समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अपनी संकल्पनाओं को परखें!
तैयारी के मैदान में आपका स्वागत है, समाजशास्त्र के भावी दिग्गजों! आज का दिन आपकी वैचारिक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल का परीक्षण करने का है। इन 25 गहन प्रश्नों के साथ अपनी समझ को पैना करें और समाजशास्त्र की दुनिया में एक कदम और आगे बढ़ें। आइए, इस बौद्धिक यात्रा को शुरू करें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक संरचना’ की अवधारणा को समाजशास्त्र में किसने केंद्रीय स्थान दिया और इसे विभिन्न भागों के स्थिर, अंतर्संबंधित पैटर्न के रूप में देखा?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- टैल्कॉट पार्सन्स
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने सामाजिक संरचना की अवधारणा को अपने ‘संरचनात्मक-प्रकार्यवाद’ (Structural-Functionalism) के सिद्धांत में केंद्रीय बनाया। उन्होंने समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा जिसके विभिन्न भाग (जैसे संस्थाएं, भूमिकाएं) होते हैं जो एक स्थिर संतुलन बनाए रखने के लिए एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स की पुस्तक ‘The Social System’ (1951) इस अवधारणा के विस्तृत विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने सामाजिक संरचना को इन अंतर्संबंधित भागों के पैटर्न के रूप में परिभाषित किया।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ‘सामाजिक वर्ग’ और ‘संघर्ष’ पर ध्यान केंद्रित किया। एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक एकजुटता’ (Social Solidarity) और ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) पर जोर दिया, हालांकि उन्होंने सामाजिक तथ्यों (Social Facts) की बात की जो बाहरी होते हैं। मैक्स वेबर ने ‘क्रिया’ (Action) और उसके ‘अर्थ’ (Meaning) पर अधिक बल दिया।
प्रश्न 2: मैकियावेली की ‘The Prince’ पुस्तक को किस समाजशास्त्रीय विषय के अध्ययन के लिए एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में देखा जा सकता है?
- राजनीतिक समाजशास्त्र
- अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र
- विज्ञान का समाजशास्त्र
- धर्म का समाजशास्त्र
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैकियावेली की ‘The Prince’ में शक्ति, राज्य, नेतृत्व और शासन की यथार्थवादी (realpolitik) चर्चा है, जो सीधे तौर पर राजनीतिक समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र से संबंधित है। यह पुस्तक राजनीतिक व्यवहार और सत्ता की गतिशीलता को समझने में सहायक है।
- संदर्भ और विस्तार: राजनीतिक समाजशास्त्र राज्य, सरकार, राजनीति, कानून, सार्वजनिक नीति और अन्य राजनीतिक गतिविधियों के सामाजिक पहलुओं का अध्ययन करता है। मैकियावेली की पुस्तक सत्ता के अधिग्रहण और रखरखाव के व्यावहारिक पहलुओं पर केंद्रित है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प (अर्थशास्त्र, विज्ञान, धर्म का समाजशास्त्र) मैकियावेली की पुस्तक के मुख्य विषयों से सीधे संबंधित नहीं हैं, हालांकि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था का समाज के अन्य पहलुओं से संबंध हो सकता है।
प्रश्न 3: दुर्खीम के अनुसार, ‘एनामी’ (Anomie) की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
- जब समाज में अत्यधिक नियंत्रण होता है
- जब सामाजिक नियम और मानदंड कमजोर या अनुपस्थित हो जाते हैं
- जब व्यक्ति पूरी तरह से अपने धर्म का पालन करता है
- जब समाज में वर्ग संघर्ष चरम पर होता है
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनामी’ को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया है जहाँ सामाजिक नियम और मानक या तो स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं होते हैं या कमजोर पड़ जाते हैं, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा दुर्खीम की ‘The Division of Labour in Society’ और ‘Suicide’ जैसी कृतियों में पाई जाती है। एनामी अक्सर सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक संकट या तीव्र सामाजिक उथल-पुथल के समय उत्पन्न होती है।
- गलत विकल्प: अत्यधिक नियंत्रण ‘अति-नियमन’ (Hyper-regulation) की स्थिति हो सकती है। धर्म का अत्यधिक पालन या वर्ग संघर्ष स्वयं एनामी का कारण नहीं हैं, हालांकि वे अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हो सकते हैं।
प्रश्न 4: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रणेता कौन हैं?
- हरबर्ट मीड
- डेविड इमैनुएल स्मिथ
- पीटर एल. बर्जर
- जी.एच. मीड
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने इस दृष्टिकोण को विकसित किया कि सामाजिक वास्तविकता व्यक्तियों के बीच अर्थों के निर्माण और विनिमय के माध्यम से उत्पन्न होती है, जिसमें प्रतीकों (जैसे भाषा) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड के विचारों को उनके मरणोपरांत छात्रों द्वारा ‘Mind, Self, and Society’ (1934) पुस्तक में संकलित किया गया। उन्होंने ‘सेल्फ’ (Self) के विकास को सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से समझा।
- गलत विकल्प: डेविड इमैनुएल स्मिथ एक नारीवादी समाजशास्त्री हैं। पीटर एल. बर्जर (और थॉमस लकमैन) ने ‘The Social Construction of Reality’ लिखी, जो प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से प्रभावित है लेकिन वे इसके मुख्य प्रणेता नहीं माने जाते। (चूंकि ‘a’ और ‘d’ एक ही व्यक्ति को संदर्भित करते हैं, और ‘d’ को अक्सर अधिक पूर्ण नाम के रूप में प्रयोग किया जाता है, इसलिए ‘d’ सबसे उपयुक्त है।)
प्रश्न 5: भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति की व्याख्या करने वाले ‘प्रजाति सिद्धांत’ (Racial Theory) का प्रमुख प्रतिपादक कौन था?
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- एच.एच. रिस्ले
- एस.सी. रॉय
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सर हर्बर्ट होप रिस्ले (H.H. Risley) ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति की व्याख्या करने के लिए प्रजाति सिद्धांत का प्रमुखता से समर्थन किया। उनका मानना था कि भारतीय समाज की विभिन्न जातियां विभिन्न प्रजातियों के मिश्रण का परिणाम हैं।
- संदर्भ और विस्तार: रिस्ले ने 1901 की जनगणना के दौरान यह सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो तत्कालीन औपनिवेशिक मानसिकता और प्रजाति विज्ञान के प्रभाव को दर्शाता है।
- गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) और ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) जैसी अवधारणाएं दीं। इरावती कर्वे ने भी जाति और जनजातियों पर कार्य किया, लेकिन प्रजाति सिद्धांत पर नहीं। एस.सी. रॉय एक मानवशास्त्री थे जिन्होंने जनजातियों पर महत्वपूर्ण कार्य किया।
प्रश्न 6: ‘ संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा किस समाजशास्त्री द्वारा प्रतिपादित की गई?
- ए.आर. देसाई
- एम.एन. श्रीनिवास
- जी.एस. घुरिये
- यु.वी. सिंह
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ शब्द का प्रयोग किया, जो भारतीय जाति व्यवस्था में निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों की परंपराओं, रीति-रिवाजों और विश्वासों को अपनाने की प्रक्रिया का वर्णन करता है ताकि वे सामाजिक पदानुक्रम में उच्च स्थान प्राप्त कर सकें।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ (1952) में पहली बार इस अवधारणा का उल्लेख किया। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
- गलत विकल्प: ए.आर. देसाई ने भारतीय समाज में पूंजीवाद और सामाजिक परिवर्तन पर लिखा। जी.एस. घुरिये ने जाति, जनजाति और भारतीय संस्कृति पर महत्वपूर्ण कार्य किया, लेकिन संस्कृतिकरण उनकी मुख्य अवधारणा नहीं थी। यु.वी. सिंह ने भी भारतीय समाज पर कार्य किया।
प्रश्न 7: मैक्स वेबर के अनुसार, ‘करिश्माई अधिकार’ (Charismatic Authority) किस पर आधारित होता है?
- परंपरा
- कानूनी तर्कसंगत नियम
- नेता के असाधारण व्यक्तिगत गुण
- नौकरशाही संरचना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन मुख्य प्रकार बताए: पारंपरिक, कानूनी-तर्कसंगत और करिश्माई। करिश्माई अधिकार नेता के असाधारण व्यक्तिगत गुणों, जैसे कि नायकत्व, पवित्रता या उदाहरण के आदर्श पर आधारित होता है, जिसके प्रति अनुयायी निष्ठा रखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा वेबर की ‘Economy and Society’ में विस्तृत है। करिश्माई अधिकार अक्सर क्रांतिकारी आंदोलनों या धार्मिक उद्भवों में देखा जाता है।
- गलत विकल्प: परंपरा पारंपरिक अधिकार का आधार है। कानूनी-तर्कसंगत अधिकार नियमों और प्रक्रियाओं पर आधारित होता है, और नौकरशाही इसी का रूप है।
प्रश्न 8: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) की अवधारणा निम्नलिखित में से किस पर जोर देती है?
- व्यक्तियों के बीच सामाजिक अंतःक्रिया
- समाज में संसाधनों (धन, शक्ति, प्रतिष्ठा) का असमान वितरण
- सामाजिक समूहों के बीच सांस्कृतिक भिन्नताएं
- समाज में परिवर्तन की प्रक्रियाएं
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण किसी भी समाज में व्यक्तियों और समूहों को पदानुक्रमित व्यवस्था में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है, जिसमें धन, शक्ति, प्रतिष्ठा और विशेषाधिकार जैसे संसाधनों का असमान वितरण होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा समाज की संरचना और व्यक्तियों की स्थिति को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। यह जन्म, उपलब्धि या दोनों पर आधारित हो सकती है।
- गलत विकल्प: (a) सामाजिक अंतःक्रिया प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का मुख्य बिंदु है। (c) सांस्कृतिक भिन्नताएं संस्कृति और समाजशास्त्र के अन्य पहलुओं से संबंधित हैं। (d) परिवर्तन की प्रक्रियाएं सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन का विषय हैं।
प्रश्न 9: भारत में ‘आदिवासी समाज’ (Tribal Society) के अध्ययन में ‘अलगाव’ (Isolation) के सिद्धांत के विपरीत ‘एकीकरण’ (Integration) के सिद्धांत पर किसने बल दिया?
- एल.पी. विद्यार्थी
- एन.के. बोस
- एस.सी. रॉय
- फ्रेडरिक आई. कोटर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एन.के. बोस (N.K. Bose) ने आदिवासी समुदायों के अध्ययन में ‘अलगाव’ के पारंपरिक दृष्टिकोण की आलोचना की और ‘एकीकरण’ के सिद्धांत पर बल दिया। उनका मानना था कि आदिवासी समाज भारतीय मुख्यधारा के समाज से पूरी तरह अलग-थलग नहीं हैं, बल्कि वे निरंतर संपर्क और अंतःक्रिया में रहे हैं, जिससे एकीकरण की प्रक्रियाएं चलती रही हैं।
- संदर्भ और विस्तार: बोस ने विशेष रूप से जनजातियों और हिंदुओं के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समायोजन पर प्रकाश डाला।
- गलत विकल्प: एल.पी. विद्यार्थी ने भारत में जनजातियों के वर्गीकरण और अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें ‘प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉइड’ जैसी प्रजातीय श्रेणियों का उपयोग भी शामिल था। एस.सी. रॉय भारत में जनजातियों के अग्रदूत माने जाते हैं लेकिन एकीकरण पर बोस जितना जोर नहीं दिया। फ्रेडरिक आई. कोटर एक जर्मन मानवशास्त्री थे जिन्होंने भारतीय जनजातियों पर कार्य किया।
प्रश्न 10: इमाइल दुर्खीम के अनुसार, ‘धर्म’ समाज में किस प्रकार का कार्य करता है?
- समाज में अलगाव पैदा करना
- सामाजिक एकजुटता और सामूहिकता की भावना को बढ़ाना
- सामाजिक नियंत्रण को कमजोर करना
- वैज्ञानिक प्रगति को बाधित करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Elementary Forms of Religious Life’ (1912) में तर्क दिया कि धर्म समाज में एकता और सामूहिकता की भावना को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कार्य करता है। धर्म अनुष्ठानों और साझा विश्वासों के माध्यम से ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) को पुनर्जीवित करता है।
- संदर्भ और विस्तार: वे धर्म को ‘पवित्र’ (Sacred) और ‘अपवित्र’ (Profane) के बीच एक स्पष्ट अंतर के रूप में देखते थे, और सामूहिक पूजा अनुष्ठानों को सामाजिक बंधन के लिए आवश्यक मानते थे।
- गलत विकल्प: दुर्खीम के अनुसार, धर्म अलगाव पैदा नहीं करता, बल्कि एकजुटता बढ़ाता है। यह सामाजिक नियंत्रण को कमजोर नहीं करता, बल्कि मजबूत करता है। यह वैज्ञानिक प्रगति को बाधित करने के बजाय, समाज के अन्य पहलुओं की तरह, सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखता है।
प्रश्न 11: ‘संस्थागत पृथक्करण’ (Institutionalized Separations) की अवधारणा, जो समाजों में विभिन्न भूमिकाओं और कार्यों को अलग-अलग संस्थानों में बांटने की प्रक्रिया है, किससे संबंधित है?
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- टैल्कॉट पार्सन्स
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने आधुनिक समाजों के विश्लेषण में ‘संस्थागत पृथक्करण’ की प्रक्रिया पर जोर दिया। यह वह प्रक्रिया है जिसमें समाज में विभिन्न कार्यात्मक आवश्यकताएं (जैसे शिक्षा, धर्म, परिवार, राजनीति) विशिष्ट और अलग-अलग संस्थानों में व्यवस्थित हो जाती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जहाँ पहले ये कार्य अक्सर एक ही संस्था (जैसे परिवार) द्वारा किए जाते थे, लेकिन बाद में वे विशेषीकृत संस्थानों में स्थानांतरित हो जाते हैं।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने श्रम विभाजन पर काम किया, लेकिन संस्थागत पृथक्करण पर पार्सन्स जितना जोर नहीं दिया। मार्क्स ने वर्गों और संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया। वेबर ने सत्ता, नौकरशाही और आधुनिकीकरण के विभिन्न पहलुओं पर लिखा, लेकिन संस्थागत पृथक्करण को पार्सन्स ने अधिक केंद्रीयता दी।
प्रश्न 12: किसी समाज में ‘आर्थिक आधार’ (Economic Base) और ‘सुपरस्ट्रक्चर’ (Superstructure) के बीच संबंध की व्याख्या किस सिद्धांत में की गई है?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत (मार्क्सवादी)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- नृविज्ञान
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) के अपने सिद्धांत में ‘आर्थिक आधार’ (उत्पादन के साधन और उत्पादन के संबंध) और ‘सुपरस्ट्रक्चर’ (राजनीतिक, कानूनी, सांस्कृतिक, वैचारिक संस्थाएं और विचार) के बीच संबंध की व्याख्या की। उन्होंने तर्क दिया कि आर्थिक आधार सुपरस्ट्रक्चर को निर्धारित करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह मार्क्स के ‘A Contribution to the Critique of Political Economy’ (1859) जैसे कार्यों में स्पष्ट है।
- गलत विकल्प: संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को संतुलन और परस्पर निर्भरता वाली प्रणाली के रूप में देखता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। नृविज्ञान मानव समाजों और संस्कृतियों का विस्तृत अध्ययन है।
प्रश्न 13: समाजशास्त्र में ‘जातिगत पूर्वाग्रह’ (Caste Prejudice) और ‘भेदभाव’ (Discrimination) के अध्ययन के लिए किसने ‘सापेक्षिक वंचना’ (Relative Deprivation) की अवधारणा का प्रयोग किया?
- अमिताभ बच्चन
- वी.ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई. ई.N.
- सत्यता: सैमुअल स्टौफर (Samuel Stouffer) ने सापेक्षिक वंचना की अवधारणा को विकसित किया, जो तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपनी स्थिति की तुलना दूसरों की स्थिति से करता है और पाता है कि उसे वह नहीं मिला जो दूसरों को मिला है, जिससे असंतोष उत्पन्न होता है। इसका प्रयोग सामाजिक आंदोलनों और असंतोष को समझने में किया जाता है, जिसमें जातिगत पूर्वाग्रह और भेदभाव के पीड़ित भी शामिल हो सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: स्टौफर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना में सैनिकों के मनोबल पर अपने शोध में इस अवधारणा का प्रयोग किया था।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प (आर.के. मर्टन, एम.एन. श्रीनिवास, टी. पार्सन्स) समाजशास्त्र के अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतकार हैं जिन्होंने वंचना या स्तरीकरण पर काम किया है, लेकिन सापेक्षिक वंचना की अवधारणा का प्रारंभिक विकास स्टौफर से जुड़ा है।
प्रश्न 14: ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने दी, जो समाजों में भौतिक संस्कृति में परिवर्तन की तीव्र गति की तुलना में अभौतिक संस्कृति (जैसे मान्यताएं, मूल्य) के पिछड़ने की स्थिति को दर्शाती है?
- विलियम ग्राहम समनर
- एल्बिन टॉफ्लर
- एल. ई. हॉवर्ड
- विलियम एफ. ओगबर्न
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम एफ. ओगबर्न (William F. Ogburn) ने 1922 में ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने तर्क दिया कि तकनीकी और भौतिक प्रगति अक्सर सामाजिक आदतों, कानूनों, नैतिकताओं और संस्थाओं में परिवर्तन से अधिक तेज़ी से होती है, जिससे एक असंतुलन पैदा होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता और उससे उत्पन्न होने वाली सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: विलियम ग्राहम समनर ने ‘लोकगीत’ (Folkways) और ‘रूढ़ियों’ (Mores) के बीच अंतर किया। एल्बिन टॉफ्लर ‘फ्यूचर शॉक’ (Future Shock) के लेखक हैं। एल. ई. हॉवर्ड ने भी सांस्कृतिक परिवर्तन पर काम किया, लेकिन ओगबर्न इस विशेष अवधारणा के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 15: मैकियावेली के अलावा, राजनीतिक समाजशास्त्र के विकास में किस विचारक ने ‘सामाजिक अनुबंध’ (Social Contract) के विचार का समर्थन किया?
- एडम स्मिथ
- कार्ल मार्क्स
- थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक, और जीन-जैक्स रूसो
- मैक्स वेबर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक और जीन-जैक्स रूसो प्रमुख विचारक हैं जिन्होंने ‘सामाजिक अनुबंध’ के सिद्धांत का विकास किया। यह सिद्धांत बताता है कि सरकार की वैधता नागरिकों की सहमति से उत्पन्न होती है, जो सुरक्षा और व्यवस्था के बदले में अपने कुछ प्राकृतिक अधिकार छोड़ देते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: इन विचारों ने राजनीतिक दर्शन और सरकार के अध्ययन को गहराई से प्रभावित किया है, जो राजनीतिक समाजशास्त्र का एक उप-क्षेत्र है।
- गलत विकल्प: एडम स्मिथ अर्थशास्त्र से संबंधित हैं। कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष और क्रांति पर केंद्रित हैं। मैक्स वेबर ने शक्ति, अधिकार और नौकरशाही का विश्लेषण किया।
प्रश्न 16: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक संस्था आधुनिकीकरण के कारण सबसे अधिक प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुई है, जिसके कारण परिवार का आकार छोटा हुआ और भूमिकाएं बदलीं?
- धर्म
- शिक्षा
- राजनीति
- परिवार
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने ‘परिवार’ संस्था को मौलिक रूप से प्रभावित किया है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और शिक्षा के प्रसार के कारण, परिवार का पारंपरिक संयुक्त परिवार से एकल परिवार में परिवर्तन, संतान उत्पत्ति दर में कमी, और सदस्यों की भूमिकाओं (विशेषकर महिलाओं की) में बदलाव आया है।
- संदर्भ और विस्तार: परिवार, जो पहले उत्पादन और शिक्षा जैसे कई कार्य करता था, अब कई कार्य विशिष्ट संस्थानों (जैसे कारखाने, स्कूल) को सौंप चुका है।
- गलत विकल्प: यद्यपि धर्म, शिक्षा और राजनीति भी आधुनिकीकरण से प्रभावित होते हैं, परिवार पर इसका प्रभाव सबसे अधिक प्रत्यक्ष और रूपांतरकारी रहा है।
प्रश्न 17: आर.के. मर्टन (R.K. Merton) के अनुसार, सामाजिक व्यवस्था के ऐसे अनपेक्षित परिणाम क्या कहलाते हैं जो समाज के लिए अनुकूल होते हैं?
- प्रकट कार्य (Manifest Functions)
- अप्रकट कार्य (Latent Functions)
- अकार्य (Dysfunctions)
- सामाजिक परिवर्तन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने ‘अप्रकट कार्य’ (Latent Functions) की अवधारणा दी, जो किसी सामाजिक पैटर्न या संस्था के अनपेक्षित, अनजाने या अप्रत्यक्ष परिणाम होते हैं, जो समाज के अनुकूल हो सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने ‘प्रकट कार्य’ (जो इच्छित और ज्ञात परिणाम हैं) और ‘अकार्य’ (जो समाज के लिए हानिकारक या विघटनकारी परिणाम हैं) से भी भिन्नता की। उनकी पुस्तक ‘Social Theory and Social Structure’ (1957) इन अवधारणाओं को प्रस्तुत करती है।
- गलत विकल्प: प्रकट कार्य इच्छित परिणाम होते हैं। अकार्य समाज के लिए हानिकारक होते हैं। सामाजिक परिवर्तन एक व्यापक प्रक्रिया है।
प्रश्न 18: भारत में ‘सांप्रदायिकता’ (Communalism) को समझने के लिए, निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा एक प्रमुख कारक रही है?
- संयुक्त परिवार प्रणाली
- जातिगत अंतःक्रिया
- धार्मिक पहचान का राजनीतिकरण
- शहरीकरण की प्रक्रिया
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारत में सांप्रदायिकता का उदय और प्रसार काफी हद तक धार्मिक पहचान के राजनीतिकरण से जुड़ा रहा है। राजनीतिक दल अक्सर धार्मिक पहचान का उपयोग अपने वोट बैंक को मजबूत करने या राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए करते हैं, जिससे समुदायों के बीच अविश्वास और विभाजन बढ़ता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारक शामिल हैं, लेकिन धार्मिक पहचान का राजनीतिक उपयोग एक केंद्रीय तत्व है।
- गलत विकल्प: संयुक्त परिवार प्रणाली, जातिगत अंतःक्रिया और शहरीकरण का सांप्रदायिकता से अप्रत्यक्ष संबंध हो सकता है, लेकिन धार्मिक पहचान का राजनीतिकरण इसका प्रत्यक्ष और मुख्य चालक रहा है।
प्रश्न 19: ‘आत्मसात्करण’ (Assimilation) की प्रक्रिया में, बाहरी समूह के सदस्य किस प्रकार व्यवहार करते हैं?
- वे अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हैं
- वे अपनी संस्कृति को अपनी मूल संस्कृति के साथ मिलाते हैं
- वे अपने मेजबान समाज की संस्कृति को अपना लेते हैं और अपनी मूल संस्कृति को छोड़ देते हैं
- वे मुख्य रूप से अपने मूल समाज से जुड़े रहते हैं
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आत्मसात्करण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक अल्पसंख्यक या बाहरी सांस्कृतिक समूह धीरे-धीरे या पूरी तरह से बहुसंख्यक संस्कृति को अपना लेता है, अक्सर अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को त्याग देता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया समाजीकरण के माध्यम से होती है, जहाँ व्यक्ति मेजबान समाज के मूल्यों, विश्वासों और व्यवहारों को आंतरिक कर लेता है।
- गलत विकल्प: (a) और (d) आत्मसात्करण के विपरीत हैं (जैसे ‘समायोजन’ या ‘सह-अस्तित्व’)। (b) ‘संस्कृति मिश्रण’ (Acculturation) का वर्णन करता है, जहाँ दोनों संस्कृतियां कुछ हद तक मिश्रित होती हैं।
प्रश्न 20: समाजशास्त्र में ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) का अध्ययन मुख्य रूप से किस पर केंद्रित है?
- ज्ञान की सत्यता का मूल्यांकन
- यह कैसे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कारक ज्ञान के निर्माण, प्रसार और स्वीकृति को प्रभावित करते हैं
- वैज्ञानिक पद्धतियों का विकास
- व्यक्तिगत संज्ञानात्मक प्रक्रियाएं
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ज्ञान का समाजशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि ज्ञान केवल व्यक्तिगत विचारों का परिणाम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक संरचनाओं, संस्थाओं, ऐतिहासिक संदर्भों और शक्ति संबंधों से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह इस बात की पड़ताल करता है कि समाज कैसे तय करता है कि क्या ‘ज्ञान’ माना जाएगा।
- संदर्भ और विस्तार: कार्ल मैनहाइम (Karl Mannheim) इस क्षेत्र के प्रमुख प्रर्वतकों में से एक थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘Ideology and Utopia’ में ज्ञान की सामाजिक उत्पत्ति पर विस्तार से लिखा।
- गलत विकल्प: (a) ज्ञान के समाजशास्त्र का उद्देश्य ज्ञान की सत्यता का मूल्यांकन करना नहीं, बल्कि उसके सामाजिक पहलुओं का अध्ययन करना है। (c) और (d) क्रमशः विज्ञान के समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के विषय हैं।
प्रश्न 21: भारत में ‘आर्थिक उदारीकरण’ (Economic Liberalization) के बाद, सामाजिक संरचना में किस प्रकार के परिवर्तन देखे गए हैं?
- आय असमानता में कमी
- शहरी मध्यम वर्ग का संकुचन
- उपभोक्तावाद में वृद्धि और नए सामाजिक वर्गों का उदय
- पारंपरिक कृषि पर निर्भरता में वृद्धि
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: 1991 के बाद भारत में आर्थिक उदारीकरण ने अर्थव्यवस्था को खोला, जिससे उपभोक्तावाद में वृद्धि हुई और नए सामाजिक-आर्थिक वर्गों (जैसे सेवा क्षेत्र में मध्यम वर्ग) का उदय हुआ। इसने पुरानी सामाजिक संरचनाओं को भी चुनौती दी।
- संदर्भ और विस्तार: इस उदारीकरण ने सामाजिक गतिशीलता, जीवन शैली और सांस्कृतिक मूल्यों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है।
- गलत विकल्प: आय असमानता में वृद्धि देखी गई है, कमी नहीं। शहरी मध्यम वर्ग का विस्तार हुआ है, संकुचन नहीं। पारंपरिक कृषि पर निर्भरता कम हुई है।
प्रश्न 22: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जिसे रॉबर्ट पुटनम जैसे समाजशास्त्रियों ने लोकप्रिय बनाया, का अर्थ क्या है?
- किसी व्यक्ति की वित्तीय संपत्ति
- समाज में किसी व्यक्ति के विश्वास, नेटवर्क और सामाजिक संबंध जिनके माध्यम से वह संसाधन प्राप्त कर सकता है
- शिक्षा और कौशल का स्तर
- वैज्ञानिक ज्ञान की मात्रा
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक पूंजी उन संसाधनों को संदर्भित करती है जो लोगों के सामाजिक नेटवर्क (जैसे दोस्ती, परिवार, सहकर्मी) और विश्वास के माध्यम से उपलब्ध होते हैं। ये संसाधन व्यक्तियों को सहयोग, सूचना और अवसरों तक पहुंचने में मदद करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: रॉबर्ट पुटनम ने अपनी पुस्तक ‘Bowling Alone’ में अमेरिकियों के बीच नागरिक भागीदारी और सामाजिक पूंजी में गिरावट पर चिंता व्यक्त की थी।
- गलत विकल्प: (a), (c), और (d) क्रमशः वित्तीय पूंजी, मानव पूंजी और बौद्धिक पूंजी से संबंधित हैं, न कि सामाजिक पूंजी से।
प्रश्न 23: समाजशास्त्र में ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का सिद्धांत किस पर जोर देता है?
- सभी संस्कृतियाँ समान रूप से श्रेष्ठ हैं
- किसी भी संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी मानक से
- पश्चिमी संस्कृति को सबसे उन्नत संस्कृति माना जाना चाहिए
- यह कि केवल कुछ संस्कृतियाँ ही ‘सभ्य’ मानी जा सकती हैं
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सांस्कृतिक सापेक्षवाद का सिद्धांत यह मानता है कि किसी भी संस्कृति के विश्वासों, मूल्यों और प्रथाओं को उस संस्कृति के अपने सदस्यों के दृष्टिकोण से समझा और मूल्यांकित किया जाना चाहिए। यह पश्चिमी-केंद्रित या किसी अन्य सांस्कृतिक पूर्वाग्रह से बचने का प्रयास करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह मानवशास्त्रीय और समाजशास्त्रीय अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण नैतिक और पद्धतिगत सिद्धांत है।
- गलत विकल्प: (a) सांस्कृतिक सापेक्षवाद ‘श्रेष्ठता’ का दावा नहीं करता। (c) और (d) ‘नृजातीयता’ (Ethnocentrism) के उदाहरण हैं, जिसके विपरीत सांस्कृतिक सापेक्षवाद है।
प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन सा अवलोकन ‘अर्बन सोशियोलॉजी’ (Urban Sociology) के अध्ययन का केंद्रीय विषय है?
- ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि पद्धतियां
- शहरी जीवन की गतिशीलता, सामाजिक संबंध और समस्याएं
- जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक परंपराएं
- पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: शहरी समाजशास्त्र (Urban Sociology) शहरों, शहरीकरण की प्रक्रिया, और शहरी जीवन के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं का अध्ययन करता है। यह शहरी वातावरण में लोगों के व्यवहार, सामाजिक संबंधों, संस्थाओं और समस्याओं पर केंद्रित है।
- संदर्भ और विस्तार: शिकागो स्कूल (Chicago School) के समाजशास्त्रियों जैसे रॉबर्ट पार्क और अर्नेस्ट बर्गस ने शहरी समाजशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, शहरों को ‘सामाजिक प्रयोगशालाओं’ के रूप में अध्ययन किया।
- गलत विकल्प: (a) ग्रामीण समाजशास्त्र का विषय है। (c) नृविज्ञान या जनजाति समाजशास्त्र का विषय है। (d) यह सामाजिक परिवर्तन का एक सामान्य पहलू है, लेकिन शहरी समाजशास्त्र विशेष रूप से शहरी संदर्भ पर केंद्रित है।
प्रश्न 25: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का संबंध समाज में किस परिवर्तन से है?
- समूहों के बीच सांस्कृतिक प्रथाओं का आदान-प्रदान
- लोगों या समूहों का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में जाना
- समाज की राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन
- तकनीकी नवाचारों का प्रसार
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक गतिशीलता व्यक्तियों या समूहों द्वारा एक सामाजिक पद या वर्ग से दूसरे में जाने की प्रक्रिया है। यह ऊर्ध्वाधर (ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (समान स्तर पर) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक स्तरीकरण का एक महत्वपूर्ण परिणाम है और समाज में अवसरों की उपलब्धता को दर्शाता है।
- गलत विकल्प: (a) सांस्कृतिक आदान-प्रदान का वर्णन करता है। (c) और (d) क्रमशः राजनीतिक और तकनीकी परिवर्तन हैं, जो सामाजिक गतिशीलता के कारण या परिणाम हो सकते हैं, लेकिन स्वयं सामाजिक गतिशीलता नहीं हैं।