थानों द्वारा पाठ्यक्रम का निर्धारण
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एजेंडा सेटिंग एक अवधारणा है जो दर्शाती है कि मीडिया यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि जनता किन मुद्दों पर विचार करती है और उन्हें कितना महत्वपूर्ण मानती है। वे तय करते हैं कि किन कहानियों को प्रमुखता दी जाए।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत संचार अध्ययन और समाजशास्त्र दोनों में प्रासंगिक है। मीडिया के माध्यम से किसी मुद्दे को बार-बार उठाकर, जनता का ध्यान उस ओर आकर्षित किया जाता है और उसे राष्ट्रीय महत्व का विषय बनाया जाता है।
- गलत विकल्प: एजेंडा सेटिंग मुख्य रूप से मीडिया की शक्ति से संबंधित है, न कि सीधे सरकारी योजनाओं, राजनीतिक घोषणाओं या पाठ्यक्रम निर्धारण से, हालांकि ये सभी किसी न किसी तरह से सूचना को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 14: ‘अभिजात वर्ग’ (elite) के सिद्धांत के लिए कौन सा विचारक सबसे अधिक जाना जाता है?
- C. Wright Mills
- Vilfredo Pareto
- Gaetano Mosca
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विल्फ्रेडो परेटो (Vilfredo Pareto) और गैएतानो मोस्का (Gaetano Mosca) दोनों ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में अभिजात वर्ग के सिद्धांत के प्रारंभिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सी. राइट मिल्स (C. Wright Mills) ने 20वीं सदी के मध्य में अमेरिकी समाज में “शक्ति अभिजात वर्ग” (Power Elite) की अवधारणा पर विस्तार से लिखा।
- संदर्भ और विस्तार: परेटो ने ‘अभिजात वर्ग के परिभ्रमण’ (circulation of elites) का सिद्धांत दिया, जबकि मोस्का ने समाज में शासक वर्ग की अनिवार्यता पर बल दिया। मिल्स ने शक्ति, धन और प्रतिष्ठा के केंद्रीकरण का विश्लेषण किया।
- गलत विकल्प: सभी तीनों विचारकों ने अभिजात वर्ग के सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रश्न 15: भारतीय समाज में, ‘पुनर्विवाह’ (remarriage) के संबंध में निम्नलिखित में से किस संस्था पर सबसे अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिबंध रहे हैं?
- विधवा पुनर्विवाह
- विधुर पुनर्विवाह
- बाल विधवा पुनर्विवाह
- दोनों (a) और (c)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: भारतीय समाज में, विशेष रूप से उच्च जातियों में, विधवा पुनर्विवाह (widow remarriage) पर ऐतिहासिक रूप से कड़े सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिबंध रहे हैं। बाल विधवाओं के मामले में ये प्रतिबंध और भी गंभीर थे, क्योंकि बाल विवाह की प्रथा प्रचलित थी और छोटी उम्र में विधवा होने वाली लड़कियों के लिए समाज में स्थान बनाना बेहद कठिन था।
- संदर्भ और विस्तार: जबकि विधुरों (widowers) के पुनर्विवाह को आमतौर पर स्वीकार किया जाता था, विधवाओं के लिए यह एक बड़ी सामाजिक बाधा थी। ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे सुधारकों के प्रयासों से 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ, जिसने इस प्रथा को कानूनी मान्यता दी, लेकिन सामाजिक स्वीकृति को आने में लंबा समय लगा।
- गलत विकल्प: विधुर पुनर्विवाह पर इतने गंभीर प्रतिबंध नहीं थे। बाल विधवा पुनर्विवाह, विधवा पुनर्विवाह का ही एक गंभीर उप-रूप था, इसलिए दोनों पर प्रतिबंध थे।
प्रश्न 16: समाजशास्त्र में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (cultural lag) की अवधारणा किसने दी?
- ए.एल. क्रोएबर
- विलियम एफ. ओगबर्न
- एल्बियन स्मॉल
- चार्ल्स एच. कूलिज
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलियम एफ. ओगबर्न (William F. Ogburn) ने 1922 में अपनी पुस्तक “Social Change with Respect to Culture and Original Nature” में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (cultural lag) की अवधारणा पेश की।
- संदर्भ और विस्तार: उनका मानना था कि समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, उपकरण) अभौतिक संस्कृति (जैसे कानून, नैतिकता, संस्थाएँ, विश्वास) की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलती है। इस परिवर्तन की दर में अंतर के कारण एक ‘विलंब’ उत्पन्न होता है, जो सामाजिक समस्याओं और असंतुलन का कारण बनता है।
- गलत विकल्प: क्रोएबर और अन्य समाजशास्त्री संस्कृति के अध्ययन से जुड़े थे, लेकिन यह विशिष्ट अवधारणा ओगबर्न द्वारा विकसित की गई थी।
प्रश्न 17: निम्नलिखित में से कौन सी ‘अशोधित’ (unorganized) या ‘अप्रत्यक्ष’ (indirect) सामाजिक समस्या मानी जाती है?
- सांप्रदायिकता
- जातिवाद
- गरीबी
- भ्रष्टाचार
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: गरीबी को अक्सर एक ‘अशोधित’ या ‘अप्रत्यक्ष’ सामाजिक समस्या माना जाता है क्योंकि यह किसी विशेष समूह या संगठन द्वारा जानबूझकर नहीं की जाती, बल्कि व्यापक आर्थिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारकों का परिणाम होती है। यह किसी संगठित समूह के विरोध या शिकायत के बिना समाज में व्याप्त हो जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: सांप्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार अक्सर किसी विशेष समूह, विचारधारा या संगठित स्वार्थों से जुड़े होते हैं, जहाँ उद्देश्यपूर्ण रूप से इन समस्याओं को बढ़ावा दिया जाता है या उनसे लाभ उठाया जाता है, इसलिए इन्हें ‘शोषित’ या ‘प्रत्यक्ष’ समस्याएं माना जा सकता है।
- गलत विकल्प: उपरोक्त स्पष्टीकरण देखें।
प्रश्न 18: ‘सामाजिक पूंजी’ (social capital) की अवधारणा का संबंध किससे है?
- व्यक्ति की आर्थिक संपत्ति
- व्यक्ति के सामाजिक नेटवर्क, संबंध और विश्वास
- व्यक्ति की शिक्षा और ज्ञान
- व्यक्ति की शारीरिक क्षमता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक पूंजी उन संसाधनों को संदर्भित करती है जो लोगों को उनके सामाजिक नेटवर्कों, संबंधों, समूह सदस्यता और विश्वास के माध्यम से प्राप्त होते हैं। यह उन लाभों को सक्षम बनाती है जो साझा नेटवर्क से उत्पन्न होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: पियरे बॉर्डियु (Pierre Bourdieu), जेम्स कोलमन (James Coleman) और रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) जैसे समाजशास्त्रियों ने सामाजिक पूंजी की अवधारणा के विकास में योगदान दिया है। यह संसाधनों तक पहुँच को सुविधाजनक बनाता है, सहयोग को बढ़ाता है और सामाजिक क्रिया को संभव बनाता है।
- गलत विकल्प: आर्थिक संपत्ति ‘आर्थिक पूंजी’ है। शिक्षा और ज्ञान ‘मानव पूंजी’ है। शारीरिक क्षमता प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक पूंजी नहीं है।
प्रश्न 19: निम्नलिखित में से कौन सी ‘संरचनात्मक हिंसा’ (structural violence) का उदाहरण है?
- किसी व्यक्ति पर शारीरिक हमला
- किसी व्यक्ति को धमकाना
- किसी समाज में असमान वितरण के कारण होने वाली गरीबी और भुखमरी
- किसी को अपमानित करना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संरचनात्मक हिंसा वह नुकसान है जो सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक संरचनाओं और संस्थानों के माध्यम से उत्पन्न होता है, न कि प्रत्यक्ष कार्रवाई से। समाज में संसाधनों का असमान वितरण, भेदभावपूर्ण नीतियाँ या संस्थागत पूर्वाग्रह इसके उदाहरण हैं, जिसके कारण कुछ समूहों को गरीबी, खराब स्वास्थ्य, या शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।
- संदर्भ और विस्तार: जोहान गैल्टुंग (Johan Galtung) ने इस अवधारणा को विकसित किया। ऊपर दिए गए अन्य विकल्प (a, b, d) प्रत्यक्ष हिंसा के उदाहरण हैं, जो किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति पर की जाती है।
- गलत विकल्प: उपरोक्त स्पष्टीकरण देखें।
प्रश्न 20: ग्रामिण समाजशास्त्र (Rural Sociology) में ‘न्यूनता’ (deficit) या ‘पिछड़ापन’ (backwardness) के संबंध में किसने ‘भारत का ग्रामीण सामाजिक परिवेश’ (Indian Village Social Environment) नामक कार्य में विश्लेषण किया?
- आर. के. मुखर्जी
- एस. सी. दुबे
- एम. एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: श्यामा चरण दुबे (S. C. Dubey) ने अपने कार्यों, विशेष रूप से ‘Indian Village’ (1955) और ‘India’s Changing Villages’ (1958) में, भारतीय ग्रामीण समुदायों की सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक प्रथाओं, और विकास की प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन किया। उन्होंने ग्रामीण समुदायों में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का भी विश्लेषण किया।
- संदर्भ और विस्तार: दुबे भारतीय समाजशास्त्र के एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने जनजाति और ग्रामीण समाज पर महत्वपूर्ण शोध किया। उनके विश्लेषणों ने ग्रामीण भारत की जटिलताओं और विकास की बाधाओं को उजागर किया।
- गलत विकल्प: आर. के. मुखर्जी ने सामाजिक गतिशीलता और भारतीय समाज पर लिखा। एम. एन. श्रीनिवास सकर्मणता के लिए जाने जाते हैं। इरावती कर्वे ने नातेदारी पर काम किया।
प्रश्न 21: निम्नलिखित में से कौन सा ‘परिवार’ (family) के बारे में एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य नहीं है?
- यह एक सार्वभौमिक संस्था है।
- यह समाज की मूल इकाई है।
- यह सदस्यों के बीच भावनात्मक बंधन पर आधारित है।
- यह पूरी तरह से आर्थिक उत्पादन की एक इकाई है।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जबकि परिवार ऐतिहासिक रूप से एक आर्थिक उत्पादन इकाई रहा है, आधुनिक समाजशास्त्र परिवार को केवल इसी रूप में नहीं देखता। परिवार के सदस्यों के बीच भावनात्मक बंधन, प्रजनन, समाजीकरण, भावनात्मक समर्थन और प्रतिष्ठा प्रदान करना भी इसके महत्वपूर्ण कार्य हैं। यह एक सार्वभौमिक संस्था (a) और समाज की मूल इकाई (b) के रूप में भी देखा जाता है, और भावनात्मक बंधन (c) इसकी एक मुख्य विशेषता है।
- संदर्भ और विस्तार: परिवार के कार्यों में समय के साथ परिवर्तन आया है। इसलिए, इसे केवल आर्थिक उत्पादन की इकाई मानना एक संकीर्ण और अपूर्ण समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है।
- गलत विकल्प: उपरोक्त स्पष्टीकरण देखें।
प्रश्न 22: ‘अजनबीपन’ (alienation) की अवधारणा, जो व्यक्ति को उसके श्रम, उत्पादों, स्वयं और समाज से अलग कर देती है, किस समाजशास्त्री के विचारों में प्रमुख है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- जॉर्ज सिमेल
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिकों के अजनबीपन (alienation) का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने बताया कि कैसे श्रमिक अपने श्रम से, उत्पाद से, अपने मानव सार से और अंततः अन्य मनुष्यों से अलग-थलग महसूस करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, यह अलगाव उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व और श्रम के विभाजन के कारण होता है, जहाँ श्रमिक अपने श्रम पर नियंत्रण खो देता है और केवल एक वस्तु बन जाता है। यह उनके ‘Economic and Philosophic Manuscripts of 1844’ में प्रमुखता से वर्णित है।
- गलत विकल्प: वेबर ने शक्तिहीनता (powerlessness) और अर्थहीनता (meaninglessness) जैसे संबंधित विचारों पर काम किया, लेकिन अजनबीपन की मार्क्सवादी व्याख्या विशिष्ट है। दुर्खीम ने एनोमी (anomie) पर ध्यान केंद्रित किया। सिमेल ने शहरी जीवन और पैसों के समाजशास्त्र पर काम किया।
- संगीत, कला और साहित्य का संग्रह
- किसी समाज के सदस्यों द्वारा सीखा गया व्यवहार, विश्वास, मूल्य और भौतिक वस्तुएँ
- किसी विशेष क्षेत्र के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा
- लोगों की राजनीतिक और आर्थिक विचारधाराएँ
- सटीकता: संस्कृति को समाजशास्त्रीय रूप से एक समग्र रूप से परिभाषित किया जाता है, जिसमें किसी समाज के सदस्यों द्वारा सीखी गई, साझा की गई और प्रसारित की गई सभी चीजें शामिल होती हैं – जैसे कि उनके विचार, विश्वास, मूल्य, मानदंड, प्रतीक, भाषा, रीति-रिवाज, कला, प्रौद्योगिकी और भौतिक वस्तुएँ।
- संदर्भ और विस्तार: यह केवल कला या साहित्य तक सीमित नहीं है (a गलत), न ही केवल भाषा (c) या विचारधारा (d)। संस्कृति एक जटिल और व्यापक अवधारणा है जो मानव व्यवहार और जीवन के तरीके को आकार देती है।
- गलत विकल्प: उपरोक्त स्पष्टीकरण देखें।
- औपचारिक नियंत्रण
- अनौपचारिक नियंत्रण
- कानूनी नियंत्रण
- राज्य-प्रायोजित नियंत्रण
- सटीकता: सिर मुंडवाने या श्वेत वस्त्र पहनने जैसी प्रथाएं, जो किसी विशेष समूह या समुदाय के मानदंडों और अपेक्षाओं से आती हैं, अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण का हिस्सा हैं। यह नियंत्रण समाज के सदस्यों द्वारा आपसी दबाव, स्वीकृति या अस्वीकृति के माध्यम से लागू किया जाता है, न कि किसी लिखित कानून या संस्था द्वारा।
- संदर्भ और विस्तार: अनौपचारिक नियंत्रण में रीति-रिवाज, परंपराएं, सामाजिक बहिष्कार, या प्रतिष्ठा की हानि शामिल हो सकती है, जो व्यक्तियों को सामाजिक मानदंडों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
- गलत विकल्प: औपचारिक नियंत्रण लिखित नियमों, कानूनों और संस्थाओं (जैसे पुलिस, अदालत) द्वारा लागू होता है। कानूनी और राज्य-प्रायोजित नियंत्रण औपचारिक नियंत्रण के उप-रूप हैं।
- ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility)
- क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)
- अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता (Intergenerational Mobility)
- अंतर-व्यक्तिगत गतिशीलता (Intragenerational Mobility)
- सटीकता: क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility) तब होती है जब कोई व्यक्ति या समूह अपनी सामाजिक स्थिति, प्रतिष्ठा या वर्ग को बदले बिना एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाता है। उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर का एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में जाना।
- संदर्भ और विस्तार: ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility) में स्थिति में वृद्धि (ऊपर की ओर) या कमी (नीचे की ओर) शामिल है (जैसे, एक शिक्षक का प्रोफेसर बनना या इसके विपरीत)। अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच स्थिति में बदलाव को संदर्भित करती है, जबकि अंतर-व्यक्तिगत गतिशीलता उसी व्यक्ति के जीवनकाल में होने वाले बदलावों को दर्शाती है।
- गलत विकल्प: उपरोक्त स्पष्टीकरण देखें।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 23: निम्नलिखित में से कौन सी ‘संस्कृति’ (culture) की सबसे उपयुक्त समाजशास्त्रीय परिभाषा है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 24: भारतीय समाज में ‘विधवा प्रथा’ (widowhood practices), जैसे सिर मुंडवाना या श्वेत वस्त्र पहनना, किस प्रकार के सामाजिक नियंत्रण का उदाहरण हैं?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 25: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (social mobility) के संदर्भ में, एक व्यक्ति का उसी सामाजिक वर्ग या स्तरीकृत स्थिति के भीतर ऊपर या नीचे की ओर बढ़ना क्या कहलाता है?
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण: