समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी समझ परखें!
नमस्कार, समाजशास्त्र के जिज्ञासु अध्ययनों! एक नए दिन के साथ, अपनी अवधारणाओं को ताज़ा करने और विश्लेषणात्मक कौशल को पैना करने का अवसर आ गया है। आज के 25 प्रश्नों के इस अनूठे संकलन के साथ, हम समाजशास्त्र के व्यापक क्षेत्र में गहराई से उतरेंगे। तैयार हो जाइए, क्योंकि यह आपके ज्ञान की सीमा को परखने का समय है!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) का मुख्य प्रवर्तक किसे माना जाता है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- कार्ल मार्क्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का प्रमुख संस्थापक माना जाता है। उनका मानना था कि समाज व्यक्ति द्वारा अर्थों के निर्माण और प्रतीकों के माध्यम से अर्थों के आदान-प्रदान से उत्पन्न होता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड ने अपने कार्य, विशेष रूप से मरणोपरांत प्रकाशित “माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी” (Mind, Self and Society) में, सामाजिक आत्म (social self) के विकास को समझाया, जो सामाजिक अंतःक्रिया और दूसरों के दृष्टिकोण को अपनाने के माध्यम से उभरता है।
- गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम सामाजिक तथ्यों (social facts) और सामूहिक चेतना (collective consciousness) पर केंद्रित थे। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया (social action) और ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) पर जोर दिया। कार्ल मार्क्स का ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा एमिल दुर्खीम द्वारा प्रस्तुत की गई थी, जो सामाजिक व्यवस्था के विघटन या अत्यधिक स्वतंत्रता से उत्पन्न होती है?
- परायापन (Alienation)
- अराजकता (Anomie)
- संस्कृति-विभेदन (Culture Lag)
- सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘अराजकता’ (Anomie) की अवधारणा प्रस्तुत की। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ समाज के नियम कमजोर हो जाते हैं या अनुपस्थित होते हैं, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “आत्महत्या” (Suicide) में इस अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया है, यह बताते हुए कि सामाजिक एकीकरण और विनियमन की कमी किस प्रकार आत्महत्या की दर को प्रभावित करती है।
- गलत विकल्प: ‘परायापन’ कार्ल मार्क्स की अवधारणा है। ‘संस्कृति-विभेदन’ विलियम ओगबर्न (William Ogburn) द्वारा सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में प्रस्तुत की गई थी। ‘सामाजिक स्तरीकरण’ एक व्यापक अवधारणा है जो समाज में असमानता की व्यवस्था का वर्णन करती है।
प्रश्न 3: मैकियावेली ने अपनी प्रसिद्ध कृति “द प्रिंस” (The Prince) में किस प्रकार के शक्ति संबंध का विश्लेषण किया है?
- परंपरागत सत्ता (Traditional Authority)
- करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority)
- कानूनी-तर्कसंगत सत्ता (Legal-Rational Authority)
- राजनीतिक शक्ति और शासन (Political Power and Governance)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैकियावेली ने “द प्रिंस” में मुख्य रूप से राजनीतिक शक्ति को प्राप्त करने, बनाए रखने और प्रयोग करने के तरीकों का विश्लेषण किया, जो शासन की कला से संबंधित है।
- संदर्भ और विस्तार: यह पुस्तक राज्य के अधिग्रहण और विस्तार पर केंद्रित है, जिसमें शासक को अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए व्यावहारिकता और कभी-कभी क्रूरता का सहारा लेने की सलाह दी जाती है। यह आधुनिक राजनीतिक चिंतन की शुरुआत मानी जाती है।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन प्रकार – परंपरागत, करिश्माई और कानूनी-तर्कसंगत – बताए थे। मैकियावेली का ध्यान इन विशिष्ट सत्ता प्रकारों के बजाय सामान्य राजनीतिक शक्ति पर था।
प्रश्न 4: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, “सकर्मण” (Sanskritization) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?
- ए.आर. देसाई
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- योगेंद्र सिंह
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने “सकर्मण” (Sanskritization) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसका अर्थ है निम्न जातियां द्वारा उच्च जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाना ताकि उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने यह अवधारणा अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में विकसित की। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है।
- गलत विकल्प: ए.आर. देसाई ने सामाजिक परिवर्तन और भारतीय समाज के ग्रामीण-आर्थिक संरचना पर काम किया। इरावती कर्वे ने kinships और भारत के लोगों पर काम किया। योगेंद्र सिंह ने भारतीय समाज में परिवर्तन और आधुनिकीकरण पर लिखा।
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन दुर्खीम के अनुसार “यांत्रिक एकजुटता” (Mechanical Solidarity) का आधार है?
- श्रम का विभाजन
- व्यक्तिगत भिन्नता
- समानता और सामूहिक चेतना
- उच्च स्तर का विशेषज्ञता
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: दुर्खीम के अनुसार, सरल समाजों में पाई जाने वाली “यांत्रिक एकजुटता” का आधार सदस्यों के बीच समानता, समान विश्वास, मूल्य और एक मजबूत सामूहिक चेतना है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “The Division of Labour in Society” में बताया कि ऐसे समाजों में, लोग एक-दूसरे के पूरक होने के बजाय समान होते हैं, और उनकी एकजुटता साझा अनुभवों और विश्वासों से उत्पन्न होती है।
- गलत विकल्प: श्रम का विभाजन और व्यक्तिगत भिन्नता “सा.व्य. एकजुटता” (Organic Solidarity) का आधार हैं, जो जटिल समाजों में पाया जाता है।
प्रश्न 6: ‘आत्मसातकरण’ (Assimilation) की प्रक्रिया में क्या शामिल है?
- दो संस्कृतियों का मिश्रण
- एक समूह द्वारा दूसरे समूह की संस्कृति को पूर्णतः अपनाना
- सांस्कृतिक भिन्नताओं को बनाए रखना
- एक विशिष्ट पहचान का निर्माण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आत्मसातकरण एक प्रक्रिया है जिसमें एक अल्पसंख्यक समूह या व्यक्ति प्रमुख संस्कृति के मानदंडों, मूल्यों और व्यवहारों को अपना लेता है, जिससे उनकी अपनी मूल संस्कृति धीरे-धीरे कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा अक्सर आप्रवासन (immigration) और सांस्कृतिक संपर्क के अध्ययन में प्रयोग की जाती है। यह सांस्कृतिक मिश्रण (amalgamation) या सांस्कृतिक बहुलवाद (multiculturalism) से भिन्न है।
- गलत विकल्प: (a) सांस्कृतिक मिश्रण एक अधिक पारस्परिक प्रक्रिया है। (c) सांस्कृतिक भिन्नताओं को बनाए रखना बहुलवाद का हिस्सा है। (d) एक विशिष्ट पहचान का निर्माण आत्मसातकरण का परिणाम नहीं, बल्कि प्रक्रिया का एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं करता।
प्रश्न 7: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवाद में ‘परायापन’ (Alienation) का सबसे प्रमुख रूप क्या है?
- अन्य श्रमिकों से अलगाव
- राज्य से अलगाव
- उत्पादन की प्रक्रिया और उसके उत्पाद से अलगाव
- समाज की संस्कृति से अलगाव
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था में श्रमिक अपनी मेहनत के फल (उत्पाद), उत्पादन की प्रक्रिया, अपनी प्रजाति-सार (species-being) और अन्य मनुष्यों से पराजित महसूस करता है। उत्पाद से अलगाव सबसे प्रमुख है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने “आर्थिक और दार्शनिक पांडुलिपियां, 1844” (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में चार प्रकार के अलगाव का वर्णन किया है: उत्पाद से, उत्पादन की क्रिया से, अपनी प्रजाति-सार से, और मनुष्यों से।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प भी अलगाव के रूप हो सकते हैं, लेकिन मार्क्स के लिए, अपनी श्रम शक्ति और उसके उत्पाद पर नियंत्रण का अभाव, और उत्पादन प्रक्रिया में मशीन की तरह कार्य करना, सबसे मौलिक अलगाव था।
प्रश्न 8: समाजशास्त्र में ‘मैक्रो-सोशियोलॉजिकल’ (Macro-sociological) परिप्रेक्ष्य किन पर केंद्रित होता है?
- व्यक्तिगत अंतःक्रियाएँ
- छोटे सामाजिक समूह
- बड़े पैमाने की सामाजिक संरचनाएँ और संस्थाएँ
- सूक्ष्म-स्तरीय सामाजिक पैटर्न
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्रो-सोशियोलॉजिकल परिप्रेक्ष्य बड़े पैमाने की सामाजिक संरचनाओं, जैसे कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, सामाजिक वर्ग, सामाजिक संस्थाओं (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) और समग्र समाज के अध्ययन पर केंद्रित होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह परिप्रेक्ष्य समाज के व्यापक पैटर्न, संस्थाओं और व्यवस्थाओं को समझने का प्रयास करता है। दुर्खीम और मार्क्स जैसे विचारक मैक्रो-सोशियोलॉजिकल दृष्टिकोण के प्रतिनिधि हैं।
- गलत विकल्प: (a), (b), और (d) माइक्रो-सोशियोलॉजिकल परिप्रेक्ष्य के अध्ययन क्षेत्र हैं, जो व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं, छोटे समूहों और सूक्ष्म-स्तरीय पैटर्न पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
प्रश्न 9: भारत में “वर्ण व्यवस्था” (Varna System) का आधार क्या था?
- धन
- जन्म और व्यवसाय
- ज्ञान
- शक्ति
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: पारंपरिक भारतीय वर्ण व्यवस्था का आधार जन्म था, जिसमें समाज को चार मुख्य वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में विभाजित किया गया था, और प्रत्येक की भूमिका जन्म से निर्धारित होती थी।
- संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था वेदों, विशेष रूप से ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में वर्णित है। यह जाति व्यवस्था का एक सैद्धांतिक और आदर्शात्मक आधार प्रदान करती है।
- गलत विकल्प: धन, ज्ञान, या शक्ति वर्ण निर्धारण के प्राथमिक आधार नहीं थे, हालांकि वे समाज में स्थिति को प्रभावित कर सकते थे।
प्रश्न 10: मैक्स वेबर के अनुसार, “करिश्माई सत्ता” (Charismatic Authority) का आधार क्या होता है?
- परंपरा और रीति-रिवाज
- असाधारण व्यक्तिगत गुण और नेतृत्व
- कानून और नियम
- बुद्धि और तर्कसंगतता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने करिश्माई सत्ता को एक ऐसे प्रकार की सत्ता के रूप में परिभाषित किया जो नेता के असाधारण, अलौकिक या असाधारण व्यक्तिगत गुणों के प्रति अनुयायियों के विश्वास और निष्ठा पर आधारित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: ऐसे नेता अक्सर मसीहा, पैगंबर या महान योद्धा के रूप में देखे जाते हैं (जैसे महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर)। यह सत्ता नेता की मृत्यु या अनुयायियों के विश्वास में कमी के साथ समाप्त हो सकती है।
- गलत विकल्प: (a) परंपरागत सत्ता परंपरा पर आधारित है। (c) कानूनी-तर्कसंगत सत्ता कानूनों और नियमों पर आधारित है। (d) बुद्धि और तर्कसंगतता कानूनी-तर्कसंगत सत्ता का हिस्सा है, न कि करिश्माई सत्ता का।
प्रश्न 11: समाजशास्त्र में “सामाजिक स्तरीकरण” (Social Stratification) का तात्पर्य क्या है?
- समाज में व्यक्तियों के बीच व्यक्तिगत संबंध
- समाज के सदस्यों को विभिन्न स्तरों या परतों में व्यवस्थित करना
- सामाजिक समूहों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान
- सामाजिक संस्थाओं का विकास
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज अपने सदस्यों को पदानुक्रमित तरीके से विभिन्न स्तरों, वर्गों या परतों में व्यवस्थित करता है, जो संपत्ति, शक्ति, प्रतिष्ठा और विशेषाधिकारों के असमान वितरण पर आधारित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: इसमें जाति, वर्ग, लिंग, नस्ल जैसी विभिन्न व्यवस्थाएँ शामिल हैं। यह बताता है कि समाज में असमानता कैसे संस्थागत हो जाती है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत संबंध सामाजिक अंतःक्रिया का हिस्सा है। (c) सांस्कृतिक आदान-प्रदान सांस्कृतिक गतिशीलता का हिस्सा है। (d) संस्थाओं का विकास सामाजिक परिवर्तन का एक पहलू है।
प्रश्न 12: “लघु समुदाय” (Little Community) की अवधारणा किसने विकसित की, जो ग्रामीण समुदायों की विशेषताओं का वर्णन करती है?
- रॉबर्ट रेडफील्ड
- चार्ल्स कूली
- टी.बी. बटमोरे
- ई. सी. बोगाडस
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: रॉबर्ट रेडफील्ड ने “लघु समुदाय” की अवधारणा विकसित की, जिसका उपयोग उन्होंने पारंपरिक, छोटे, सजातीय और घनिष्ठ रूप से जुड़े ग्रामीण समुदायों का वर्णन करने के लिए किया।
- संदर्भ और विस्तार: उनकी पुस्तक “The Little Community” में, उन्होंने इन समुदायों को घनिष्ठ सामाजिक संबंध, समान मूल्य, मजबूत सामूहिक भावना और परंपराओं के प्रति गहरी निष्ठा के रूप में चित्रित किया।
- गलत विकल्प: चार्ल्स कूली ने “प्राथमिक समूह” (primary group) की अवधारणा दी। ई. सी. बोगाडस ने सामुदायिक अध्ययन में योगदान दिया। टी.बी. बटमोरे सामाजिक स्तरीकरण पर काम किया।
प्रश्न 13: भारत में, “दलित” (Dalit) शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता है?
- सभी ग्रामीण निवासी
- ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत और उत्पीड़ित जातियाँ
- उच्च जातियाँ
- शहरी श्रमिक वर्ग
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: “दलित” शब्द का अर्थ है “दबाए गए” या “कुचले हुए”। इसका प्रयोग भारत में उन ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित, बहिष्कृत और अछूत माने जाने वाले समुदायों के लिए किया जाता है, जो जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर थे।
- संदर्भ और विस्तार: इस शब्द का प्रयोग आत्म-पहचान के रूप में किया जाता है, जो उनकी पीड़ा और सामाजिक न्याय की आकांक्षाओं को दर्शाता है।
- गलत विकल्प: यह शब्द ग्रामीण निवासियों, उच्च जातियों या शहरी श्रमिकों के लिए प्रयुक्त नहीं होता है।
प्रश्न 14: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, “परिवार” को प्रायः किस रूप में परिभाषित किया जाता है?
- केवल रक्त संबंधियों का समूह
- एक सामाजिक संस्था जो प्रजनन, समाजीकरण और आर्थिक सहयोग के लिए जिम्मेदार है
- वंशानुगत उत्तराधिकार का एक ढाँचा
- एक अनौपचारिक सामाजिक समूह
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: समाजशास्त्र परिवार को एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था के रूप में देखता है जो समाज की निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसमें प्रजनन, बच्चों का समाजीकरण, आर्थिक सहायता और भावनात्मक सुरक्षा जैसे कार्य शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: परिवार की परिभाषा सांस्कृतिक रूप से भिन्न हो सकती है, लेकिन इसके संस्थागत कार्यों पर समाजशास्त्रियों का जोर रहता है।
- गलत विकल्प: (a) परिवार की परिभाषा केवल रक्त संबंध तक सीमित नहीं है (जैसे दत्तक परिवार)। (c) उत्तराधिकार एक कार्य हो सकता है, लेकिन परिभाषा नहीं। (d) परिवार एक संस्था है, न कि अनौपचारिक समूह।
प्रश्न 15: ‘एन्थ्रोपोमोर्फिज्म’ (Anthropomorphism) से आप क्या समझते हैं?
- मानव व्यवहार का पशु व्यवहार से तुलना करना
- मानवीय गुणों और भावनाओं को गैर-मानवीय वस्तुओं या प्राणियों में आरोपित करना
- समाज के विकास का अध्ययन
- सांस्कृतिक भिन्नताओं का वर्गीकरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एन्थ्रोपोमोर्फिज्म एक मानवीय गुण, रूप, या भावना को किसी गैर-मानवीय वस्तु, जीव या अमूर्त अवधारणा में आरोपित करने की प्रवृत्ति है।
- संदर्भ और विस्तार: इसका प्रयोग अक्सर पौराणिक कथाओं, धर्मों, बच्चों की कहानियों और कभी-कभी समाजशास्त्रीय विश्लेषण में भी होता है (जैसे “राष्ट्र जीवित है”)।
- गलत विकल्प: (a) मानव और पशु व्यवहार की तुलना तुलनात्मक मनोविज्ञान या मानवविज्ञान का हिस्सा हो सकती है। (c) समाज के विकास का अध्ययन विकासवादी समाजशास्त्र का हिस्सा है। (d) सांस्कृतिक भिन्नताओं का वर्गीकरण मानवविज्ञान का विषय है।
प्रश्न 16: “सामाजिक गतिशीलता” (Social Mobility) का क्या अर्थ है?
- एक व्यक्ति या समूह का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में स्थानांतरण
- सामाजिक समूहों के बीच विचारों का आदान-प्रदान
- समाज में जनसंख्या का परिवर्तन
- सामाजिक व्यवस्था का विकास
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक गतिशीलता एक व्यक्ति या समूह का एक सामाजिक स्तर या स्थिति से दूसरे स्तर या स्थिति में जाना है। यह ऊर्ध्वाधर (ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (समान स्तर पर) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक स्तरीकरण और समानता के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है।
- गलत विकल्प: (b) विचारों का आदान-प्रदान संचार या सांस्कृतिक प्रसार है। (c) जनसंख्या का परिवर्तन जनसांख्यिकी का विषय है। (d) सामाजिक व्यवस्था का विकास सामाजिक परिवर्तन का हिस्सा है।
प्रश्न 17: दुर्खीम ने “सामाजिक तथ्य” (Social Facts) को कैसे परिभाषित किया?
- व्यक्तिगत विचार और भावनाएँ
- समाज के व्यवहार के तरीके जो बाहरी होते हैं और व्यक्ति पर बाध्यकारी शक्ति रखते हैं
- मनोवैज्ञानिक अवस्थाएँ
- सांस्कृतिक रूप से निर्मित प्रथाएँ
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक तथ्य समाज के सभी तरीके हैं जो व्यक्ति के लिए बाहरी हैं और व्यक्ति पर एक बाध्यकारी शक्ति रखते हैं। ये समाज के लिए विशिष्ट हैं, न कि व्यक्तिगत मनोविज्ञान के लिए।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने अपनी पुस्तक “समाजशास्त्रीय विधि के नियम” (The Rules of Sociological Method) में इस अवधारणा को स्पष्ट किया। उदाहरणों में कानून, नैतिकता, रीति-रिवाज, फैशन और धार्मिक विश्वास शामिल हैं।
- गलत विकल्प: (a), (c) और (d) व्यक्तिगत या मनोवैज्ञानिक स्तर पर हैं, जबकि सामाजिक तथ्य सामूहिक और बाहरी होते हैं। (d) सांस्कृतिक प्रथाएँ सामाजिक तथ्य हो सकती हैं, लेकिन उनका ‘बाहरी और बाध्यकारी’ होना महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 18: भारत में “आर्य समाज” जैसे धार्मिक सुधार आंदोलनों ने समाज पर क्या प्रभाव डाला?
- जाति व्यवस्था को और मजबूत किया
- आधुनिकता और पश्चिमीकरण को बढ़ावा दिया
- सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक सुधारों को प्रोत्साहित किया
- केवल पुरोहित वर्ग को लाभान्वित किया
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आर्य समाज (स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित) जैसे 19वीं सदी के भारतीय धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों ने शिक्षा के प्रसार, महिलाओं के उत्थान, अस्पृश्यता के उन्मूलन और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाने जैसे सुधारों को बढ़ावा दिया।
- संदर्भ और विस्तार: इन आंदोलनों ने भारतीय समाज को आधुनिक बनाने और पश्चिमी प्रभावों का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि पारंपरिक मूल्यों को भी पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।
- गलत विकल्प: इन आंदोलनों का उद्देश्य जाति व्यवस्था को कमजोर करना था, न कि मजबूत करना। वे सीधे तौर पर पश्चिमीकरण को बढ़ावा नहीं दे रहे थे, बल्कि अपनी तरह से सुधार चाहते थे।
प्रश्न 19: “सामूहिक प्रतिनिधित्व” (Collective Representations) की अवधारणा किस समाजशास्त्री से संबंधित है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हर्बर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने “सामूहिक प्रतिनिधित्व” की अवधारणा का प्रयोग किया। यह उन विचारों, विश्वासों, भावनाओं और व्यवहारों के पैटर्न को संदर्भित करता है जो एक समाज या उसके उप-समूहों के सदस्यों द्वारा साझा किए जाते हैं और जो समाज की एकता और स्थिरता को बनाए रखने में मदद करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: ये सामूहिक विचार समाज पर व्यक्ति से अधिक प्रभाव डालते हैं और अक्सर सामाजिक संस्थाओं, अनुष्ठानों और प्रतीकों के रूप में प्रकट होते हैं।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का ध्यान ‘वर्ग चेतना’ पर था, मैक्स वेबर का ‘समझ’ (Verstehen) पर, और हर्बर्ट स्पेंसर का ‘सामाजिक डार्विनवाद’ पर।
प्रश्न 20: “ज्ञान का समाजशास्त्र” (Sociology of Knowledge) मुख्य रूप से क्या अध्ययन करता है?
- ज्ञान कैसे उत्पन्न होता है और समाज में इसका क्या प्रभाव पड़ता है
- व्यक्तियों के व्यक्तिगत ज्ञान का विकास
- ज्ञान के इतिहास का अध्ययन
- वैज्ञानिक सिद्धांतों का विकास
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ज्ञान का समाजशास्त्र यह अध्ययन करता है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भ ज्ञान के निर्माण, प्रसार और मान्यता को कैसे प्रभावित करते हैं, और ज्ञान बदले में समाज को कैसे प्रभावित करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा अक्सर कार्ल मैनहेम (Karl Mannheim) से जोड़ी जाती है, जिन्होंने “Ideology and Utopia” में इसका विस्तार से वर्णन किया।
- गलत विकल्प: (b) व्यक्तिगत ज्ञान का विकास मनोविज्ञान का विषय है। (c) ज्ञान का इतिहास इतिहास का विषय है। (d) वैज्ञानिक सिद्धांतों का विकास विज्ञान का समाजशास्त्र (Sociology of Science) या विज्ञान का दर्शन (Philosophy of Science) का हिस्सा हो सकता है, लेकिन ज्ञान का समाजशास्त्र व्यापक है।
प्रश्न 21: निम्नलिखित में से कौन सा “प्राथमिक समूह” (Primary Group) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है?
- सरकार
- कक्षा कक्षा
- खेल टीम
- परिवार
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: चार्ल्स कूली द्वारा परिभाषित “प्राथमिक समूह” वह है जिसमें घनिष्ठ, आमने-सामने की अंतःक्रिया, सहयोग और ‘हम’ की भावना प्रमुख होती है। परिवार इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है।
- संदर्भ और विस्तार: प्राथमिक समूह व्यक्ति के समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और व्यक्तित्व के निर्माण को प्रभावित करते हैं।
- गलत विकल्प: सरकार, कक्षा कक्षा और खेल टीम बड़े समूह हैं जहाँ अंतःक्रियाएं कम व्यक्तिगत और अधिक औपचारिक हो सकती हैं, हालांकि खेल टीम में प्राथमिक समूह के तत्व हो सकते हैं।
प्रश्न 22: भारत में “जजमानी प्रणाली” (Jajmani System) से आप क्या समझते हैं?
- जाति आधारित श्रम का एक पारंपरिक आदान-प्रदान ढाँचा
- एक नई कृषि तकनीक
- ग्रामीण नेतृत्व की संरचना
- धार्मिक अनुष्ठानों का अनुपालन
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जजमानी प्रणाली एक पारंपरिक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था थी जहाँ विभिन्न जातियों के लोग आपस में एक-दूसरे को सेवाएँ (जैसे नाई, कुम्हार, पुजारी) प्रदान करते थे, जिसके बदले में उन्हें कृषि उत्पाद या अन्य वस्तुएँ मिलती थीं। यह जाति-आधारित श्रम के एक विनिमय (exchange) पर आधारित थी।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रणाली ग्रामीण भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।
- गलत विकल्प: यह कोई नई कृषि तकनीक, नेतृत्व संरचना या केवल धार्मिक अनुष्ठानों का अनुपालन नहीं था, बल्कि एक विस्तृत सामाजिक-आर्थिक विनिमय प्रणाली थी।
प्रश्न 23: ‘अनुकूलन’ (Acculturation) और ‘आत्मसातकरण’ (Assimilation) के बीच मुख्य अंतर क्या है?
- अनुकूलन एक दिशात्मक प्रक्रिया है, जबकि आत्मसातकरण पारस्परिक है।
- अनुकूलन में दो संस्कृतियों का मिश्रण होता है, जबकि आत्मसातकरण में एक समूह द्वारा दूसरे को पूर्णतः अपनाना शामिल है।
- आत्मसातकरण हमेशा सकारात्मक होता है, जबकि अनुकूलन नहीं।
- अनुकूलन सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखता है, जबकि आत्मसातकरण इसे समाप्त कर देता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: अनुकूलन (Acculturation) एक प्रक्रिया है जहाँ दो संस्कृतियाँ संपर्क में आने पर एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं, जिसमें दोनों संस्कृतियाँ कुछ तत्वों को अपना सकती हैं और कुछ को बनाए रख सकती हैं। इसके विपरीत, आत्मसातकरण (Assimilation) अधिक एकतरफा प्रक्रिया है जहाँ एक अल्पसंख्यक समूह प्रमुख संस्कृति को पूरी तरह से अपना लेता है।
- संदर्भ और विस्तार: अनुकूलन के कई रूप हो सकते हैं, जैसे पृथक्करण, एकीकरण, सीमांतकरण, या आत्मसातकरण।
- गलत विकल्प: (a) विपरीत सच है; अनुकूलन पारस्परिक हो सकता है, आत्मसातकरण अधिक एकतरफा है। (c) आत्मसातकरण हमेशा सकारात्मक नहीं होता, क्योंकि इससे सांस्कृतिक पहचान का नुकसान हो सकता है। (d) यह (b) का दोहराव है, लेकिन यह मुख्य अंतर को स्पष्ट करता है।
प्रश्न 24: “सोशियोलॉजिकल इमेजिनेशन” (Sociological Imagination) की अवधारणा किसने विकसित की?
- सी. राइट मिल्स
- ई. वि. थॉम्पसन
- कैरोलिन मर्फी
- जेफरी एलेक्जेंडर
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सी. राइट मिल्स (C. Wright Mills) ने अपनी पुस्तक “The Sociological Imagination” (1959) में इस अवधारणा को विकसित किया।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा व्यक्तियों को उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियों को व्यापक सामाजिक संरचनाओं, ऐतिहासिक रुझानों और बड़े सामाजिक मुद्दों से जोड़ने की क्षमता को संदर्भित करती है। यह व्यक्तिगत समस्याओं (personal troubles) और सार्वजनिक मुद्दों (public issues) के बीच संबंध स्थापित करने का एक तरीका है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प इस अवधारणा से सीधे तौर पर जुड़े हुए नहीं हैं।
प्रश्न 25: भारत में “आधुनिकीकरण” (Modernization) की प्रक्रिया के संबंध में कौन सा कथन सबसे सटीक है?
- यह केवल पश्चिमी संस्कृति को अपनाना है।
- यह औद्योगीकरण, शहरीकरण और धर्मनिरपेक्षता जैसी एक बहुआयामी प्रक्रिया है।
- यह केवल तकनीकी प्रगति है।
- इसका पारंपरिक भारतीय समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आधुनिकीकरण एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें केवल पश्चिमी संस्कृति को अपनाना या केवल तकनीकी प्रगति शामिल नहीं है। इसमें औद्योगीकरण, शहरीकरण, धर्मनिरपेक्षता, तर्कसंगतता, शिक्षा का प्रसार और राजनीतिक संस्थाओं का विकास जैसे परिवर्तन शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया पारंपरिक समाजों को आधुनिक समाजों में रूपांतरित करती है, और भारत में इसके प्रभाव व्यापक और जटिल रहे हैं।
- गलत विकल्प: (a) आधुनिकीकरण पश्चिमीकरण से भिन्न है। (c) यह केवल तकनीकी प्रगति नहीं है। (d) इसका पारंपरिक भारतीय समाज पर गहरा और परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ा है।