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समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी समझ को परखें!

समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी समझ को परखें!

क्या आप समाजशास्त्र के गहन सिद्धांतों और अवधारणाओं में महारत हासिल करने के लिए तैयार हैं? अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता और वैचारिक स्पष्टता को निखारने के लिए हर दिन एक नया मौका है। आइए, समाजशास्त्र की इस रोमांचक यात्रा में अपनी पकड़ को मजबूत करें और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए अपनी तैयारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: “सामाजिक संरचना” की अवधारणा को सर्वप्रथम किस समाजशास्त्री ने व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया, जिसने इसे समाज के विभिन्न भागों के बीच अपेक्षाकृत स्थिर संबंधों के जाल के रूप में परिभाषित किया?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. एमिल दुर्खीम
  3. मैक्स वेबर
  4. ताल्कोट पार्सन्स

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने “सामाजिक संरचना” की अवधारणा को समाज के अंतःसंबंधित और अपेक्षाकृत स्थिर भागों के रूप में परिभाषित किया, जो समाज की एकता और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द सोशल डिवीजन ऑफ लेबर’ में सामूहिक चेतना और सामाजिक एकता के निर्माण में इसकी भूमिका पर जोर दिया।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के लिए, सामाजिक संरचना व्यक्ति से बाहर होती है और उस पर बाध्यकारी शक्ति रखती है, जैसे कि रीति-रिवाज और कानून। यह सामाजिक व्यवस्था का आधार प्रदान करती है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने “वर्ग संरचना” और “उत्पादन संबंधों” पर ध्यान केंद्रित किया। मैक्स वेबर ने “सामाजिक क्रिया” और “सत्ता” पर जोर दिया, जबकि ताल्कोट पार्सन्स ने बाद में “संरचनात्मक-कार्यात्मकता” के ढांचे में सामाजिक संरचना को विकसित किया, लेकिन इसकी प्रारंभिक व्यवस्थित प्रस्तुति दुर्खीम द्वारा की गई थी।

प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा समाजशास्त्री जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) से संबंधित है, जो समाज में व्यक्तियों के बीच परस्पर क्रिया के गतिशील स्वरूपों और सामाजिक रूपों के अध्ययन पर जोर देती है?

  1. अनमी (Anomie)
  2. सामाजिक तथ्य (Social Fact)
  3. सामाजिक स्वरूप (Social Forms)
  4. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जॉर्ज सिमेल को “सामाजिक स्वरूप” (Social Forms) की अवधारणा के लिए जाना जाता है। उन्होंने समाज के अंतर्निहित, अमूर्त पैटर्न और स्वरूपों का अध्ययन किया जो विभिन्न प्रकार की सामाजिक अंतःक्रियाओं में पाए जाते हैं, जैसे कि अधीनता, प्रभुत्व, प्रतिस्पर्धा आदि।
  • संदर्भ और विस्तार: सिमेल का जोर इस बात पर था कि कैसे सामाजिक संबंधों की संरचना, उनके अर्थ की परवाह किए बिना, समाज को आकार देती है। उन्होंने “The Philosophy of Money” और “Sociology” जैसी कृतियों में इस पर चर्चा की।
  • गलत विकल्प: “अनमी” एमिल दुर्खीम से संबंधित है। “सामाजिक तथ्य” भी एमिल दुर्खीम की अवधारणा है। “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” जॉर्ज हर्बर्ट मीड और हरबर्ट ब्लूमर से जुड़ा है।

प्रश्न 3: एमिल दुर्खीम के अनुसार, पारंपरिक समाजों में पाई जाने वाली एकता, जहाँ सदस्यों के बीच घनिष्ठ समानता और समान विश्वास होते हैं, किस प्रकार की सामाजिक एकजुटता को दर्शाती है?

  1. यांत्रिक एकजुटता (Mechanical Solidarity)
  2. जैविक एकजुटता (Organic Solidarity)
  3. समानुपातिक एकजुटता (Proportional Solidarity)
  4. सांस्कृतिक एकजुटता (Cultural Solidarity)

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने “यांत्रिक एकजुटता” (Mechanical Solidarity) की अवधारणा का प्रयोग उन समाजों के लिए किया जो सदस्यों के बीच समानता, साझा विश्वासों, मूल्यों और सरल श्रम विभाजन पर आधारित होते हैं। इस प्रकार की एकजुटता में, समाज के सदस्य एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह एकजुटता मुख्य रूप से आदिम या पारंपरिक समाजों में पाई जाती है जहाँ सामूहिक चेतना (collective consciousness) बहुत मजबूत होती है। दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द सोशल डिवीजन ऑफ लेबर’ में इसका विस्तृत विश्लेषण किया है।
  • गलत विकल्प: “जैविक एकजुटता” आधुनिक, जटिल समाजों में पाई जाती है जहाँ श्रम का विभाजन अधिक होता है और सदस्य एक-दूसरे पर विशेष कार्यों के लिए निर्भर करते हैं, जैसे मानव शरीर के अंग। अन्य विकल्प समाजशास्त्रीय रूप से प्रासंगिक नहीं हैं।

प्रश्न 4: मैक्स वेबर ने किस शब्द का प्रयोग उस प्रक्रिया के लिए किया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने कार्यों के पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों और इरादों को समझने का प्रयास करता है, जिसे समाजशास्त्रीय विश्लेषण के लिए आवश्यक माना जाता है?

  1. सामाजिक तथ्य (Social Fact)
  2. वेर्स्टेहेन (Verstehen)
  3. अलगाव (Alienation)
  4. पैटर्न (Pattern)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मैक्स वेबर ने “वेर्स्टेहेन” (Verstehen) शब्द का प्रयोग किया, जिसका अर्थ है “समझना”। यह समाजशास्त्री को सामाजिक क्रियाओं के पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों, प्रेरणाओं और इरादों को समझने के लिए आंतरिक परिप्रेक्ष्य अपनाने का आग्रह करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना था कि समाजशास्त्र केवल बाहरी, अवलोकन योग्य तथ्यों का अध्ययन नहीं है, बल्कि उन अर्थों का भी अध्ययन है जिन्हें लोग अपने कार्यों में डालते हैं। यह व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (interpretive sociology) का आधार है।
  • गलत विकल्प: “सामाजिक तथ्य” एमिल दुर्खीम की अवधारणा है। “अलगाव” कार्ल मार्क्स से संबंधित है। “पैटर्न” एक सामान्य शब्द है, विशेष रूप से वेबर की अवधारणा नहीं।

प्रश्न 5: भारतीय समाज में, “संसक्ति” (Sanskritization) की अवधारणा, जो किसी निम्न जाति या जनजाति द्वारा उच्च जाति के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाने की प्रक्रिया का वर्णन करती है, किस समाजशास्त्री द्वारा प्रस्तुत की गई?

  1. इरावती कर्वे
  2. एम.एन. श्रीनिवास
  3. जी.एस. घुरिये
  4. टी.के. उमन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने “संसक्ति” (Sanskritization) की अवधारणा को प्रस्तुत किया। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा निचली जातियों के लोग या जनजातीय समूह उच्च जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों और दार्शनिक विचारों को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने इस शब्द का प्रयोग अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में पहली बार किया था। यह भारतीय समाज में सांस्कृतिक और सामाजिक गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
  • गलत विकल्प: इरावती कर्वे ने नातेदारी व्यवस्था पर काम किया। जी.एस. घुरिये ने जाति व्यवस्था और भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण कार्य किया, लेकिन संसक्ति की अवधारणा उनकी नहीं थी। टी.के. उमन भी भारतीय समाजशास्त्री हैं जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन पर कार्य किया।

प्रश्न 6: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में, पूँजीपति वर्ग (Bourgeoisie) और सर्वहारा वर्ग (Proletariat) के बीच का प्रमुख संघर्ष किस पर आधारित होता है?

  1. धार्मिक मतभेद
  2. सांस्कृतिक भिन्नताएँ
  3. उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण
  4. राजनीतिक शक्ति का असमान वितरण

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष (class struggle) के सिद्धांत के अनुसार, पूंजीवादी समाज का मूल द्वंद्व उत्पादन के साधनों (भूमि, कारखाने, मशीनें) पर स्वामित्व को लेकर है। बुर्जुआजी (पूंजीपति वर्ग) इन साधनों का मालिक होता है, जबकि सर्वहारा (श्रमिक वर्ग) केवल अपनी श्रम शक्ति बेचकर जीवित रहता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स का मानना था कि यह आर्थिक असमानता ही समाज के अन्य सभी संघर्षों और असमानताओं का मूल कारण है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘दास कैपिटल’ और ‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ में इस पर विस्तार से चर्चा की है।
  • गलत विकल्प: जबकि धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारक भी समाज में भूमिका निभाते हैं, मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष का प्राथमिक और निर्धारक कारण उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व और नियंत्रण से उत्पन्न होने वाली आर्थिक असमानता है।

  • प्रश्न 7: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) के संदर्भ में, “अभिजात्य वर्ग” (Elite) की अवधारणा का श्रेय किस विचारक को दिया जाता है, जिसने समाज में कुछ व्यक्तियों या समूहों के प्रभुत्व को पहचाना?

    1. C. Wright Mills
    2. Karl Marx
    3. Max Weber
    4. Vilfredo Pareto

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: C. Wright Mills ने अपनी पुस्तक “The Power Elite” में अमेरिकी समाज में “शक्ति अभिजात वर्ग” (Power Elite) की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया। उनका तर्क था कि आधुनिक समाजों में, राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य क्षेत्रों में कुछ चुनिंदा लोग सत्ता को केंद्रित करते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: मिल्स ने तर्क दिया कि यह अभिजात वर्ग सार्वजनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, अक्सर आम जनता की इच्छा के विपरीत।
    • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने “बुर्जुआजी” का उल्लेख किया, जो एक आर्थिक वर्ग है, न कि एक व्यापक “शक्ति अभिजात वर्ग”। मैक्स वेबर ने “सत्ता” और “प्रतिष्ठा” के आधार पर स्तरीकरण पर चर्चा की, लेकिन मिल्स का “शक्ति अभिजात वर्ग” एक अधिक विशिष्ट अवधारणा है। विल्फ्रेडो परेटो ने “अभिजात वर्ग के प्रचलन” (circulation of elites) का सिद्धांत दिया, लेकिन मिल्स का ध्यान अधिक आधुनिक शक्ति संरचनाओं पर था।

    प्रश्न 8: समाजशास्त्री रॉबर्ट मर्टन (Robert Merton) द्वारा दी गई “अनमी” (Anomie) की अवधारणा, जो समाज में व्यक्ति के सामाजिक मानदंडों से विचलित होने की स्थिति का वर्णन करती है, किससे संबंधित है?

    1. एक मजबूत सामूहिक चेतना
    2. सांस्कृतिक लक्ष्यों और संस्थागत साधनों के बीच बेमेल
    3. अत्यधिक सामाजिक एकीकरण
    4. व्यक्तिगत सामाजिकरण की विफलता

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: रॉबर्ट मर्टन ने “अनमी” (Anomie) की अपनी अवधारणा को सामाजिक लक्ष्यों (जैसे सफलता) और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समाज द्वारा स्वीकृत साधनों (जैसे शिक्षा, कड़ी मेहनत) के बीच बेमेल के रूप में परिभाषित किया। जब यह बेमेल बढ़ता है, तो व्यक्ति विचलित हो सकते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: मर्टन के अनुसार, अनमी अपराध, विचलन और सामाजिक विघटन का कारण बन सकती है। उन्होंने इस पर ‘Social Structure and Anomie’ जैसे निबंधों में चर्चा की।
    • गलत विकल्प: एक मजबूत सामूहिक चेतना (a) और अत्यधिक सामाजिक एकीकरण (c) अनमी के विपरीत स्थितियाँ हैं। व्यक्तिगत सामाजिकरण की विफलता (d) विचलन का एक कारण हो सकती है, लेकिन मर्टन की अनमी की अवधारणा विशेष रूप से संरचनात्मक बेमेल पर केंद्रित है।

    प्रश्न 9: भारतीय समाज में “बहुसंस्कृतिवाद” (Multiculturalism) से संबंधित कौन सा दृष्टिकोण इस विचार को बढ़ावा देता है कि विभिन्न सांस्कृतिक समूहों को अपनी पहचान बनाए रखते हुए एक साथ रहना चाहिए, और राज्य को उनकी विविधता का समर्थन करना चाहिए?

    1. सांस्कृतिक विलक्षणता (Cultural Singularity)
    2. सांस्कृतिक समरूपता (Cultural Homogenization)
    3. सांस्कृतिक समावेशन (Cultural Inclusion)
    4. सांस्कृतिक अलगाव (Cultural Segregation)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: “सांस्कृतिक समावेशन” (Cultural Inclusion) या अक्सर “सांस्कृतिक बहुलवाद” (Cultural Pluralism) के रूप में समझा जाने वाला दृष्टिकोण, यह मानता है कि विभिन्न सांस्कृतिक समूह अपनी अनूठी पहचान, प्रथाओं और मूल्यों को बनाए रखते हुए एक ही समाज में सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। राज्य इन समूहों की विविधता का सम्मान करता है और उनका समर्थन करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह विचार आधुनिक, विविध समाजों में महत्वपूर्ण है जहाँ विभिन्न जातीय, धार्मिक या भाषाई समूह एक साथ रहते हैं।
    • गलत विकल्प: “सांस्कृतिक विलक्षणता” (a) का अर्थ एक ही प्रमुख संस्कृति का अस्तित्व है। “सांस्कृतिक समरूपता” (b) विभिन्न संस्कृतियों के मिश्रण से एक समान संस्कृति बनने की प्रक्रिया है। “सांस्कृतिक अलगाव” (d) समूहों को एक-दूसरे से अलग रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।

    प्रश्न 10: समाजशास्त्री चार्ल्स कूली (Charles Cooley) की “प्राथमिक समूह” (Primary Group) की अवधारणा, जो घनिष्ठ, आमने-सामने की अंतःक्रिया और सहयोग द्वारा परिभाषित होती है, का सबसे अच्छा उदाहरण क्या है?

    1. एक विश्वविद्यालय का छात्र संघ
    2. एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल
    3. एक परिवार
    4. एक ऑनलाइन फोरम

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: चार्ल्स कूली ने “प्राथमिक समूह” को ऐसे समूहों के रूप में परिभाषित किया जो व्यक्तिगत, आमने-सामने संबंध, सहयोग और “हम” की भावना द्वारा चिह्नित होते हैं। परिवार इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है।
    • संदर्भ और विस्तार: कूली ने अपनी पुस्तक ‘Social Organization’ में इस अवधारणा का वर्णन किया। प्राथमिक समूह व्यक्ति के समाजीकरण और व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • गलत विकल्प: छात्र संघ, राजनीतिक दल और ऑनलाइन फोरम आमतौर पर “द्वितीयक समूह” (Secondary Group) के उदाहरण हैं, जहाँ संबंध अधिक औपचारिक, impersonal और विशिष्ट लक्ष्यों के लिए होते हैं।

    प्रश्न 11: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में, “प्रतिभागी अवलोकन” (Participant Observation) किस प्रकार की विधि का उदाहरण है?

    1. मात्रात्मक (Quantitative)
    2. गुणात्मक (Qualitative)
    3. प्रायोगिक (Experimental)
    4. तुलनात्मक (Comparative)

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: प्रतिभागी अवलोकन एक गुणात्मक (Qualitative) अनुसंधान विधि है जिसमें शोधकर्ता अध्ययन किए जा रहे समूह या समुदाय के जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेता है और उसके व्यवहार, संस्कृति और अंतःक्रियाओं का प्रत्यक्ष अवलोकन करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह विधि शोधकर्ता को गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त करने और अध्ययन किए जा रहे सामाजिक संदर्भ को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है, जैसे कि नृवंशविज्ञान (ethnography) में।
    • गलत विकल्प: मात्रात्मक विधियाँ संख्यात्मक डेटा पर आधारित होती हैं। प्रायोगिक विधियाँ कारण-और-प्रभाव संबंधों को स्थापित करने के लिए चर में हेरफेर करती हैं। तुलनात्मक विधियाँ विभिन्न समाजों या समूहों की तुलना करती हैं, लेकिन प्रतिभागी अवलोकन स्वयं एक गुणात्मक दृष्टिकोण है।

    प्रश्न 12: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, “अंतर्विवाह” (Endogamy) का क्या अर्थ है?

    1. किसी व्यक्ति का अपनी जाति के बाहर विवाह करना
    2. किसी व्यक्ति का अपनी जाति के भीतर विवाह करना
    3. किसी व्यक्ति का अपनी उप-जाति के भीतर विवाह करना
    4. किसी व्यक्ति का किसी भी उच्च जाति में विवाह करना

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: “अंतर्विवाह” (Endogamy) का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी ही जाति या उप-जाति के भीतर विवाह करना चाहिए। यह जाति व्यवस्था की एक मौलिक विशेषता है जो जाति की शुद्धता और निरंतरता बनाए रखती है।
    • संदर्भ और विस्तार: भारतीय जाति व्यवस्था में, विवाह एक महत्वपूर्ण संस्था है जो समूहों को अलग रखती है और स्तरीकरण को बनाए रखती है।
    • गलत विकल्प: अपनी जाति के बाहर विवाह करना “बहिर्विवाह” (Exogamy) कहलाता है। जबकि कुछ उप-जातियों में बहिर्विवाह (जैसे कि गोत्र बहिर्विवाह) भी मौजूद है, अंतर्विवाह जाति के भीतर विवाह को अनिवार्य करता है।

    प्रश्न 13: समाजशास्त्री ए.आर. देसाई (A.R. Desai) ने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का विश्लेषण करते हुए, इसे मुख्य रूप से किस रूप में चित्रित किया?

    1. साम्राज्यवादी विरोधी संघर्ष
    2. धार्मिक सुधार आंदोलन
    3. वर्ग-आधारित आंदोलन
    4. जाति-आधारित आंदोलन

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: ए.आर. देसाई ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक “The Social Background of Indian Nationalism” में भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव को मुख्य रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध एक साम्राज्यवादी विरोधी संघर्ष (anti-imperialist struggle) के रूप में देखा।
    • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने तर्क दिया कि राष्ट्रवाद का उदय औपनिवेशिक नीतियों के कारण हुई आर्थिक और सामाजिक असमानताओं और दमन के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।
    • गलत विकल्प: हालांकि धार्मिक सुधारों और सामाजिक सुधारों ने राष्ट्रवाद को प्रभावित किया, और जाति तथा वर्ग ने भी भूमिका निभाई, देसाई का केंद्रीय तर्क औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष पर था।

    प्रश्न 14: “सामाजिक पूंजी” (Social Capital) की अवधारणा, जो सामाजिक नेटवर्क, विश्वास और सामान्य नियमों से उत्पन्न लाभों को संदर्भित करती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?

    1. Pierre Bourdieu
    2. James Coleman
    3. Robert Putnam
    4. उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को पियरे बॉर्डियू, जेम्स कोलमैन और रॉबर्ट पुटनम जैसे कई समाजशास्त्रियों ने विकसित और लोकप्रिय बनाया है। बॉर्डियू ने इसे व्यक्तिगत और समूह की पहचान से जोड़ा, कोलमैन ने इसे सामाजिक संरचनाओं की उत्पादक क्षमता के रूप में देखा, और पुटनम ने इसे नागरिक जुड़ाव और सामाजिक विश्वास के संदर्भ में समझाया।
    • संदर्भ और विस्तार: ये तीनों विद्वान सामाजिक पूंजी के विभिन्न पहलुओं पर जोर देते हैं, लेकिन सभी इसे सामाजिक अंतःक्रियाओं और नेटवर्क से उत्पन्न होने वाले संसाधनों के रूप में देखते हैं।
    • गलत विकल्प: चूंकि तीनों ने इस अवधारणा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है।

    प्रश्न 15: ग्रामीण समाजशास्त्र में, “स्थायी बंदोबस्त” (Permanent Settlement) जैसी नीतियों के कारण ब्रिटिश काल में भारतीय गाँवों में जो सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हुए, उनमें से एक क्या था?

    1. किसानों की भूमि पर स्वामित्व में वृद्धि
    2. ज़मींदारी प्रथा का कमजोर होना
    3. कृषि का औद्योगिकीकरण
    4. कृषि श्रमिकों की स्थिति में सुधार

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: स्थायी बंदोबस्त जैसी ब्रिटिश नीतियों ने ज़मींदारों को भूमि का मालिक बना दिया, जिससे किसानों की भूमि पर स्वामित्व की भावना कम हुई और वे बटाईदार या भूमिहीन श्रमिक बन गए। हालांकि, कुछ संदर्भों में, इससे उन किसानों को लाभ हो सकता था जिन्हें भूमि पर स्थायी अधिकार मिले थे (हालांकि यह कम आम था)। अधिक सामान्य विश्लेषण यह है कि इससे ज़मींदारों की शक्ति बढ़ी और किसानों की स्थिति कमजोर हुई। इस प्रश्न का विकल्प (a) थोड़ा भ्रामक हो सकता है क्योंकि यह नीति का एक संभावित, यद्यपि अक्सर अवास्तविक, परिणाम बताता है। हालाँकि, यदि हम ‘किसान’ को व्यापक अर्थों में लें, जिसमें ज़मींदार भी शामिल हैं, तो यह आंशिक रूप से सत्य हो सकता है। एक बेहतर विकल्प यह होता कि “ज़मींदारी व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण” होता। दिए गए विकल्पों में से, ‘किसानों की भूमि पर स्वामित्व में वृद्धि’ (यदि ‘किसान’ में ज़मींदार शामिल हैं) या ‘कृषि में परिवर्तन’ को सबसे प्रासंगिक माना जा सकता है, लेकिन प्रश्न के शब्दों के अनुसार, यह विकल्प पूरी तरह से सटीक नहीं है। प्रश्न का इरादा शायद यह पूछना था कि कौन सा परिवर्तन हुआ। एक बेहतर विकल्प “ज़मींदारी प्रथा का सुदृढ़ीकरण” होता। दिए गए विकल्पों में से, हम सबसे कम गलत विकल्प चुनते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: स्थायी बंदोबस्त ने राजस्व संग्रह को ज़मींदारों के लिए निश्चित कर दिया, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत हुई, जबकि किसानों की स्थिति अक्सर अनिश्चित हो गई।
    • गलत विकल्प: ज़मींदारी प्रथा को कमजोर नहीं किया गया, बल्कि मजबूत किया गया। कृषि का औद्योगिकीकरण उस समय के लिए एक अतिरंजित दावा है। कृषि श्रमिकों की स्थिति में आम तौर पर सुधार के बजाय गिरावट आई।

    पुनर्विचार: प्रश्न 15 को लेकर एक स्पष्टीकरण आवश्यक है। स्थायी बंदोबस्त का मुख्य प्रभाव ज़मींदारों की स्थिति को मजबूत करना और किसानों को भूमि से विस्थापित करना या उन्हें बटाईदार बनाना था। इसलिए, “किसानों की भूमि पर स्वामित्व में वृद्धि” (a) आम तौर पर सटीक नहीं है। यदि प्रश्न का अर्थ “कुछ भूस्वामियों” से है, तो यह सही हो सकता है। लेकिन यदि सामान्य किसान को देखें, तो यह गलत है। इस प्रश्न को सुधारने की आवश्यकता है। मान लें कि प्रश्न का इरादा “भूमि से संबंधित अधिकार” में परिवर्तन पूछना था। दिए गए विकल्पों में से, हमें सबसे उपयुक्त चुनना होगा। यदि हम प्रश्न को इस प्रकार समझें कि “किसानों (भूमिधारकों) के भूमि पर अधिकार” में क्या परिवर्तन हुआ, तो वह भूमि पर स्वामित्व का हस्तांतरण या निश्चितता (या अनिश्चितता) से संबंधित हो सकता है। लेकिन “स्वामित्व में वृद्धि” सीधे तौर पर लागू नहीं होता। यह देखते हुए कि यह एक अभ्यास प्रश्न है, हमें सबसे संभावित उत्तर चुनना होगा। यदि हम इसे “भूमि पर अधिकार” की व्यापक समझ में देखें, तो यह अधिक प्रासंगिक हो सकता है। हालांकि, यह सवाल कमजोर है।

    प्रश्न 16: सामाजिक परिवर्तन के विकासवादी सिद्धांत (Evolutionary Theory of Social Change) के अनुसार, समाज किस क्रम में सरल से जटिल संरचनाओं की ओर बढ़ता है?

    1. सरल → जटिल
    2. जटिल → सरल
    3. जटिल → सरल → जटिल
    4. एकल रैखिक पथ

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सामाजिक परिवर्तन के विकासवादी सिद्धांत (जैसे कि हर्बर्ट स्पेंसर द्वारा प्रस्तावित) मानते हैं कि समाज सरल, आदिम अवस्थाओं से धीरे-धीरे अधिक जटिल, विकसित अवस्थाओं की ओर अग्रसर होता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत सामाजिक विकास को एक जैविक विकास के समानांतर देखता है, जहाँ सरल रूपों से अधिक विभेदित और विशिष्ट रूप विकसित होते हैं।
    • गलत विकल्प: जटिल से सरल (b) या सरल-जटिल-सरल (c) विकासवादी सिद्धांत का हिस्सा नहीं है। समाज एक एकल रैखिक पथ (d) पर चलता है, लेकिन यह स्वयं एक व्याख्या है, न कि प्रक्रिया का क्रम।

    प्रश्न 17: पश्चिमीकरण (Westernization) की अवधारणा, जो भारतीय समाज में औपनिवेशिक शासन के दौरान पश्चिमी जीवन शैली, रीति-रिवाजों और विचारों को अपनाने की प्रक्रिया का वर्णन करती है, को किस समाजशास्त्री ने गढ़ा?

    1. एम.एन. श्रीनिवास
    2. टी.के. उमन
    3. वाई.बी. दामले
    4. एस. सी. दुबे

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने “पश्चिमीकरण” (Westernization) की अवधारणा को विकसित किया, जिसे उन्होंने संसक्ति (Sanskritization) के साथ-साथ भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तन की एक प्रमुख प्रक्रिया के रूप में पहचाना।
    • संदर्भ और विस्तार: यह शब्द पश्चिमी प्रभाव, विशेषकर ब्रिटिश शासन के कारण सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में हुए परिवर्तनों को दर्शाता है, जिसमें शिक्षा, कानून, प्रौद्योगिकी और जीवन शैली शामिल हैं।
    • गलत विकल्प: टी.के. उमन, वाई.बी. दामले और एस.सी. दुबे भी भारतीय समाजशास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विद्वान हैं, लेकिन पश्चिमीकरण की अवधारणा का श्रेय मुख्य रूप से श्रीनिवास को जाता है।

    प्रश्न 18: मैकियावेली (Machiavelli) के राजनीतिक दर्शन में, “संप्रभुता” (Sovereignty) की अवधारणा को कैसे समझा जाता है?

    1. यह जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है।
    2. यह राज्य की सर्वोच्च और असीमित शक्ति है।
    3. यह नैतिक नियमों से बंधी होती है।
    4. यह विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच एक समझौता है।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: मैकियावेली ने अपनी कृति “द प्रिंस” में संप्रभुता को राज्य की पूर्ण और असीमित शक्ति के रूप में देखा। संप्रभु के पास राज्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक होने पर किसी भी साधन का उपयोग करने का अधिकार था, चाहे वह कितना भी क्रूर क्यों न हो।
    • संदर्भ और विस्तार: मैकियावेली के लिए, राज्य की स्थिरता और व्यवस्था बनाए रखना सर्वोपरि था, और संप्रभु इस उद्देश्य के लिए किसी भी नैतिक या धार्मिक बंधन से मुक्त था।
    • गलत विकल्प: मैकियावेली संप्रभुता को जनता की इच्छा (a), नैतिक नियमों (c) या समझौतों (d) से सीमित नहीं मानते थे।

    प्रश्न 19: किस समाजशास्त्री ने “जातीयता” (Ethnicity) को सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक असमानताओं के बजाय, साझा सांस्कृतिक पहचान, वंश और सामूहिक भावना पर आधारित एक सामाजिक निर्माण के रूप में देखा?

    1. Max Weber
    2. Anthony Giddens
    3. Benedict Anderson
    4. E. Durkheim

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: बेनेडिक्ट एंडरसन (Benedict Anderson) ने अपनी पुस्तक “Imagined Communities” में “जातीयता” और “राष्ट्रवाद” को सामाजिक निर्माण के रूप में विश्लेषित किया। उन्होंने तर्क दिया कि राष्ट्र (और जातीय समूह) एक “कल्पित समुदाय” होते हैं, जिनका आधार साझा स्मृति, संस्कृति और सामूहिक पहचान की भावना है, न कि प्रत्यक्ष संबंध।
    • संदर्भ और विस्तार: एंडरसन के लिए, जातीयता साझा वंश, भाषा, संस्कृति और इतिहास की भावना से उत्पन्न होती है, जो इसे एक राजनीतिक और सामाजिक इकाई बनाती है।
    • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने जाति और वर्ग पर काम किया। एंथोनी गिडेंस आधुनिकता और संरचना के सिद्धांतकार हैं। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकता पर ध्यान केंद्रित किया।

    प्रश्न 20: भारतीय समाज में “अस्पृश्यता” (Untouchability) का उन्मूलन किस संवैधानिक प्रावधान के तहत एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है?

    1. अनुच्छेद 14
    2. अनुच्छेद 15
    3. अनुच्छेद 17
    4. अनुच्छेद 18

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Article 17) “अस्पृश्यता” के उन्मूलन और किसी भी रूप में इसके अभ्यास को प्रतिबंधित करता है। इसे एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अनुच्छेद भारतीय समाज में ऐतिहासिक रूप से व्याप्त जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने का एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रयास है।
    • गलत विकल्प: अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता प्रदान करता है। अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। अनुच्छेद 18 उपाधियों का अंत करता है।

    प्रश्न 21: समाजशास्त्री इरविंग गॉफमैन (Erving Goffman) ने “नाटकीयता” (Dramaturgy) के अपने सिद्धांत में, सामाजिक जीवन को कैसे चित्रित किया?

    1. एक जैविक प्रक्रिया के रूप में
    2. एक राजनीतिक शक्ति संघर्ष के रूप में
    3. एक रंगमंच के प्रदर्शन के रूप में
    4. एक आर्थिक विनिमय के रूप में

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: इरविंग गॉफमैन ने “नाटकीयता” (Dramaturgy) का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने सामाजिक जीवन की तुलना एक रंगमंच के प्रदर्शन से की। उनके अनुसार, व्यक्ति “मंच” पर अपनी भूमिकाएँ निभाते हैं, “मुखौटे” (faces) पहनते हैं और दर्शकों को प्रभावित करने के लिए “छवि प्रबंधन” (impression management) करते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत बताता है कि लोग सामाजिक बातचीत में अपनी पहचान का निर्माण और प्रबंधन कैसे करते हैं, जैसे अभिनेता मंच पर करते हैं। उनकी पुस्तक “The Presentation of Self in Everyday Life” इस अवधारणा का आधार है।
    • गलत विकल्प: यह जैविक (a), राजनीतिक (b) या आर्थिक (d) प्रक्रिया नहीं है, बल्कि सामाजिक अंतःक्रिया की प्रतीकात्मक और प्रदर्शनकारी प्रकृति पर केंद्रित है।

    प्रश्न 22: भारतीय समाज में, “पित्रसत्ता” (Patriarchy) का अर्थ क्या है?

    1. पितरों की पूजा की प्रथा
    2. परिवार और समाज में पुरुषों का प्रभुत्व और सत्ता
    3. पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता
    4. पारिवारिक संबंधों में वरिष्ठता का महत्व

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: “पित्रसत्ता” (Patriarchy) एक सामाजिक व्यवस्था को संदर्भित करता है जिसमें पुरुष, विशेष रूप से पिता और बड़े पुरुष सदस्य, परिवार और समाज में सत्ता, अधिकार और विशेषाधिकार रखते हैं। यह लिंग आधारित शक्ति असमानता का एक रूप है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में पुरुषों के प्रभुत्व को दर्शाती है।
    • गलत विकल्प: पितरों की पूजा (a) एक धार्मिक प्रथा है। पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता (c) पित्रसत्ता का विपरीत है। पारिवारिक संबंधों में वरिष्ठता (d) एक कारक हो सकती है, लेकिन पित्रसत्ता विशेष रूप से पुरुषों के समग्र प्रभुत्व से संबंधित है।

    प्रश्न 23: समाजशास्त्री अल्फ्रेड शूत्ज़ (Alfred Schutz) द्वारा विकसित “फेनोमेनोलॉजी” (Phenomenology) का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण किस पर केंद्रित है?

    1. वस्तुनिष्ठ सामाजिक संरचनाएँ
    2. सामाजिक क्रियाओं के व्यक्तिपरक अर्थ
    3. आर्थिक असमानता के पैटर्न
    4. जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियाँ

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: अल्फ्रेड शूत्ज़, जो फेनोमेनोलॉजी से प्रभावित थे, ने इस बात पर जोर दिया कि समाजशास्त्र को व्यक्तियों द्वारा अपनी दुनिया में अर्थ को कैसे बोधगम्य (understandable) बनाया जाता है, इसका अध्ययन करना चाहिए। उनका दृष्टिकोण सामाजिक क्रियाओं और अनुभवों के व्यक्तिपरक अर्थों (subjective meanings) पर केंद्रित था।
    • संदर्भ और विस्तार: शूत्ज़ ने “जीवन जगत” (lifeworld) की अवधारणा का पता लगाया, जो लोगों के रोजमर्रा के अनुभवों और समझ का क्षेत्र है। उन्होंने वेबर के “वेर्स्टेहेन” को और विकसित किया।
    • गलत विकल्प: यह वस्तुनिष्ठ संरचनाओं (a), आर्थिक असमानता (c) या जनसांख्यिकी (d) के बजाय व्यक्ति के जीवित अनुभवों और उनके द्वारा निर्मित अर्थों पर केंद्रित है।

    प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन सी “संस्था” (Institution) का उदाहरण है?

    1. एक मित्र समूह
    2. एक राजनीतिक दल
    3. एक राष्ट्रीय खेल टीम
    4. एक विश्वविद्यालय

    उत्तर: (d)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: समाजशास्त्र में, एक “संस्था” (Institution) एक स्थापित, स्थायी सामाजिक व्यवस्था है जो समाज के लिए महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करती है और आमतौर पर नियमों, भूमिकाओं और प्रतीकों का एक सुसंगत पैटर्न रखती है। शिक्षा (विश्वविद्यालयों द्वारा प्रतिनिधित्व), परिवार, धर्म, सरकार और अर्थव्यवस्था प्रमुख संस्थाएँ हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: विश्वविद्यालय शिक्षा के महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करते हैं, जिसमें ज्ञान का प्रसार, प्रशिक्षण और समाजीकरण शामिल है।
    • गलत विकल्प: मित्र समूह (a) एक प्राथमिक समूह का उदाहरण है, न कि एक संस्था। राजनीतिक दल (b) और राष्ट्रीय खेल टीमें (c) सामाजिक समूह हैं, लेकिन आमतौर पर उन्हें प्राथमिक या द्वितीयक समूहों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, संस्थाओं के रूप में नहीं, जब तक कि वे बड़े राजनीतिक या खेल “सिस्टम” का हिस्सा न हों।

    प्रश्न 25: “सामाजिक पूंजी” (Social Capital) के संदर्भ में, वह कौन सा तत्व है जो लोगों को विश्वास और आपसी समझ के आधार पर सहयोग करने में सक्षम बनाता है?

    1. भौतिक संपत्ति
    2. मानव पूंजी
    3. सामाजिक नेटवर्क और विश्वास
    4. तकनीकी नवाचार

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सामाजिक पूंजी का तात्पर्य उन लाभों से है जो व्यक्तियों या समूहों को उनके सामाजिक नेटवर्क, पारस्परिक संबंधों, विश्वास और सहयोग के माध्यम से प्राप्त होते हैं। ये घटक लोगों को सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करने में सक्षम बनाते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: जैसे जेम्स कोलमैन और रॉबर्ट पुटनम ने समझाया, उच्च स्तर का विश्वास और मजबूत सामाजिक नेटवर्क “सामाजिक पूंजी” का निर्माण करते हैं, जिससे सामूहिक कार्रवाई और सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
    • गलत विकल्प: भौतिक संपत्ति (a) मूर्त संसाधन हैं। मानव पूंजी (b) व्यक्ति की शिक्षा, कौशल और ज्ञान को संदर्भित करती है। तकनीकी नवाचार (d) उत्पादकता को बढ़ा सकता है, लेकिन यह सीधे तौर पर सामाजिक पूंजी का घटक नहीं है।

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