समाजशास्त्र की दैनिक कसौटी: अपनी पकड़ मजबूत करें!
तैयारी के रणभूमि में आपका स्वागत है, भविष्य के समाजशास्त्री! आज के इस विशेष अभ्यास सत्र में, हम आपके समाजशास्त्रीय ज्ञान की गहराई को परखेंगे। इन 25 प्रश्नों के माध्यम से अपने मुख्य सिद्धांतों, विचारकों और भारतीय समाज की गहरी समझ को चुनौती दें। अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता को निखारें और परीक्षा के लिए अपनी तैयारी को एक नई दिशा दें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजीकरण’ की प्रक्रिया में, व्यक्ति समाज के मानदंडों, मूल्यों और अपेक्षाओं को कैसे सीखता है? निम्नलिखित में से कौन सी एजेंसी सामाजीकरण की प्राथमिक एजेंसी मानी जाती है?
- विद्यालय
- समवयस्क समूह
- परिवार
- जनसंचार माध्यम
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: परिवार को सामाजीकरण की प्राथमिक (Primary) एजेंसी माना जाता है क्योंकि यह वह पहला और सबसे महत्वपूर्ण समूह है जिससे एक बच्चा जुड़ा होता है। यहीं पर बच्चा भाषा, बुनियादी सामाजिक व्यवहार, और प्रारंभिक मूल्यों को सीखता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह वह स्थान है जहाँ व्यक्ति का प्रारंभिक सामाजिक अनुभव होता है। परिवार से प्राप्त सीखें व्यक्ति के भावी सामाजिक विकास की नींव रखती हैं।
- गलत विकल्प: विद्यालय, समवयस्क समूह और जनसंचार माध्यम सामाजीकरण की गौण (Secondary) एजेंसियां हैं, जो प्राथमिक सामाजीकरण के बाद प्रभाव डालती हैं।
प्रश्न 2: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व रखने वाले वर्ग को क्या कहा जाता है?
- सर्वहारा वर्ग
- बुर्जुआ वर्ग
- कृषक वर्ग
- पूंजीपति वर्ग
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी समाज को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया: बुर्जुआ (Bourgeoisie), जो उत्पादन के साधनों (जैसे कारखाने, भूमि) के मालिक होते हैं, और सर्वहारा (Proletariat), जो अपनी श्रम शक्ति बेचते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) के सिद्धांत में, यह वर्ग विभाजन शोषण और वर्ग संघर्ष का मूल कारण है, जिसके अंततः साम्यवाद की स्थापना की ओर ले जाने की संभावना है।
- गलत विकल्प: सर्वहारा वर्ग वह वर्ग है जो उत्पादन के साधनों का स्वामी नहीं होता। कृषक वर्ग और पूंजीपति वर्ग (जो बुर्जुआ का ही एक पर्याय है, पर प्रश्न के संदर्भ में बुर्जुआ अधिक सटीक है) मार्क्स के विश्लेषण में प्रासंगिक हैं, लेकिन उत्पादन के साधनों के स्वामी के रूप में ‘बुर्जुआ वर्ग’ सबसे सटीक उत्तर है।
प्रश्न 3: एमिल दुर्खीम ने ‘सांस्कृतिक विचलन’ (Anomie) की अवधारणा को कैसे परिभाषित किया?
- जब समाज में किसी व्यक्ति का कोई स्थान न हो।
- जब समाज में नियमों और नैतिकताओं का अभाव हो।
- जब व्यक्ति सामाजिक अपेक्षाओं से विचलित हो जाए।
- जब व्यक्ति अत्यधिक आत्मनिर्भर हो जाए।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘एनोमी’ (Anomie) वह स्थिति है जब समाज में स्थापित नियमों, सामाजिक मानदंडों और सामूहिक चेतना का अभाव हो जाता है, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना उत्पन्न होती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ और ‘सुसाइड’ में इस अवधारणा का विस्तार से उल्लेख किया है। यह सामाजिक विघटन का सूचक है, जो विशेष रूप से सामाजिक परिवर्तन के तीव्र दौर में देखा जाता है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a) व्यक्तिगत अलगाव का वर्णन करता है। विकल्प (c) विचलन (Deviance) की अवधारणा के करीब है। विकल्प (d) व्यक्तिवाद (Individualism) की चरम अवस्था को दर्शा सकता है, न कि एनोमी को।
प्रश्न 4: एल. कॉसर (Lewis Coser) ने संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) को किन अर्थों में सकारात्मक माना?
- संघर्ष हमेशा हिंसक होता है।
- संघर्ष सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक हो सकता है।
- संघर्ष हमेशा पतन की ओर ले जाता है।
- संघर्ष सामाजिक परिवर्तन का एकमात्र कारण है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 5: भारतीय समाज में, ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किस समाज सुधारक ने दलितों के लिए किया?
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर
- एम.एन. श्रीनिवास
- महात्मा गांधी
- ई.वी. रामासामी पेरियार
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: महात्मा गांधी ने उन जातियों को “हरिजन” (ईश्वर के लोग) कहा, जिन्हें अछूत माना जाता था। उनका उद्देश्य इन समुदायों के प्रति समाज की नकारात्मक धारणा को बदलना और उन्हें गरिमा प्रदान करना था।
- संदर्भ और विस्तार: गांधीजी ने अस्पृश्यता (Untouchability) के उन्मूलन के लिए अथक प्रयास किए और उन्हें मुख्यधारा के समाज में एकीकृत करने पर जोर दिया।
- गलत विकल्प: डॉ. अम्बेडकर ने ‘दलित’ शब्द को अपनाया जो शक्ति और आत्म-पहचान का प्रतीक है। एम.एन. श्रीनिवास भारतीय समाजशास्त्री हैं जिन्होंने ‘संस्कृति’ और ‘जाति’ पर काम किया। ई.वी. रामासामी पेरियार एक द्रविड़ आंदोलन के नेता थे।
प्रश्न 6: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) की कौन सी व्यवस्था जन्म पर आधारित होती है और इसमें गतिशीलता (Mobility) लगभग नगण्य होती है?
- वर्ग (Class)
- जाति (Caste)
- प्रभुत्व (Estate)
- दासता (Slavery)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय संदर्भ में जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित है, जहाँ एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, व्यवसाय और सामाजिक संबंध उसके जन्म से ही निर्धारित हो जाते हैं। इसमें अंतर-पीढ़ीगत और अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता (Mobility) अत्यंत सीमित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था शुद्धता-अशुद्धता, अंतर्विवाह (Endogamy) और व्यवसाय की निश्चितता पर आधारित है, जो इसे अन्य स्तरीकरण प्रणालियों से अलग करती है।
- गलत विकल्प: वर्ग व्यवस्था में कुछ हद तक गतिशीलता संभव है। प्रभुत्व व्यवस्था (जैसे सामंतशाही यूरोप में) भी जन्म पर आधारित थी लेकिन जाति जितनी कठोर नहीं थी। दासता भी जन्म पर आधारित हो सकती थी लेकिन मुख्य रूप से संपत्ति के रूप में देखे जाने वाले व्यक्ति की स्थिति को संदर्भित करती है।
प्रश्न 7: चार्ल्स कूली (Charles Cooley) द्वारा प्रतिपादित ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) की मुख्य विशेषता क्या है?
- अनौपचारिक संबंध और घनिष्ठता
- औपचारिक नियम और विस्तृत सदस्यता
- लघु सदस्यता और कार्यात्मक निर्भरता
- साझा लक्ष्य और प्रतिस्पर्धा
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: चार्ल्स कूली ने ‘प्राथमिक समूह’ को ऐसे समूह के रूप में परिभाषित किया है जहाँ सदस्य आमने-सामने, घनिष्ठ और दीर्घकालिक संबंध साझा करते हैं। परिवार और घनिष्ठ मित्रमंडली इसके उदाहरण हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने अपनी पुस्तक “Social Organization” में इस अवधारणा का वर्णन किया है। ऐसे समूहों में संबंध अनौपचारिक, सहयोगात्मक और भावनात्मक होते हैं।
- गलत विकल्प: विकल्प (b) द्वितीयक समूहों (Secondary Groups) की विशेषता है। विकल्प (c) कुछ हद तक सही हो सकता है लेकिन घनिष्ठता प्राथमिक समूह की केंद्रीय विशेषता है। विकल्प (d) प्रतिस्पर्धा अक्सर द्वितीयक समूहों या अनौपचारिक समूहों के बीच संघर्ष को दर्शाती है।
प्रश्न 8: जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) के अनुसार, समाज का अस्तित्व निम्न में से किस पर निर्भर करता है?
- सामाजिक संरचनाओं पर
- सामाजिक अंतःक्रियाओं पर
- सांस्कृतिक मूल्यों पर
- भौगोलिक वातावरण पर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जॉर्ज सिमेल, जिसे शिकागो स्कूल का अग्रदूत माना जाता है, का मानना था कि समाज केवल व्यक्तियों के बीच होने वाली अंतःक्रियाओं (Interactions) का जाल है। समाज को समझने के लिए इन अंतःक्रियाओं के स्वरूपों का अध्ययन आवश्यक है।
- संदर्भ और विस्तार: सिमेल ने सूक्ष्म-समाजशास्त्रीय (Micro-sociological) दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें उन्होंने दो-व्यक्ति समूह (Dyad) और तीन-व्यक्ति समूह (Triad) जैसे छोटे सामाजिक रूपों के विश्लेषण पर जोर दिया।
- गलत विकल्प: यद्यपि सामाजिक संरचनाएं और सांस्कृतिक मूल्य महत्वपूर्ण हैं, सिमेल का मुख्य ध्यान अंतःक्रियाओं के ‘रूपों’ (Forms) पर था, जिनसे ये संरचनाएं निर्मित होती हैं। भौगोलिक वातावरण एक बाहरी कारक है, समाज का आधार नहीं।
प्रश्न 9: भारतीय समाज में, ‘विवाह’ को अक्सर एक ‘धार्मिक संस्कार’ (Religious Sacrament) के रूप में देखा जाता है। यह किस सामाजिक संस्था के स्वरूप को दर्शाता है?
- परिवार
- धर्म
- अर्थव्यवस्था
- शिक्षा
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय समाज में विवाह को केवल एक सामाजिक अनुबंध न मानकर, एक पवित्र बंधन या धार्मिक संस्कार माना जाता है। यह दृष्टिकोण विवाह को परिवार संस्था के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में स्थापित करता है, जिसके अपने धार्मिक और सामाजिक कर्तव्य जुड़े होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह विचार विवाह की पारंपरिक भारतीय समझ को दर्शाता है, जहाँ इसे व्यक्तिगत खुशी से अधिक वंश की निरंतरता और सामाजिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
- गलत विकल्प: धर्म विवाह के संस्कारिक पहलू से जुड़ा है, लेकिन विवाह स्वयं परिवार संस्था का एक रूप है। अर्थव्यवस्था और शिक्षा का संबंध सीधे तौर पर विवाह के संस्कारिक स्वरूप से नहीं है।
प्रश्न 10: हर्बर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) ने समाज के विकास को किस सिद्धांत के आधार पर समझाया?
- वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
- समाज के विकास का विकासवादी सिद्धांत
- लोकतांत्रिक परिवर्तन का सिद्धांत
- संरचनात्मक-कार्यात्मकता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: हर्बर्ट स्पेंसर, एक प्रभावशाली समाजशास्त्री, ने सामाजिक विकास को जैविक विकास के समानांतर एक विकासवादी प्रक्रिया के रूप में देखा। उन्होंने माना कि समाज सरल, सजातीय (Homogeneous) अवस्था से जटिल, विषम (Heterogeneous) अवस्था की ओर विकसित होता है।
- संदर्भ और विस्तार: स्पेंसर ने ‘डार्विनवाद’ से प्रेरित होकर ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ (Survival of the Fittest) के विचार को समाज पर भी लागू किया, जिसे ‘सामाजिक डार्विनवाद’ कहा जाता है।
- गलत विकल्प: वर्ग संघर्ष मार्क्स का सिद्धांत है। लोकतांत्रिक परिवर्तन और संरचनात्मक-कार्यात्मकता अन्य समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण हैं।
प्रश्न 11: किसी समाज की ‘संस्कृति’ (Culture) का सबसे उपयुक्त वर्णन निम्नलिखित में से कौन सा है?
- केवल कला और साहित्य का संग्रह।
- किसी भी समूह द्वारा सीखे गए व्यवहार, ज्ञान, विश्वासों और मूल्यों का कुल योग।
- जीवन शैली का वह हिस्सा जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता है।
- विशिष्ट सामाजिक समूहों द्वारा अपनाए गए अलिखित नियम।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संस्कृति एक व्यापक अवधारणा है जिसमें किसी समाज के सदस्यों द्वारा साझा किए गए सभी सीखे हुए व्यवहार, विश्वास, मूल्य, ज्ञान, कला, नैतिकता, कानून, रीति-रिवाज और क्षमताएं शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह वह ‘लिविंग पैटर्न’ है जो समाज के सदस्यों को एक साथ बांधता है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी सीखा और हस्तांतरित किया जाता है।
- गलत विकल्प: (a) संस्कृति का केवल एक छोटा सा हिस्सा है। (c) यह संस्कृति का महत्वपूर्ण पहलू है लेकिन पूरी परिभाषा नहीं। (d) यह ‘लोक’ (Folkways) या ‘रूढ़ियों’ (Customs) का वर्णन करता है, जो संस्कृति के घटक हैं, न कि संपूर्ण संस्कृति।
प्रश्न 12: आर.के. मर्टन (R.K. Merton) द्वारा प्रस्तावित ‘विसंगत’ (Anomie) की अवधारणा, दुर्खीम की अवधारणा से कैसे भिन्न है?
- मर्टन के अनुसार, विसंगत सामाजिक लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने के साधनों के बीच असंतुलन से उत्पन्न होती है।
- मर्टन ने विसंगत को पूरी तरह से व्यक्तिगत मनोविज्ञान का परिणाम माना।
- मर्टन ने विसंगत को हमेशा अनैच्छिक माना।
- मर्टन के अनुसार, विसंगत केवल आर्थिक असमानता के कारण होती है।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने अमेरिकन समाज के संदर्भ में ‘विसंगत’ (Anomie) की अपनी व्याख्या प्रस्तुत की। उनके अनुसार, यह तब उत्पन्न होती है जब समाज सांस्कृतिक रूप से निर्धारित लक्ष्यों (जैसे धन या सफलता) को बढ़ावा देता है, लेकिन सभी को उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैध साधन (जैसे अच्छी शिक्षा या नौकरी) प्रदान नहीं करता है।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने ‘अनुकूलन के तरीकों’ (Modes of Adaptation) का वर्णन किया, जिसमें ‘नवाचार’ (Innovation) शामिल है, जहाँ व्यक्ति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अवैध साधनों का उपयोग करता है।
- गलत विकल्प: (b) मर्टन ने सामाजिक संरचना के प्रभाव पर जोर दिया, न कि केवल व्यक्तिगत मनोविज्ञान पर। (c) विसंगत व्यक्ति द्वारा अपने अनुकूलन के तरीकों के आधार पर उत्पन्न होती है, जो कभी-कभी सचेत हो सकता है। (d) यह विसंगत का एक कारण हो सकता है, लेकिन एकमात्र कारण नहीं।
प्रश्न 13: सामाजिक अनुसंधान (Social Research) में, ‘वस्तुनिष्ठता’ (Objectivity) का क्या अर्थ है?
- अनुसंधानकर्ता की व्यक्तिगत भावनाओं और पूर्वाग्रहों का प्रभाव।
- अनुसंधान के परिणामों पर व्यक्तिगत राय का प्रभाव।
- अनुसंधानकर्ता का अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त रहकर तथ्यों का निष्पक्ष रूप से अवलोकन और विश्लेषण करना।
- केवल मात्रात्मक डेटा का उपयोग करना।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि अनुसंधानकर्ता अपने व्यक्तिगत विश्वासों, भावनाओं, पक्षपातों या पूर्वकल्पित विचारों से प्रभावित हुए बिना, जैसा है वैसा ही तथ्यों का अध्ययन करे और उनकी व्याख्या करे।
- संदर्भ और विस्तार: यह वैज्ञानिक अनुसंधान की एक महत्वपूर्ण शर्त है ताकि प्राप्त निष्कर्ष विश्वसनीय और मान्य हों।
- गलत विकल्प: (a) और (b) वस्तुनिष्ठता के विपरीत हैं। (d) मात्रात्मक डेटा वस्तुनिष्ठता प्राप्त करने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन यह स्वयं वस्तुनिष्ठता नहीं है, और गुणात्मक डेटा भी वस्तुनिष्ठ रूप से विश्लेषण किया जा सकता है।
प्रश्न 14: पैट्रीक गीडेन्स (Anthony Giddens) ने ‘संरचना’ (Structure) और ‘कर्तृत्व’ (Agency) के बीच संबंध की व्याख्या के लिए किस अवधारणा का उपयोग किया?
- संरचनात्मक-कार्यात्मकता
- द्वैतता का सिद्धांत (Duality of Structure)
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एंथोनी गिडेंस ने ‘संरचनात्मकता का सिद्धांत’ (Structuration Theory) विकसित किया, जिसमें उन्होंने ‘संरचना की द्वैतता’ (Duality of Structure) की अवधारणा को प्रमुखता दी। इसके अनुसार, संरचनाएं न केवल लोगों की क्रियाओं को प्रतिबंधित करती हैं, बल्कि उन्हें सक्षम भी करती हैं, और क्रियाएं स्वयं संरचनाओं को बनाए रखती हैं और पुन: उत्पन्न करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह मानव एजेंसी (लोगों की कार्य करने की क्षमता) और सामाजिक संरचनाओं के बीच एक गतिशील, अंतःक्रियात्मक संबंध को दर्शाता है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प समाजशास्त्र के अलग-अलग प्रमुख सिद्धांत हैं।
प्रश्न 15: भारतीय समाज में, ‘वंशानुक्रम’ (Lineage) और ‘विवाह-बंधुत्व’ (Affinity) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सी संस्थात्मक व्यवस्था प्रासंगिक है?
- जाति व्यवस्था
- कबीला व्यवस्था
- परिवार और नातेदारी
- धार्मिक अनुष्ठान
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: परिवार और नातेदारी व्यवस्था वंशानुक्रम (वंश की निरंतरता, पितृसत्तात्मक या मातृसत्तात्मक) और विवाह-बंधुत्व (विवाह के माध्यम से बने रिश्ते) के नियमों और संरचनाओं का अध्ययन करती है।
- संदर्भ और विस्तार: ये व्यवस्थाएँ समाज में सामाजिक संबंधों, पहचान और संसाधनों के हस्तांतरण को विनियमित करती हैं।
- गलत विकल्प: जाति व्यवस्था महत्वपूर्ण है, लेकिन यह मुख्य रूप से सामाजिक स्तरीकरण और अंतर्विवाह से संबंधित है। कबीला व्यवस्था की अपनी संरचनाएं होती हैं, लेकिन परिवार और नातेदारी अधिक व्यापक अवधारणा है। धार्मिक अनुष्ठान इसके सांस्कृतिक पहलू से जुड़ सकते हैं।
प्रश्न 16: इरावती कर्वे (Irawati Karve) ने भारत में नातेदारी (Kinship) का अध्ययन करते हुए किस मुख्य वर्गीकरण का उपयोग किया?
- पितृवंशीय और मातृवंशीय
- उत्तरी भारतीय और दक्षिणी भारतीय
- जाति-आधारित नातेदारी
- धार्मिक-आधारित नातेदारी
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: इरावती कर्वे ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Kinship Organisation in India” में भारत में नातेदारी व्यवस्थाओं के दो मुख्य प्रकारों – उत्तरी भारतीय (North Indian) और दक्षिणी भारतीय (South Indian) – के बीच महत्वपूर्ण अंतरों का वर्णन किया है।
- संदर्भ और विस्तार: यह वर्गीकरण विवाह नियमों, परिवार संरचनाओं और नातेदारी शब्दावली में पाए जाने वाले क्षेत्रीय भिन्नताओं पर आधारित है।
- गलत विकल्प: (a) भारत के कुछ हिस्सों में प्रासंगिक है लेकिन कर्वे का व्यापक वर्गीकरण नहीं। (c) और (d) नातेदारी के प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन कर्वे का केंद्रीय वर्गीकरण भौगोलिक है।
प्रश्न 17: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य केंद्र बिंदु क्या है?
- सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण।
- लोगों द्वारा अपने अंतःक्रियाओं में प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) का उपयोग करके अर्थ का निर्माण।
- सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्थाएं।
- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जिसका श्रेय जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) जैसे विचारकों को जाता है, इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य प्रतीकों (जैसे शब्द, हावभाव, चित्र) के माध्यम से एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं और इन प्रतीकों को अर्थ प्रदान करते हैं। यही अर्थ समाज के निर्माण और व्यक्ति की आत्म-धारणा के आधार बनते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत सूक्ष्म-स्तर (Micro-level) पर सामाजिक जीवन को समझने पर केंद्रित है।
- गलत विकल्प: (a), (c) और (d) अन्य समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणों से संबंधित हैं।
प्रश्न 18: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, जिसे कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन के तहत श्रमिकों के अनुभव के रूप में विस्तृत किया, के चार मुख्य रूप कौन से हैं?
- उत्पाद से अलगाव, उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं की प्रजाति-प्रकृति से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव।
- समाज से अलगाव, धर्म से अलगाव, परिवार से अलगाव, और राज्य से अलगाव।
- श्रम से अलगाव, धन से अलगाव, शक्ति से अलगाव, और जीवन से अलगाव।
- व्यक्तिगत अलगाव, सामाजिक अलगाव, राजनीतिक अलगाव, और आर्थिक अलगाव।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिक के अनुभव का विश्लेषण करते हुए चार प्रकार के अलगाव की बात की: स्वयं उत्पादित वस्तु से अलगाव (क्योंकि यह श्रमिक का नहीं होता), उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव (क्योंकि यह उसकी इच्छा के विरुद्ध या नीरस होता है), अपनी ‘प्रजाति-प्रकृति’ (Gattungswesen – मनुष्य की रचनात्मक और सार्वभौमिक प्रकृति) से अलगाव, और अंततः साथी मनुष्यों से अलगाव (क्योंकि वे प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं)।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा मार्क्स के ‘पेरिस पांडुलिपियों’ (Paris Manuscripts) में पाई जाती है और यह दर्शाता है कि कैसे पूंजीवाद मनुष्य की मूलभूत प्रकृति को विकृत करता है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प अलगाव की अवधारणाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं या उन्हें मार्क्स के मूल विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया है।
प्रश्न 19: टी. पार्सन्स (Talcott Parsons) के अनुसार, समाज की स्थिरता और व्यवस्था (Social Order) को बनाए रखने के लिए चार प्रमुख प्रकार्यात्मक आवश्यकताएं (Functional Imperatives) कौन सी हैं, जिन्हें ‘AGIL’ मॉडल के रूप में जाना जाता है?
- एकीकरण (Integration), सामाजिकता (Socialization), नियंत्रण (Control), और लक्ष्य-प्राप्ति (Goal-attainment)
- अनुकूलन (Adaptation), लक्ष्य-प्राप्ति (Goal-attainment), एकीकरण (Integration), और अव्यवस्था-निर्वहन (Latency/Pattern Maintenance)
- संरचना (Structure), एजेंसी (Agency), नवाचार (Innovation), और सहयोग (Cooperation)
- नियंत्रण (Control), अनुपालन (Compliance), निष्ठा (Loyalty), और भय (Fear)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: तालकोट पार्सन्स ने ‘संरचनात्मक-कार्यात्मकता’ (Structural-Functionalism) के अपने सिद्धांत में, समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा जो जीवित रहने के लिए चार आवश्यक प्रकार्यात्मक आवश्यकताओं को पूरा करती है: अनुकूलन (Adaptation – पर्यावरण से निपटना), लक्ष्य-प्राप्ति (Goal-attainment – सामूहिक लक्ष्यों को परिभाषित करना और प्राप्त करना), एकीकरण (Integration – समाज के विभिन्न भागों के बीच सामंजस्य), और अव्यवस्था-निर्वहन (Latency/Pattern Maintenance – सामाजिक पैटर्न को बनाए रखना और तनाव को प्रबंधित करना)।
- संदर्भ और विस्तार: यह मॉडल सामाजिक प्रणालियों के विश्लेषण के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प पार्सन्स के AGIL मॉडल के घटकों को सही ढंग से सूचीबद्ध नहीं करते हैं।
प्रश्न 20: भारतीय ग्रामीण समाज में, ‘भू-स्वामित्व’ (Land Ownership) का संबंध निम्नलिखित में से किस सामाजिक संरचना से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है?
- नगरीय विकास
- जाति व्यवस्था और वर्ग संरचना
- धार्मिक सहिष्णुता
- सांस्कृतिक विविधता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय ग्रामीण समाज में, भू-स्वामित्व केवल आर्थिक कारक नहीं है, बल्कि यह ऐतिहासिक रूप से जाति व्यवस्था और उभरती हुई वर्ग संरचना से गहराई से जुड़ा रहा है। उच्च जातियों के पास अक्सर अधिक भूमि होती थी, जिससे उनकी सामाजिक और राजनीतिक शक्ति भी मजबूत होती थी।
- संदर्भ और विस्तार: यह संबंध ग्रामीण भारत में शक्ति, असमानता और सामाजिक गतिशीलता को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: (a), (c) और (d) ग्रामीण समाज में महत्वपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन भू-स्वामित्व का सबसे प्रत्यक्ष और गहरा संबंध जाति और वर्ग से है।
प्रश्न 21: अल्फ्रेड शुट्ज़ (Alfred Schutz) ने ‘फेनोमेनोलॉजी’ (Phenomenology) के अपने समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण में किस पर जोर दिया?
- वस्तुनिष्ठ सामाजिक वास्तविकता का अध्ययन।
- लोगों के व्यक्तिपरक (Subjective) अनुभवों और दुनिया के अर्थों का निर्माण।
- सामाजिक संरचनाओं का बाहरी विश्लेषण।
- बड़े पैमाने की सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: अल्फ्रेड शुट्ज़, जो एडमंड हुसर्ल के फेनोमेनोलॉजी से प्रभावित थे, ने इस बात पर जोर दिया कि समाजशास्त्र को व्यक्तियों के व्यक्तिपरक अनुभवों, उनकी दुनिया के अर्थों की व्याख्या और उनके दैनिक जीवन के ‘जीवन-जगत’ (Lifeworld) को समझना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: उनका कार्य बाद में अल्फ्रेड शुट्ज़ और पीटर एल. बर्जर (Peter L. Berger) द्वारा विकसित ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) और ‘सामाजिक निर्माणवाद’ (Social Constructionism) के लिए आधार बना।
- गलत विकल्प: (a) और (c) प्रत्यक्षवादी (Positivist) या संरचनावादी दृष्टिकोण हैं। (d) बड़े पैमाने की संस्थाओं का अध्ययन फेनोमेनोलॉजी का मुख्य फोकस नहीं है।
प्रश्न 22: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया के सामाजिक प्रभाव के रूप में निम्नलिखित में से क्या देखा जा सकता है?
- पारंपरिक मूल्यों का सुदृढ़ीकरण।
- उच्च दर से शहरीकरण और औद्योगीकरण।
- कबीलाई जीवन शैली का प्रसार।
- जाति व्यवस्था का मजबूत होना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकीकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था, राजनीति और सामाजिक जीवन में व्यापक परिवर्तन शामिल हैं। इसके महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभावों में शहरीकरण (शहरों की ओर लोगों का प्रवासन) और औद्योगीकरण (औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि) शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया अक्सर पारंपरिक समाजों को बदल देती है, जिससे नए सामाजिक वर्गों, जीवन शैली और मूल्य प्रणालियों का उदय होता है।
- गलत विकल्प: आधुनिकीकरण आमतौर पर पारंपरिक मूल्यों को कमजोर करता है, न कि मजबूत करता है (a)। यह शहरीकरण और औद्योगीकरण को बढ़ावा देता है, न कि कबीलाई जीवन शैली के प्रसार को (c) या जाति व्यवस्था को मजबूत करता है (d)।
प्रश्न 23: सामाजिक अनुसंधान में ‘साक्षात्कार’ (Interview) विधि के संदर्भ में, ‘संरचित साक्षात्कार’ (Structured Interview) की मुख्य विशेषता क्या है?
- असीमित, मुक्त-प्रश्नों का उपयोग।
- अव्यवस्थित और अप्रत्याशित प्रश्न।
- समान प्रश्न और निश्चित क्रम।
- उत्तरदाताओं की भावनाओं को गहराई से जानना।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संरचित साक्षात्कार में, अनुसंधानकर्ता पूर्व-निर्धारित प्रश्नों का एक सेट का उपयोग करता है, जिन्हें एक निश्चित क्रम में पूछा जाता है। प्रश्न स्पष्ट रूप से तैयार किए जाते हैं, अक्सर बंद-अंत (closed-ended) प्रकृति के होते हैं, ताकि सभी उत्तरदाताओं से एक समान जानकारी एकत्र की जा सके।
- संदर्भ और विस्तार: यह विधि मात्रात्मक डेटा एकत्र करने और विभिन्न उत्तरदाताओं के बीच तुलना करने के लिए उपयोगी है।
- गलत विकल्प: (a) और (b) गैर-संरचित या अर्ध-संरचित साक्षात्कार की विशेषताएँ हैं। (d) उत्तरदाताओं की भावनाओं को गहराई से जानना मुख्य रूप से गैर-संरचित साक्षात्कारों का उद्देश्य होता है।
प्रश्न 24: मैक्स वेबर (Max Weber) ने सत्ता (Authority) के तीन मुख्य प्रकारों की पहचान की। निम्नलिखित में से कौन सा उनमें से एक नहीं है?
- तर्कसंगत-कानूनी सत्ता (Rational-Legal Authority)
- परंपरागत सत्ता (Traditional Authority)
- करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority)
- सैन्य सत्ता (Military Authority)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन आदर्श प्रकार (Ideal Types) बताए: तर्कसंगत-कानूनी (जैसे आधुनिक राज्य में कानून और पद), परंपरागत (जैसे राजशाही, जिसमें सत्ता परंपराओं पर आधारित होती है), और करिश्माई (जैसे एक असाधारण व्यक्ति में विश्वास)।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना था कि आधुनिक समाजों में तर्कसंगत-कानूनी सत्ता का प्रभुत्व बढ़ता है।
- गलत विकल्प: सैन्य सत्ता एक विशिष्ट प्रकार की सत्ता हो सकती है, लेकिन यह वेबर द्वारा सत्ता के तीन मौलिक आदर्श प्रकारों में से एक के रूप में वर्गीकृत नहीं की गई है। इसे तर्कसंगत-कानूनी या करिश्माई (यदि नेता करिश्माई हो) के अंतर्गत देखा जा सकता है।
प्रश्न 25: सामाजिक परिवर्तन (Social Change) के संदर्भ में, ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा का प्रयोग किसने किया, विशेषकर भारतीय समाज के संदर्भ में?
- एम.एन. श्रीनिवास
- एस.सी. दुबे
- ए.आर. देसाई
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का विश्लेषण करते हुए ‘पश्चिमीकरण’ की अवधारणा का प्रयोग किया। यह उन परिवर्तनों को संदर्भित करता है जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में पश्चिमी (विशेष रूप से ब्रिटिश) जीवन शैली, विचारों, प्रौद्योगिकी और संस्थानों को अपनाने के कारण हुए।
- संदर्भ और विस्तार: यह संस्किृतिकरण (Sanskritization) के विपरीत अवधारणा है, जो भारतीय समाजों में आंतरिक सांस्कृतिक गतिशीलता से संबंधित है।
- गलत विकल्प: एस.सी. दुबे और ए.आर. देसाई भी भारतीय समाजशास्त्री हैं जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन पर काम किया, लेकिन पश्चिमीकरण की अवधारणा को एम.एन. श्रीनिवास ने प्रमुखता से परिभाषित किया। डॉ. अम्बेडकर का ध्यान मुख्य रूप से जाति व्यवस्था के उन्मूलन पर था।