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समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी पकड़ मजबूत करें!

समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी पकड़ मजबूत करें!

ज्ञान के सागर में गोता लगाने के लिए तैयार हो जाइए! आज की समाजशास्त्र की प्रश्नोत्तरी आपके अवधारणात्मक कौशल और विश्लेषणात्मक क्षमता का परीक्षण करने के लिए डिज़ाइन की गई है। हर प्रश्न आपको समाज के जटिल ताने-बाने को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा। तो, चलिए शुरू करते हैं यह ज्ञानवर्धक अभ्यास!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘मैजिक, साइंस एंड रिलिजन’ नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं, जिसमें उन्होंने जादू, धर्म और विज्ञान के बीच तुलना की है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. मैक्स वेबर
  4. बी. के. मल्लिनोवस्की

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: बी. के. मल्लिनोवस्की, एक प्रसिद्ध मानवविज्ञानी, ने अपनी पुस्तक ‘मैजिक, साइंस एंड रिलिजन’ (1948) में जादू, धर्म और विज्ञान के बीच संबंध और अंतर का विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि जादू अक्सर खतरनाक या अनिश्चित स्थितियों से निपटने का एक तरीका है, जबकि विज्ञान सामान्य और सुलभ स्थितियों से।
  • संदर्भ और विस्तार: मल्लिनोवस्की ने प्रशांत द्वीप समूह, विशेष रूप से ट्रोब्रियांड द्वीपों पर अपने फील्डवर्क के आधार पर ये विचार विकसित किए। उन्होंने कार्यात्मक दृष्टिकोण (Functional Approach) पर जोर दिया, जिसमें समाज के विभिन्न पहलुओं को उनके सामाजिक कार्यों के आधार पर समझा जाता है।
  • गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने ‘एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ रिलीजियस लाइफ’ में सामूहिक चेतना और धर्म के सामाजिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया। कार्ल मार्क्स ने धर्म को ‘जनता के लिए अफीम’ कहा और इसे सामाजिक नियंत्रण का साधन माना। मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेंट नैतिकता और पूंजीवाद के उदय के बीच संबंध पर काम किया।

प्रश्न 2: सामाजिक स्तरीकरण का वह सिद्धांत जो मानता है कि समाज में असमानताएँ कार्यात्मक रूप से आवश्यक हैं और समाज के लिए लाभप्रद हैं, क्या कहलाता है?

  1. संघर्ष सिद्धांत
  2. प्रतीकात्मक अन्योन्यक्रियावाद
  3. संरचनात्मक प्रकार्यवाद
  4. अभिकल्पवाद

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है जिसके विभिन्न अंग (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) एक साथ मिलकर कार्य करते हैं और समाज की स्थिरता बनाए रखते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार, सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) यह सुनिश्चित करता है कि समाज के महत्वपूर्ण पदों को योग्य और सक्षम लोगों द्वारा भरा जाए, जो इस प्रणाली को कार्यात्मक रूप से आवश्यक बनाता है। डेविस और मूर (Davis and Moore) इस सिद्धांत के प्रमुख प्रस्तावक हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: प्रकार्यवादियों का तर्क है कि समाज में सभी की आवश्यकताएं समान नहीं होतीं और कुछ पदों के लिए अधिक प्रशिक्षण या कौशल की आवश्यकता होती है। इसलिए, ऐसे पदों को अधिक पुरस्कार (धन, प्रतिष्ठा) देकर आकर्षित किया जाता है, जिससे समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं उन भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रेरित होती हैं।
  • गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory), विशेष रूप से मार्क्सवादी दृष्टिकोण, मानता है कि असमानताएँ शोषक वर्ग द्वारा स्थापित की जाती हैं और समाज के लिए लाभदायक नहीं बल्कि हानिकारक हैं। प्रतीकात्मक अन्योन्यक्रियावाद (Symbolic Interactionism) व्यक्तिगत स्तर पर अंतःक्रियाओं और अर्थों पर केंद्रित है। अभिकल्पवाद (Disenchantment) मैक्स वेबर द्वारा प्रयोग किया गया शब्द है जो आधुनिक समाज में तर्कसंगतता के बढ़ते प्रभाव और जादू-टोने के क्षय को दर्शाता है।

प्रश्न 3: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज में श्रम विभाजन का प्राथमिक कार्य क्या है?

  1. व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ाना
  2. सामाजिक एकजुटता (Solidarity) को बढ़ाना
  3. आर्थिक उत्पादन को अधिकतम करना
  4. पारंपरिक बंधनों को तोड़ना

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (1893) में तर्क दिया कि श्रम विभाजन का प्राथमिक कार्य व्यक्तिगत मतभेदों के माध्यम से सामाजिक एकजुटता (Solidarity) को बढ़ाना है। उन्होंने यांत्रिक एकजुटता (Mechanical Solidarity) और कार्बनिक एकजुटता (Organic Solidarity) के बीच अंतर किया।
  • संदर्भ और विस्तार: पारंपरिक समाजों में, यांत्रिक एकजुटता पाई जाती है, जो समानता और साझा चेतना पर आधारित होती है। आधुनिक समाजों में, श्रम विभाजन के कारण लोग एक-दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं, जिससे कार्बनिक एकजुटता विकसित होती है। यह निर्भरता लोगों को एक साथ बांधती है।
  • गलत विकल्प: जबकि श्रम विभाजन आर्थिक उत्पादन को प्रभावित करता है, दुर्खीम का मुख्य जोर सामाजिक एकीकरण पर था। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बढ़ना श्रम विभाजन का परिणाम हो सकता है, लेकिन यह दुर्खीम के अनुसार इसका प्राथमिक कार्य नहीं था। पारंपरिक बंधनों को तोड़ना आधुनिकता की ओर एक प्रवृत्ति है, लेकिन श्रम विभाजन सीधे तौर पर इसका प्राथमिक उद्देश्य नहीं है।

प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘प्रतीकात्मक अन्योन्यक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रस्तावक माने जाते हैं?

  1. इमाइल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. जॉर्ज हर्बर्ट मीड
  4. टोल्कोट पार्सन्स

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) को प्रतीकात्मक अन्योन्यक्रियावाद के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। उनके कार्यों ने इस सिद्धांत की नींव रखी, जो यह समझने पर केंद्रित है कि व्यक्ति कैसे प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और समाज का निर्माण करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘स्व’ (Self) और ‘मन’ (Mind) के विकास को सामाजिक अंतःक्रिया के परिणाम के रूप में समझाया। उन्होंने ‘आई’ (I) और ‘मी’ (Me) की अवधारणा दी, जहाँ ‘आई’ व्यक्ति की तत्काल प्रतिक्रिया है और ‘मी’ समाज द्वारा आंतरिक की गई सामाजिक अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी मृत्यु के बाद उनके छात्रों ने उनके विचारों को संकलित करके ‘माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी’ (1934) प्रकाशित की।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम प्रकार्यवाद से जुड़े हैं, मार्क्स संघर्ष सिद्धांत से, और पार्सन्स संरचनात्मक प्रकार्यवाद से। ये विचारक सूक्ष्म (macro) स्तर के विश्लेषण पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि मीड सूक्ष्म (micro) स्तर पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

प्रश्न 5: वेबर के अनुसार, नौकरशाही (Bureaucracy) की निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता नहीं है?

  1. स्पष्ट पदानुक्रम
  2. विशेषज्ञता
  3. अनौपचारिक नियम
  4. लिखित नियम और विनियम

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने आदर्श नौकरशाही (Ideal Bureaucracy) की विशेषताओं का वर्णन किया, जिसमें स्पष्ट पदानुक्रम, श्रम का विभाजन (विशेषज्ञता), नियम-आधारित निर्णय, अवैयक्तिक संबंध और योग्यता-आधारित नियुक्ति शामिल हैं। ‘अनौपचारिक नियम’ (Informal Rules) नौकरशाही की परिभाषित विशेषता नहीं है; बल्कि, नौकरशाही का उद्देश्य ही अनौपचारिकता और पक्षपात को कम करके औपचारिकता और निष्पक्षता लाना है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना था कि नौकरशाही आधुनिक समाजों में तर्कसंगतता और दक्षता लाने का सबसे प्रभावी तरीका है, लेकिन उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अत्यधिक नौकरशाही से ‘लौह पिंजरा’ (Iron Cage) बन सकता है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करता है।
  • गलत विकल्प: स्पष्ट पदानुक्रम, विशेषज्ञता और लिखित नियम व विनियम वेबर द्वारा बताई गई नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएं हैं।

प्रश्न 6: भारतीय समाज में ‘सगोत्रीय विवाह’ (Endogamy) का क्या अर्थ है?

  1. जाति के बाहर विवाह
  2. गोत्र के बाहर विवाह
  3. जाति के भीतर विवाह
  4. धार्मिक समूह के भीतर विवाह

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: सगोत्रीय विवाह (Endogamy) वह प्रथा है जिसमें व्यक्ति को अपने स्वयं के सामाजिक समूह, जैसे कि अपनी जाति या उप-जाति के भीतर विवाह करना अनिवार्य होता है। भारतीय जाति व्यवस्था में, सगोत्रीय विवाह जाति के भीतर विवाह को अनिवार्य बनाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: सगोत्रीय विवाह जाति व्यवस्था को बनाए रखने का एक प्रमुख तंत्र है, जो जातीय पहचान को मजबूत करता है और अंतर-जातीय विवाह को हतोत्साहित करता है। इसके विपरीत, बहिर्विवाह (Exogamy) तब होता है जब विवाह किसी विशेष समूह के बाहर होता है, जैसे कि गोत्र बहिर्विवाह (Gotra Exogamy) जिसमें एक ही गोत्र के व्यक्तियों के बीच विवाह वर्जित होता है।
  • गलत विकल्प: जाति के बाहर विवाह को ‘अंतरजातीय विवाह’ (Inter-caste marriage) कहा जाता है। गोत्र के बाहर विवाह को ‘गोत्र बहिर्विवाह’ कहा जाता है। धार्मिक समूह के भीतर विवाह को ‘धार्मिक सगोत्रीय विवाह’ (Religious Endogamy) कहा जा सकता है, लेकिन ‘सगोत्रीय विवाह’ का सामान्य और सबसे प्रमुख अर्थ जाति के भीतर विवाह है।

प्रश्न 7: रॉबर्ट मर्टन ने ‘अनजानी आवश्यकता’ (Manifest Need) और ‘छिपी हुई आवश्यकता’ (Latent Need) की अवधारणाओं को किस संदर्भ में प्रस्तुत किया?

  1. सामाजिक विघटन
  2. सामाजिक परिवर्तन
  3. सामाजिक संस्थाएँ
  4. कार्य (Function)

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: रॉबर्ट मर्टन ने सामाजिक क्रियाओं के ‘कार्य’ (Function) का विश्लेषण करते हुए ‘अनजानी आवश्यकता’ (Manifest Function) और ‘छिपी हुई आवश्यकता’ (Latent Function) के बीच अंतर किया। अनजानी आवश्यकताएं किसी सामाजिक संस्था या क्रिया के वे स्पष्ट और जानबूझकर माने जाने वाले परिणाम होते हैं, जबकि छिपी हुई आवश्यकताएं वे अनपेक्षित और अक्सर अनजाने परिणाम होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक विश्वविद्यालय की अनजानी आवश्यकता पेशेवर प्रशिक्षण प्रदान करना है, जबकि इसकी छिपी हुई आवश्यकता छात्रों के बीच सामाजिक नेटवर्क बनाना या सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देना हो सकती है। मर्टन ने ‘कार्यहीनता’ (Dysfunction) की अवधारणा भी पेश की, जो किसी सामाजिक संरचना के वे परिणाम हैं जो उसकी स्थिरता को कम करते हैं।
  • गलत विकल्प: मर्टन ने सामाजिक विघटन (Social Disorganization), सामाजिक परिवर्तन (Social Change) और सामाजिक संस्थाओं (Social Institutions) का भी विश्लेषण किया, लेकिन ‘अनजानी’ और ‘छिपी हुई’ की अवधारणाएं विशेष रूप से उनके ‘कार्य’ (Function) के विश्लेषण से संबंधित हैं।

प्रश्न 8: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘सहसंबंध’ (Correlation) का क्या अर्थ है?

  1. एक चर का दूसरे चर के कारण होना
  2. दो या दो से अधिक चरों के बीच संबंध का मापन
  3. चरों के बीच कारण-परिणाम संबंध की स्थापना
  4. एक नियंत्रित प्रयोग की विधि

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में, सहसंबंध (Correlation) दो या दो से अधिक चरों (Variables) के बीच सांख्यिकीय रूप से मापे गए संबंध को दर्शाता है। यह बताता है कि क्या चर एक साथ बदलते हैं, लेकिन यह कारण-परिणाम संबंध स्थापित नहीं करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: एक सकारात्मक सहसंबंध का मतलब है कि जब एक चर बढ़ता है, तो दूसरा चर भी बढ़ता है। एक नकारात्मक सहसंबंध का मतलब है कि जब एक चर बढ़ता है, तो दूसरा चर घटता है। सहसंबंधात्मक अध्ययन यह समझने में मदद करते हैं कि सामाजिक घटनाओं के बीच क्या संबंध हो सकते हैं, लेकिन वे कारण नहीं बताते।
  • गलत विकल्प: एक चर का दूसरे चर के कारण होना या चरों के बीच कारण-परिणाम संबंध स्थापित करना ‘कारणता’ (Causation) कहलाता है, न कि सहसंबंध। नियंत्रित प्रयोग (Controlled Experiment) कारणता स्थापित करने की एक विधि है।

प्रश्न 9: चार्ल्स कूली द्वारा विकसित ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) की अवधारणा का सबसे उपयुक्त उदाहरण कौन सा है?

  1. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)
  2. एक क्रिकेट टीम
  3. परिवार और बचपन के दोस्त
  4. एक विश्वविद्यालय का छात्र संघ

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: चार्ल्स कूली ने ‘प्राइमरी ग्रुप’ की अवधारणा को अपनी पुस्तक ‘सोशल ऑर्गनाइजेशन’ (1909) में प्रस्तुत किया। प्राथमिक समूह वे समूह होते हैं जो घनिष्ठ, आमने-सामने की अंतःक्रिया, सहयोग और ‘हम’ की भावना (We-feeling) की विशेषता रखते हैं। परिवार और बचपन के दोस्त इसके सबसे प्रमुख उदाहरण हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: प्राथमिक समूहों में व्यक्ति का व्यक्तित्व, नैतिक विचार और सामाजिक चेतना विकसित होती है। इनमें भावनात्मक जुड़ाव मजबूत होता है। कूली ने ‘द्वितीयक समूह’ (Secondary Group) की भी बात की, जो बड़े, कम व्यक्तिगत और अधिक औपचारिक होते हैं।
  • गलत विकल्प: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, क्रिकेट टीम और छात्र संघ आमतौर पर द्वितीयक समूहों के उदाहरण हैं, जहाँ अंतःक्रियाएँ कम व्यक्तिगत और अधिक उद्देश्य-उन्मुख होती हैं।

प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘ज्ञानोदय’ (Enlightenment) के विचार से प्रभावित था और उसने समाज को समझने के लिए तर्क और विज्ञान के प्रयोग पर जोर दिया?

  1. अगस्त कॉम्टे
  2. कार्ल मार्क्स
  3. हरबर्ट स्पेंसर
  4. मैक्स वेबर

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: अगस्त कॉम्टे (Auguste Comte) को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है। वे ज्ञानोदय के विचारों से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने ‘सामाजिक भौतिकी’ (Social Physics) शब्द का प्रयोग किया, जिसे बाद में उन्होंने ‘समाजशास्त्र’ (Sociology) नाम दिया। उनका मानना था कि समाज को वैज्ञानिक विधियों से समझा जा सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: कॉम्टे ने ‘तीन अवस्थाओं का नियम’ (Law of Three Stages) प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार समाज धार्मिक, तात्विक और सकारात्मक (वैज्ञानिक) अवस्थाओं से गुजरता है। उन्होंने समाजशास्त्र को ‘सकारात्मक दर्शन’ (Positive Philosophy) के रूप में देखा, जो समाज के नियमों को खोजना चाहता है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने समाज का विश्लेषण वर्ग संघर्ष के आधार पर किया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद (Social Darwinism) का विचार विकसित किया। मैक्स वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता पर जोर दिया, लेकिन कॉम्टे को समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने का श्रेय जाता है, जो ज्ञानोदय के तर्कसंगत दृष्टिकोण से गहराई से प्रेरित था।

प्रश्न 11: एमिल दुर्खीम के ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) का सबसे अच्छा वर्णन क्या है?

  1. व्यक्तिगत विश्वास और मूल्य
  2. समाज द्वारा थोपी गई विचार, व्यवहार और भावनाएँ जो व्यक्ति के बाहर मौजूद होती हैं
  3. ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या
  4. संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का अध्ययन

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्यों’ को परिभाषित किया है ‘विचार, व्यवहार और भावनाएँ जो समाज के व्यक्ति से बाहर मौजूद हैं और उनमें व्यक्ति को नियंत्रित करने की शक्ति है।’ ये तथ्य किसी विशेष समाज के भीतर साझा किए जाते हैं और व्यक्ति पर बाहरी दबाव डालते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method, 1895) में इस अवधारणा को विस्तार से समझाया। उनका मानना था कि समाजशास्त्र को इन सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करना चाहिए, जैसे कि वे ‘वस्तुएँ’ हों। उदाहरण: कानून, रीति-रिवाज, नैतिकता, फैशन, सामाजिक मान्यताएँ।
  • गलत विकल्प: व्यक्तिगत विश्वास और मूल्य व्यक्ति के भीतर होते हैं। ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का अध्ययन समाजशास्त्र के अन्य क्षेत्र हो सकते हैं, लेकिन वे दुर्खीम के ‘सामाजिक तथ्य’ की विशिष्ट परिभाषा में नहीं आते।

प्रश्न 12: ‘एलियनेशन’ (Alienation) या अलगाव की अवधारणा, जो पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिकों के अनुभव का वर्णन करती है, किससे जुड़ी है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. मैक्स वेबर
  4. अगस्त कॉम्टे

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने ‘एलियनेशन’ या अलगाव की अवधारणा का प्रयोग पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिकों की स्थिति का वर्णन करने के लिए किया। उनका मानना था कि पूँजीवाद श्रमिकों को उनके श्रम, उत्पाद, सहकर्मियों और स्वयं से अलग कर देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने चार प्रकार के अलगाव की पहचान की: श्रम उत्पाद से अलगाव, श्रम की प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं की प्रजाति-प्रकृति (species-being) से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव। यह अलगाव श्रमिकों को उनके काम के माध्यम से आत्म-बोध से वंचित करता है।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा दी, जो सामाजिक मानदंडों की कमी से उत्पन्न होती है। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता पर ध्यान केंद्रित किया। कॉम्टे समाजशास्त्र के संस्थापक थे।

प्रश्न 13: भारतीय समाज में ‘दर्शन’ (Dharma) की अवधारणा किससे संबंधित है?

  1. नैतिक कर्तव्य और जीवन का मार्ग
  2. केवल धार्मिक अनुष्ठान
  3. जाति व्यवस्था का एकमात्र निर्धारक
  4. पारंपरिक आर्थिक गतिविधि

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: भारतीय दर्शन और संस्कृति में, ‘धर्म’ (Dharma) एक व्यापक अवधारणा है जिसमें व्यक्ति के नैतिक कर्तव्य, दायित्व, धार्मिक आचरण, जीवन जीने का तरीका और सामाजिक व्यवस्था शामिल है। यह केवल पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांडों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: धर्म व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में व्यवस्था और संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसके वर्ण (सामाजिक वर्ग) और आश्रम (जीवन का चरण) के अनुसार भिन्न हो सकता है।
  • गलत विकल्प: धर्म केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। यद्यपि यह जाति व्यवस्था से जुड़ा हो सकता है, यह उसका एकमात्र निर्धारक नहीं है। यह पारंपरिक आर्थिक गतिविधि से भी जुड़ा हो सकता है, लेकिन इसकी व्यापकता केवल उस तक सीमित नहीं है।

प्रश्न 14: ‘प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के अनुसार, समाज का निर्माण कैसे होता है?

  1. बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाओं द्वारा
  2. समूहों के बीच शक्ति संघर्ष द्वारा
  3. व्यक्तियों के बीच अर्थपूर्ण अंतःक्रियाओं के माध्यम से
  4. पूर्व-निर्धारित नियमों और कानूनों द्वारा

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद मानता है कि समाज व्यक्तियों के बीच होने वाली अंतःक्रियाओं और उन अंतःक्रियाओं में प्रयुक्त प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से निर्मित होता है। व्यक्ति इन प्रतीकों से अर्थ निकालते हैं, और ये साझा अर्थ सामाजिक वास्तविकता का निर्माण करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इस दृष्टिकोण के अनुसार, ‘स्व’ (Self) भी सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से विकसित होता है। लोग दूसरों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर अपने बारे में सोचते हैं और व्यवहार करते हैं। यह एक ‘सूक्ष्म-स्तर’ (Micro-level) का विश्लेषण है।
  • गलत विकल्प: बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाएं (Macro-level structures) प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद के मुख्य फोकस में नहीं हैं। शक्ति संघर्ष (Conflict Theory) और पूर्व-निर्धारित नियम (Functionalism, Structuralism) अन्य समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणों से संबंधित हैं।

प्रश्न 15: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘एनोमी’ (Anomie) की स्थिति कब उत्पन्न होती है?

  1. जब समाज में अत्यधिक सामाजिक नियंत्रण होता है
  2. जब सामाजिक मानदंडों का अभाव या अस्पष्टता होती है
  3. जब व्यक्ति अत्यधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं
  4. जब समाज में सभी लोग समान व्यवहार करते हैं

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) को समाज की एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया है जहाँ सामाजिक मानदंड या तो गायब हो जाते हैं, या अस्पष्ट हो जाते हैं, या कमजोर हो जाते हैं। इससे व्यक्ति को यह पता नहीं चलता कि उसे क्या करना चाहिए, जिससे दिशाहीनता और हताशा पैदा होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: एनोमी विशेष रूप से तेजी से सामाजिक परिवर्तन (जैसे आर्थिक उछाल या मंदी) के दौरान उत्पन्न हो सकती है, जब पुरानी मान्यताएं और नियम अपर्याप्त हो जाते हैं और नए अभी तक स्थापित नहीं हुए होते हैं। उन्होंने आत्म-हत्या (Suicide) के अध्ययन में इस अवधारणा का प्रयोग किया।
  • गलत विकल्प: अत्यधिक सामाजिक नियंत्रण ‘अति-विनियमन’ (Over-regulation) से संबंधित हो सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अनुभव एनोमी का कारण हो सकता है यदि वह सामाजिक मानदंडों से विचलित हो, लेकिन यह स्वयं एनोमी नहीं है। सभी का समान व्यवहार ‘यांत्रिक एकजुटता’ (Mechanical Solidarity) का संकेत हो सकता है।

प्रश्न 16: भारतीय जाति व्यवस्था में ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) का क्या अर्थ है?

  1. सभी जातियों के लिए समान सामाजिक दर्जा
  2. कुछ जातियों को सार्वजनिक जीवन से बहिष्कृत करना और निम्नतर मानना
  3. एक गोत्र के भीतर विवाह की प्रथा
  4. पशु बलि की प्रथा

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: अस्पृश्यता भारतीय जाति व्यवस्था का एक क्रूर पहलू है, जिसमें कुछ जातियों (जिन्हें ऐतिहासिक रूप से ‘अछूत’ कहा गया) को सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया जाता है, उन्हें मंदिरों, सार्वजनिक कुओं और यहां तक कि कुछ सामाजिक आयोजनों में भाग लेने से रोका जाता है। उन्हें शारीरिक और सामाजिक रूप से ‘अशुद्ध’ माना जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 ने अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया है और इसके अभ्यास को दंडनीय अपराध घोषित किया है। एम.एन. श्रीनिवास जैसे समाजशास्त्रियों ने जाति के कामकाज और अस्पृश्यता के सामाजिक प्रभावों का गहन अध्ययन किया है।
  • गलत विकल्प: यह सभी जातियों के लिए समान सामाजिक दर्जा नहीं है। यह गोत्र बहिर्विवाह (Gotra Exogamy) या पशु बलि (Pashu Bali) से संबंधित नहीं है।

प्रश्न 17: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘जनजातीय समाज’ (Tribal Society) का अध्ययन करते समय, निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता आमतौर पर प्रमुख होती है?

  1. लिखित कानून और विस्तृत नौकरशाही
  2. बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण और शहरीकरण
  3. रक्त संबंध, सामुदायिक स्वामित्व और अलगाव
  4. विस्तृत वर्ग विभाजन और आर्थिक विशेषज्ञता

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: जनजातीय समाजों की विशेषता अक्सर मजबूत रक्त संबंध (Kinship ties), कुल (Clan) और वंश (Descent) की व्यवस्था, सामुदायिक स्वामित्व (Community ownership) की भावना, और मुख्यधारा के समाज से अलगाव (Isolation) होती है। उनकी अर्थव्यवस्थाएं अक्सर निर्वाह-आधारित होती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: भारत में, विभिन्न जनजातीय समूह जैसे गोंड, संथाल, भील आदि अपनी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हैं। समाजशास्त्री जनजातियों के सामाजिक संगठन, अर्थव्यवस्था, धर्म और बाहरी दुनिया के साथ उनके संबंधों का अध्ययन करते हैं।
  • गलत विकल्प: लिखित कानून, नौकरशाही, औद्योगीकरण, शहरीकरण और विस्तृत वर्ग विभाजन आमतौर पर अधिक विकसित (औद्योगिक या कृषक) समाजों की विशेषताएं हैं, न कि पारंपरिक जनजातीय समाजों की।

प्रश्न 18: ‘संस्कृति’ (Culture) की समाजशास्त्रीय परिभाषा में क्या शामिल है?

  1. केवल कला, संगीत और साहित्य
  2. मानव व्यवहार के सीखे हुए पैटर्न, विश्वास, मूल्य, प्रतीक और सामग्री
  3. व्यक्तिगत अनुभव और भावनाएँ
  4. केवल प्राकृतिक पर्यावरण

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: समाजशास्त्र में, संस्कृति को एक व्यापक शब्द के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें किसी समाज या समूह के सदस्यों द्वारा सीखी गई और साझा की गई सभी चीजें शामिल होती हैं। इसमें न केवल अमूर्त तत्व (जैसे विश्वास, मूल्य, भाषा, ज्ञान) बल्कि मूर्त तत्व (जैसे उपकरण, कलाकृतियाँ, भवन) भी शामिल होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: संस्कृति वह लेंस है जिसके माध्यम से हम दुनिया को देखते हैं और जिसके माध्यम से हम बातचीत करते हैं। यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है और सामाजिक जीवन को आकार देती है।
  • गलत विकल्प: संस्कृति केवल कला, संगीत और साहित्य तक सीमित नहीं है। यह व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं के बजाय साझा और सीखी हुई है। यह प्राकृतिक पर्यावरण नहीं है, बल्कि प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति मानव की प्रतिक्रिया है।

प्रश्न 19: ‘रैंकिंग’ (Ranking) और ‘विभेदन’ (Differentiation) की प्रक्रियाएँ किस समाजशास्त्रीय अवधारणा से निकटता से संबंधित हैं?

  1. सामाजिक नियंत्रण
  2. सामाजिक स्तरीकरण
  3. सामाजिक पूंजी
  4. सामाजिक गतिशीलता

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज को पदानुक्रमित स्तरों या परतों में व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रक्रिया में, लोगों और समूहों को उनकी संपत्ति, शक्ति, प्रतिष्ठा, या अन्य सामाजिक विशेषताओं के आधार पर ‘रैंक’ (Ranking) या श्रेणीबद्ध किया जाता है, और उन्हें एक-दूसरे से ‘विभेदित’ (Differentiated) किया जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के विभिन्न रूप हैं, जैसे वर्ग, जाति, लिंग, आयु आदि, जो समाज में असमानताओं के पैटर्न को दर्शाते हैं।
  • गलत विकल्प: सामाजिक नियंत्रण (Social Control) उन तंत्रों से संबंधित है जो समाज में व्यवस्था बनाए रखते हैं। सामाजिक पूंजी (Social Capital) सामाजिक संबंधों और नेटवर्कों के माध्यम से प्राप्त लाभ को संदर्भित करती है। सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) एक व्यक्ति या समूह की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन को संदर्भित करती है।

प्रश्न 20: कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष (Class Struggle) के सिद्धांत के अनुसार, पूंजीवादी समाज में मुख्य विरोधी वर्ग कौन से हैं?

  1. प्रबंधक और श्रमिक
  2. पूंजीपति (Bourgeoisie) और सर्वहारा (Proletariat)
  3. स्वामी और दास
  4. बुद्धिजीवी और मजदूर

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी समाज का विश्लेषण करते हुए दो प्रमुख विरोधी वर्गों की पहचान की: पूंजीपति (Bourgeoisie), जो उत्पादन के साधनों (जैसे कारखाने, मशीनें) के मालिक होते हैं, और सर्वहारा (Proletariat), जो अपनी श्रम शक्ति बेचकर जीवन यापन करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, इन दोनों वर्गों के हित एक-दूसरे के विपरीत होते हैं, और उनके बीच का संघर्ष ही इतिहास का मुख्य चालक है। पूंजीपति सर्वहारा वर्ग के श्रम का शोषण करके लाभ कमाते हैं।
  • गलत विकल्प: प्रबंधक और श्रमिक एक समूह का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन मार्क्स के लिए मुख्य विभाजन स्वामित्व का है। स्वामी और दास प्राचीन या सामंती समाजों में प्रासंगिक थे। बुद्धिजीवी मार्क्स के वर्ग विभाजन में एक अलग श्रेणी हो सकते हैं, लेकिन मुख्य विभाजन पूंजीपति और सर्वहारा के बीच ही है।

प्रश्न 21: भारत में ‘आधुनिकता’ (Modernity) की प्रक्रिया को सबसे अधिक किस कारक ने प्रभावित किया है?

  1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन
  2. आर्थिक उदारीकरण
  3. पश्चिमी शिक्षा का प्रसार
  4. राजनीतिक लोकतंत्रीकरण

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: यद्यपि पश्चिमी शिक्षा, आर्थिक उदारीकरण और राजनीतिक लोकतंत्रीकरण सभी ने भारत में आधुनिकता की प्रक्रिया को प्रभावित किया है, लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन (British Colonial Rule) ने सबसे पहले और सबसे गहराई से भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ढांचे को पुनर्गठित किया, जिसने आधुनिकता की नींव रखी।
  • संदर्भ और विस्तार: औपनिवेशिक शासन ने रेलवे, डाक, पश्चिमी शिक्षा प्रणाली, प्रशासनिक और कानूनी ढाँचे जैसी संस्थाओं की शुरुआत की, जो पारंपरिक भारतीय समाज में बड़े बदलाव लाए और आधुनिकता के प्रसार के लिए मंच तैयार किया।
  • गलत विकल्प: आर्थिक उदारीकरण (1991 के बाद) और राजनीतिक लोकतंत्रीकरण आधुनिकता को तेज करने वाले कारक रहे हैं, लेकिन औपनिवेशिक शासन ने प्रारंभिक और मौलिक परिवर्तन लाए। पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी औपनिवेशिक शासन का एक परिणाम था, लेकिन शासन स्वयं एक व्यापक कारक था।

प्रश्न 22: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘प्रश्नावली’ (Questionnaire) का प्रयोग क्यों किया जाता है?

  1. गहन साक्षात्कार के लिए
  2. अवलोकन के लिए
  3. बड़ी संख्या में उत्तरदाताओं से व्यवस्थित डेटा एकत्र करने के लिए
  4. सामाजिक घटनाओं के बीच कारण-परिणाम संबंध स्थापित करने के लिए

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: प्रश्नावली का प्राथमिक उद्देश्य बड़ी संख्या में उत्तरदाताओं से व्यवस्थित और मानकीकृत (Standardized) तरीके से डेटा एकत्र करना है। यह शोधकर्ताओं को मात्रात्मक (Quantitative) डेटा प्राप्त करने में मदद करता है जिसे आसानी से विश्लेषण किया जा सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: प्रश्नावली में बंद-छोर वाले (Closed-ended) या खुले-छोर वाले (Open-ended) प्रश्न हो सकते हैं। इनका उपयोग सर्वेक्षण अनुसंधान (Survey Research) में व्यापक रूप से किया जाता है।
  • गलत विकल्प: प्रश्नावली गहन साक्षात्कार (In-depth Interview) का विकल्प नहीं है, जो अधिक व्यक्तिगत और विस्तृत होता है। यह अवलोकन (Observation) का भी विकल्प नहीं है। कारण-परिणाम संबंध स्थापित करना अक्सर प्रयोगात्मक (Experimental) या अनुदैर्ध्य (Longitudinal) अध्ययनों से जुड़ा होता है, न कि केवल प्रश्नावली से।

प्रश्न 23: ‘सभ्यता’ (Civilization) की अवधारणा को मैक्स वेबर ने किसके साथ जोड़ा है?

  1. जादू का विघटन और तर्कसंगतता का उदय
  2. प्रभुत्व का करिश्माई रूप
  3. आर्थिक असमानता
  4. प्रथाओं का अनियंत्रित प्रसार

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘अभिकल्पवाद’ (Disenchantment) या जादू के विघटन (Disenchantment of Magic) की प्रक्रिया को सभ्यता के विकास से जोड़ा है। उनका मानना था कि आधुनिक समाजों में तर्कसंगतता (Rationality), विज्ञान और नौकरशाही का उदय हुआ है, जिसने पारंपरिक जादुई या धार्मिक व्याख्याओं को प्रतिस्थापित कर दिया है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह तर्कसंगतता आधुनिक नौकरशाही, पूंजीवाद और वैज्ञानिक सोच की नींव बनाती है, जो वेबर की नजर में सभ्यता का प्रतीक थे।
  • गलत विकल्प: प्रभुत्व का करिश्माई रूप (Charismatic Authority) प्रभुत्व के तीन प्रकारों में से एक है, जो तर्कसंगतता से भिन्न है। आर्थिक असमानता और प्रथाओं का अनियंत्रित प्रसार वेबर के विश्लेषण के हिस्से हो सकते हैं, लेकिन सभ्यता के केंद्रीय तर्क के रूप में उन्होंने जादू के विघटन और तर्कसंगतता को देखा।

प्रश्न 24: भारत में ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) की संरचनात्मक बाधाओं में निम्नलिखित में से कौन सी सबसे महत्वपूर्ण रही है?

  1. शिक्षा का समान अवसर
  2. जाति व्यवस्था
  3. औद्योगीकरण की धीमी गति
  4. शहरीकरण की प्रक्रिया

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: भारतीय संदर्भ में, जाति व्यवस्था ने ऐतिहासिक रूप से सामाजिक गतिशीलता के लिए एक बड़ी संरचनात्मक बाधा के रूप में कार्य किया है। जन्म के आधार पर निर्धारित सामाजिक स्थिति, व्यवसाय और प्रतिष्ठा ने लोगों के लिए अपनी स्थिति को ऊपर उठाना या बदलना अत्यंत कठिन बना दिया था।
  • संदर्भ और विस्तार: यद्यपि शिक्षा, औद्योगीकरण और शहरीकरण जैसे आधुनिकता के कारक गतिशीलता के अवसर प्रदान करते हैं, फिर भी जातिगत पूर्वाग्रह और संरचनाएं इन अवसरों को सीमित कर सकती हैं।
  • गलत विकल्प: शिक्षा के समान अवसर गतिशीलता को बढ़ावा देते हैं, न कि बाधा डालते हैं। औद्योगीकरण और शहरीकरण, हालांकि धीमे रहे हों, गतिशीलता के लिए अवसर पैदा करते हैं।

प्रश्न 25: ‘संस्कृति का प्रसार’ (Cultural Diffusion) क्या है?

  1. एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति पर पूर्ण प्रभुत्व
  2. सांस्कृतिक तत्वों का विभिन्न समाजों के बीच आदान-प्रदान
  3. संस्कृति का बाहरी दुनिया से अलगाव
  4. किसी समाज की अपनी संस्कृति का विकास

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: सांस्कृतिक प्रसार (Cultural Diffusion) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समाज या संस्कृति के विचार, नवाचार, प्रथाएँ और अन्य तत्व अन्य समाजों या संस्कृतियों में फैलते हैं और अपनाए जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह व्यापार, प्रवास, युद्ध, मीडिया और संचार प्रौद्योगिकियों जैसे विभिन्न माध्यमों से हो सकता है। जैसे, भारत में पिज़्ज़ा या पश्चिमी संगीत का लोकप्रिय होना सांस्कृतिक प्रसार का उदाहरण है।
  • गलत विकल्प: पूर्ण प्रभुत्व ‘सांस्कृतिक साम्राज्यवाद’ (Cultural Imperialism) हो सकता है। अलगाव ‘सांस्कृतिक अलगाव’ (Cultural Isolation) है। अपनी संस्कृति का विकास ‘सांस्कृतिक विकास’ (Cultural Development) या ‘सांस्कृतिक नवाचार’ (Cultural Innovation) है।

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